Tuesday, September 20, 2022

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना : हिंदी साहित्य का नया शिल्पी

 Sarveshwar Dayal Saxena | Kavishala Sootradhar

हिंदी साहित्य में 'तार सप्तक' के प्रकाशन के साथ कविता के स्वरूप, शिल्प और भाषा में परिवर्तन आया, जिसे 'प्रयोगवाद' नाम दिया गया। अज्ञेय ने इन सप्तक के कवियों को राहों के अन्वेषी कहा और ये कवि वास्तव में नया अन्वेषण कर भी रहे थे। प्रयोगवाद के कुछ समय बाद ही अज्ञेय ने ही एक रेडियो वार्ता में 'नई कविता' नाम दिया, जो बाद में 'नए पत्ते' नामक पत्रिका के जनवरी-फरवरी अंक'५३ में इसी नाम से प्रकाशित हुआ। प्रारंभ से ही इस पत्रिका से जुड़े थे, हिंदी के एक नए कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, जिनकी कविताओं को अज्ञेय के तीसरे सप्तक में स्थान दिया गया। 

१५ सितंबर १९२३ को बस्ती (उत्तर प्रदेश) में विश्वेश्वरदयाल के घर इस बहुमुखी रचनाकार ने जन्म लिया। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की शिक्षा इलाहाबाद में हुई, जहाँ से इन्होंने स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। एक अच्छे साहित्यकार में अच्छे पत्रकार के गुण स्वाभाविक रूप से होते हैं और सर्वेश्वरदयाल सक्सेना तो साहित्यकार से पूर्व अच्छे पत्रकार भी रहे।  इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली के हिंदी समाचार विभाग में कार्य किया, जिसके बाद लखनऊ और भोपाल में भी कार्यरत रहे। वहाँ एक लंबे समय तक कार्य करने के बाद वे पुनः दिल्ली आ गए और 'दिनमान' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका से जुड़ गए। इससे पता चलता है कि सर्वेश्वर जी का पत्रकारिता और संपादन में एक लंबा अनुभव रहा, यद्यपि उनकी भाषा से अज्ञेय जी पहले से ही प्रभावित रहे। इसी कारण उन्होंने सर्वेश्वरदयाल सक्सेना को ऑल इंडिया रेडियो से वापिस बुला लिया था। 

एक जागरूक विचारक ही यह समझता है कि अगर देश को प्रगति के मार्ग पर लाना है तो उसकी नींव की दिशा का सही होना जरूरी है और अच्छा बाल साहित्य इसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना हमेशा से बाल साहित्य के पक्षधर रहे और बाल साहित्यिक पत्रिका 'पराग' के संपादक भी रहे। बाल कविताओं में इनकी एक कविता है, 'किताबों में बिल्ली ने बच्चे दिए हैं'। इस कविता में बच्चों के साथ-साथ देश के लिए एक उज्ज्वल भविष्य की कामना अभिव्यक्त हुई है। इसकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं,
किताबों में बिल्ली ने बच्चे दिए हैं,
ये बच्चे बड़े होके अफ़सर बनेंगे।
दरोगा बनेंगे किसी गाँव के ये,
किसी शहर के ये कलक्टर बनेंगे।

नई कविता की जब भी बात आती है तो तरह-तरह के वादों से इसे जोड़ा जाता है। यद्यपि उनका प्रभाव इसमें है, पर कवि की संवेदनशीलता और विचार कविता के सबसे महत्वपूर्ण चरण हैं। सर्वेश्वर की कविताओं में एक गहरा भावबोध देखने को मिलता है। मुक्तिबोध नई कविता के संदर्भ में लिखते हैं, "नई कविता वैविध्यमय जीवन के प्रति आत्मचेतस की प्रतिक्रिया है। नई कविता का स्वर एक नहीं विविध है।" यह आत्मचेतस का भाव सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता में सहज ही नजर आता है। उनकी एक प्रसिद्ध कविता है, 'कोई मेरे साथ चले'। इस कविता की इन पंक्तियों को देखिए,
यह जानते हुए भी 
कि आगे बढ़ना 
निरंतर कुछ खोते जाना 
और अकेले होते जाना है 
मैं यहाँ तक आ गया हूँ 
जहाँ दरख्तों की लंबी छायाएँ
मुझे घेरे हुए हैं.... 

