' दीक्षा ' उपन्यास में विश्वामित्र जी लक्ष्मण को कथा का अर्थ बताते हुए कहते हैं, " जब आख्याता ईश्वर के समान सर्वज्ञ होकर तथ्यों और पात्रों के मन में जा समाता है, वह सब कुछ जानता है। वह तथ्यों और पात्रों के आरपार देख सकता है। पारदर्शी स्वच्छ जल के समान जब उसकी सूचनाओं में कोई अभाव नहीं रहता, कुछ छूटता नहीं, वह सारी रिक्तियाँ अपनी कल्पना और अनुभूति से भर देता है, तब वह कथा होती है।"
नरेंद्र कोहली, ऐसे ही मौलिक एवं सार्थक कथाकार हैं। हिंदी साहित्य में पौराणिक आख्यानों को एक नई दृष्टि प्रदान कर महाकाव्यात्मक उपन्यासों की रचना करने वाले मूर्धन्य रचनाकार के रूप में वे अपनी कृतियों से नई पीढ़ी को एक सकारात्मक सोच प्रदान करने में सक्षम रहे।
६ जनवरी १९४० को जन्मे सांस्कृतिक राष्ट्रवादी साहित्यकार नरेंद्र कोहली ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं…यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी यथा संस्मरण, निबंध, पत्र और आलोचना में अपनी लेखनी का चमत्कार दिखाया और शताधिक श्रेष्ठ ग्रंथों का सृजन किया। अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने भारतीय जीवन-शैली एवं दर्शन का सम्यक परिचय करवाया। जीवन में नैतिक मूल्यों की उत्कृष्टता को प्रतिपादित करते हुए मानवीय मूल्यों का चित्रण उनके साहित्य सृजन की विशिष्टता रही। जनवरी, २०१७ में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
बाल्यकाल से ही लेखन के प्रति उनकी अभिरुचि रही। उन्होंने अपनी पहली कहानी छठी कक्षा में, कक्षा पत्रिका के लिए लिखी। फिर तो रचना यात्रा का यह क्रम चल ही पड़ा। सन् १९६० से उनकी रचनाओं का नियमित रूप से प्रकाशन प्रारंभ हो गया। नरेंद्र कोहली जी ने साहित्य की हर विधा को स्पर्श कर उसे अपने मौलिक चिंतन व दर्शन से सार्थकता प्रदान की, जिसने क्रमशः उन्हें एक उत्कृष्ट कहानीकार, नाटककार, व्यंग्यकार और उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर दिया। नाटक हों या कथा साहित्य उन्होंने सामाजिक विडंबनाओं को केंद्र में रखा। प्रयोगधर्मिता व प्रखरता उनके रचना सामर्थ्य की पहचान है। अपने समय के कटु यथार्थ को वे धारदार व्यंग्य द्वारा प्रस्तुत करते हैं।
किसी भी लेखक का अपने समय और समाज से बहुत गहरा नाता होता है, जिसके विकास व सांस्कृतिक पुनरुद्धार के लिए वह अपने अतीत से संबंध खोजता है और उन संबंधों को पुनःनिर्मित कर उनका सकारात्मक असर, वह अपने पाठकों पर छोड़ना चाहता है। यही दृष्टि कोहली जी की भी थी। इसीलिए उन्होंने अपने पौराणिक पात्रों में मानवभूत संस्कार और प्रश्नों की सृष्टि की, तथा उनके माध्यम से व्यक्ति और व्यवस्था के संबंध पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हुए उसे नए सिरे से परिभाषित करने का ईमानदार प्रयास किया। उनके रचना-कर्म की यही विशिष्टता उन्हें अन्य समकालीन लेखकों से भिन्न धरातल पर प्रतिष्ठित करती है।
पौराणिक कथाओं को आधुनिकता के समसामयिक स्वर प्रदान करने वाले नरेंद्र कोहली ने अपनी साहित्य साधना से रामकथा के माध्यम से भारतीयता की जड़ों को सींचने का बीड़ा उठाया और समकालीन परिदृश्य में संपूर्ण राम कथा को चार खंडों में प्रस्तुत कर मानवीयता, प्रगतिशीलता, आधुनिक परिप्रेक्ष्य तथा तर्कक्षमता का परिचय दिया। उनके इस प्रयास ने हिंदी उपन्यास धारा की दिशा परिवर्तित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। पौराणिकता व बौद्धिकता के इस समन्वय ने युवाओं के मन में उत्पन्न शंकाओं के निराकरण द्वारा उन्हें नए सिरे से हिंदी साहित्य से जोड़कर साहित्य तथा संस्कृति के विकास एवं संवर्धन में सक्रिय योगदान दिया। प्रेमचंद के बाद नरेंद्र कोहली सबसे अधिक पढ़े जाने वाले हिंदी लेखक हैं।
