विनोद कुमार शुक्ल माँ, पत्नी और बेटी के साथ (द्वारा शाश्वत गोपाल) |
३२ वर्ष की आयु में आपका विवाह सुधा जी से हुआ। सुधा जी वनस्पति
विज्ञान में एमएससी और विनोद जी अनन्य प्रकृति प्रेमी। विनोद जी साहित्यकार और
सुधा जी किताबों की शौक़ीन। दोनों की ख़ूब जमी। अपनी पहली मुलाक़ात याद करते हुए एक
हल्की मुस्कान के साथ विनोद जी कहते हैं ‘मंदिर के रास्ते
में मुझे उसे दिखाया जाना था। मेरा ख़याल है, जब मैंने उसे
देखा तो उसने भी मुझे उसे देखते हुए देख लिया था। वह धर्मयुग में मुझे पढ़ चुकी थी
और छपी फ़ोटो भी देख चुकी थी, ऐसा उसने मुझे शादी के बाद
बताया।’
वैसा ही वही!!/ एक छोटी गौरय्या वही/ वही नीम का पेड़ वही।/ समय उनका
है/ उनके समय में आना और जाना है।/ उस लड़की का नाम चिड़िया है/ उस लड़के का नाम
शाश्वत/ और घर के सामने कैलाश रहता है। रायपुर में सफ़ेद
चम्पा के फूल वाले घर में आप अपनी पत्नी सुधा, पुत्र शाश्वत
गोपाल, पुत्रवधु दीपा और पौत्री तरुश शाश्वती के संग रहते
हैं। मेरी बेटी की दो बेटियाँ हैं/ सबसे छोटी नातिन
जाग गई/ जागते ही उसने सुबह को गुड़िया की तरह उठाया/ बड़ी नातिन जागेगी तो/ दिन
को उठा लेगी। बेटी अपने
परिवार के साथ नागपुर में रहती है।
लिखना जब मेरी सोच में आता है तो जैसे कोई एक
देखा हुआ पक्षी पिंजड़े में आ जाता है
‘मैं लिख कर पिंजड़े में आए उस सोच के पक्षी को स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूँ। इसलिए लिखता हूँ।’
१९५८ में मुक्तिबोध राजनांदगाँव आए। बड़े भाई के
कहने पर विनोद जी ने उन्हें अपनी कविता दिखाई। उस वक़्त तो मुक्तिबोध ने अच्छे से
पढ़ाई करने और कमाने में सक्षम होने के बाद लिखने की सलाह दी। लेकिन जल्द ही उनके
पास श्रीकांत वर्मा का ‘पुस्तक कृति’
नामक एक प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित करने का
प्रस्ताव आ गया। तबसे आपका लेखन अनवरत रूप से चल रहा है। विनोद जी की कृतियों को
अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। प्रसिद्ध उपन्यास ‘नौकर की
कमीज़’ पर मणि कौल ने इसी नाम से फ़िल्म भी बनायी। ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ १९९९ के साहित्य
अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है। अँग्रेज़ी कहानी संग्रह ‘ब्लू
इज़ लाइक ब्लू’ को २०२० का मातृभूमि अवार्ड तथा २०१९ का अट्टा
गलट्टा – बंगलोर लिटरेचर फ़ेस्टिवल बुक प्राइज़ मिला। अपनी रचना प्रक्रिया के बारे
में विनोद जी कहते हैं, ‘मैं ६४ वर्षों से लिख रहा हूँ लेकिन
उस्तादी नहीं आई। अभी भी लिखने में उन्हीं चुनौतियों को महसूस करता हूँ जो पहले
करता था।’ और शाश्वत जी ‘एकांत का बाहर
जाना’ में लिखते हैं ‘जहाँ सब होते हैं
वे वहाँ लिखते हैं। जगह न हो तो खड़े-खड़े ही लिखने लगते हैं। मोहल्ले के बच्चे ऊपर
लदे हों फिर भी लिखते रहते हैं।’
एग्रीकल्चरल एक्सटेन्शन से मास्टर्स डिग्री में मेरिट में पाँचवे आने पर भी विनोद जी को नौकरी
मिलने में बहुत कठिनाई हुई। पहले विनोद जी ने छोटी-मोटी नौकारियाँ कीं –
इंटरप्रेटर, रिसर्च
असिसटेन्ट आदि। फिर पब्लिक सर्विस कमीशन से लेक्चरर के रूप में चुन लिये जाने के
बाद आपने रायपुर एग्रीकल्चर कॉलेज में नौकरी शुरू की और सेवानिवृत्त होने तक वहीं
कार्यरत रहे।
मुझे नाम रखने में बहुत परेशानी होती है
उनके एक यूट्यूब इंटरव्यू में मैंने सुना-‘मुझे नाम रखने में बहुत परेशानी होती है, घर के बच्चों के भी मैं नाम नहीं रखता, कोई दूसरे रखते हैं।’ इस बात ने मेरा ध्यान खींचा, मैं जानना चाहती थी जो शब्दों से मायामयी यथार्थ की दुनिया रच सकता है उसे नाम रखने में कैसी परेशानी! शाश्वत जी से बातचीत की शुरुआत मैंने नामकरण संबंधित प्रश्नों से ही की। शाश्वत जी का नाम उनकी बड़ी चचेरी बहन ने रखा। विनोद जी की बेटी का नाम ‘विचार दर्शिनी’।‘ये किसने रखा’
‘ये उन्होंने ही रखा’
‘अच्छा!’ (मैंने मन में सोचा, ऐसा कैसे – वे तो नहीं रखते!)
