Saturday, July 16, 2022

संस्कृति पुरुष जगदीश चंद्र माथुर: सूचना और संचार क्रांति के जनक


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“सरकार किसी भी भाषा में चलाई जाए पर लोकतंत्र हिंदी और भारतीय भाषाओं के बल पर ही चलेगा।”
- जगदीश चंद्र माथुर

“यह आकाशवाणी है… ” ऐसी मधुर आवाज़ की झंकार हम सब पीढ़ियों से सुनते आ रहे हैं, जिसने हमें ज्ञान, विज्ञान, सूचना और मनोरंजन की निधि से परिपूरित किया है। क्या आपने कभी विचार किया कि ऑल इंडिया रेडियो का हिंदी नामकरण आकाशवाणी किसने किया ? घर-घर में अनिवार्य सदस्य के रूप में उपस्थित टेलिविज़न को दूरदर्शन नाम किसने दिया? इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर है-अप्रतिम नाटककार एवं लेखक श्री जगदीश चंद्र माथुर ।

सूचना और संचार क्रांति के जनक के रूप में सुशोभित जगदीश चंद्र माथुर ने हिंदी भाषा में एक नयी उमंग उत्पन्न की। प्रख्यात नाटककार और लेखक श्री माथुर का जन्म खुर्जा (उत्तर प्रदेश) में १६ जुलाई १९१७ को हुआ था। असाधारण प्रतिभा संपन्न श्री माथुर की प्रारंभिक शिक्षा खुर्जा से हुई। पूत के पाँव पालने में ही दिखते हैं की कहावत उनके ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है। इसकी झलक उनके शैक्षिक जीवन के प्रारंभ में दिखने लगी थी। दूसरी और तीसरी कक्षा से वे अभिनय में प्रतिभागिता करने लगे थे। मात्र १२ वर्ष की आयु में ही उन्होंने पहला प्रहसन 'मूर्खेश्वर राजा' लिखा। कॉलेज के समय में वह द्विजेंद्र लाल राय के नाटकों में भाग लेते थे। विद्यालय स्तर पर १९२५ में बदरी नाथ भट्ट के प्रहसन चुंगी की उम्मीदवारी में 'कन्हैया' का किरदार निभाने पर उन्हें जनपद में खूब प्रसिद्ध प्राप्त हुई। राधेश्याम के नाटक वीर अभिमन्यु में अभिमन्यु का रोल निभाया, जिसने उन्हें बहुत लोकप्रिय अभिनेता बना दिया।

उच्च शिक्षा इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद और प्रयागराज विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहाँ उनके साहित्यक जीवन का बीजारोपण हुआ। विश्वविद्यालय की दहलीज में ही उन्होंने अपने लेखन की राह प्रशस्त की। चांद और रूपाभ जैसी हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ छपी तो उन्हें साहित्य सृजन का एक नया कैनवास मिला, जिसे माथुर जी ने मनचाहे रंगों से सजाया। माथुर जी की पहली एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ १९३६ में 'सरस्वती' में छपी थी, जिसका मंचन विश्व विद्यालय के 'म्योर हॉस्टल' में हुआ। विश्वविद्यालय में रंगमंच पर अभिनीत होने वाले नाटकों को गति माथुर जी के प्रयासों के फलस्वरूप ही प्राप्त हुई। प्रयाग से ही पाँच एकांकियों का संग्रह 'भोर का तारा' नाम से प्रकाशित हुआ।

अतुलित मेधा के धनी श्री माथुर ने १९३९ में अंग्रेजी में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के पश्चात १९४१ में इंडियन सिविल सर्विस में चौथा स्थान प्राप्त किया। वे सफल प्रशासक के साथ-साथ कुशल नेतृत्व कर्ता भी थे। उन्होंने बिहार से अपने प्रशासनिक कैरियर की शुरुआत की और लगभग ६ वर्षों तक बिहार सरकार में शिक्षा सचिव के रूप में पदस्थ रहे ।

