Sunday, July 3, 2022

मंझन : सूफ़ी काव्य परम्परा के अवधी कवि


भारतीय-साहित्य में, विशेष कर इसके मध्यकाल में, सूफ़ी-काव्य का बड़ा महत्त्व रहा है। सूफ़ी कवियों का मुख्य उद्देश्य सूफ़ी विचारधारा को भारतीय लौकिक प्रेमकथा एवं संस्कृति के समन्वय से प्रस्ततु करना रहा है। मध्यकालीन सूफ़ी कवियों के बीच ‘शत्तारी समुदाय’ के सतं कवि ‘मंझन’ का नाम सादर लिया जाता है। इनका पूरा नाम ‘सैय्यद मंझन शत्तारी’ है और ये जायस के रहनेवाले हैं। इनका जीवन-काल सोलहवीं शताब्दी का माना जाता है, हालाँकि इनके जन्म और मृत्यु के सम्बन्ध में अभी तक सही-सही जानकारी उपलब्ध नहीं है। मंझन काल का हिन्दी साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है; वह भक्ति काल के अंतर्गत आता है।  जैसा कि हमें ज्ञात है कि भक्ति काल को 'लोक जागरण काल' के साथ-साथ 'स्वर्ण-युग' की संज्ञा से भी अभिहित किया गया है। भक्ति काल में प्रमुख रूप से दो धाराएँ थीं : पहली - सगुण और दूसरी – निर्गुण भक्ति धारा। सगुण भक्ति धारा के रूप में राम भक्ति शाखा एवं कृष्ण भक्ति शाखा का उल्लेख मिलता है। निर्गुण भक्ति धारा के अतंर्गत संत-साहित्य तथा सूफ़ी साहित्य का उल्लेख आता है। हिन्दी सूफ़ी काव्य-परंपरा को ‘प्रेमाख्यानक’ परंपरा के नाम से भी जाना जाता है।

मंझन के जीवन का उत्तरार्ध अकबर के शासन-काल में बीता। इनके गुरु शेख़ मोहम्मद गौस थे, हालाँकि उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा गुरु सैयद ताज़ुद्दीन के सान्निध्य में हुई। कवि मंझन को हिन्दी सूफ़ी परंपरा का उच्च कवि होने का दर्जा प्राप्त है। इनकी प्रसिद्धि का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि इन्होंने बस एक काव्य ‘मधुमालतीलिखा और उसी से मशहूर हो गए। इस काव्य के रचनाकाल के बारे में मंझन ने 'मधुमालती' में उल्लेख किया है -

"संवत नौ सै बावन जब भौऊ। सती पुरुख कलि परिहर गौऊ।

तौ हम चित उपजी अभिलाखा। कथा एक बाँधऊँ रस भाखा।"

उपर्युक्त पंक्तियों के अनुसार मधुमालती का रचनाकाल हिजरी सन् ९५२ अर्थात १५४५ है।

मधुमालती की हस्तलिखित चार प्रतियाँ प्राप्त हुई थीं,  जिनमें से दो फ़ारसी में और दो नागरी लिपि में थीं। उनमें से एक प्रति ही बस पूर्ण थी। इन चारों प्रतियों के आधार पर डॉ. माता प्रसाद गुप्त द्वारा सम्पादित ‘मधुमालती सर्वाधिक प्रामाणिक  रचना मानी जाती है।  

चंद पंक्तियों में ‘मधुमालती की कहानी कुछ यूँ है। राजकुमार मनोहर और राजकुमारी मधुमालती को उनके महलों से अप्सराएँ नींद में ही एक चित्रशाला में पहुँचाती हैं। आँखें  खुलते ही दोनों को लगता है जैसे वे जन्म-जन्मांतर से एक  दूसरे को जानते हैं और उनके हृदय में पूर्व-प्रेम की झाँकियाँ उभर आती हैं। मिलन के चरम सीमा तक पहुँचने से पहले ही अप्सराएँ उन्हें वापस उनके महलों में पहुँचा देती हैं। नींद से उठने के बाद विरह-विह्वल राजकुमार राजकुमारी की तलाश में निकलता है। वह लम्बी यात्रा के रास्ते में अनेक परीक्षाएँ पार करता हुआ मधुमालती की सहेली प्रेमा, जो एक राक्षस की गिरफ़्त में होती है, से मिलता है। मनोहर प्रेमा को राक्षस की क़ैद से मुक्त कराता है और प्रेमा मनोहर को मधुमालती से मिलाती है। लेकिन मधुमालती की माँ को इनका मिलन अजीब लगता है और वह मधुमालती को श्राप देकर उसे चिड़िया बना देती है। मधुमालती चिड़िया बनकर एक लम्बी अवधि तक भटकती रहती है। कहानी का अंत उनकी  शादी के सुखद मिलन से होता है, लेकिन तब तक विरह और परेशानियों के अनेक पड़ाव आते हैं। प्रेमा और उसका सखा ताराचंद कहानी को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं। 

