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इन तमाम प्रश्नों का यदि एक उत्तर - बहुप्रतिष्ठित एवं सबके प्रिय साहित्यकार मनोहर श्याम जोशी जी कहें, तो यह ग़लत नहीं होगा। विलक्षण प्रतिभा के धनी, एक पत्रकार, व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार, धारावाहिक लेखक, फ़िल्म पटकथा लेखक, संपादक, स्तंभ लेखक रहे मनोहर श्याम जोशी पत्रकारिता, टेलीविज़न, सिनेमा और साहित्य, सभी जगह अपनी सहजता, सजगता और किस्सागो की वजह से ख़्याति प्राप्त रहे हैं। इन्होंने अपने लेखन को दृश्य-श्रव्य जैसे संप्रेषणीय माध्यमों से जोड़कर आम लोगों तक बड़ी कामयाबी से पहुँचाया है। अद्वितीय विद्वान साहित्यकार जोशी जी मीडिया माध्यमों के साथ-साथ साहित्यिक जगत के भी सिद्धहस्त रहे हैं। उनके लिए यह कहना कि, वे प्रयोगधर्मी रचनाकार थे, अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि उन्होंने जिस-जिस क्षेत्र में लिखा, उसमें सदैव नए-नए प्रयोग किए।
मनोहर श्याम जोशी का जन्म ९ अगस्त, सन १९३३ को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ था। इनके पिता शिक्षाविद एवं संगीत-पारखी थे, परिवार के लगभग सभी सदस्य साहित्य एवं कला प्रेमी थे। बचपन में ही पिता तथा बड़े भाई की असमय मृत्यु के कारण इन्हें आर्थिक एवं सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सात वर्ष की अवस्था में ही पिता तो नहीं रहे, लेकिन पिता का प्रभाव निरंतर बना रहा। इनके पिता का कला और विज्ञान से गहरा लगाव था, जो जोशी जी को भी मिला। इनकी माता श्रीमती रुक्मिणी देवी कुमाऊँनी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थीं, जहाँ भी लगभग सभी साहित्य प्रेमी थे। वे दूसरों की नकल करने तथा किस्सागो में निपुण थीं, जोशी जी में भी ये गुण अनायास ही आ गए थे। कुमाऊँनी परिवेश से परिपूर्ण परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी शास्त्र साधना एवं पठन-पाठन व विद्या-ग्रहण का क्रम पहले से चला आ रहा था, अतः विद्याध्ययन तथा संचार साधनों के प्रति जिज्ञासु भाव उन्हें बचपन से ही संस्कार स्वरूप प्राप्त था। कालांतर में आजीविका एवं संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास का आधार यही संस्कार बना; लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सबसे पहले स्कूल में अध्यापन किया, फिर एक ऑफिस में कलर्क बने, वहाँ भी मन न लगने के कारण दिल्ली आ गए और पत्रकारिता लेखन से जुड़ गए। कुछ समय वहाँ कार्य करने के पश्चात जब टीवी दूरदर्शन का दौर शुरू हुआ तो दूरदर्शन में कार्य करने लगे।
जब दूरदर्शन भारत में अपनी शैशवास्था में था, तब जोशी जी ने उसके लिए लिखना प्रारंभ किया था। 'बुनियाद' और 'हम लोग' जैसे चर्चित धारावाहिकों के लेखन से उन्हें देश के हर घर में ख़्याति मिली थी, इन धारावाहिकों ने लोगों के बीच मेल-जोल बढ़ाने का काम किया। अगर याद किया जाए तो बाद के "सास-बहू" और "तरह-तरह के मसाला" धारावाहिकों का कद इन धारावाहिकों के सामने निश्चित ही बौना लगता है। 'बुनियाद' देश के बँटवारे की पीड़ा के दर्द और 'हम लोग' सामाजिक सरोकारों का जीवंत वर्णन है। 'बुनियाद' में लाहौर से आए एक परिवार की चार पीढ़ियों की महागाथा है। कहा जाता है इसके प्रसारण के समय भारत और पाकिस्तान में रास्ते खाली रहते थे, क्योंकि लोग टेलीविजन देखने में व्यस्त रहते थे। जिनके घरों में टीवी नहीं होता था वे दूसरों के यहाँ जाकर देखते थे। यह वह दौर था जब संयुक्त परिवारों के टूटने का चलन कस्बों और छोटे शहरों में भी शुरू हो चुका था। तब जोशी जी ने अपने धारावाहिकों के ज़रिए मध्यवर्गीय समाज को संस्कारों से जोड़ने की कोशिश की थी। 'कक्काजी कहिन' और 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' धारावाहिकों के लेखन से उन्होंने अपने अंदाज़ और नए रंग में हास्य-व्यंग्य को प्रमुख स्थान दिया। इनके धारावाहिकों ने लोगों का ख़ूब मनोरंजन भी किया।