इसी कविता की प्रारंभिक पंक्तियाँ हैं, 'मैंने कब कहा / कोई मेरे साथ चले/ चाहा जरूर'। कितना सूक्ष्म अंतर है भावों का! कहना और चाहना एक सी क्रियाएँ नहीं हैं, परंतु कविता में इसका प्रयोग कविता को विशिष्ट बना देता है। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताओं को 'नया' संबोधन केवल उस दौर में लिखने के कारण ही नहीं मिला बल्कि उनकी कविताओं का नयापन उनकी भाषा और  प्रतीकों में उभरकर सामने आया। न केवल कविताओं में बल्कि उनकी कहानियों, नाटकों और लेखों में भी यह स्वरूप देखने को मिलता है। उनकी रचनाओं में 'प्रार्थना', 'ईश्वर' जैसी कविताएँ हैं, तो उसी लय में उनकी कहानी 'सफ़ेद गुड़' भी दिखती है। कहने का तात्पर्य यह है कि उनकी विधाओं में विविधता है लेकिन कथन की शैली हर विधा में उतनी ही सहज है। अपनी कविता 'ईश्वर' में वे लिखते हैं,
बहुत बड़ी जेबों वाला कोट पहने
ईश्वर मेरे पास आया था,
मेरी माँ, मेरे पिता,
मेरे बच्चे और मेरी पत्नी को
खिलौनों की तरह,
जेब में डालकर चला गया
और कहा गया,
बहुत बड़ी दुनिया है
तुम्हारे मन बहलाने के लिए।
मैंने सुना है,
उसने कहीं खोल रक्खी है
खिलौनों की दुकान,
अभागे के पास
कितनी ज़रा सी पूंजी है
रोज़गार चलाने के लिए।

ईश्वर के लिए दिए जाने वाले तमाम संबोधनों और उसके प्रति उदात्त भावों से परे यह कविता ईश्वर का एक अलग स्वरूप सामने रखती है, जो रची-रचाई ईश्वर से भिन्न अवधारणा को पाठक के सामने प्रस्तुत करती है। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताओं में कई स्थानों पर इस प्रकार की रूढ़ियॉं टूटती हुई दिखती हैं। इसी तरह अपनी 'प्रार्थना' नामक कविता में वे अन्य प्रार्थनाओं की तरह केवल स्वार्थपरक भौतिक वस्तुओं की माँग नहीं करते बल्कि अपनी सीमाओं के ज्ञान की माँग करते हैं। इस कविता की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं,
अपनी दुर्बलता का
मुझको अभिमान रहे,
अपनी सीमाओं का
नित मुझको ध्यान रहे।
हर क्षण यह जान सकूँ क्या मुझको खोना है
कितना सुख पाना है, कितना दुख रोना है

यह प्रार्थना वही साहित्यकार कर सकता है, जिसमें जीवन की सीमाओं की समझ हो। वह शक्ति की माँग नहीं करता, बल्कि उसे स्वयं अपने संघर्ष से अर्जित करना चाहता है। इसी प्रकार का भाव प्रेषित करती है उनकी कहानी 'सफ़ेद गुड़'। इस कहानी में एक छोटा-सा बच्चा जो ईश्वर की शक्ति को सब कुछ मानकर उससे एक दिन गुड़ की मॉंग कर बैठता है, पर सफलता ना मिलने के कारण वह इतना निराश हो जाता है कि दुकानदार से मुफ़्त में मिलने वाले गुड़ को भी स्वीकार नहीं करता क्योंकि उसने मॉंग ईश्वर से की थी, दुकानदार से नहीं।

एक नए कवि की अभिव्यक्ति उनकी कविता 'मैंने कब कहा' में मिलती है, जहाँ वे स्वयं को नया कवि घोषित करते हुए कहते हैं,
मैं नया कवि हूँ 
इसी से जानता हूँ,
सत्य की चोट बहुत गहरी होती है;
मैं नया कवि हूँ 
इसी से मानता हूँ 
चश्मे के तले ही दृष्टि बहरी होती है

