Monday, February 28, 2022

पण्डित नरेंद्र शर्मा : "ज्योति कलश"


उत्तर भारत खुर्जा, ज़िला बुलंदशहर के जहांगीरपुर ग्राम के पटवारी पंडित पूर्णलाल जी कर्तव्यनिष्ठ एवं सात्विक विचारों वाले सद्गृहस्थ थे। धर्मपत्नी गंगा देवी कुलीन ब्राह्मणी थीं। १९१३ की २८ फरवरी के शुभ दिन हवेलीस्वामी पाड़ामें पूर्णलाल जी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। शिशु का नाम रखा गया, नरेंद्र !  ‘नरेंद्रनाम उनके किसी रिश्तेदार ने सुझाया जो कवि रविंद्र के प्रशंसक थे। 

नन्हें बालक में जन्मजात जिज्ञासा का गुण था। एक बार माटी के जल से भरे बड़े हांडे में, चंद्र की छाया पड़ती देख, बालक नरेंद्र ने हाथ बढ़ाया और उस हांडे में फँस गए। ताऊ जी ने बालक का शरीर सीधा किया और ऊपर खींच कर शिशु को जीवन दान दिया। चन्द्रकला के संग खेलता हुआ बालक परिजनों के लाड-प्यार से दिनोंदिन बढ़ने लगा। 

चार वर्ष की अल्पायु में बालक नरेंद्र ने अपने पूज्य पिता पूर्णलाल जी को खो दिया। भारतीय संयुक्त कुटुंब रहते हुए, बड़े  ताऊजी ने बच्चे का  पालन पोषण अपने जिम्मे ले लिया, तथा घर पर बालक की शिक्षा आरम्भ की। गंगा स्वरूपा माँ गंगा देवी ने अवश्य अपार कष्ट उठाया होगा, किन्तु बालक का विकास अवरुद्ध नहीं हुआ। ११ वर्ष की आयु में बालक नरेंद्र को अपनी विधवा बुआजी के घर भेज दिया गया। 

नरेंद्र जब युवा हो रहे थे उस वक्त हमारा भारतवर्ष पराधीन था। आर्य समाज और स्वराज्य प्राप्ति के प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन का स्वरूप लिए चरम पर थे। नरेंद्र ने बचपन में ही 'सत्यार्थ प्रकाश' पुस्तक आत्मसात कर ली थी, जिसने उनकी सामजिक और राष्ट्रीय चेतना का विकास किया। एक दिन अपने गाँव के कुछ युवकों के साथ वे हाथ में झंडा उठाये, साहस दिखलाते, नदी पर बने पुल को पार करते हुए पुलिस चौकी तक चले गए थे!

 

डा. हरिवंश राय बच्चन जी, आ. सुमित्रा नंदन पंत जी के साथ युवा कवि नरेंद्र शर्मा
(इलाहाबाद - कवि त्रयी)
प्रारम्भिक पाठशाला में, अत्यंत कुशाग्र-बुद्धि नरेंद्र, अपने अध्यापकों के चहेते थे। हाई स्कूल में पहुँचे तब आगे की शिक्षा खुर्जा में हुई। तदपश्चात उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य विषय से  स्नातकोत्तर किया। इलाहाबाद में छायावादी महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी से परिचय हुआ। निराला जी के आशीर्वाद प्राप्त हुए। महीयसी महादेवी जी के वे कृपा पात्र बने। विविध साहित्यिक गतिविधियों से जुड़े तथा छात्रावस्था में ही उदयीमान कवि नरेंद्र शर्मा की काव्य पुस्तकें प्रकाशित हो गयीं। 

चार मित्र घनिष्ठ मित्रता में बँधे- वीरेश्वर सिंह, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह,   नरेन्द्र शर्मा। नरेंद्र जी ने अपने छात्र जीवन के मित्र, शमशेर बहादुर सिंह के लिये 'आलोचना' पत्रिका के अंक में लिखा:

बोडिंग हॉउस में शमशेर का कमरा बड़ी सड़क की ओर खुलता था। जाड़ों की रातों में सड़क के सहारे सोते हुए बेसहारा किसी गरीब को शमशेर ने कभी अपना गरम कोट दे डाला, तो कभी अपना कम्बल! किसी अन्य छात्र की फीस भरने के लिए, शमशेर ने स्वयं को परीक्षा देने के अवसर से वंचित किया है, यह भी सत्य है!

