हिंदी के आलोचकों में अग्रणी स्थान रखने वाले डॉ० नगेंद्र उच्च कोटि के प्राध्यापक, विचारक, भारतीय काव्यशास्त्र के प्रकांड विद्वान और इतिहासकार रहे। उनकी मान्यता थी कि "अध्यापक वृत्तितः व्याख्याता और विवेकशील होता है। ऊँची श्रेणी के विद्यार्थियों और अनुसंधान कर्ताओं को काव्य का मर्म समझाना उसका व्यावसायिक कर्तव्य व कर्म है"।
डॉ० नगेंद्र का जन्म ९ मार्च १९१५ को गाँव अतरौली, ज़िला अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के एक ज़मींदार घराने में हुआ था। उनके पिता पं० राजेंद्र आर्यसमाजी थे और उनका अधिकांश जीवन समाज सुधारक कार्यों में व्यतीत हुआ। उनकी माता श्रीमती शिवधारा बहुत सुलझी हुई विचारधारा की थीं। नगेंद्र जी का विवाह १९ वर्ष की आयु में ही हो गया था। पत्नी श्रीमती रक्षावती देवी संस्कृत की विदुषी थीं।
इंद्रप्रस्थ कॉलेज के हिंदी विभाग में हमारा विद्यार्थी जीवन अनेक उपलब्धियों का दौर रहा। उन्हीं उपलब्धियों में एक था, हमारा सुषमा पाराशर जी से ज्ञान लाभ प्राप्त करना। सुषमा जी डॉ० नगेंद्र की ज्येष्ठ पुत्री हैं, यह जानकर तो जिज्ञासा होती थी कि हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाली इतनी महान विभूति पिता रूप में कैसी होगी? हम अक्सर ही सुषमा जी से डॉ० नगेंद्र जी की बातें पूछा करते थे और वे सहर्ष बताती थीं कि "डॉ० नगेंद्र मेरे पिता ही नहीं, मेरे गुरु भी हैं।"
नगेंद्र जी के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ प्रणय, सौंदर्य और कल्पना के कवि के रूप में १९३७ में 'वनबाला' के प्रकाशन के साथ हुआ। "सरले! ये सुंदर काव्यचित्र, ये दिव्य भाव हैं मन की मधुरमय भ्रांति, चेतना के भुलाव!"
डॉ० नगेंद्र ने आगरा विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी तथा नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी की स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से १९४७ में हिंदी में डीलिट की उपाधि प्राप्त की। इसके पीछे की कथा बड़ी अनूठी है। १९३७ के आसपास उन्होंने अपनी पहली आलोचनात्मक कृति 'सुमित्रानंदन पंत' और फिर 'साकेत-एक अध्ययन' की रचना की। उनके शोध का विषय था 'रीतिकालीन पृष्ठभूमि में देव का स्थान'। उनके शोध प्रबंध और आलोचनात्मक कृतियों के आधार पर आगरा विश्वविद्यालय ने सन १९४७ में पी० एच० डी० की अर्हता को निरस्त कर, उन्हें सीधे डीलिट की उपाधि प्रदान की थी। उस समय के साहित्यिक परिदृश्य में यह सर्वथा नवीन व ऐतिहासिक घटना थी। नगेंद्र जी के शोधग्रंथ के इस ऐतिहासिक महत्व का अनुमान लगाना बड़ा ही सहज है, क्योंकि 'रीति काव्य की भूमिका' तथा 'देव और उनकी कविता' नाम से दो खंडों में प्रकाशित उनका यह प्रबंध आज भी रीति काल के शोधार्थियों के लिए सबसे प्रामाणिक स्रोत ग्रंथ माना जाता है।
