Saturday, January 1, 2022

वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल

विनोद कुमार शुक्ल माँ, पत्नी और बेटी के साथ (द्वारा शाश्वत गोपाल)

पहले से ज़्यादा पढ़ा नहीं था लेखक को – ‘हताशा’ और कुछ अन्य कविताएँ – लेकिन  जितना भी पढ़ा था और उनके बारे में जो भी सुना था, उससे उन्हें अच्छे से पढ़ने की, जानने की बहुत इच्छा थी। इसलिए आलेख लिखने के लिए हाथ भी ऊँचा किया। ई-बुक रूप में ‘नौकर की कमीज़’ पढ़ने के बाद किन्डल में ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ पढ़ रही थी। लगा, जैसे दोनों हाथों से लिखने वाला रघुवर प्रसाद ही (उपन्यास का प्रमुख पात्र) बाज़ीगर की तरह शब्दों की उछाल-पकड़ कर रहा है। जब विभागाध्यक्ष बड़े उत्साह से ‘खिड़की के बाहर का’ ढूँढ़ने जाते हैं, ढूँढ़-ढूँढ़  हैरान परेशान हो जाते हैं लेकिन कुछ ढूँढ़ नहीं पाते – इस बिन्दु पर मेरे मुँह से निकला ‘जीनिअस’ और सकते में आ गयी, लैपटॉप बंद कर दिया – ‘क्या इनके बारे में कुछ भी लिख पाने की क्षमता है मेरी?’ समय लगा हिम्मत जुटाने में!     ... अपने सीमित पठन के आधार पर यह एक बहुत ही सादा सा प्रयास है, इस जादूगर के कुछ करतबों की छोटी सी झलक पेश करने का -

हाय! महाकौशल, छत्तीसगढ़ या भारतवर्ष 
इसी में नांदगाँव मेरा घर
एक मुझ से अधिक बूढ़े यात्री ने
उतरते हुए कहा/ 'तुम भी उतर जाओ
अगले जनम पहुँचेगी यह गाड़ी'
मुझे जल्दी नहीं थी
मैं ख़ुशी से गाड़ी में बैठा रहा
मुझे राजनांदगाँव उतरना था/ जहाँ मेरा जन्म हुआ था

१ जनवरी १९३७ को जन्मे विनोद जी का बचपन एक प्रतिष्ठत संयुक्त परिवार में बीता। फ़िल्में और साहित्य आपके जीवन में शुरू से थे। इन दोनों के संस्कार आपको अपनी माँ से मिले। माँ का जन्म अविभाजित बंगाल के सबसे संभ्रांत माने जाने वाले परिवार में हुआ और बचपन भी वहीं बीता। उनके पिता यानी लेखक के नाना की दंगाइयों ने प्रात: स्नान के समय पद्मा नदी (जमालपुर) के किनारे हत्या कर दी। उसके बाद माँ यानी रुक्मिणी देवी का परिवार भारत विस्थापित हो गया। कृष्णा टॉकीज़ में माँ की गोद में बैठकर बाल विनोद ने बहुत सी फ़िल्मों का आनंद उठाया। विनोद जी अपनी माँ के बहुत निकट थे। माँ ने साहित्य से संबंधित दो बातें याद रखने को कहा – १. अपने परिवार के बारे में ज़रूर लिखना २. विश्व में जहाँ-कहीं भी अच्छा साहित्य लिखा जा रहा है, उसे पढ़ना। विनोद जी कहते हैं, ‘पहली सीख को निभाना तो मेरे हाथ में था। लेकिन उस काल में विश्व साहित्य तक कैसे पहुँचता!’ तो शुरुआत उन्होंने बांग्ला साहित्य से की और बंकिमचंद्र, रवींद्र नाथ टैगोर, शरतचंद्र आदि सभी को पढ़ा। घर में संध्या में कविता एक आम बात थी। सभी भाई हाथ आज़माते और फिर एक दूसरे का काम पढ़ते।   

३२ वर्ष की आयु में आपका विवाह सुधा जी से हुआ। सुधा जी वनस्पति विज्ञान में एमएससी और विनोद जी अनन्य प्रकृति प्रेमी। विनोद जी साहित्यकार और सुधा जी किताबों की शौक़ीन। दोनों की ख़ूब जमी। अपनी पहली मुलाक़ात याद करते हुए एक हल्की मुस्कान के साथ विनोद जी कहते हैंमंदिर के रास्ते में मुझे उसे दिखाया जाना था। मेरा ख़याल है, जब मैंने उसे देखा तो उसने भी मुझे उसे देखते हुए देख लिया था। वह धर्मयुग में मुझे पढ़ चुकी थी और छपी फ़ोटो भी देख चुकी थी, ऐसा उसने मुझे शादी के बाद बताया।