युवा कवि नरेंद्र शर्मा की आरंभिक कविताएँ हिंदी साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिकाओंसरस्वतीतथा ‘चाँदमें छपीं। १९३४ में नरेंद्र शर्मा, मदन मोहन मालवीय जी द्वारा आरम्भ की गई पत्रिकाअभ्युदयके उप-संपादक बने। उन्होंने प्रयाग के दैनिकभारतके संपादकीय विभाग में भी काम किया। 

१९३३ में उनकी पहली कहानी, 'भारत' में प्रकाशित हुई। १९३४ में उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त जी की काव्य कृति 'यशोधरा' की समीक्षा लिखी। कालांतर में उन्होंने पंत जी कीरूपाभपत्रिका में भी कार्यभार सम्भाला। 

परम . श्री मैथिलीशरण गुप्त जी के साथ पं. नरेंद्र शर्मा

 इलाहाबाद में उन्होंने यह कविता लिखी: 

 “यह जीवन चंचल छाया है,
 बदला करता प्रतिपल करवट,
 मेरे प्रयाग की छाया में पर,
 अब तक जीवित अक्षयवट!”

 १९३८ में स्वाधीनता संग्राम   देश प्रेम से भरा नरेन्द्र जी के गीतों का संग्रहप्रभात-फेरी आया। एक काव्य पंक्ति  भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को अत्यंत प्रिय थी जो उन्होंने अपने संस्मरण में लिखी:

'आओ हथकड़ियां तड़का दूँ, जागो रे नतशिर बंदी!

उसी कालखंड की एक और कविता अदम्य साहस के साथ आह्वान करते हुए अपने भारतीय बंधु-बांधवों से कहती है:

“कुछ भी बन, बस कायर मत बन,
ठोकर मार पटक मत माथा,
तेरी राह रोकते पाहन।
कुछ भी बन, बस कायर मत बन!“


वे १९३८ से १९४०अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें, हिन्दी अधिकारी के पद पर, आनंद भवन इलाहाबाद . प्र. में कार्यरत रहे।


पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के साथ नरेंद्र शर्मा जी

 १९३९ में साहित्य प्रेमियों से उनके काव्य संकलन प्रवासी के गीत’ को अत्यधिक सराहना मिली एवं कवि नरेंद्र शर्मा लिखित सभी काव्य पुस्तकों में यह सर्वाधिक लोकप्रिय हुई। संग्रह की एक कविता,आज के बिछुड़े जाने कब मिलेंगे सहृदय पाठकों के मन को उर्मिल तरंगों से उद्वेलित करने में सक्षम हुई। यह विरह गीत कालजयी सिद्ध हुआ: 

आज से हम तुम गिनेंगे एक ही नभ के सितारे
दूर होंगे पर सदा को, ज्यों नदी के दो किनारे

सिन्धु तट पर भी दो जो मिल सकेंगे!
आज के बिछुड़े जाने कब मिलेंगे?

  तट नदी के भग्न उर के, दो विभागों के सदृश हैं,

चीर जिनको, विश्व की गति बह रही है, वे विवश है!

आज अथ-इति पर पथ में मिल सकेंगे!

