Sunday, September 11, 2022

श्रीकृष्‍ण सरल - देशभक्ति प्रबल, स्‍वाभिमान अटल

 

नहीं महाकवि और न कवि ही,  लोगों द्वारा कहलाऊँ।
सरल शहीदों का चारण था, कह कर याद किया जाऊँ।
लोग वाहवाही बटोरते, जब बटोरते वे पैसा।
भूखे पेट लिखा करता, दीवाना था वह ऐसा।
हम बात कर रहे हैं राष्‍ट्रधर्मी, क्रांतिपंथी, युगप्रणेता कवि, अमर शहीदों के चारण एवं स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत साहित्‍यकार श्रीकृष्‍ण सरल की। पाँच वर्ष की उम्र में जन्‍मदात्री माँ को खो देने वाले बालक ने मातृभूमि में ही उसका अक्‍स देखा। बाल्‍यावस्‍था में जब कोई सामान्य बालक सतरंगी सपने बुनता है और बरबस ही ति‍तलियों पर सम्‍मोहित हो जाता है तब इस असाधारण बालक सरल को जननी की पीड़ सुनाई दे रही थीं। श्रीकृष्‍ण सरल ने जब साहित्‍य सृजन शुरू किया उस समय छायावाद का बोलबाला था, लेकिन उन्होंने अपनी साहित्यिक यात्रा देशभक्ति के साँचे में ढाली। सरल ने साहित्‍य लेखन हेतु ज्‍यादातर जीवन यायावरी में ही व्‍यतीत किया। इनका 'क्रांतिगंगा' प्रबंध काव्‍य विश्‍व का सबसे बड़ा प्रबंधकाव्‍य है, जो सन १७५७ के प्‍लासी युद्ध से लेकर सन १९६१ तक के गोवा मुक्ति संग्राम तक का ऐतिहासिक एवं प्रामाणिक दस्‍तावेज है। स्‍व० पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने इनके राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत साहित्य को पढ़कर कहा था कि, "भारतवर्ष में शहीदों का समुचित श्राद्ध सरल जी ने ही किया है।" सरल जी के लिए वे सभी स्‍थान तीर्थसदृश हैं, जहाँ क्रांतिकारियों की यादें हैं। श्री सरल जी को आधुनिक युग का भूषण कहना उचित ही है। 
श्रीकृष्‍ण सरल का जन्‍म जनवरी १९१९ को गुना जिले के एक निम्‍न मध्‍यमवर्गीय प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। देशभक्ति की भावना इनके संस्‍कारों में बसी थी। इनके जन्‍म के लगभग १०० वर्ष पूर्व बहादुरगढ़ के युद्ध में जनरल फिलोसे से युद्ध करते हुए इनके सभी पूर्वज वीरगति को प्राप्‍त हो गए थे। गाँव वालों के सहयोग से एक गर्भवती महिला ने किसी तरह भागकर अपनी जान बचाई। उसी से आगे चलकर इस वंश का विकास हुआ। श्रीकृष्‍ण सरल के पिताजी भी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। छोटी अवस्था में ही काव्‍य लेखन के प्रति रुचि जागृत होने के कारण हाईस्‍कूल पहुँचते-पहुँचते श्रीकृष्‍ण सरल ने नियमित काव्‍य लेखन प्रारंभ कर दिया। हाईस्‍कूल के दौरान एक बार इनके विद्यालय में कवि सम्‍मेलन आयोजित किया गया, जिसमें पुलिस अधीक्षक को भी आमंत्रित किया गया था। पुलिस अधीक्षक ने आते ही घोषणा की कि कोई भी कवि आपत्तिजनक (देशभक्ति पूर्ण) काव्‍य पाठ नहीं करेगा। इसका परिणाम यह हुआ कि लोग काव्‍य पाठ करने से कतराने लगे या दो लाइन पढ़कर भूलने का बहाना करने लगे। कवि सम्‍मेलन की यह दशा इनके गुरू श्री भानुप्रकाश सिंह जी से देखी नहीं गई और उन्‍होंने सरल जी से संकेत में ही बात की। गुरू का इशारा पाकर सरलजी ने अनियारे काँटे जैसी कविता प्रस्‍तुत की जिसका अंश है, 
