Thursday, January 13, 2022

बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है


कविता में चित्र देखना हो, तो शमशेर बहादुर सिंह को पढ़ना चाहिए; कविता में संगीत सुनना हो, तब भी शमशेर बहादुर सिंह को पढ़ना चाहिए। 'तार सप्तक' (दूसरा सप्तक १९५१) का यह ऐसा कवि है, जो कविता के नए बिंबों को इस तरह सामने रखता है कि पढ़ने वाला अवाक रह जाए। 
‘साफ़ मखमल-सी कालीन, 
ठंडी धुली सुनहली धूप, 
मोटी झुली लॉन की दूब, 
बादलों के मौन गेरू-पंख, 
संन्यासी, खुले है
श्याम पथ पर, 
स्थिर हुए-से चल’..

या 

‘वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है 
और है स्लेट की कालिमा पर 
चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हें हाथ’ 

या 

‘हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो 
जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं...
जिनमें वह फँसने नहीं आतीं, 
जैसे हवाएँ मेरे सीने से करती हैं
जिसको वह गहराई तक दबा नहीं पातीं।’ 

एक लंबी कविता में वे लिखते हैं - 
एक झरने की तरह तड़प रहा हूँ
मुझको सूरज की किरणों में जलने दो।’

‘उषा’ शीर्षक कविता में वे भोर के नभ को नीले शंख की तरह देखते हैं। शमशेर बहादुर सिंह की कविता उनकी ही पंक्तियों में खुद को बयान करती-सी लगती है, कि ‘जागरण की चेतना से मैं नहा उठा, प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे, सूर्य मेरी पुतलियों में स्नान करता...केश तन में झिलमिला कर डूब जाता’... उनकी कविताएँ अंग्रेज़ी के कवि एज़रा पाउंड की कविताओं के निकट लगती हैं। आधुनिक अंग्रेज़ी काव्य में जिस तरह एज़रा शिल्प को प्रधानता देकर नए प्रयोग करते हैं, उसे स्वीकार करते हुए स्वयं शमशेर कहते हैं - ‘तकनीक में एज़रा पाउंड शायद मेरा सबसे बड़ा आदर्श बन गया।’ पूर्व और पाश्चात्य का मिलन उनकी कविताओं का मर्म है।

उस दौर के कवि जब सर्वहारा की बात कर रहे थे, तब शमशेर भी बेबस, लाचार लोगों के बारे में लिख रहे थे; लेकिन उसमें भी चित्रात्मकता, ध्वन्यात्मकता अधिक दृष्टिगोचर होती है। जैसे – ‘दोपहर बाद की धूप-छाँह, में खड़ी इंतज़ार की ठेलेगाड़ियाँ/ जैसे मेरी पसलियाँ, खाली बोरे सूज़ों से रफ़ू किए जा रहे हैं... जो मेरी आँखों का सूनापन है।’ उनके सामने मा‌र्क्सवाद भी ऐसे आता है, जैसे कोई कलाकार कूची लेकर तैलचित्र बनाने बैठा हो। प्रगतिशील, प्रयोगधर्मी, मूर्तता और अमूर्तता और ऐंद्रिय तथा ऐंद्रियतर शिल्प को गढ़ते हुए मांसल सौंदर्य भी बड़ी सहजता से अभिप्रेरित करता है। नए बिंब, नए प्रतीक, नए उपमान उनकी कविताओं के आधार स्तंभ हैं। डॉक्टर नामवर सिंह उनके बारे में लिखते हैं, “शमशेर के लिए इतना ही काफ़ी है, कि वे कवि हैं–सिर्फ़ कवि। कुछ कवि ऐसे होते हैं, जिन्हें हर विशेषण छोटा कर देता है।” तो वरिष्ठ कवि और आलोचक मलयज (भरत श्रीवास्तव) एक जगह लिखते हैं, “शमशेर ‘मूड्स’ के कवि हैं, किसी ‘विज़न’ के नहीं।” अज्ञेय उन्हें ‘अपनी कविता के प्रति सजग और समर्पित कवि मानते हैं। पहले वे चित्रकार थे, इसलिए उनकी दृष्टि चित्रों से उपजती है।’

