Wednesday, March 2, 2022

आत्मविश्वास से लबरेज़ भारत कोकिला : सरोजिनी नायडू

जिनकी आवाज़ की खनक कानों में मिश्री घोल दे, जिनका भाषण भी कविता-पाठ लगे और जिनका उद्बोधन मन में कुछ कर गुजरने का जज़्बा पैदा कर दे; ऐसी दमदार शख्सियत की स्वामिनी सरोजिनी नायडू भारत के मस्तक पर चन्दन का टीका हैं, जो शीतल भी हैं और ओजस्वी भी। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब अंग्रेज़ी हुकूमत ने समूचे भारत में अंग्रेज़ियत लादने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और अपने ही देश में अपनी पहचान बनाने के लिए अंग्रेज़ी भाषा और तहज़ीब अपनाना अनिवार्य हो गया था, ऐसे माहौल में मन में भारतीयता की मशाल थामे रखना और स्वराज के सपने देखना बड़ी हिम्मत का काम था। मगर वह दौर ही कुछ ऐसा था कि यह हिम्मत अमूमन हर भारतीय के जीवन में कमोबेश स्वतः ही आ जाती थी। सरोजिनी का व्यक्तित्त्व भी भावनाओं के ऐसे ही उतार-चढ़ाव से गुज़र कर एक सच्चे देश-भक्त के रूप में सामने आया, और फिर जो हुआ वह भारतीय स्वाधीनता की कहानी का महत्त्वपूर्ण अध्याय बन कर इतिहास के पन्नों पर अपनी अमिट छाप अंकित कर गया।

देश के प्रख्यात शिक्षाविद् व रसायन वैज्ञानिक डॉ. अघोरनाथ चट्टोपाध्याय के घर १३ फरवरी १८७९ को उनकी पहली संतान कन्या रूप में जन्मीं, जिन्हें माता-पिता ने सरोजिनी चट्टोपाध्याय नाम दिया। माता श्रीमती वरदसुन्दरी देवी बांग्ला की एक सुप्रसिद्ध लेखिका, कवयित्री और गायिका थीं। सरोजिनी आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं और इसीलिए सदैव सबकी प्रेरणा-स्रोत बनी रहीं।

बालिका सरोजिनी बचपन से ही अपने पिता की चहेती और पढ़ाई में अव्वल आने वाली छात्रा थीं। बारह वर्ष में ही उन्होंने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा समूचे मद्रास प्रोविन्स में प्रथम स्थान प्राप्त कर उत्तीर्ण की। पिता उन्हें अपने समान ही वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, किन्तु माँ उनके लिए कुछ और ख़्वाब सजा रहीं थीं। वे सरोजिनी में एक कवयित्री और भावुक महिला को बड़ा होता देख रहीं थीं। एक दिन सरोजिनी की गणित की नोटबुक में पिता ने १३०० पंक्तियों की कविता ‘द लेडी ऑफ़ द लेक’ (The Lady of the Lake) पढ़ी और वे भाव-विभोर हो उसे सभी आला-अधिकारियों को दिखाने लगे। सरोजिनी ने उस छोटी-सी उम्र में ‘मेहर-मुनीर’ नाम का २००० पंक्तियों का नाटक भी लिखा था, जिसने उन्हें हैदराबाद के बड़े अधिकारियों के सामने ला खड़ा किया। एक छोटी बच्ची की अंग्रेज़ी भाषा पर इतनी अच्छी पकड़ सबको अचंभित करने वाली थी, और सरोजिनी के इस हुनर से ख़ुश होकर हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम ने उन्हें छात्रवृत्ति देने की घोषणा कर दी। इसी छात्रवृत्ति के कारण वे किंग्स कॉलेज, लन्दन में पढ़ने गयीं; और फिर आगे की पढ़ाई के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गिर्टन कॉलेज भेजी गयीं। यहाँ उनके कवि मन को अनुकूल वातावरण मिला और वे किताबों से अधिक प्राकृतिक व नैसर्गिक सुन्दरता निहारने में समय बिताने लगीं। उनके इस व्यवहार पर वहाँ के प्रोफेसरों का ध्यान गया और उन्होंने सरोजिनी द्वारा लिखी कविताओं को पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की। इसी क्रम में उनकी मुलाक़ात अपने भावी प्रकाशक विलियम हेनमैन तथा आलोचक एडविन गॉस व आर्थर सिमन्स से हुई। एडविन गॉस ने उनकी कविताओं को पढ़कर अंग्रेज़ी भाषा पर उनकी पकड़ की सराहना तो की, किन्तु अंग्रेज़ कवियों की नक़ल करने की भर्त्सना करते हुए भारतीय परिप्रेक्ष्य व भारतीयता को मूल में रखकर लिखने की सलाह दी। गॉस की फटकार का उन पर जादुई असर हुआ, और फिर उन्होंने अपनी मातृ-भूमि और उसके सपनों को ही अपनी कविताओं का केंद्र-बिंदु बनाया। 