किसी भी भारतीय प्रेमाख्यान की तरह ‘मधुमालती’ की समस्या भी सामाजिक, नैतिक मर्यादाओं से जकड़े समाज में स्वपन और यथार्थ के बीच का संघर्ष है। इसके अलावा इसमें एक आध्यात्मिक भाव भी मौजूद है। प्रेम के लिए किया गया  संघर्ष भगवान की साधना का एक रूप होता है।

मंझन ने ‘मधुमालती’ में प्रेम-कथा के माध्यम से ईश्वरीय भक्ति का सन्देश दिया है। ईश्वर से छूटे हुए जीव की पुनः ईश्वर तक पहुँचने की साधना की कहानी भी है यह काव्य।

सूफ़ी कवि मंझन ने जीवन में प्रेम को सर्वाधिक महत्त्व देते हुए, इसे जीवन के सबसे बड़े मूल्य के रूप में स्थापित किया है। कवि ने प्रेम को सृष्टि का केंद्र-बिंदु माना है; उनका वैचारिक दृष्टिकोण प्रेम की पृष्ठभूमि पर ही निर्मित है। मंझन का प्रेम-दर्शन एवं सौंदर्य-चित्रण आनंद की अनुभूति प्रदान करते हैं। मधुमालती मनोहर से कई प्रश्न करती है, जिनके उत्तर में नायक प्रेम के ऐतिहासिक महत्त्व को सविस्तार मधुमालती के समक्ष प्रस्ततु करता है-  

कहै कुंवर सुन पेम पिआरी, मोंहि तीहिं पूर्ब प्रीति बिधि सारी।

मैं तोहि आजु न दुक्ख दुखारी, तोहरे दुःख मोहिं आदि चिन्हारी।

यहि जग जीवन मोंहि तहु लाहा, मैं जिअ दै तोर दुक्ख बेसाहा।

जा दिन सिरा आँस बिधि मोरा। तेहि दिन मोहिं दरसा दुख तोरा।

बर कामिनि जौ प्रीत क नीरू। मोहिं माटी तौ सानु सरीरू।

पूर्ब दिनन्हि सौं जानौं, तोहरी प्रीति क नीरु।

मोंहि माटी बिधि सानि कै, तौ एह सरा सरीरु॥

मधुमालती’ काव्य में विरह बहुत गहरा है और मंझन ने विरह को महससू करना परम सौभाग्य बताया है। पृथ्वी पर जन्म लेकर विरह महससू न करना वैसे ही है जैसे सूने घर में मेहमान बनकर जाना होता है। उनके अनुसार विरह से जीवन का अर्थ मिलता है। विरह व्यक्ति को उसके अस्तित्व की याद दिलाता है। मनोहर और मधुमालती के वियोग और मिलन के माध्यम से मंझन ने मनुष्य और ईश्वर के एक होने को प्राथमिक सत्य बताया है। मनुष्य की ईश्वर से अलगाव की पीड़ा ही उसके ईश्वर तक पहुँचने की साधना का मार्ग बनती है। ‘मधुमालती’ के नायक को इहलोक एवं परलोक,  दोनों ही लोकों के सुखों की प्राप्ति की अभिलाषा नहीं है। उसे प्रेमिका की विरहाग्नि में जलना-तड़पना सर्वाधिक श्रेयस्कर प्रतीत होता है।  वह इसे जीवन-प्राप्ति की उपलब्धि मानता है-

