अपने भीतर प्रेम, सौंदर्य और गजब की जिजीविषा समेटे एक कवि जो लिखता है –
दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं
एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम
वह हमारे समय के उल्लेखनीय साहित्यकार राजेश जोशी का चेहरा है। सामयिक संदर्भों, जनसरोकारों और मानवीय संबंधों की विविधता समेटे, कवि, नाटककार, कथाकार और आलोचक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले राजेश जोशी ने १९८० में अपने पहले काव्य संग्रह ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’ के साथ हिंदी जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
वर्तमान समय में वे एक ऐसे बहुपुरस्कृत रचनाकार के रूप में जाने जाते हैं जिन्हें मुक्तिबोध पुरस्कार, श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार, मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान और माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार के साथ-साथ ‘दो पंक्तियों के बीच’ कविता-संग्रह के लिए वर्ष २००२ के प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अँग्रेजी, रूसी और जर्मन में उनकी कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं। वे समकालीन हिंदी कविता के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर होने के साथ-साथ साहित्य, समाज, संस्कृति के मूल्यवान विचारक भी हैं।
राजेश जोशी का जन्म १८ जुलाई १९४६ को नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ। शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बैंक में नौकरी आरंभ की। कुछ समय पत्रकारिता की तथा कुछ वर्षों तक अध्यापन भी किया। एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी, दो पंक्तियों के बीच, ज़िद, चाँद की वर्तनी और उल्लंघन उनके काव्य-संग्रह हैं। ‘समर गाथा’ उनकी आरंभिक लंबी कविता है। 'गेंद निराली मिट्ठू की' बाल कविताओं का संग्रह है। उनके कहानी-संग्रह हैं - ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’ और ‘कपिल का पेड़’। ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘कहन कबीर’, ‘टंकारा का गाना’, ‘तुक्के पर तुक्का’ उनकी नाट्य-कृतियाँ हैं। ‘एक कवि की नोटबुक’ और ‘एक कवि की दूसरी नोटबुक’ के रूप में आलोचनात्मक टिप्पणियों की दो किताबें प्रकाशित हुई हैं। उन्होंने भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना ‘भूमि का कल्पतरु यह भी’ शीर्षक से और मायकोव्स्की की कविताओं का अनुवाद ‘पतलून पहिना बादल’ शीर्षक से किया। उन्होंने कुछ लघु फ़िल्मों के लिए पटकथाएँ भी लिखी हैं।
राजेश जोशी की कविताओं में गहरे सामाजिक सरोकार हैं। बहुत ही साधारण तरीके से गहरे प्रश्नों की ओर ले जाना उनकी काव्यगत विशेषता है। जब वे लिखते हैं –
बच्चे काम पर जा रहे हैं
...भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
तब वे एक सामयिक, प्रासंगिक, मर्मभेदी सच्चाई से हमें रूबरू करा रहे होते हैं।
राजेश जोशी की विशेषता यह भी है कि वे विषम जीवन परिस्थितियों में भी, आश्वस्ति के कवि हैं -
कचरा बुहारने की चीज़ है घबराने की नहीं
कि अब भी बनाई जा सकती हैं जगहें
रहने के लायक! (नेपथ्य में हंसी )
उनकी कविताओं में उनके आसपास का जीवन, प्रकृति, स्त्री, बच्चे, बूढ़े, मित्र और पारिवारिक संबंधों के चित्र बोलचाल की भाषा में साकार होते हैं। बेटी की विदाई का यह दुर्लभ चित्र कवि के संवेदनशील अन्त:करण का साक्ष्य देता है –
तुमने देखा है कभी बेटी के जाने के बाद का कोई घर?
जैसे बिना चिड़ियों की सुबह
जैसे बिना तारों का आकाश!
उनकी कविताएँ जीवन की आत्मीय लय से भरी हैं। कामकाजी पत्नी थकान से भर कर घर लौटी है, घर के काम-काज उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। ऐसे में कविता की यह पंक्ति भर ‘बैठो तुम आज मैं चाय बनाता हूँ’ कवि की आत्मीय संवेदनशीलता से साक्षात्कार कराती है। लेकिन कविता के विस्तार में ‘मेरी आवाज़ की नोक मुझी को चुभती है’ कहने वाले कवि से पत्नी का यह कहना – ‘यह तो मैं हूँ कि अबेर रखा है सब कुछ, वरना तुम तो ढूंढ नहीं पाते अपने आप को’ – दांपत्य की लय को पूरा कर देता है। कविता का शीर्षक है – ‘उसकी गृहस्थी’! पारिवारिक संबंधों पर उनकी कई मर्मस्पर्शी कविताएँ हैं।
राजेश जोशी इसी तरह के जीवनदायी कोमल तंतुओं को बचाने-संवारने की सृजनात्मक संभावनाओं की तलाश के कवि हैं। समाज में बदलाव के बिंदु खोजता कवि चुनौतियों की स्वीकृति को शब्दबद्ध करता है –
गणित और कागज़ के फूलों के बीच खड़े थे रफ़ीक मास्टर साहब ..