आज के बिछुड़े जाने कब मिलेंगे?“

१९४० में भारत के वाइस रॉय थे मार्क्विस लीनलिथगो। उनके डाईरेक्ट ऑर्डिनेंस के तहत, बिना मुकदमे या किसी प्रकार की अपील का निषेध करते हुएनरेंद्र शर्मा को, दिसंबर माह की पहली तारिख को स्वतंत्रता सेनानी होने की सज़ा मिली। वे उस समय काशी विश्व विद्यालय में प्राद्यापक थे। १९४० से १९४२ का समय नरेंद्र शर्मा जी ने ब्रिटिश जेल में बिताया। क्रूर  ब्रिटिश सत्ता द्वारा बंदी गृह में वे कैद रहे।  यह कवि मानस की अग्नि परीक्षा का काल था। देवली डिटेंशन जेल, राजस्थान प्रांत तथा आगरा जेल में, कवि नरेंद्र शर्मा जी ने कारावास भोगा। स्वतंत्रता सेनानी नरेंद्र शर्मा ने भूख हड़ताल करने का निश्चय किया तथा १४ दिन तक नरेंद्र शर्मा ने आमरण अनशन किया।


कामिनी१९४३ में स्वतंत्रता सेनानी पंडित नरेंद्र  शर्मा द्वारा ब्रिटिश जेल के बैरक से लिखी पुस्तक है। जेल की सलाखों के पीछेकामिनीकाव्य संग्रह का मधुर काव्य स्त्रोत कवि नरेंद्र शर्मा के मन से निसृत हुआ। जेल में दिए जानेवाले पन्नों पर, एक छोटी सी खुली खिड़की से यदा-कदा झााँकते चंद्रमा के नीचे खिली मधुर सुगंधित, पुष्पित कामिनी के बिरवे को कवि नरेंद्र देखा करते थे। उस कालखंड में लिखीं सुरम्य कविताएँ आज भी महक रहीं हैं, आज भी सजीव हैं! कविता बंदी की बैरककी यह पंक्तियाँ बंदी जीवन के अनुभव को साकार कर रहीं हैं:


"यहाँ कँटीले तार और फिऱ खींची चार दीवार
मरकत के गुम्बद से लगते हरे पेड़ उस पार"

भगत सिंह जिन्हें अपना गुरु मानते थे, वैसे देशभक्त सचिन्द्रनाथ सान्याल और नरेंद्र शर्मा जेल की काल कोठरी में एक साथ रहे। यहीं जेल के अन्य साथियों के संग,नरेंद्र जी ने १४ दिन का अनशन किया। प्राण छूटने की घड़ी निकट आती जान जेल के गोरे अधिकारियों ने, हाथ-पैर निर्ममता से बाँध कर उन्हें जबरन सूप पिलाकर जीवित रखा। गाँव जहांगीरपुर में नरेंद्र जी की माताजी गंगादेवी को एक सप्ताह पश्चात पता चला कि उनके लाडले इकलौते पुत्र ने अन्न त्याग किया है, अब देशभक्त बेटा भूखा हो तब माँ कैसी खातीं? सो, अम्मा जी ने भी एक  सप्ताह के लिए अन्न त्याग दिया। जेल से बीमार और कमजोरी की हालत में नरेंद्र को मुक्त किया गया, तो वे अपनी स्नेहमयी अम्मा के दर्शन करने सीधे गाँव पहुँचे। देशभक्त नरेंद्र शर्मा का, ग्रामवासियों ने आगे बढ़ कर भव्य स्वागत किया। शायद वही याद पलाश वनकविता संग्रह की कविता, ‘पलाशमें उतरी:


“अब हुई सुबह, चमकी कलगी, दमके मखमली लाल शोले।
फूले टेसू-बस इतना ही समझे पर देहाती भोले॥
लो, डाल-डाल से उठी लपट! लो डाल-डाल फूले पलाश।
यह है बसंत की आग, लगा दे आग, जिसे छू ले पलाश॥

लग गयी आग; बन में पलाश, नभ में पलाश, भू पर पलाश।
लो, चली फाग; हो गयी हवा भी रंगभरी छू कर पलाश॥”

 पंडित नरेंद्र शर्मा जी की ख्याति गीतकार एवं कवि रूप में अधिक है, किन्तु कवि ने अनेकानेक सरस कथाएँ भी रचीं हैं - कड़वी मीठी बातें’(‘ज्वाला परचूनी’), मोहन दास करमचंद गांधी: एक प्रेरक जीवनी पं. नरेंद्र शर्मा जी  की गद्य रचनाएँ  हैं। 

फिल्मजगत  एवं आकाशवाणी में महत्वपूर्ण योगदान:

१९४३ में भारतीय सिने-जगत से बॉम्बे टॉकीज की मालकिन, निर्मात्री तारिका, देविका रानी ने नरेंद्र शर्मा को गीत पटकथा लेखन लिए अनुबंधित किया। फिल्महमारी बातनरेंद्र शर्मा के गीतों से सजी प्रथम हिंदी फिल्म थी। १९४४ में एक नवोदित कलाकार दिलीप कुमार को लेकर बनी फिल्मज्वार-भाटाके सभी गीत नरेंद्र शर्मा जी ने लिखे। युसूफ खान को यह नामदिलीप कुमारनरेंद्र जी ने ही सुझाया था। नाम चुने गए थे- जहांगीर, वासुदेव, दिलीप कुमार! ज्योतिष शास्त्र के परम ज्ञाता नरेंद्र शर्मा ने आग्रह किया किदिलीप कुमारनाम से अपार सफलता हासिल होगी! समय साक्षी है कि उनकी यह भविष्यवाणी सौ प्रतिशत सत्य हुई!

गीतकार नरेंद्र शर्मा ने, देवानंद, चेतन आनंद  की नई फिल्म कंपनी का नाम सुझायानवकेतनऔर उनकी प्रथम फिल्मअफसरके गीत लिखे जिन्हें सुरैया ने गाया।  पंडित नरेंद्र शर्मा की कलम से निकले विशुद्ध हिंदी गीत सुमधुर संगीत से सजे हैं।भाभी की चूड़ीयाँफिल्म का गीत, ज्योति कलश छलकेतथा सत्यम शिवम सुंदरम शीर्षक गीत, भारत रत्न, स्वर साम्राज्ञी . लता मंगेशकर दीदी के पावन स्वर पा कर अजर-अमर हो गए हैं। 

हिंदी फिल्म संगीत में ऐसे शुद्ध हिंदी-शब्द-सौंदर्य समाहित गीतों ने हिंदी साहित्य को आधुनिक कला क्षेत्र सिने संगीत से जोड़ कर एक नया स्वर्णिम अध्याय लिखा। इसी महानगरी बंबई में १९४७, १२ मई के शुभ दिवस नरेंद्र जी और सुशीला जी का विवाह संपन्न हुआ। सुशीला जी चित्रकार थीं।

१९५३ के बाद नरेंद्र जी आकाशवाणी तथा विविध भारती रेडियो प्रसारण सेवा से जुड़े।  १९५३ से १९७१ तक नरेंद्र शर्मा आकाशवाणी के मुख्य प्रबंधक निर्देशक रहे। आकाशवाणी की रंगारंग सेवाविविध भारतीका नामकरण पं. नरेंद्र शर्मा जी ने ही किया। अक्टूबर सन् १९५७ के शुभ दिन सर्वप्रथम प्रसार - गीत, जो रेडियो प्रसारण से बजा वह गीत था:

"नाच रे मयूरा खोल कर सहस्त्र नयन,
देख सघन गगन मगन, देख सरस स्वप्न,
जो के आज हुआ पूरा, नाच रे मयूरा"

इसे मन्ना डे ने गाया और संगीत-बध्द किया भारतीय सिने संगीत के पितामह श्री अनिल बिस्वास जी ने।  इसके साथ .आई.आर. रेडियो प्रसारण सेवाविविध भारतीका श्री गणेश हुआ ! 'विविध भारती' के साथ-साथ, रेडियो के अन्य कार्यक्रम  जैसे 'हवा महल', 'मधुमालती', 'जयमाला', 'बेला के फूल', 'चौबारा', 'पत्रावली', 'बंदनवार', 'मंजूषा', 'स्वर संगम', 'रत्नाकर', 'छाया गीत', 'चित्रशाला', 'अपना घर' आदि का नामकरण भी नरेन्द्र शर्मा ने ही किया और देखते-देखते देश भर में रेडियो सीलोन के श्रोता 'विविध भारती' सुनने लगे। 'आकाशवाणी' के इतिहास में 'विविध भारती' की यह सफलता स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गयी, जिस का श्रेय पंडित नरेंद्र शर्मा को देना उचित है। १९६० में प्रसिद्ध सितार वादक श्री रविशंकर जी द्वारा स्वरबद्ध किया एशियाई खेलों का स्वागत गीत 'स्वागतम, शुभ स्वागतम, आनंद मंगल मंगलम' नरेंद्र शर्मा जी ने लिखा। 

