Sunday, January 23, 2022

हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय

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पं० लोचन प्रसाद पांडेय भारतीय संस्कृति, साहित्य और इतिहास को संजोने वाले संगम-पुरुष थे। लोचन प्रसाद का जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले (अब जांजगीर-चांपा ज़िला) के बालपुर नामक गाँव में हुआ था। बालपुर महानदी, मांड और लात नदी के संगम पर स्थित एक छोटा-सा गाँव है। अमराई और पलाश वृक्षों से घिरा वह गाँव प्राकृतिक रमणीयता को अपने में समेटे हुए है। इसी गाँव में लोचन प्रसाद जी का एक भरा-पूरा बड़ा परिवार था। दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन सभी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। धर्म-शास्त्र, ज्योतिष, साहित्य, संगीत के प्रति रुचि और उदार हृदय होने के कारण अंचल में उनके परिवार की अच्छी प्रतिष्ठा थी। आतिथ्य-सेवा और आर्थिक सहायता उनका मूल-मंत्र था। उनके परिवार में आने वाले सभी आत्मीयजनों का सम्मान हो, इसका विशेष ख्याल रखा जाता था। इसीलिए उनके यहाँ ग्रामीण किसानों से लेकर साधु-विद्वानों तक का जमावाड़ा-सा लगा रहता था।

लोचन प्रसाद के पिता चिंतामणि पांडेय ने १८७९ में शिक्षा और समाज की उन्नति के लिए अपने गाँव में एक प्राथमिक पाठशाला का निर्माण करवाया था। उस समय क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं थी तथा क्षेत्र नदियों से घिरा हुआ था। ऐसी स्थिति में पाठशाला का निर्माण होना अंचल के लोगों के लिए बहुत उपकार का कार्य था। और सचमुच उनका वह कार्य वरदान साबित हुआ। उस पाठशाला ने अनेक प्रतिभाशाली रचनाकारों को जन्म दिया। समर्थ रचनाकार पं० अनंतराम पांडेय, कृपाराम मिश्र, पुरुषोत्तम प्रसाद पांडेय, वंशीधर पांडेय, मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की शिक्षा यहीं हुई। लोचन प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं हुई। उन्होंने प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूर्ण करने के बाद १९०२ में संबलपुर से मिडिल स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए १९०५ में कलकत्ता विश्वविद्यालय चले गए। फिर उच्च शिक्षा के लिए १९०८ में काशी के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में प्रवेश लिया, किंतु दादी की ममता और विशेष आग्रह के कारण वापस अपने गाँव बालपुर लौट आए। इससे उनकी उच्च शिक्षा अधूरी रह गई। लेकिन इस दौरान उन्होंने सेंट्रल हिंदू कॉलेज की मैगज़ीन में स्वास्थ्य संबंधी एवं व्यावहारिक-उपदेशपरक लेख लिखने के साथ-साथ देश-भक्तों की जीवनियाँ भी लिखीं, जिसकी प्रशंसा श्रीमती एनी बेसेंट तथा जस्टिस शारदाचरण मित्र (संपादक 'देवनागर') जैसे प्रबुद्धजनों ने की। फिर वे 'देवनागर' के नियमित लेखक बन गए, जिसमें उनकी उड़िया रचनाएँ देवनागरी लिपि में नियमित रूप से छपने लगीं। यह हिंदी के प्रति लोचन प्रसाद के प्रेम का ही प्रमाण है कि उन्होंने उड़िया की रचनाएँ देवनागरी लिपि में लिखी। 'अनुराग-रत्न' कविता में वे लिखते हैं - 