डॉ० नगेंद्र का वृहद योगदान छायावाद के महत्व की स्थापना से आरंभ होकर वैश्विक साहित्यशास्त्र के निर्माण के प्रयास तक में लक्षित हुआ है। डॉ० नगेंद्र का छायावाद को परिभाषित करता सूत्र वाक्य 'स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह' परिभाषा रूप में चरितार्थ होता रहा है। आधुनिक हिंदी के कलेवर को समृद्ध करने में डॉ० नगेंद्र की विशिष्ट भूमिका रही है। अपने रचनाकर्म एवं वैचारिक प्रवाह में जहाँ वे एक ओर अँग्रेज़ी के आई० ए० रिचर्ड और क्रोचे से प्रभावित हुए, दूसरी ओर संस्कृत के भट्ट नायक और अभिनव गुप्त का असर भी उन पर परिलक्षित होता रहा है। वहीं उन पर आचार्य रामचंद्र शुक्ल का प्रबल प्रभाव भी दृष्टिगत होता है।
१९४७ में वे आकाशवाणी में पहले कार्यक्रम निदेशक और फिर हिंदी समाचार विभाग पर्यवेक्षक के पद पर कार्यरत रहे। इस दौरान आकाशवाणी में हिंदी के मानकीकरण व शुद्ध उच्चारण पर उन्होंने ध्यान केंद्रित किया और हिंदी भाषा के शुद्ध स्वरूप को आकाशवाणी की भाषा का गौरव दिलाया। उन्होंने वर्ष १९५२ में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष का पद संभाला और बड़ी लगन और कर्मठता के साथ इस ज़िम्मेदारी का वहन किया। भारतीय भाषाओं के बीच तुलनात्मक अध्ययन की परंपरा के विकास और आदान-प्रदान की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने हेतु उन्होंने अथक प्रयास किए। हिंदी अनुसंधान परिषद की स्थापना इन्हीं प्रयासों की देन है। अपने कार्यकाल में वे केंद्रीय हिंदी निदेशालय सहित अनेक हिंदी संस्थाओं एवं भारत सरकार की हिंदी समितियों के परामर्शदाता रहे।
नगेंद्र जी ने अपनी व्यावहारिक समीक्षाओं का आरंभ किया था, छायावाद पर अपने निबंधों के माध्यम से। इसी दौरान उनकी पहली पुस्तक 'सुमित्रानंदन पंत' प्रकाशित हुई, जिसे शुक्ल जी ने भी सराहा। 'कामायनी के अध्ययन की समस्याएँ' में नगेंद्र जी का मनोवैज्ञानिक और शिल्पगत दृष्टिकोण अपने परिवर्तित रूप में दिखा। 'रीतिकाल की भूमिका' और 'देव और उनकी कविता' में नगेंद्र जी की आलोचक पद्धति को शास्त्रीय दृष्टि से प्रतिमान माना गया है। उनकी आलोचनाओं का वैशिष्ट्य इस रूप में उभरा है कि जहाँ एक तरफ उन्होंने भक्तिकाल और रीतिकाल के जटिल संबंधों को स्पष्टता दी, वहीं समकालीन साहित्य जैसे नई कविता और नई समीक्षा का भी प्रचुरता से विवेचन किया। उन्होंने हिंदी आलोचना को व्यावहारिक और सैद्धांतिक दोनों ही रूपों में संवर्धित किया है।
अपने मूल दृष्टिकोण में रसवादी और व्यक्तिवादी आलोचक डॉ० नगेंद्र की आलोचनाओं में निरंतर प्रगतिशील मूल्यों की अवधारणा स्पष्टतया दृष्टिगत होती है। फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक शास्त्र के आधार पर इन्होंने नाटकों व नाटककारों की आलोचनाएँ लिखीं। उन्होंने साहित्य तथा अन्य कलाओं का उद्देश्य रस की उत्पत्ति व साधारणीकरण को स्वीकारा। फ्रायड की मनोविश्लेषणवादी मान्यताओं का प्रभाव 'तुलसी और नारी', 'देव और उनकी कविता' आदि के विवेचन में स्पष्टतः दृष्टव्य है।
नगेंद्र जी ने अपनी प्रखर कलम के द्वारा हिंदी निबंध साहित्य की गरिमा को अद्वितीय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाहित की। उन्होंने विचार और अनुभूति, विचार और विश्लेषण, अनुसंधान और आलोचना, आलोचक की आस्था, आस्था के चरण, नई समीक्षा, नए संदर्भ इत्यादि निबंध अपनी भारतीय शैली के उन्मुक्त चिंतन के अनुसार लिखे हैं। उनकी शैली में निजीपन की सहजता भी है और प्रौढ़ता भी। उनके निबंध व्यक्तिपरक एवं विषयपरक दोनों ही हैं। उन्होंने चेतना के बिंब, तंत्रलोक से मंत्रलोक तथा अप्रवासी की यात्राएँ सरीखे संस्मरण भी लिखे हैं।
