आज २१वीं शताब्दी के दूसरे दशक में जब हिंदी में गणित एवं विज्ञान के विषयों पर पुस्तकों की माँग की जाती है, तो प्रायः यह सुनने में आता है कि इसके लिए आधारभूत सामग्री उपलब्ध नहीं है। यह भी कहा जाता है कि हिंदी आदि भारतीय भाषाएँ आधुनिक गणित और ज्ञान-विज्ञान को अभिव्यक्त करने में समर्थ नहीं हैं। हम आरंभ में ही यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि यह धारणा निराधार, असत्य और भ्रामक है, क्योंकि हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं में प्रगतिपरक साहित्य, गणित, एवं ज्ञान-विज्ञान को सहज और गहन दोनों रूपों में अभिव्यक्त और संप्रेषित करने की संपूर्ण शक्ति विद्यमान है। साहित्य की ही भाँति गणित और वैज्ञानिक लेखन की भी इस देश में सुदृढ़ परंपरा रही है और हिंदी सहित सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं ने उसे विरासत के रूप में प्राप्त किया है।
इस विरासत के जीवंत उदाहरण हैं, गणितज्ञ एवं हिंदी में विज्ञान की आभा प्रदीप्त करने वाले दैदिप्यमान लेखक गोरख प्रसाद जी। गोरख जी का जन्म २८ मार्च, १८९६ को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। सन १९१८ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होंने एम० एस० सी० परीक्षा उत्तीर्ण की। ये डॉ० गणेश प्रसाद के प्रिय शिष्य थे। उनके साथ इन्होंने सन १९२० तक अनुसंधान का कार्य किया। महामना पं० मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से गोरख प्रसाद ऐडिनबरा गए और सन १९२४ में गणित की गवेषणाओं पर वहाँ के विश्वविद्यालय से डी० एस० सी० की उपाधि प्राप्त की। २१ जुलाई १९२५ से प्रयाग विश्वविद्यालय के गणित विभाग में रीडर के पद पर कार्य किया। बत्तीस वर्ष की सेवा के बाद वहाँ से २० दिसंबर, १९५७ को पदमुक्त होकर नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा संयोजित 'हिंदी विश्वकोश' का संपादन भार ग्रहण किया। सन १९५२ से १९५९ तक विज्ञान परिषद (प्रयाग) के उपसभापति और सन १९६० से मृत्युपर्यंत उसके सभापति रहे। कई वर्षों तक हिंदी साहित्य सम्मेलन के परीक्षामंत्री भी रहे। वे काशी में हिंदी साहित्य सम्मेलन के २८वें अधिवेशन में विज्ञान परिषद के अध्यक्ष होने के साथ-साथ बनारस मैथमैटिकल सोसायटी के भी अध्यक्ष रहे। हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा १९३१ में 'फोटोग्राफी' नामक ग्रंथ पर इनको 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक' मिला था।
गोरख प्रसाद गणितज्ञ होने के साथ-साथ हिंदी विश्वकोश के संपादक तथा हिंदी में विज्ञान साहित्य के बहुप्रतिभावान लेखक थे। हिंदी विश्वकोश, नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी में निर्मित एक विश्वकोश है। विश्वकोश वह कृति होती है, जिसमें ज्ञान की सभी शाखाओं का सन्निवेश होता है। विश्व के समस्त ज्ञान का भंडार लिए यह अनेक खंडों में पुस्तक रूप में उपलब्ध है। यह किसी एक विषय पर केंद्रित नहीं है, बल्कि इसमें अनेकानेक विषयों का समावेश है। राष्ट्रभाषा हिंदी में एक मौलिक एवं प्रामाणिक विश्वकोश के प्रकाशन की योजना के लिए काशी में तत्कालीन सभापति महामान्य पं० गोविंद वल्लभ पंत की प्रेरणा से एक विचार भारत सरकार को प्रस्तुत किया गया था। प्रस्ताव में कहा गया, "कला और विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान और वांग्मय की सीमाएँ अब अत्यंत विस्तृत हो गई हैं। नए अनुसंधानों, वैज्ञानिक आविष्कारों तथा दूरगामी चिंतनों ने मानवज्ञान के क्षेत्र का विस्तार बहुत बढ़ा दिया है। जीवन के विविध अंगों में व्यावहारिक एवं साहसपूर्ण प्रयोगों द्वारा विचारों और मान्यताओं में असाधारण परिवर्तन हुए हैं। इस महती और वर्धनशील ज्ञानराशि को देश की शिक्षित तथा जिज्ञासु जनता के सामने राष्ट्रभाषा के माध्यम से संक्षिप्त एवं सुबोध रूप में रखने का हमारा विचार पुराना है। प्रस्तावित विश्वकोश का यही ध्येय है।"
तत्पश्चात भारत सरकार ने इस विश्वकोश को प्रकाशित करने की स्वीकृति दे दी थी। डॉ० गोरख प्रसाद ने विश्वकोश का विज्ञान तथा भूगोल के अनुभाग का कार्य संभाला। गणित और भौतिकी के विशेष टाइप के कारण मुद्रण में बहुत सी समस्याएँ भी आईं।
अब हम वैज्ञानिक साहित्य की तरफ़ मुड़ते हैं, जिसे गोरख प्रसाद जी ने अपनी कलम से संशोधित किया है। वैज्ञानिक साहित्य के अंतर्गत वे प्रकाशन आते हैं, जिनमें प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञान से संबंधित मौलिक, प्रायोगिक या सैद्धांतिकी कार्यों का विवरण हो। किसी वैज्ञानिक पत्रिका (जर्नल) में पहली बार प्रकाशित होने वाले मौलिक वैज्ञानिक अनुसंधान को 'प्राथमिक साहित्य' कहते हैं और इसे साहित्य का दर्जा देने का श्रेय गोरख प्रसाद को जाता है। पेटेंट, तकनीकी रिपोर्ट, अभियांत्रिकि और डिज़ाइन से संबंधित लघु अनुसंधान, कंप्यूटर साफ्टवेयर आदि से संबंधित डिज़ाइन कार्य आदि भी प्राथमिक साहित्य के अंतर्गत गिने जा सकते हैं। वैज्ञानिक साहित्य में गोरख प्रसाद के अनगिनत लेख प्रकाशित हैं, जो प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान में मूल अनुभवजन्य और सैद्धांतिक कार्य की रिपोर्ट पेश करते हैं। प्रसाद जी ने वैज्ञानिक साहित्य में शोध के परिणामों को योगदान देने की प्रक्रिया दी है, जिसके लिए अक्सर एक सहकर्मी-समीक्षा प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
गोरख प्रसाद के कई माध्यमिक स्रोतों में समीक्षा लेख शामिल हैं, जो प्रगति और अनुसंधान की नई पंक्तियों को उजागर करने के लिए प्रकाशित अध्ययनों के निष्कर्षों को सारांशित करते हैं। उनके द्वारा लिखी गई कई किताबें बड़ी परियोजनाओं या लेखों के संकलन सहित व्यापक तर्कों के लिए व्यापक सार्वजनिक उपभोग में ली गई हैं।
गोरख जी का हमेशा यही मानना रहा है कि हिंदी साहित्य में गणित तथा वैज्ञानिक लेखन के लिए विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली की आवश्यकता होती है। जैसा कि बाबू श्याम-सुंदरदास जी ने भी काशी नागरीप्रचारणी सभा के पारिभाषिक शब्दनिर्माण संबंधी कार्यक्रम की प्रासंगिकता के बारे में बताया था, "जब कभी किसी व्यक्ति से किसी वैज्ञानिक विषय की पुस्तक लिखने या अनुवाद करने के लिए कहा जाता है, तो वह इसके लिए तभी तैयार होता है जब उन वैज्ञानिक शब्दों के पर्यायवाची शब्द हिंदी में बनाकर दे-दे, जिनकी उस पुस्तक या लेख को लिखने में ज़रूरत पडे़गी।"
