Wednesday, March 23, 2022

पाश - इंसान को इंसान बनाए रखने का ज़िद्दी नव-क्रांतिवीर

 

शब्द जो राजाओं की घाटी में नाचते हैं 

जो माशूक़ की नाभि  का क्षेत्रफल नापते हैं 

जो मेज़ों पर टेनिस बॉल की तरह लुढ़कते हैं 

जो मंचों की खारी धरती पर उगते हैं 

कविता नहीं होते  

अवतार सिंह संधू उर्फ़ 'पाश' की कविताएँ पारंपरिक अर्थ में कविताएँ नहीं हैं। आत्म-संवाद की मनोस्थिति से जुड़े हुए शब्द-चित्र हैं, जिनका एक छोर सामाजिकता और दूसरा छोर बग़ावत, सपाट बयानी और तल्ख़ हक़ीक़तों से जुड़ा है। परिवार और समाज से अर्जित संस्कारों से पाश को एक अंतर्दृष्टि प्राप्त हुई, जिसके फलस्वरूप वह दूर तक फैली सामाजिक विद्रूपताओं और विडंबनाओं को निकट से पहचानने और अपनी कलम के माध्यम से उन्हें अपनी कविता में उतारने में इतना कामयाब रहा कि उसकी कविताएँ किताबों के पन्नों से उठ कर लोगों की याददाश्त में बस गईं। इन तेज़ाबी कविताओं ने सुर और लय के साथ तालमेल बनाने की बजाय नारों का रूप ले लिया। पाश के दौर से लेकर आजतक के विभिन्न आंदोलनों में वे नारों के रूप में जोश और आक्रोश के साथ गाई जाती रही हैं और आंदोलनों की हवाओं को बारूदी बनाती रही हैं। इस क्रांतिकारी, प्रगतिशील और प्रतिरोधी कवि की कविता ज़िंदगी का अर्थ अपने देखे हुए सपनों में तलाशती है और आदमी ज़िंदगी में जो होता है, जो होना चाहता है, उसी के बीच की अवस्था को बख़ूबी बयाँ करती हैं,

सबसे ख़तरनाक है सपनों का मर जाना

सबसे ख़तरनाक है मुर्दा शान्ति से भर जाना

न होना तड़प का, सब कुछ सहन कर जाना

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना

… 

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है,

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए 

… 

जालंधर के तलवंडी सलेम गाँव में ९ सितंबर १९५० को जन्मे अवतार सिंह संधु ने 'पाश' उपनाम से लिखा। असाधारण सोच के स्वामी अवतार ने छात्रावस्था से ही साहित्यिक, संपादकीय, अकादमिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया था और फिर नक्सलवादी लहर से उस का नाम जुड़ा। श्रमिक वर्ग के पक्षधर और पूंजीपति वर्ग के विरुद्ध स्वर बुलंद करने वाले पाश ने भ्रष्टाचार और लालफ़ीताशाही, भाई-भतीजावाद तथा प्रशासनिक कुव्यवस्था के विरुद्ध बाग़ी तेवर दिखाए और बिंदास जेल यात्रा भी की।

जालंधर की राजविंदर से साल १९७८ में शादी की और वर्ष १९८० में वे एक सुंदर बेटी विंकल के पिता बने। 

पाश ने १९८४ की पंजाब-त्रासदी के सच को जब कविता 'बग़ावत बोलती है' के माध्यम से प्रस्तुत किया तो वह अलगाववादियों की हिट-लिस्ट में आ गए। पंजाबी अकादमी ऑफ लैटर की फ़ेलोशिप मिलने पर वे १९८५ में इंग्लैंड गए और वहाँ भी अपनी विचारधारा को भारतीय समुदाय के सामने रखा। कैलेफ़ोर्निया के मासिक समाचार पत्र 'एंटी ४७' के माध्यम से उन्होंने १९८७ में सिक्ख आतंकवादियों की कट्टर सरगर्मियों को नकेल डालनी शुरू की, जो ख़ालिस्तानी फासिज्म के विरुद्ध उनकी बेख़ौफ़ चुनौती थी, और उससे ख़ालिस्तानी फ़ासिस्ट बौखला उठे। उन्होंने पाश को दोआबा में अपनी हिट-लिस्ट में सबसे ऊपर रख लिया। इससे पहले कि पाश सांप्रदायिकता की आड़ में कट्टरता के नक़ाब को उतार पाते, भारतीय स्वाधीनता के सबसे लोकप्रिय नायक शहीदे-आज़म भगत सिंह के शहीदी दिवस २३ मार्च को सन १९८८ में पाश की ख़ालिस्तानी फासिस्टो द्वारा गोलियाँ मार कर हत्या कर दी गई। कालांतर में पाश का प्रतीकवाद, उनका ग़ैर-काव्यात्मक लेखन वामपंथी झुकाव वाले विद्वानों का पसंदीदा हो गया और हर जगह विरोध-प्रदर्शनों में पढ़ा जाने लगा।