राम कथा के उपरांत कृष्ण कथा तथा महाभारत की आधार भूमि पर रचित 'महासमर' का सृजन नरेंद्र कोहली की तार्किक पृष्ठभूमि पर तैयार साहित्य रचना कौशल का अद्भुत सम्मिश्रण रहा। तर्क और आस्था के बीच का सामंजस्य इनकी रचनाओं का विशिष्ट कलेवर बना, व परंपरा और आधुनिकता के मध्य एक सेतु बनकर उभरा। कालजयी कथाकार कोहली जी के कथात्मक साहित्य का दर्शन और चिंतन व्यक्त हुआ भारतीय पुनर्जागरण के सबसे सशक्त प्रतीक स्वामी विवेकानंद पर आधारित उनके उपन्यास 'तोड़ो कारा तोड़ो' में। इस उपन्यास के द्वारा उन्होंने मात्र विवेकानंद जी के व्यक्तित्व को ही नहीं, वरन् उनके संपूर्ण जीवन दर्शन को, भारतीयता की मान्यताओं को, विश्वबंधुत्व के सांस्कृतिक चिंतन को जीवंत कर दिया।
नरेंद्र कोहली जी का वैशिष्ट्य रहा, कि वे अपने उपन्यासों के द्वारा बिना उपदेशात्मक हुए जीवन मूल्य पिरोते रहे। उनके पात्र मात्र पुस्तकों के पन्नों में बंद सीमित परिधि में प्रतिबद्ध नहीं, बल्कि प्रगतिशील, विकसित चरित्र हैं जो पाठकों को बौद्धिक रूप से उद्वेलित कर उनमें प्रश्न करने का सामर्थ्य उत्पन्न करते हैं। हिंदी साहित्य में अपनी परंपरा व संस्कृति की विराट पृष्ठभूमि पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यासों की रचना द्वारा उन्होंने केवल पाठकों को पढ़ने का संस्कार ही नहीं दिया बल्कि उनके माध्यम से लगभग एक अभियान की तरह अपनी भाषा, विचारों और धरोहर को सहेजने का श्रेय भी कोहली जी को ही जाता है।
हिंदी भाषा को उसका सम्मान दिलाने के लिए कृतसंकल्प नरेंद्र कोहली जी से हर वर्ष स्नेह भारती के वार्षिक सम्मान समारोह में भेंट होती थी, जहाँ कोहली जी न्यासी थे। साल दर साल मुझे कर्मठ शिक्षिका का पुरस्कार उन्हीं के हाथों प्राप्त होता रहा। युवा पीढ़ी में हिंदी को लेकर उनकी चिंता अक्सर उनकी बातों में झलकती। एक बार मेरी बेटी कृति से पूछा था उन्होंने कि माँ से लिखने का गुण लिया तुमने? कृति ने बताया कि वह अंग्रेज़ी में कविता लिखती है। उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा था कि "जिस भाषा में भी लिखो बेटा, उसकी मर्यादा और गुणधर्मिता की गरिमा रखना।" भाषा के प्रति नरेंद्र कोहली जी के ये संस्कार उनके लेखन को निःसंदेह एक विशिष्ट आलोक देते रहे।
एक और अनुभव बताया था कोहली जी ने। बैंक से पैसे निकालने के लिए चैक में उनके लिखे 'दस सहस्र मात्र' को बैंक कर्मियों ने नकार दिया था किंतु नरेंद्र कोहली अड़े रहे कि मैं शुद्ध हिंदी में ही चेक भरूँगा। हिंदी के प्रति सम्मान की भावना के तहत बैंक प्रबंधक से अपनी बात मनवा ही ली उन्होंने।
१७ अप्रैल २०२१ को कोरोना की निष्ठुरता के कारण उनका देहावसान हो गया। मगर सत्य है कि लेखक कभी मिटते नहीं, अपनी कृतियों के माध्यम से सदा अमर रहते हैं। कोहली जी भी भले ही हमारे बीच नहीं रहे, मगर उनके भाव और विचार उनके पात्रों में स्पंदित हैं।
नरेंद्र कोहली : जीवन परिचय |
जन्म | ६ जनवरी १९४० |
निधन | १७ अप्रैल २०२१ |
पत्नी | डॉ॰ मधुरिमा कोहली |
शिक्षा | हिन्दी साहित्य में पीएचडी |
साहित्यिक रचनाएँ |
उपन्यास |
क्षमा करना जीजी पुनरारम्भ आतंक साथ सहा गया दुःख जंगल की कहानी अभ्दुदय
| अभिज्ञान महासमर तोड़ो कारा तोड़ो आत्मंदान मेरा अपना संसार