जोशी जी की पहली कहानी अठ्ठारह वर्ष की उम्र में 'प्रतीक' और 'संगम' पत्रिकाओं में छप चुकी थी, लेकिन पहला उपन्यास 'कुरु कुरु स्वाहा' सैंतालिस साल की उम्र में बंबइया शैली में प्रकाशित हुआ। इन्होंने अपने पहले ही उपन्यास में भाषा के विविध रंग दिखलाए। इस उपन्यास की भाषा और संवाद शैली को हिंदी साहित्य में एक नया प्रयोग माना जाता है। कथ्य में नवीनता और भाषा की ज़िंदादिली इनके उपन्यासों को ख़ास बनाती है। मनोहर श्याम जोशी उन किस्सागो में शामिल थे, जिन्होंने अपने कथा साहित्य में किस्सागोई की परंपरा को ज़िंदा रखा। बतकही के ज़रिए मुश्किल से मुश्किल कथ्य को कुछ इस तरह से कहते हैं कि पाठक तृप्त हो जाता है। उनकी कल्पनाशीलता में वाग्विदग्धता देखने को मिलती है। 'कसप' उपन्यास उनका लोकप्रिय उपन्यास है। यह १७ वर्षीय बेबी और गंभीर लेखक देवी दत्त के पहली नज़र से प्यार की कहानी है। नायिका बेबी को देवी दत्त बहुत गंभीर और साहित्यिक पत्र लिखते हैं, जो मासूम बेबी की समझ में नहीं आते हैं। बेबी अपने प्रेम पत्र अपने पिता से पढ़वाती और समझती है। पिता पुत्री को न केवल पत्र का अर्थ समझाते हैं, बल्कि लड़के के बारे में भी गंभीरता से सोचते हैं। यह प्रेम कहानी लंबी है, इसमें कई मोड़ आते हैं। उपन्यास अंत में मीठा-मीठा दर्द, उत्सुकता और एक सवाल - "क्या जाने?" छोड़कर जाता है। इसमें कुमाऊँनी भाषा के साथ-साथ वहाँ के रीति-रिवाज़ों का भी मनोहारी चित्रण है। 'कसप' उपन्यास का नामकरण ही कुमाऊँनी भाषा पर आधारित है, जिसका अर्थ है - क्या जाने या राम जाने। यह जानकर हैरानी होती है कि, जोशी जी कभी भी पहाड़ों पर नहीं रहे, फिर भी उनके उपन्यासों और कहानियों में कुमाऊँनी रीति-रिवाज़ , खान-पान और संस्कृति का विराट स्वरूप बड़ी सरलता से देखने को मिलता है। शायद यह परिवार के वातावरण का प्रभाव होगा कि उनके कथ्य का हिस्सा उत्तराखंड के कुमाऊँ का जीवंत चित्रण पाठकों को एक अलग ही दृष्टिकोण से जोड़ने की अनूठी पहल करता है। इस उपन्यास में जोशी जी ने कुमाऊँ भाषा के शब्दों के हिंदी अर्थ भी दिए हैं।
इनके उपन्यासों में आंचलिकता के अलावा भाषा के विविध रंग मिलते हैं। कहीं कन्नड़, कहीं अवधी, तो कहीं बंबइया हिंदी के बहुतायत रूप दिखाई देते हैं। भाषाई कला उनकी रचनाओं में बार-बार दिखलाई देती है।
वे एक कुशल प्रवक्ता के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। एक श्रेष्ठ वार्ताकार का हर गुण उनमें मौज़ूद था। उनकी ख़ूबी थी कि वे साक्षात्कार लेते समय टेपरिकॉर्डर या लिखने के लिए कॉपी आदि का इस्तेमाल किए बिना बाद में बातचीत याद करके आराम से लिख लेते थे। बातों-बातों में सामने वाले का पूरा व्यक्तित्व दिखा देते थे। बातचीत के दौरान सामने वाले को उकसाने, फुसलाने और उससे जानकारी निकलवाने में वे माहिर थे। ज़रूरत पड़ने पर उससे अनकहे सवाल भी पूछ लेते थे और सामने वाले को उसका आभास भी नहीं हो पाता था। उनकी एक किताब 'बातों-बातों में' में पत्र-पत्रिकाओं के सिलसिले में विभिन्न लोगों से की गई भेंटवार्ताएँ संकलित हैं।