डॉ० नगेंद्र ने रीतिकाल की भूमिका में रस, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति और ध्वनि संप्रदाय के मतों की पुनर्स्थापना भी की है। उन्होंने 'भारतीय सौंदर्य शास्त्र' की भूमिका लिखी और अरस्तु के काव्यशास्त्र का अनुवाद कर उसकी भूमिका प्रस्तुत की है। उन्होंने 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र : सिद्धांत और वाद' नामक आलोचनात्मक कृति में अपनी सूक्ष्म विवेचन-क्षमता का परिचय भी दिया। उनके अनुसार रस आज के साहित्य के मूल्यांकन के लिए पर्याप्त और समर्थ है, किंतु रस को रूढ़ रूप में न लेकर विकासमान रूप में लेने की आवश्यकता है। मूल्यों को वे देशकाल बद्ध और परिवर्तनशील मानते थे। जब जीवन और काव्य मूल्यों का विघटन चरम सीमा पर पहुँचा, तब डॉ० नगेंद्र ने रस सिद्धांत को विद्वानों और सामान्य पाठकों के समक्ष शाश्वत और सार्वभौम सिद्धांत के रूप में रखा है। उनके कृतित्व की मीमांसा करते हुए राम दरश मिश्र जी ने लिखा "डॉ० नगेंद्र का योगदान मुख्यतः नई बातें उद्घाटित करने में उतना नहीं है, जितना उद्घाटित बातों को ही अधिक सघनता और संगति से विश्लेषित करने में तथा नई समझदारी से कृतियों का विवेचन करने में है।"
डॉ० नगेंद्र एक सुलझे हुए विचारक और गहरे विश्लेषक हैं। अपनी सूझ-बूझ तथा पकड़ के कारण वे गहराई से केवल विश्लेषण ही नहीं करते, बल्कि नई उद्भावनाओं से अपने विवेचन को विचारोत्तेजक भी बना देते हैं। हिंदी के संपूर्ण इतिहास को इन्होंने चार खंडों में विभाजित किया है और अपनी शुद्ध, परिमार्जित दृष्टि का आधारबिंदु प्रदान करते हुए स्वछंदतावादी आलोचक के रूप में उसका परिमार्जन किया है। वस्तुतः डॉ० नगेंद्र के अध्यापन और लेखन दोनों का ही वैशिष्ट्य रहा, परंपरा के ज्ञान के प्रति सम्मान और दृष्टिकोण की आधुनिकता का भावबोध। उनका विश्लेषणात्मक कृतित्व उनके समसामयिक होने का परिचायक है। जहाँ उसमें अतीत का स्वीकार्य बोध निहित है, वहीं वर्तमान के नव जागृति के स्वर भी। उनके कृतित्व में परंपरा तथा नवीनता, सौंदर्य बोध तथा नीतिबद्धता, व्यष्टि तथा समष्टि, आनंदमय रीति तथा कल्याणमय प्रीति के भाव समन्वित हैं। यही साहित्यिक विशेषताएँ डॉ० नगेंद्र के श्रेष्ठ आलोचक होने का प्रमाण हैं।
डॉ० नगेंद्र : जीवन परिचय |
जन्म | ९ मार्च १९१५ |
निधन | २७ अक्तूबर १९९९ |
शिक्षा | हिंदी में डीलिट आगरा विश्वविद्यालय |
माता | श्रीमती शिवधारा |
पिता | श्री राजेंद्र |
पत्नी | श्रीमती रक्षावती देवी |
साहित्यिक रचनाएँ |
आलोचना | | भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा रस सिद्धांत नई समीक्षा नए संदर्भ भारतीय सौंदर्य शास्त्र की भूमिका काव्य बिंब शैली विज्ञान मिथक और साहित्य साहित्य का समाज शास्त्र भारतीय महाकाव्य
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संपादित ग्रंथ | | भारतीय साहित्य भारतीय साहित्य कोश
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यात्रावृत्त
| तंत्रलोक से यंत्रलोक तक अप्रवासी की यात्राएँ