दुःख मानसु कै आदि गरासा,  ब्रह्म कौंल महँ दुःख कर बासा।

जेहि दिन दुःख येह सिस्टि समाना,  ता दिन ते जिउ जिउ कै जाना।

अब लै बोह मोहि दुःख की काँवरि,  दुई जग देउँ सुक्ख नेवछावरि।

मोहिं न आजु दरसा दुःख तोरा,  तोर दुःख आदि संघाती मोरा।

मैं आपन तजि तोर दुःख लयऊँ, मरि कै अब अम्ब्रित रस पियेऊँ।

तोर दुक्ख मधुमालती, सुखदाएक जो संसार।

जेहि जिअ माँह तोर दुःख उपजै, धन्य सो जग औतार॥

मंझन ने सूफ़ी कवियों की तरह फ़ारसी की मसनवी शैली को अपने प्रेमाख्यान का आधार बनाया है। यह काव्य सर्गों या अध्यायों में विभक्त नहीं है। कहीं-कहीं घटनाओं को रोचक बनाने के लिए शीर्षक दिए गए हैं। मंझन ने पाँच-पाँच चौपाइयों (अर्द्धाली) के बाद एक दोहा या सोरठा दिया है। चौपाइयों की भाषा तत्कालीन बोलचाल की अवधी है और दोहों की भाषा साहित्यिक अवधी। इस प्रकार के छंदों को कड़वक छंद भी कहते हैं। मंझन कृत ‘मधुमालती’ सौंदर्य, प्रेम और रस की त्रिवेणी है, जिसमें डुबकी लगाकर पाठक आनंदित होता है। यह काव्य श्रृंगार रस से सराबोर है। कवि ने नायिका के सौंदर्य में समस्त सृष्टि का सौंदर्य दिखाने का प्रयत्न किया है। पेश है एक उदाहरण –

निकलंकी ससि दइुज लीलारा,  नौ खण्ड तीनि भुअन उँजियारा।

बदन पसीज बुंद चहुँ पासा, कचपचिए जेंव चाँद गरासा।

मीग्रमद तिलक ताहि पर धरा, जानहुँ चाँद राहु बस परा।

गयौ मयंक सरग जेहि लाजा, सो लिलाट कामिनी पहँ छाजा।

सहस कला देखी उजिआरा, जग ऊपर जगमगहिं लीलारा।

तर मयंक ऊपर निसि पाटी,  बनी अहै कहि रीति।

जानसु ससि औ निसि तें, भै सरूति बिपरीति

मंझन के इस काव्य में मुहावरों और सूक्तियों का प्रचरु प्रयोग हुआ है। दृष्टव्य हैं कुछ उदाहरण-

- हिय का अँधा सोइ गँवारा, जस उल्लू दिन हीं अँधियारा 

- जानि बूझि कै बरबस, गाँठी बाँधि अंगार

- जग उपखान जो कहियत आहा, धन खोए बौराइ जुलाहा

जैसा कि ज्ञात है कि सूफ़ी कवि अपनी रचना के प्रारंभ में ईश्वर, पीर, आश्रयदाता का नाम स्मरण कर कथा प्रारंभ करते हैं, मंझन ने भी 'मधुमालती' में इस संरचना का निर्वहन किया है। सूफ़ी-काव्य की महत्त्वपूर्ण विशेषता होती है- 'इश्क़ मजाज़ी से इश्क़ हक़ीक़ी की यात्रा।’ इसका तात्पर्य है कि लौकिक प्रेम से अलौकिक प्रेम तक की यात्रा करना। मंझन की ‘मधुमालती’ इस विशेषता की एक प्रतिनिधि कृति है। इसमें हमें प्रेम का एक व्यापक रूप देखने को मिलता है। यह केवल दो व्यक्तियों के बीच की कहानी नहीं है। यह कहानी ‘प्रेम’ शब्द से शुरू होती है और इसी से समाप्त होती है।

