Tuesday, July 5, 2022

असगर वज़ाहत: शब्दों की पैनी धार के लेखक

 



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जीवन इतना नंगा हो गया है कि अब लेखक उसकी परतें उखाड़ेगा? रोज़ अख़बारों में जो छपता है, वह पूरे समाज को नंगा करने के लिए काफ़ी है। मूल्यहीनता की जो स्थिति है, स्वार्थ साधने की जो पराकाष्ठा है, हिंसा और अपराध का जो बोलबाला है, सत्ता और धन के लिए कुछ भी कर देने की होड़, असहिष्णुता और दूसरे को अपमानित करने का भाव जो आज हमारे समाज में है, वह पहले नहीं था।आज हम अजीब मोड़ पर खड़े हैं। रचनाकार के लिए यह चुनौतियों से भरा समय है। और इन हालात में लगता है, क्या लिखा जाए?'


कहानी संग्रहडेमोक्रेसियाकी भूमिका में लिखी असगर वज़ाहत की ये पंक्तियाँ स्वतः ही उनकी रचनाधर्मिता, उनकी सोच और एक साहित्यकार के रूप में उनकी पीड़ा को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त हैं। साम्प्रदायिकता जैसी समस्या हो या मध्यवर्ग का पाखंड, असगर वज़ाहत ने अपनी लेखनी के सशक्त बोलों में खुल कर दोनों का विरोध किया है।  उनकी यही मुखरता और पैनी दृष्टि उन्हें भीड़ में एक ख़ास चेहरा बनाती है। लगातार लेखन में नए प्रयोग करना और नएपन की तलाश में जुटे रहना वह संजीवनी शक्ति है, जो असगर वज़ाहत की लेखनी की धार को सशक्त बनाती रही है। मध्यवर्गीय समाज में स्त्री की स्थिति, महानगर के बुद्धिजीवियों की ऊहापोह, गाँव के परिवेश में बदलते संबंधों और दम तोड़ते रिश्तों की त्रासदी, स्त्री-पुरुष के बीच पनपती सम्बन्धों की जटिलता, तेज़ी से विकसित होती महानगरीय संस्कृति और उसमें बिखरते विवाह और विवाहेतर संबंधों का बढ़ता संसार, छोटे शहरों के बदलते जीवन और समाज में जड़ पकड़ती राजनीति तथा अपराध की बढ़ती भूमिका जैसे प्रसंग असगर वज़ाहत की कहानियों की विचारभूमि है, जो पाठकों को अपनी सम्यक दृष्टि से चिंतन का धरातल प्रदान करती है। उनकी कहानियाँ दरअसल उन लोगों की कहानियाँ हैं जो समाज के हाशिये पर पड़े हैं, लेकिन बड़े सामाजिक सन्‍दर्भों से जुड़ने का जतन करते रहते हैं-


‘तुम्हारी आस्था और भक्ति से

प्रसन्न होकर तुम्हें वरदान है

तुम रहोगे सदा सदा जीवित

तुम सदा स्वर्ण की आभा से

रहोगे आलोकित

सदा तुम्हारे चारों ओर

होगा स्वर्ण ही स्वर्ण..

तुम्हारे ऊपर

क्रोनस की छाया सदा बनी रहेगी’

 

(नाटक - अरितोपोलिस)

 

असगर वजाहत एक ऐसे लेखक के रूप उभरते हैं, जो अपने समय की जटिलताओं से लगातार जूझते हुए अपनी अस्मिता के नवीन अर्थ खोज रहे हैं। जहाँ एक ओर उनके आरंभिक दौर की कहानियों में आपातकाल के समय की घुटन दिखती है, तो वहीं  पिछले कुछ वर्षों में आई उनकी कहानियों में सांप्रदायिकता के बढ़ते खतरे की अचूक शिनाख्त को आसानी से परखा जा सकता है। उनके उपन्यासों व नाटकों में भी अपने समय के संकटों की पड़ताल करते हुए मानवीयता की तरफदारी की यह कोशिश लगातार दिखती है। अपने यात्रा संस्मरणों में उन्होंने नई जगहों के चित्र खींचने से ज़्यादा से वहाँ  के जनजीवन को परखने की कोशिश की है। वस्तुत: वे ऐसे रचनाकार हैं, जिसके लिए लेखन अपने समय और समाज की चिंताओं से रूबरू होने का ही दूसरा नाम है। वे जीवन को टुकड़ों में नहीं बाँटते, बल्कि उसकी पूरी जटिलता और प्रवाह के साथ उसे पाठको के समक्ष ला खड़ा करते हैं। फिर यह पाठक की सूझ है कि वह जीवन के इस विस्तार को क्या समझे।  


