बचपन की तड़पन: अलीगढ़ के पास इटावा ज़िले के पुरावली गाँव में ४ जनवरी १९२५ को जन्मे गोपालदास सक्सेना, चार भाईयों के परिवार में दूसरे नम्बर पर थे। महज़ ६ वर्ष की आयु में सर से पिता का साया उठ गया और परिवार मानो बिखर-सा गया। बड़े भाई नौ साल के थे। परिवार की अकस्मात आ पड़ी ज़िम्मेदारियों के कारण पढ़ न सके। दो छोटे भाई - एक तीन वर्ष का और दूसरा मात्र एक माह का दूध-पीता बच्चा - दोनों माँ से अलग कैसे होते; सो गोपालदास को अपनी बुआ के पास एटा जाकर रहना पड़ा। यही बुआ घर पर पाँच रूपये भेजती थी जिससे परिवार के अन्य सदस्यों का पेट भरता था। पिता की धुँधली यादों के सहारे माँ और भाईयों से अलग उस नन्हें गोपालदास ने बचपन में ही अकेलेपन से मित्रता कर ली थी। पढ़ने में तेज़ थे, सो १९४२ में हाई स्कूल प्रथम श्रेणी से पास किया। हाई स्कूल पास कर जब घर लौटे, तब परिवार की आर्थिक स्थिति और छोटे भाईयों की दशा देखकर आगे पढ़ने का विचार त्याग दिया और नौकरी की तलाश में जुट गए। हालाँकि हालात सुधरने पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की, किन्तु सत्रह वर्षीय उस बालक के लिए सबसे पहली ज़रूरत थी परिवार की आर्थिक तंगी दूर करना।
गोपालदास श्रम का महत्त्व समझते थे, इसीलिए किसी भी काम से परहेज़ नहीं किया। कभी मेले में पान-बीड़ी की टेहरी लगाईं तो कभी परचून की दुकानों पर सामन बेचे; कभी अख़बार बेचकर, तो कभी ट्यूशन से चार पैसे कमाए; तांगा भी हाँका; इतना ही नहीं, कभी-कभी गंगा-यमुना में डुबकी लगाकर श्रद्धालुओं द्वारा फेंके सिक्के तक उठाये। ऐसा कठिन बचपन होते हुए भी कभी उसका मलाल नहीं किया, न कभी अपनी गरीबी का रोना रोकर किसी की सहानुभूति ही बटोरी।
भावुक इटावी से नीरज तक: जिस उम्र में बच्चे अपने सुनहरे भविष्य की कल्पना में डूबे रहते हैं, नवीं कक्षा का वो मासूम बालक, उस उम्र में कोरे कागज़ों पर अपनी तकदीर लिख रहा था। १९४१ में पहली बार एटा में एक कवि-सम्मलेन में शिरकत करने का मौक़ा मिला और वहीं पल्लवित हुआ कवि बनने का सुनहरा सपना। सोहनलाल द्विवेदी की अध्यक्षता में हुए उस कवि-सम्मलेन में सोलह-वर्षीय उस नौजवान ने “भावुक इटावी” के नाम से कविता पाठ कर सबको सम्मोहित कर दिया था।
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग, नई दिल्ली, में बतौर टाइपिस्ट नियुक्ति के साथ ही १९४२ में गोपालदास का दिल्ली आगमन हुआ और यहाँ पुनः उन्हें पहाड़गंज में आयोजित एक कवि-सम्मेलन में भाग लेने का मौक़ा मिला। इस बार जिगर मुरादाबादी की अध्यक्षता में “भावुक इटावी” ने अपना कविता पाठ किया। उनकी कविता ने इतनी वाह-वाही बटोरी कि एक ही कविता उनसे तीन बार पढ़ने का आग्रह किया गया। काव्य-पाठ के बाद जिगर मुरादाबादी ने पीठ थपथपाते हुए पााँच रूपये का ईनाम दिया। सरसठ रूपये की आमदनी वाले गोपालदास के लिए वह पाँच रूपये स्वर्ण पदक से कम न थे! उस कवि-सम्मलेन ने गोपालदास को रातोंरात समूचे देश का बना दिया था। दोस्तों के आग्रह पर उन्होंने “भावुक इटावी” त्यागकर “नीरज” उपनाम अपना लिया और इस नाम ने उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर बिठा दिया। शब्दों के पुजारी नीरज सफलता और लोकप्रियता के पर्याय बन गए।