अब तुम्हें  देखने ही होंगे,  निज आँखों  से अपने खंडहर 
मैं आज क्रांति की वीणा पर, गाता हूँ ये विद्रोही स्‍वर।
जुल्‍मों के बंधन से कब तक, बाँधें जा सकते दीवाने,
हैं कौन रोक सकता उनको, जो निकल पड़े सीना ताने।
वहाँ उपस्थित सभी लोगों को उम्‍मीद थी कि पुलिस अधीक्षक सरल जी को गिरफ्तार कर लेगा। लेकिन वे आए और पीठ ठोक कर चले गए, यहाँ तक कि भारत छोड़ो आंदोलन, १९४२ के दौरान उस पुलिस अधीक्षक ने इनको जेल से शीघ्र ही आज़ाद भी कराया। इनके गुरू श्री भानुप्रकाश सिंह जी ने ही इनको 'सरल' उपनाम दिया। स्‍वाध्‍यायी छात्र के रूप में इंटर पास करने के उपरांत सरल जी को एक अन्‍य विद्यालय में काव्‍य पाठ हेतु आमंत्रित किया गया जहाँ उन्‍होंने तुलसीदास जी पर कविता पाठ किया।
तुम अमर हो गए जगती में देकर वाणी का अमरदान,
तुम भोले भक्‍त भारती के तुम भक्‍त शिरोमणि तुम महान। 
क्यों गर्व न हो तुम पर हमको, तुम कवि थे तुम थे कलाकार।
कवि! मैं करने आया पुकार।
तुलसीदास जी ने सचमुच इनकी पुकार सुन ली और विद्यालय के प्रधानाचार्य जी ने इनको अपने विद्यालय में शिक्षण हेतु प्रस्‍ताव दिया। जिसे इन्होंने तुरंत स्‍वीकार कर लिया। ये छिप-छिपकर क्रांतिकारियों का सहयोग भी करते रहे। काकोरी कांड के महान क्रांतिकारी मन्‍मथनाथ गुप्‍त जी के अनुसार "सरल जी से हम लोगों के संबंध बहुत पुराने हैं, उन्‍होंने स्‍वयं को संकट में डालकर भूमिगत क्रांतिकारियों को बहुत सहयोग दिया था। सरल जी के माध्‍यम से छिपे हुए क्रांतिकारियों का पारस्‍परिक संपर्क भी बना रहता था। एक तरह से वे हमारे खुफिया विभाग के सदस्‍य रहे हैं।" इन्‍होंने डॉ० बालकृष्‍ण विश्‍वनाथ केशकर और छैलबिहारी आदि को कई म‍हीनों तक गुप्‍तरूप से अपने घर में आश्रय दिया। 
श्री कृष्ण सरल का संपूर्ण लेखन अमर शहीदों पर ही केंद्रित रहा। लेखन में स्‍वाभाविकता लाने हेतु इन्होंने घर में ही भूमि शयन करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन किया। दूध, घी और मिठाई का परित्‍याग कर दिया, यदा-कदा रूखा-सूखा भोजन करने लगे। लोगों ने इन्‍हें पागल समझ लिया। सन १९५७ में राजार्षि पुरूषोत्‍तमदास टंडन ने इनकी कृति 'कवि और सैनिक' पढ़ने के बाद इन्‍हें भगत सिंह पर महाकाव्‍य लिखने को कहा। भगत सिंह का नाम सुनते ही इनकी आँखों में चमक आ गई। दरअसल बचपन