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कहानी |
परिणति कहानी का अभाव दृष्टिदेश में एकाएक नमक का क़ैदी
| निचले फ़्लैट में संचित भूख शटल
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व्यंग्य |
आत्मा की पवित्रता एक और लाल तिकोन पाँच ऐब्सर्ड उपन्यास जगाने का अपराध
| आश्रितों का विद्रोह आधुनिक लड़की की पीड़ा त्रासदियाँ परेशानियाँ
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नाटक | शम्बूक की हत्या, हत्यारे निर्णय रुका हुआ गारे की दीवार
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अन्य |
| माज़रा क्या है? जहाँ है धर्म वहीं है जय
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पुरस्कार एवं सम्मान |
राज्य साहित्य पुरस्कार १९७५-७६ (साथ सहा गया दुख) शिक्षा विभाग, उत्तरप्रदेश शासन, लखनऊ। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार १९७७-७८ (मेरा अपना संसार) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ। इलाहाबाद नाट्य संघ पुरस्कार १९७८ (शंबूक की हत्या) इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद। उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार १९७९-८० (संघर्ष की ओर) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ। मानस संगम साहित्य पुरस्कार १९७८ (समग्र रामकथा) मानस संगम, कानपुर। श्री हनुमान मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान विद्यावृत्ति १९८२ (समग्र रामकथा) श्रीहनुमान मंदिर साहित्य अनुसंधान संस्थान, कलकत्ता। साहित्य सम्मान १९८५-८६ (समग्र साहित्य) हिंदी अकादमी, दिल्ली। साहित्यिक कृति पुरस्कार १९८७-८८ (महासमर-1, बंधन) हिंदी अकादमी, दिल्ली। डॉ. कामिल बुल्के पुरस्कार १९८९-९० (समग्र साहित्य), राजभाषा विभाग, बिहार सरकार , पटना। चकल्लस पुरस्कार १९९१ (समग्र व्यंग्य साहित्य) चकल्लस पुरस्कार ट्रस्ट,८१सुनीता, कफ परेड, मुंबई। अट्टहास शिखर सम्मान १९९४ (समग्र व्यंग्य साहित्य) माध्यम साहित्यिक संस्थान, लखनऊ। शलाका सम्मान १९९५-९६(समग्र साहित्य) हिन्दी अकादमी दिल्ली। साहित्य भूषण -१९९८ (समग्र साहित्य) उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ। व्यास सम्मान – २०१२ (न भूतो न भविष्यति) पद्मश्री – २०१७, भारत सरकार
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संदर्भ
लेखक परिचय
विनीता काम्बीरीशिक्षा निदेशालय, दिल्ली प्रशासन में हिंदी प्रवक्ता हैं तथा आकाशवाणी दिल्ली के एफ. एम. रेनबो चैनल में हिंदी प्रस्तोता हैं। आपकी कर्मठता और हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण भाव के कारण अनेक सम्मान व पुरस्कार आपको प्रदत्त किए गए हैं जिनमें यूएन द्वारा सहस्राब्दी हिंदी शिक्षक सम्मान, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार द्वारा राज्य शिक्षक सम्मान प्रमुख हैं। मिनिएचर-पेंटिंग करने, कहानियाँ और कविताएँ लिखने में रुचि है।
ईमेल: vinitakambiri@gmail.com
पौराणिक कथाओं को आधुनिक रूप में व्यवहारिक बनाने का जो प्रयास आपने किया वह अति सराहनीय है आपसे प्रेरित अमित इत्यादि ने प्रथा आगे बढ़ाई पर जो पकड़ आपकी थी वह एक रूपता नहीं मिली। मैं भी प्रयत्नशील हूँ आप ऊपर से बैठ आशीर्वाद दीजिये।
ReplyDeleteबहुत आभार।
Deleteबहुत सुंदर, सारगर्भित एवं सार्थक आलेख,, आदरणीय स्मृति शेष डा नरेंद्र कोहली के सृजन को जितनी बार पढ़ा जाए,उतने ही अर्थ गाम्भीर्य मिलते हैं, शत-शत प्रणाम एवं नमन 🙏
