प्रगतिवादी लेखन आंदोलन से जुड़े और यथार्थवाद के सिद्धांतों पर सृजन करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार श्री भीष्म साहनी जी का जन्म ८ अगस्त, १९१५ को अविभाजित पंजाब के रावलपिंडी में हुआ। इनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाज-सेवी थे। भीष्म साहनी अपने परिवार की सातवीं संतान थे। हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता बलराज साहनी इनके बड़े भाई थे। भीष्म जी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हिन्दी व संस्कृत में हुई। बाद में उनका दाख़िला स्कूल में कराया गया, जहाँ उन्होंने उर्दू व अँग्रेज़ी की भी शिक्षा प्राप्त की। सन् १९३७ में उन्होंने लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज से अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया। उन्होंने डॉ. इंद्रनाथ मदान के निर्देशन में ‘Concept of the Hero in the Novel’ शीर्षक के अंतर्गत अपना शोधकार्य पंजाब विश्वविद्यालय से किया। उन्हें पीएचडी की उपाधि वर्ष १९५८ में प्राप्त हुई।
भारत के स्वतंत्रता-संग्राम में भी उनकी भागीदारी रही। सन् १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान वे जेल भी गए। विभाजन के समय उनका पूरा परिवार पाकिस्तान से अमृतसर, भारत आ गया था। देश के विभाजन की त्रासदी उन्होंने बहुत क़रीब से देखी थी और उसकी अभिव्यक्ति उनकी लेखनी में झलकती है।
भीष्म जी की पहली कहानी 'अम्बाला' इंटर कॉलेज की पत्रिका 'रावी' में तथा दूसरी कहानी 'नीली आँखें' 'हंस' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। स्वतंत्र व्यक्तित्व वाले भीष्म जी का विवाह सन् १९४४ में शीला जी के साथ हुआ। विवाह के पूर्व शीला जी रावलपिंडी के डी.ए.वी. कॉलेज में बी.ए. के अंतिम वर्ष की छात्रा थीं। वहीं पर भीष्म जी अँग्रेज़ी के अध्यापक थे। भीष्म जी के अध्यापन और व्यक्तित्व ने शीला जी को काफ़ी प्रभावित किया और ये ही भीष्म जी के प्रति उनके आकर्षण के मुख्य कारण थे।
मानवीय संवेदनाओं के सशक्त हस्ताक्षर साहनी जी ने अपने उपन्यासों में भारत के तात्कालिक सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक यथार्थ का स्पष्ट चित्र उकेरा है। मार्क्सवादी चिंतन को मानववादी दृष्टिकोण से जोड़ने और उसे जन-जन तक पहुँचाने का काम भीष्म जी ने किया है। सहज मानवीय अनुभूतियाँ और तत्कालीन जीवन का अंतर्द्वंद भीष्म जी की रचनाओं के मुख्य विषय हैं। बतौर जनवादी लेखक वे सदा यथार्थ की ठोस ज़मीन पर अडिग रहे। यथार्थवादी दृष्टि उनके प्रगतिशील व मार्क्सवादी विचारों का प्रतिफल थी। भीष्म जी की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उन्होंने जिस जीवन को जिया, जिन संघर्षो को झेला, उन्हीं का यथावत चित्र अपनी रचनाओं में अंकित किया। इसी कारण उनका रचनाकर्म और जीवनधर्म अभेद था। उनके लेखन में वह सच्चाई मिलती है जिससे पाठक स्वयं अपने आप को जोड़ने लगता है। भीष्म जी का ऐसा मत था कि बात को सिर्फ़ कहना ही सच्चाई नहीं होती बल्कि उस बात की गहराई नापना भी ज़रूरी होता है। इसलिए आपको उनके साहित्य में सर्वत्र मानवीय करुणा, मानवीय मूल्य और नैतिकता विद्यमान् दीखते हैं।
