सुनीता जैन को विश्व हिंदी सम्मेलन न्यूयॉर्क २००७ में विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित होने वाली हिंदी की पहली कवयित्री के रूप में जाना जाता है। संपन्न परिवार में जन्म, संपन्न जीवन, अमेरिका में शिक्षा और नौकरी आई आई टी दिल्ली में फिर भी जाने क्या था कि उनकी आँखें बड़ी वीरान लगती थीं। यह वीरानी उन्हें भावुकता, संवेदनशीलता और उदारता की ओर ले गई और वे लिखती रहीं, जाने कितना लिखती रहीं, कितना-कितना लिखती रहीं....कई पुरस्कार, कई सम्मान भी मिले लेकिन हिंदी का जिसे गढ़ कहते हैं उसमें उनकी उस तरह से पैठ नहीं हो पाई, जैसी होनी चाहिए थी। क्या यह ग़म भी उन्हें सालता होगा? पर वे अपने बच्चों के साथ मज़बूती से जुड़ी थीं और अंग्रेज़ी में जिसे बॉन्ड कहते हैं, वैसा बॉन्ड वे नव लेखकों से भी तुरंत बना लेती थीं, किसी का लिखा पसंद आने पर खुद फ़ोन करने की उदारता उनके स्वभाव में थी।
वे बैडमिंटन भी अच्छा खेल लेती थीं, इतना अच्छा कि कई पुरस्कार जीते। पहली कविता बारह वर्ष की उम्र में आकाश को देखकर लिखी। उनकी सोच की भाषा अंग्रेज़ी थी पर लिखने के लिए उन्होंने हिंदी को अपनाया। शादी के बाद बेगाने देस जाना पड़ा, दिन भर अकेले रहना, न अपनी भाषा के लोग, न अपना परिवेश, न किसी से बातचीत...फिर वे पौधों से बातें किया करतीं, पक्षियों की बोली सुनतीं और घंटों मौन रहतीं। कविता ही उनकी अभिव्यक्ति का एकमात्र ज़रिया बन गई। कविता के केंद्र में स्त्री रही, पर उससे भी अधिक माँ रही। उन्होंने माँ पर दो सौ से अधिक कविताएँ लिखीं, माँ पर इतना अधिक शायद ही किसी ने लिखा हो।
‘यहीं कहीं पर’ तीन भागों में प्रकाशित तेईस कविता संग्रहों के उनके संकलन के पहले खंड में सात कविता संग्रह संकलित हैं, पहले संग्रह का नाम ‘गंगा तट देखा’ (१९९८) है। इसमें ६७ कविताएँ हैं, जिनमें से अधिकांश के केंद्र में माँ है। माँ का रोज़-ब-रोज़ के कामों से उकता जाना, परिवार से जुड़ाव, मातृत्व और मृत्यु के बाद भी परिवार से जुड़े रहना, परिवार से बिछुड़ने का भय है। अन्य कविताओं में माँ नहीं है पर स्त्री जीवन है, प्रकृति है और ‘पचपन बरस में चिड़ियाँ’ के माध्यम से संघर्ष की व्यथा है। इस संकलन का दूसरा संग्रह ‘हथकड़ी में चाँद’ है जो १९९७ में प्रकाशित हुआ था, इसमें उनसठ कविताएँ हैं। इनमें भी माँ की विशेषताएँ रेखांकित करती कविताएँ हैं। इसी का तीसरा संकलन ‘इतना भर समय’ (१९९६) है, इसमें ५९ कविताएँ हैं, इनमें से भी कई कविताएँ माँ पर हैं। कविता संग्रह ‘बोलो तुम ही’ (१९९६), ‘लेकिन अब’, ‘जी करता है’, ‘सीधी कलम सधे न’ (तीनों १९९५) अन्य संग्रह हैं।