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार पद्मा जी।
Deleteनरेंद्र कोहली तो जन जन के लेखक रहे।
नरेन्द्र कोहली से एक पाठक के रूप में मेरा परिचय कक्षा 9 में हुआ। जब मैँ दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी का सदस्य था। रोचकता और जुड़ाव के कारण उनकी लेखनी ने प्रभावित किया। आज आपका लेख पढ़ उनकी स्मृति ताज़ा हो ताज़ा जो गई। उन पर आपकी साहित्यिक समीक्षा हवा के ताजा झोखे की तरह है। उनकी स्मृति को रचनात्मक माध्यम से याद करने पर साधुवाद
ReplyDeleteसुंदर लेख है , विनीता जी।आपने कोहली जी की सृजनात्मक यात्रा का बड़ा अच्छा प्रस्तुतीकरण किया है ।उन्हें और अधिक पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है।उनकी व्यंग्य रचनाएँ तो सर्वप्रिय हैं ही।आपको बधाई।💐
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद हरप्रीत जी।
Delete'साहित्यकार तिथिवार' ने निःसंदेह लेखकों को बहुत करीब से जानने का सुअवसर दिया है।
संपूर्ण टीम के प्रयासों को मैं आपके माध्यम से बधाई देना चाहती हूँ।
PLY
ReplyDeleteUnknownJanuary 6, 2022 at 9:11 AM
नरेन्द्र कोहली से एक पाठक के रूप में मेरा परिचय कक्षा 9 में हुआ। जब मैँ दिल्ली पब्लिक लाईब्रेरी का सदस्य था। रोचकता और जुड़ाव के कारण उनकी लेखनी ने प्रभावित किया। आज आपका लेख पढ़ उनकी स्मृति ताज़ा हो ताज़ा जो गई। उन पर आपकी साहित्यिक समीक्षा हवा के ताजा झोखे की तरह है। उनकी स्मृति को रचनात्मक माध्यम से याद करने पर साधुवाद
आपका बहुत आभार।
Deleteलेखन की सार्थकता ही इसी में है कि पाठक उसमें अपने भावों का समाहन खोज पाए।
कोहली सर से मेरा परिचय अगस्त 1975 को मेरी हिंदी की कक्षा में हुआ था। उसके बाद हज़ारो बार उनसे मिलना हुआ, मैं उनके परिवार का एक सदस्य ही हो गया हूँ। वे मेरे जीवन के हर सुख-दुःख में सम्मिलित होते थे। उन्होंने मेरे प्रथम लघुकथा संकलन 'फिर मिलेंगे' की भूमिका लिख के मुझे अपने आशीष से अनुगृहीत किया था। आज वे भले ही सदेह मेरे साथ न हों, उनका स्नेहिल आशीष सदैव मेरे साथ है।
ReplyDeleteविनीता जी, आपने बड़ी कुशलता से उनका तथा उनके साहित्य का परिचय पस्तुत किया है। 🙏
~सदानंद कवीश्वर
बहुत आभार आपका।
Deleteआपके शब्द निश्चित तौर पर उत्साह बढ़ाने में सक्षम हैं।
धन्य है आपकी लेखनी और धन्य हैं पद्मश्री सम्मानित स्व श्री नरेंद्र कोहली द्वारा रचा गया साहित्य । अति सारगर्भित और प्रेरणाप्रद लेख । विनीता जी आपका बहुत धन्यवाद आपने अपनी लेखनी से कोहली जी का इतना सजीव और सटीक चित्रण किया है कि उनको पढ़ने और जानने के लिए और अधिक प्रेरित हुई हूं। हिंदी , हिंदी के प्रति प्रेम और हिंदी प्रेमियों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हो , ऐसी मेरी हार्दिक शुभकामना है। कोहली जी जन्म दिवस पर आपका ये लेख एक बहुमूल्य उपहार के समान है । जन्म दिवस के शुभ अवसर पर स्व. कोहली जी को सादर नमन ।
ReplyDeleteविनीता जी को बहुत बहुत साधुवाद।
–निशिलता
आपका आभार निशिलता जी। आपके उत्साहवर्द्धन करते शब्द अमूल्य थाती हैं मेरे लिए।
Deleteआद. विनीता काम्बीरी जी के आलेख ने आज फिर श्रद्धेय श्री नरेंद्र कोहली जी का स्मरण करा दिया। हिंदी साहित्य को काव्यात्मक स्वरूप से उपन्यासों की रचना करनेवाले पद्मश्री डॉ कोहली जी को नमन।🙏
