Friday, July 1, 2022

कवि लीलाधर जगूड़ी : मेरी कथा जाने हो जाने की कथा है

 


उत्तराखंड की सुरम्य वादियों के बीच टिहरी गढ़वाल में १ जुलाई १९४० को एक ऐसे रचनाकार का जन्म हुआ जिसने लोकजन और पर्यावरण को आधार मानकर अपनी रचनाएँ की हैं। इनका नाम है लीलाधर जगूड़ी। इनकी रचनाओं में कहीं पलायन का दर्द है तो कहीं मनुष्य का अपना अस्तित्व है, कहीं पर्यावरणीय चेतना है तो कहीं इसके प्रतीकों के माध्यम से संबंधों की प्रगाढ़ता है। समकालीन कविता में जगूड़ी का स्वर विशिष्ट पहचान रखता है। अपनी एक कविता 'खेल' के माध्यम से जब वो अपना परिचय देते हैं तो उसमें उनकी रचनात्मकता किस प्रकार झलकती है यह दर्शनीय है, वे लिखते हैं:

बहुत कुछ अपने जैसा जन्मते ही जो एक आदमी
लीलाधर जगूड़ी नहीं था - वह मैं हूँ
........ पहले यहाँ मेरे पिता फँसे
जब मैं आया वे जेलर बन गए
तब से मेरे दाएँ हाथ का काम
उनके बाएँ हाथ का खेल हो गया।

रविशंकर सोनकर के शब्दों में, "जगूड़ी की कविता को ग़ौर से देखें तो वह धीरे-धीरे अकवितावाद की प्रवृत्तियों से मुक्त हो कर आधुनिक कविता लिखते गए। वह अपने समय, समाज, इतिहास और उसमें मनुष्य की यातना और दुर्दशा पर कविता लिख रहे हैं।" वास्तव में जगूड़ी जी का रचना संसार वृहद् है, इनकी कविताओं के आयाम विस्तृत हैं, जिनके माध्यम से भीषण से भीषण परिस्थिति को इन्होंने बेहद प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त कर दिया है। इनके प्रतीक और बिम्ब प्रकृति के निकट एवं सूक्ष्म हैं लेकिन उनका मर्म बेहद गंभीर है, ऐसी ही इनकी एक कविता है 'चिड़िया का प्रसव'; इस कविता में इन्होंने माँ को ही नहीं एक स्त्री को चिड़िया से जोड़कर समाज को आईना दिखाया है, उन्होंने लिखा है:

"माँ उस पुरानी घटना का नाम है/ अपने पेट में अंडे ले कर/ चिड़िया बाजार में गई/ लाला के आगे से सुतली/ घोड़े के आगे से घास/ बूचड़ के आगे से बकरी के बाल/ बच्चे के आगे से काग़ज़ ला कर/ उसने घोंसला बनाया/ जिसका विरोध नहीं किया जा सकता/ प्रसव से पहले चिड़िया ने/ घोंसला बना लिया था/ चिड़िया का विरोध आजादी का विरोध है/ उस दरवाजे से बाहर।  ...... एक चिड़िया की भूख/ एक चींटी की भूख/ एक हाथी की भूख/ भूख चाहे किसी की हो/- मार एक है/ शांति में, ख़ामोशी में, सन्नाटे में/ तसल्ली के बाद जो पैदा होती है/ माँ उस इच्छा का नाम है।"

जगूड़ी जी के शब्दों में ,"कविता का यह स्वभाव भी मुझे अच्छा लगता है कि वह सभी घटनाओं और वस्तुओं में मानवीय गुणों को तलाशती है। लगता है वह चीज़ें भी मनुष्यों की तरह सोच रही हैं और प्रभावित हो रही हैं। साहित्य इस तरह एक सामूहिक दिल की रचना करता है।" उपर्युक्त कविता उनकी इस बात का प्रमाण है - एक चिड़िया, चींटी और हाथी के माध्यम से उन्होंने माँ से शुरू हुई कविता को अनेक स्तर दे दिए और अंत तक आते-आते वह कविता के मूल कथ्य में वापिस आ गए। समकालीन कविता में भी नए-नए प्रयोग दिखते रहे हैं, यद्यपि हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद विशेष प्रवृत्ति के लिए रूढ़ हो गया है लेकिन साहित्य प्रयोगों की माँग करता ही है और जगूड़ी जी की कविता में भाषा, शिल्प, बिम्ब और प्रतीकों के स्तर पर ऐसे कई प्रयोग दिखते हैं। इस संबंध में रविशंकर सोनकर जी लिखते हैं, "अज्ञेय की कविता में नई-नई चीज़ें तलाश की जाती हैं, विषयों को अलग हटकर के चुनना और उसमें भी प्रयोगशीलता, यह विशिष्टता जगूड़ी में दिखाई पड़ती है। हिंदी में ऐसी कविता कम ही मिलती है जैसी इन्होंने लिखी है।"