वर वचन बिना है कार्य होता न कोई,

वर वचन बिना है आर्य होता न कोई।   

वचन रहित पाता देश है क्लेश भारी, 

बन बन अब हिंदी राष्ट्रभाषा हमारी।


लोचन प्रसाद ने यद्यपि प्रारंभ में ब्रजभाषा में रचनाएँ कीं, किंतु साहित्य में नवीनता के आग्रही होने के कारण और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक होने के कारण, १९०४-१९०५ से खड़ी बोली में लिखना प्रारंभ किया। गद्य-पद्य में उनकी लगभग ४० कृतियाँ प्रकाशित हैं। 'कविता-कुसुममाला' (१९१०) उनके द्वारा संपादित ब्रज एवं खड़ी बोली का प्रथम प्रतिनिधि संकलन है। इसकी भूमिका में उन्होंने 'गीतिकाव्य' शब्द का पहली बार प्रयोग किया है, जो हिंदी साहित्येतिहास में गीतिकाव्यधारा के लिए किया गया नया नामकरण है। लोचन प्रसाद द्विवेदी-मंडल के प्रमुख रचनाकार थे। उन्होंने हिंदी में रचनाएँ तो की हीं, साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया और छत्तीसगढ़ी में भी अनेक रचनाओं का सृजन किया। इन सभी भाषाओं में उनकी गहरी पकड़ थी। द्विवेदी-युग नैतिक आग्रह का युग था। इस समय सुधारवादी और शुद्धतावादी प्रवृति का बोलबाला था। धर्म, दर्शन और सामाजिक व्यवहार के क्षेत्र में तर्क का ही महत्व था और जो आदर्श तरक्की की तुला पर खरे उतरे, उसे ही स्वीकार किया जाता था। इसीलिए उस काल खंड में काव्य में अलौकिकता के प्रति अथवा चरित्र में अति मानवीय रूप के प्रति कोई विशेष उत्सुकता नहीं दिखाई देती थी। यद्यपि उसके बदले सामाजिक और राजनीतिक न्याय तथा स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व जैसे विचारों को महत्व दिया जाता था। उस समय प्रकृति और मातृभूमि को देवी रूप में चित्रित किया गया। यही प्रवृति लोचन प्रसाद जी की रचनाओं में भी थी -

सुजला, सुफला दिव्य-धरा,

पहने तृण का मृदु चीर हरा। 

यह है अपनी जननी सुखदा,

हरती सुत-वृंद व्यथा-विपदा।

सब भांति अलौकिक है इसकी,

जग बीच प्रभा इतनी किसकी?


उस पराधीन युग में देश भक्ति, त्याग और बलिदान की भावनाओं को जगाने के लिए उर्मिला, यशोधरा, महात्मा बुद्ध, महाराणा प्रताप, शिवाजी के आदर्शों और चरित्रों को काव्य का  विषय बनाया गया। इस संदर्भ में लोचन प्रसाद की 'मेवाड़ गाथा' पर्याप्त उल्लेखनीय है। इस खंडकाव्य में उन्होंने महाराणा प्रताप के चरित्र को अत्यंत ओजपूर्ण शैली में व्यक्त किया है - 
चाहे वन्य-जंतुओं के संग, वन में रहकर दुःख पाऊँ,
चाहे भील किसानों के संग, कंद-मूल वनफल खाऊँ।
चाहे बरसों उपवास रखूँ, पर स्वाधीनता न त्यागूँगा,
ईश्वर के अतिरिक्त किसी को अपना सिर न नवाऊंगा।

एक तथ्य यह भी उल्लेखनीय है कि द्विवेदी-युगीन काव्य पर आर्यसमाज का प्रभाव था। इस कारण ब्रह्मचर्य, निरोगता, पवित्रता, सच्चरित्रता, स्वदेशानुराग, परोपकारिता जैसी भावनाओं की प्रधानता थी। 'शांति-संगीत' कविता में लोचन प्रसाद जी ने परोपकार को एकमात्र धर्म मानते हुए कहा - 
तू भिन्नता-विषय का तज निन्द्य-गान,
संसार को निज-कुटुम्ब समान जान।
निष्काम को दुखित को, दुःख से उबार,
है धर्म का सार बस एक परोपकार।

उन्होंने नारी-शिक्षा, विधवा-विवाह का समर्थन किया - "भोगें अल्पवयस्का अति मृदु ललना, हाय! वैधव्य-पीड़ा", वहीं बाल-विवाह, भ्रूण-हत्या जैसी कुरीतियों का प्रबल विरोध भी किया - 
कैसी निःसवकारी प्रचलित हममें, बाल-ब्याह प्रथा है,
हा! हा! सर्वस्वहारी प्रतिफल, जिसको देख होती व्यथा है।