के समय क्रांतिकारी राजगुरू को इनके नज़दीकी स्‍टेशन होते हुए लाहौर ले जाया जा रहा था। राजगुरू के दर्शन हेतु स्‍टेशन पर भारतीयों की भारी भीड़ भारत माता की जय के नारे लगाने लगी। राजगुरू ने खिड़की से झाँककर वंदे मातरम् का घोष किया। अँग्रेज़ सिपाही ने धक्‍का देकर राजगुरू के मुँह को अंदर ठेल दिया। यह बात बालक श्री कृष्‍ण सरल को सहन नहीं हुई। उन्‍होंने एक पत्‍थर उठाकर उस अँग्रेज़ सिपाही के माथे को लहूलुहान कर दिया। भागने में बहुत तेज थे, पर भीड़ के कारण फँस गए। अँग्रेज़ सिपाहियों ने इनको बहुत मारा, ट्रेन के रवाना होने पर ही इनकी जान बची। इनके बाएँ पैर पर इस चोट का निशान आजीवन रहा। बाबू सुभाष पर लेखन करने के लिए इन्‍होंने अपनी जमीन बेचकर दस देशों की यात्रा की। भगत सिंह के शहीद स्‍थल को देखने के लिए इन्होंने पाकिस्‍तान पुलिस को सुविधा शुल्‍क देकर बिना पास-पोर्ट के लाहौर जेल और सांडर्स के हत्‍या स्‍थल की यात्रा की। भगत सिंह की माँ शहीद माता विद्यावती देवी से मिलने के लिए खटखरकलां गाँव की जोखिम भरी यात्रा की। एक समय ऐसा भी आया कि भगत सिंह महाकाव्‍य लेखन के दौरान बहुत थकान के कारण इसको छोड़ने का मन बना लिया। तब बाल कवि बैरागी ने इनको समझाया कि "जो शेर किनारे पर आकर डूब जाए उसके दुर्भाग्‍य का क्या कहना।" सरल जी ने इस प्रेरणा से महाकाव्‍य को पूरा किया और इस महाकाव्‍य का पहला वाचन ओरछा के जंगलों में उस कुटिया में हुआ जहाँ कभी चंद्रशेखर आज़ाद ठहरा करते थे। महाकाव्‍य पूर्ण करने के उपरांत उसके प्रकाशन की समस्‍या हुई। लाभ का सौदा न होने के कारण सभी प्रकाशकों ने अपने हाथ खड़े कर लिए। इन्‍होंने अपने घर में यह समस्‍या बताई तो इनके बेटे-बेटियों ने कहा हम अपने खर्चे बहुत सीमित कर लेंगे। पत्‍नी ने कहा आप मेरे सभी गहने बेच कर इस महाकाव्‍य का प्रकाशन कराइए। इस प्रकार भगत सिंह महाकाव्‍य का प्रकाशन हो जाने के बाद विमोचन हेतु शहीद की माता को उज्‍जैन बुलाया तो उन्‍होंने इस महाकाव्‍य को यह कहकर लेने से इंकार कर दिया कि चंद्रशेखर आज़ाद मेरा बड़ा बेटा है। उसकी माँ भी इस दुनिया में नहीं है। इसलिए जब तक तुम यह संकल्‍प नहीं लेते हो कि चंद्रशेखर आज़ाद पर महाकाव्‍य लिखोगे, तब तक मुझे यह महाकाव्‍य स्‍वीकार नहीं है। उज्‍जैन की बीस हजार जनता के सामने इन्‍होंने इस बात का संकल्‍प लिया। तत्पश्चात ही माता जी ने भगतसिंह महाकाव्‍य का विमोचन किया। भगत सिंह महाकाव्‍य को पढ़कर शहीद की माता ने कहा, "जब मैं इस महाकाव्‍य को गोद में रखती हूँ तो लगता है मेरा बेटा भगत मेरी गोद में बैठा हुआ है और जब मैं इसे पढ़ती हूँ तो लगता है मेरा बेटा भगत मुझसे बातें कर रहा है।" एक प्रशंसक