टाइपिस्ट की नौकरी के दौरान ही किसी कवि-सम्मेलन में हाफिज़ जालंधरी नाम के एक अधिकारी उनकी कविताओं पर कुछ इस कदर फ़िदा हो गए कि १२० रुपये के मासिक वेतन का लालच देते हुए सॉंग एंड एडवरटाइजिंग डिविज़न, कानपुर में हिन्दी लिटररी असिस्टेंट का पद सँभालने का आग्रह कर दिया। नौकरी की ज़रूरतों से अनजान नीरज ने आग्रह स्वीकार तो कर लिया, किन्तु जब उन्हें यह पता चला की यहाँ उन्हें सरकार और उनकी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए कलम चलानी है तब उनका मन छोटा हो गया। एक स्वच्छंद कवि इशारों पर लिखने को तैयार न था! लिखना था सरकार की तरफ से, लिख बैठे:
बस फिर क्या था, अंग्रेज़ों ने इस कविता को देश-विरोधी माना, और देश में आज़ादी की चिंगारी भड़काने के जुर्म में उनकी गिरफ्तारी का वॉरंट निकल गया। गिरफ़्तारी से बचने के लिए उन्हें तत्काल शहर छोड़कर भागना पड़ा और उन्होंने नौकरी और शहर दोनों से अलविदा कह दिया।
उन्होंने कभी किसी बंधन को स्वीकार नहीं किया। सरल हृदय, कोमल मन और करुण भावों से ओत-प्रोत गोपालदास नीरज ने सदैव अपने मन की वाणी को ही कागजों पर उतारा; न किसी परिस्थिति से समझौता किया, न झूठे आडम्बर को स्वीकार किया। उस घटना के बाद से उन्होंने जब भी लिखा, अपने लिए लिखा, अपनों के लिए लिखा और अपनी शर्तों पर लिखा।
हरिवंशराय बच्चन को प्रेरणास्रोत मानने वाले नीरज ने १९४४ में अपना पहला कविता संग्रह “संघर्ष” निकाला और इसे बच्चन जी के नाम कर दिया। १९५४ में नीरज ने लखनऊ रेडियो से “कोहिनूर” का पाठ किया और देखते ही देखते यह गीत अखिल भारतीय बन गया:
इस एक कविता ने उन्हें न केवल अपने देश में, अपितु दुनिया के कोने-कोने में प्रसिद्धि दिलाई।
अपनी कविताओं से ख्यातिप्राप्त नीरज को समय-समय पर मुम्बई सिने-जगत् से बुलावे आते रहे किन्तु वे अपनी कविताओं में इतने मसरूफ़ और अपनी लोकप्रियता से इतने संतुष्ट थे कि कभी उनपर विचार नहीं किया। ८ फरवरी १९६० में, महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री यशवन्तराव बलवन्तराव चव्हाण ने मुम्बई में “नीरज गीत गुंजन” का आयोजन करवाया, जहाँ नीरज का एकल काव्य-पाठ होना था। दो-ढाई घंटे की काव्य-पाठ ने नीरज को कई नामी फ़िल्मी हस्तियों की नज़रों में बिठा दिया था। निर्देशक आर. चंद्रा, जिनकी 'बरसात की रात' अभी-अभी सुपरहिट हुई थी, ने उन्हें अपने साथ काम करने का न्योता दिया। नीरज ने बड़ी विनम्रता से उन्हें अपनी सारी कविताएँ दे दीं, किन्तु रुकना स्वीकार नहीं किया। उन्हीं कविताओं के दम पर निर्माता आर. चंद्रा ने १९६५ में “नई उमर की नई फ़सल” नाम की फ़िल्म बना डाली। फ़िल्म का यह नाम भी नीरज ने ही दिया था। फ़िल्म तो नहीं चली, किन्तु इसके गीतों ने मायानगरी में नीरज नाम की धूम मचा दी। इस फ़िल्म के सभी गीत – आज की रात बड़ी शोख, बड़ी नटखट है; कारवाँ गुज़र गया; नई उमर के नए सितारों; इसको भी अपनाता चल, उसको भी अपनाता चल – उन दिनों सबकी जुबान पर सजने लगे। इसी बीच सुपरस्टार देवानन्द ने फ़िल्म “प्रेम-पुजारी” के लिए नए गीतकार की तलाश में एक विज्ञापन प्रेषित किया था जिसके संगीतकार एस.डी.