लोचन प्रसाद का रचना-संसार विस्तृत था। उन्होंने रमणीय और प्राकृतिक-सौंदर्य चित्रण का पक्ष तो लिया ही, हिंदी में 'सॉनेट' जैसी गीति परंपरा की शुरुआत करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। इस संबंध में उन्होंने कई महत्वपूर्ण लेख लिखे और अपने समकालीन साहित्यकारों का मार्ग प्रशस्त किया। अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेन, म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन के अधिवेशनों में सभापति रहने के साथ-साथ वे देश की अनेक साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से संबद्ध रहे। लोचन प्रसाद का व्यक्तित्व केवल साहित्यिक ही नहीं था, वे प्रसिद्ध पुरातत्वविद भी थे। उन्होंने प्राचीन लिपियों का अनुसंधान करते हुए आदिकालीन शिलालेखों, गुफ़ाओं, ताम्रपत्रों, मुद्राओं तथा प्राचीन-ऐतिहासिक वंश परंपराओं से संबंधित प्रामाणिक दस्तावेज़ों की खोज के साथ तत्संबंधी तर्कपूर्ण लेख लिखकर छत्तीसगढ़ के इतिहास को नए ढंग से प्रस्तुत किया और लिपि संबंधी समस्याओं को भी सुलझाया। उनके इन कार्यों की प्रशंसा रायबहादुर बाबू हीरालाल काव्योपाध्याय, जार्ज ग्रियर्सन, सर काशी प्रसाद जायसवाल, डॉ० मिरासी, डॉ० धीरेंद्रनाथ मजूमदार, पी०सी० सरकार जैसे इतिहासकारों और पुरातत्वज्ञों ने की। लोचन प्रसाद जी के ऐतिहासिक लेख उस समय अमेरिका के 'एवेजिकल टाइडिंगस', 'इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टरली' एवं अन्य पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छपा करते थे। उन्होंने अपने पुरातत्व एवं इतिहास संबंधी ग्रंथों में छत्तीसगढ़ के प्राचीन इतिहास, सभ्यता-संस्कृति पर विद्वतापूर्ण प्रकाश डाला है। उन्होंने १९१८ में 'छत्तीसगढ़ गौरव प्रचारक मंडली' (साहित्य एवं पुरातत्व खोज संबंधी) की स्थापना करके इस दिशा को और अधिक पुष्ट किया। 

लोचन प्रसाद ने जहाँ एक ओर हिंदी साहित्य की श्री-वृद्धि की, वहीं दूसरी ओर लिपि, इतिहास एवं पुरातत्व संबंधी लेख लिखकर ऐतिहासिक कार्य किया। उनकी भाषा जितनी सरस और मधुर है, उतनी ही भावमई भी। उन्होंने साहित्य, समाज और राष्ट्रसेवा के साथ इतिहास संबंधी जो कार्य किया है, उससे पूरा देश गौरवान्वित है।

पं. लोचन प्रसाद पांडेय जीवन परिचय

जन्म

४ जनवरी १८८७ 

निधन

१८ नवंबर १९५९

पिता

चिंतामणि पांडेय

माता

देवहुति 

शिक्षा

  • बालपुर, संबलपुर

  • कलकत्ता विश्वविद्यालय

  • सेंट्रल हिंदू कॉलेज, काशी 

साहित्यिक रचनाएँ

हिंदी


  • दो मित्र

  • प्रवासी

  • नीति कविता

  • बालिका विनोद

  • प्रेम-प्रशंसा

  • पद्य-पुष्पांजलि

  • छात्र-दुर्दशा

  • चरित्रमाला

  • ग्राम-विवाह विधान

  • मेवाड़ गाथा

संस्कृत

पुष्पांजलि

उड़िया

 

  • कविता-कुसुम

  • रोगी-रोदन

  • महानदी

  • भक्ति-उ-बहार

छत्तीसगढ़ी

कलिकाल

अंग्रेज़ी

  • लेटर्स टू माई ब्रदर्स

  • राधानाथ : द नेशनल पोएट ऑफ़ उड़ीसा

इतिहास

  • महाकौशल हिस्टोरिकल सोसायटी पेपर्स (२ भाग)

  • कौशल-प्रशस्ति रत्नावली

संपादन

कविता-कुसुममाला

अनुवाद

  • रघुवंशसार

  • भर्तृहरि नीतिशतक

पुरस्कार एवं सम्मान 

  • काव्य-विनोद - १९१२

  • साहित्य वाचस्पति -१९४८


संदर्भ

  • हिंदी के निर्माता, भाग-२, श्यामसुंदरदास, पृ. ५६-५७  

  • भावक, खंड-२, अंक-१, अक्टू.-दिसंबर, २०१९, पृ. ७६-७७ 

लेखक परिचय


अभीप्सा पटेल


शिक्षा- एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी. (शोधरत, दिल्ली विश्वविद्यालय)


