कहा गया है कि “गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति” अर्थात् कवियों की उत्कृष्टता की कसौटी गद्य लेखन है। संस्कृत साहित्य के शीर्षस्थ गद्यकार बाणभट्ट के गद्य की सुललित भाषा, मनोहारी वर्णनों के चित्र और काव्य जैसी आनंदानुभूति के कारण ही उनकी रचनाओं को गद्यकाव्य की श्रेणी में मान्यता मिली है। यह उक्ति सुप्रसिद्ध है कि “बाणोच्छिष्टं जगत्सर्वम्” अर्थात् बाण की अनुपम कृतियों के बाद का समस्त साहित्य उनका उच्छिष्ट (उनके प्रयोग के बाद बचा हुआ अंश) मात्र है। बाणभट्ट को गद्य के क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त है जो काव्य के क्षेत्र में महाकवि कालिदास को प्राप्त है।
बाणभट्ट का जीवनकाल सर्वविदित है। वे सातवीँ शताब्दी के कन्नौज और स्थानीश्वर राज्य के
महाप्रतापी सम्राट हर्षवर्धन के सभा-पंडित थे। कादम्बरी के कथामुख के पूर्व के
श्लोकों में बाणभट्ट ने अपने कुल का परिचय दिया है, जिसके अनुसार उनके पिता का नाम चित्रभानु और माता का नाम
राजदेवी था। बिहार में सोन नदी के किनारे प्रीतिकूट नामक स्थान में उनका जन्म हुआ
था। माँ की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी। पंद्रह वर्ष की आयु में पिता भी परलोक
सिधार गए। बाणभट्ट का विशाल मित्र समूह था। पिता ने पर्याप्त समृद्धि छोड़ी थी।
पर्यटन में रुचि होने से बाण मित्रों के साथ दूर प्रांतों, वन प्रदेश आदि घूमे। इससे
उनको जो ज्ञान और अनुभव मिला, उसका ख़ूबसूरत प्रयोग
उनके साहित्य में दिखाई देता है।
संस्कृत में बाणभट्ट
की गहन अभिरुचि थी और उनको संस्कृत का प्रचुर ज्ञान भी प्राप्त था। एक बार संयोगवश
राजा हर्ष के चचेरे भाई कृष्ण ने बाणभट्ट का परिचय सम्राट हर्ष से कराया। महाराज
ने प्रभावित होकर बाण को अपनी सभा का पंडित बना लिया।
बाण ने महाराजा के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए उनका जीवन-चरित्र लिखा जो ‘हर्षचरितम्’
आख्यायिका के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, सांस्कृतिक परंपरा और लौकिक स्थिति का भी विशद वर्णन मिलता
है। बाण की महानतम रचना ‘कादम्बरी’ है, जिसे विश्व साहित्य का प्रथम उपन्यास कहा
जाता है। कादम्बरी के विषय में प्रसिद्ध है - “कादम्बरीरसज्ञानामाहारोsपि न रोचते”, अर्थात् कादम्बरी के रस का पान
जिन्होंने किया है उन रसज्ञों को भोजन में भी आनंद नहीं आता
है। कहा जाता है कि बाण अपने जीवन में इसे पूरा नहीं कर सके थे। अंतिम समय में
उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया और सामने खड़े एक सूखे वृक्ष का शब्द चित्रण करने को कहा। पहले ने कहा - “शुष्को वृक्षस्तिष्ठत्यग्रे।”(सूखा पेड़ सामने खड़ा है) दूसरे पुत्र भूषणभट्ट ने कहा - “नीरसतरुरिह विलसत्यग्रे।” (रसविहीन (सूखा) तरु
यहाँ सामने सुशोभित है।) दूसरे पुत्र के भाषा-लालित्य से संतुष्ट होकर पिता बाणभट्ट
ने भूषणभट्ट को कादम्बरी को पूर्ण करने का आदेश और दायित्व दे दिया। पुत्र
ने पिता के द्वारा लिखित कथा को ‘पूर्वभाग’ और स्वयं लिखित कथा को ‘उत्तरभाग’