ने इन्‍हें पत्र लिखा कि मैंने भगतसिंह महाकाव्‍य रोते-रोते पढ़ा है। इन्‍होंने जवाब दिया मैंने इस महाकाव्‍य को रोते-रोते लिखा है। इस तरह इनका महाकाव्‍य लिखने का सिलसिला चल पड़ा और हिंदी में सर्वाधिक तेरह महाकाव्‍य लिख डाले। इनको कवि सम्‍मेलनों के सिलसिले ने मेरे संभाग रीवा की मिट्टी को धन्‍य किया। लेखन के अलावा इन्‍होंने 'महाकवि माघ' नाटक में महा‍कवि माघ की भूमिका निभाई। सरल जी ने अपने साहित्‍य में नारी की आदर्श छवि प्रस्‍तुत की है। उनकी महाकाव्‍य यात्रा का आरंभ ही महान नारी (शहीद माता विद्यावती देवी) के स्‍तवन से हुआ। नारी चरित्र को ध्‍यान में रखकर मैडम कामा और सीता पर भी महाकाव्‍य रचना की। स्‍वराज तिलक महाकाव्य में माँ की ममता, कोमलता और दृढ़ता को लक्ष्‍य करते हुए कवि ने लिखा है,
नारी उर में ममता-दृढ़ता दोनों पलती, आशंका से भी वह विचलित हो जाती है,
यदि दृढ़ता पर उतरे, पर्वत को मात करे, जिसका जैसा हो समय रूप दिखलाती है।
संतान वत्‍सला ऐसी होती आई माँ, उनके पथ में वह अपने प्राण बिछा देगी,
संतान पक्ष को कोई अहित करे कैसे, वह क्रुद्ध सिंहनी जैसा रूप दिखा देगी।
सरल जी को जीवन में कई बार बहुत निकट से मृत्‍यु के दर्शन हुए। लेकिन जैसे क्रिकेट के खेल में हाथ में आया हुआ कैच छूट जाता है, उसी तरह ये भी मृत्‍यु से कई बार बचे। इनको जीवन में कुल पाँच बार दिल का दौरा पड़ा। पहले दिल के दौरे के बाद इन्‍होंने चार महाकाव्‍य लिख डाले, जो स्‍वामी विवेकानंद, बालगंगाधर तिलक, मैडम कामा और करतार सिंह पर केंद्रित थे। जीवन के पांचवें हृदयाघात के बाद वर्ष २००० में दो सितंबर के दिन यह बलि पंथी अनंत की अनवरत यात्रा हेतु प्रस्‍थान कर गया।
सरल जी ने जीवन भर देश और देश के लिए बलिदान होने वाले क्रांतिकारियों का गुणगान किया। भूतपूर्व राष्‍ट्रकवि ज्ञानी जैलसिंह ने श्रीकृष्ण सरल के बारे में एक बार कहा था कि "सरल साहब ने इतनी साहित्यिक ऊँचाई प्राप्‍त कर ली है कि उन्‍हें कोई भी अलंकरण छोटा पडे़गा।" पूर्व प्रधानमंत्री स्‍व० श्री अटलबिहारी वाजपेई जी के अनुसार, "आने वाले समय में राजनीतिज्ञों को तो लोग भूल जाऐंगे किंतु भारतवर्ष के इतिहास में एवं हिंदी साहित्‍य के इतिहास में कविवर श्रीकृष्‍ण सरल जी को सदा आदर सहित 'राष्‍ट्रकवि' के रूप में याद किया जाएगा।"
सरलजी की इच्‍छा थी,
भारतवासी भाई-भाई रहें प्‍यार से हिल-मिल कर,
कीर्ति कांति फैलाएँ वे फूलों जैसे खिल-खिलकर,
सब के मन में एक भाव हो, अच्‍छा अपना भारत हो,
सबकी आँखों में उजले से उजला सपना भारत हो।
सरलजी को सच्‍ची श्रद्धां‍जलि देने के अधिकारी तभी बन सकते हैं, जब हमारे मन में ये देशानुराग के स्‍वर हर पल गूंजते रहेंगे।

