Sunday, January 9, 2022

ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा

 

मानसिंह - 'अच्छा सुनो। दुलैयाजू के देखते ही मन के भीतर उजाले की चकाचौंध-सी लग जाती है। कचनार को देखने को जी तो चाहता है, परंतु देखते ही सहम-सा जाता है। दुलैयाजू का स्वर सारंगी-सा मीठा है, कचनार का कंठ मीठा होते हुए भी चुनौती-सा देता है। दुलैयाजू कमल हैं, कचनार कँटीला गुलाब। जिस समय दूलैयाजू को हल्दी लगाई गई, मुखड़ा सूरजमुखी-सा लगता था। उनकी आँखों में मद है, कचनार की आँख ओले-सी सफ़ेद और ठंडी। उनकी मुस्कान में ओठों पर चाँदनी-सी खिल जाती है, कचनार की मुस्कान में ओठ व्यंग्य-सा करते हैं। दुलैयाजू की एक गति, एक मरोड़ न जाने कितनी गुदगुदी पैदा कर देती है, कचनार जब चलती है, ऐसा जान पड़ता है, कि किसी मठ की योगिन है। बाल दोनों के बिलकुल काले और रेशम जैसे चिकने हैं। दोनों से कनक की किरणें-सी फूटती हैं। दोनों के शरीर में सम्मोहन-सा जादू भरा है। दोनों बहुत सलोनी है। दुलैयाजू को देखते और बात करते कभी जी नहीं अघाता। घूँघट उघड़ते ही ऐसा लगता है, जैसे केसर बिखेर दी हो। कचनार को देखने पर ऐसा जान पड़ता है, जैसे चौक पूर दिया हो। दुलैयाजू वशीकरण मंत्र है और कचनार टोना उतारने वाला यंत्र...'  डरू नें हँस कर कहा, ''दुलैयाजू लड्डू हैं और कचनार खुरमा, गुटगुटा। " (कचनार)
 
वृंदावनलाल वर्मा की एक प्रसिद्ध कृति " कचनार " की ये पंक्तियाँ, उनकी रचना शैली की सरलता, सरसता और सहजता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। यही जादू है, उनकी लेखनी का। चाहे चरित्रों का परिचय हो या कथानक की पृष्ठभूमि का वर्णन। चाहे घटनाक्रम का काल हो, या सामाजिक परिदृश्य का विवरण। वृंदावनलाल वर्मा इतने सहज ढंग से सब कुछ प्रस्तुत कर देते थे, कि उनका पाठक बिना किसी कठिनाई के सब कुछ समझ लेता था। उनके चरित्र अपने क्षेत्र की आँचलिक बोली बोलते थे, जिनसे पाठक अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस करता है। ऐतिहासिक उपन्यासकारों के समक्ष, ऐतिहासिक तथ्यों तथा कथा की रोचकता के बीच उचित सामंजस्य बनाए रखना, एक बड़ी चुनौती होती है। किंतु श्री वृंदावनलाल वर्मा न सिर्फ इस चुनौती का बड़ी कुशलता से सामना करते हैं,  बल्कि अपनी लेखन क्षमता के द्वारा इतिहास को वर्तमान में ला खड़ा करते हैं, अपने हर पाठक को उस देश काल का एक अंग होने का सा अनुभव करा देते हैं। 
 
पारिवारिक पृष्ठभूमि

कलम के इस धनी लेखक का जन्म ९ जनवरी १८८९  को, उत्तरप्रदेश के झाँसी ज़िले के मऊरानीपुर में एक कुलीन कायस्थ श्रीवास्तव परिवार में हुआ था। वे पेशे से वकील थे, किंतु उनकी रुचि भारतीय इतिहास और कलाओं में थी। इसी रुचि के कारण उन्होंने भारतीय इतिहास का सूक्ष्मता से अध्ययन किया। यही कारण है, कि उनकी तमाम रचनाओं में कल्पनाएँ इतिहास के तथ्यों के साथ कदमताल करती हुई सी चलती हैं।

