राजेंद्र अवस्थी ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरूआत में कलेक्ट्रेट कार्यालय में लिपिक के पद पर भी कार्य किया। तत्पश्चात उन के संपादकीय जीवन की शुरुआत पंडित द्वारकाप्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में दैनिक नवभारत के साहित्य संपादक के रूप में हुई। १९६० में बंबई के टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रतिष्ठान में सारिका का संपादन भार लिया। व्यावसायिक एवं आर्ट फ़िल्में बनाने के रुझान के चलते, उन्होंने रणजीत स्टूडियो नाम से एक स्टूडियो खोला, किंतु कालांतर में उन्हें ये स्टूडियो बंद करना पड़ा। १९६४ में अवस्थी जी दिल्ली आ गए और हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप से 'नंदन' नामक पत्रिका निकाली। १९७२ में अवस्थी जी भारत की प्रसिद्ध पत्रिका 'कादम्बिनी' का संपादन करने लगे। साथ ही उन्होंने १९८६ में 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' का भी संपादन आरंभ किया। संपादकीय दायित्व के साथ ही वे दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का प्रश्न पत्र भी पढ़ाते रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच एवं चमत्कारिक लेखनी से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। वे ऑर्थस गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे।
राजेंद्र अवस्थी कथाकार और पत्रकार तो हैं ही, उन्होंने सांस्कृतिक, राजनैतिक तथा सामयिक विषयों पर भी भरपूर लिखा है। अनेक दैनिक समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में उनके लेख प्रमुखता से छपते रहे। उनकी बेबाक टिप्पणियाँ अनेक बार आक्रोश और विवाद को भी जन्म देती रहीं। उन्होंने कई सुविख्यात व्यक्तित्वों के जीवन को आधार बनाकर औपन्यासिक कृतियाँ दी हैं और उनमें कथानायकों की विशेषताओं के साथ ही उनकी दुर्बलताओं की चर्चा भी की। ऐसे लेखन से उनका क्षेत्र व्यापक बना और साहित्य के रचना-प्रदेश के बाहर भी अन्य क्षेत्रों में उनकी खासी सृजनात्मक पहचान बन गई। उन्होंने जिस भी पत्रिका को हाथ में लिया, उसे आसमान पर पहुँचा दिया।
अवस्थी जी ने 'कादंबिनी' के 'कालचिंतन' कॉलम के माध्यम से अपना एक खास पाठक वर्ग तैयार किया। 'कालचिंतन' इतने अद्भुत रूप में लोकप्रिय हुआ कि 'कादंबिनी' ने एक समय पर बिक्री के सारे रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए थे। यह राजेंद्र अवस्थी की सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं समसामयिक विषयों पर भरपूर पकड़ का ही करिश्मा था, कि हिंदी पत्रिकाओं के अत्यंत बुरे दौर में भी 'कादंबिनी' ने पाठकों के मध्य अपनी पैठ बनाए रखी। उनके कुशल संपादन और दूरदर्शिता का ही यह उदाहरण था, कि रहस्य, रोमांच, भूत-प्रेत, आत्माओं, रत्न-जवाहरात, तंत्र-मंत्र-यंत्र व कापालिक सिद्धियाँ जैसे प्रायः अछूत माने जाने वाले विषयों को भी गहरी पड़ताल, अनूठे विश्लेषण और अद्भुत तार्किकता के साथ वे पेश कर सके। साथ ही 'आखिर कब तक' स्तंभ भी निरंतर लिखते रहे, जो बाद में पुस्तक रूप में प्रकाशित हुआ।
राजेंद्र अवस्थी ने एक बड़ी ही दिलचस्प साक्षात्कार माला का आयोजन भी किया था। 'कादंबिनी' के एक अंक में किसी विशिष्ट लेखक को शीर्षक बनाकर पाठकों से प्रश्न माँगे जाते थे, जितने भी प्रश्न आते थे, उनके लेखकों के नाम गुप्त रखते हुए विशिष्ट लेखक को भेजे जाते थे और उन प्रश्नों के उत्तर उस के बाद वाले अंक में छपते थे। इस साक्षात्कार माला में पंत जी, हजारीप्रसाद द्विवेदी जी, शिव प्रसाद सिंह जी इत्यादि अनेक लेखकों के साक्षात्कार छपे थे। उन्होंने 'कांदबिनी' के अनूठे और अद्भुत विशेषांक निकाले। रीडर्स डाइजेस्ट की 'सर्वोत्तम' जैसी पत्रिका एवं 'नवनीत' पत्रिका की बराबरी अगर कोई कर सकती थी, तो वह सिर्फ 'कादंबिनी' ही थी।
राजेंद्र अवस्थी जी का व्यक्तित्व बेहद ज़िंदादिल था। मित्रों के साथ कॉफी हाउस या टी हाउस में बैठकर कहकहे लगाना उनके जीने का अंदाज था। इतने बड़े संपादक और साहित्यकार होने के बावजूद मिलने आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का उन्मुक्त हास्य के साथ स्वागत करना उनकी एक विशिष्ट शैली थी। एक गंभीर विचारक और वक्ता के रूप में राजेंद्र अवस्थी जी का साहित्यिक गलियारों में बड़ा दबदबा था। समाज, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति आदि विषयों पर संभाषण हेतु और गंभीर विषयों पर सारगर्भित विचार प्रस्तुति के लिए अवस्थी जी को प्रायः सभाओं और गोष्ठियों में आमंत्रित किया जाता था।