दोस्तों ने पूछा कौन रफ़ीक मास्टर साहब वो जो बानवे के दंगों में मारे गए?
नहीं! मैंने खीजते हुए कहा
नहीं वो नहीं, वो जो बिरजीसिया मिडिल स्कूल में हमें गणित पढ़ाते थे
और कागज़ के बहुत सुंदर फूल बनाते थे।
यद्यपि वे मूलतः प्रतिरोध और यथार्थ को रचते, विषम संघर्षों से जूझते कवि हैं, तथापि प्रेम के कोमल संवेदन को इतनी सहजता से पिरोते हैं कि वह अंतस्तल की गहराई का संस्पर्श करता है...
कमरे में चहकती हुई चिड़िया है तुम्हारा प्यार
तुम छुट्टी ले लो कुछ दिन और चिड़िया से बोलो
एवज में ऑफिस चली जाए
रजिस्टर में दर्ज कर आए
चिट्ठी-पत्री।
राजेश जोशी लंबे समय से साहित्य सृजनरत हैं। १९८० में पहले काव्य संग्रह के प्रकाशन से लेकर नवीनतम काव्य संग्रह के प्रकाशन वर्ष २०२१ तक व्यापक विविधता, बहुरंगी जीवन छवियाँ, जनजीवन के साधारण पात्र और उनकी जीवन परिस्थितियाँ, कवि की प्रतिबद्धता, संघर्षमयता, गहरा सामाजिक बोध, भाषा की गद्यात्मक लय, सपाटबयानी, लोक भाषा की शब्दावली – उनके लेखन में आकार लेती रही हैं। उनकी कविताओं में गहरा राजनीतिक बोध है, तीखा व्यंग्य है। भाषा में शालीन असहमति है। पहले संकलन ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’ की कविता पंक्तियाँ हैं -
देख चिड़िया
आजू-बाजू देख
बाजार से आते
उस हाथ को देख
जो पिंजरा लाता है।
देख उस हाथ को गौर से
जो चावल के उजले दानों के नीचे
जाल बिछाता है।
अपनी कविताओं को किस्सागोई में लाना भी उनकी विशेषता है। उनकी कविता एक संवाद की तरह आगे बढ़ती है-
‘निराशा मुझे माफ़ करो
आज मैं नहीं निकाल पाऊंगा तुम्हारे लिए समय
आज मुझे एक जरूरी मीटिंग में जाना है।’
अपने बदल गए फोन नंबर की सूचना देने को कई पोस्टकार्ड लिखने वाला यह कवि ही, निस्संदेह कह सकता है –
दोस्त ने कहा कि एक पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री को भी डाल दो प्रधानमंत्री को पता नहीं कब तुमसे कोई काम पड़ जाए मुझसे क्या काम पड़ना था प्रधानमंत्री को, लेकिन मैंने सोचा काम पड़े न पड़े पर मेरा नया फोन नंबर प्रधानमंत्री के पास भी हो, इसमें क्या हर्ज़ है और एक पत्र मैंने प्रधानमंत्री के पते पर भी डाल दिया।
अपने विकास-विस्तार में यह कविता कितने उतार-चढ़ावों से गुजरती है, किस तरह की लय, संवाद और नाटकीयता को वहन करती है, यह पढ़कर गौर करने की वस्तु है।
‘गद्य को साध पाना कठिन काम है’ कहने वाले कवि ने हिंदी जगत को बेहतरीन कहानियाँ दी हैं। एक कहानी का शीर्षक चौंकाता है – ‘सोमवार’ और कहानीकार बेहिचक कहता है – ‘सोमवार घनघनाता, भड़भड़ाता हुआ आता है, और सारा घर एक कंपकंपाती ठनठनाहट से भर जाता है।’ कहानी मध्यवर्गीय जीवन के सत्य का आधार ग्रहण कर रोचक वास्तविकता सामने ले आती है। साँप जैसी गहन प्रतीकात्मक और धूप, जाल, हँसी, सींग तथा कपिल का पेड़ जैसी प्रयोगात्मक कहानी लिखने वाले राजेश जोशी इनमें मध्यवर्ग के विसंगत सच को सम्मुख ले आते हैं।
कवि अपनी नोटबुक में अपने वरिष्ठ, समकालीन सहयोगी कवियों पर मुक्त मन से लिखता है। वह समकालीन हिंदी कविता की वस्तु और मुहावरे को भी बारीकी से लक्षित करता है।
मूल रूप से कवि राजेश जोशी का अंतर्मन जब नाटकीय संभावनाओं की पड़ताल में जुटा तो लोकप्रिय नाट्य सृजन हुआ। उन्होंने कहानियों के नाट्य रूपांतर भी किए। लोक कथा का आधार ‘जादू जंगल’ नाटक में मौजूद है। राजेश जी ने बाल नाटक भी रचे। इन नाटकों का सफल मंचन भी हुआ। उनके नाटक अपने समय और समाज की प्रतिध्वनि हैं और उनमें एक समर्थ नाट्य भाषा का जीवंत रूप है। राजेश जोशी से समस्त नाटक 'अब तक सब' शीर्षक से पुस्तक रूप में प्रकाशित हैं।