वैसा ही वही!!/ एक छोटी गौरय्या वही/ वही नीम का पेड़ वही।/ समय उनका है/ उनके समय में आना और जाना है।/ उस लड़की का नाम चिड़िया है/ उस लड़के का नाम शाश्वत/ और घर के सामने कैलाश रहता है। रायपुर में सफ़ेद चम्पा के फूल वाले घर में आप अपनी पत्नी सुधा, पुत्र शाश्वत गोपाल, पुत्रवधु दीपा और पौत्री तरुश शाश्वती के संग रहते हैं।  मेरी बेटी की दो बेटियाँ हैं/ सबसे छोटी नातिन जाग गई/ जागते ही उसने सुबह को गुड़िया की तरह उठाया/ बड़ी नातिन जागेगी तो/ दिन को उठा  लेगी। बेटी अपने परिवार के साथ नागपुर में रहती है। 

लिखना जब मेरी सोच में आता है तो जैसे कोई एक देखा हुआ पक्षी पिंजड़े में आ जाता है 

मैं लिख कर पिंजड़े में आए उस सोच के पक्षी को स्वतंत्र करने की कोशिश करता हूँ। इसलिए लिखता हूँ।’ 

१९५८ में मुक्तिबोध राजनांदगाँव आए। बड़े भाई के कहने पर विनोद जी ने उन्हें अपनी कविता दिखाई। उस वक़्त तो मुक्तिबोध ने अच्छे से पढ़ाई करने और कमाने में सक्षम होने के बाद लिखने की सलाह दी। लेकिन जल्द ही उनके पास श्रीकांत वर्मा कापुस्तक कृतिनामक एक प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित करने का प्रस्ताव आ गया। तबसे आपका लेखन अनवरत रूप से चल रहा है। विनोद जी की कृतियों को अनेक पुरस्कारों से नवाज़ा गया है। प्रसिद्ध उपन्यासनौकर की कमीज़पर मणि कौल ने इसी नाम से फ़िल्म भी बनायी।दीवार में एक खिड़की रहती थी१९९९ के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित है। अँग्रेज़ी कहानी संग्रहब्लू इज़ लाइक ब्लूको २०२० का मातृभूमि अवार्ड तथा २०१९ का अट्टा गलट्टा – बंगलोर लिटरेचर फ़ेस्टिवल बुक प्राइज़ मिला। अपनी रचना प्रक्रिया के बारे में विनोद जी कहते हैं,मैं ६४ वर्षों से लिख रहा हूँ लेकिन उस्तादी नहीं आई। अभी भी लिखने में उन्हीं चुनौतियों को महसूस करता हूँ जो पहले करता था।और शाश्वत जीएकांत का बाहर जानामें लिखते हैंजहाँ सब होते हैं वे वहाँ लिखते हैं। जगह न हो तो खड़े-खड़े ही लिखने लगते हैं। मोहल्ले के बच्चे ऊपर लदे हों फिर भी लिखते रहते हैं।’ 

 अपनी पढ़ाई के समय को याद करते हुए विनोद जी कहते हैं, ‘वह डॉक्टर और इंजीनियर बनने का ज़माना था। मैं साइंस कॉलेज में भर्ती हुआ और बायोलॉजी विषय लिया लेकिन ऑर्गैनिक केमिस्ट्री और हिंदी निबंध में अनुत्तीर्ण हो गया। चूँकि मैं दो विषयों में फ़ेल हुआ था, इसलिए मुझे सप्लीमेंट्री नहीं मिली। मुझे साइंस कॉलेज छोड़ना पड़ा| फिर मैं एग्रीकल्चर कॉलेज में भर्ती हो गया।विनोद जी को हिंदी में कभी अच्छे अंक नहीं मिले। उनके हिंदी के शिक्षक, जो राजनांदगाँव से ही थे, कहतेतुम कैसा लिखते हो, मेरी समझ में नहीं आता!’ 