‘यहीं कहीं पर’ के दूसरे खंड में छह कविता संग्रह हैं जिसमें से ‘जाने लड़की पगली’ १९९६ में आया था और इसकी सभी कविताओं के केंद्र में माँ है। इसका दूसरा संग्रह ‘मूकं करोति वाचालं’, उसके बाद आया ‘इस अकेले तार पर’ फिर ‘धूप हठीले मन की’, ‘सुनो मधु किश्वर’ (सभी १९९५) और अंतिम कविता संग्रह ‘युग क्या होते और नहीं’ (१९९४) है। तीसरे खंड में दस कविता संग्रह यथा- ‘पौ फटे का पहला पक्षी’, ‘कहाँ मिलोगी कविता’, ‘सच कहती हूँ’, ‘सूत्रधार सोते हैं’, ‘कातर बेला’ (सभी १९९४), ‘कितना जल’ (१९८६-८७), ‘रंग रति’ (१९८६), ‘एक और दिन’ (१९७९-८२), ‘कौन-सा आकाश’ (१९७६-७८), ‘हो जाने दो मुक्त’ (१९७३-७४) हैं।
उनके सभी संग्रहों की विशेषता सुंदर चित्र और रेखांकन हैं। उनका काव्य संग्रह ‘गांधर्व पर्व’ इसका उदाहरण कहा जा सकता है। सुंदर चित्रों का संकलन करना उन्हें वैसे भी भाता था। संग्रह ‘दूसरे दिन’, ‘जाने लड़की पगली’, ‘तरु तरु की डाल’ और ‘क्षमा’ को प्रकाशन के लिहाज़ से उम्दा कहा जा सकता है। काव्य संग्रह क्षमा में तुलसीदास और रत्नावली की कथा को रखा गया है।
ऐसा नहीं था कि शिक्षा और साहित्य का पद्मश्री अलंकरण प्राप्त करने वाली सुनीता जी ने केवल कविताएँ ही लिखीं, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में प्रोफ़ेसर और मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग की प्रमुख रहीं सुनीता जैन को उपन्यासकार, लघु-कथा लेखिका और अंग्रेज़ी और हिंदी साहित्य की कवयित्री के रूप में समान रूप से जाना जाता है। वे संस्कृत की भी जानकार थीं। जैन साहित्य के साथ, वेद-उपनिषद का भी उन्होंने अध्ययन किया था। पहली कविता सन् १९६२ में साप्ताहिक हिंदुस्तान में आई थी। उनका पहला उपन्यास बोज्यू १९६४ में आया था तो धर्मयुग में उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई थी। उनकी ६० से अधिक पुस्तकें अंग्रेज़ी और हिंदी में आ चुकी हैं। इसके अलावा जैन साहित्य का भी उन्होंने अंग्रेजी में अनुवाद किया। पर केंद्रीयता में कविता ही थी।
वे लगातार पचास सालों से लिखती चली आ रही थीं। इस पर उनका कहना था, ‘लिखना मेरे लिए ऐसा ही है जैसे बिना जाने लगातार साँसों का आना-जाना। लेखन अपने-आप आता है, न मैं उसके सहारे कुछ कर पाती हूँ, न वह मेरा विषमताओं से पलायन है। इस बात को दूसरे शब्दों में कहूँ तो मेरा लेखन मेरे भीतर रखा वाद्य है जो जब चाहता है, बजता है और मैं उसे बजाना चाहूँ तो काठ हो जाता है एकदम और मूक।’ फ़ेमिनिज़्म पर उनका कहना था, ‘मुझे लगता है कि आज की स्त्री अपने अधिकारों के प्रति जिस तेज़ी से सजग हुई है, उतनी ही तेज़ी से उसने स्त्री होने की भीतरी शक्ति खो दी है। अस्मिता की हाथापाई में और सशक्तीकरण के उन्माद में आज की स्त्री एक ऐसे दलदल में दिखाई दे रही है, जिससे निकास अभी शायद संभव नहीं।’
