Friday, July 22, 2022

शिव कुमार बटालवी: की पुछ देओ हाल फ़कीरां दा!

 

तारा टुट्टे तां रात दी हीक ते
इक ज़खम जया बण जाये
फूल टुट्टे तां रो रो तितली
नणनो नीर बहाये
शीशा टुट्टे तां तड़-तड़ करदा
पत्थर टुट्टे अग्ग लाये
पर ए दिल चंदरा जद वी टुटदा
ए दी टुटया भी वाज़ ना आवे!!

पंजाबी भाषा के विख्यात कवि और सबसे कम उम्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार, शिव कुमार 'बटालवी' जी की कविताओं और काव्य-पाठ का कुछ ऐसा अंदाज था कि वे भुलाए नहीं भूलते। आज भी पंजाबी जगत से जुड़े लोग इस हस्ती को 'दर्द का बादशाह', 'विरह का सुल्तान' और 'प्रेम का एक अनमोल कवि' के नाम से स्मरण करते हैं। शिव कुमार 'बटालवी' जी को यह सम्मान १९६५ में भारतीय साहित्य अकादमी ने एक पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित उनके महाकाव्य नाटिका "लूणा" के लिए प्रदान किया था। आज भी "लूणा" को आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है। १९६० में प्रकाशित शिव कुमार बटालवी जी की कविताओं का पहला संकलन "पीड़ां दा परागा" भी काफी चर्चित रहा। उस समय ये मात्र २४ साल के थे। पंजाबी साहित्यकारों का मानना है कि शिव कुमार जी ने आधुनिक पंजाबी किस्सागोई की एक नई शैली की स्थापना की।

शिव कुमार जी ने अपनी सारी कविताएँ, नाटक, गद्य आदि गुरुमुखी में लिखे हैं। उन्हें प्रेम, पीड़ा और मृत्यु का कवि भी कहा जा सकता है। उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों की भावनाओं को महसूस किया और कुछ इस तरह से अपने शब्दों में पिरोया कि आज भी पंजाबी संस्कृति के लोग उनके लिखे शब्दों को अनेक त्योहारों व अवसरों पर गाते-बजाते, सुनते और सुनाते हैं। सिख धर्म के सबसे बड़े गुरु "गुरु नानक" साहब का भी जिक्र शिव कुमार 'बटालवी' जी की कविताओं में मिलता हैं। वे बाबा नानक के लिए कहते हैं,

इस दे सिर दा साईं चलया
एक दी अन्ख दा नूर
एक दे थन विच बिरह रोए
एक दी मांग सिंदूर
एक लई सूँगड़े महल मुरारे
एक लाइं चाक वारे
एक लई हो गये गगन दुरहढे
इक लईं डूब गये तारे
दो हाँ दी आज गोद सुरापी
दोआ ही अज मजबूर

भला कौन बाबा नानक के जीवन की इस सच्चाई को इतनी अनुभूति से बयां कर सकता है। अपनी ज़िंदगी में शिव कुमार जी ने दुनिया को एक सिद्ध बौद्धिक और तजुर्बेकार की नज़र से देखा है और उस पर शिव कुमार जी का कमाल देखिए कि अपने सच को पूरी शिद्दत से शब्दों में गूँथ कर जनता-जनार्दन तक पहुँचा भी दिया हैं। अपनी आवाज़ में एक बार शिव कुमार जी ने कहा था,

बड़े मिल ही जानदें ने सुखा दे साथी
ते दुखां च अपणे भी होनदे पराए
ऐना दोना नालोण ते हनजू ने चंगे
जो खुशी ते आए गमी ते आए

उनकी रचनाओं में निराशा, विरह, प्रेम, पीड़ा, दर्द और मृत्यु की संवेदना प्रबल हैं। और ये कविताएँ कोई उन्हीं की आवाज में सुने तो सुनने वाले के हृदय में शूल से उतरते हैं उनके शब्द। जैसे कि ये जो एक बार उन्होंने लिखा और पढ़ा था एक मुशायरे में,

रोग बनके रह गया है, प्यार तेरे शहर दा, मैं मसीहा वेखिया, बीमार तेरे शहर दा,
ऐदिया गालियाँ मेरी, चढ़दी जवानी खा लई, क्यूँ करा न दोस्ता, सत्कार तेरे शहर दा,
जित्थे मोया बाद भी, कफ़न नहीं होया नसीब, कौन पागल हुण करे, ऐतबार तेरे शहर दा,
ऐथे मेरी लाश तक, नीलाम कर दित्ती गयी, लाथ्या कर्जा न, फिर भी यार तेरे शहर दा

और उनका बहुचर्तित गीत,
की पुछदेओ हाल फ़कीरां दा
साडा नदियों बिछड़े नीरां दा
साडा हंझ दी जूने आयां दा
साडा दिल जल्या दिलगीरां दा
की पुछदेओ हाल फ़कीरां दा