जोशी जी को पत्रकारिता का भी खासा अनुभव था। लंबे समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहने के कारण उन्हें कई पत्रिकाओं के संपादन के अवसर मिले। आपने ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी के बाद 'दिनमान' और 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' जैसी बहुप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। लेखन में रोचकता और गंभीर बात, उन्हें दूसरे मीडियाकर्मियों से अलग करती थी। उन्होंने खेलकूद एवं दर्शनशास्त्र, विज्ञान और राजनीति पर भी बख़ूबी लिखा।
जोशी जी की रचनाओं में उत्तर आधुनिकतावाद तथा यथार्थवाद का प्रतिबिंबन भी देखा जा सकता है। समय के दबाव में आधुनिक व्यक्ति के विघटन को उन्होंने बहुत बारीकी से व्यक्त किया है। यही नहीं, उनकी रचनाओं में यातना की निरंतरता में सामंती संस्कार टूटते हैं और मनुष्य नाना संघर्षों से गुजरता हुआ प्रकट होता है। इन्होंने जिस भी क्षेत्र में कार्य किया, वहीं उन्हें ख़्याति मिली। इससे अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वे अपने कार्य के प्रति कितने सजग एवं एकाग्र थे।
जोशी जी राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़े गए। इनके उपन्यास 'ट टा-प्रोफेसर' के अँग्रेज़ी अनुवाद को मिले ब्रिटेन के 'क्रोस्वर्ड पुरस्कार' से इनकी अंतर्राष्ट्रीय ख़्याति के दर्शन होते हैं। २००५ में 'क्याप' उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इसके अलावा शरद जोशी सम्मान, शिखर सम्मान, दिल्ली अकादमी पुरस्कार, टेलीविजन के लिए 'ऑनिडा' और 'अपट्रान' पुरस्कार से सम्मानित किए गए। इन पुरस्कारों से इतर लाखों प्रशंसकों और पाठकों का प्यार-सम्मान इन्हें अन्य साहित्यकारों से विलग करता है। जनता का यह प्यार किसी प्रतिष्ठित पुरस्कार से कमतर नहीं है।
मनोहर श्याम जोशी : जीवन परिचय |
जन्म | ९ अगस्त १९३३, अजमेर, राजस्थान |
निधन | ३० मार्च २००६, नई दिल्ली |
पिता | श्री प्रेम बल्लभ जोशी |
माता | श्रीमती रुक्मिणी देवी |
पत्नी | डॉ० भगवती जोशी |
पुत्र | अनुपम जोशी, अनुराग जोशी, आशीष जोशी |
व्यवसाय | लेखक, दूरदर्शन धारावाहिक |
भाषा | हिंदी |
कर्मभूमि | अजमेर, दिल्ली |
शिक्षा एवं शोध |
स्नातक | लखनऊ विश्वविद्यालय |
साहित्यिक रचनाएँ |
उपन्यास | |
कहानी संग्रह | कैसे किस्सागो दस प्रतिनिधि कहानियाँ मंदिर के घाट की पौड़ियाँ
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व्यंग्य संग्रह | |
संपादन | |
संस्मरण | |
धारावाहिक | हम लोग बुनियाद कक्काजी कहिन मुंगेरी लाल के हसीन सपने हमराही ज़मीन आसमान गाथा
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फ़िल्म | हे राम पापा कहते हैं अप्पू राजा भ्रष्टाचार
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पुरस्कार व सम्मान |
सांसद साहित्य परिषद सम्मान शरद जोशी सम्मान शिखर सम्मान दिल्ली हिंदी अकादमी पुरस्कार साहित्य अकादमी पुरस्कार ब्रिटेन का क्रोस्वर्ड पुरस्कार
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संदर्भ
डॉ० रेखा सिंह
बीएड, पीएचडी,नेट, यूसेट
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर,
हिंदी विभाग, रा० महा० विद्यालय,
पावकी देवी टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड, भारत
शोधपत्र - २० राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय
बहुत सुंदर आलेख!