प्रकाशित संपादन कार्य- ‘छायावाद - विचार और विश्लेषण, ‘हिंदी हाइकु - इतिहास और उपलब्धि’, ‘हाइकु मंजरी’। इनके अतिरिक्त विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं / पुस्तकों में लेख, कविता का नियमित प्रकाशन। लेखन के अतिरिक्त संगीत में रुचि। 

मोबाइल : +91 81303 52696


8 comments:

  1. लोचनप्रसाद पांडेय जी पर अभीप्सा पटेल का बहुत अच्छा सारगर्भित और शोधपरक लेख है. यह संयोग ही है कि हिंदी साहित्य को 'गीतिकाव्य' और 'छायावाद' नाम देने वाले लोचनप्रसाद पांडेय और मुकुटधर पांडेय... दोनों भाई रहे हैं.
    मुकुटधर पांडेय जी से उनके जीवन के अन्तिम काल में उनसे मेरा पत्र व्यवहार हुआ... उनका हस्तलिखित अंतिम पत्र मेरे पास सुरक्षित है जो मेरे लिए धरोहर जैसा है...
    अभीप्सा पटेल ने लोचनप्रसाद पांडेय जी पर बेहतरीन लेख लिखकर महत्वपूर्ण कार्य किया है. अभीप्सा पटेल को बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
    -डा० जगदीश व्योम

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  2. सारगर्भित लेख, बधाई
    डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय

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  3. लोचनप्रसाद जी पर लिखा अभीप्सा का लेख शोध परक है और नई आकांक्षाओं को जन्म देने वाला है | एक समर्थ रचनाकार / पुरातत्वविद होने के बावजूद हिंदी जगत में और इतिहास जगत में उनको उस रूप में याद नहीं किया गया है जितना किया जाना चाहिए था | २० वीं शताब्दी के प्रारंभ में रचनारत ऐसे अनेक रचनाकार और राष्ट्र चिंतक हुए हैं जिस ओर इतिहास लगभग मौन है | अभीप्सा का यह लेख इसी दिशा में किया गया प्रयास है - ऐसा कहा जा सकता है | उन्हें बहुत - बहुत बधाई और "हिंदी से प्यार है " ग्रुप को साधुवाद कि इस मंच से साहित्य, संस्कृति, धर्म के रक्षकों और सर्जक - व्यक्तित्व की रचना - धर्मिता को पूरी आत्मीयता के साथ प्रकाश पात किया का रहा है |
    - प्रो. रामनारायण पटेल, दिल्ली

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  4. पं० लोचन प्रसाद पांडेय जी का हिंदी साहित्य में योगदान अविस्मरणीय है। वह सचमुच साहित्य के गौरव स्तंभ थे। अभीप्सा जी के इस लेख के माध्यम से पं० लोचन प्रसाद पांडेय जी के बारे बहुत सारी जानकारी मिली। अभीप्सा जी को लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  5. भारतेन्दु साहित्य समिति के सदस्य तथा भारतीय सांस्कृतिक इतिहास को अपने साहित्य से नीति पोषण करने वाले अग्रगण्य साहित्य नेता पंडित लोचन प्रसाद पांडेय जी को नमन। आदरणीया अभीप्सा पटेल का आलेख अथक प्रयास और शोधपरख का नतीजा है जो गीतिकाव्य के माध्यम से पंडित जी की जीवनी से परिचित कराता है। पंडित जी के साहित्यिक कृतित्व को बखूबी इस आलेख में दर्शाया गया है। आपको इस लेखन के लिए ढ़ेर सारी बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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  6. अभीप्सा जी, आपने राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक, संत तुल्य लोचन प्रसाद पांडेय जी के अद्भुत व्यक्तित्व और कृत्तित्व पर बड़ा अच्छा आलेख लिखा है। इसके लिए आपको बधाई और आगामी लेखन के शुभकामनाएँ।

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  7. पंडित लोचन प्रसाद पांडेय का साहित्य सृजन हिंदी की अनमोल थाती है।उनकी व्यापी साधना स्तुत्य है। अभिप्सा जी का सराहनीय सतप्रयत्न ।

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  8. मैं डॉ. आराधना राजपूत मैने पंडित लोचन प्रसाद पांडेय जी पर पी.एच डी की उपाधि प्राप्त की है ।अपने शोध परक सामग्री के संकलन के सिलसिले में मुझे पंडित मुकुट धर पांडेय जी जो पं.लोचन प्ररसाद पांडेय जी के अनुज हैं से मिलने और दर्शन का अपार सौभाग्य प्राप्त हुआ आपका आलेख प्रशंसनीय है ।

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