आज भी संभावित लेखक ऐसी ही माँग करते हैं। परंतु वास्तविकता यह है कि आज पहले जैसी स्थिति नहीं है। पहले के मुकाबले अब वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग आदि संस्थानों ने लाखों की संख्या में विभिन्न विज्ञान और गणित के शब्द बना डाले हैं और नित नए विषयों पर शब्दनिर्माण का काम अनेक स्तरों पर चल रहा है। अतः शब्दावली की अनुपलब्धता अब एक बहाना मात्र है। भारत के महान गणितज्ञ और हिंदी के विद्वान श्री गोरख प्रसाद के अनुसार, "गणित लेखन में कुछ विशेषताओं को ख़ासकर ध्यान में रखना चाहिए जैसे कि गणित साहित्य की भाषा अधिक कठिन नहीं होनी चाहिए। उसमें अनावश्यक विवरण नहीं होने चाहिए। उसमें मूल सिद्धांतों की सही-सही और सटीक व्याख्या में जानकारी होनी चाहिए और उसमें भाषागत स्पष्टता और गरिमामय उदाहरणों का निर्वाह किया जाना चाहिए।"
संभवतः इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जब पहले पहल हिंदी भाषा में वैज्ञानिक और गणित विषयों पर पाठ्य पुस्तकें तैयार करने की चुनौती सामने आई होगी, तब अँग्रेज़ी से आए शब्दों के हिंदी पर्याय तैयार करना लाज़मी प्रतीत हुआ होगा। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु हिंदी में गणित और विज्ञान के लिए शब्द संग्रह और पुस्तक रचना का काम साथ-साथ शुरू हुआ। तकनीकी विषयों पर लिखनेवालों के लिए ऐसे शब्द संग्रह का प्रणयन गोरख जी ने किया। उनके संबंध में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 'कवि वचन सुधा' में यह जानकारी दी है कि "उन्होंने हिंदी भाषा में 'सरल त्रिकोणमिति' उस समय तक प्रस्तुत कर दी थी और हिंदी भाषा में गणित विद्या की पूरी श्रेणी बनाने के काम में जुट गए थे।"
१९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विभिन्न स्तरों पर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के दौरान यह महसूस किया गया कि समाज में नवजागरण तभी संभव है, जब भाग्यवादी अंधविश्वासों के स्थान पर गणितीय और वैज्ञानिकता पर आधारित सोच का विकास किया जाए। समाज के मानस को वैज्ञानिक संस्कार और गणितीय ज्ञान देने के लिए, भारतीय भाषाओं में विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित लेखन को और अधिक मज़बूत किए जाने की ज़रूरत थी।
इस प्रक्रिया में जहाँ एक ओर अँग्रेज़ी तथा दूसरी यूरोपीय भाषाओं से वैज्ञानिक साहित्य का उर्दू, हिंदी और फ़ारसी में अनुवाद किया गया। वहीं शब्दावली निर्माण, पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक लेखन और गणित के मौलिक आलेखों के प्रणयन को भी प्रोत्साहित किया गया। ख़ास बात यह है कि फलसरंक्षण, उपयोगी नुस्खे, घरेलू डाक्टर, सरल विज्ञानसागर आदि तमाम विषयों पर इस दौर में लिखित लेख और पुस्तकें सरल, सहज तथा बोधगम्य भाषा में गोरख प्रसाद द्वारा रचित की गई। हिंदी में गणित की शिक्षा देने के आंदोलन को संगोष्ठी और व्याख्यान मालाओं की सहायता से जनव्यापी बनाने का प्रयास किया गया। ८ वर्ष के परिश्रम से काशी नागरीप्रचारणी सभा ने पारिभाषिक शब्दावली प्रस्तुत की। हिंदी में पारिभाषिक शब्द निर्माण के इस सर्वप्रथम सर्वाधिक सुनियोजित, संस्थागत प्रयास में इस प्रकार के कार्यों का समुचित उपयोग किया गया। सभा का यह कार्य देश में सभी प्रचलित भाषाओं में वैज्ञानिक शब्दावली और गणित साहित्य के निर्माण की शृंखलाबद्ध प्रक्रिया का सूत्रपात करनेवाला सिद्ध हुआ।
