Wednesday, September 7, 2022

रामवृक्ष बेनीपुरी : हिंदी साहित्य के वटवृक्ष

किसी भी साहित्यकार के संवेदनशील मन की उर्वरक भूमि पर जैसी छाया अपने देशकाल व वातावरण, तत्कालीन  राजनीति, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश की पड़ती है, उसी की प्रतिछाया उसकी रचनाओं द्वारा प्रस्फुटित होती है। रामवृक्ष बेनीपुरी जी के लेखन की दग्ध उष्मा की पृष्ठभूमि में भी सब घटक सक्रिय रहे। व्यष्टि से समष्टि तक विस्तृत उनकी कथ्य यात्रा कहानी, उपन्यास, नाटक, संस्मरण, रेखाचित्र आदि अनेक पड़ावों से गुजरती हुई पाठकों से एक निर्णायक विमर्श का तारतम्य स्थापित करती है।

'माटी की मूरतें' और 'गेहूं और गुलाब' जैसी महान कृतियों के अमर रचनाकार रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में २३ दिसंबर १८९९ ई० को हुआ। उनके पिता का नाम श्री फुलवंत सिंह था। बेनीपुर में जन्म लेने के कारण इन्होंने अपना उपनाम 'बेनीपुरी' रख लिया। बचपन में ही माता-पिता के निधन हो जाने के कारण इनका लालन-पालन इनकी मौसी ने किया। बाल्यकाल में घटी एक मार्मिक घटना ने विषम विसंगतियों से युक्त घिसी पिटी सामाजिक परिपाटियों के प्रति उन्हें विक्षोभ व आक्रोश से भर दिया था। किसी पुरानी रूढ़िगत परिपाटी के चलते मृत्यु के समय उनकी माता के पैरों में कीलें ठोक दी गई थी ताकि वे अपने बच्चों के पास वापिस ना आ सके। उनके शब्दों में, "जहाँ माँ का, मातृत्व का, संतान प्रेम का ऐसा अपमान हो, निरादर हो, उस समाज को जहन्नुम में जाना चाहिए।"

बचपन के आरंभिक वर्ष अभावों-कठिनाइयों और संघर्षों में बीते। आरंभिक शिक्षा अपने गाँव और ननिहाल बंसीपचड़ा में प्राप्त करने के पश्चात मैट्रिक और उसके बाद हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'विशारद' परीक्षा पास की। १६ वर्ष की आयु में उमारानी से हुआ उनका विवाह बेशक आर्थिक दृष्टि से संघर्षमय था किंतु दांपत्य जीवन सुखद था। 'कैदी की पत्नी' उपन्यास में उन्होंने उमारानी के आदर्शों व जीवन की कठिनाईयों का विशद वर्णन ही नहीं किया, अपितु वे कहते हैं, "मेरी देशभक्ति के कारण जितना विष आतितायियों ने दिया था उसे रानी ने अकेले ही पी लिया। मुझे तो सिर्फ अमृत ही मिला है।"
 
'शुक्लोत्तर युग' के साहित्यकार बेनीपुरी जी पत्रकारिता जगत से साहित्य सृजन के क्षेत्र में आए थे। पंद्रह वर्ष की अल्पायु से ही उन्होंने पत्र पत्रिकाओं में लिखना आरंभ कर दिया था। उनकी रचनाओं के कथानक यथार्थपरक होते हैं। उनके विराट रचना संसार में जहाँ पराधीन भारत की तत्कालीन दारुण सामाजिक व्यवस्था और आजादी के लिए धधकती क्रांति ज्वाला है तो वहीं दूसरी ओर आजादी के चिरप्रतिक्षित नवप्रभात की स्वर्णिम आभा भी है। अपनी रचनाओं में जहाँ उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन की श्वेत-श्याम संवेदनाओं को पिरोया है, तो वहीं महान विभूतियों के जीवन के अलौकिक प्रेरक प्रसंग, सामाजिक विद्रोह, राजनीतिक हलचल, पत्रकारिता के साक्ष्य तथा यात्रा वृतांत, संस्मरण, वैचारिक ललित निबंध व रेखा चित्रों की अक्षय निधि को भी अपनी रचनाओं में समाहित किया है। उनकी भाषा छायावादी लेखकों की जटिल संस्कृतनिष्ठ भाषा से इतर छोटे-छोटे वाक्यों में पिरोई गई सहज, सरस, सजीली और जीवंतता भरी थी, जो विधा, चरित्र और कथानक के अनुरूप ढल जाती है। इसी प्रवाहपूर्ण लालित्य युक्त गद्य के लिए उन्हें 'कलम का जादूगर' कहा जाता है।