सितम्बर १८९८ में सरोजिनी इंग्लैड से भारत आयीं और इसी वर्ष दिसम्बर में डॉ. गोविन्दराजुलु नायडू (गैर-ब्राह्मण) से परिणय सूत्र में बंध गयीं। उस ज़माने में अन्तर्जातीय विवाह अभिशाप से कम न था, किन्तु पिता के व्यापक सोच और सहयोग ने इस विवाह की गरिमा में कोई कमी नहीं आने दी; और यह नव-दम्पति ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड’ (हैदराबाद विश्वविद्यालय का वह भवन जहाँ यहाँ के पहले प्राचार्य डॉ. अघोरनाथ जी का निवास था) में आकर रहने लगे। यही ‘द गोल्डन थ्रेसहोल्ड’ सरोजिनी नायडू के पहले काव्य-संग्रह का शीर्षक बना, जिसे १९०५ में विलियम हेनमैन ने इंग्लैण्ड में प्रकाशित किया था। इसके प्रथम संस्करण में सरोजिनी का परिचय स्वयं आर्थर सिमन्स ने लिखा था। यह पुस्तक इंग्लैण्ड में बहुत सफल हुई और जल्द ही इसकी सभी प्रतियाँ बिक गयीं; तुरंत ही इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया गया और उसकी प्रतियाँ भी हाथों-हाथ बिक गयीं। इसके बाद उनका दूसरा काव्य-संग्रह ‘द बर्ड ऑफ़ टाइम–सॉंन्ग्स ऑफ़ लाइफ, डेथ एंड स्प्रिंग प्रकाशित हुआ, जिसे लन्दन और न्यूयॉर्क दोनों जगह से निकाला गया; इसमें सरोजिनी का परिचय एडमंड गॉस ने लिखा था, और साथ ही सरोजिनी का पोर्ट्रेट भी प्रकाशित किया गया था। १९१७ में उनका तीसरा काव्य-संग्रह ‘द ब्रोकन विंग- सॉंन्ग्स ऑफ़ लाइफ, डेथ एंड डेस्टिनी’ प्रकाशित हुआ जिसे पढ़कर विश्वकवि कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सरोजिनी को लिखा- द ब्रोकन विंग्स की तुम्हारी कविताएँ मानो आँसू और अंगारों से लिखी गयी हों; जैसे जुलाई माह के शाम के बादल सूर्यास्त की लालिमा में दमक रहे हों।

अब तक सरोजिनी एक कवयित्री के रूप में विख्यात हो चुकी थीं, किन्तु जीवन का उद्देश्य मिलना अभी शेष था। संयोगवश उनकी मुलाक़ात श्री गोपालकृष्ण गोखले से हुई और वे सरोजिनी के प्रखर व्यक्तित्त्व से बहुत प्रभावित हुए। वर्ष १९१६ में गोखले ने लन्दन में सरोजिनी को महात्मा गाँधीजी से मिलाया। उस मुलाक़ात ने मानो सरोजिनी के सोचने का नजरिया ही बदल दिया। अब तक प्राकृतिक व नैसर्गिक सुन्दरता निहारने वाली कवयित्री केवल स्वराज एवं देश-प्रेम के सपने देखने लगी। इन्हीं सपनों को साकार करने की प्रबल इच्छा में रची अपनी प्रसिद्ध कविता में वह कहती हैं-

Behold I rise to meet the destined spring

And scaled the stars upon my broken wings.”