अपने समकालीनों में सदैव चर्चा का विषय रहे पाश ने एक सुंदर कविता के माध्यम से अमृता प्रीतम को "आज्ज आंखा वारिस शाह नू किते कब्रा विच्चोबोल" से आगे बढ़ कर विद्रोह के युग का जवाब देने को कहा। सुरजीत पातर, शिव कुमार बटालवी, हरभजन सिंह आदि सभी समकालीन कवियों से कविता का रूपक बदलने का आग्रह किया। उन्होंने अपनी कविताओं में फूलों, महिलाओं, वृक्षों, संगीत और अन्य व्यसनों के वर्णन से हटकर मोची के अंधेपन, लोहार के छाले वाली त्वचा और उस महिला का वर्णन किया, जिसके हाथ बर्तन धोते-धोते फट गए हैं। 

मेरे दोस्त कविता बहुत निःसत्व हो गई है

जबकि हथियारों के नाख़ून बुरी तरह बढ़ आए हैं 

और अब हर तरह की कविता से पहले हथियारों के ख़िलाफ़ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है 

जीवित रहते हुए पाश ने कभी प्रसिद्धि की परवाह नहीं की, लेकिन उनके साथी कवियों की स्वीकृति उन्हें सदैव मिलती रही और पंजाबी कविता में उनके द्वारा लाए गए प्रतिमानों को अच्छी तरह से स्वीकार किया गया। उनकी मृत्यु के बाद ९५ कवियों और लेखकों के द्वारा १५० से अधिक कविताएँ व संस्मरण पाश पर लिखे गए, जिन्हें उनके पिता मेजर सोहन सिंह संधु ने २०१३ में अपनी मृत्यु से पहले संकलित किया। आलोचकों ने स्वीकार किया कि पाश ने जिस पूर्वाग्रह का सामना किया और जिसे स्वीकार भी किया, उसे उनके समकालीनों ने सही ठहराया था और अपनाया भी था। पाश का प्रतीकवाद जो उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी से उत्पन्न हुआ, उससे उन्होंने ग़ैर-काव्यात्मक आंदोलनों के लिए एक नया वामपंथी मुहावरा स्थापित किया। शायद वह पहले कवि थे जो अपने लेखन के लिए मारे गए। प्रो० प्रेम सिंह पाली के अनुसार "पाश के पास लोहे की आँख है, जिससे वह मित्रता का मुखौटा पहने दुश्मन की पहचान कर सकता है। उसकी कविता में एक संदेश है.. वह विद्रोही और आक्रामक अभिव्यक्ति करने वाले प्रतिनिधित्व कवियों की श्रेणी में शीर्ष स्थान पर है। उसने संघर्ष के लिए कविता को हथियार बनाया और जनता को निज़ाम की वादा-फ़रेबी के प्रति जागरूक किया।" पाश ने जन-सामान्य से क्रांतिकारी तेवर दिखाने का आग्रह किया। मानवता के लिए संघर्षशील रहने और आधुनिक बुर्जुआ-मिथकों के प्रति सतर्क व सचेत रहने का आह्वान किया। उसने सचेत सृजन पर बल दिया और शोषक वर्ग, पूंजीपति वर्ग व प्रशासनिक संत्रास के विरुद्ध खुल कर बग़ावत की। 

उसके मस्तिष्क में गूँजते प्रश्नों पर एक नज़र डालें, 

क्या राष्ट्र की सुरक्षा ऐसी होती है? 

कि हर हड़ताल को फिर से अमन का रंग चढ़ा दो? 

क्या हर वीरगति केवल सीमाओं पर ही होती है? 