साहित्य जगत में अपनी उत्कृष्ट पहचान बनाने वाले असगर वज़ाहत का जन्म ५ जुलाई १९४६ को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में हुआ था। पिता पुश्तैनी ज़मींदार थे, तो घर परिवार में खासी संपन्नता थी। बचपन की समृद्धि के बारे में उन्होंने लिखा भी है-

 हम दोनों भाई जब करीब चार या पाँच साल के थे तो रोज़ सुबह उठकर मुँह हाथ धोने और नाश्ता करने के बाद अब्बा मियाँ को आदाब करने जाते थे और हम दोनों को रोज़ एक-एक आना मिलता था।


 अब्बा मियाँ, यानी दादाजी, जो उन्हें बहुत प्यार करते थे और बहुत ख्याल रखते थे। पुश्तैनी ज़मीदार होने के कारण दादाजी रोज़ अपनी बैठक में अनेकों लोगों से मिलते और उनकी समस्याओं का निराकरण किया करते थे। बस, यूँ समझिए कि बचपन में प्राप्त यह अनुभव ही असगर वज़ाहत के साहित्य में अभिव्यक्ति बन गया। और यही कारण है कि उनकी रचनाओं में पाठक समाज में बिखरे वास्तविक प्रश्नों के चिह्न ढूँढता है।


असगर के पिता बेहद सादा स्वभाव के थे। बचपन के अपने अनुभव के बारे में उन्होंने लिखा भी है-


अब्बा से जब हम लोग कोई फरमाइश करते थे, तो वे कभी मना नहीं करते थे। हम लोगों के लिए उनकी जुबान से कभी भी न नहीं निकलता था। छुटपन में हम दोनों भाई उनकी ऊँगली पकड़ कर बाग तक जाते थे।


और पिता का यह स्नेह केवल लाड़ प्यार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि इनकी शिक्षा दीक्षा में भी उनकी पूरी रुचि थी। और घर के इसी माहौल के चलते असगर वज़ाहत ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए., पीएच.डी. और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च की। उसके बाद १९७१ से २०११ तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिन्दी विभाग में अध्यापन किया। पाँच वर्षों तक ओत्वोश लोरांड विश्वविद्यालय, बुडापेस्ट, हंगरी में भी पढ़ाया। यूरोप और अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में व्याख्यान दिए।

सामाजिक रिश्तों, राजनीतिक हलचलों और सांस्कृतिक विकास के बिन्दुओं को रेखांकित करने की सम्यक दृष्टि असगर वज़ाहत को अपने पठन-पाठन के दौर में ही प्राप्त हुई। अपने खानदान में पहले उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति होकर भी आरंभ में नौकरी के लिए इन्हें काफी धक्के खाने पड़े। आरंभ में उन्होंने समाचार पत्रों में कार्यकारी संपादक और संपादक, हंस जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में लेखन, दूरदर्शन व आकाशवाणी के लिए लेखन जैसे कार्यों में संलग्न रहे। तत्पश्चात जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में १९७१ से अध्यापन में जुट गए। उनके मार्गदर्शन में आठ विद्यार्थियों ने पी एच डी की डिग्री प्राप्त की। वस्तुतः, चाहे प्राध्यापक हों या पत्रकार, संपादक या समीक्षक, मार्गदर्शक हों या स्वतंत्र लेखक, हर रूप में असगर वज़ाहत ने अपनी लगन और मेहनत से प्रतिष्ठा हासिल की है।


एक लेखक के रूप में असग़र वजाहत के लेखन की आत्मीयता, अनौपचारिक शैली और रोचक कथ्यरूपता उनकी विशिष्ट पहचान रही है। अपने सभी पात्रों के साथ उनके परिवेश में डूब जाना, उनके मनोभावों, आशा-निराशा, सुख-दुख के साथ एक आत्मीय रिश्ता बना लेना उनके लेखन की पराकाष्ठा है, जो न केवल पाठकों को बाँधती है, बल्कि सहज ही पाठक भी उनके सभी पात्रों के साथ एकरूपता कायम कर लेता है।  