साहित्य सृजन के साथ-साथ सिनेमा, रेडियो तथा टेलीविज़न जैसे आधुनिक युग के प्रसार-प्रचार के सभी माध्यमों द्वारा पंडित नरेंद्र शर्मा सृजनशील रहे। स्वतंत्र भारत के लिए नई दिशा तलाशते हुए, उन्होंने कितने ही नए द्वार खोले नित नए सोपानों को पार करते हुए जन जीवन को आधुनिक उपकरणों द्वारा एक सूत्र में पिरोने का महत्वपूर्ण कार्य किया। कला विज्ञान का ऐसा सिद्धिदायक मणि-कांचन योग पंडित नरेंद्र शर्मा जी की दूरदर्शिता एवं समाज सेवा भाव से ही सफल हो पाया। साहित्य का संवर्धन करती पुस्तकें हों, फ़िल्मी गीत पटकथा हों, रेडियो रूपक या कथा कहानियाँ हों, नृत्य-नाटिकाएँ हों, या स्वागतम जैसे जनगीत हों, या १९८९ में प्रसारित दूरदर्शन प्रदर्शितमहाभारतका आधुनिक निरूपण करती टीवी सीरीज़ होइन विविध कला क्षेत्रों में नरेंद्रजी ने अपना अप्रतिम योगदान दिया है।

आ. लता मंगेशकर  दीदी के साथ नरेंद्र शर्मा जी 

११ फरवरी १९८९ को  हृदय-गति रुकने से पंडित नरेंद्र शर्मा जी का देहावसान हो गया, परन्तु इस ज्योति-कलश की दीप्ति सदा के लिए जनमानस में व्याप्त रहेगी! पंडित नरेंद्र शर्मा हिंदी साहित्य के जगमगाते नक्षत्र पुरुष हैं। सहृदय मानव हैं उच्च कोटि के साहित्यकार हैं।  पं. नरेंद्र शर्मा द्वारा सृजित प्रचुर साहित्यिक सामग्री व्यवस्थित रूप से संपादित होकर १६ खण्डों मेंपंडित नरेंद्र शर्मा : सम्पूर्ण रचनावलीके रूप में उपलब्ध है। वर्षों तक भगीरथ प्रयास करते हुए, श्रद्धांजलि स्वरूप यह काम उनके यशस्वी पुत्र परितोष नरेंद्र शर्मा ने संपन्न किया है। भारत की विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं, विश्व विद्यालयों पुस्तकालयों ने पंडित नरेंद्र शर्मा सम्पूर्ण रचनावली का सहर्ष स्वागत किया है और ग्रंथावली को सुरक्षित एवं संगृहीत कर लिया है। 

ऐसे पवित्र माता-पिता की संतान होना मेरे नन्हे से जीवन का परम सौभाग्य है, मैं तो यही मानती हूँ कि उनकी पवित्र छत्रछाया तले हम चार भाई-बहन बड़े हुए यह हमारा पुण्य प्रताप ही रहा होगा। पूज्य पापा जी के पवित्र आश्रम जैसे घर में, शैशव से बड़े होने तक की स्मृतियाँ आज भी मन में सजीव हैं। मैंने पूज्य पापा जी को कभी ऊँची आवाज में बोलते हुए नहीं सुना! पापा जी बेहद संवेदनशील, दूसरे की भावनाओं के प्रति सजग थे। वे सभी को स्नेह एवं आदर देते, परम दयालु, परोपकारी एवं पुण्यशाली थे। कमल की भांति सांसारिक बंधनों से निर्लिप्त रहते हुए, विश्व के प्रपंचों से बहुत ऊपर, खिले हुए दिव्य पूर्ण विकसित पुष्प समान, एकमात्र ईश्वर में अपनी चेतना पिरोए, सात्विक जीवन जीने वाले महापुरुष थे।  पंडित नरेंद्र शर्मा जी परम योगी, संत कवि थे ! मेरी अम्मा पवित्रा थीं। पूज्य पापा जी की वे प्रतिछाया थीं। मानों आधुनिक युग में ऋषि वशिष्ठ अरुंधती साकार हुए थे। आज मैं उनकी पुत्री पूज्य पापाजी एवं पूज्य अम्मा को बारम्बार प्रणाम करती हूँ! - लावण्या "