गाँधीजी के व्यक्तित्त्व और आदर्शों से प्रभावित सरोजिनी नायडू तत्काल भारत के स्वाधीनता संग्राम की अगुआई करने में जुट गयीं और साथ ही महिला मोर्चा को भी आगे बढ़ाया। १५ दिसम्बर १९१७ को भारतीय महिलाओं के दल का प्रतिनिधित्व करते हुए भारतीय गणराज्य के सेक्रेटरी एडविन मोंटेगू से मिलीं, जिसकी चर्चा मोंटेगू ने अपनी पुस्तक ‘एन इण्डियन डायरी’ में कुछ इस प्रकार से की है– The deputation being led by Mrs. Naidu, the poetess, a very attractive and clever woman, but I believe a revolutionary at heart.

देश-भक्ति की मशाल थाम के चलने वाली सरोजिनी ने जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड (१९१९) से आहत होकर उन्हें मिला, ‘कैसर-ए-हिन्द’ का ख़िताब लौटा दिया। सन १९२० लन्दन में एक समूह को संबोधित करते हुए वे कहतीं हैं– No nation that rules by tyranny is free. It is the slave of its own despotism.   

क्षुब्ध सरोजिनी गाँधीजी से मिलने दक्षिण अफ्रीका गयीं और यहाँ भारतीयों पर हो रहे अत्याचार और भेद-भाव को देख कर आक्रोश और ग्लानि का घूँट पीकर रह गयीं। सरोजिनी के भाषण इतने प्रभावशाली और ऊर्जा से भरे होते थे, कि हर स्थान पर उनका स्वागत गर्म-जोशी के साथ होता था। अक्टूबर १९२५ के कानपुर अधिवेशन में गाँधीजी ने सरोजिनी नायडू को काँग्रेस की प्रेसीडेंसी के लिए नामित किया; जिसे स्वीकारते हुए उन्होंने कहा था- 

I, who have rocked the cradle; I, who have sung soft lullabies, have now to kindle the flame of liberty. In the battle of liberty, fear is one unforgettable treachery and despair, a one unforgivable sin.

सरोजिनी नायडू की सक्रियता और बढ़ती लोकप्रियता अमेरिका तक महसूस की गयी। १४ फ़रवरी १९२६ को न्यूयॉर्क टाइम्स मैगज़ीन के अंक में सरोजिनी पर एक समूचे पृष्ठ का आलेख ‘अ जॉनऑफ़ आर्क राइजेज़ टू इन्स्पायर इण्डिया’ शीर्षक से छपा; जिसमें कहा गया, कि श्रीमती नायडू नाम की एक हिन्दू कवयित्री और अंग्रेज़ी नालेज महिला गाँधी का स्थान लेने और स्वराज की मशाल सँभालने के लिए तैयार है।

१९२८ में गाँधीजी की प्रतिनिधि बनकर सरोजिनी न्यूयॉर्क आयीं और अपने उद्बोधन से अमेरिका को भारतीय परंपरा, भारतीय विचारधारा तथा भारतीयता के मायने बतलाये। अमेरिकी अखबार उनकी तारीफों से पट गए और उन्हें ज्वेल फ्रॉम द ईस्ट’ की संज्ञा दी। 

भारत वापस आकर उन्होंने गाँधीजी की डांडीयात्रा में भाग लिया और गाँधीजी व अब्बास तैय्यब के जेल जाने के बाद कमान अपने हाथों में ले एक ओजस्वी नेतृत्त्व का परिचय दिया; किन्तु जल्द ही उन्हें भी गिरफ्तार कर यरवदा जेल में डाल दिया गया। इसके बाद स्वराज की लड़ाई में वे कई बार जेल की कोठरी में बंद की गयीं, किन्तु उनके विचार और आदर्श स्वतंत्र रूप से विचरते रहे; और आम जनों, विशेषकर महिलाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते रहे। उनका साहस, सच बोलने की ताकत और अपनी बात पर टिके रहने की ज़िद उन्हें एक सशक्त व्यक्तित्त्व की मालकिन और हज़ारों भारतीयों के लिए सम्माननीय बनाता था। वे न सिर्फ भारतवासियों को आज़ाद भारत के स्वप्न देखने के लिए प्रेरित करती थीं, बल्कि अंग्रेज़ी हुकूमत की जमकर भर्त्सना और उनके अनुचित क़दमों के लिए खुलकर विरोध भी करती रहीं। उन्होंने २९ अगस्त १९३१ में दूसरे राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में बापू के साथ भारत का प्रतिनिधित्व किया, १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में सक्रिय रहकर फिर से जेल में कैद हुईं; किन्तु न हिम्मत हारीं, न आज़ाद भारत का सपना देखना छोड़ा। स्वयं गाँधीजी भी सरोजिनी की काबिलियत को अब तक पूरी तरह से समझ नहीं सके थे; किन्तु जेल में उनके साथ लम्बा समय गुजारने के बाद सरोजिनी के लिए उनके मन में आशा और विश्वास की उम्मीद जगी और उन्हें काँग्रेस का चेहरा बनाकर प्रस्तुत किया गया। 