जहाँ तक श्री वृंदावनलाल वर्मा के पारिवारिक जीवन का प्रश्न है, उन्हें संतान सुख सहजता से प्राप्त नहीं हुआ। उनकी संतानें जन्म लेते ही अथवा जन्म के कुछ समय पश्चात ही काल कवलित हो जाती थी। ऐसे में तत्समय प्रचलित परंपरा के अनुसार, उन्होंने अपनी पत्नी के भाई के पुत्र,  श्री राम कृष्ण वर्मा को गोद लिया और प्रभु की कृपा ऐसी हुई, कि उसके बाद उनकी संतानें भी जीवित रहने लगीं। किंतु अपनी संतानों के बावजूद भी उन्होंने श्री रामकृष्ण वर्मा को सदैव अपना पुत्र ही समझा और पूरी उम्र उन्हें अपने ज्येष्ठ पुत्र के रूप में मान्यता देते रहे। इन्हीं रामकृष्ण वर्मा की एक पुत्री श्रीमती वंदना खरे मेरी नानी होती हैं। उन्होंने बताया, कि श्री वृंदावनलाल वर्मा, जिन्हें वे बड़े आदर से बब्बाजी कहती हैं,  को लेखन के अलावा संगीत का भी बहुत शौक था। वे खुद भी सितार बजाते थे और बच्चों को भी सितार अथवा कोई भी वाद्ययंत्र बजाने के लिए प्रेरित करते थे। झांसी में एक संगीतज्ञ उस्ताद आदिल खाँ हुआ करते थे, जिनसे वे सितार सीखा करते थे। संगीत के अलावा जो दूसरा शौक उन्हें था, वह था अच्छा खाना खाने का। वे खूब राजसी खाना पसंद करते थे, उनकी खुराक भी बहुत अच्छी थी और १० लीटर दूध अकेले पी लेना उनके लिए कोई खास बड़ी बात नहीं थी।
 
झांसी के सदर स्थित उनके घर में अक्सर साहित्यिक गोष्ठियाँ हुआ करती थीं, जिनमें तत्समय के अन्य साहित्यकार, जैसे श्री मैथिलीशरण गुप्त, उनके भाई श्री रामशरण गुप्त, देशराज गाँधी और श्री रामकृष्ण वर्मा विशेष रूप से भाग लिया करते थे। श्री वृंदावनलाल वर्मा का पेशा वकालत था, और इसलिए झाँसी में निवास करना उनके लिए आवश्यक था, किंतु जब कभी वे किसी उपन्यास की रचना कर रहे होते थे, वे मऊरानीपुर और गरौठा के बीच स्थित अपने ग्राम शामशी चले जाते और कई दिनों तक वहीं प्रकृति की गोद में, ग्रामरम्य वातावरण में साहित्य सृजन किया करते। अपने सभी प्रमुख उपन्यास उन्होंने यहीं रचे और यही वास्तविकता और परिवेश उनके उपन्यासों में दृष्टिगोचर होता है। जब आप अमरबेल पढ़ रहे होते हैं, तो आपके सामने बुंदेलखंड का एक पूरा क्षेत्र जिसमें गाँव, हवेलियाँ, झोपड़ियाँ, खेत, जंगल, डाकू, किसान, सभी कुछ है, सजीवता से आँखों के आगे उपस्थित हो जाता है, मानों आप कोई चलचित्र देख रहे हों, पाठक अनजाने ही तत्समय की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक परिस्थितियों से परिचित हो जाता है,  इन सब से उपजी समस्याएँ और उनके व्यवहारिक समाधानों से भी उसका सामना होता है। उपन्यास इतनी सरल भाषा शैली में लिखे गए हैं, कि पाठक को पढ़ते-पढ़ते लगने लगता है, कि वह भी उसी का एक भाग है और यह सब कुछ उसके आसपास ही घट रहा है। यही तिलिस्म है, श्री वृंदावन लाल वर्मा की लेखनी का। भाषा शैली इतनी सहज सरल और पात्रानुरूप, कि लगता है, कि यह सब वास्तविक रूप में घटा है और लेखक ने ज्यों का त्यों लिख दिया है,  तभी तो यदि आपने  मृगनयनी को अपनी सहेलियों के साथ बात करते उनके उपन्यास में पढ़ा हो, तो फिर आपको क्षेत्र की किसी भी गूजर कन्या को अपनी सहेली के साथ बात करते हुए सुनने पर उसका स्मरण स्वाभाविक रूप से होगा। बुंदेलखंड की समृद्ध परंपरा और संस्कार श्री वृंदावनलाल वर्मा की लेखनी ने अमर कर दिए हैं, जो चिरकाल तक रहेंगे।