एग्रीकल्चरल एक्सटेन्शन से मास्टर्स डिग्री में मेरिट में पाँचवे आने पर भी विनोद जी को नौकरी मिलने में बहुत कठिनाई हुई। पहले विनोद जी ने छोटी-मोटी नौकारियाँ कीं – इंटरप्रेटर, रिसर्च असिसटेन्ट आदि। फिर पब्लिक सर्विस कमीशन से लेक्चरर के रूप में चुन लिये जाने के बाद आपने रायपुर एग्रीकल्चर कॉलेज में नौकरी शुरू की और सेवानिवृत्त होने तक वहीं कार्यरत रहे। 

मुझे नाम रखने में बहुत परेशानी होती है

उनके एक यूट्यूब इंटरव्यू में मैंने सुना-‘मुझे नाम रखने में बहुत परेशानी होती है, घर के बच्चों के भी मैं नाम नहीं रखता, कोई दूसरे रखते हैं।’ इस बात ने मेरा ध्यान खींचा, मैं जानना चाहती थी जो शब्दों से मायामयी यथार्थ की दुनिया रच सकता है उसे नाम रखने में कैसी परेशानी! शाश्वत जी से बातचीत की शुरुआत मैंने नामकरण संबंधित प्रश्नों से ही की। शाश्वत जी का नाम उनकी बड़ी चचेरी बहन ने रखा। विनोद जी की बेटी का नाम ‘विचार दर्शिनी’।
‘ये किसने रखा’
‘ये उन्होंने ही रखा’
‘अच्छा!’ (मैंने मन में सोचा, ऐसा कैसे –  वे तो नहीं रखते!)
‘जी, दरअसल उन्हें रखना पड़ा। ’ बेटी का नाम पाँच साल तक नहीं रखा था। घर में कूना बुलाते थे। स्कूल में फ़ॉर्म भर दिया। नाम की जगह खाली थी। अन्य परिजनों की तरह विनोद जी भी फ़ॉर्म लेकर एडमिशन की लाइन में लगे थे। नंबर आया, मैडम ने देखा - इसमें तो बच्ची का नाम ही नहीं है। विनोद जी अपने जगप्रसिद्ध भोले अंदाज़ में बोले – जी, मैं कुछ सोच नहीं पाया हूँ। मैडम झुँझलाईं – आप क्याविचारकर रहे हैं अब तक! विनोद जी बोलेअच्छा तो आप विचार दर्शिनी लिख लीजिए।

रमेश अनुपम जीविनोद कुमार शुक्ल होने के मायने मेंलिखते हैं, ‘लगभग जयहिन्द में विनोद कुमार शुक्ल की एक से लेकर बीस कविताएँ शीर्षकविहीन हैं जिसे 1, 2, 3, 4 के क्रमानुसार प्रकाशित किया गया है।

वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरहकाव्य संग्रह भी श्री अशोक वाजपेयी के पास बिना नाम का पहुँचा, वाजपेयी जी ने ही कविता की पहली पंक्ति से संग्रह का नामकरण किया। 

जब बिजली कौंध जाती है, तब बिजली कौंध जाती है

पंक्तियाँ जैसे कोई कोडेड संदेश – दिखने में तो एक दो तीन... या क ख ग... लेकिन मर्म तक पहुँचने के लिए डिकोडिंग माँगती हैं। कहीं सिंगल क्वोट्स या डबल क्वोट्स नहीं – अगर होते तो शायद उनका भी एक अलग ही अर्थ होता!

पैडल मारेंगे और ऊँचे चढ़ जाएँगे। ऊपर बादल के टुकड़े रिक्शे पर लद जाएँगेयहाँ आकाश पर जाने की बात हो रही है और यह साइंस फ़िक्शन नहीं, एक आम घर-गृहस्थी की कहानी है।क्या ऐसा हो सकता है?’, प्रश्न लेखक को परेशान ही नहीं करता। घर के सामने कोई साइकिल लावारिस छोड़कर तो नहीं चला गया! घर के सामने का नीम का पेड़ रघुवर प्रसाद के घर के सामने इस तरह था कि उसे किसी ने छोड़ा नहीं था। समानता का भाव विनोद जी के लेखन में कूट-कूट कर भरा हुआ है। अगर कोई स्कूटर छोड़ सकता है तो पेड़ भी छोड़ सकता है। अगर पात्र ताड़ के पेड़ों को देखता है तो लेखक पाठक की स्मृति में यह भी दर्ज कराता चलता है कि ताड़ के पेड़ों ने भी पात्र को देखा होगा। विनोद जी का लेखन नयी दृष्टियाँ माँगता है। दिखने के अलावा जो है, और उसके भी अलावा, अलावा, अलावा। परत दर परत वह देखते और दिखाते चले जाते हैं। वह दृश्य हाथी का इन्तजार कर रहा था कि हाथी आए तो वह आते हुए हाथी के दृश्य के रूप में दिखे।