नाम दिया।
कादम्बरी श्रृंगार एवं शान्ति रस से परिपूर्ण गद्यकाव्य/उपन्यास है। इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। बाणभट्ट की पत्नी का भाई कवि मयूरभट्ट भी अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद
अपनी बहिन के पास ही रहने लगा था। एक दिन अपनी रूठी हुई मानिनी पत्नी को मनाने के लिए रात्रि की समाप्ति पर बाण ने अत्यंत
श्रृंगारिक श्लोकों के तीन चरण जैसे ही कहे, अचानक बाहर से आए उनकी पत्नी के भाई मयूर भट्ट तीन चरणों को सुनकर काव्यानन्द
में इतना डूब गए कि संबंध की मर्यादा भूलकर स्वयं
परोक्ष से रति भाव का श्रृंगारिक चौथा चरण बोल उठे। इस अनधिकार हस्तक्षेप से बाण और उनकी पत्नी अत्यंत आहत हुए। मर्यादा विहीन मयूर से क्रुद्ध होकर बाण ने मयूर को कुष्ठी हो जाने का शाप दे दिया। शापग्रस्त दु:खी मयूर कवि ने रोगमुक्ति हेतु सूर्योपासना करते
हुए अतिशय प्रौढ़शैली में सुललित ‘सूर्यशतक’ की रचना की और
रोगमुक्त हुए। उधर क्रुद्ध मयूर कवि ने भी बाणभट्ट को प्रतिशाप दिया। उस शाप से
मुक्ति हेतु बाण ने भगवती दुर्गा की स्तुति में ‘चण्डीशतक’ काव्य की रचना
की। तदुपरांत महाराजा हर्ष की राजसभा में बाणभट्ट के समान ही मयूरभट्ट की भी प्रतिष्ठा
हो गई।
कादम्बरी में पुनर्जन्मों की कथा वर्णित है। कथामुख के प्रारंभ में जाबालि
मुनि के आश्रम का एक मुनि कुमार किसी सुंदरी चाण्डाल कन्या को राजा शूद्रक की राजसभा में लेकर आता है। चाण्डाल कन्या के पास
पिंजरे में वैशम्पायन नाम का तोता है, जो मनुष्यों जैसी
वाणी में अपने पूर्व जन्मों की कथा सुनाता है। वैशम्पायन तोता राजा तारापीड़, उसके पुत्र चन्द्रापीड़, प्रेमिका कादम्बरी, उसकी सखी महाश्वेता और अपने स्वयं के शुक-योनि में जन्म होने की कथा को सुनाता है। इन वर्णनों को अपनी शब्द तूलिका से सजाकर सुंदर चित्र बनाते हुए अति सुकोमल, सरस, कोमलकांत पदावली से
समृद्ध कादम्बरी जैसी अनुपम कृति संस्कृत साहित्य को देने के लिए बाणभट्ट स्वतः ही
अनुपमेय और अद्वितीय रचनाकार सिद्ध हो जाते हैं।
“वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” के सिद्धांत की कसौटी पर गद्यकार बाण कवि के रूप में
भी खरे उतरते हैं। संस्कृत में ये सिद्ध करके कि छंदों एवं बाह्य अलंकरणों के बिना भी काव्य (गद्य और पद्य) की भाषा में मनोमुग्धकारिणी शोभा प्रस्तुत की जा
सकती है, बाणभट्ट ने एक क्रांति का सूत्रपात किया। कादम्बरी में प्रात: काल का वर्णन, संध्या-चित्रण, शुक-वर्णन आदि प्रभावी और अत्यंत हृदयग्राही हैं। कादम्बरी की
भाषा-शैली को देखकर पाश्चात्य संस्कृत विद्वान प्रो. वेबर ने बाण के गद्य को एक ऐसे
भारतीय वन के समान कहा है, जहाँ अत्यंत विस्तृत
वर्णनों के वाक्यों के जंजाल में, जंगलों की अनावश्यक झाड़ियों की भाँति फँसकर पाठक अपना
मार्ग भटक जाता है। उसे सप्रयास मार्ग खोजना पड़ता है। वेबर की बाण-साहित्य के
बारे में यह समीक्षा अत्युक्तिपूर्ण है। संस्कृत की गद्यविधा की शैलियों से परिचित
