चोर माल ले गए लोटे थाल ले गए
मूँग और मसूर की सारी दाल ले गए
और हम डरे-डरे खाट पर पड़े पड़े
सामने खुले हुए किवाड़ देखते रहे
यह बात है १९६२ की, उन दिनों नीरज जी का एक गीत “कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे” अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। मुरादाबाद के हिंदु कॉलेज में बी.एस.सी. करने वाले एक छात्र को यह गीत सुनकर इस पर हास्य पैरोडी बनाने का विचार आया। इसी गीत की धुन पर कुछ हास्य पंक्तियाँ लिखकर हास्य की दुनिया में अपना पहला क़दम रखने वाले उस छात्र का नाम था सुशील कुमार चड्ढा जो आगे चलकर ‘हुल्लड़ मुरादाबादी’ के नाम से विख्यात हुआ।
सुशील कुमार चड्ढा का जन्म गुजरांवाला पाकिस्तान में २९ मई १९४२ को हुआ। उनके पिताजी सरदारी लाल चड्ढा पूरे शहर में अपनी शायरी के लिए मशहूर थे। भारत–पाकिस्तान बंटवारे के दौरान सुशील कुमार अपने परिवार के साथ मुरादाबाद आ गए और मुरादाबाद में बुध बाज़ार के निकट सबरवाल बिल्डिंग के पीछे एक आवास में किराए पर रहने लगे। कालांतर में स्थिति में सुधार होते ही चड्ढा परिवार ने सेंट मेरी स्कूल के निकट, सिविल लाइन्स में अपना ख़ुद का आवास बना लिया। उनकी पत्नी का नाम कृष्णा चड्ढा था। उनकी दो बेटियाँ सोनिया एवं मनीषा और एक पुत्र नवनीत चड्ढा (हुल्लड़) हुए। सुशील कुमार जी ने के. जी. के. कालेज, मुंबई से बी. एस. सी. और हिन्दी में एम. ए. किया।
सुशील कुमार चड्ढा से हुल्लड़ मुरादाबादी बनने का वाकिया उन्होंने कुछ इस तरह बताया कि मुरादाबाद के पास एक छोटा-सा नगर है चंदौसी। वहाँ के जाने माने गीतकार श्री सुरेंद्र मोहन मिश्र जी के निमंत्रण पर मुझे एक विराट हास्य काव्य सम्मेलन में भाग लेने का सुअवसर मिला। पारिश्रमिक राशि ग्यारह रुपए निर्धारित की गई थी। उस सम्मेलन की अध्यक्षता हास्य के रसावतार श्री गोपाल प्रसाद व्यास कर रहे थे और उस सम्मेलन में हास्य सम्राट श्री काका हाथरसी, डॉ. बरसानेलाल चतुर्वेदी और कवि कुल्हड़ भी उपस्थित थे। इन महारथियों के सामने कविता पाठ करना कठिन कार्य था लेकिन मेरी रचना प्रस्तुति के बाद व्यास जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “बहुत नाम कमाओगे! नारियल समेत दिल्ली आ जाओ! मैं तुम्हें अपना शिष्य बनाना चाहता हूँ।" तब से यह सुशील कुमार चड्ढा ‘हुल्लड़ मुरादाबादी’ बन गया। शुरुआत में उन्होंने वीर रस की कविताएँ भी लिखी लेकिन कुछ समय बाद ही हास्य रचनाओं की ओर उनका रुझान हो गया और उनकी हास्य रचनाओं से कवि मंच गुलजार होने लगे। उनके कवि जीवन को सजाने और संवारने में कवि डॉ. ब्रजेंद्र अवस्थी जी की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
हुल्लड़ साहब ने हर छोटी बात को अपनी रचनाओं का आधार बनाया। उनकी हास्य काव्य रचनाओं को सुनकर श्रोता हँसते- हँसते लोटपोट होने लगते थे। हुल्लड़ जी की दूरदर्शिता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने जो भी हास्य अंदाज़ में लिखा वह आज सटीक साबित होता है। हुल्लड़ जी कहा करते थे..