बर्मन सुनिश्चित थे। बर्मन जी के साथ काम करने की तमन्ना नीरज के मन में थी। एक कवि-सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनकर आये देवानन्द ने नीरज की बड़ी सराहना की थी और अपने साथ काम करने का वायदा भी दिया था। बस उसी वादे के सहारे नीरज का मुम्बई आगमन हुआ और एक बार फिर सफलताओं का सिलसिला शुरू हो गया। “रंगीला रे! तेरे मन में यूँ रँगा है मेरा मन”, “फूलों के रंग से”, “शोख़ियों में घोला जाए ”, “ताक़त वतन की हमसे है”, “यारों नीलम करो सुस्ती”, “प्रेम के पुजारी हम हैं” – प्रेम पुजारी के सारे गाने सुपरहिट हुए और सुपरहिट रहा देवानन्द संग नीरज का साथ। एक-के-बाद-एक सुपरहिट गीतों का पिटारा खुलता गया और नीरज नाम की धूम मचती रही। “लिखे जो ख़त तुझे” (कन्यादान); “ए भाई! ज़रा देख के चलो”, “कहता है जोकर सारा ज़माना, आधी हकीक़त आधा फ़साना” (मेरा नाम जोकर); “दिल आज शायर है”, “चूड़ी नहीं ये मेरा”, “मेरा मन तेरा प्यासा” (गैम्बलर); “आप यहाँ आये, किसलिए?” (कल, आज और कल); “खिलते हैं गुल यहाँ”, “आज मदहोश हुआ जाये रे”, “मेघा छाए आधी रात” (शर्मीली); “जीवन की बगिया” (लाल पत्थर), “जैसे राधा ने माला जपी”, “ए! मैंने कसम ली” (तेरे-मेरे सपने) सरीखे ना जाने कितने सुमधुर गीतों से बॉलीवुड का संगीत शाश्वत हो गया। कवि सम्मेलनों की तरह ही, नीरज फिल्मों में गीतों की सफलता का पर्याय बन गये। फ़िल्म चले न चले, गीत सुपरहिट होते रहे; लोगों की ज़ुबान पर सजने लगे और कुछ तो मुहावरे ही बन गए। ऐसी लोकप्रियता और इतना ग्लैमर किसे आकर्षित नहीं करता, किन्तु हम गोपालदास नीरज की बात कर रहे हैं। बात जब अपने उसूलों से समझौते की आयी तब नीरज ने बेझिझक मायानगरी को अलविदा कह दिया। इंडस्ट्री छोड़कर जाने की बात जब उन्होंने राज कपूर से की तब राज कपूर ने कहा था, “जीना यहाँ, मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ? ये मुम्बई एक मायानगरी है; यहाँ जो आता है यहीं का हो जाता है।” नीरज का जवाब था, “आप भले ही यहाँ के हीरो होंगे; मैं भी अपनी क्षेत्र का हीरो हूँ। यहाँ वही ठहरते हैं, जो और कुछ नहीं कर सकते।” आत्मविश्वास से लबरेज़ इस कवि ने न कभी रुकना सीखा, न कभी झुकना। १९७३ में मुम्बई को अलविदा कह वे अलीगढ़ वापस आ गए।
विश्व-विख्यात कवि नीरज: एक कवि रूप में अपनी पहचान बना चुके नीरज एक गीतकार की भूमिका में विश्व-विख्यात हो चुके थे। उनके नाम पर “नीरज निशाएँ” आयोजित होती थीं और देश हो या विदेश नीरज नाम की धूम हर जगह मचती थी। ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, रूस – ऐसा कोई देश नहीं था जहाँ नीरज को आमंत्रित न किया गया हो! नीरज में अपने श्रोताओं को सम्मोहित करने की अद्भुत कला थी।
आज के प्रख्यात कवि कुमार विश्वास के शब्दों में, “बड़ा साहित्यकार केवल वही बन सकता है जो बड़ा मनुष्य हो।नीरज जी कवि कैसे हैं, यह काल निर्णय करेगा। मगर जिन्होंने नीरज जी के साथ जीवन जिया है, वो यह निर्णय करने में सक्षम हैं कि नीरज जी जैसे मनुष्य उँगलियों पर गिने जा सकते हैं।”
१९ जुलाई २०१८ को प्रिय गोपालदास नीरज इस संसार को अलविदा कह गए। उनके जाने से काव्य जगत् में आई रिक्तता आज भी महसूस होती है।
गोपालदास नीरज: संक्षिप्त परिचय |
|
पूरा नाम |
गोपालदास
सक्सेना |