मंझन का काव्य हिन्दू- मुस्लिम एकता का अद्भतु सन्देश है। सूफ़ी-काव्य होने के  बावजदू ‘मधुमालती’ के अधिकांश पात्र हिन्दू रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं। कठिन घड़ी में उनके मँहु से मुरारी, हरी, ब्रह्मा, रुद्र आदि शब्द ही निकलते हैं। मधुमालती और मनोहर का विवाह, कन्यादान, दहेज, गौना,  बिदाई जैसे सारे अनुष्ठान हिन्दू रीति-रिवाज़ों से सम्पन्न होते हैं। इस काव्य में छोटों  द्वारा बड़ों के सम्मान में उनके पाँव छूने की परम्परा का भी चित्रण है। मधुमालती’ काव्य परोक्ष रूप से उस युग में व्याप्त आपसी सौहार्दता तथा भाई-चारे का उत्तम उदाहरण है। इस्लाम धर्म में जन्मे मंझन हिन्दू रीति-रिवाज़ों में पुर्णतः पारंगत थे, जैसे उसी का अभिन्न हिस्सा हों। कवि मंझन की ‘मधुमालती’ सूफ़ी खानकाहों, दरबारों और घरों में ख़ूब पढ़ी जाती थी। इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा कवि बनारसीदास की आत्मकथा 'अर्धकथा' की निम्नलिखित पंक्तियों से प्रतिबिंबित होता है-

तब घर में बैठे रहै, नाहिंन हाट-बजार।

मधुमालती, मृगावती पोथी दोय उचार।

सन्दर्भ :

१. मंझन, मधुमालती, सम्पादक : माताप्रसाद गुप्त

२. हिन्दी साहित्य का इतिहास, आचार्य रामचद्रं शुक्ल

३. हिन्दी साहित्य की भूमिका, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

४. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास, डॉ. गणपति चद्रं गुप्त

५. https://www.exoticindiaart.com/book/details/appearance-in-madhu malati-uaj203/#mz-expanded-view-1292507987964

६. https://archive.org/details/in.ernet.dli.2015.478465/page/n3/mode/ 2up?view=theater

७. https://www.hindwi.org/kadvak/5-best-and-famous-poems-of-manj han/vidaaii-manjhan-kadvak?sort=popularity-desc

८.http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00urduhindilinks/workshop2011/Intro%20to%20Madhumalati.pdf

 

लेखक परिचय :


दुर्गा प्रसाद, एम.ए. दिल्ली विश्वविद्यालय एम.फिल. नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी,शिलांग,भारत

अनुसंधित्सु (पीएच.डी.) हिन्दी: नॉर्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग, भारत

प्रकाशित पुस्तक:तुलसीदास के मानसेतर काव्य में नवजागरण के तत्त्व

प्रतियोगी परीक्षा: यूजीसी-नेट उत्तीर्ण

मोबाइल नं. +91 9650149480

Mail ID:   durga230prasad@gmail.com


5 comments:

  1. वाह दुर्गा जी, सूफ़ी कवि मंझन पर बढ़िया आलेख प्रस्तुत किया है आपने। बहुत सार्थक, सुंदर और ज्ञानवर्धक कहानी है उनका काव्य ‘मधुमालती’। मंझन को और पढ़ने की जिज्ञासा पैदा करता है आपका आलेख। इसके लिए आपको बधाई और धन्यवाद। भावी लेखन के लिए शुभकामनाएँ दुर्गा जी

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  2. हार्दिक धन्यवाद.आपके मार्गदर्शन का परिणाम है-प्रस्तुत आलेख

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  3. दुर्गा प्रसाद जी नमस्ते। सैय्यद मंझन जी पर आपका लेख पढ़ कर आंनद आया। आपने उनके साहित्यिक सृजन का विस्तृत वर्णन लेख में दिया साथ ही उनके काव्य की विशेषताओं को भली भाँति समझाया। उनकी प्रसिद्ध कृति मधुमालती से जुड़ी जानकारी भी रोचक है। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  4. दुर्गा प्रसाद जी, आपने सूफ़ी कवि मंझन की कहानी और उनके काव्य-ग्रंथ ‘मधु-मालती’ का बेहतरीन परिचय अपने आलेख के माध्यम से दिया है। आपको आगे भी उत्तम लेखन करने की शुभकामनाएँ और इस आलेख के लिए आभार और बधाई।

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  5. बहुत-बहुत धन्यवाद

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