भीष्म जी के बड़े भाई बलराज साहनी हिन्दी फ़िल्म के प्रतिष्ठित अभिनेता होने के साथ-साथ थिएटर की दुनिया से बहुत क़रीब से जुड़े हुए थे। साहनी जी ने सन् १९४० में बड़े भाई की सरपरस्ती में इप्टा में काम किया था। उन्होंने अभिनेता और निर्देशक दोनों के रूप में काम किया। 'भूत गाड़ी' नामक नाटक का निर्देशन उन्हीं का किया हुआ है। सईद मिर्ज़ा की फ़िल्म मोहन जोशी हाज़िर हो (१९८४) में बतौर अभिनेता पहली बार काम किया। वर्ष १९८६ में गोविन्द निहलानी के निर्देशन में बनी फ़िल्म तमस के लेखक और मुख्य अभिनेता भीष्म जी हैं। इनके अलावा कुमार साहनी की क़स्बा (१९९१) , बर्नार्डो बर्टोलुची की लिटिल बुद्धा (१९९३) और अपर्णा सेन की मिस्टर एंड मिसेज़ अय्यर (२००२) जैसी फ़िल्मों में भी उन्होंने अभिनय किया है।
भीष्म जी सन् १९५२ में अम्बाला और अमृतसर में अध्यापक रहने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में अँग्रेज़ी साहित्य के प्रोफ़ेसर बने। वर्ष १९५७ से १९६३ तक उन्होंने मॉस्को में ‘विदेशी भाषा प्रकाशन गृह, मॉस्को’ में अनुवादक के रूप में काम किया और कुछ महत्त्वपूर्ण रचनाओं का हिन्दी में अनुवाद किया, जिसमें लेव तलस्तोय की लघु कथाएँ और उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ शामिल हैं। उस दौर में उन्होंने रूसी भाषा की लगभग २५ किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया था। हिन्दी और अँग्रेज़ी भाषा के अलावा उनकी उर्दू, संस्कृत, रूसी और पंजाबी भाषाओं पर भी काफ़ी अच्छी पकड़ थी। उन्होंने सन् १९६५ से १९६७ तक प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नई कहानियाँ’ का संपादन भी किया।
भीष्म साहनी जी के उपन्यास 'तमस' का साहित्य जगत में बहुत बड़ा स्थान रहा है। यह उपन्यास भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय हुए सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि पर आधारित है। इसका अँग्रेज़ी, फ्रैंच, जर्मन, जापानी, तमिल, गुजराती, मलयालम, कश्मीरी और मणिपुरी भाषाओं में अनुवाद हुआ है। इसी उपन्यास पर सन् १९८८ में गोविन्द निहलानी के निर्देशन में दूरदर्शन-धारावाहिक बना था, जिसमें ओमपुरी और अमरीश पुरी जैसे अभिनेताओं ने काम किया था।
भीष्म जी का नाम बड़ी अदब के साथ सशक्त और संवेदनशील कथाकारों यशपाल और प्रेमचन्द की श्रेणी में रखा जाता है। उनकी कहानियों में प्रायः जीवन के अन्तर्विरोधों, द्वंदों और विसंगतियों में जकड़े मघ्यवर्ग और निम्नवर्ग की जिजीविषा और संघर्षशीलता का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है। जनवादी आन्दोलन के बड़े पक्षधर साहनी जी ने सामान्य जन की आशा, आकांक्षा, दु:ख, पीड़ा, अभाव तथा विडम्बनाओं को अपने उपन्यासों एवं उनके पात्रों से कभी ओझल नहीं होने दिया। नयी रचनाओं के अंतर्गत उन्होंने कथा साहित्य की अचेतना पर विघातकर उसे वास्तविक और यथार्थपूर्ण सामाजिक आधार दिया है। विभाजन के आपसी भाईचारे के दुर्भाग्यपूर्ण ख़ूनी इतिहास को भीष्म जी ने स्वयं झेला था, जिसकी ज्वलंत अभिव्यक्ति 'तमस' में हम महसूस करते हैं।
नारी-मुक्ति समस्या को भी भीष्म जी ने अपनी रचनाओं में यथोचित और तर्कशील स्थान दिया है, जिनमें नारी के व्यक्तित्व, उसका विकास, स्वतंत्रता, आर्थिक स्वाधीनता, शिक्षा तथा सामाजिक उत्तरदायित्व आदि का विस्तृत वर्णन देखने को मिलता है। भीष्म जी की रचनाओं में सामाजिक विषमताओं का खंडन भी पूरी तरह उभरकर आता है। राजनीतिक मतवाद के आरोप से दूर साहनी जी ने भारतीय राजनीति में निरन्तर बढ़ते भ्रष्टाचार, नेताओं की पाखण्डी प्रवृत्ति, चुनावों की भ्रष्ट प्रणाली, राजनीति में धार्मिक भावना, साम्प्रदायिकता, जातिवाद आदि का चित्रण बड़ी प्रामाणिकता व तटस्थता के साथ अपनी रचनाओं में किया है। उनका सामाजिक बोध व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित था। भीष्म जी का सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य भी विद्वत्तापूर्ण और व्यवहारिक रहा, जो निरन्तर परिष्करण परिशोधन व परिवर्द्धन की प्रक्रिया से गुज़रता रहा। प्रगतिशील दृष्टिकोण रखने के कारण उनका अंतर्मन सदा मानव-कल्याण के प्रति सुपुर्द रहा। साहनी जी का साहित्य जहाँ एक ओर सांत्वना एवं दया-युक्त है, वहीं दूसरी ओर उसमें राष्ट्रीय स्वाभिमान की आग भभकती है। उनके साहित्य में नूतनता पर प्रहार करने वाली अंधविश्वासों से ग्रसित धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार देखने को मिलता है।