रमेश अनुपम जी ‘विनोद कुमार शुक्ल होने के मायने में’
लिखते हैं, ‘लगभग जयहिन्द में विनोद कुमार
शुक्ल की एक से लेकर बीस कविताएँ शीर्षकविहीन हैं जिसे 1, 2, 3, 4 के क्रमानुसार प्रकाशित किया गया है।’
‘वह आदमी नया गरम
कोट पहनकर चला गया विचार की तरह’ काव्य संग्रह भी श्री अशोक वाजपेयी के पास बिना
नाम का पहुँचा, वाजपेयी जी ने
ही कविता की पहली पंक्ति से संग्रह का नामकरण किया।
जब बिजली कौंध जाती है, तब बिजली
कौंध जाती है
पंक्तियाँ जैसे कोई कोडेड संदेश – दिखने में तो
एक दो तीन... या क ख ग... लेकिन मर्म तक पहुँचने के लिए डिकोडिंग माँगती हैं। कहीं
सिंगल क्वोट्स या डबल क्वोट्स नहीं – अगर होते तो शायद उनका भी एक अलग ही अर्थ
होता!
‘पैडल मारेंगे और ऊँचे चढ़
जाएँगे। ऊपर बादल के टुकड़े रिक्शे पर लद जाएँगे।’
यहाँ आकाश पर जाने की बात हो रही है और यह साइंस फ़िक्शन नहीं,
एक आम घर-गृहस्थी की कहानी है। ‘क्या ऐसा हो
सकता है?’, प्रश्न लेखक को परेशान ही नहीं करता। घर के
सामने कोई साइकिल लावारिस छोड़कर तो नहीं चला गया! घर के सामने का नीम का पेड़
रघुवर प्रसाद के घर के सामने इस तरह था कि उसे किसी ने छोड़ा नहीं था। समानता
का भाव विनोद जी के लेखन में कूट-कूट कर भरा हुआ है। अगर कोई स्कूटर छोड़ सकता है
तो पेड़ भी छोड़ सकता है। अगर पात्र ताड़ के पेड़ों को देखता है तो लेखक पाठक की
स्मृति में यह भी दर्ज कराता चलता है कि ताड़ के पेड़ों ने भी पात्र को देखा होगा।
विनोद जी का लेखन नयी दृष्टियाँ माँगता है। दिखने के अलावा जो है, और उसके भी अलावा, अलावा, अलावा।
परत दर परत वह देखते और दिखाते चले जाते हैं। ‘वह दृश्य हाथी
का इन्तजार कर रहा था कि हाथी आए तो वह आते हुए हाथी के दृश्य के रूप में दिखे।’
‘एक-एक अकेले के बीच रखने अपने
को हम लोग कहता हूँ’ अकेलापन गणनीय है।
‘बरसात हो रही थी/ और डूबता हुआ सूरज था/ इस दृश्य के चिड़िया इतने
टुकड़े में/ एक चोंच थी/ ऐसा एक पक्षी बैठ रहा था।’ दृश्य विभाज्य है।
‘कल के सूर्योदय से/ पाँच मिनट की सुबह को
बचाकर/ आज की सुबह को पाँच मिनट यद्यपि/ नहीं बढ़ा पाया’ पाँच मिनट की सुबह एक राशि है। यह विनोद जी का गणित है।
‘उन उड़ते हुए पक्षियों से मैंने
कहा आभार/ आभार पक्षियों की ओर उड़ गया/ पहले एक मेरा आभार था और बाक़ी सब सारस थे/’ आभार सारसों के साथ उड़ रहा है, यह उनका विज्ञान है।
‘बच्चे भी सिद्धार्थ नहीं थे/
बुद्ध थे।’
बच्चे बुद्ध, बड़े
बुद्ध, पेड़-पौधे बुद्ध, जीव-जन्तु,
पहाड़-पठार, नदी-तालाब – सब समान – सब
बुद्ध – सबको समान मानना, सबके दिखे जाने को
देखना और सबके कहे हुए को सुनना, यह उनका जीवन है।
प्रकाशन में पारदर्शिता न होने के कारण हमारी सदी का यह महान
साहित्यकार अपनी पुस्तकों को लेकर ठगा सा महसूस करता है, उन्हें
तहख़ाने में बंद सा पाता है। और इसके पश्चात, जीवन के
चौरासीवें साल में भी अपने विचारों के पक्षियों को स्वतंत्र करने में सतत् कर्मरत
है।
‘मैं उड़ते हुए एक पक्षी के पीछे-पीछे जा रहा हूँ।/ पक्षी! मैं
तुम्हारे पीछे हूँ!!’