उपनाम |
भावुक इटावी, नीरज |
जन्म |
४ जनवरी १९२५, पुरावली (जिला: इटावा), उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु |
१९ जुलाई
२०१८, नई दिल्ली |
पत्नी |
सावित्री
देवी |
पुत्र |
मिलन प्रभात
गुंजन, शशांक, मृगांक |
शिक्षा एवं व्यवसाय |
|
१९४९ |
इंटरमीडिएट
(प्राइवेट से) |
१९५१ |
बी. ए.,
कानपुर |
१९५३ |
एम. ए. (हिन्दी)
प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण |
मन व् कर्म
से |
कवि एवं
गीतकार (आजीवन) |
१९४२ – १९४५ |
टाइपिस्ट, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग (४ नवम्बर १९४२), नई दिल्ली; लिटररी असिस्टेंट, सॉंग एंड पब्लिसिटी डिविज़न, भारत सरकार |
१९४६ – १९५१ |
स्टेनो
टाइपिस्ट, वाल्कर्ट ब्रदर्स
(विदेशी कंपनी), कानपुर |
१९५५ – १९५६ |
हिन्दी
प्रवक्ता, मेरठ कॉलेज, उत्तर
प्रदेश |
१९५६ |
प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, धर्म समाज कॉलेज, अलीगढ़ |
|
रचना संसार |
काव्य-संग्रह | संघर्ष (१९४४), अन्तर्ध्वनि (१९४६), विभावरी (१९४८), प्राणगीत (१९५१) दर्द दिया है (१९५६), बादर बरस गयो (१९५७), मुक्तकी (१९५८), दो गीत (१९५८), नीरज की पाती (१९५८), गीत भी अगीत भी (१९५९), आसावरी (१९६३), नदी किनारे (१९६३), लहर पुकारे (१९६३), कारवाँ गुजर गया (१९६४), फिर दीप जलेगा (१९७०), तुम्हारे लिये (१९७२), नीरज की गीतिकाएँ (१९८७), नीरज रचनावली - ३ खण्डों में (२००६) |
पुरस्कार एवं
सम्मान |
विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार पद्म श्री सम्मान (१९९१), भारत सरकार यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार (१९९४), उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ पद्म भूषण सम्मान (२००७), भारत सरकार |
फ़िल्मफ़ेयर के
लिए नामित |
१९७०: काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चंदा और बिजली) १९७१: बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान) १९७२: ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर) |
विशेष |
उत्तर प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने सितम्बर २०१२
में गोपालदास नीरज को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मन्त्री का
दर्जा दिया था। |
दीपा लाभ: हिन्दुस्तान, हरिभूमि, आज तक और प्रज्ञा चैनल से होते हुए नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी (वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार) के विभिन्न केंद्रों में प्रशिक्षण देने के बाद दीपा लाभ ने अध्यापन को अपना लक्ष्य बनाया। इसी क्रम में, हिन्दी व अंग्रेज़ी भाषा के क्रियात्मक प्रयोगों से संप्रेषण सुदृढ़ करने के विभिन्न प्रयासों पर शोध करते हुए कुछ कोर्स तैयार किए जिन्हें वे सफलतापूर्वक चला रही हैं। इन दिनों हिन्दी से प्यार है समूह में उनकी सक्रिय भागीदारी है। साहित्यकार तिथिवार की प्रबंधक-संपादक हैं
ईमेल: depalabh@gmail.com; WhatsApp: +91 8095809095