रामवृक्ष बेनीपुरी जी हिंदी साहित्य के मूर्धन्य संस्मरणकार हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य जगत को संस्मरणों की अमूल्य निधि भेंट की है। 'मील के पत्थर' में बेनीपुरी जी ने प्रेमचंद, गाँधी, राजेंद्र प्रसाद, शिवपूजन सहाय, लियोनार्डो द विंची, मार्केल, एंजेलो, राफेल, तिशियन आदि के पथप्रदर्शक जीवन प्रसंगों को सम्मिलित किया है। 'पैरों में पंख बाँध कर' में युरोप के यात्रा संस्मरण है तो 'उड़ते चलो उड़ते चलो' में फ्रांस, इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड और इटली के विभिन्न पर्यटन स्थलों का वर्णन है। वहीं 'नेपाल में' पुस्तक द्वारा वे नेपाल के विभिन्न राजनीतिक सामाजिक गतिविधियों तथा विभिन्न दर्शनीय स्थलों के विवरण प्रस्तुत करते हैं। उल्लेखनीय यह है कि इन वर्णनों में विदेश और भारत को लेकर बेनीपुरी का दृष्टिकोण तुलनात्मक रहा है।

पश्चिमी देशों में निरंतर हो रहे बदलावों की तुलना में बेनीपुरी जी भारतीय समाज में नारी की स्थिति को देखकर बहुत आहत थे। उनकी रचनाओं के नारी पात्रों में आत्मचेतना का भाव और नारी अस्मिता व अत्याचार के विरुद्ध खड़े होने के मुखर स्वर हैं। बाल विवाह, सती प्रथा, भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा जैसी कुप्रथाओं व विषमताओं के संस्कृतिकरण के विरोध में वे भारतीय समाज में नारी विमर्श और नारी जागरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं, "नारी विमर्श की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि आज घर में रहते हुए भी वे बेघर बार की हैं, स्वामिनी का सुंदर नाम पाकर भी वे घर की गुलाम मात्र रह गई हैं। वे कभी अर्धांगिनी रही हो लेकिन आज वे अंग की छाया मात्र रह गई हैं।" 
 
उनके एकमात्र उपलब्ध कहानी संग्रह 'चिता के फूल' की सात कहानियों में परतंत्र देश की दारुण दशा, परिस्थितियाँ, राजनैतिक उथल-पुथल, द्वेष, विद्रोह, विभिन्न वर्गों के लिए स्वतंत्रता के अर्थ उभर कर आए हैं।
 
बेनीपुरी जी द्वारा रचित बाल साहित्य ने इस विधा को एक विशिष्ट संदर्भ प्रदान किया है। उनका बाल साहित्य हितोपदेश व पंचतंत्र की भाँति नीति कथाएँ ना हो कर कोमलमनस्क बाल पाठकों के मन में पराक्रम, निष्ठा, विश्वबंधुत्व, स्वतंत्रता का मोल, अन्यथाचार के प्रति जागरुकता इत्यादि गुणों के बीज रोपता है। बच्चों के लिए देश-विदेश की ऐतिहासिक कथाओं व लोककथाओं को भी इन्होंने अत्यंत रोचक ढंग से शब्दबद्ध किया है।
 
विक्टर ह्यूगो, तोलस्तोय, जॉर्ज ईबल, शेक्सपियर, होमर, चॉसर आदि की रचनाओं पर आधारित किताब 'फूलों का गुच्छा' एक अनमोल कृति है। इसमें डॉन क्विकजोट, मर्चेंट ऑफ वेनिस, रिसक्शन, रॉबिंसन क्रूसो, लॉ मिसरेबल जैसी विश्व प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। उन्होंने चंद्रगुप्त, चाणक्य, अशोक, पृथ्वीराज, राणाप्रताप, अकबर, भामाशाह, शिवजी क्लाइव, बाबू कुंवर सिंह, दादाभाई नौरोजी, रवींद्रनाथ ठाकुर, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों से नन्हे पाठकों को परिचित करावाया है। साथ ही गैरी ब्लडी, बिस्मार्क, पीटर, जॉन ऑर्क, जॉर्ज वॉशिंगटन, नेपोलियन, लिंकन तथा कमाल पाशा जैसे दुनिया के इतिहास निर्माताओं की जीवनी भी बेनीपुरी जी ने कलमबद्ध की है।