भारत की आज़ादी की घोषणा हो चुकी थी; सरोजिनी को ‘एशियन रिलेशंस कॉन्फ्रेंस’ का प्रेसिडेंट निर्वाचित किया गया और दिल्ली के पुराने किले पर हुए इस कार्यक्रम में उनका ऐतिहासिक भाषण हुआ। इसके बाद १५ अगस्त १९४७ को देश की आज़ादी के साथ ही वे काँग्रेस पार्टी की पहली महिला उम्मीदवार के रूप में उत्तरप्रदेश प्रेसिडेंसी की पहली महिला गवर्नर बनीं। स्वतन्त्र भारत के लिए अभी बहुत काम होने थे, और वे तत्परता से अपनी इस नयी और महत्त्वपूर्ण भूमिका में लगी रहीं; किन्तु स्वास्थ्य ने उनका साथ नहीं दिया और २ मार्च १९४९ को अपने कानपुर कार्यालय (गवर्नर हाउस) में ही हृदयाघात से अपने प्राण त्याग दिये। जन-जन को जीवन का सुन्दर पाठ पढ़ाने वाली यह सुरीली कवयित्री जीवन के आख़िरी पल तक कार्य में लीन रहीं। उनका जीवन प्रत्येक भारतीय के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

सरोजिनी नायडू : संक्षिप्त परिचय

पूरा नाम

सरोजिनी चट्टोपाध्याय/नायडू

उपनाम

भारत कोकिला, बुलबुल-ए-हिन्द, नाइटिंगेल ऑफ़ इण्डिया, ज्वेल फ्रॉम ईस्ट (अमेरिका), जॉन ऑफ़ आर्क (इंग्लॅण्ड)

जन्म

१३ फरवरी १८७९, हैदराबाद, ब्रिटिश इण्डिया

मृत्यु

मार्च १९४९, कानपुर, उत्तर प्रदेश प्रोविन्स, स्वाधीन भारत (७० वर्ष आयु में )

पिता

डॉ. अघोरनाथ चट्टोपाध्याय, शिक्षाविद् एवं वैज्ञानिक

माता

वरद्सुन्दरी देवी, बांग्ला कवयित्री व् लेखिका

भाई-बहन

८; वीरेन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय, सुहासिनी, हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय

पति

डॉ. गोविंदराजुलू नायडू, चिकित्सक [१८९८ – १९४९]

संतानें

४; जयसुर्य, पद्मजा, रणधीर, लीलामणि

शिक्षा

मैट्रिकुलेशन - मद्रास प्रेसिडेंसी से प्रथम स्थान (१८९१)
किंग्स कॉलेज, लन्दन; गिर्टन कॉलेज, कैंब्रिज (१८९५-१८९८)

कार्यक्षेत्र

कवयित्री, नारीवादी व राष्ट्रवादी नेता
साहित्यिक अवदान

काव्य संग्रह

  • द गोल्डन थ्रेसहोल्ड (लंदन: हेनमैन, १९०५)
  • द बर्ड ऑफ़ टाइम: सांग्स आफ लाइफ,डेथ एण्ड द स्प्रिंग(लंदन:हेनमैन,१९१२)
  • द ब्रोकेन विंग्स: सांग्स आफ लव, डेथ एण्ड द स्प्रिंग (लंदन:हेनमैन, १९१७)
  • द सेप्ट्रेड फ्लूट: सांग्स आफ इण्डिया(एनवाई: डोड,मीड,सी., १९२८)
  • द फेदर ऑफ़ द डान १९२७ (पुत्री पद्मजा ने १९६१ में एशिया पब्लिशिंग हाउस, बाम्बे से प्रकाशित कराया)

राजनितिक जीवन

पार्टी

काँग्रेस

 

अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस [१९२५ -१९२६]

 

प्रथम राज्यपाल, यूनाइटेड प्रोविन्स [१५ अगस्त १९४७ – २ मार्च १९४९]

 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी; महिला सशक्तिकरण में अहम् भूमिका