सम्पूर्ण इतिहास नीरज जी का छोटे से आलेख में खूबसूरती से समेटा है। बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर , दीपा जी । आपने सीमित शब्दों में नीरज का पूरा जीवन - चित्र प्रस्तुत कर दिया।बधाई ! नीरज कवि सम्मेलनों के राजेश खन्ना थे। श्रोताओं में उनके जैसा सम्मोहन ,दीवानापन कोई कवि पैदा नहीं कर पाया। हमारी पीढ़ी भाग्यशाली है कि हमने उन्हें जीवंत मंच पर देखा-सुना।उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि लोकप्रियता का अर्थ घटिया साहित्य नहीं होता। आप उच्च स्तरीय साहित्य रचना करके भी अत्यंत लोकप्रिय हो सकते हैं । दूसरी ओर उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि जिस के पास हुनर है , कला है , वह किसी का मोहताज नहीं।स्वाधीनता से सिर ऊँचा रख कर जी सकता है। राज कपूर ने जो शैलेंद्र के साथ किया, वह नीरज के साथ नहीं कर पाए। जान गए कि अच्छे रचनाकार की बुलंदी पैसे और ताक़त से ऊँची होती है। नीरज की काव्य के प्रति , अपने कर्म के प्रति कर्मठता बहुत प्रेरणादायक है। वह किसी सैनिक या किसान से कम नहीं थे ।हमेशा जुटे रहे , लिखते रहे। सलाम , नीरज । 🌹🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर संपूर्ण इतिहास ही आपने बता दिया।
ReplyDeleteबहुत सुंदर महोदया
ReplyDeleteदीपा जी नमस्कार l गीतों के जादूगर , गीत सम्राट , गीतों के राजकुमार और मंचों के बादशाह आदि विशेषणों से अलंकृत महाकवि नीरज जी के जीवन और गीत यात्रा का अनुपम लेखा जोखा प्रस्तुत करने के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं l नीरज जी के गीतों की तरह आपका लेख स्तरीय और कलात्मक है l उनके फिल्मी गीत भी साहित्य की अनुपम धरोहर है l फिल्म गीतकारों में वह शैलेन्द्र और आनंद बक्शी साहब के बहुत बड़े प्रशंसक थे l मेरी कई बार उनसे मुलाकात हुई l विराट व्यक्तित्व और विविधता भरे कृतित्व के स्वामी नीरज जी को सादर नमन l आपकी लेखनी को सैकड़ों सलाम l
ReplyDeleteकविवर नीरज के व्यक्तित्व और कृतित्व
ReplyDeleteको दर्शाता हुआ सारगर्भित लेख......
दीपा जी, भावुक हृदय कवि नीरज जी के अद्भुत शब्द चित्र प्रस्तुतीकरण ने मन मोह लिया।
ReplyDeleteआपकी लेखनी के जादू ने नीरज जी के रचना संसार को गागर में सागर के समान बांध लिया।
साधुवाद!
सुन्दर, कसा हुआ, प्रभावी लेख 👏👏👏👏
ReplyDeleteदीपा जी का गोपाल दास नीरज जी पर यह लेख गागर में सागर भरने वाला है। अपने हर लेख की भाँति दीपा जी ने बहुत रोचक एवं जानकारी भरा लेख लिखा है। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteअब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए
ReplyDeleteजिन में इंसान को इंसान बनाया जाए
अपनी गजल, भजन और गीतों से सामान्य जन के दिलो में घर करने वाले पद्भूषण सम्मानित श्री नीरज जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। मनमुक्त लेखन, दया, करुणा और प्रेम से सम्मोहित करने वाले नीरज जी पहले कवि है जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया हैं। आद. दीपा जी के लेख ने उनके जीवन का सचित्र वर्णन आंखों से सामने रख दिया। अपने शब्दों से हमेशा की तरह दीपा जी ने इस बार भी अपनी लेखनी का जादू चलाया हैं। पुनः दीपा जी का आभार और बहुत बहुत शुभकामनाएं।
नीरज जी को देखने का अवसर मिला था, उनके गीतों से गुजरने का भी लेकिन उनके बारे में इतना सारा जानने का आज अनूठा 'लाभ' मिला...