पाश उस राष्ट्र में नहीं रहना चाहता, जहाँ आवाम को पालतू पशु बना कर रखा जाता है। वह मुट्ठी भर पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ है, जो अधिकार माँगने वालों को देशद्रोही मान लेते हैं। 

हमें तो राष्ट्र लगा था बलिदान की वफ़ा 

पर अगर देश रूहों की बेअदबी की यन्त्रशाला है

पर अगर देश उल्लू बनाने की प्रयोगशाला है

तो हमें उससे ख़तरा है।

क्रांति उसकी कविता की मूल संवेदना रही और क्रांतिकारी चेतना को उसने नए तर्कों से जनमानस के मन-मस्तिष्क में स्थापित किया। 

हम जिन्होंने युद्ध नहीं किए

हम तेरे अच्छे व शरीफ़ बेटे नहीं है... ज़िंदगी!

पाश की क्रांति रक्तरंजित संघर्ष नहीं है और न ही उसमें कोई व्यक्तिगत बदला लेने की तड़प है। क्रांति से उसका तात्पर्य है वर्तमान नीतियाँ, जो ज़ाहिर तौर पर अन्याय पर आधारित हैं... बदलनी चाहिए। यह क्रांति साम्राज्यवादी और पूंजीवादी ताक़तों के विरुद्ध अपने हितों और संसाधनों की रक्षा करने के लिए है। यह वह स्थूल युद्ध नहीं, जो सीमाओं के लिए लड़ा जाता है, बल्कि यह जीवन के २४ घंटों, आठों पहरों लड़ा जाने वाला युद्ध है। यह युद्ध आत्महत्याएँ करने पर विवश, आंदोलनों पर बैठे किसानों, बढ़ी हुई फ़ीस भरने में असमर्थ छात्रों, दुर्भावना और भेद-भावपूर्ण विषमताओं की शिकार स्त्रियों, बेरोज़गारी और नशे में लिप्त शिथिल नौजवानों की कुंठाओं का युद्ध है, जिसे पाश शब्द देता है।

क्रांति कोई दावत नहीं, नुमाइश नहीं,

मैदान में बहती नदी नहीं

वर्गों की रुचियों की दरिंदगी भरी भिड़ंत है 

मरना है, मारना है और मौत को ख़त्म करना है

१६ से २० साल की उम्र, जो देखे हुए सपनों को पाने की, एक सुनिश्चित सुनहरे भविष्य के लिए योजनाबद्ध तरीके से पढ़ने और प्रतियोगी-परीक्षाओं में बैठने की होती है, उसमें पाश अपने समय की साहित्यिक पत्रिकाओं से ले कर मार्क्स तक का सफ़र तय करता है। अपने इर्द-गिर्द की व्यवस्था में फैले कुप्रबंधन के कारण तड़पता है। बुरी तरह सड़ चुकी व्यवस्था पर पाश अपना सृजन करता है। सहन और सृजन पर चलती पाश के अनुभवों की कुदाल वर्षों पहले सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक विषमताओं की धूल के परतों में दफन हो चुकी इंसानियत की उस लाश को हमारे समक्ष लाती है, जिसकी शक्ल हू-ब-हू हम से मिलती है।

युग को पलटने में लगे लोग

बुख़ार से नहीं मरते

 हमारे लहू को आदत है

… 

यह लहू है जो रोज़ धाराओं के होंठ चूम लेता है

लहू तारीख़ की दीवारों को उल्लांघ आता है,

पाश के लिए सभी रास्ते सीधे सपाट और स्पष्ट हैं; वह थोथी मर्यादा या 'लिमिट' का हमेशा अतिक्रमण करता है। वह घोषित तौर पर मार्क्सवादी कवि है, उसने बंगाल के नक्सलवादी आंदोलन में खुलकर भाग लिया था।

क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खा कर

बुझी हुई नज़रों की क़सम खा कर 

हाथों पर पड़ी गांठों की क़सम खा कर

हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे  

… 

हम लड़ेंगे कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेंगे कि अब तक लड़े क्यों नहीं?

लेकिन जहाँ कहीं इस विचारधारा में कमियाँ या अभाव दिखे, तो पाश ने उन पर पैबंद लगाने या छिपाने की बजाय, उन्हें पूरी तरह से उधेड़ कर रख दिया और खुद को उनसे अलग कर लिया। मार्क्सवाद पाश के लिए समानता और मुक्ति दिलाने वाली विचारधारा थी। 'कामरेड से बातचीत' पाश की एक लंबी कविता है, जिसमें उन्होंने बिंदास अंदाज़ और मुक्त स्वर में वामपंथ की ख़ामियों के बारे में लिखा। 

और शब्द ‘STATE’ में  दोनों में से तुम्हें 

कौन सी ‘T’ पसंद है कामरेड?