पद्म-भूषण भीष्म जी भारतीय गृहस्थ जीवन में स्त्री-पुरूष के जीवन को रथ के दो पहियों के रूप में स्वीकार करते हैं। विकास और सुखी जीवन के लिए दोनों के बीच आदर्श संतुलन और सामंजस्य का बना रहना अनिवार्य है। उनकी रचनाओं में सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने वाले आदर्श दम्पत्तियों को बड़ी गरिमा के साथ रेखांकित किया गया है। उनका विश्वास है कि स्त्रियों के लिए समुचित शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता व व्यक्तित्व विकास की सुविधा आदर्श-समाज की रचना के लिए नितान्त आवश्यक हैं। वे स्त्रियों के व्यक्तित्व-विकास के पक्षपाती थे। भीष्म जी पारम्परिक विवाह की जड़-मान्यता को स्वीकार न करके भावनात्मक एकता और रागात्मक अनुबंधन को विवाह का प्रमुख आधार मानते थे।
मार्क्सवाद से प्रभावित होने के कारण भीष्म जी समाज में व्याप्त वित्तीय असंगति के परिणामों को बड़ी गंभीरता से अनुभव करते थे। पूँजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत वे जन-सामान्य के बहुआयामी शोषण को सामाजिक विकास में सर्वाधिक बाधक और अमानवीय मानते थे। बसन्ती, झरोखे, तमस, मय्यादास की माड़ी व कड़ियाँ उपन्यासों में उन्होंने आर्थिक विषमता और उसके दु:खद परिणामों को बड़ी मार्मिकता से उद्घाटित किया है, जो समाज के स्वार्थी कुचक्र का परिणाम हैं और इनके लिए वे समाज की व्यवस्था को ज़िम्मेदार मानते हैं।
भीष्म जी प्रेमचन्द के समान जीवन की विविधता को व्यंग्यात्मक ढंग से अपनी रचनाओं में अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। भले ही वे प्रेमचन्द की भाँति ग्रामीण वस्तु को नहीं पकड़ पाये किन्तु परिवेश की समग्रता में वस्तु और पात्र के अन्त: सम्बन्धों को उन्होंने बख़ूबी व्यक्त किया है। यह तथ्य निश्चित रूप से उन्हें न केवल प्रेमचन्द के निकट पहुँचाता है, अपितु उनमें नया भीष्म भी जुड़ जाता है। अपनी रचनाओं में उन्होंने जहाँ जीवन के कटुतम यथार्थो का प्रामाणिक चित्रण किया है, वहीं जन-सामान्य का मंगलविधान करने वाले लोकोपकारक आदर्शो को भी रेखांकित किया है। अपनी कालजयी रचनाओं के कारण वे हिन्दी साहित्य में युगान्तकारी उपन्यासकार के रूप में चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी को प्रेमचंद की परम्परा का लेखक माना जाता है। उनकी कहानियाँ सामाजिक यथार्थ की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने पूरी जीवंतता और गतिमयता के साथ खुली और फैली हुई ज़िन्दगी को अंकित किया है। मानवीय मूल्यों के पक्षधर साहनी ने किसी विचारधारा को अपने साहित्य पर कभी हावी नहीं होने दिया।
एक शिल्पी के रूप में भी वे सिद्धहस्त कलाकार थे। कथ्य और वस्तु के प्रति यदि उनमें सजगता और तत्परता का भाव था तो शिल्प सौष्ठव के प्रति वे निरन्तर सावधान रहते थे। अपनी भाषा शैली गढ़ने की भीष्म जी को कहीं भी ज़रूरत नहीं पड़ी। उन्होंने सहज-साधारण भाषा के साथ व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग कर अपनी कृतियाँ आमजन तक पहुँचाई हैं।