सर्वेश्वर जी की काव्य प्रतिभा को इंगित करते हुए रामस्वरूप चतुर्वेदी जी लिखते हैं, "नई कविता की पहचान जहाँ से शुरु होती है वहाँ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना जी की कविताएँ हैं। आरंभ में वे अनुभव की तीव्रता और उद्वेग उद्घाटित करती हैं, फिर क्रमशः भाषा का रचाव स्थिर और प्रशमित होता जाता है।" सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की भाषा उनकी पहचान है। उनकी कविता में जहाँ एक ओर सहजता है, वहीं दूसरी ओर एक अद्भुत आकर्षण भी उसमें दिखता है। 

भाषा के संदर्भ में उनकी यह कविता इस बात का उदाहरण है,
और अब छीनने आए हैं वे 
हमसे हमारी भाषा 
यानी हमसे हमारा रूप 
जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है 

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना के काव्य में आकर्षण है, तो नाटकों में पैनापन। उनके नाटकों में व्यंग्य के साथ-साथ तात्कालिक परिस्थितियों की गहरी समझ देखने को मिलती है। 'बकरी' नाटक इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। इस नाटक के ढेरों मंचन हुए। देश में स्वाधीनता तक जिस गाँधीवाद को सबसे बड़ा हथियार माना गया था, वही बाद में विकृत होकर सत्ता प्राप्ति का महज़ एक ज़रिया बन कर रह गया। बकरी को प्रतीक बनाकर सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने प्रभावी ढंग से इस बात को पाठकों के समक्ष रखा है। इस नाटक में संवादों के साथ-साथ गीतों का भी प्रयोग किया गया, साथ ही देश में जो मोहभंग की स्थिति बनी थी, उसकी भी झलक इसमें देखने को मिलती है।   
इसके एक गीत का उदाहरण इस प्रकार है,
बकरी को क्या पता था 
मशक बन कर रहेगी 
पानी भरेंगे लोग 
और वह कुछ ना कहेगी 

यह स्वातंत्र्योत्तर भारत की उस राजनीति और उन राजनेताओं पर व्यंग्य है, जिन्होंने निजी स्वार्थ में गाँधी जी के विचारों को केवल सत्ता प्राप्ति तक सीमित कर दिया और उसके बाद देश को बेहाल स्थिति में छोड़ दिया। बकरी नाटक की तीव्रता ने सरकार को इतना व्याकुल कर दिया कि इस पर प्रतिबंध भी लगाया गया। नाटकों के साथ-साथ उनकी कविताओं में भी राजनीति पर व्यंग्य और लोकतंत्र के प्रति सजगता का भाव दिखता है। व्यंग्य करते हुए उनकी भाषा में कोई दुराव छिपाव नहीं है, बल्कि एक कड़ा प्रहार है। 'बकरी' नाटक में जो समस्या दिखती है, उससे उनकी यह कविता साम्य प्रदर्शित करती है, जिसे अधिकांशतः मोहभंग के समय में नारे की तरह उल्लेखित भी किया गया,
लोकतंत्र को जूते की तरह लाठी से लटकाए
भागे जा रहे हैं सीना फुलाए।

इसी प्रकार उनके अन्य नाटकों में 'लड़ाई' तथा 'अब गरीबी हटाओ' प्रसिद्ध हैं। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना के संबंध में कुंवर नारायण जी कहते हैं, "सर्वेश्वर मूलतः अपने तीव्र आवेगों और उत्तेजनाओं वाले व्यक्ति थे, जिनका पूरा असर उनके लेखन और उनके आपसी संबंधों दोनों पर पड़ता था। बौद्धिकता की बारीकियों और कांट-छाँट में वे ज्यादा नहीं पड़ते थे। जिसे तीव्रता से महसूस करते थे उस पर विश्वास करते और उसे उतनी ही तीव्रता से शब्द देते।" सर्वेश्वरदयाल सक्सेना के नाटकों और कविताओं की तीव्रता इस बात का प्रमाण है। इसके अतिरिक्त उन्होंने बाल नाटक लिखकर भी बाल साहित्य को विपुल बनाया। कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता और पत्रकारिता में सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लेखनी चली है और समाज को आइना दिखाती रही है। उनकी जनवादी रचनाओं की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। तीसरा सप्तक के कवि के रूप में इनकी पहचान अवश्य बनी पर इससे पूर्व वे एक सजग पत्रकार भी रहे, जिसके कारण उनकी रचनाओं में समाज के गहरे यथार्थ उभर कर सामने आए हैं। एक समृद्ध साहित्य लेखन के उपरांत अल्पायु में २४ सितंबर १९८३ को इस साहित्यकार का देहावसान हो गया।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना : जीवन परिचय