न होने के कारण ही उनका ये मत है। वस्तुत: संस्कृत गद्य में समास शैली उत्कृष्ट कोटि में आती है। “अर्धमात्रालाघवेन
पुत्रोत्सव: इव मन्यते” यानी वर्णन की भाषा
में आधी मात्रा भी कम हो जाए तो रचनाकार को पुत्रोत्सव जैसी
प्रसन्नता की अनुभूति होती है। समास शैली के प्रयोग में कहीं-कहीं पूरे वाक्य को एक
शब्द का रूप दे दिया जाता है तो कहीं-कहीं समास बहुल विशेषताओं का वर्णन करते हुए
एक ही वाक्य कतिपय पृष्ठों तक चला जाता है। कादम्बरी के विन्ध्याटवी-वर्णन में भाषा के इस मनोहारी रूप के सजीव दर्शन होते हैं |
पीटरसन आदि अनेक विदेशी विद्वानों ने बाणभट्ट के साहित्य में मानव-प्रवृत्तियों
के सूक्ष्म विश्लेषण और पात्रों के भव्य चरित्र-चित्रण की प्रशंसा की है। भाषा के
सौन्दर्य, लालित्य एवं चारुता के कारण ये वर्णन उल्लेखनीय हैं। जो उत्कृष्टता
चन्द्रापीड के प्रति शुकनास के उपदेश में है, जो उदात्त भावना पुण्डरीक के प्रति कपिंजल के प्रबन्धन में है, वह अन्यत्र दुर्लभ
है। नायिका कादम्बरी एवं महाश्वेता के चरित्र -चित्रण में भी बाण अत्यधिक सफल रहे
हैं। प्रसंगानुसार उनकी भाषा का रूप भी बदलता रहा है। बाण की भाषा पांचाली
रीति का सर्वोत्तम उदाहरण है। शब्द और अर्थ का सुंदर गुम्फन, वक्रोक्ति एवं श्लेष की कला में बाणभट्ट की सिद्धहस्तता अद्भुत है। उनकी भाषा-शैली की दक्षता के कारण ही साहित्यकार चन्द्रदेव ने कहा है कि-“बाण की सर्वतोमुखी
प्रतिभा ने श्लेष, रस, कल्पना, विचारों की वर्णन- शक्ति और उपयुक्त शब्द-रचना के प्रयोग में अन्य कवियों को तिरोहित सा कर दिया है।”
प्रकृति-चित्रण में बाणभट्ट ने अद्भुत मनोहारी वर्णनों के सुंदर एवं आकर्षक
चित्र खींचे हैं। प्रकृति के कोमल एवं भयानक पक्षों के चित्रों को अत्यंत सफलता
से चित्रित किया है, जो प्रभावी हैं और मन को छू लेते हैं। बाण
संगीत के भी ज्ञानी थे। कादम्बरी में अनेक वाद्यों के साथ ही गीति, ताण्डव, लास्य का भी सहजता से उल्लेख मिलता है। अपने लेखन में बाणभट्ट ने प्रसंगवश
संस्कृत के ग्रंथों की कथाओं का भी निर्देश और संकेत किया है जिससे पता चलता है कि
बाण षट्दर्शन, रामायण,महाभारत और धर्मशास्त्र के भी उद्भट विद्वान थे| हर्षचरित और
कादम्बरी में तत्कालीन समय की सांस्कृतिक झाँकी का भी अवलोकन किया जा सकता है।
राजसभा में किए जाने वाले व्यवहार और आदेशों से जहाँ सभा का आचरण और गरिमा ज्ञात
होती है वहीं ‘ताम्बूलवाहिनी’ और ‘धूम्रवर्तिका’ आदि का उल्लेख इन वस्तुओं के
प्रचलन की ओर संकेत करता है। बाणभट्ट की कृतियों का आनंद लेने के उपरांत उनकी सर्वांगीण प्रतिभा एवं सर्वमान्य प्रतिष्ठा का अवलोकन करके पाठक को अनायास ही ये सूक्ति स्मरण हो आती है- “प्रागल्भ्यमधिकमाप्तुं
वाणी बाणो बभूवेति।” अधिक प्रगल्भता प्राप्त करने के लिए ही
मानो वाणी अर्थात् वाग्देवी सरस्वती ही बाण का रूप धरकर
पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं।
बाणभट्ट : संक्षिप्त परिचय |
|
मूल नाम |
दक्ष |
पिता |
चित्रभानु |
माता |
राजदेवी |
पुत्र |
