पं० लोचन प्रसाद पांडेय भारतीय संस्कृति, साहित्य और इतिहास को संजोने वाले संगम-पुरुष थे। लोचन प्रसाद का जन्म छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ज़िले (अब जांजगीर-चांपा ज़िला) के बालपुर नामक गाँव में हुआ था। बालपुर महानदी, मांड और लात नदी के संगम पर स्थित एक छोटा-सा गाँव है। अमराई और पलाश वृक्षों से घिरा वह गाँव प्राकृतिक रमणीयता को अपने में समेटे हुए है। इसी गाँव में लोचन प्रसाद जी का एक भरा-पूरा बड़ा परिवार था। दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन सभी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। धर्म-शास्त्र, ज्योतिष, साहित्य, संगीत के प्रति रुचि और उदार हृदय होने के कारण अंचल में उनके परिवार की अच्छी प्रतिष्ठा थी। आतिथ्य-सेवा और आर्थिक सहायता उनका मूल-मंत्र था। उनके परिवार में आने वाले सभी आत्मीयजनों का सम्मान हो, इसका विशेष ख्याल रखा जाता था। इसीलिए उनके यहाँ ग्रामीण किसानों से लेकर साधु-विद्वानों तक का जमावाड़ा-सा लगा रहता था।
लोचन प्रसाद के पिता चिंतामणि पांडेय ने १८७९ में शिक्षा और समाज की उन्नति के लिए अपने गाँव में एक प्राथमिक पाठशाला का निर्माण करवाया था। उस समय क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य की कोई व्यवस्था नहीं थी तथा क्षेत्र नदियों से घिरा हुआ था। ऐसी स्थिति में पाठशाला का निर्माण होना अंचल के लोगों के लिए बहुत उपकार का कार्य था। और सचमुच उनका वह कार्य वरदान साबित हुआ। उस पाठशाला ने अनेक प्रतिभाशाली रचनाकारों को जन्म दिया। समर्थ रचनाकार पं० अनंतराम पांडेय, कृपाराम मिश्र, पुरुषोत्तम प्रसाद पांडेय, वंशीधर पांडेय, मुकुटधर पांडेय जैसे अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की शिक्षा यहीं हुई। लोचन प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा भी यहीं हुई। उन्होंने प्राइमरी स्कूल की शिक्षा पूर्ण करने के बाद १९०२ में संबलपुर से मिडिल स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की और आगे की पढ़ाई के लिए १९०५ में कलकत्ता विश्वविद्यालय चले गए। फिर उच्च शिक्षा के लिए १९०८ में काशी के सेंट्रल हिंदू कॉलेज में प्रवेश लिया, किंतु दादी की ममता और विशेष आग्रह के कारण वापस अपने गाँव बालपुर लौट आए। इससे उनकी उच्च शिक्षा अधूरी रह गई। लेकिन इस दौरान उन्होंने सेंट्रल हिंदू कॉलेज की मैगज़ीन में स्वास्थ्य संबंधी एवं व्यावहारिक-उपदेशपरक लेख लिखने के साथ-साथ देश-भक्तों की जीवनियाँ भी लिखीं, जिसकी प्रशंसा श्रीमती एनी बेसेंट तथा जस्टिस शारदाचरण मित्र (संपादक 'देवनागर') जैसे प्रबुद्धजनों ने की। फिर वे 'देवनागर' के नियमित लेखक बन गए, जिसमें उनकी उड़िया रचनाएँ देवनागरी लिपि में नियमित रूप से छपने लगीं। यह हिंदी के प्रति लोचन प्रसाद के प्रेम का ही प्रमाण है कि उन्होंने उड़िया की रचनाएँ देवनागरी लिपि में लिखी। 'अनुराग-रत्न' कविता में वे लिखते हैं -
वर वचन बिना है कार्य होता न कोई,
वर वचन बिना है आर्य होता न कोई।
वचन रहित पाता देश है क्लेश भारी,
बन बन अब हिंदी राष्ट्रभाषा हमारी।
लोचन प्रसाद ने यद्यपि प्रारंभ में ब्रजभाषा में रचनाएँ कीं, किंतु साहित्य में नवीनता के आग्रही होने के कारण और राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक होने के कारण, १९०४-१९०५ से खड़ी बोली में लिखना प्रारंभ किया। गद्य-पद्य में उनकी लगभग ४० कृतियाँ प्रकाशित हैं। 'कविता-कुसुममाला' (१९१०) उनके द्वारा संपादित ब्रज एवं खड़ी बोली का प्रथम प्रतिनिधि संकलन है। इसकी भूमिका में उन्होंने 'गीतिकाव्य' शब्द का पहली बार प्रयोग किया है, जो हिंदी साहित्येतिहास में गीतिकाव्यधारा के लिए किया गया नया नामकरण है। लोचन प्रसाद द्विवेदी-मंडल के प्रमुख रचनाकार थे। उन्होंने हिंदी में रचनाएँ तो की हीं, साथ ही संस्कृत, अंग्रेज़ी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया और छत्तीसगढ़ी में भी अनेक रचनाओं का सृजन किया। इन सभी भाषाओं में उनकी गहरी पकड़ थी। द्विवेदी-युग नैतिक आग्रह का युग था। इस समय सुधारवादी और शुद्धतावादी प्रवृति का बोलबाला था। धर्म, दर्शन और सामाजिक व्यवहार के क्षेत्र में तर्क का ही महत्व था और जो आदर्श तरक्की की तुला पर खरे उतरे, उसे ही स्वीकार किया जाता था। इसीलिए उस काल खंड में काव्य में अलौकिकता के प्रति अथवा चरित्र में अति मानवीय रूप के प्रति कोई विशेष उत्सुकता नहीं दिखाई देती थी। यद्यपि उसके बदले सामाजिक और राजनीतिक न्याय तथा स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व जैसे विचारों को महत्व दिया जाता था। उस समय प्रकृति और मातृभूमि को देवी रूप में चित्रित किया गया। यही प्रवृति लोचन प्रसाद जी की रचनाओं में भी थी -
सुजला, सुफला दिव्य-धरा,
पहने तृण का मृदु चीर हरा।
यह है अपनी जननी सुखदा,
हरती सुत-वृंद व्यथा-विपदा।
सब भांति अलौकिक है इसकी,
जग बीच प्रभा इतनी किसकी?