१९५० से १९७० तक के समय की यात्रा न केवल श्री माथुर के लिए, अपितु हिंदी के लिए भी एक क्रांतिकारी और स्वर्णिम यात्रा रही। यह वो समय था जब देश नवनिर्माण और परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। इसी समय जदीश चंद्र माथुर को आल इंडिया रेडियो में डायरेक्टर जनरल के उत्तरदायित्व मिले । उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो को शिखर पर पहुँचाया। अक्टूबर १९५७ में इसका नाम बदल कर 'आकाशवाणी' किया गया, जिसने जनमानस में एक नयी स्फूर्ति पैदा की। रेडियो नाटकों ने हिंदी भाषा को समृद्ध और लोकप्रिय बनाया। जन-जन तक हिंदी की पैठ बनाने में अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों का योगदान रहा। इस कार्यकाल के दौरान आपने प्रकृति के चितेरे सुमित्रानंदन पंत, विष्णु प्रभाकर, कमलेश्वर सहित कई नामचीन कवियों और लेखकों को रेडियो में मंच पर लेकर आये। भारत रत्न विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पं. रवि शंकर को उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो का प्रोड्यूसर बनाया। तमाम साहित्यकारों एवं कलाकारों के साथ मिल कर आकाशवाणी को लोकप्रियता के चरम पर पहुँचाया।

१५ सितम्बर १९५९ का दिन आधुनिक भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिन था, जब पंडित नेहरू ने दूरदर्शन का उद्घाटन किया। उनके कार्यकाल की यह घटना भारत में संचार क्रांति के लिए मील का पत्थर थी। उद्घाटन के पश्चात माथुर जी ने कहा- “हिंदी ही सेतु का काम करेगी, सूचना और संचार तंत्र के सहारे ही हम अपनी निरक्षर जनता तक पहुंच सकते हैं।” दूरदर्शन की महत्ता के बारे में उद्घाटन के बाद माथुर जी के शब्द थे-“दूरदर्शन जैसे माध्यम की शक्ति को पहचानिए और जैसा कि पश्चिम के मीडिया पंडित कहते हैं,'मीडिया इज़ द मैसेज' इस भ्रम को तोड़िये और साबित कीजिए 'मैन बिहाइंड मीडिया इज़ द मैसेज’।”

विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते हुए भी माथुर जी ने हिंदी की अगाध सेवा की। साहित्य जगत में इतिहास के संदर्भ में जयशंकर प्रसाद के नाटकों से इतर प्रयोगशील नाटकों की शुरूआत माथुर जी ने ही की। 'कोणार्क’ के माध्यम से नाटकों में अभिनव प्रयोग की परम्परा प्रारंभ की। ‘कोणार्क’ नाट्यकला की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट कृति है। इसके प्रत्येक अंक में एक विराट युग का स्पंदन झलकता है। आज भी यह रंगमंच का पसंदीदा नाटक है। नागपुर के म्यूजियम में रखी मात्र पाँच तोले वजन की पाँच गज की साड़ी को निमित्त बनाकर उस अज्ञात कलाकार, जो ग्वालियर किले में बंदी था, और उसकी प्रेमिका का आधार 'शारदिया' नाटक उनकी कल्पनाशीलता की परणीति है। 'पहला राजा' एक अविस्मरणीय नाट्य कृति है, जो राजा पृथु को केंद्र में रखकर लिखी गई है। ’दशरथ नंदन’ और 'रघुकुल रीत' उनके अन्य प्रसिद्ध नाटक हैं।

जीवन हो या साहित्य-सृजन, दोनों के लिए सुव्यवस्था, सुरुचि और कलात्मकता को वह अनिवार्य तत्व मानते थे। सौंदर्य और लालित्य उनकी रचनात्मकता के अभिन्न अंग थे। उनकी कृतियों में कल्पना, नवीन चेतना व वैज्ञानिकता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। उनके नाटक और संस्मरण में संवेदना और मानवीय मूल्यों का मणिकांचन संयोग मिलता है, जो उन्हें साहित्य में शिखर पर पहुँचाता है। माथुर जी छायावाद से प्रभावित रहे हैं। उनके सामाजिक नाटक जहाँ एक ओर आधुनिक समाज की विडंबना को उभारते हैं, वहीं ऐतिहासिक नाटक अतीत के गौरव को। प्रख्यात नाटककार, सिद्धहस्त एकांकीकार, कुशल प्रशासक होने के साथ साथ माथुर जी बहुत सरल-सहज दयालु व विनम्र थे। प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर कहते हैं- “मैं नये लेखक के तौर पर थोड़ा बहुत पहचाना तो जाता था पर बेकार था….माथुर साहब ने दिल्ली दूरदर्शन आकर मुझे काम करने का मौका दिया। यह मेरी पहली नौकरी थी।”