एक-एक अकेले के बीच रखने अपने को हम लोग कहता हूँ अकेलापन गणनीय है।
बरसात हो रही थी/ और डूबता हुआ सूरज था/ इस दृश्य के चिड़िया इतने टुकड़े में/ एक चोंच थी/ ऐसा एक पक्षी बैठ रहा था।
 दृश्य विभाज्य है।
कल के सूर्योदय से/ पाँच मिनट की सुबह को बचाकर/ आज की सुबह को पाँच मिनट यद्यपि/ नहीं बढ़ा पायापाँच मिनट की सुबह एक राशि है। यह विनोद जी का गणित है।

उन उड़ते हुए पक्षियों से मैंने कहा आभार/ आभार पक्षियों की ओर उड़ गया/ पहले एक मेरा आभार था और बाक़ी सब सारस थे/ आभार सारसों के साथ उड़ रहा है, यह उनका विज्ञान है।

बच्चे भी सिद्धार्थ नहीं थे/ बुद्ध थे।
बच्चे  बुद्ध, बड़े  बुद्ध, पेड़-पौधे बुद्ध, जीव-जन्तु, पहाड़-पठार, नदी-तालाब – सब समान – सब  बुद्ध – सबको समान मानना, सबके दिखे जाने को देखना और सबके कहे हुए को सुनना, यह उनका जीवन है।
प्रकाशन में पारदर्शिता न होने के कारण हमारी सदी का यह महान साहित्यकार अपनी पुस्तकों को लेकर ठगा सा महसूस करता है, उन्हें तहख़ाने में बंद सा पाता है। और इसके पश्चात, जीवन के चौरासीवें साल में भी अपने विचारों के पक्षियों को स्वतंत्र करने में सतत् कर्मरत है।   
मैं उड़ते हुए एक पक्षी के पीछे-पीछे जा रहा हूँ।/ पक्षी! मैं तुम्हारे पीछे हूँ!!

 

जीवन परिचय : विनोद कुमार शुक्ल

जन्म

१ जनवरी १९३७राजनांदगाँव (छत्तीसगढ़)

कर्मभूमि 

रायपुर, छत्तीसगढ़ 

पिता 

शिवगोपाल शुक्ल

माता

रुक्मिणी देवी

पत्नी 

सुधा शुक्ल 

संतान 

पुत्र – शाश्वत गोपाल; पुत्रवधु – दीपा; पोती – तरुश शाश्वती
पुत्री – विचार दर्शिनी; दामाद – देवेन्द्र मिश्र; नातिनें – सिया, सारा 

शिक्षा

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय (JNKVV), जबलपुर से स्नातकोत्तर  

साहित्यिक रचनाएँ

उपन्यास 

  • नौकर की कमीज़१९७९
  • खिलेगा तो देखेंगे१९९६
  • दीवार में एक खिड़की रहती थी१९९७
  • हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़२०११
  • एक चुप्पी जगह२०१८

कविता संग्रह

  • लगभग जयहिन्द१९७१
  • वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह१९८१
  • सब कुछ होना बचा रहेगा१९९२
  • अतिरिक्त नहीं२०००
  • कविता से लंबी कविता२००१
  • आकाश धरती को खटखटाता है२००६
  • पचास कविताएँ२०११
  • कभी के बाद अभी२०१२
  • कवि ने कहा – चुनी हुई कविताएँ२०१२
  • प्रतिनिधि कविताएँ२०१३  

कहानी संग्रह

  • पेड़ पर कमरा१९८८
  • महाविद्यालय१९९६
  • एक कहानी२०२१
  • घोड़ा और अन्य कहानियाँ२०२१

बाल साहित्य

  • यासि रासा त२०१७ (बाल उपन्यास)
  • कविताओं के पोस्टकार्ड२०२० कहानी संग्रह (शीघ्र प्रकाश्य)
  • साईकिल पत्रिका में नियमित प्रकाशन  

अनूदित कृतियाँ

  • The Servant’s Shirt ‘1999
  • A Window Lived In The Wall ‘2005
  • Moonrise From The green Grass Roof ‘2017
  • Blue Is Like Blue ‘2019
  • The Windows In Our House Are Little Doors ‘2020
  • कविताएँ इतालवी, स्वीडिश, जर्मन, अरबी, अंग्रेज़ी सहित प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनूदित,
  • पेड़ पर कमरामराठी में अनूदित,
  • नौकर की कमीज़फ़्रांसीसी तथा भारतीय भाषाओं में अनूदित,
  • दीवार में एक खिड़की रहती थीप्रमुख भारतीय भाषाओं में अनूदित।