ReplyDeleteवाह, दीपा, वाह! नीरज जी के गीतों जैसी सरसता और प्रवाह है इस लेख में। यह लेख एक साँस में पढ़ा जाता है और वह सतत नीरज जी के विराट, रोचक एवं बहुआयामी जीवन के पन्ने खोलता जाता है। नीरज जी को हमारा जीवन समृद्ध करने के लिए नमन और हृदयतल से आभार। दीपा, आपको इस लेख के ज़रिये उनसे हमारी पुनः सुन्दर मुलाक़ात कराने के लिए शुक्रिया और मुबारकबाद।
ReplyDeleteलोकप्रिय गीतकार नीरज जी के बारे में बहुत सुंदर रचना। बधाई दीपा जी।
ReplyDeleteप्रख्यात कवि नीरज के बहुमुखी व्यक्तित्व को निरूपित करता अत्युत्कृष्ट आलेख लिखने के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDelete*आदमी को आदमी बनाने के लिए*
ReplyDelete*जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिए*
*और कहने के लिए कहानी प्यार की*
*स्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए*
पद्मभूषण *गोपालदास नीरज* की स्वर्णिम लेखनी से कितने ही काव्य कमल खिले!
“मेरी आवाज़ है कान्हा के बाँसुरी की तरह” कहने वाले कवि के वाचन पर कितने ही मन्त्रमुग्ध हुए! उनके दबंग, देशभक्त, विराट स्वरूप को देख कितने ही सर श्रद्धा से झुके!
आज नीरज जी की जयंती पर प्रशंसकों के हृदय के उद्गारों को शब्दों में पिरोया है तुमने दीपा!
आप सभी के प्रोत्साहन भरे शब्दों से मन प्रफुल्लित हो गया है| आपका स्नेह और आशीर्वाद बना रहे और यह कलम यूँ ही चलती रहे| आप सभी का हृदय से आभार एवं धन्यवाद|
ReplyDeleteदीपा जी के रोचक और जानकारी उपलब्ध कराते इस लेख को पढ़ते हुए पद्मभूषण कविवर गोपालदास नीरज जी को क़रीब से जानने का अवसर मिला। सुन्दर और समृद्ध लेख के लिए दीपा जी को बहुत बहुत बधाई। 🙏
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरती से पिरोया हुआ कवि परिचय , आज जहां युवा पीढ़ी अंग्रेजी संगीत और साहित्य की और आकर्षित है वहीं आप अपनी लेखनी द्वारा हिंदी को लोकप्रिय बनाने में प्रयासरत हैं । बहुत ही प्रसंसनीय । आप को साधुवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर lekh दीपा. साफ़ पता लगता है कि तुमने कितना कुछ पढ़ा होगा इसे rochak और gyaanvardhak बनाने केे लिए. इन सभी aalekhon को sanklit kar samay aane par किताब का रूप de देना. all the bestie.
ReplyDeleteall the best
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति, अब तक गोपालदास 'नीरज' को फिल्म गीतकार के रूप में ही जानता था, आपका आलेख पढ़ कर कई नई जानकारी मिली।
ReplyDeleteबेहतरीन लेखन व संकलन है।
ReplyDeleteदीपा की नीरज जी को एक आलेख में आपने खूबसूरती से समेटा है बधाइयाँ
ReplyDeleteआप सभी का ह्रदय से आभार! कुछ तो नीरज जी का भी जादुई असर है| आभारी हूँ!