श्रीकृष्‍ण सरल : जीवन परिचय

जन्‍म

०१ जनवरी १९१९, अशोकनगर, जिला गुना, मध्य प्रदेश

निधन

०२ सितंबर २००० 

पिता

श्री भगवती प्रसाद विरथरे

माता

श्रीमती यमुना देवी

पत्‍नी

श्रीमती नर्मदा देवी

शिक्षा

बीए स्‍वाध्‍याय से, विक्रम विश्‍वविद्यालय, उज्‍जैन, मध्य प्रदेश

साहित्यिक रचनाएँ

महाकाव्‍य

  • चंद्रशेखर आज़ाद

  • सरदार भगत सिंह

  • सुभाषचंद्र बोस

  • बागी करतार

  • शहीद अशफाक उल्‍ला खाँ

  • कांति ज्‍वालाकामा

  • अंबेडकर दर्शन

  • स्‍वराज तिलक

  • विवेक श्री

  • जय सुभाष

  • तुलसी मानस

  • सरल रामायण

  • सीतायन

संस्‍मरण

  • क्रांतिकारियों की गर्जना

उपन्‍यास

  • चटगाँव का सूर्य

  • चंद्रशेखर आज़ाद

  • राजगुरू

  • जय हिंद

  • दूसरा हिमालय

  • बाधा जतीन

  • यतींद्रनाथ दास

  • रामप्रसाद बिस्मिल

निबंध संग्रह

  • अमोल वचन

  • जियो तो ऐसे जियो

  • युवकों से दो-दो बातें

  • विचार और विचारक

  • जीवन रहस्‍य

  • मेरी सृजन यात्रा

पुरस्‍कार और सम्‍मान

भारत सरकार और किसी भी राज्‍य सरकार द्वारा इन्‍हें कोई भी पुरस्‍कार और सम्‍मान नहीं दिया गया। 

कुछ संस्‍थाओं द्वारा अवश्य इन्‍हें भारत गौरव, राष्‍ट्रकवि, क्रांतिकवि, क्रांतिरत्‍न, अभिनव, भूषण, मानवरत्‍न, श्रेष्‍ठकला आचार्य से विभूषित किया गया।

मध्‍यप्रदेश की साहित्‍य अकादमी द्वारा कविता के लिए इनके नाम पर 'श्रीकृष्‍ण सरल' पुरस्‍कार प्रदान किया जाता है।


संदर्भ

  • डॉ० संतोष व्‍यास एवं उनके द्वारा उपलब्‍ध कराई गई क्रांतिगंगा की भूमिका की पीडीएफ

  • httep://aviramsahitya.blogspot.com

  • httep://kavitakosh.org

  • httep://hindi.webdunia.com

लेखक परिचय

रत्‍नेश कुमार द्विवेदी

मध्‍यप्रदेश भारत के उच्‍चतर माध्‍यमिक विद्यालयों में १५ वर्षों से हिंदी भाषा अध्‍यापक के रूप में कार्यरत।

ईमेल - ratnesh2016satna@gmail.com
व्हाट्सएप - +91 8878197950

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। रितेशजी ने राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल के साहित्य और संघर्षों का अच्छा चित्रण किया है। उन्हें हमारी ओर से शुभ कामनाएं!

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  2. लेख संबंधी कुछ संशोधन :

    महाकाव्यों की संख्या 15
    सरल साहित्य की कुल पुस्तकें 125
    जन्म दिनांक 1.1.1919
    शिक्षा
    एम ए (नागपुर)
    एम एड (देवास)

    रेफरेंस -
    ब्लॉग https://bit.ly/3cRep0O
    www.shrikrishnasaral.com

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  3. राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरलजी पर आपका लेख सराहनीय है|
    अपूर्व सरल
    पौत्री राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल

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    Replies
    1. अपूर्वा सरल
      पौत्री राष्ट्रकवि श्रीकृष्ण सरल
      www.shrikrishnasaral.com

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  4. रत्नेश जी नमस्ते। आपने श्रीकृष्ण सरल जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। आपके इस लेख के माध्यम से उनके विस्तृत एवं महत्वपूर्ण साहित्य सृजन के बारे में पता चला। जैसा कि डॉ. जगदीश व्योम सर ने भी उनके 15 महाकाव्यों के बारे में जानकारी दी, यह कार्य सचमुच अद्भुत एवं वन्दनीय है। आपको इस महत्वपूर्ण एवं जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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