… 

आदमी का गर्म लहू ठंडे फ़र्श पर फैलना

और नस्ल में सुधार का बहाना

तुम्हें कैसा लगता है कामरेड?

वह राष्ट्रवादी होने का कहीं दावा नहीं करता, पर अपने राष्ट्र भारत के लिए उसके मन में बहुत आदर, अपनत्व और गरिमा है, 

भारत, मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द 

जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए

बाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते हैं 

इस शब्द का अर्थ खेतों के उन बेटों से है

जो आज भी वृक्ष की परछाइयों से वक़्त मापते हैं 

वह वामपंथी कुत्सित नीतियों से स्वयं को अलग करता है और उन सभी का विरोध करता है, जो 'भारत' के नाम राजनीतिक कुचक्र चलाकर "खेतों के इन बेटों का जो आज भी वृक्षों की परछाइयों से वक्त मापते है" का शोषण करते हैं, उन को अपने क़दमों में झुकाने का अपराध करते हैं। पाश ऐसे सभी लोगों के विरुद्ध स्वर बुलंद करता है।

इसका जो भी नाम है गुंडों की सल्तनत का 

मैं इसका नागरिक होने पर थूकता हूँ 

हाँ, मैं भारत हूँ चुभता हुआ उसकी आँखों में

अगर उसका अपना कोई ख़ानदानी भारत है

… 

तो मेरा नाम उसमें से अभी काट दो

मार्क्सवादियों ने स्तालिनवाद संसदवाद को चुनौती तो अवश्य दी थी, मगर वे स्तालिनवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं से स्वयं को अलग नहीं कर पाए। पाश-साहित्य के अन्वेषक श्री राजेश त्यागी कहते हैं, "समाजवादी क्रांति से पहले और उससे अलग एक 'जनवादी क्रांति' करने, औद्योगिक सर्वहारा की ओर पीठ फेरने और भारतीय बुर्जुआबाज़ी में क्रांतिकारी हिस्से तलाशने की ज़िद ने जल्द ही देश भर में उठ रही किसान विद्रोह की लहर को ठंडा कर दिया, पाश का राजनीतिक जन्म और विकास इसी लहर से हुआ। … सत्तर के दशक के पूर्वार्द्ध में ही पाश अक्टूबर क्रांति के सह-नेता लिओन त्रोत्सकी और उसके 'सतत क्रांति' के सिद्धांत की ओर बढ़ा और उसे गहराई से आत्मसात कर अपने काव्यसृजन में वर्णित किया। इस निर्णायक मोड़ ने न सिर्फ पाश की कविता को गहराई और परिपक्वता दी बल्कि उसकी राजनीति को क्रांतिकारी धुरी भी दी।"

पाश के जीवन और साहित्यकर्म के विषय में बात करते हुए स्तालिनवादी और माओवादी नेता उसके जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण अध्याय पर पर्दा डाल देते है और इस पर्दापोशी के कारण वे युवाओं और क्रांतिकारी सर्वहारा को न सिर्फ़ पाश को समझने से रोक देते हैं, बल्कि उस क्रांतिकारी राह को भी धूमिल कर देते हैं, जो पाश ने प्रशस्त की और जिसपर वह शहादत तक डटा रहा।

पाश ने विद्रोही कविता का नया सौंदर्यविधान विकसित कर उसे तीखा परंतु सृजनात्मक तेवर दिया। उसके सृजन में भाव व विचार के संयोजन के साथ गहरी राजनीतिक समझ और लोक संस्कृति तथा परंपरा का दृढ़ बांध मिलता है। पाश के जीवनकाल में उसके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए, 'लौह कथा', १९७०; 'उड़ते बाज़ों के पीछे', १९७३; और 'हमारे वक़्त में', १९७८। इन सभी पर उस क्रांतिकारी विरासत की छाप देखी जा सकती है, जिसे लिओन त्रोत्सकी से प्राप्त करने का दावा पाश ने स्वयं किया है। अपने मित्र शमशेर सिंह संधु को १९ जुलाई १९७४ को लिखे एक पत्र में पाश ने लिखा, "आजकल मैं त्रोत्सकी को पढ़ रहा हूँ। उनकी आत्मकथा इंग्लैंड से मंगवाई है और १९०५ के असफल विद्रोह के विषय में उनकी किताब भी मुझे मिल गई है। मैंने इन किताबों से बहुत सीखा है। यार, बड़ी असाधारण और जुझारू आत्मा है उनकी। जल्दी ही मैं उनकी बाक़ी किताबें भी हासिल कर लूँगा। इसके बाद लेनिन को एक बार फिर पढूँगा। मैंने उसे अव्यवस्थित रूप से आधा ही पढ़ा है। जिन पर हमारी इतनी आशाएँ टिकी हों, उन की जानकारी हमें पूरी तरह से होनी ज़रूरी है।"