'भोर का तारा' से लेकर 'पहला राजा' तक उनके साहित्य में छायावादी संस्कार परिलक्षित होता है। 'भोर का तारा’ कवि शेखर व छाया के प्रेम का प्रतीक है। ऐतिहासिक फलक पर आधारित यह एकांकी निजी प्रेम और देशप्रेम का अद्भुत संगम है।‘रीढ़ की हड्डी’ के माध्यम से वो लैंगिक भेदभाव के सामाजिक ताने-बाने पर प्रहार करते हैं। उमा के प्रश्न समाज पर सवाल उठाते हैं-“क्या लड़कियों के दिल नहीं होते? क्या उन्हें चोट नहीं लगती? क्या वे बेबस भेड़ बकरियाँ हैं, जिन्हें कसाई देखभाल कर खरीदता है?” गोपाल प्रसाद की धोखे की बात कहने पर वो उन कड़ा कटाक्ष करती है-“जी हाँ जाइए। लेकिन अब जाकर पता लगाइयेगा कि आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी भी है या नही। यानी बैक बोन, बैक बोन।”

श्रम की महत्ता स्थापित करता 'बन्दी' का यह दृश्य कितना प्रभाव शाली है- 

“लोचन: … ।  कैसे बताऊँ?।। कैसे बताऊँ कि यह कुदाली और यह मेहनतकश हाथ यही वे तिलिस्म हैं, जिससे मैं धरती को भेद पाता हूँ… ।

चेतू : लोचन भैया … … … … … … ।। 

चेतू : अगली बरखा तक खेत तैयार करेंगे।

लोचन : (उल्लास पूर्ण वाणी) चलो हम रोज सांझ को अपने पसीने के दर्पण में कभी न मिटने वाली झाँकी देखेंगे। चलो चेतराम!"


नाटकों के अलावा उन्होंने यादों का पहाड़, आधा पुल, मुट्ठी भर कांकर, कभी न छोड़े खेत, धरती धन न अपना जैसे भावपूर्ण उपन्यासों की रचना की है। धरती धन न अपना उपन्यास दलित, शोषित, मजदूर वर्ग की तस्वीर प्रस्तुत करता है। 'दस तस्वीरें' और 'जिन्होंने जीना जाना' उनके प्रसिद्ध रेखाचित्र हैं। माथुर जी ने भावपूर्ण, व्यक्ति व वस्तु प्रधान ललित निबंध लिखे हैं, जिसमे जीवन की गहराइयाँ स्पष्ट परिलक्षित होती हैं। माथुर जी की पुस्तक 'बोलते क्षण’ में संकलित गंडक को निमित्त बनाकर लिखा गया निबंध, सदानीरा गंडक की भाँति कल-कल प्रवाहित संस्कृति और जीवन की झाँकी प्रस्तुत करता है-

“अजीब है यह पानी। इसका अपना कोई रंग नही, पर इंद्रधनुष के समस्त रंगों को धारण कर सकता है। इसका अपना कोई आकार नही पर असंख्य आकार ग्रहण कर सकता है।। 
उसके शांत रूप को देखकर हम ध्यानावस्थिति हो सकते हैं तो उग्र रूप को देखकर भयाक्रांत। जीवनदायिनी वर्षा के रूप में वरदान बनकर आता है, तो विनाशकारी बाढ़ का रूप धारण कर जल तांडव भी रचता है। अजीब है यह पानी।” (बोलते क्षण)

रंगमंच का यह चतुर चितेरा, हिंदी नाट्य साहित्य का अनमोल रत्न है, जिसने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाने में महती भूमिका निभाई। प्रसिद्ध साहित्यकार कमलेश्वर के शब्दों में—  "जगदीश चंद्र माथुर को याद करना, सूचना और संचार माध्यमों में हुई क्रांति को याद करना है।”

जगदीश चन्द्र माथुर

जीवन परिचय

जन्म

१६ जुलाई १९१७ खुर्जा,  बुलंदशहर

निधन

१४ मई १९७८

शिक्षा

प्रारंभिक शिक्षा- गाँव में संपन्न ।उच्च शिक्षा- एम ए अंग्रेजी  प्रयाग विश्वविद्यालय