सम्मान एवं पुरस्कार

  • ‘कैसर-ए-हिन्द’ (भारत की साम्राज्ञी) स्वर्ण पदक (१९०८)

  • ‘भारत की कोकिला’ उपाधि

  • रायल सोसायटी आफ लिटरेचर (१९१४)

  • भारतीय डाक-तार विभाग ने १५ पैसे का टिकिट छापा (१९६४)

  • जन्म दिन को ‘महिला दिवस’ के रूप में मनाना

नोट: केसर-ए-हिन्द की उपाधि को जलियाँवाला बाग़ काण्ड के बाद वापस कर दिया था।


सन्दर्भ

  1. भारत कोकिला सरोजिनी नायडू: एम.आई. राजस्वी

  2. https://en.wikipedia.org/wiki/Sarojini_Naidu

  3. https://www.britannica.com/biography/Sarojini-Naidu

  4. https://www.youtube.com/watch?v=uwJqwuDx7OI

  5. https://www.indianculture.gov.in/rarebooks/speeches-and-writings-sarojini-naidu


लेखक परिचय

दीपा लाभ

  • साहित्य के प्रति आकर्षण और काव्य से अनुराग
  • १३ वर्षों से अध्यापन कार्य और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में अतिथि लेक्चरर के रूप में व्याख्यान। 
  • हिन्दी व अँग्रेज़ी भाषा में रोजगारपरक पाठ्यक्रम तैयार कर सफलतापूर्वक संचालन।
  • 'हिन्दी से प्यार है' समूह की सक्रिय सदस्य तथा 'साहित्यकार तिथिवार' परियोजना की प्रबंध-सम्पादक। 
  • ई-मेल: depalabh@gmail.com

5 comments:

  1. शोध-परक आलेख के लिए दीपा जी को साधुवाद!

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  2. भारत कोकिला सम्मान से सम्मानित भारत की पहली महिला राज्यपाल आदरणीया सरोजिनी नायडू जी का जीवन बड़ा ही संघर्षमय रहा। अपनी अंतिम सांस तक महात्मा गांधीजी के मार्गदर्शन पर गुलाम भारत से लेकर स्वतंत्र भारत की लड़ाई लड़ने वाली एक स्वतंत्र सेनानी और सुरीली कवियित्री थी। उन्हें नारीवादी कहलाना कतई पसंद नही था। उन्होंने नारियों को शोषण से मुक्ति दिलाने और उन्हें आधुनिकता एवं पारंपरिकता के संतुलन का ज्ञान कराने की भरसक कोशिश की थी। आज दीपा जी के द्वारा लिखित आदरणीया सरोजिनी जी के जीवनी और प्रशंसात्मक परिश्रम का आलेख पढ़कर अपने पाठशालिय दिनों के निबंध की याद दिला रहे हैं। बड़े ही सम्मानजनक शब्दरचना से यह आलेख अवलोकित किया है। संपूर्ण आलेख एक सांस में पढ़ने को आतुर करता है जो उनके अस्तित्व और स्वाधीनता संघर्ष को नई दिशा से प्रेरित करता है। आपकी लेखनी हमेशा की तरह आज भी कमाल कर रही है जिसे आभार और धन्यवाद कहना बहुत ही अल्पतर होगा। शुभकामनाएं हार्दिकता के साथ।

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  3. दीपा जी, हर बार की तरह आपका एक और बेहतरीन लेख।
    आपके इस लेख के माध्यम से भारत कोकिला सरोजिनी नायडू जी के सृजन एवं जीवन के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला। इस महत्वपूर्ण लेख के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  4. दीपा जी, इस संक्षिप्त आलेख में आपने भारत कोकिला के जीवन की सुन्दर तस्वीर प्रस्तुत की है। सरोजिनी नायडू के व्यक्तित्व और कृतित्व में समय की माँग के अनुसार आते रहे परिवर्तनों को उपयुक्त उदाहरणों के साथ देना तस्वीर को अधिक स्पष्ट और दिलचस्प बना रहा है। दीपा, इस आलेख के लिए हार्दिक बधाई और आभार।

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  5. हमेशा की तरह तुम्हारा यह आलेख और उससे जुड़ा शोध प्रशंसनीय है |इस आलेख के माध्यम से स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू जी के विषय में कुछ नई जानकारियां भी मिली... धन्यवाद ! यूहीं अपनी लेखनी आगे बढ़ाओ |

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