गोरख प्रसाद ज्योतिष और खगोल के प्रकांड विद्वान थे। इन्हें ज्योतिष, गणित और खगोल शास्त्र के क्षेत्र में महारत हासिल थी और विज्ञान का भी अच्छा ज्ञान था। इसके लिए उन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की एवं गणित और विज्ञान को जनहित से जोड़ने का काम किया। गोरख जी ने पर्यावरण, जल और भू-विज्ञान के विषय में कई अहम जानकारी प्रस्तुत की है। उन्होंने गणित के महत्त्वपूर्ण अवकलन और समाकलन सूत्रों का भी प्रतिपादन किया।खगोल के ज्ञान से भरी उनकी पुस्तकें समस्त भू-मंडल को आलोकित कर रही हैं।
प्रख्यात गणितज्ञ, विज्ञान, ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र का ज्ञान रखने वाले गोरख प्रसाद का देहावसान ५ मई, १९६१ को वाराणसी में अपने नौकर की प्राणरक्षा के प्रयत्न में जल-समाधि के दौरान हो गया। जिसने प्रकृति और विज्ञान के माध्यम से जनजाति को जोड़ने की कोशिश की, उसी विद्वान को प्रकृति ने अपने अंदर समा लिया।
गोरख प्रसाद : जीवन परिचय |
जन्म | २८ मार्च, १८९६ |
जन्म स्थान | गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत |
निधन | ५ मई, १९६१ |
पुस्तकें | फलरक्षण उपयोगी नुस्खे तर्कीबें और हुनर लकड़ी पर पालिश घरेलू डाक्टर तैरना सरल विज्ञानसागर
| नीहारिका आकाश की सैर सूर्य सूर्यसारिणी चंद्रसारिणी भारतीय ज्योतिष का इतिहास
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विशेषताएँ |
हिंदी विश्वकोश के संपादक हिंदी साहित्य सम्मेलन के परिक्षामंत्री २८वें अधिवेशन में विज्ञान परिषद के अध्यक्ष एवं सभापति बनारस मैथमैटिकल सोसायटी के अध्यक्ष
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सम्मान |
मंगला प्रसाद पारितोषिक डॉ० छन्नूलाल पुरस्कार ग्रीब्ज़ पदक रेडिचे पदक
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संदर्भ
लेखक परिचय
सूर्यकांत सुतार 'सूर्या'
जन्म और शिक्षा मुंबई से हुई। परंतु पिछले १५+ सालों से दार-ए-सलाम, तंजानिया, ईस्ट अफ्रिका में हैं। साहित्य से बरसों से जुड़ा होने के साथ-साथ कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में लेख, कविता, ग़ज़ल, कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किए जा चुके हैं।
चलभाष : +२५५ ७१२ ४९१ ७७७
ईमेल : surya.4675@gmail.com
बहुत ही प्रेरक व ज्ञानार्जक आलेख। शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अरविंद कुमार जी।
Deleteसूर्यकांत जी, गोरख प्रसाद जी के बारे में तथ्यात्मक खोज एवं विस्तृत जानकारी के लिए आपको धन्यवाद । यह जानकर प्रसन्नता हुई कि गणित और विज्ञान के अध्ययन हेतु उन्होंने आवश्यक शब्दावली उपलब्ध करवा दी थी।आज यदि हिंदी में वैज्ञानिक अध्ययन , शोध, दैनिक कार्य आदि में भाषा या शब्दावली की कोई सीमा नहीं है , तो भारत में इन क्षेत्रों में सारा कार्य हिंदी भाषा में ही सम्पन्न होना चाहिए ।
ReplyDeleteआदरणीय हरप्रीत जी,
Deleteआपकी हर आलेख पर टिप्पणियां संदर्भित होती है। बहुत अच्छा लगता है आपकी प्रतिक्रिया को पढ़कर। कुछ नया सीखने मिलता है। आभार इस लेख की सराहना करने की खातिर।
बहुत बढ़िया और अलग विषय पर लेख, सूर्यकांत जी, आज आधुनिक समय में कला, साहित्य,संगीत के साथ विज्ञान का भी विशेष महत्व है। अपनी भाषा में विज्ञान साहित्य की रचना बहुत उपयोगी और मूलभूत आधार सामग्री है। गोरख प्रसाद जी का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनका परिचय और जीवन की उपलब्धि से अवगत करवाने हेतु आपको हार्दिक बधाई। विज्ञान मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है और जीवन सहज सरल बना देता है। वास्तव में कठिनता से सरलता की ओर यात्रा है।