सम्मान

  • गजानन माधव मुक्तिबोध फ़ेलोशिप (म.प्र. शासन)
  • रज़ा पुरस्कार (मध्यप्रदेश कला परिषद)
  • शिखर सम्मान (म.प्र. शासन)
  • राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान (म.प्र. शासन)
  • दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान (मोदी फाउंडेशन)
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (भारत सरकार)
  • हिन्दी गौरव सम्मान (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उ.प्र. शासन)
    मातृभूमि पुरस्कार-वर्ष २०२० (अंग्रेजी कहानी संग्रह ‘Blue Is Like Blue’ के लिए)
    साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मानमहत्तर सदस्यके लिए चुनाव, वर्ष २०२१

 

सन्दर्भ:

विनोद कुमार जी से वीडिओ कॉल
शाश्वत जी से फोन पर बातचीत
एकांत का बाहर जाना – शाश्वत गोपाल का अपने पिता पर लिखा लेख
विनोद कुमार शुक्ल के मायने: रमेश अनुपम (dailychhattisgarh.com)
विनोद कुमार शुक्ल - विकिपीडिया (wikipedia.org)

झिर्रियों में रोशनी : विनोद कुमार शुक्ल / अशोक अग्रवाल - Gadya Kosh - हिन्दी कहानियाँलेखलघुकथाएँनिबन्धनाटककहानीगद्यआलोचनाउपन्यासबाल कथाएँप्रेरक कथाएँगद्य कोश

विनोद कुमार शुक्ल: कविताओं में प्रेम और प्रकृति रचता हुआ कवि (theprint.in)
Exclusive Interview Of Writer Vinod Kumar Shukla - कट्टरता का विरोधपुरस्कार लौटाना विकल्प नहीं: विनोद कुमार शुक्ल - Amar Ujala Hindi News Live

सुनिए विनोद कुमार शुक्ल से कविताएँकहानियाँ और बातें - YouTube

 लेखक परिचय: 

 ऋचा जैन: आई टी प्रोफेशनल, कवि, लेखिका और अध्यापिका। प्रथम काव्य संग्रह 'जीवन वृत्त, व्यास ऋचाएँ' भारतीय उच्चायोग, लंदन से सम्मानित और भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 2020 में प्रकाशित। कहानी के माध्यम से जर्मन सीखने के लिए बच्चों की किताब 'श्पास मिट एली उंड एजी' गोयल पब्लिशर्स द्वारा 2014 में प्रकाशित। लंदन में निवास, पर्यटन में गहरी रुचि, भाषाओं से विशेष प्यार। ईमेल - richa287@yahoo.com

8 comments:

  1. ऋचा जी, लेखन के प्रति पूर्णतः समर्पित और इर्दगिर्द की बातों और वस्तुओं को अपनी अद्भुत दृष्टि से देखने, अभिव्यक्त करने वाले लेखक विनोद कुमार शुक्ल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को आपके शब्दों ने बहुत सुन्दर सँजोया है। वर्ष के आरम्भ में यह निश्चित ही बेहतरीन तोहफा है। आपको इस के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया और बधाई।

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    1. आपके समय, शब्दों और प्रोत्साहन के लिए हृदय से आभारी हूँ, प्रगति जी। अच्छा लगा।

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  2. ऋचा जी, विनोद कुमार शुक्ल जी के वृहत्तर रचना संसार को आपने बेहतरीन ढंग से संजोया है बहुत-बहुत बधाई!

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    1. इस टीप के के लिए हृदय से आभारी हूँ, कल्पना जी :)

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  3. ऋचा जी आपने विनोद कुमार शुक्ल के साहित्य एवं जीवन यात्रा को बहुत बढ़िया ढंग से लेख में पिरोया है। मुझ जैसे अल्पज्ञ लोगों के लिए उत्तम जानकारी इस लेख में उपलब्ध है। इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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    1. आपका बड़प्पन जो मेरा मान रख रहे हैं :) . आपके शब्दों ने निश्चित ही बल दिया है। बहुत आभार

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  4. विनोद कुमार शुक्ल जी के बारे में आपने बहुत सुंदर लिखा है आपको साधुवाद हां

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    1. बहुत आभार, संजीव जी

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