उन्होंने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्त्व दिया। धर्मनिरपेक्षता का उनका यह नज़रिया उनके साहित्य में भी बख़ूबी झलकता है। ‘अमृतसर आ गया’ जैसी उनकी कहानियाँ शिल्प ही नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी काफ़ी आकर्षित करती हैं।
वरिष्ठ कहानीकार एवं 'नया ज्ञानोदय' पत्रिका के संपादक रवीन्द्र कालिया और साहनी जी बड़े अच्छे मित्र थे। एक बार जब साहनी जी अपनी पत्नी के साथ इलाहाबाद में इनके घर पर रुके थे, तब साहनी जी ने बहुत सारे पंजाबी लोकगीत सुनाये थे। इससे पता चलता है कि साहनी जी लोकगीतों और लोकजीवन के भी मर्मज्ञ थे।
भीष्म साहनी को ‘तमस’ के लिए सन् १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष १९९८ में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' से नवाज़ा और ३१ मई २०१७ को भारत सरकार ने साहनी जी के सम्मान में एक डाक-टिकट जारी किया। मानवीय संवेदनाओं के चितेरे लेखक भीष्म साहनी का निधन ११ जुलाई, २००३ को दिल्ली में हुआ।
- https://www.hmoob.in/wiki/Bhisham_Sahni
- https://jivanihindi.com/bhisham-sahni/
- https://www.pustak.org/index.php/books/authorbooks/Bhishm%20Sahni
- http://vikalpvimarsh.in/?p=2078
लेखक परिचय
सूर्यकांत सुतार 'सूर्या' साहित्य से बरसों से जुडे होने साथ-साथ कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओ एवं पुस्तकों में लेख, कविता, गज़ल, कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
चलभाष: +२५५ ७१२ ४९१ ७७७
ईमेल: surya.4675@gmail.com
भीष्म साहनी के बहुआयामी जीवन वृतांत पर विस्तृत आलेख। यह सच है मार्क्सवाद विचार धारा के थे पर उनके अद्धिकांश कृत्य इस से अछूते मिलेंगे।
ReplyDeleteसूर्या जी, भीष्म जी के कृतित्व और व्यक्तित्व के विशाल और महत्त्वपूर्ण फ़लक को सीमित शब्दों में हमारे सामने रखने के लिए आपका बहुत बहुत आभार और बधाई। आपका आलेख काफ़ी अच्छा लगा।
ReplyDeleteसूर्या जी, भीष्म जी के बहुआयामी व्यक्तित्व, उनके जीवन वृतांत और साहित्यिक योगदान पर समग्रता के साथ जानकारियाँ उपलब्ध कराता हुआ आपका यह उत्कृष्ट लेख पढ़ कर भीष्म जी को नज़दीक से जानने का अवसर मिला। इस महत्त्वपूर्ण, रोचक सुर समृद्ध लेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार और बधाई।
ReplyDeleteसूर्यकांत जी, हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कलमकार भीष्म साहनी जी के बहुआयामी व्यक्तित्व और उनकी साहित्यिक यात्रा की विस्तृत जानकारी दी है आपने अपने आलेख में। इसके लिए आपको धन्यवाद। उनका सरोकार मनुष्य से था, उनकी आवाज़ हर प्रकार के शोषण के ख़िलाफ़ थी। वे मानवतावादी थे, हम उन्हें किसी एक वाद में बाँधकर नहीं देख सकते। भीष्म जी के लेखन के माध्यम से उन्हें याद करते रहेंगे हम, यही हमारी तरफ़ से उन्हें अच्छी श्रद्धांजलि होगी।
ReplyDeleteसूर्या जी नमस्ते। प्रसिद्ध साहित्यकार भीष्म साहनी जी पर आपने बहुत अच्छा लेख लिखा है। आपने लेख में उनके जीवन एवं साहित्य को बखूबी उतरा है। लेख पर आई महत्वपूर्ण टिप्पणियों ने लेख को विस्तार देकर और समृद्ध बना दिया है। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिए बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteनमस्कार सर,
ReplyDeleteभीष्म साहनी कृत तमस पढ़कर लगा था वो सच में संवेदनाओं के चितेरे थे।भीष्म साहनी के व्यक्तित्व और साहित्यिक यात्रा के विषय में इतनी जानकारी नही थी। विस्तृत और सूक्ष्मता से जानकारी आपके आलेख से हुई। सशक्त,क्रमबद्ध और धाराप्रवाह आलेख के लिए सूर्या सर को आभार और बधाई।