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संस्मरण | |
आत्मकथा | |
कविता
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अनुवाद | |
पुरस्कार एवं सम्मान |
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संदर्भ
लेखक परिचय
विनीता काम्बीरी
शिक्षा निदेशालय, दिल्ली प्रशासन में हिंदी प्रवक्ता हैं तथा आकाशवाणी दिल्ली के एफएम रेनबो चैनल में हिंदी प्रस्तोता हैं। आपकी कर्मठता और हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण भाव के कारण अनेक सम्मान व पुरस्कार आपको प्रदत्त किए गए हैं, जिनमें यूएन द्वारा सहस्राब्दी हिंदी शिक्षक सम्मान, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड और शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार द्वारा राज्य शिक्षक सम्मान प्रमुख हैं। मिनिएचर-पेंटिग करने, कहानियाँ और कविताएँ लिखने में रुचि है।
ईमेल : vinitakambiri@gmail.com
डॉ नगेंद्र हिंदी के प्रमुख आलोचक रहे हैं। उनका हिन्दी साहित्य की आलोचना एवं इतिहास में विशेष योगदान रहा। विनीता जी का यह विस्तृत लेख डॉ नगेंद्र के सृजन को बहुत रोचक ढंग से प्रस्तुत करता है। विनीता जी को इस सुंदर लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसाहित्यिक जीवन में रसवादी आलोचक डॉ नगेंद्र जी खड़ी बोली तथा भाषा शुद्ध व्याकरण के विवेकशील रचनाकार थे। हिंदी साहित्य का बृहत इतिहास उनके द्वारा संकलित और संपादित किया साहित्य के उदय और विकास उत्कर्ष मार्ग में बहुत बड़ी संकल्पना है। अपने तथ्यों और सिद्धांतों के आधार पर उन्होंने साहित्यक्षेत्र में विभिन्न अवस्थाओं का विवेचन और निर्देशन किया है। आदरणीया विनीता जी के संदर्भ भरे शोधपरख आलेख से डॉ नगेंद्र जी के सांस्कृतिक, समाजशास्त्रीय और मानववादी विचारों का ज्ञान हो रहा है। इस ज्ञानवर्धक और विस्तृत लेख के लिए मैं आपको अनंत शुभकामनाएं और आभार प्रकट करता हूं।
ReplyDeleteहिंदी साहित्य के इतिहास को पढ़ने के लिए नगेंद्र जी को न पढ़े तो जैसे कुछ।अधूरा रह जाता। हिन्दी साहित्य के प्रमुख विचारक और आलोचक साहित्य कार नगेंद्र जी के विषय में इतनी बारीकी से फिर से पढ़ने को मिला ,उसके लिए आपको आभार विनीता जी । सुंदर आलेख।
ReplyDeleteसाहित्य के उत्थान में एक शोधकर्ता, आलोचक तथा विचारक की भूमिका बड़ी विशेष होती है, ये कहना अतिशयोक्ति नहीं। एक शोधकर्ता के नाते मैं अपने निजी अनुभव से इसे समझ सकता हूँ। हिंदी साहित्य को समर्पित डॉक्टर नगेंद्र का विशिष्टता का अनुमान आगरा विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें सीधे डिलिट की उपाधि से लगाया जा सकता है। विनीता जी आपके इन सुंदर शब्दों - “उनके कृतित्व में परंपरा तथा नवीनता, सौंदर्य बोध तथा नीतिबद्धता, व्यष्टि तथा समष्टि, आनंदमय रीति तथा कल्याणमय प्रीति के भाव समन्वित हैं।” ने उनके व्यापक योगदान को गहराई से आंका है। हार्दिक बधाई। ��
ReplyDelete- डॉ. राय कूकणा, ऑस्ट्रेलिया
आप प्रबुद्ध विद्वानों का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteआपके प्रेरणास्पद् शब्द हिम्मत बढ़ाते हैं और निरंतर कार्य करने के लिए उत्साह प्रदान करते हैं।