संदर्भ
हिंदी के निर्माता, भाग-२, श्यामसुंदरदास, पृ. ५६-५७
भावक, खंड-२, अंक-१, अक्टू.-दिसंबर, २०१९, पृ. ७६-७७
लोचनप्रसाद पांडेय जी पर अभीप्सा पटेल का बहुत अच्छा सारगर्भित और शोधपरक लेख है. यह संयोग ही है कि हिंदी साहित्य को 'गीतिकाव्य' और 'छायावाद' नाम देने वाले लोचनप्रसाद पांडेय और मुकुटधर पांडेय... दोनों भाई रहे हैं.
ReplyDeleteमुकुटधर पांडेय जी से उनके जीवन के अन्तिम काल में उनसे मेरा पत्र व्यवहार हुआ... उनका हस्तलिखित अंतिम पत्र मेरे पास सुरक्षित है जो मेरे लिए धरोहर जैसा है...
अभीप्सा पटेल ने लोचनप्रसाद पांडेय जी पर बेहतरीन लेख लिखकर महत्वपूर्ण कार्य किया है. अभीप्सा पटेल को बधाइयाँ और शुभकामनाएँ.
-डा० जगदीश व्योम
सारगर्भित लेख, बधाई
ReplyDeleteडॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय
लोचनप्रसाद जी पर लिखा अभीप्सा का लेख शोध परक है और नई आकांक्षाओं को जन्म देने वाला है | एक समर्थ रचनाकार / पुरातत्वविद होने के बावजूद हिंदी जगत में और इतिहास जगत में उनको उस रूप में याद नहीं किया गया है जितना किया जाना चाहिए था | २० वीं शताब्दी के प्रारंभ में रचनारत ऐसे अनेक रचनाकार और राष्ट्र चिंतक हुए हैं जिस ओर इतिहास लगभग मौन है | अभीप्सा का यह लेख इसी दिशा में किया गया प्रयास है - ऐसा कहा जा सकता है | उन्हें बहुत - बहुत बधाई और "हिंदी से प्यार है " ग्रुप को साधुवाद कि इस मंच से साहित्य, संस्कृति, धर्म के रक्षकों और सर्जक - व्यक्तित्व की रचना - धर्मिता को पूरी आत्मीयता के साथ प्रकाश पात किया का रहा है |
ReplyDelete- प्रो. रामनारायण पटेल, दिल्ली
पं० लोचन प्रसाद पांडेय जी का हिंदी साहित्य में योगदान अविस्मरणीय है। वह सचमुच साहित्य के गौरव स्तंभ थे। अभीप्सा जी के इस लेख के माध्यम से पं० लोचन प्रसाद पांडेय जी के बारे बहुत सारी जानकारी मिली। अभीप्सा जी को लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteभारतेन्दु साहित्य समिति के सदस्य तथा भारतीय सांस्कृतिक इतिहास को अपने साहित्य से नीति पोषण करने वाले अग्रगण्य साहित्य नेता पंडित लोचन प्रसाद पांडेय जी को नमन। आदरणीया अभीप्सा पटेल का आलेख अथक प्रयास और शोधपरख का नतीजा है जो गीतिकाव्य के माध्यम से पंडित जी की जीवनी से परिचित कराता है। पंडित जी के साहित्यिक कृतित्व को बखूबी इस आलेख में दर्शाया गया है। आपको इस लेखन के लिए ढ़ेर सारी बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
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ReplyDeleteअभीप्सा जी, आपने राष्ट्रीय एकता के प्रबल समर्थक, संत तुल्य लोचन प्रसाद पांडेय जी के अद्भुत व्यक्तित्व और कृत्तित्व पर बड़ा अच्छा आलेख लिखा है। इसके लिए आपको बधाई और आगामी लेखन के शुभकामनाएँ।
पंडित लोचन प्रसाद पांडेय का साहित्य सृजन हिंदी की अनमोल थाती है।उनकी व्यापी साधना स्तुत्य है। अभिप्सा जी का सराहनीय सतप्रयत्न ।
ReplyDeleteमैं डॉ. आराधना राजपूत मैने पंडित लोचन प्रसाद पांडेय जी पर पी.एच डी की उपाधि प्राप्त की है ।अपने शोध परक सामग्री के संकलन के सिलसिले में मुझे पंडित मुकुट धर पांडेय जी जो पं.लोचन प्ररसाद पांडेय जी के अनुज हैं से मिलने और दर्शन का अपार सौभाग्य प्राप्त हुआ आपका आलेख प्रशंसनीय है ।
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