समाज के ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र रखते हुए अपने नाटकों के माध्यम से उन्हें दर्शकों तक हूबहू उसी रूप में पहुँचाने की कला में पारंगत असगर वज़ाहत के सभी नाटक हिंदी नाट्य जगत में मील का पत्थर सिद्ध हुए हैं। उन्हें एक सफल नाटककार के रूप में बहुत ख्याति प्राप्त हुई है। इनके नाटकों की प्रसिद्धि का अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि हबीब तनवीर, एम के रैना, दिनेश ठाकुर, राजेंद्र गुप्ता, वामन केंद्रे, शहीम किरमानी तथा टाम आल्टर जैसे निर्देशकों ने इनके नाटकों का निर्देशन किया है। विशेषतः 'जिस लाहौर नईं वेख्या' नाटक, जिसने नाट्य लेखन के क्षेत्र में नया मानक स्थापित किया है। 'जिस लाहौर नईं वेख्या' का मंचन कराची, दुबई, वाशिंगटन डीसी, सिडनी, लाहौर तथा कई अन्य शहरों में हुआ है और हर जगह इसे भरपूर प्रशंसा मिली है। यही नहीं, भारत की अनेक भाषाओं में इसके अनुवाद किए गए हैं। दिलचस्प बात यह है कि हबीब तनवीर के निर्देशन में इस नाटक का पहला शो २७ सितंबर १९९० को किया गया था। उसके बाद अनेक निर्देशकों द्वारा इस नाटक को मंचित किया गया। 'जिस लाहौर नईं वेख्या' के बीस वर्ष पूरे होने पर एक भव्य अंतर्राष्ट्रीय आयोजन हुआ जिसके तहत विश्व के कई नगरों में इसके मंचन तथा गोष्ठियां आयोजित की गईं। आलोचकों की एक मत से यही राय है कि 'भारत विभाजन की त्रासदी पर हिंदी, उर्दू, पंजाबी आदि सभी भाषाओं में एक से बढ़कर एक मर्मस्पर्शी कहानियों की रचना की गई। परंतु नाटकों की विधा में आज तक असगर वज़ाहत के नाटक 'जिस लाहौर नईं वेख्या' को छोड़कर दूसरी कोई रचना हमारे सामने नहीं है।' वास्तव में, सांप्रदायिक दंगों और विभाजन की दुखद त्रासदी को अभिव्यक्ति देते इस नाटक का कोई सानी नहीं है।


मूल रूप से कहानीकार असगर वज़ाहत की रचनाओं की प्राणशक्ति है उनकी प्रखर राजनैतिक और सामाजिक चेतना, जो हमें चिंतन की ओर स्वतः ही प्रेरित करती है। वे बड़ी बेबाकी से अपनी बात रख देते हैं जो दिखने में भले ही सपाट बयानी लगे, मगर उसकी  तीखी व्यंग्य शैली पाठक को झकझोर के रख देती है। अपनी प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक भावाभिव्यक्ति के माध्यम से वे न केवल व्यवस्था का विरोध करते हैं, बल्कि सुविधाभोगियों, पूँजीपतियों, शोषक वर्ग और सह-अस्तित्ववादियों पर भी ऊँगली उठाते हैं-


एक दिन उसके दिमाग में खयाल आया कि अगर मज़दूरों के चार हाथ हों तो काम कितनी तेज़ी से हो और मुनाफ़ा कितना ज़्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज़ की दवा? उसने यह काम करने के लिए वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए।  कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।  

उसने कटे हुए हाथ मँगवाए और अपने मज़दूरों के फिट करने चाहे, पर ऐसा नहीं हो सका। फिर उसने मज़दूरों के लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उनसे काम नहीं हो सका।  फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवा दिए, पर मज़दूर मर गए।  

आखिर एक दिन बात उसकी समझ में आ गई।  उसने मज़दूरी आधी कर दी और दुगुने मज़दूर नौकर रख लिए।  

(लघु कथा - चार हाथ)