बेनीपुरी जी ने विभिन्न समयों में लगभग दर्जन भर पत्रिकाओं का संपादन किया। 'तरुण भारत' पत्रिका में बेनीपुरी जी ने सहयोगी संपादक तथा 'किसान मित्र' पत्रिका में सहकारी संपादक का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। माखनलाल चतुर्वेदी की 'कर्मवीर' के कार्यकारी संपादक का भार संभाला। पटना के 'योगी' पत्र के साथ-साथ वे चुनमुन, बालक, युवक, कर्मवीर, तूफान, सर्च लाइट, हिमालय, जनता, नई धारा जैसी पत्रिकाओं के संपादक भी रहे। 'जनता' पत्रिका तो काश्तकारी बिल पेश होने के समय से शोषित व कमजोर किसान वर्ग की कमर सीधी करके खड़ा होने में मदद करने वाली उनकी प्यारी लाठी बन गई थी। अनेक सामाजिक व राजनैतिक क्रांतियों को बेनीपुरी जी की पत्रिकाओं ने दिशा प्रदान की। 'युवक' पत्रिका ने दिनकर, आरसी, केसरी, कुँवर सिंह, द्विज जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों की लेखनी को प्रस्फुटित किया। यही वह पत्रिका थी जिसमें बेनीपुरी का लिखा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की फाँसी पर "इंकलाब ज़िंदाबाद" शीर्षक से लेख छपा था, जिस कारण वे राजद्रोह के आरोप में डेढ़ साल जेल में रहे। बिहार में हिंदी प्रसार के क्रियान्वयन तथा 'बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन' की स्थापना में इनका विशेष योगदान रहा। वे बिहार संपादक संघ के अध्यक्ष भी चुने गए।
 
बेनीपुरी जी कहते हैं, "पैंतीस वर्षों का मेरा पत्रकार जीवन! कितना संघर्षपूर्ण, कितना उलझन भरा, कितना आनंदप्रद, कितना गौरवमय! .... मुझ अशिक्षित से, अंकिंचन से जो कुछ भी बन पड़ा उस पर मुझे गर्व अवश्य है।"
 
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने रामवृक्ष बेनीपुरी के बारे में लिखा था कि "बेनीपुरी मेरे साहित्यिक जीवन के निर्माता थे, मैं उनसे कभी उऋण नहीं हो सकता। नाम का दिनकर मैं था असली सूर्य बेनीपुरी थे। बेनीपुरी नहीं होते तो दिनकर भी नहीं होता।" साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा था कि "रामवृक्ष बेनीपुरी की लेखनी है कि जादू की छड़ी है।"
 
बेनीपुरी जी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कई बार जेल गए। वहाँ भी वे ब्रिटिश सम्राज्यवाद के विरोध में भारतीयों के हृदय में आजादी की अलख जगाने वाली रचनाएँ लिखते रहे। उनकी अधिकतर कृतियाँ कारावास काल की रचनाएँ हैं। सन १९३१ ई० में उन्होंने समाजवादी दल की स्थापना की तथा १९५८ में इस दल के प्रत्याशी के रूप में बिहार विधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 'भारत छोड़ो आंदोलन' के समय से वे जयप्रकाश नारायण के निकट सहयोगी रहे। इसी दौरान हज़ारीबाग जेल से जयप्रकाश नारायण को फरार करवाने व नेपाल के हनुमान नगर थाने से डॉ० लोहिया को छुड़वाने की दो महत्वपूर्ण घटनाओं में सूत्रधार की भूमिका में रामवक्ष बेनीपुरी ही थे।
 
रामवृक्ष बेनीपुरी का राजनैतिक दिग्गजों से तो करीबी ताल्लुक था ही, वे कला क्षेत्र की हस्तियों के भी नजदीकी थे। हिंदी सिनेमा के सबसे समृद्ध परिवार कपूर खानदान से भी रामवृक्ष बेनीपुरी का पारिवारिक संबंध थे। पृथ्वीराज कपूर लगातार बेनीपुरी के नाटकों का मंचन करते रहे।
 
७ सितंबर १९६८ को मुजफ़्फ़रपुर बिहार में हिंदी साहित्य के वटवृक्ष सम रामवृक्ष बेनीपुरी जी का निधन हुआ।
 
सन १९९९ में इनके सम्मान में भारतीय डाक-सेवा ने डाक टिकटों का एक सेट जारी किया था। बिहार सरकार द्वारा भी वार्षिक रूप से 'अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार' दिया जाता है।