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Deleteमाननीय विजय जी,
Deleteबहुत खूब कहा आपने विज्ञान अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला एक मात्र साधन है। जिसे आदरणीय गोरखप्रसाद जी ने बिना किसी मोलभाव के देश के प्रति अपना कर्तव्य समझकर पूरा किया। आपकी उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए आपका आभार।
सूर्यकांत जी, गोरख प्रसाद जी द्वारा किए गए कार्यों का पैमाना विस्तृत भी है और गहरा भी, और इन दोनों आयामों पर आपका आलेख अच्छा प्रकाश डालता है। भारतीय भाषाओं में न केवल विज्ञान बल्कि समस्त उच्च शिक्षा अभी तक उपलब्ध नहीं है, गोरख प्रसाद जी जैसे कुछ और लोग उसी श्रद्धा से अगर इस काम में जुटें तो शायद यह संभव हो जाए। आपका आलेख उनके कामों को अच्छी श्रद्धांजलि है, इस आलेख के लिए आपको बधाई और आभार।
ReplyDeleteधन्यवाद प्रगति जी,
Deleteआपने सही कहा समस्त भाषाओं की तरह विज्ञान साहित्य भी जीवन की प्रवीणताओं पर प्रकाश डाल सकता है। केवल अनुमान आधारित गणनाओं के द्वारा ही साहित्य को परखा नही जा सकता। गोरखप्रसाद जी गणितज्ञ होने के साथ साथ अच्छे खगोलशात्री भी थे। नागरीप्रचारिणी सभा के द्वारा उन्होंने देवनागरी लिपि की उन्नति तथा प्रचार के माध्यम में भी काम किया है। उचित टिप्पणी के लिए आपका आभार।
सूर्यकांत जी नमस्कार। आपका डॉ गोरख प्रसाद जी पर यह लेख बहुत जानकारी भरा है। इस लेख के लिये निश्चित ही आपने बहुत मेहनत की है। उसी के परिणाम स्वरूप ये शोधपरक लेख पढ़ने को मिला। इस लेख के माध्यम से गोरख प्रसाद जी के योगदान को जानने का अवसर मिला। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिये बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteनमस्कार दीपक जी,
Deleteमुझे भी इस आलेख रचना के साथ गोरखप्रसाद जी के बारे में अधिक जानकारी हुई वरना मुझे सिर्फ इतना पता था कि इनकी गणितीय किताबें छपी है। परन्तु प्रगाढ़ अनुसंधान के पश्चात पता चला कि वह तो *भारतीय ज्योतिष का इतिहास* पर पुस्तक लिखने वाले महान साहित्यकार है। प्रभावित टिप्पणी के लिए आपका धन्यवाद दीपक जी।
जहां तक मुझे याद है , वर्तमान शक संवत जो भारत सरकार ने राष्ट्रीय संवत बनाया है उसकी रूपरेखा पारंपरिक संवत से लेकर संशोधन किए और यह पूरा काम डा गोरखप्रसाद की छत्रछाया में हुआ था।
ReplyDeleteज्योतिष एवं खगोल के प्रकांड विद्वान, भारत के महान गणितज्ञ डॉ गोरख प्रसाद जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर इतनी सार्थक जानकारी उपलब्ध करवाते लेख के लिए सूर्यकांत जी को नमन्।
ReplyDeleteबहुत प्रभावी लेख है।
सूर्यकान्त जी, प्रकांड विद्वान गोरख प्रसाद जी पर उत्तम, सुगठित और रोचक आलेख के लिए आपको बधाई। हिंदी के प्रति आपका समर्पण बहुत प्रशंसनीय है। आपको हिंदी की सेवा से जुड़े सभी कार्यों के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आगे भी ऐसे आलेख हमें पढ़ाते रहिएगा।
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