उनका अपनी भाषा पर जबरदस्त अधिकार है। एक ओर सहजता और सादगी से लिखना उनकी विशिष्टता है, तो वहीं दूसरी ओर बारीक़ व्यंग्य और भीतरी करुणा का समावेश उनकी शैली को प्रखरता प्रदान करता है। असगर वज़ाहत ने कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा संस्मरण और लघु कथाएँ तो लिखी ही हैं, साथ ही उन्होंने फिल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया है।  


असगर वज़ाहत अपने लेखन के माध्यम से युवाओं को समाज के उस रूप से परिचित करवाने के लिए कटिबद्ध हैं, जो भविष्य की सुखद सोच और चुनौतियों के मध्य यथार्थ का कड़वा धरातल लिए हुए खड़ा है। उन्होंने लिखा है-

आज का युवा पिछले दशकों की युवा पीढ़ियों से बहुत भिन्न है। क्योंकि उसके सामने अस्तित्व को बनाए रखने का संकट ही नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा की दौड़ भी है।


 संवेदनशील और उदारवादी लेखक असगर वज़ाहत सांप्रदायिकता और समाज में अलगाव के घोर विरोधी हैं। एक तरफ़ वे स्वयं के भारतीय मुसलमान होने पर फ़ख्र करते हैं -

मैं अक्सर ईश्वर, अल्लाह, प्रभू, ईशु को धन्यवाद देता हूँ कि मैं भारतीय मुसलमान हूँ। ज़रा कल्पना कीजिए कि यदि मैं अरबी, ईराकी, ईरानी मुसलमान होता तो क्या होता? क्या आदमी की सबसे बड़ी आवश्यकता 'आज़ादी' वहाँ इतनी होती

(मासिक पत्रिका हंस, फरवरी २००१)


तो दूसरी तरफ़, सांप्रदायिक दंगों को बढ़ावा देने वाले राजनयिकों की मानसिकता पर कटाक्ष करते हुए वे कहते हैं-


दंगों का लाभ निश्चय ही सांप्रदायिक दलों का होता है। धर्म के आधार पर भावनाओं को भड़का कर सांप्रदायिक दल चुनाव जीतते हैं और अपना शासन स्थापित करते हैं। रोचक यह है कि सांप्रदायिक उन्माद फैलाकर दंगा कराने और देश पर करोड़ों रुपए का बोझ डालने वाले, देशवासियों में फूट और घृणा का ज़हर फैलाने वालों ने देशभक्त होने का चोला पहन रखा है।

(मासिक पत्रिका हंस, मुस्लिम विशेषांक, अगस्त २००३)


 बड़ी निर्भीकता से उन्होंने समाज के ज्वलंत विषयों पर अपनी लेखनी चलाई है। समाज के बनते बिगड़ते नियम उनके साहित्य को परिपक्वता देकर उनके विचारों को पोषित करते रहे हैं। आर्थिक वैषम्य तथा संघर्षमय जीवन की चुनौतियों को प्रबल वाणी देने वाले गंभीर लेखक असगर वज़ाहत की संवेदनशीलता उनके लेखन के कौशल को पुष्ट कर उन्हें सर्वत्र सम्मान का पात्र बनाती रही है। 


सन्दर्भ :-


  • सात आसमान - असगर वज़ाहत
  • भीड़तंत्र - असगर वज़ाहत 
  • ज़िंदा कलम का नाम है असगर वज़ाहत- यूट्यूब वीडियो 
  • विकिपीडिया 
  • कथाकार असगर वज़ाहत से ख़ास बातचीत: साहित्य तक, आज तक  - यूट्यूब वीडियो 


असगर वज़ाहत : संक्षिप्त परिचय 


जन्म 

५ जुलाई १९४६

जन्म स्थान 

फतेहपुर, उत्तर प्रदेश 

शिक्षा 

एम.ए. हिन्दी, पी.एच.डी. (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) 

पोस्ट डाक्टोरल रिसर्च (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली) 


साहित्यिक रचनाएँ 


कहानी संग्रह

अँधेरे से, दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल, सब कहाँ कुछ, मैं हिन्दू हूँ , मुश्किल काम, डेमोक्रेशिया, पिचासी कहानियाँ, भीड़तंत्र, १० प्रतिनिधि कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, असग़र वजाहत : श्रेष्ठ कहानियाँ 