केदारनाथ सिंह सुनीता जैन की कविताओं के बारे में कहते हैं ये कविताएँ ज़्यादा ठोस और ज़्यादा आधुनिक अर्थ में फ़ेमिनिन हैं, जिसमें नारी-पुरुष संबंध को अनुभव के यथार्थ धरातल पर रखकर देखने की कोशिश की गई है। यह ऐसा विशिष्ट अनुभव है, जिसमें विलक्षण नैतिक साहस के साथ टूटते-बिखरते प्रेम की दबी हुई गहरी यातना भी है और इन दोनों बातों का एक साथ होना इस पूरे संग्रह को अद्भुत अर्थवत्ता प्रदान करता है। (संदर्भ संग्रह –कौन सा आकाश)
यातना उनकी कविताओं में कभी विषाद, कभी अवसाद, कभी त्रासदी तो कभी पीड़ा बन उभरकर आई है, जैसे इन पंक्तियों को ही देखें - राम जी अगले जन्म हमें पेड़ बना दीजो/ कीट पतंग या ढोर बना दीजो/ चिड़िया, दादुर,मोर बना दीजो/ पर अबला का फिर साप न दीजो/ संखिया की टोह में रो रही तरुणी (कविता सौ टंच माल से)। लड़की की बढ़ती उम्र की चिंता उनकी कविता में है तो कहानी में भी। ‘या इसलिए’ कहानी की नायिका नीरा के माध्यम से बेमेल विवाह, दूसरी पत्नी, माँ, समाज के नए रिश्तों में नारी की अंतर्भावना का दमन और बढ़ती उम्र के चलते विवाह की विवशता इस कथा का सार है। उनकी कहानियों में भी कविताओं की तरह ही स्त्री का प्रेम, उपेक्षा-अपेक्षा, इच्छा-आकांक्षा, छोड़ी हुई स्त्री का दर्द, सहनशीलता आदि दिखता है। उपन्यास ‘सफ़र के साथी’ में नारी का मानसिक द्वंद्व है तो ‘बिंदु’ में नारी जीवन के प्रति वेदना। ‘मरणातीत’ की संवेदनाएँ बहुत गहरी है तो ‘शब्दकाया’ में उन्होंने अपने ही जीवन के प्रसंगों के माध्यम से खुद को व्यक्त भी कर दिया है और छिपा भी लिया है। ‘बिरथा जन्म हमारो’ कहानी में वे बेबाकी से कहती हैं, ‘स्त्री और पुरुष में शरीर का कर्म संतान की इच्छा से ही होना चाहिए। अन्यथा यह दुष्कर्म होगा, व्यभिचार होगा। जब संतान होनी ही नहीं, फिर यह कर्म कैसा माँ, वह तो अधर्म है, घोर पाप। मैंने उन्हें कह दिया ज़िंदगी भर तुम्हारी सेवा करूँगी, तुम्हारे बच्चों को भी माँ की तरह पालूँगी, पर शरीर मेरा मत छूना कभी भी। वह तो अपर्ण कर चुकी हूँ कृष्ण महाराज को।’
‘बोज्यू’ उपन्यास में भी स्नेह और कुढ़न एक साथ दिखती है। ‘बोज्यू’ कुमाऊँ शब्द है जिसका अर्थ होता है भाभी। खुशी क्या है, जैसे गहन प्रश्न का अलग विश्लेषण यहाँ है तो ‘घरघराहट’ कविता देखिए – इस बंद घर की/ सारी खिड़कियाँ खुली हैं, पर खिड़कियों में, न चिड़िया है, न हवा, न चाँद की कंदील, न सूखे पत्तों का दिठौना, इतिहास तो है हर आले और चौखट में घर की...एक आईना है इसके आँगन में, चुपचाप बिसुरता, एक आँसू-सा है कुछ खारा, धुँधला रहा और चीरता, एक शब्द है इस घर की निस्तब्धता में, धीरे-धीरे भले गले से घरघराता, शायद विदा...