चित्रकार शमशेर के रूप में, उन्होंने १९३५-३६ में उकील बंधुओं से चित्रकला सीखी थी। जन्मस्थान देहरादून में प्रारंभिक पढ़ाई करने के बाद हाईस्कूल गोंडा से और बी.ए. इलाहाबाद से किया। वे खुद को हिंदी और उर्दू के दोआब मानते थे। जितनी तरल उनकी कविताएँ हैं, उतनी ही सहज उनकी ग़ज़लें, रुबाइयाँ और अशआर हैं। शमशेर अपनी ग़ज़लों के बारे में कहते हैं, ‘ग़ज़लें मैंने थोड़ी ही और केवल अपने गाने-गुनगुनाने के लिए ही लिखीं। मैं अपनी ग़ज़लों को अपनी हिंदी रचनाओं से कभी अलग नहीं रखना चाहूँगा।’ उनकी कविताओं में जिस तरह प्यार के असंख्य बिंब दिखते हैं, वैसी ही उनकी शायरी है... इसे रुमानियत के अंदाज़ से भी देख सकते हैं और सियासत पर तंज की तरह भी, कि ‘जहाँ में अब तक जितने रोज़ अपना जीना होना है/ तुम्हारी चोटें होनी हैं, हमारा सीना होना है’ या यह देखिए ‘वो कल आएँगे वादे पर मगर कल देखिए कब हो/ ग़लत फिर हज़रते दिल आपका तख़मीना होना है।’ एक शेर में वे ऐसे भी कहते हैं, कि 
‘बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है, 
किसे पूछते हो, किसे हम बताएँ।'

जिस एक नाम शमशेर की बात यहाँ हो रही है, उनकी कविताओं में दिखती पीड़ा उनके जीवन से आई है। वे जब केवल आठ या नौ साल के थे, तभी उनकी माँ की मृत्यु हो गई। ननिहाल से उनका गहरा जुड़ाव रहा, ददिहाल वे कभी गए ही नहीं। शमशेर से दो साल छोटे भाई तेज बहादुर और उनकी जोड़ी को माँ ‘राम-लक्ष्मण’ की जोड़ी कहा करती थीं, यह जोड़ी अंत तक बरकरार रही। उनके भाई तेज बहादुर के शब्दों में "जिस भी इच्छा के लिए पिपासा जागती थी, बस उसी का ही अभाव सामने आ जाता था... कपड़ों का अभाव, खाने का अभाव, धन-दौलत का अभाव, भूख-प्यास, साहित्य सुभट ने सभी कुछ झेला।" ऐसे समय में कुछ हितैषी भी सामने आए, जिनमें उनके मामा श्री लक्ष्मीचंद जी प्रमुख थे। सुप्रसिद्ध कवि त्रिलोचन शास्त्री तथा कुछ अन्य लोगों ने भी इन लोगों की सहायता की। जीवन के उत्तरकाल में उनकी सारी जिम्मेदारियाँ डॉ. रंजना अरगड़े ने संभालीं। उनकी पूरी देखभाल, तीमारदारी उन्होंने ही की और परिवार के बाहर की होकर भी परिवार के सारे रिश्ते, उन्होंने अकेले निभाए।

शमशेर का विवाह १८ वर्ष की आयु में हुआ था, लेकिन छह वर्ष में ही तपेदिक रोग ने उनकी पत्नी को छीन लिया। महज़ २४ साल की आयु में झेले इस ‘वियोग’ को, उन्होंने कविताओं में ‘संयोग’ में बदल दिया। मुक्तिबोध के अनुसार - ‘मेरे मत से, प्रणय जीवन के जितने विविध और कोमल चित्र वे प्रस्तुत करते हैं, उतने चित्र शायद और किसी नए कवि में दिखाई नहीं देते। सूक्ष्म वेदनाओं के गुणचित्र उपस्थित करना बड़ा ही दुष्कर कार्य है, किंतु शमशेर उसे अपनी सहानुभूति से संपन्न कर जाते हैं।’ युवाकाल में शमशेर बहादुर सिंह वामपंथी विचारधारा और प्रगतिशील साहित्य से प्रभावित हुए थे। वे प्रयोगवाद और नई कविता के कवि कहलाते हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला उनके प्रिय कवि थे, वे लिखते भी हैं - 
 “भूल कर जब राह, जब-जब राह.. भटका मैं
तुम्हीं झलके हे महाकवि,
सघन तम की आँख बन मेरे लिए।”

वे उर्दू-हिंदी कोश, प्रोजेक्ट रूपाभ के संपादक रहे, विक्रम विश्वविद्यालय के ‘प्रेमचंद सृजनपीठ’ के अध्यक्ष रहे। उनके जीवन के विस्तार को शब्द सीमा में समेटना अत्यंत कठिन है, उनके शब्दों का सहारा लें, तो...‘हो चुकी जब ख़त्म अपनी ज़िंदगी की दास्ताँ/ उनकी फरमाइश हुई है इसको दोबारा कहें’। १२ मई, १९९३ को हृदयाघात से साहित्य जगत का यह ज्वलंत सितारा हमेशा के लिए अस्त हो गया।

शमशेर बहादुर सिंह : जीवन परिचय

जन्म

१३ जनवरी, १९११, देहरादून

निधन

१२ मई, १९९३, अहमदाबाद

पिता

तारीफ सिंह

माता

परम देवी

पत्नी 

धर्म देवी

शिक्षा

बी. ए.