नारी चरित्र को प्रधानता

वृंदावनलाल वर्मा के लेखन की एक और विशेषता, जिसका उल्लेख किए बिना उन पर लिखा आलेख अपूर्ण कहा जाएगा, वह है, उनके उपन्यासों में नारी चरित्रों का चयन और वर्णन। पुरुष प्रधान समाज में नारी चरित्र को प्रधान रखते हुए, उपन्यास की रचना और उनका पुरुषों को लजाने वाला चरित्र चित्रण तत्समय की सामाजिक संरचना को देखते हुए अत्यंत साहसिक कार्य प्रतीत होता है। श्री वर्मा ने इतिहास में से झांसी की रानी लक्ष्मीबाई,  विराटा की पद्मिनी,  होलकर वंश की रानी अहिल्याबाई,  गूजरी रानी मृगनयनी  और गौंड रानी दुर्गावती का चयन अपने उपन्यासों की नायिका के रूप में किया और उनकी वीरता और रूप का वर्णन कुछ इस तरह किया, कि ये पात्र उनके उपन्यासों में सजीव हो गए,  इस तरह उन्होंने कई मिथक तोड़ दिए, जैसे कि ऐतिहासिक उपन्यास रुचिपूर्ण नहीं होते और यदि उन्हें रुचिपूर्ण ढंग से लिखा जाए तो इतिहास के साथ न्याय नहीं होता, या फिर कि नायिका प्रधान उपन्यास लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सकते, क्योंकि पाठक वर्ग में पुरुषों की ही प्रधानता है, उस ज़माने में स्त्रियाँ कम पढ़ी लिखी होती थीं, और जो होती भी थीं, वे कार्य की अधिकता के कारण पढ़ने का अवसर नहीं निकाल पाती थीं इत्यादि।
 
मुझे यह जान कर अत्यंत आश्चर्य हुआ, कि एक ऐसा लेखक जिसके उपन्यास और कहानियों की नायिकाएँ साहसी, प्रगतिशील और प्रबुद्ध महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती रहीं, ने स्वयं अपनी ब्याहता पत्नी के जीवित रहते किसी अन्य महिला के साथ रहना स्वीकार किया और उस महिला को अघोषित रूप से पत्नी का दर्जा दिया, उनकी मृत्यु के बाद उनकी वैधानिक पत्नी और इस अन्य संबंध से उत्पन्न वारिसों के मध्य उत्तराधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी गई। झाँसी में तत्समय पदस्थ न्यायाधीश कहते थे, कि इस मुक़दमे के चलते उन्हें इतना दुःख होता था, कि ऐसे महान कलाकार के वारिसान संपति के लिए उनकी इज़्ज़त के साथ इतना अन्याय कर सकते हैं। शायद यह उनके जीवन की पुस्तक का एक अनछुआ पृष्ठ है और किंचित अशोभनीय भी। किंतु इसे हम उनके विराट व्यक्तित्व के सम्मुख बहुत छोटा पाते हैं।  श्री वृंदावनलाल लाल वर्मा ने अपनी आत्मकथा "अपनी कहानी" नामक उपन्यास के रूप में लिखी है,  जिसमें उन्होंने अपने संघर्षमय जीवन का लेखा-जोखा अपने पाठकों के साथ साझा किया है। 
   