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक व ज्ञानार्जक आलेख। रेखाजी को शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबहुत शानदार दीदी🙏🙏🙏💐
ReplyDeleteशानदार और जानदार आलेख मनोहर श्याम जोशी जी पर। रेखा जी, आपने भारत में दूरदर्शन के शुरूआती दौर की यादें सजग करा दीं। आपने जोशी जी के बहुआयामी कृतित्व को सीमित शब्दों में समेटने का बढ़िया प्रयास किया है। इसके लिए आपको बधाई।
ReplyDeleteआलेख विभिन्न जानकारी से भरपूर है । बुनियाद व हम लोग जैसे धारावाहिक सीरियल की याद ताज़ा कर दी है । सार्थक आलेख के लिए बधाई ।
ReplyDelete- बीजेन्द्र जैमिनी
साहित्य और पत्रकारिता के बहुमुखी धनी माननीय मनोहर श्याम जोशी जी के प्रतिभा का विस्तार उच्चकोटि के संपादक और कुशल प्रवक्ता के रूप में भी खूब रहा। 'कसप' उपन्यास के कथानक शैली में कुमाउँनी हिंदी द्वारा आंचलिक कथाकारों के जीवन का जीवंत चित्रण पढ़ने मिलता है। कुमाउँनी में कसप का अर्थ है *क्या जाने*। *कुरु-कुरु स्वाहा* भी उनका लोकप्रिय उपन्यास रहा है।
ReplyDeleteआदरणीया रेखा जी, आपने आलेख में विरलित शब्दश्रंखला जैसे संप्रेषणीय माध्यमों को जोड़कर बड़ी विस्तृतापूर्वक यह लेख हम तक पहुचाया है। इस लेख में आद. जोशी जी के साहित्य के तमाम विधाओं को लेकर अपनी कलम का जादू समान रूप से चलता दिख रहा है। जोशी जी के साहित्यिक रंगों और भाषाई कला का प्रत्यक्ष रूप इस आलेख के कथ्य और नवीनतम प्रस्तुतिकरण पर कुछ खास ध्यान आकर्षित कर रहा है। बेहतरीन अंदाज में रचे हुए इस आलेख के लिए आपका आभार और विशेष शुभकामनाएं।
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ReplyDeleteजोशी जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना रोचक है कि पढ़ते हुए घंटों निकल जाएँ तो ध्यान ना टूटे। रेखा जी, आपका आलेख कब शुरू हुआ और कब ख़त्म , कसप।इस सुंदर , रोचक आलेख के लिए आपको बधाई। 💐💐
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ReplyDeleteरेखा जी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी और ख़ासतौर से क़िस्सागोई एवं बतकही के ज़रिये मुश्किल मुद्दों को हलके-फुल्के अंदाज़ में पूरी समग्रता के साथ प्रस्तुत करने वाले तथा हिंदी टेलीविज़न को आजतक के सबसे यादगार धारावाहिक देने वाले मनोहर श्याम जोशी जी पर आपका आलेख रोचक भी है और जानकारीपूर्ण भी। आपको इस अच्छे आलेख के लिए बधाई और आभार।
ReplyDeleteरेखा जी, मनोहर श्याम जोशी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आपने बहुत सुरुचिपूर्ण शैली में तथ्यपरक और जानकारीपूर्ण लेख लिखा है। सिलसिलेवार संदर्भ इस तरह पिरोए हैं आपने कि लगा कोई कहानी पढ़ रहे हैं। आनंद आया। बहुत बहुत बधाई आपको।
ReplyDeleteरेखा जी, आपने मनोहर श्याम जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। मनोहर श्याम जी ने हिंदी साहित्य में अपनी विशेष पहचान बनायी। बुनियाद एवं हमलोग की वजह से वो आम जन के मन मे खूब छाये रहे। उनके समृद्ध लेखन को आपने बखूबी इस लेख में पिरोया इसके लिये आपको हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteजानकारीपरक आलेख। बधाई रेखा जी।
ReplyDeleteबहुत रोचकता से मनोहर श्याम जोशी जी के कृतित्व को पिरोया है आपने रेखा जी। सुंदर आलेख!
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