नाटक

फ़िरंगी लौट आये, महाबली,

इन्ना की आवाज़, वीरगति, समिधा, जिस लाहौर नईं वेख्या, अकी, गोडसे@गांधी.कॉम, पाकिटमार रंगमंडल, असगर वजाहत के आठ नाटक , सबसे सस्ता गोश्त (१४ नुक्कड़ नाटकों का संग्रह) 

उपन्यास

सात आसमान, पहर-दोपहर , कैसी आगी लगाई , बरखा रचाई , धरा अँकुराई 

उपन्यासिका

मन-माटी ('मन-माटी' एवं 'चहारदर' दो उपन्यासिकाओं का एकत्र संकलन)

यात्रा वृत्तांत

चलते तो अच्छा था, पाकिस्तान का मतलब क्या , रास्ते की तलाश में , दो कदम पीछे भी 

आलोचना

हिंदी-उर्दू की प्रगतिशील कविता

विविध

बूंद-बूंद (धारावाहिक)

बाकरगंज के सैयद 

सफाई गंदा काम है

ताकि देश में नमक रहे (निबंध) 

व्यावहारिक निर्देशिका : पटकथा लेखन 


सम्मान एवं उपलब्धियाँ 

हिन्दी अकादमी द्वारा श्रेष्ठ नाटककार' सम्मान  २००९-१० 

आचार्य निरंजननाथ सम्मान २०१२ 

संगीत नाटक अकादमी सम्मान २०१४ 

हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च शलाका सम्मान २०१६ 

नाटक 'महाबली' के लिए के.के.बिड़ला फाउंडेशन द्वारा ३१ वां व्यास सम्मान २०२१


 लेखक परिचय :

https://lh3.googleusercontent.com/cOO92HwqLPgAnLqf34mZshDpUg0cOPFBdyYiyH8ofe6qFsZHQWVyO_cMqmpHts6njvBdiEvhUrkelLFQRITVezJMwHlYvJy1XDgM_VwUKtnzTzeMf0OiheGYeNr0EkqJdz1KRZPgkj2Lrpdg

विनीता काम्बीरी  शिक्षा निदेशालय, दिल्ली प्रशासन में हिंदी प्रवक्ता हैं तथा आकाशवाणी दिल्ली के एफ. एम. रेनबो चैनल में हिंदी प्रस्तोता हैं।

आपकी कर्मठता और हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण भाव के कारण अनेक सम्मान व पुरस्कार आपको प्रदत्त किए गए हैं जिनमें यूनाइटेड नेशन्स के अंतर्राष्ट्रीय विश्व शान्ति प्रबोधक महासंघ द्वारा सहस्राब्दी हिंदी सेवी सम्मानपूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार द्वारा राज्य शिक्षक सम्मान प्रमुख हैं। मिनिएचर-पेंटिंग करने, कहानियाँ और कविताएँ लिखने में रुचि है।

ईमेल: vinitakambiri@gmail.com

4 comments:

  1. असगर वजाहत के बारे में बेहतरीन आलेख है।

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  2. विनीता जी नमस्ते। असगर वज़ाहत जी पर आपने बहुत अच्छा लेख लिखा है। आपका लिखा हर लेख रोचक एवं जानकारी भरा होता है। आपको इस बढ़िया लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  3. विनीता जी बहुत बढ़िया लेख लिखा है आपने। आपके इस शोधपरक लेख के माध्यम से असगर वज़ाहत जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को और नज़दीक से जानने का अवसर मिला। इस प्रवाहमय और जानकारीपूर्ण लेख के लिए आपको बहुत बधाई।

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  4. विनीता जी, आपने असगर वजाहत पर बढ़िया आलेख दिया है। उनके जीवन और कृतित्व पर क़ाफ़ी जानकारी दी है। बधाई। 💐
    मैंने “जिस लाहौर नहीं वेख्या” का मंचन देखा है। प्रभावशाली नाटक है। असगर जी ने मानवीय एकता पर और सांप्रदायिकता के विरुद्ध अच्छा लिखा है। हमारे लेखकों को निरंतर इस विषय पर लिखते रहना होगा। मानव को मानव से जोड़ने का प्रयास कम हो रहा है, तोड़ने का ज़्यादा । असगर जी को जन्मदिन और भविष्य में लेखन के लिये शुभकामनाएँ । 💐

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