बुंदेलखंड की संस्कृति और सभ्यता के चितेरे लेखक वृंदावनलाल वर्मा ने २३  फरवरी सन १९६९  में इस दुनिया से विदा ले ली,  किंतु वे अपने उपन्यासों, कहानियों और कविताओं में आज भी जीवित हैं, अमर हैं। उन्हीं के शब्दों में, 

" पृथ्वी ने क्षितिज की सहायता से नभ का स्पर्श किया। मेघ आया। बूँद गिरी।  भूमि का छोटा सा पर्वत बूँद के सहारे आकाशगंगा की निर्मल धारा को छू गया। प्रकृति और पुरुष, पुष्प और सुगंध , वर्ण और सुवर्ण , नेत्र और ज्योति , आशा और पुरुषार्थ, स्नेह और मृदुलता , मोह और प्रीती , देह नाश्वान है रूपान्तरमयी परन्तु आत्मा अमर। " (गढ़कुंडार)


श्री वृंदावन लाल वर्मा : जीवन परिचय

जन्म 

९ जनवरी १८८९

निधन

२३ फरवरी १९६९ 

जन्मस्थान

मऊरानीपुर, ज़िला झाँसी, उत्तर प्रदेश

पिता 

श्री अयोध्या प्रसाद

शिक्षा

बी. ए. एल. एल. बी. सन १९१६

साहित्यिक रचनाएँ

उपन्यास  

 

  • भुवन विक्रम

  • गढ़ कुंडार

  • झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

  • अहिल्या बाई

  • मृगनयनी

  • अवंतीबाई

  • टूटे कांटे

  • लगन

  • प्रत्यागत

  • कुण्डली चक्र

  • विराटा की पद्‌मिनी

  • महारानी दुर्गावती

नाटक

 

  • मंगलसूत्र

  • राखी की लाज

  • सगुन

  • बांस की फांस

  • फूलों की बोली

  • हंस-मयूर

कथा संग्रह

 

  • दबे पाँब

  • मेढ़क का ब्याह

  • अम्बपुर के अमर वीर

  • ऐतिहासिक कहानियाँ

  • अँगूठी का दान

  • शरणागत

  • कलाकार का दण्ड

  • तोषी

उपाधि व पुरस्कार

  • डी. लिट् सन् १९५८, आगरा विश्वविद्यालय

  • पद्मविभूषण सन् १९६५, भारत सरकार

  • साहित्य वाचस्पति, हिंदी साहित्य सम्मेलन 

  • सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय पुरुस्कार

 

संदर्भ

  • विकिपीडिया : वृंदावनलाल लाल वर्मा
  • कचनार : अभिव्यक्ति-हिंदी.ओ आर जी/आज_सिरहाने/२००८/कचनार.एच टी एम
  • गढ़कुंडार : पृष्ठ ४४०
  • आलेख की कुछ सामग्री पारिवारिक बातचीत और संबंधियों की स्मृति से ली गयी है।
लेखक परिचय

 


अमित खरे 

संयुक्त संचालक, विद्युत नियामक आयोग, भोपाल, मध्य प्रदेश

शिक्षा - विद्युत अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर उपाधि।  

प्रकाशन - विभिन्न ई-पत्रिकाओं एवं समाचारपत्रों में रचनाएँ प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगताओं में विजेता।

विगत दो वर्षों से 'कविता की पाठशाला' समूह की सक्रिय सदस्यता।


मोबाईल - 9406902151

ई-मेल - amit190767@yahoo.co.in

15 comments:

  1. महत्वपूर्ण और पारिवरिक जानकारी

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  2. बहुत खूब, सुंदर आलेख

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  3. कितने मन से लिखा है , अमित जी , आपने । कचनार का उद्धरण बहुत खूबसूरत है।वर्मा जी का और आपका बुंदेलखंड की धरती और संस्कृति से प्यार साफ़ झलकता है।उनके जीवन के अनजाने पक्ष से भी आपने ईमानदारी से अवगत करवाया। इस सुंदर आलेख के लिए बधाई और साधुवाद स्वीकार करें। 💐💐

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  4. निःसंकोच बहुत अच्छा आलेख । इसको पढ़ने पर यह भी ज्ञात होता है कि आपने श्री वृन्दावन लाल वर्मा जी की रचनाएं पढ़ने के बाद ये लेख लिखा है जो अपने आप मे प्रशंसनीय है ।👍

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  5. अमित जी,आज के साहित्यकार वर्मा जी की जानकारी बहुत ही खूबसूरत ढंग से आपने प्रस्तुत की है...हार्दिक बधाई आपको।

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  6. बहुत खूब अमित जी ! वृंदावन लाल वर्मा जी के साहित्यिक और व्यक्तिगत विवरण के अनेक अनछुए पहलू को सार्थक लेख के रूप में व्यक्त करने के लिए ।

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  7. बहुत बहुत बधाई अमित खरे जी । आप की समृध लेखनी से निकला ये आलेख लाल वर्मा जी जैसे महान लेखक से पारिवाराक निकटता के चलते और अधिक रोचक व पठनिय बना है । उन के जीवन के व्यक्तिगत एंव रचनात्मक पहलू बखूबी वर्णित हुये है ।

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  8. प्रमुख ऐतिहासिक कहानीकार, उपन्यास लेखक श्री वृंदावन लाल वर्मा जी का साहित्य संसार बहुत विस्तृत है। उस विस्तृत साहित्य संसार को अमित खरे जी ने बखूबी इस लेख में समेटा है। इस रोचक लेख के लिए अमित जी को बहुत बहुत बधाई।

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  9. वृंदावनलाल जी पर लिखे इस आलेख के लिए अमित जी आपको हार्दिक बधाई

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  10. अमित जी, आपने वृन्दावनलाल वर्मा जी के सभी सशक्त पहलुओं के साथ उन बातों को भी अपने आलेख में जोड़ा है, जिनपर लोग आमतौर पर नहीं लिखते हैं। आपका उनसे क़रीबी रिश्ता होने के कारण इसमें आत्मीयता का जो पुट आया है उससे लेख और भी दिलचस्प हो गया है। महान साहित्यकार को दी गयी आपकी शब्दांजलि बेजोड़ है। आपको इस लेखन के लिए बहुत-बहुत बधाई और शुक्रिया।

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  11. प्रस्तुत लेख में अमित जी ने समग्रता के साथ वृंदावनलाल वर्मा जी के साहित्यिक और व्यक्तिगत जीवन को लिपिबद्ध किया है। ये लेख वास्तव में हमें वृब्दावनलाल जी के लेखन संसार को नज़दीक से जानने का अवसर देता है। एक समृद्ध लेख के लिए अमित जी को बहुत बहुत बधाई।

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  12. आपने आलेख की शुरुआत ही जिन पंक्तियों से की, लगा आलेख छोड़ कर पहले कचनार पढ़ लिया जाये - किसी भी साहित्यकार पर आलेख के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है!

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  13. बहुत बहुत शुभ कामनाएं अमित सर। कोलेज के समय लाइब्रेरी से वृंदावनलालजी को पढने का सौभाग्य मिला । आज आपका लेख पढ़ा, और उसमें भी आपकी व्यक्तत्व शैली ने चार चाँद लगा दिये। हृदय से आभार " साहित्य तिथि वार " समूह जो हमें साहित्य के अग्रणी साहित्यकारों से रूबरू करवा रहे।

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