जीवन
परिचय : विनोद कुमार शुक्ल |
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जन्म |
१ जनवरी १९३७, राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़) |
कर्मभूमि |
रायपुर,
छत्तीसगढ़ |
पिता |
शिवगोपाल शुक्ल |
माता |
रुक्मिणी देवी, |
पत्नी |
सुधा शुक्ल |
संतान |
पुत्र – शाश्वत गोपाल; पुत्रवधु – दीपा; पोती – तरुश शाश्वती |
शिक्षा |
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय (JNKVV), जबलपुर से स्नातकोत्तर |
साहित्यिक
रचनाएँ |
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उपन्यास |
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कविता संग्रह |
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कहानी संग्रह |
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बाल साहित्य |
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अनूदित कृतियाँ |
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सम्मान |
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सन्दर्भ:
विनोद कुमार जी से वीडिओ कॉल
शाश्वत जी से फोन पर बातचीत
एकांत का बाहर जाना – शाश्वत गोपाल का अपने पिता पर लिखा लेख
विनोद कुमार शुक्ल के मायने: रमेश अनुपम (dailychhattisgarh.com)
विनोद कुमार शुक्ल - विकिपीडिया (wikipedia.org)
विनोद कुमार शुक्ल: कविताओं में प्रेम और प्रकृति रचता हुआ कवि (theprint.in)
Exclusive Interview Of Writer Vinod Kumar Shukla - कट्टरता का विरोध, पुरस्कार लौटाना विकल्प नहीं: विनोद कुमार शुक्ल - Amar Ujala Hindi News Live
सुनिए विनोद कुमार शुक्ल से कविताएँ, कहानियाँ और बातें - YouTube
लेखक परिचय:
ऋचा जी, लेखन के प्रति पूर्णतः समर्पित और इर्दगिर्द की बातों और वस्तुओं को अपनी अद्भुत दृष्टि से देखने, अभिव्यक्त करने वाले लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को आपके शब्दों ने बहुत सुन्दर सँजोया है। वर्ष के आरम्भ में यह निश्चित ही बेहतरीन तोहफा है। आपको इस के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और बधाई।
ReplyDeleteआपके समय, शब्दों और प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभारी हूँ, प्रगति जी। अच्छा लगा।
Deleteऋचा जी, विनोद कुमार शुक्ल जी के वृहत्तर रचना संसार को आपने बेहतरीन ढंग से संजोया है बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteइस टीप के के लिए हृदय से आभारी हूँ, कल्पना जी :)
Deleteऋचा जी आपने विनोद कुमार शुक्ल के साहित्य एवं जीवन यात्रा को बहुत बढ़िया ढंग से लेख में पिरोया है। मुझ जैसे अल्पज्ञ लोगों के लिए उत्तम जानकारी इस लेख में उपलब्ध है। इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआपका बड़प्पन जो मेरा मान रख रहे हैं :) . आपके शब्दों ने निश्चित ही बल दिया है। बहुत आभार
Deleteविनोद कुमार शुक्ल जी के बारे में आपने बहुत सुंदर लिखा है आपको साधुवाद हां
ReplyDeleteबहुत आभार, संजीव जी
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