साहित्यिक रचनाएँ


कविता संग्रह


  • कुछ कविताएँ १९५९

  • कुछ और कविताएँ  १९६१

  • चुका भी हूँ नहीं मैं १९७५

  • इतने पास अपने १९८०

  • उदिता : अभिव्यक्ति का संघर्ष १९८०

  • बात बोलेगी १९८१

  • काल तुझसे होड़ है मेरी १९८८

  • कहीं बहुत दूर से सुन रहा हूँ १९९५

  • सुकून की तलाश में १९९८

  • प्रतिनिधि कविताएँ  १९९०

  • टूटी हुई बिखरी हुई (चुनी हुई कविताएँ)१९९०

गद्य रचनाएँ

  • दो आब (निबंध-संग्रह) -१९४८

  • प्लाट का मोर्चा (कहानी और स्केच-संग्रह) १९५२

रचना समग्र

  • शमशेर बहादुर सिंह रचनावली (छह खंडों में) २०१७ 

  • आलोचना (पत्रिका), सहस्राब्दी अंक चालीस, शमशेर बहादुर सिंह पर केंद्रित, जनवरी-मार्च २०११

  • एक शमशेर भी है, २०११

  • समझ भी पाता तुम्हें यदि मैं, २०१२ 

  • स्मरण में है जीवन : शमशेर बहादुर सिंह 

  • शमशेर की आलोचना दृष्टि  (लेखक- गजेंद्र पाठक) २०११

  • शमशेर बहादुर सिंह की आलोचना-दृष्टि (लेखक - निर्भय कुमार) २०१९

अनुवाद

  •  पृथ्वी और आकाश (रूसी के अंग्रेज़ी अनुवाद से) (मूल लेखक- वांदा वैसिल्युस्का) १९४४

  • षड्यंत्र (अंग्रेज़ी से) (मूल लेखक- माइकल सेयर्स और एल्बर्ट ई॰ कान) १९४६

  • कामिनी (उर्दू से) (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार) १९४८

  •  हुश्शू (उर्दू से) (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार) १९४८

  • पी कहाँ (उर्दू से) (मूल लेखक- रतन नाथ सरसार) १९४८  

  • उर्दू साहित्य का संक्षिप्त इतिहास  १९५६ (मूल लेखक- प्रोफेसर एजाज़ हुसैन) १९५६

  • आश्चर्यलोक में एलिस (अंग्रेज़ी से) (मूल लेखक- लुई कैरोल) १९६१

पुरस्कार व सम्मान

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार "चुका भी हूँ नहीं मैं" के लिये १९७७

  • 'मैथिली शरण गुप्त पुरस्कार' (मध्यप्रदेश सरकार) १९८७

  • 'कबीर सम्मान' (मध्यप्रदेश सरकार) १९८९


लेखक परिचय

स्वरांगी साने


कार्यक्षेत्र : कविता, कथा, अनुवाद, संचालन, स्तंभ लेखन, पत्रकारिता, अभिनय, नृत्य, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षा, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर वार्ता और काव्यपाठ

प्रकाशित कृति : काव्य संग्रह “शहर की छोटी-सी छत पर” २००२ ,  “वह हँसती बहुत है” २०१९ में प्रकाशित।

यू-ट्यूब पर swaraangi sane नाम से चैनल - #AMelodiousLyricalJourney


21 comments:

  1. बहुत बढ़िया जानकारी

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  2. शमशेर बहादुर जी पर सुंदर आलेख , स्वरांगी जी। काव्यात्मक है और शोध परक भी। आपको निरंतर लिखते रहने के लिए शुभकामनाएँ। 💐

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    1. आदरणीय हरप्रीत जी उत्साह वर्धन के लिए महती आभार आपका

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  3. हार्दिक बधाई, स्वरांगी जी, शमशेर बहादुर की कविताओं में चित्र बिम्ब की जानकारी से अनभिज्ञ था। कवि की कला साधना की झलक कवितओं में प्रतिबिंबित होती है।

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    1. अनभिज्ञता को स्वीकारने के लिए बड़ा कलेजा लगता है, आप जैसे विद्जनों से यह सीखा जा सकता है...बहुत बहुत आभारी हूँ विजय जी आपकी

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  4. संक्षिप्त रूप में जानकारी के लिए बढ़िया!