सुनीता जैन : एक संक्षिप्त परिचय |
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नाम |
सुनीता जैन |
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जन्म |
१३
जुलाई,
१९४१ |
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मृत्यु |
११
दिसंबर २०१७, नई दिल्ली |
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जन्म
स्थान |
अंबाला, पंजाब |
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पिता |
सुल्तान
सिंह |
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प्रारंभिक
एवं हाई स्कूल पढ़ाई |
पंजाब
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बी.ए. |
इंद्रप्रस्थ
कॉलेज,
दिल्ली
विश्वविद्यालय |
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एम.ए. (अंग्रेजी) |
स्टेट
यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क |
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पीएचडी |
यूनिवर्सिटी
ऑफ़ नेब्रास्का (अमेरिका) |
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अध्यापन
(१९७२ के दरमियान) |
एक
वर्ष इंद्रपस्थ कॉलेज, एक वर्ष अरविंदो कॉलेज
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२००२
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मानविकी
एवं समाज विज्ञान विभाग की प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष, आईआईटी नई दिल्ली |
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१९६० |
विवाह |
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२००३ |
सेवानिवृत्ति |
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रचना संसार |
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१९६४-६५ - पाँच लघु उपन्यास हिंदी में पच्चीस कविता संग्रह यहीं कहीं पर (भाग १,२,३) अंग्रेज़ी में आठ कविता संग्रह तेईस कविता संग्रहों का एक संकलन (१९७३-१९९८ की लिखी कविताएँ शामिल) |
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हो
जाने दो मुक्त, कौन-सा
आकाश,
एक
और दिन, रंग-रति, ऋण
फ़ूलों-सा कितना जल, तन
जो मेरा पानी-पानी, यह
कविता का काँटा, कातर
बेला,
खंडहर
के पक्षी, सूत्रधार
सोते हैं, सच
कहती हूँ, कहाँ
मिलोगी कविता, पौ
फटे का पहला पक्षी, युग
क्या होते और नहीं, ज़रा-ज़रा-सा, सुनो
मधु किश्वर, धूप
हठीले मन की, छुआ
किसने,
इस
अकेले तार पर, कितने
वर्षों बाद, रास्ता, कल
तक तो यह तन था, खोल
दी खिड़की फ़ैंटसी, |
मूकं
करोति वाचालम्, जाने
लड़की पगली, अच्छा
लगता है, चम्पा, सीधी
कलम सधे न, जी
करता है, लेकिन
अब,
बोलो
तुम ही, सरसों
का खेत मेरा मन, इतना
भर समय, हथकड़ी
में चाँद, गंगातट
देखा,
सुनी
कहानी,
माधवी, तरु-तरु
की डाल पे, तीसरी
चिट्ठी, जो
मैं जानती, दूसरे
दिन,
चौखट
पर,
उठो
माधवी,
प्रेम
में स्त्री, बारिश
में दिल्ली, इस
बार,
गांधर्व
पर्व (खंडकाव्य), क्षमा
(खंडकाव्य), लाल
रिब्बन का फुलवा, शब्दकथा, कोई, दूसरे
दिन,
|
सुबह-सुबह
यह पक्षी, लकड़हारा, किस्सा
तोता मैना, लूओं
के बेहाल दिनों में, ओक
भर जल,
यह
कविता का काँटा, छाया
कहीं बड़ी है, यहीं
कहीं पर, गाती
रहना चिड़िया, बोज्यू, बिंदु, सफ़र
के साथी, अनुगूँज, मरणातीत, हम
मोहरे दिन रात के, इतने