कहते है ऐसे कवि थे शिव कुमार जी कि किसी-किसी रात तो चौराहे पर लैम्प-पोस्ट के नीचे अपने विरह की कविताओं में लीन अकेले ही अपना दर्द गाया करते थे।

शिव कुमार जी का जन्म २३ जुलाई १९३६ को गाँव बड़ा पिंड लोहटिया (पाकिस्तान) में हुआ था। कुछ लोगों का मानना है कि वे ७ अक्टूबर १९३७ के दिन पैदा हुए थे। १९४७ में भारत की आजादी के समय शिव कुमार जी का परिवार विस्थापित होकर भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिले के बटाला में आ गया। यहीं से शिव कुमार जी को "बटालवी" उपनाम मिला। उनका बचपन और किशोरावस्था गाँव के खेत-खलिहानों में बीतीं पर बाद में उनको आगे की पढ़ाई के लिए कादियाँ के एस० एन० कॉलेज भेज दिया गया। उनका मन पढ़ाई में नहीं लगा और कई बार उन्होंने अपने विषय बदले। पंजाब और हिमाचल के संस्थानों में जाकर पढ़ने की कोशिश की पर गाँव की मिट्टी और अपनों से दूर होने का दर्द शिव कुमार जी को बैचैन करता रहा।

इसी बीच उन्हें एक लड़की के प्रेम हुआ। पर उसके परिवार ने उस लड़की का विवाह शिव कुमार से करना स्वीकार नहीं किया। लोगों का मानना है कि यहाँ से कवि शिव कुमार जी का कविता, ग़ज़ल और नज़्म का सफ़र शुरू हुआ। उन्होंने अपने प्रेम, दर्द और विरह की पीड़ा को शब्दों में पिरोना शुरू किया और कई कवि सम्मेलनों और मुशायरों में गाया। उनकी रचनाएँ "मैंनू तेरा शबाब लै बैठा" और "कि पुचहदे हो हाल फकिरां दा", लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गईं। उनकी कविताओं में गाँव से बिछुड़ने की बेचैनी और ज़िंदगी की अनिश्चितता का बेहद गहरा भाव व्यक्त है। अपने जीवन काल में शिव कुमार जी अक्सर दुनिया के रिवाजों से जूझते रहे और पल-पल मृत्यु की पुकार को अपनी करुणामय रचनाओं में शब्द देते रहे। ऐसे ही करुणामय और मार्मिक हृदय को संभालते हुए उन्हें शराब की लत लग गई और बस ३६ साल की उम्र में ही लीवर सिरोसिस (यकृत की बीमारी) घेर लिया। ७ मई १९७३ को शिव कुमार जी ने अपनी ससुराल पठानकोट के किरी मांग्याल में इस दुनिया से विदा ली।

पंजाबी भाषा और साहित्य में शिव कुमार 'बटालवी' जी का नाम उल्लेखनीय है। इनकी अत्यधिक प्रसिद्ध रचनाएँ, पीड़ां दा परागा (दु:खों का दुपट्टा, १९६०), लाजवंती (१९६१), मैनूं विदा करो (मुझे विदा करो, १९६३), लूणा (१९६५), मैं ते मैं (मैं और मैं, १९७०), आरती (१९७१) हैं। उनकी काव्य रचनाओं में दर्द, करुणा, प्रेम, रिश्ते, प्रकृति और विरह की भावनाएँ एकदम कोरी और स्वच्छ भावना से उभर कर आई हैं। एक-एक शब्द चुन-चुनकर सहज सा पिरोया मालूम होता है। आज के प्रख्यात ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह-चित्रा सिंह और सुरिंदर कौर ने उनकी अनेक कविताओं को अपनी आवाज़ देकर घर-घर लोगों तक पहुँचाया है। सूफ़ी शैली के प्रसिद्ध कव्वाल नुसरत फतह अली खान (पाकिस्तान) ने भी शिव कुमार बटालवी की कविता "माई नी माई" को गीत में सँजोया है। भारत के मशहूर गायक महेंद्र कपूर, पंजाबी लोक गायक हंस राज हंस, और आसा सिंह मस्ताना ने २००५ में 'इक कुड़ी जिदा ना मोहब्बत' शीर्षक से एक एल्बम जारी किया। इन सब फनकारों ने 'शिव कुमार बटालवी' को भारतीय साहित्य जगत में और अमर बना दिया।