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  5. स्वरांगी जी ने बहुत बढ़िया जानकारी भरा लेख लिखा है। इस उम्दा लेख के लिए हार्दिक बधाई। शमशेर बहादुर सिंह आधुनिक हिंदी कविता के प्रगतिशील कवि थे, जिन्होंने हिन्दी-कविताओं में रचना-पद्धति की नयी दिशाओं को उद्धाटित किया। शमशेर जी की ग़ज़लें भी काफी मशहूर हुईं। उनका एक शेर मुझे बहुत पसंद है।
    ***
    यहाँ कुछ रहा हो तो हम मुँह दिखाएँ
    उन्होंने बुलाया है क्या ले के जाएँ
    ***

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    1. जी जी उनकी ग़ज़लें भी उतनी ही मानीखेज है...आभारी हूँ आपकी

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  6. ' वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है
    और है स्लेट की कालिमा पर
    चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हें हाथ’

    इन सहज शब्दों के अद्भुत चितेरे शमशेर जी पर इतना सुंदर लेख लिखने पर बधाई स्वरांगी जी।

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    1. विनिता जी सुंदर चितेरे पर सुंदर खुदबखुद लिखा गया...मन से आभार

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  7. स्वरांगी, लेख को पढ़ने के पहले ही शमशेर बहादुर सिंह की सुन्दर छवि देखकर मन में मुस्कान आ गयी, और लेख पढ़ते-पढ़ते यह अनुभूति गहरी होती गयी। शब्दों से सुन्दर चित्र बनाने वाले इस चितेरे कवि की कला कृतियाँ शायद अनकहे शब्दों से विभोर करती हुईं हों। शमशेर बहादुर सिंह की काव्य-यात्रा की सुन्दर तस्वीर उकेरने के लिए बहुत-बहुत बधाई और आभार।

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    1. प्रगति जी आपके अपनत्व पर वारी जाऊँ..आभारी हूँ

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  8. बढ़िया लिखा है स्वरांगी! तुम कविता लिखती -समझती हो यह लेख में उतर आया है! शुक्रिया 🙏🏻

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    1. शार्दुला जी आपसे बेहतर कविता को और कौन समझ सकता है...आप कह रही हैं...मान बढ़ा रही हैं...बहुत बहुत आभार आपका

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  9. श्री शमशेर सिंह जी की काव्य रचना पर एनसीईआरटी के परीक्षा में भी प्रश्न पूछे गये हैं। अपने शब्द को रचना का स्वरूप देकर क्रियाशील चित्र प्रस्तुत करने की कला उनके साहित्य में होती थी। प्रकृति के गति को शब्दों में बांधने का अद्भुत प्रयास उनका होता था। आद. स्वरांगी जी का आलेख भी काव्यात्मक स्वरूप से लिखा गया हैं। शमशेर जी की जीवन यात्रा की छवि स्पष्टीकरण के साथ आपके लेख में दिखाई देती हैं। जानकारी भरे लेख पठन के लिए आपका आभार और आपको हार्दिक शुभकामनाएं।

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    1. आपने जिस गहराई से लिखा है...उसके लिए आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय सूर्यकांत सुतार जी

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  10. आपके लेखक को वंदन। सारगर्भित, सार्थक आलेख,ं

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  11. स्वरांगी जी शमशेर जी पर आपने बहुत परिश्रम और शोध से बेहतरीन लेख लिखकर अपनी काव्य और आलोचना प्रतिभा का परिचय दिया है l नामवर सिंह ने शमशेर सिंह जी के बारे बहुत अच्छी बात लिखी - शमशेर ने पाठकों की संवेदना का विस्तार और परिष्कार किया है l .. शमशेर के कवि ने काल से होड़ लगाई l अंततः वह कवि काल के हृदय में समा गया l " शमशेर की संवेदना केवल कविता तक ही सीमित नहीं थी वास्तविक जीवन में वह बेहद संवेदनशील थे l मुक्तिबोध के अंतिम दिनों में उन्होंने हॉस्पिटल में रहकर उनकी जो सेवा की वह सराहनीय और अनुकरणीय है l अशोक वाजपेई के अनुसार " वे लगभग एक अजातशत्रु की तरह थे l" आपको इस सुंदर काबिले तारीफ लेख के लिए हार्दिक बधाई l

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  12. ‘दोपहर बाद की धूप-छाँह, में खड़ी इंतज़ार की ठेलेगाड़ियाँ/ जैसे मेरी पसलियाँ, खाली बोरे सूज़ों से रफ़ू किए जा रहे हैं... जो मेरी आँखों का सूनापन है।’ शब्दकार-चित्रकार शमशेर पर धाराप्रवाह शब्दचित्र। स्वरांगी साने को बधाई।

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