‘किस्सा कोताह’ कृति कवि के सृजनात्मक कौशल का नायाब सिलसिला है। आत्मकथ्य से शहर तक, शहर से साहित्य तक पृष्ठ दर पृष्ठ लेखक किस्सों और गप्पों की दुनिया में लिए चलता है, यह स्पष्ट करते हुए कि ‘किस्सा बोलने की कला है। बोला गया शब्द लिखे गए शब्द से ज्यादा स्वतंत्र होता है।'
आशीष त्रिपाठी के शब्दों में इस अनूठे रचनाकार के वैशिष्ट्य को बाँधना उचित लगता है - ‘राजेश जोशी को पढ़ते हुए यह धारणा मजबूत होती है कि कविता सदैव जीवन और जनता के पक्ष में होती है... राजेश जोशी हमारे समय के प्रतिनिधि प्रगतिशील-जनवादी कवि हैं. .. राजेश जोशी कवियों-आलोचकों की उस धारा के प्रतिनिधि हैं, जिसमें निराला, प्रसाद, अज्ञेय, मुक्तिबोध ..के नाम महत्त्व के साथ लिए जा सकते हैं।’
नष्ट होती दुनिया में जीवन को बनाए और बचाए रखने की साध मन में रखने वाला यह कवि जुझारू है, इसलिए कह सका -
चाहता हूँ हवा की तरह सबके काम आना
पानी की तरह बुझाना प्यास सबकी
...मैं हर दरवाजे पे आना चाहता हूँ
कि मेरे आने से खुशी हो किसी न किसी को
मैं दरवाजों से जाना चाहता हूँ
आना फिर आना सुनते हुए!
संदर्भ
- बनास जन
- विकीपीडिया
लेखक परिचय
डॉ० विजया सती
पूर्व एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्व विजिटिंग प्रोफ़ेसर, ऐलते विश्वविद्यालय, बुदापैश्त, हंगरी
पूर्व प्रोफ़ेसर हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़, सिओल, दक्षिण कोरिया
प्रकाशनादि- राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों में आलेख प्रस्तुति और उनका प्रकाशन
संप्रति - स्वांतः सुखाय, लिखना-पढ़ना
vijayasatijuly1@gmail.com
विजया जी, आपका राजेश जोशी जी पर आलेख पुरवाई के एक सुखद झोंके की तरह महसूस हुआ, अंत में लगा अभी इसकी सोहबत में और रहना है। बेहतरीन आलेख के लिए आपको बधाई और आभार।
ReplyDeleteराजेश जोशी जी की कविता विश्व का परिचय पढ़कर बहुत आनंद हुआ। हार्दिक बधाई,विजया जी 🙏👏💐
ReplyDeleteविजया मैम, आपके इस लेख ने वरिष्ठ कवि राजेश जोशी के विस्तृत साहित्यिक फ़लक को कुछ और रोशनी प्रदान की है, कुछ और उजागर किया है। सभी उद्धरण सहित पूरा लेख पढ़ते हुए बहुत आनंद आया। मेरा पाठक मन और भी समृद्ध हुआ। आपको इस अनुपम लेख के लिये बहुत बहुत बधाई और आभार।
ReplyDelete*तुमने देखा है कभी बेटी के जाने के बाद का कोई घर?
ReplyDeleteजैसे बिना चिड़ियों की सुबह
जैसे बिना तारों का आकाश!*
यह पंक्तियाँ बताती हैं कि एक अच्छा कवि अतुकांत कविता में भी छंदबद्ध काव्य वाला भाव और लय प्रस्तुत कर सकता है।
विजया जी, आपने आलेख में राजेश जी के काव्य के सुंदर उद्धरण दिए हैं और उनका खूबसूरत परिचय दिया है। बधाई। शुभकामनाएँ।💐 राजेश जी को जन्मदिवस की कोटिशः शुभकामनाएँ।इसी तरह लिखते रहें , समाज को जगाते रहें। 💐💐
डॉ. विजया जी नमस्ते। आपने राजेश जोशी जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। आपके लेख के माध्यम से उनके विस्तृत साहित्य सृजन को जानने का अवसर मिला। लेख पर आई टिप्पणियों एवं उनकी कविताओं ने लेख को और रोचक विस्तार दे दिया है। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteविजयाजी नमस्ते, बहुत सार्थक, सुंदर और ज्ञानवर्धक कहानी के रूप में आपने राजेश जोशी जी के जीवन और उनके रचना संसार से परिचय करवाया है। आलेख में दी गई कविताएँ बड़ी मर्मस्पर्शी हैं। उम्दा आलेख के लिए आपको बधाई और धन्यवाद।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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