राजेंद्र अवस्थी जी ने लगभग ६० कृतियों की रचना की। 'लम सैना' जैसी रचनाओं में बस्तर के अछूते क्षेत्रों और आदिवासियों के जीवन को स्थान देकर राजेंद्र अवस्थी आदिवासी आंचलिक कथाकार के रूप में विख्यात होने लगे। उनका उपन्यास 'मछली बाजार' मुंबई पर दूसरा उपन्यास था, जिसने हिंदी जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा। उनके उपन्यासों में 'सूरज किरण की छाँव', 'जंगल के फूल', 'जाने कितनी आँखें', 'बीमार शहर', 'अकेली आवाज़' इत्यादि शामिल हैं। 'मकड़ी के जाले', 'दो जोड़ी आँखें', 'मेरी प्रिय कहानियाँ' और 'उतरते ज्वार की सीपियाँ', 'एक औरत से इंटरव्यू' और 'दोस्तों की दुनिया' उनके कविता संग्रह हैं, साथ ही उन्होंने 'जंगल से शहर तक' नामक यात्रा वृतांत भी प्रकाशित किया।
'मछली घर', 'भंगी दरवाजा', 'लम सेना' जैसी यादगार कृतियों का चेक, रूसी एवं अन्य कई विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ।
अवस्थी जी को विश्व का यात्री भी कहा जाता है। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं, जहाँ अनेक बार जाकर वहाँ के सांस्कृतिक एवं सामाजिक जीवन को समझने का कार्य उन्होंने नहीं किया हो। उन्होंने अफ़्रीका, एशिया और यूरोप के कई देशों, अमेरिका और रूस एवं उसके आस पास के देशों की यात्राएँ की, यहाँ तक कि उत्तरी ध्रुव के पास फिनलैंड तथा दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के सभी देश उनके देखे हुए थे। इन यात्राओं ने अवस्थी जी के पत्रकारिता संबंधी ज्ञान को समृद्ध किया था।
ह्रदय रोग से ग्रस्त राजेंद्र अवस्थी जी का निधन ७९ वर्ष की आयु में ३० दिसंबर २००९ में दिल्ली के एस्कॉट अस्पताल में हुआ। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत का एक स्वर्णिम युग समाप्त हो गया। आंचलिक उपन्यासों के शीर्षस्थ लेखक और एक सफल पत्रकार के रूप में उन्हें सदैव स्मरण किया जाएगा।
लेखक परिचय
एम ए, एम फिल बौद्ध विद्या अध्ययन, दिल्ली विश्वविद्यालय ।
लेखक एंव कवयित्री, व्यंजन विशेषज्ञ, फूड स्टाईलिस्ट
प्रकाशित पुस्तकें -
उपन्यास : तिलांजली, पुकारा है ज़िंदगी को कई बार...dear cancer
काव्य संग्रह : दर्द के इन्द्र धनु
राजेन्द्र अवस्थी जी के बारे में इतना विस्तार से पढ़ना बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबढ़िया लेखन।
ReplyDeleteकाल चिंतक राजेंद्र अवस्थी के व्यापक एवम गहन चिंतन संबंधी नई जानकारी हासिल हुई।उनसे दरस परस की यादें हरी हो गईं।स्मृति को प्रणाम।लेखिका के सत प्रयत्न का सादर समादर।
ReplyDeleteप्रयोगधर्मी साहित्यकार राजेन्द्र अवस्थी जी पर यह विस्तृत लेख पढ़कर अच्छा लगा। लतिका जी को इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआदरणीय श्री राजेन्द्र अवस्थी साहित्य का स्वयं प्रकाशित सितारा थे जो कादंबिनी के काल चिंतन के माध्यम से खास पाठक वर्ग में प्रचलित थे। अपनी दूरदर्शिता और कुशल सम्पादन के कारण ही मृतप्राय पत्रिकाओं के दौर में उनकी कादंबिनी साँस लेती रही। आपने कुछ अद्भुत विशेषांक ऐसे निकाले जो गुणवत्ता के स्तर पर सभी प्रख्यात पत्रिकाओं से हमेशा शीर्ष पर रही थी। शीर्षस्थ कर्मठ संपादक और साहित्यकार श्री अवस्थी जी के बारे में विस्तारित जानकारी पूर्ण आलेख प्रदर्शित करने की ख़ातिर आदरणीय लतिका जी का बहुत बहुत आभार और अग्रिम लेखों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteलतिका जी, आपने इस छोटे आलेख में राजेंद्र अवस्थी जी पर जितनी अधिकाधिक जानकारी देना संभव थी, देकर इसे बहुमूल्य बना दिया है। उनके विभिन्न कार्यक्षेत्रों, उपलब्धियों, पहलों, रचनाओं आदि की जानकारी के साथ-साथ उनके उन्मुक्त व्यक्तित्व का भी ख़ूब परिचय दिया। इस सुन्दर लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें , साथ ही आपको इसके लिए आभार।
ReplyDeleteलतिका जी, राजेन्द्र अवस्थी पर लिखा गया आपका आलेख बहुत ही अच्छा है। आपको बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और जानकारी से भरा आलेख है । लतिका जी को बधाई।
ReplyDeleteबेहद ज्ञान वर्धक आलेख
ReplyDeleteढेरों बधाई 👌👌👌🙏
शुक्रिया जी🙏
Deleteनंदन तथा कादम्बिनी जैसी पत्रिकाओं का हर भारतीय पाठक राजेंद्र अवस्थी जी के नाम से भली -भांति परिचित है। उनके बारे में सहज भाषा में लिखा गया, प्रवाहमय आलेख बहुत अच्छा लगा! लतिका जी, आपको बहुत -बहुत बधाई!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 💐
Deleteलतिका जी, राजेन्द्र अवस्थी जी के व्यक्तित्व और साहित्यिक लेखन पर रोचक और सारगर्भित आलेख के लिए आपका शुक्रिया और बधाई। आलेख इतना प्रवाहमय था कि एक साँस में पढ़ा गया।
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