जन्म

१५ सितंबर १९२७, बस्ती (उत्तर प्रदेश)

निधन

२३ सितंबर १९८३, नई दिल्ली

शिक्षा

स्नातकोत्तर, इलाहाबाद (१९४१)

व्यवसाय

  • ऑल इंडिया रेडियो में सहायक संपादक

  • दिनमान पत्रिका से जुड़े 

  • पराग पत्रिका के संपादक रहे

साहित्यिक रचनाएँ

कविता संग्रह

  • काठ की घंटियाँ 

  • बांस का पुल 

  • एक सूनी नाव

  • गर्म हवाएँ

  • कुआनो नदी 

  • जंगल का दर्द

  • खूंटियों पर टंगे लोग 

  • क्या कह कर पुकारूँ - प्रेम कविताएँ

  • कविताएँ (१)

  • कविताएँ (२)

  • कोई मेरे साथ चले

  • मेघ आए

  • काला कोयल

नाटक

  • बकरी

  • लड़ाई

  • अब गरीबी हटाओ 

  • कल भात आएगा 

  • हवालात  


एकांकी नाटक 

  • रूपमती बाज बहादुर 

  • होरी धूम मचोरी

कथा साहित्य

  • पागल कुत्तों का मसीहा (लघु उपन्यास) 

  • सोया हुआ जल (लघु उपन्यास)

  • उड़े हुए रंग (उपन्यास) 

  • कच्ची सड़क

  • अंधेरे पर अंधेरा 

  • अनेक कहानियों का भारतीय तथा यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद

  • सोवियत कथा संग्रह १९७८ में 

  • सात महत्वपूर्ण कहानियों का रूसी अनुवाद

यात्रा वृत्तांत

  • कुछ रंग कुछ गंध

बाल साहित्य

  • भों-भों खों-खों 

  • लाख की नाक (नाटक)

  • बतूता का जूता

  • महंगू की टाई (कविता)

संपादन

  • शमशेर (मलयज के साथ)

  • रूपांबरा 

  • अँधेरों का हिसाब 

  • नेपाली कविताएँ 

  • रक्तबीज

पुरस्कार व सम्मान

  • 'खूंटियों पर टंगे लोग' काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार


संदर्भ

  • विकिपीडिया 

  • https://nityanirav.blogspot.com/2021/07/Bakari-natak-sarveshwardayal-saxena-ugc-net-jrf.html

  • हिंदी साहित्य और संवेदना का विकास - रामस्वरूप चतुर्वेदी।

लेखक परिचय

विनीत काण्डपाल 

स्नातक (प्रतिष्ठा) हिंदी, हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय 

स्नातकोत्तर हिंदी, किरोड़ीमल कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय 

अनुवाद डिप्लोमा, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

जेआरएफ, हिंदी शोधार्थी, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

मोबाइल - 8954940795 

ईमेल - vineetkandpal1998@gmail.com

7 comments:

  1. सुंदर आलेख, पूर्ण जानकारी।
    एक कृतिकार का समग्र आकलन !

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  2. आशुतोष नंदनSeptember 20, 2022 at 10:24 AM

    वस्तुपरक आलेख। कम शब्दों में शमशेर जैसे कृतिकार को बंधना कठिन कार्य है इस दृष्टि से भी आलेख सराहनीय है।

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    Replies
    1. आशुतोष नंदनSeptember 20, 2022 at 10:38 AM

      ऑटो करेक्ट ने शमशेर लिख दिया है। कृपया सर्वेश्वर पढ़ें।

      Delete
    2. आपका आभार आशुतोष जी 🙏🙏

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  3. विनीत जी नमस्ते। आपने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी पर अच्छा लेख लिखा। उनको पढ़ना मुझे हमेशा ही अच्छा लगता है। लेख में सम्मिलित उनकी कविताओं के अंश लेख को विस्तार दे रहे हैं। आपको लेख के लिए बधाई।

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  4. पठनीय शैली में लिखा जानकारीपूर्ण आलेख, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के कृतित्व से यह आलेख भली-भांति परिचय करता है। विनीत जी इस आलेख के लिए आपको बधाई और आभार।

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