दो, एक: भूषण भट्ट, दूसरा: नाम ज्ञात नहीं |
जन्म-तिथि |
अज्ञात |
काल खंड |
सातवीं आठवीं सदी
के बीच महाराजा हर्ष का राज्यकाल (606 - 647) |
जन्म-स्थान |
बिहार में सोन नदी के किनारे प्रीतिकूट |
मृत्यु |
कन्नौज |
कृतियाँ |
हर्षचरित, कादम्बरी, चण्डीशतक |
संदर्भ ग्रंथ:
- बाणभट्ट की आत्मकथा - पं. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
- संस्कृति के चार अध्याय- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर।
- संस्कृत साहित्य का इतिहास - रामजी उपाध्याय
- कादम्बरी भूमिका - विकीपीडिया
- Peterson collection on Sanskrit
literature
लेखक परिचय:
कैलिफ़ोर्निया निवासी प्रो. शकुन्तला बहादुर हिन्दी जगत् में एक सुपरिचित नाम है। आप साहित्य/सृजनात्मक लेखन में सक्रिय हैं।विभागाध्यक्षा प्राचार्या के रूप में आपने पैतीस वर्ष समर्पित किए और जर्मनी में दो वर्ष प्रवक्ता के रूप में काम किया। मृगतृष्णा, बिखरी पंखुरियाँ (कविता संग्रह), सुधियों की लहरें (यात्रा एवं व्यक्तित्व संस्मरण), प्रवासिनी के बोल (काव्य संग्रह में), विविधा (रोचक ललित निबंध), आँचल की छाँव (माँ के संस्मरणों का संकलन) आपके कुछ गद्य, आलेख, कविताएँ आदि 'कादंबिनी', 'स्वतंत्रभारत साप्ताहिक', 'विश्व विवेक', 'हिंदी जगत' आदि हिंदी-पत्रिकाओं तथा साप्ताहिक पत्रों में प्रकाशित।
बहुत सुंदर आलेख है , शकुंतला जी। आपकी भाषा शैली, शब्दावली बाणभट्ट की शोभा में यथोचित अभिवृद्धि करते हैं। कादंबरी के मूल संस्कृत स्वरूप में पठन के लिए आपने उत्साहित कर दिया है।
ReplyDeleteआपको बधाई, शुभकामनाएँ। 💐💐
आदरणीया प्रो. शकुंतला जी,
ReplyDeleteहिंदी विश्व साहित्य के प्रथम उपन्यासकार पंडित बाणभट्ट जी पर आपका आलेख अतिशय उत्कृष्ट शब्दावली से रचा गया है। यह हमारा सौभाग्य है जो आपके अपने शब्दकोश से अत्युत्तम प्रशस्त अभिव्यक्ति इस आलेख के द्वारा उत्सर्ग हो रही है। महानतम रचना कादम्बरी के बारे में सुना था परंतु इस आलेख से आज उसे और अच्छे से जानने का अवसर मिला और ज्ञान में वृद्धि हुई। अत्यंत विस्तृत वर्णनों के वाक्य जालो से बुना गया आलेख प्रस्तुत करने हेतु हिंदी से प्यार है समूह की तरफ से आपका आभार और मंगलकामनाएँ अनुग्रहित करें।
आदरणीय शकुन्तला जी। अत्यंत रोचक सरस एवं प्रवाहमयी शैली में लिखित प्रस्तुत आलेख को पढ़कर बहुत ही अच्छा । धन्यवाद।
ReplyDeleteप्रो. शंकुतला मैडम नमस्ते। अनमोल कृतियों के सृजक श्री बाणभट्ट जी पर आपका लेख बहुत अच्छा है। आपके लेख के माध्यम से उनके साहित्य सृजन के विस्तार एवं विशेषताओं को जानने का अवसर मिला। आपको इस सुव्यवस्थित एवं जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteविज्ञान की पृष्ठभूमि होने के कारण मैं बस बाणभट्ट और उनकी रचना कादंबरी के नाम भर से परिचित थी। उनके बारे में इतनी सारी जानकारी वह भी इतने सरस और सुमधुर शब्दों में ढली हुई। वास्तव में आनंद आ गया। बहुत बहुत धन्यवाद शकुंतला जी।
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