कुछ साल पहले २००५ में "आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा" पर गीत बनाया गया जो भारत के लोगों को बेहद पसंद आया। शिव कुमार बटालवी की कई कविताओं का प्रयोग हिंदी फिल्मों में होता रहा है। २०१६ में, संगीतकार अमित त्रिवेदी ने फिल्म उड़ता पंजाब के लिए उनकी कविता "एक कुड़ी" पर आधारित एक गीत बनाया। आज के दौर के कवि हों या १९६० के दशक के, ऐसा कोई प्रेम और शृंगाररस का साहित्यकार नहीं जिसने शिव कुमार बटालवी जी को सुना और पढ़ा ना हो। और जब-जब कोई कवि हृदय अपनी बौद्धिकता से प्रेम, विरह और मृत्यु के साथ तर्क-वितर्क करेगा, तब-तब शिव कुमार बटालवी जी के शब्द आपकी रूह को छू के गुज़रेंगे।

शिव कुमार 'बटालवी' : जीवन परिचय

उपनाम

बिरहा दा सुलतान अमृता प्रीतम द्वारा 

जन्म 

२३ जुलाई १९३६, बड़ा पिंड लोहतियाँ (शकरगढ़ तहसील, सियालकोट, पंजाब - पाकिस्तान)

निधन

मई ७, १९७३ (उम्र ३६ वर्ष)। कीर मंग्याल, पठानकोट, भारत

पिता 

श्री कृष्ण गोपाल

माता 

श्रीमती शांति देवी

पत्नी 

अरुणा मांग्याल

संतान 

मेहरबां (बेटा), पूजा (बेटी)

शिक्षा

  • मैट्रिक (पंजाब विश्वविद्यालय)

  • एफएससी कार्यक्रम में नामांकित (बैरिंग यूनियन क्रिश्चियन कॉलेज - बटाला) 

  • कला विभाग में दाखिला - एस एन कॉलेज (क़ादियाँ, जिला गुरदासपुर)

  • सिविल इंजीनियरिंग में नामांकित (हिमाचल प्रदेश, बैजनाथ स्कूल)

कार्य - क्षेत्र

कवि, लेखक, नाटककार, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जन संपर्क अधिकारी

साहित्यिक रचनाएँ

  • पीड़ां दा परागा (दु:खों का दुपट्टा) (१९६०)

  • लाजवंती (१९६१ )

  • आटे दियां चिड़ियां (आटे की गौरैयां) (१९६२ )

  • मैनूं विदा करो (मुझे विदा करो) (१९६३) 

  • लूणा (१९६५) साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

  • मैं ते मैं (मैं और मैं) (१९७०)

  • आरती (१९७१ )

  • बिरहा दा सुल्तान, (शिव कुमार बटालवी की कविताओं का चयन) अमृता प्रीतम द्वारा चयनित, (१९९३ ) साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित 

  • लूणा (अंग्रेजी, बी.एम.भट्टा द्वारा अनुदित, साहित्य अकादमी, (२००५) साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित

  • लविदा (विदाई) का प्रकाशन १९७४ (मरणोपरांत) गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा


संदर्भ


लेखक परिचय

गीता घिलोरिया
शिक्षा : मास्टरस इन कंप्यूटर एप्लिकेशन (MCA)
प्रकाशित : हिंदी चेतना, गर्भनाल, साँझासंसार, साहित्यसुधा, विभोरस्वर, हिंदुस्तान टाइम्स, कॉलेज पत्रिका, केंद्रीय विद्यालय पत्रिका।
कार्य : ड्युक एनर्जी में कार्यरत - शेर्लोट, अमेरिका।

11 comments:

  1. Excellent. मौत का गीत लिखने वाले वटालवी पर बहुत सुन्दर आलेख।

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    1. शुक्रिया, जनाब!

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  2. गीता जी, ज़िन्दगी और मौत को अपनी रचनाओं में बाँधने वाले, खेत-खलिहान की ख़ुशबू में सराबोर रहने वाले और अपने अंदाज़ और आवाज़ से लोगों को फ़ौरन आकर्षित कर लेने वाले हरदिल अज़ीज़ कवि, शिव कुमार 'बटालवी' से आपने अच्छा रूबरू करवाया। आपको इस उल्लेख के लिए बधाई और आभार।

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    1. आभार, प्रगति 💕🙏

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  3. गीता जी , शिव कुमार बटालवी जी पर बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया है आपने। कम उम्र में ही इतने विपुल साहित्य की निधि सौंपने वाले बटालवी जी को आपकी लेखनी के माध्यम से पढ़ा और जाना। इस सारगर्भित लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। 💐💐

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    1. शुक्रिया, आभा जी ❤️

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  4. गीता जी नमस्ते। आपने शिव कुमार बटालवी जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। लेख पर आई टिप्पणियों ने लेख को और विस्तार दिया। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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    1. शुक्रिया, दीपक जी! 💕

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  5. This comment has been removed by the author.

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  6. गीता जी, आपने बटालवी जी पर बहुत सुंदर लेख दिया है, आपका बहुत बहुत आभार 🙏

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  7. गीता जी, शिव कुमार बटालवीजी पर दमदार, शानदार, हृदयग्राही आलेख के लिए आपको धन्यवाद और बधाई।

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