जिंदगी में मिल गया कुर्सियों का प्यार है
अब तो पाँच साल तक बहार ही बहार है
एक कार्यक्रम में, १९६८ की एक घटना को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें सीहोर (म. प्र.) के एक कवि सम्मेलन का न्योता मिला। वहाँ पहुँचने के पश्चात उन्हें पता चला कि श्रोताओं की अग्रिम पंक्ति में डॉ. शंकर दयाल शर्मा बैठे हैं और काव्य पाठ के दौरान ठहाके लगा कर हँस रहे हैं। जब १९९६ में वह भारत के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने राष्ट्रपति भवन में मेरे प्रथम ग़ज़ल संग्रह 'इतनी ऊँची मत छोडो' का लोकार्पण किया और मुझसे धीरे से कहा, "मुझे वह सीहोर वाला कवि सम्मेलन अभी तक याद है।"
हुल्लड़ जी ने अपनी कविता और ग़ज़लों के माध्यम से लोगों के मन को गुदगुदाया। वह हास्य और व्यंग के ऐसे साहित्यकार रहे हैं, जो व्यंग को मीठी चाशनी में डुबोकर कविता रुपी शजर रोपते और उसकी छाया में हर कोई आनन्दित हो उठता। मुरादाबादी जी की रचनाएँ भारतीय समाज की मन: स्थितियों में प्रवेशकर उसमें ठहरकर, घूम-फिरकर और फ़िक्र से जुडकर अपनी बात कहती हैं। उनकी रचनाओं में राजनीति, धर्म, संस्कृति, समाज, व्यवस्था, और साहित्यिक वातावरण समिल्लित होता है। हुल्लड़ जी के हिसाब से ग़ज़ल के शे’र में शेरियत तब पैदा होती है जब उसमें सही मिसाल (उपमा) मिल जाए। ऐसी उपमा जो कथ्य को उभारकर बाहर ले आए।
हुल्लड़ जी के विद्यार्थी जीवन की सबसे पहली कृति 'ढोलवती एवं पोलवती' स्व. विजयकुमार आर्य जी ने प्रकाशित करवाई जिसके लिए वह हमेशा उनके ऋणी रहे। सन १९७७ में उनका फ़िल्मी दुनिया का संक्षिप्त सफ़र गीतकार के रूप में शुरु हुआ था। संगीतकार कल्याण जी ने उन्हें सबसे पहले गीतकार के रूप में अवसर प्रदान किया। हुल्लड़ जी के बहुत क़रीबी मित्र सुप्रसिध्द निर्माता निर्देशक फ़िल्म अभिनेता श्री मनोज कुमार जी उनको फ़िल्म संतोष में अभिनय का मौका दिया।
भारत पर चीनी हमले के दौरान मुरादाबाद में कई जगह पर सूचना केंद्र क़ायम किए गए थे। जहाँ पर शाम को कुछ मुरादाबाद के शायर और कवि बैठकर चीनी हमले के खिलाफ कुछ नसीहतें और नज्में पढ़ा करते थे। उस समय हुल्लड़ जी भी इस बैठक का हिस्सा हुआ करते थे। हुल्लड़ जी की ग़ज़लें एक ओर व्याकरण और उनके कायदे कानून पर खरी उतरती हैं तो दूसरी ओर व्यंग की दृष्टि से भी बहुत ही सफल और सार्थक हैं। उनकी रचनाएँ व्यंग और उपहास शैली का निर्वाह करते हुए उसे नया आयाम देती हैं। अपनी ग़ज़लों के द्वारा हुल्लड़ जी एक ओर अच्छे ग़ज़लकार में अपना नाम दर्ज करवाने में सफल रहे तो दूसरी ओर एक श्रेष्ठ व्यंगकार के रूप में भी समाज के सामने अपनी छवि बनाने में कामयाब हुए। उनकी ग़ज़लें आज के समाज का यथार्थ चित्रण रही हैं, जो हमारे हृदय को भीतर से उद्वेलित कर हमें अपने आप एवं समाज की विकृतियों को हटाने के प्रेरणा देती हैं।
जब भी कोई साहित्यकार या फनकार इतनी बुलंदी पर पहुँच जाता है तो उसे अपनी पहचान बरकरार रखना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। मगर हुल्लड़ जी में वह बात थी जो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ कभी नीचे की तरफ़ नहीं आया। उनके बाद कई नामी-गिरामी रचनाकार आए और दर्जनों नाम कवि सम्मेलनों में स्थापित हुए पर हुल्लड़ जी की हास्य रचनाओं की जगह कोई नहीं ले पाया। बीच-बीच में कुछ व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण उन्हें अपनी लोकप्रियता का खामियाजा भी भरना पड़ा जिससे उनको क्षति भी पहुँची। परंतु हुल्लड़ जी की सक्रियता और रचनात्मकता जिजीविषा ने तमाम दैहिक, दैनिक और भौतिक संघर्ष झेलते हुए उनको झुकने नहीं दिया। काव्य सम्मेलनों में एक पैरोडी किंग के रूप में अपना सफ़र शुरु करने वाले हुल्लड़ जी देखते ही देखते शिष्ट हास्य के विशिष्ट कवि और धारधार व्यंगकार के रूप में हिन्दी कविता के मंचों पर प्रतिष्ठित हो गए। हुल्लड़ जी की रचनाओं में अंतराष्ट्रीय क्षितिज से लेकर राष्ट्रीय सरोकारों को अपनी तरह से सम्प्रेषित करने वाले रचनाएँ मिल जाएँगी, जिनमें व्यक्ति और समाज के संघर्ष को रेखांकित करने वाले स्वर बहुलता के साथ देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर हुल्लड़ मुरादाबादी जी साहित्य के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके लेखन के मूल में व्यंग्य ही होता था। यद्यपि उन्हें ख्याति हास्य कवि के रूप में ही प्राप्त हुई और वही उनके जीवन की मुख्यधारा बन गई। अनेक मंचो पर सफल होने के बाद एक दबाव कविमन के ऊपर रहता है। इसलिए दुनिया को हँसाने के चक्कर में हुल्लड़ जी की श्रेष्ठ व्यंग्यात्मक प्रतिभा कभी-कभी छिपकर रह जाती थी। हालाँकि इससे यह फायदा हुआ कि हिन्दी जगत को हास्यरस के प्रस्तुतीकरण की एक अनूठी शैली मिल गई लेकिन नुक़सान यह हुआ कि हुल्लड़ मुरादाबादी की व्यंग्यात्मक चिंतन की प्रतिभा पूर्ण रूप से उभरने का अवसर तलाशती रही।
हुल्लड़ जी ने नेताओं की कथनी और करनी के दोहरेपन को अपनी रचनाओं में अभिव्यक्त किया। उनके शब्द चयन की विशेषता यह रही कि रचना को समझने में और उसके तथ्य तक पहुँचने में जरा-सी भी देर नहीं लगती। जैसे..
दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटों के लिए
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेड़िया हो जाएगा
धोती-कुर्ता को व्यंग में प्रयोग करने के बाद जो अर्थ की तरंग उत्पन्न हुई है, वह अद्भुत है।
धोती कुर्ता तो भाषण का चोला है
घर पर हैं पतलून हमारे नेता जी
किसी बात पर इनसे पंगा मत लेना
रखते हैं नाखून हमारे नेता जी
हुल्लड़ जी ने सम्मान आदि की औपचारिकताओं को अनेक दशकों पहले पहचान लिया था। अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए झुकना उन्हें क़तई मंजूर नहीं था इसलिए वह लिखते हैं:
मिल रहा था भीख में सिक्का मुझे सम्मान का
मैं नहीं तैयार था झुककर उठाने के लिए
अत्यंत शांत और सरल स्वभाव वाले हुल्लड़ जी ने कभी किसी से दुर्व्यवहार नहीं किया। इतनी उँचाई पर पहुँचने पर भी अंहकार को कभी अपने भीतर आने नहीं दिया। संसार में सब कुछ नाशवान है, इस गहन सत्य को जानते हुए वह कहते हैं:
नाम वाले नाज़ मत कर, देख सूरज की तरफ
यह सवेरे को उगेगा, शाम को ढल जायेगा
बहुमुखी प्रतिभा के धनी हुल्लड़ मुरादाबादी लंबे वक़्त तक बीमार रहे। वह लगभग छह साल तक डायबिटीज और थायराइड सम्बंधित दिक्कतों से पीड़ित थे। आखिरकार ७२ वर्ष की आयु में १२ फरवरी २०१४ शनिवार शाम को करीब चार बजे अपने मुंबई स्थित आवास में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। निश्चित ही चड्ढा परिवार को अपने इस हास्य प्रकाश ग्रह पर अभिमान होगा, जिसने मुश्किल दौर से गुज़रते हुए लोगों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरी और गुदगुदाते अंदाज़ से हँसना सिखाया। अंत में उनकी लेखकीय क्षमता को प्रणाम करते हुए कुछ पंक्तियाँ:
कहने की शैली रही, हुल्लड़ जी की खास
पहुँचा कब है दूसरा, अब तक उनके पास
अब तक उनके पास, ग़ज़ल का रूप सुहाना
चिंतन–राशि सुषुप्त, हास्य जाना-पहचाना
कहते रवि कविराय, हुई मुंबई रहने की
शहर मुरादाबाद, कला चमकी कहने की
संदर्भ:
कविता कोश
भारत दर्शन
लेखक परिचय
सूर्यकांत सुतार 'सूर्या' साहित्य से बरसों से जुडे हैं। अनके समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में उनके लेख, कविता, गजल, कहानियाँ आदि प्रकाशित हो चुकी हैं।
चलभाष: +२५५ ७१२ ४९१ ७७७
ईमेल: surya.4675@gmail.com
सुविचारित लेख में सहज ही स्पंदन।हार्दिक अभिनंदन।
ReplyDeleteसूर्या जी नमस्ते। हुल्लड़ मुरादाबादी जी पर आपका लेख अच्छा है। आपने लेख में उनके बढ़िया दोहे, शे'र उदाहरण स्वरूप दिए। लेख में उनके जीवन एवं साहित्य की रोचक जानकारी मिली। आपको एक बढ़िया लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसूर्यकांत जी, हुल्लड़ मुरादाबादी पर बहुत बढ़िया लिखा है। हार्दिक बधाई 👌💐
ReplyDeleteव्यंग्य और हास्य पैरोडी के नामचीन कवि सुशील चड्ढा जी के बारे में इतनी जानकारी पहली बार मिली। रोचक और सुंदर आलेख के लिए बधाई हो सर। नमस्कार
ReplyDeleteअच्छा आलेख।
ReplyDeleteमित्रवत मुझे भी उनसे परिचित होने का सौभाग्य प्राप्त था. लेख जानकारी भरा है तथा रोचक भी....
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