उनकी मृत्यु के पश्चात १९८४ में प्रकाशित 'बिखरे हुए पन्ने' उनके लेखों और कविताओं का संग्रह है। उनकी कविताओं का एक और संग्रह १९९७ में लाहौर से प्रकाशित हुआ। १९७९ के नक्सलवादी दौर में उन्होंने पंजाबी साहित्यिक पत्रिका 'रोहले बाण' भी निकाली। अपने समवैचारिक युवा साथियों के साथ १९७४ में 'सिआड़' पत्रिका भी निकाली, जो धन व साधनों के अभाव में जल्द ही बंद हो गई। यही दशा इनकी एक और पत्रिका 'होका' की भी हुई। पंजाब में ख़ालिस्तानी उग्रवाद के दौर में पाश वास्तव में त्रिकोणी संघर्ष कर रहा था। एक तरफ़ पूंजीवादी सत्ता, दूसरी तरफ ख़ालिस्तानी और तीसरी तरफ़ स्तालिनवादी कम्युनिस्टों से जूझते पाश का एकमात्र हथियार कविता थी और वह युवा कम्युनिस्टों को क्रांतिकारी सिद्धांतों से सन्नद्ध होने के लिए ललकार रहा था,

हाथ जो हैं, ये 

जोड़ने के लिए नहीं होते,

न दुश्मन के सामने उठाने के लिए ही होते हैं 

ये गर्दन मरोड़ने के लिए भी होते हैं 

वह सता में क़ाबिल लोगों से नहीं डरता और बेख़ौफ़ कहता है,

ज़हरीली शहद की मक्खी को और उंगली न करो 

जिसे आप छत्ता समझते हैं, 

वहाँ जनता के प्रतिनिधि रहते हैं 

धार्मिक और राजनीतिक संकीर्णता का यह कट्टर-विरोधी कवि, जिसकी धारदार भाषा से सिंहासन हिलने लगे थे, शहीदे आज़म भगत सिंह की राह चलते शहीद हुआ। उसकी शहादत राजनीतिक और सांस्कृतिक एकता की अनूठी मिसाल बनी। जीवनानुभव ही उसकी सृजन का मूलधन रहा। प्रतिकूल समय व अराजक व्यवस्था में आम आदमी की चिंताओं को साकार करने वाली उसकी कविता मनुष्य विरोधी शक्तियों और उनके अधिकारों को कुचलने वाले तंत्र के दुष्चक्रों को बेनक़ाब करने में शत-प्रतिशत सफल रही।

जाने-माने हिंदी आलोचक नामवर सिंह ने पाश की समानता स्पेन के कवि लोर्का से की; वह भी वहाँ की सरकारी व्यवस्था का शिकार हुआ था। उसकी कविताओं में भी व्यवस्था के प्रति आक्रोश था। पाश न केवल आक्रोश, बल्कि प्रेम और उम्मीद का भी कवि है। इन भावानात्मक तत्वों से मिल कर जो जुनून बनता है, उस जुनूनी कविता का कवि है पाश। बड़ा ही आश्चर्यजनक इतेफ़ाक़ है कि, २३ मार्च को शहादत पाने वाले पाश ने '२३ मार्च' शीर्षक से एक कविता लिखी थी, जिसमें वह भगत सिंह की शहादत को भावनात्मक स्तर पर वर्णित करता है, किंतु ऐसा लगता है जैसे कि वह कविता उसने खुद की शहादत पर लिखी हो,