बरसों बाद, या
इसलिए,
पाँच
दिन काफ़ी नहीं, आत्मकथा, बाल
साहित्य (२५ पुस्तकें), प्रेमचंद एक कृति व्यक्तित्व (अंग्रेज़ी), मेघदूत
(अंग्रेज़ी), ऋतुसंहार
(अंग्रेज़ी), मूलांरूज
(हिंदी), बंटी
(अंग्रेज़ी) कुरबक, मुक्ति |
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सम्मान/ पुरस्कार |
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भारत सरकार ने उन्हें २००४ में पद्मश्री के
चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया। युनाइटेड स्टेट अमेरिका में नेब्रास्का
विश्वविद्यालय का द वैरलैंड अवार्ड (१९६९) और अंग्रेज़ी कहानी के लिए दो बार
(१९७०-७१) मेरी सैंडीज़ प्रेरी स्कूनर पुरस्कार अंग्रेज़़ी उपन्यास ए गर्ल ऑफ़ हर एज़ पर
रीलेंड अवार्ड हिंदी रचनाओं के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी
संस्थान पुरस्कार से (१९७९-८०) तथा दिल्ली हिंदी अकादमी पुरस्कार (१९९६) निराला नामित पुरस्कार (१९८०), महादेवी वर्मा साहित्यकार सम्मान (१९९७), प्रभा खेतान सम्मान और साहित्य भूषण। इंदिरा गाँधी फ़ैलोशिप (२००२-०४) हरियाणा गौरव सम्मान न्यूयॉर्क में आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन
में सम्मानित (२००७) के.के. बिड़ला फ़ाउंडेशन द्वारा व्यास
सम्मान (२०१५) |
संदर्भ
विकिपीडिया
विभिन्न संग्रह
लेखक परिचय:
स्वरांगी साने : पूर्व वरिष्ठ उप संपादक, लोकमत समाचार,पुणे
संप्रति भारतीय कौंसलावास, न्यूयॉर्क की वेबसाइट पर पत्रिका अनन्य के लिए संपादन सहयोग। जनसत्ता, नई दिल्ली तथा वेब दुनिया हेतु नियमित स्तंभ लेखन, स्वतंत्र अनुवादक-लेखक, कवयित्री, अभिनय, नृत्य, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षा, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर वार्ता और काव्यपाठ
विशेष : भारत सरकार द्वारा विकसित वेब इंटरफ़ेस के लिए लगातार अनुवाद
जीवन का लक्ष्यः कुछ सृजनशील लमहों की खोज
स्वरांगी जी, आपने सुनीता जैन जी पर बहुत ही सारगर्भित आलेख प्रस्तुत किया है। इस लेख को पढ़कर सुनीता जैन जी के विपुल साहित्य और उनके जीवन वृतांत से परिचित होने का अवसर मिला। आपको इस सुरुचिपूर्ण आलेख के लिए बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आपकी आभा जी, स्नेह बना रहे...
Deleteबहुत सुंदर लेख स्वरांगी जी सुनीता जी का जीवन व साहित्यिक यात्रा को सुंदर शब्दों में आपने पिरोया है । इतने सुन्दर सारगर्भित लेख के लिए साधुवाद आपको।
ReplyDeleteपूनम जी, आपने जो स्नेह पिरोया उसके लिए आभारी हूँ
Deleteहार्दिक बधाई,स्वरांगि जी, आपने सुनिता जैन की रचनाओं के बारे में विस्तृत परिचय बहुत ललित शैली में प्रदान किया है। सुनिता जैन की कलम को सादर वंदन, चकित हूं कि कितनी विविधता और परिश्रमपूर्वक लिखा है।साधुवाद।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद विजय जी, स्नेह बना रहे...
Deleteस्वरांगी जी नमस्ते। आपने सुनीता जैन जी पर अच्छा लेख लिखा है। आपके लेख के माध्यम से उनके साहित्य संसार को विस्तार से जानने का अवसर मिला। आपको इस जानकारी से समृद्ध लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपकी आभारी हूँ दीपक जी...पुनश्च आभार
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