जगूड़ी जी ने कविता को केवल लिखा नहीं है बल्कि इस तरह से अनुभव को शब्दों में पिरोया है, जिसे पढ़कर पाठक आश्चर्य में पड़ जाता है। उन्होंने सूक्ष्म से सूक्ष्म दिखने वाली क्रिया को भी कविता में ऐसा स्थान दिया है कि उसका महत्त्व एकाएक बढ़ जाता है। ऐसी ही उनकी एक कविता है 'सुबकना', सुबकना वह क्रिया है जो बहुत देर रोने के बाद अक्सर अनायास होती है, इसको आधार बनाकर वे लिखते हैं:

सुखद-दुखद या मनहूस जितने भी अर्थ होते हैं /जीवन में हँसने रोने के/ सबसे ज़्यादा विचलन पैदा करता है सुबकना/ सुबकना निजी दुःख को रोना-गाना नहीं बनने देता/........ सुबकना यह भी बता रहा होता है / कि जिसे बहुत दिन साथ लगे रहना है सगे की तरह/ उस अपने ही दुःख को बाहर कैसे किया जाए…

इस कविता के माध्यम से उनकी यह बात स्पष्ट होती है कि, "कविता एक बने बनाए शिल्प और आज़माए हुए तौर-तरीक़ों वाली रचना का नाम नहीं है। कविता व्यावहारिक जीवन में एक वैचारिक प्रयोग भी है। ..... कविता के प्रयोग भाषा की ही समृद्धि नहीं बढ़ाते बल्कि वे संवाद, अर्थ और सौंदर्य को भी बढ़ाते हैं।"

लीलाधर जगूड़ी की कविताओं में राजनीतिक स्वर भी बहुत ही नपे-तुले शब्दों में अभिव्यक्त हुआ है, हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी के अनुसार, 'व्यंग्य वह है जहाँ कहने वाला अधरोष्ठों से हँस रहा हो और सुनने वाला तिलमिला उठा हो और फिर भी कहनेवाले को जवाब देना अपने को और भी उपहासास्पद बना लेना हो जाता है।' जगूड़ी जी की राजनीतिक कविताओं में व्यंग्य इसी रूप में दिखता है। आपातकाल के समय और उससे पूर्व अकविता के दौर में उनकी इस प्रकार की कविताएँ देखने को मिलती हैं। उनके काव्य संग्रह 'नाटक जारी है' में उनकी एक कविता ‘अंतर्देशीय’ इस प्रकार की एक कविता है जिसमें पत्रों को आधार बनाकर वह उस दौर की स्थिति को रचनात्मक स्वर देते हैं ,

इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए

न अपने विचार, न अपनी यादें

न अपने संबंधों की छाप

न दुख, न शिकायतें

न अगली मुलाक़ात का वादा

न संक्रामक बीमारियाँ

न पारिवारिक प्रलाप

न अपने हस्ताक्षर

वरना यह पत्र पकड़ा जा सकता है

लगातार परिवर्तित होते समय को कवि जब देखता है तो वह शांत कैसे रह सकता है, उसके भीतर की उथल-पुथल उसे भी कविता का रूप दे ही देती है, जिसे वह अपनी कथा के रूप में बयाँ करता है। जगूड़ी जी 'मेरी कथा' कविता के माध्यम से लिखते हैं ;

मेरी कथा

फावड़ा घिस जाने की

कारख़ाना उजड़ जाने की

सड़क टूट जाने की कथा है

मेरी कथा

पत्थर के रेत हो जाने की

पेड़ के लकड़ी हो जाने की

कोयले के आग हो जाने की कथा है

मेरी कथा

जाने हो जाने की कथा है।

जगूड़ी जी की कविताओं में भूमंडलीकरण और मशीनीकरण के युग में प्रकृति को बचाए रहने का आग्रह भी दिखता है। वे नहीं चाहते कि बच्चे केवल मशीनों में उलझे रहें, वे चाहते हैं कि भावी पीढ़ी भी खेत-खलिहान और अनाज का महत्त्व जाने, क्योंकि ये मशीनी उपकरणों की देन नहीं होते बल्कि उद्यम का फल होते हैं। इस मेहनत को रोबो बनकर नहीं, केवल मनुष्य बनकर समझा जा सकता है:

मेरे बच्‍चे यह भी जान लो कि प्राकृतिक संसाधन

भोजन के मूल स्रोत हैं टेक्‍नालॉजियाँ नहीं

जो कच्‍चा माल है उसमें एक पका हुआ फल भी है

कली के खिलने पर अगर तुम्‍हें बेकली होती है

तो यह निश्चित जान लो कि तुम रोबो नहीं हो

और जान लो जो प्रकृति नहीं बनाती

जब हम वह बनाते हैं

तब हम अपनी किसी प्राकृतिक ग़ुलामी का अंत कर रहे होते हैं।

जगूड़ी जी की भाषा सपाट होते हुए भी प्रतीकों को समेटे हुए है, उनकी कविता में प्रकृति के बिम्ब आना स्वाभाविक ही है क्योंकि, पहाड़ में रहने वाला कवि अपनी प्रकृति से अछूता नहीं रह सकता है; फिर चाहे वह सुमित्रानंदन पंत हों या समकालीन कवि लीलाधर जगूड़ी। समकालीन दौर में बहुत कम कवि हैं जिनकी काव्य-भाषा इस तरह का वैशिष्ट्य लिए हो। उनकी भाषा के संदर्भ में हमको उनका यह कथन पढ़ना चाहिए, “कविता के नए गद्य का वाक्य विन्यास जिस नए गद्य विन्यास का प्रतिफल है, उस भाषिक अनुभव को भी पहचानना होगा।” आगे वे लिखते हैं; 'अच्छी कविताएँ चाहती हैं कि उनके कवियों ने रस निकालने की प्रविधि पर जो छन्नी लगाई है उसे पाठक और आलोचक भी उपार्जित करें, समझें और उन नए छेदों-भेदों को पहचानें जो संस्कार देने वाली कविता में नहीं होते थे। मेरी नई कविताएँ मेरा नया उपार्जन किस प्रकार हैं इसे तभी उपलब्धि पर ढंग से समझा जा सकेगा। अन्यथा वही सरलतम निष्कर्ष फैला दिया जाएगा कि कविताएँ बिना प्रयास के समझ में नहीं आतीं। कविता एक नया प्रयास माँगती है। कृपया रायता कटोरी में ही परोसें।' इस तरह उनकी कविता माँग करती है समझ की क्योंकि, उनके यहाँ नई कविता को समझना भी प्रयास है, एक नया प्रयास। उनकी एक कविता 'लड़ाई' में इसी प्रकार का नयापन दिखता भी है, वे लिखते हैं,

दुनिया की सबसे बड़ी लड़ाई आज भी एक बच्चा लड़ता है

पेट के बल, कोहनियों के बल और घुटनों के बल

लेकिन जो लोग उस लड़ाई की मार्फ़त बड़े हो चुके

मैदान के बीचों-बीच उनसे पूछता हूँ

कि घरों को भी खंदकों में क्यों बदल रहे हो?

 

जीवन परिचय :  लीलाधर जगूड़ी

नाम

लीलाधर जगूड़ी

जन्म

१ जुलाई १९४०  धंगड़, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड

शिक्षा

स्नातकोत्तर हिंदी

व्यवसाय

पूर्व सैनिक, अध्यापक, उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सूचना सलाहकार

रचनाएँ

कविता संग्रह :

शंखमुखी शिखरों पर, नाटक जारी है, इस यात्रा में, रात अब भी मौजूद है, बची हुई पृथ्वी, घबराए हुए शब्द, भय भी शक्ति देता है, अनुभव के आकाश में चाँद, महाकाव्य के बिना, ईश्वर की अध्यक्षता में, ख़बर का मुँह विज्ञापन से ढका है, जितने लोग उतने प्रेम, कविता

 नाटक

 पाँच बेटे

 

 गद्य

मेरे साक्षात्कार, प्रश्न व्यूह में प्रज्ञा (साक्षात्कार)

                                                            पुरस्कार

        साहित्य अकादमी पुरस्कार (अनुभव के आकाश में चाँद), १९९७ ई.

        पद्मश्री सम्मान

        रघुवीर सहाय सम्मान

        भारतीय भाषा परिषद् शतदल सम्मान

        नमित सम्मान

        आकाशवाणी सम्मान

        व्यास सम्मान (जितने लोग उतने प्रेम काव्य संग्रह) २०१८ ई.

संदर्भ

     कविता कोश

     विकिपीडिया

     समकालीन कविता और लीलाधर जगूड़ी : रविशंकर सोनकर, (बनास जन में सम्पादित)

     कबीर: हज़ारीप्रसाद द्विवेदी

     कविता एक नया प्रयास मांगती है; लीलाधर जगूड़ी (https://poshampa.org/kavita-ek-naya-prayaas-maangti-hai-an-essay-by-leeladhar-jagudi/)

लेखक परिचय : 

विनीत काण्डपाल

स्नातक (प्रतिष्ठा) हिंदी, हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
स्नातकोत्तर हिंदी, किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
अनुवाद डिप्लोमा, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
जेआरएफ हिंदी, शोधार्थी
सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)

मोबाइल -8954940795
ईमेल -vineetkandpal1998@gmail.com

3 comments:

  1. प्रिय कवि पर सुंदर आलेख पढ़ना रुचिकर लगा.

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  2. विनीत जी नमस्ते। आपने आदरणीय लीलाधर जगूड़ी जी पर अच्छा लेख लिखा। आपको बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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