कार्य क्षेत्र


भारतीय प्रशासनिक सेवा

१९४१ में इंडियन सिविल सर्विस में चयन, शिक्षा सचिव, बिहार सरकार ; महानिदेशक, आल इंडिया रेडियो; अध्यक्ष, कार्य कारिणी समिति, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय ;हिंदी सलाहकार, सूचना प्रसारण मंत्रालय; विजिटिंग फेलो, हार्वड विश्व विद्यालय; चेयरमैन दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया  में प्राथमिक शिक्षा और सामुदायिक विकास पर आयोजित क्षेत्रीय सेमिनार

साहित्यिक कृतियाँ


प्रहसन

मूर्खेश्वर राजा

एकांकी

भोर का तारा , ओ मेरे सपने

नाटक

कोणार्क, शारदीया, पहला राजा, दशरथ नंदन, रघुकुल रीत,

रेखाचित्र/संस्मरण

दस तस्वीरें, जिन्होंने जीना जाना

उपन्यास

यादों का पहाड़, धरती धन अपना, आधा पुल, कभी न छोड़े खेत, मुट्ठी भर कांकर, टुंडा लाट,

निबंध

बोलते क्षण, 'साहित्य समाज और भाषा'

समीक्षा

अन्य पुस्तक

परंपराशील नाट्य 

बहुजन संप्रेषण के माध्यम जनसंचार पर व दो कठपुतली नाटक

सम्मान

विद्या वारिधि,कालिदास अवार्ड,बिहार राज भाषा पुरुस्कार

अन्य

भव्य वैशाली महोत्सव का १९४४ में बीजारोपण

संदर्भ:

  1. कोणार्क- जगदीश चंद्र माथुर

  2. पहला राजा- जगदीश चंद्र माथुर

  3. भोर का तारा- जगदीश चंद्र माथुर

  4. बोलते क्षण- जगदीश चंद्र माथुर

  5. www.wikipedia.org

  6. bbc.com/hindi/eentertainment

  7. www.jagaran.com

  8. www.sahityaganga.com

लेखक परिचय

C:\Users\chd\Downloads\IMG_20220710_201056.jpgमनीष कुमार श्रीवास्तव 

ग्भिटारी,आलमपुर

रायबरेली उत्तर प्रदेश

manish24bhitari@gmail।com

अध्यापक व साहित्यकार, प्रकाशित रचना:- प्रकाश: एक द्युति (हाइकु क्षितिज) 


5 comments:

  1. मनीष जी, भारत में स्तरीय सूचना एवं संचार माध्यमों की नींव डालने वाले और उसे अपने कौशल से ऊँचाइयों तक के जानेवाले जगदीश चंद्र माथुर पर आपका आलेख उत्तम है। आपके लेख के माध्यम से उनके जीवन और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं को जानने का मौक़ा मिला। इस लेख के लिए बधाई और आभार स्वीकार करें।

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  2. जगदीश चंद्र माथुर के जीवन और कृतित्व पर महत्त्वपूर्ण जानकारी देता हुआ बढ़िया आलेख लिखा है मनीष जी आपने। इस श्रम साध्य कार्य के लिये आपको धन्यवाद और बधाई। भावी लेखन के लिए शुभकामनाएँ

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  3. मनीष जी आपने सूचना और संचार माध्यमों को अमल में लाने वाले जगदीश चंद्र माथुर जी पर बेहद सधा और सुपठनीय लेख प्रस्तुत किया है।आपके इस लेख के माध्यम से उनके जीवन और कृतित्व को विस्तार से जानने का अवसर मिला। इस समग्र लेख के लिये आपको बहुत बहुत बधाई। 🙏🏻

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  4. मनीष जी आपने बहुत सुंदर शब्दों में माथुर साहब का संपूर्ण परिचय दिया है। आपकी लेखनी में जादू है। यह बना रहे यही मेरी कामना है। इतने सुंदर आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई।

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  5. मनीष जी नमस्ते। सूचना एवं जन संचार को स्थापित करने वाले महत्वपूर्ण स्तम्भ श्री जगदीश चन्द्र माथुर जी पर आपने अच्छा लेख लिखा है। आपके लेख के माध्यम से उनके योगदान, साहित्य एवं जीवन यात्रा के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली। आपको इस रोचक लेख के लिए बधाई।

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