ReplyDeleteउनके द्वारा लिखित 'लंदन का कोट' औऱ 'अपहरण' व्यंग रचना मेरी पसंदीदा रचना रही हैं। आदरणीय प्रेमचंद के बाद उनकी ही शब्द शैली हिंदी भाषा को साहित्य में संस्कार और गुणधर्मिता जैसी विशिष्ट आलोकता देती रहीं हैं। विनिता जी ने उनके सकारात्मक साहित्य का बखूबी प्रस्तुतिकरण किया हैं। उनका बहुत बहुत आभार और अग्रिम लेखन के लिए ढ़ेर सारी शुभकामनाएं।
विनीता जी, समाज में नवचेतना लाने का अद्भुत काम करने वाले महान लेखक को आपने बेहतरीन शब्दांजलि दी है। आपने उनके कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर सुन्दर प्रकाश डाला है। हिंदी साहित्य के प्रति तत्कालीन नयी पीढ़ी में दिलचस्पी जगाने वाले नरेंद्र कोहली जी को नमन और आपको इस लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई और धन्यवाद।
ReplyDeleteनरेंद्र कोहली जी पर बहुत सार्थक और सारगर्भित आलेख लिखा है विनीता जी ने।
ReplyDeleteकोहली जी का भाषा के प्रति प्रेम और पौराणिक कथाओं के माध्यम से युवा पीढ़ी को मानवीय मूल्यों से जोड़ने का प्रयास बहुत सशक्त व संदर्भित था।
ऐसे कलम के धनी लेखक को शत् शत् नमन, और विनीता जी को बधाई।
अच्छी प्रस्तुति , नरेंद्र कोहली को कभी पढ़ा तो नहीं परंतु अब कोई एक कहानी पढ़ूँगा।
ReplyDeleteस्मृतिशेष नरेंद्र कोहली जी की सृजनात्मक यात्रा से परिचित कराता अत्युत्तम सार्थक और सारगर्भित लेख के लिए विनीता जी का अनेकानेक आभार। विनीता जी को बहुत बहुत बधाई भी।
ReplyDeleteमहान साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी को सुनना एवं पढ़ना हमेशा ही सुखद रहा। इसी क्रम में नरेंद्र कोहली जी को समर्पित विनीता जी के इस लेख को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। विनीता जी को लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपद्मश्री नरेन्द्र कोहली जी ने रामकथा को आधुनिक संदर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा और लिखा है, यही कारण है कि वे एक अलग तरह के साहित्यकार के श्रेणी में आते हैं. रामकथा लेखन के संदर्भ में तो वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास के बाद महत्वपूर्ण कार्य कोहली जी ने ही किया है. वाल्मीकि ने संस्कृत और गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी में रामकथा लिखी लेकिन हिंदी में यह अभाव खल रहा था. हिंदी में रामकथा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए यथार्थ के धरातल के अनुरूप कालजयी कृति लिखकर उन्होंने यह कमी पूरी करते हुए वाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास की श्रेणी में अपना स्थान बनाया है. उनकी लेखनी को नमन.
ReplyDeleteविनीता काम्बीरी ने नरेंद्र कोहली जी के विराट लेखकीय व्यक्तित्व को लेख में समाहित करने का सफल प्रयास किया है. दिल्ली के शिक्षा निदेशालय के अन्तर्गत प्रवक्ता के रूप में कार्यरत विनीता काम्बीरी जी का यह महत्वपूर्ण लेख है, इस हेतु उन्हें ढेर सारी बधाइयाँ भी और शुभकामनाएँ भी.
-डा० जगदीश व्योम
प्रिय विनीता हमेशा की तरह दो बार पढ़ा यह लेख, और लगा कि तुमने लगभग सभी महत्वपूर्ण बातें सुन्दर प्रवाहमान तरीके से उतार लीं लेख में। कितना अद्भुत है नरेन्द्र जी का रेंज जो आसानी से पुराकथा से बालकथा और व्यंग में सहज प्रवेश कर जाता है! उनका युवाओं को हिन्दी साहित्य से पुन: जोड़ने का बौद्धिक उपक्रम भी उतना ही सहज रहा होगा क्योंकि करीब ३० साल उन्होंने कॉलेज में पढ़ाया भी है।तुम्हारे लेख को पढ़ कर समृद्ध हुई! शुक्रिया 🙏🏻
ReplyDeleteआशा है आज शाम के कार्यक्रम में जुड़ोगी!
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