रामवृक्ष बेनीपुरी : जीवन परिचय

जन्म

२३ दिसंबर १८९९, बेनीपुर, मुज़फ्फरपुर (बिहार)

निधन

७ सितंबर १९६८

पिता

श्री फुलवंत सिंह

साहित्यिक रचनाएँ

शब्दचित्र-संग्रह

  • लाल तारा

  • माटी की मूरतें 

  • गेहूँ और गुलाब

आत्मकथात्मक संस्मरण

  • मुझे याद है 

  • ज़ंजीरें और दीवारें 

  • कुछ मैं कुछ वे

  • मील के पत्थर (संस्मरणात्मक लेख)

  • शेक्सपीयर के गाँव में

  • नींव की ईंट


ललित निबंध

  • सतरंगा इन्द्रधनुष 

  • हवा पर 

  • मशाल 

  • नई नारी 

  • वन्दे वाणी विनायक  

  • यत्र-तत्र


कहानी-संग्रह

  • चिता के फूल

  • कहीं धूप कहीं छाया

  • जुलेख़ा पुकार रही है 

  • वह चोर थी 

  • भिखारिन की खाती 

  • जीवन तरु 

  • उस दिन झोंपड़ी रोई


उपन्यास

  • पतितों के देश में

  • क़ैदी की पत्नी

  • बीवी (अप्रकाशित)

  • सात दिन (अप्रकाशित)


यात्रा-साहित्य

  • पैरों में पंख बाँधकर 

  • उड़ते चलो, उड़ते चलो

संपादन एवं आलोचना

  • बिहारी सतसई की सुबोध टीका

  • विद्यापति की पदावली

नाटक

  • अम्बपाली 

  • सीता की माँ 

  • संघमित्रा  

  • अमर ज्योति 

  • तथागत 

  • सिंहल विजय 

  • शकुन्तला

  • रामराज्य 

  • नेत्रदान 

  • गाँव के देवता

  • नया समाज 

  • विजेता 

  • बैजू मामा

  • श्मशान में अकेली अन्धी लड़की के हाथ में अगरबत्ती

जीवनी

  • शिवाजी 

  • विद्यापति

  • लंगट सिंह

  • गुरु गोविंद सिंह

  • रोजा लग्ज़ेम्बर्ग 

  • जयप्रकाश नारायण 

  • कार्ल मार्क्स

स्मृतिचित्र

  • गांधीनामा

  • कविता-संग्रह

  • नया आदमी


संदर्भ

  • मेरी माँ, मुझे याद है। लेखक - रामवृक्ष बेनीपुरी, पृ.३६९
  • पत्रकार जीवन के पैंतीस वर्ष, कुछ मैं, कुछ वे, बेनीपुरी ग्रंथावली - ४ पृ. २८६
  • पत्रकार जीवन के पैंतीस वर्ष, पृ. २७९
  • सीता और द्रौपदी, रामवृक्ष बेनीपुरी

लेखक परिचय

लतिका बत्रा

लेखक एंव कवयित्री

शिक्षा - एमए, एमफिल, बौद्ध विद्या अध्ययन

प्रकाशित पुस्तकें

उपन्यास - तिलांजलि

तीन कवयित्रियों का साँझा काव्य संग्रह - दर्द के इन्द्र धनु

आत्मकथात्मक उपन्यास - पुकारा है जिन्दगी को कई बार ...डियर कैंसर

साँझा लघुकथा संग्रह - लघुकथा का वृहद संसार

 

व्यंजन विशेषज्ञ, फूड स्टाईलिस्ट

गृहशोभा, सरिता, गृहलक्ष्मी जैसी पत्रिकाओं में कुकरी कॉलम

ई मेल - latikabatra19@gmail.com


2 comments:

  1. लतिका जी नमस्ते। आपने रामवृक्ष बेनीपुरी जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। मुझे उनके ऐतिहासिक नाटक पढ़ने का अवसर मिला और मुझे उनका लेखन बेहद पसंद है। आपने अपने लेख के माध्यम से उनके साहित्य का विस्तृत परिचय बहुत रोचक रूप में प्रस्तुत किया। आपको इस बढ़िया लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  2. लतिका जी, एक और सुंदर आलेख की बधाई स्वीकार करें। आपके आलेखों में जानकारी तो उत्तम होती ही है मुझे उनकी प्रस्तुति और भाषा भी बहुत अच्छी लगती है। ‘असली सूर्य’ या ‘दिनकर के सूर्य’ रामवृक्ष बेनीपुरी को विस्तार से जानना सुखद रहा। आपका बहुत-बहुत आभार।

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