सन्दर्भ:

. जनता दल के राज्य काल में राज्यपाल रहे जनाब सादिक़ अली जी का संस्मरण: http://antarman-antarman.blogspot.com/2006/12/some-flash-back.html

. kavitakosh.org/kk/नरेन्द्र_शर्मा_/_परिचय  

. Facebook:  http://facebook.com/paritosh.n.sharma

 

पंडित नरेंद्र शर्मा : जीवन परिचय

जन्म

२८ फरवरी सन १९१३, ग्राम जहांगीरपुर, जिला बुलंदशहर

पुण्यतिथि 

११ फरवरी सन १९८९ 

कर्मभूमि एवं कार्यक्षेत्र 

इलाहाबाद, मुंबई 

- संपादन कार्यभार-अभ्युदय, रूपाभ, दैनिकभारत’ 

- अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी मेंहिन्दी अधिकारी’, १९३८-१९४० 

- काशी विद्यापीठ में अध्यापन, १९४० 

- आकाशवाणी, मुख्य प्रबंधक निर्देशक, १९५३ से १९७१

- ’विविध भारतीके स्वप्नदृष्टा

- सिने गीतकार

- ‘महाभारतसीरियल के परामर्शदाता एवं गीतकार   

माता 

गंगा देवी जी

पिता

पंडित पूर्णलाल जी

पत्नी 

सुशीला जी

शिक्षा

 एम.. अंग्रेजी साहित्य, इलाहाबाद विश्वविद्यालय 

साहित्यिक रचनाएँ

काव्य-संग्रह

शूल-फूल, १९३४; कर्ण-फूल, १९३६; प्रभात फेरी, १९३८प्रवासी के गीत, १९३९; कामिनी, १९४३; मिटटी और फूल, १९४३ ; हंस माला १९४६; लाल निशान, अग्निशस्य, १९५०; कदली वन, १९५३; प्यासा निर्झर  १९६४; बहुत रात गये, १९६७,   

खंड काव्य 

द्रौपदी खंड काव्य, १९६०

उत्तर जय : खंड काव्य, १९६५

सुवर्णा : मिथकीय वृहद काव्य, १९७१

सुवीरा कथा काव्य, १९७३

गद्य पुस्तकें 

कड़वी-मीठी बातें (ज्वाला परचूनी);

मोहनदास कर्मचंद गांधी: एक प्रेरक जीवनी;

 सांस्कृतिक संक्रांति और संभावना (भाषण)

 

लेखक परिचय:

~ श्रीमती लावण्या दीपक शाह एक प्रतिष्ठित लेखिका, कवयित्री एवं पं. नरेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं। 

~ उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र मनोविज्ञान (ऑनर्स) की शिक्षा प्राप्त की है। वे सपरिवार अटलांटा, जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका में निवास करती हैं। 

~ उनके हिंदी ब्लॉगलावण्यम ~ अंतर्मनको यहाँ पढ़ें:http://www.lavanyashah.com/

~ उनकी  प्रकाशित पुस्तकें- फिर गा उठा प्रवासी - काव्य संग्रह; सपनों के साहिल - उपन्यास; अधूरे अफ़साने - कहानी संग्रह; सुन्दर काण्ड - भावानुवाद; अमर युगल पात्र और  Song from a Monsoon Swing  हैं।  

     ~  रेडियो और दूरदर्शन  पर कई कार्यक्रमों में उनकी भागीदारी रही हैईमेल : Lavnis@gmail.com 

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कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...