ReplyDeleteगीत-सम्राट गोपालदास नीरज की सम्पूर्ण सृजनात्मकता को बड़ी गहराई से आपने विवेचित किया है जो ज्ञानवर्धक होने साथ पुनः पुनः पठनीय है। दरअसल हिन्दी-,गीत विद्यापति से गोपालदास नीरज तक एक लम्बी यात्रा है जिसमें कई मोड़-मुकाम आते है--निराला के गीतो में विशेषतः आत्म-अनुभूति तत्व और रचनात्मक व्यक्तित्व का उभार है तो प्रसाद के गीतों में
ReplyDeleteअध्यात्म-दर्शन की तथा श्रृंगारित मनोभावों की झलक मिलती है। पन्त और महादेवी के गीतों में प्रकृति के रहस्यवाद के विविध चित्र बिम्बित-प्रतिबिम्बित होते है लेकिन नीरज के गीतों में मानवीय संवेदना का दिलकश चित्रण है।
श्रेष्ठ गीत कविता-कामिनी का श्रीमुख होता है।वह आदिम भाव का प्रभावशाली राममय रूप है :वह व्यक्तिनिष्ठ नहीं होता क्योकि उसमें आत्मनिष्ठता ही नहीं वस्तुनिष्ठता (भी) होती है। उसमें 'मैं'का नहीं का जन से,व्यक्ति का समाज से,स्वच्छन्द,
सीधा संवाद होता है--कोरा अभिधेयार्थ नहीं, कामना का बुभुक्षित संकेतार्थ होता है। वस्तुवादी दृष्टि से जबकि शब्द-व्यापार उसके इसी रूप को सतत्- सहज- सम्प्रेषणीय बनाए रखने वाला रोल रखता है। अभिव्यंजना की अकृत्रिमता,
संरचनात्मक साधनों के समन्वय और औचित्य की शर्त गीत के शरीर "फार्म" के लिए बड़ी कड़ाई से लागू होने वाली शर्त होती है। शरीर-आत्मा के रूप के आधार पर कहूं तो कहना होगा कि यदि आनुभूतिक ईमानदारी गीतषकी आत्मा है तो उसके शरीर की सेहत की विशेष, लेकिन सहज शर्त है अभिव्यंजना की अकृत्रिमता।कविता की किसी भी रीति (या शैली) में शब्द-अर्थ की एकमेव लय कीसहज शर्त इतनी बड़ी और कड़ी नहीं होती जितनी गीत-रचना के लिए होती है। इस कसौटी पर कविवर गोपालदास नीरज की गीत-रचना
युग के प्रतिमान के रूप में अपना मील स्टोन स्थापित करती है और उनकी कविताएं भी अपने कथ्य-शिल्प में काबिलेगौर से ज्यादा काबिलेगौर
तारीफ हैं जिनका नोटिस आपने बड़ी बेबाकी से लिया है। धन्यवाद!
डॉ.राहुल, नयी दिल्ली (भारत)
नीरज जी को बनारस हिंदु विश्विद्यालय के एक कार्यक्रम में सुना था | उनके काव्य वाचन ने श्रोताओं को इतना आकर्षित किया था कि उन्हें स्टेज से जाने नहीं दिया गया | दीपा जी की लेखनी ने उनके लेखन के सभी बिन्दुओं को बड़ी कुशलता से प्रस्तुत किया है | बधाई दीपा जी|
ReplyDeleteनीरज जी के आलेख के लिए मुझे अब तक आप सभी के सन्देश प्राप्त हो रहे हैं। आप सभी के प्रोत्साहन भरे शब्द मेरे लिए अमूल्य हैं। सादर धन्यवाद!
ReplyDeleteसारगर्भित एवं प्रभावशाली लेख। बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteBehtareen lekhni 👌👌👌👌
ReplyDeleteबढ़िया आलेख... नीरज जी के बारे में कई जानकारियाँ मिलीं।
ReplyDeleteधन्यवाद।
बहुत ही विशिष्ट भावोन्मेषक आलेख नीरज जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को समेटे हुए
ReplyDeleteकविवर नीरज जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों ही प्रभावशाली रहे हैं। उन्हें प्रत्यक्ष सुनने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ। किसी कवि के एकल काव्यपाठ पर ही काव्य निशा का सफल आयोजन किया जा सके, यह अपने आप में अद्भुत अनुभव है। आपके इस लेख ने कवि नीरज जी की जीवन यात्रा के समस्त पड़ावों की सुंदर प्रस्तुति दी है। इसके लिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteकृपया इसे सुनिए एवं अपने विचार भी साझा कीजिए।
Story Jootha Part 1 (Self written and presented)
https://youtu.be/IGZSiCi3ZVM
Part 2
https://youtu.be/ex5iigHXdcw
Part 3
https://youtu.be/AxgFDEXm3iI
डॉ सुषमा मेहता
(पी एच डी संस्कृत)
शिक्षिका, रचनाधर्मी,
भाषाविद् , यू ट्यूबर
नीरज जी को आपने जिस तरह पिरोया वह भी अद्भुत है...दीपा जी इस लाभ के लिए बधाई
ReplyDelete