शहीद होने की घड़ी में

वह अकेला था ईश्वर की तरह 

लेकिन ईश्वर की तरह निस्तेज न था

पाश स्वयं तो पंचतत्वों में लीन हो गया, लेकिन उसकी कविता घास है, जो हर हाल में शाश्वत रहेगी। पाश उस घास के माध्यम से कालजयी रहेगा एवं एक युग-दृष्टा और युग-सृष्टा कवि के रूप में युगांतकारी कविता का हमारे बीच सदैव प्रतिनिधित्व करता रहेगा। 

मैं घास हूँ 

मैं अपना काम करूंगा

 मैं आपके हर किए धरे पर उग आऊँगा।

जीवन परिचय : अवतार सिंह संधु 'पाश' 

जन्म 

९ सितंबर १९५०, गाँव तलवंडी सलेम, जालंधर, पंजाब  

निधन

२३ मार्च, १९८८  

पिता 

मेजर सोहन सिंह संधु 

माँ 

नसीब कौर 

पत्नी 

राजविंदर कौर संधु 

पुत्री 

विंकल संधु 

कर्मभूमि

भारत, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमरीका।  

कार्यक्षेत्र 

लेखन, संपादन   

साहित्यिक रचनाएँ

हिंदी कविता-संग्रह 

  • बीच का रास्ता नहीं होता

  • समय ओ भाई समय

  • हम लड़ेंगे साथी 

पंजाबी कविता-संग्रह 

  • लौह कथा, १९७०

  • उड़ते बाज़ों के पीछे, १९७३

  • हमारे वक़्त में, १९७८


अन्य पुस्तकें   

  • बिखरे हुए पन्ने, १९८४ 

संपादन 

  • सियाड़, हेम-ज्योति

  • एंटी-४७

  • होका

  • रोहले बाण

संदर्भ

  • बीच का रास्ता नहीं होता (कविता संग्रह) : पाश। राजकमल प्रकाशन, संस्करण २०१७, आईएसबीएन _ 9788126707430   

  • जन्मदिन विशेष : मैं घास हूं आपके हर किए धरे पर उग आऊंगा। पाश : श्रीराम शर्मा

  • Hindi.news.18.com 23 march 2021

  • कविता कोश.org/kk/ पाश की कविता/ परिचय।

  • भगत सिंह की वैचारिक परंपरा और पाश का काव्य : डॉ गीता यादव।

  • International journal of applied research 2016.2(2):474-476.

  • Amarujala.com/amp/Wikipedia/ pash biography.

  • कल्पनाओं से इंसानियत पर फैले तारकोल को साफ़ करते थे “पाश”. Hindi. News.18. sept 2018.

  • Apnidunia.blogspot.com ਆਪਣਾ ਦੇਸ਼ ਆਪਣੀ ਦੁਨੀਆ/ਪਾਸ਼ ਦਾ ਕਾਵਿ ਸਫ਼ਰ : ਸਾਧੂ ਬਿਨਿੰਗ .

  • Pash Kavi pdf ਪਾਸ਼ ਦੀ ਕਵਿਤਾ ਵਿੱਚ ਰਾਜਸੀ ਚੇਤਨਾ ਦਾ ਪੱਖ : ਪ੍ਰੋ ਉੱਤਮ ਦੀਪ ਕੌਰ 2017/18.

  • https//workersocialist. Blogspot.com2015/04/blogspot.html.अवतार सिंह पाश : उनका युगजेड कविता और राजनीति: डॉ राजेश त्यागी, राजिंद्र।

  • Pash -love -hate relationship with his contemporaries. https://www.tribune India.com/news/ features/pash -

  • https://janchowk.com/ art-culture-society-avtar Singh Sandhu pash_ martyrdom day/amp/तेरे बड़े मक्कार बेटे हैंपाश।

लेखक परिचय

प्रो० डॉ० किरण खन्ना

एसोसिएट प्रोफेसर, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग,
डीएवी कॉलेज, अमृतसर, पंजाब। भारत।

Khatkiran@yahoo.in

Kirankhanna515@gmail.com

संपर्क - 9501871144, 9814804455।

8 comments:

  1. किरण जी, आपने पाश के जीवन, काव्य, विचारधारा का विस्तृत वर्णन किया है।आपका गहन अध्ययन एवं आलेख पर किया गया श्रम स्पष्ट दिखाई देते हैं। बधाई। सतत लेखन के लिए शुभकामनाएँ। 💐💐

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  2. किरण जी, आपने इस आलेख में पाश की कविताओं का अच्छा चयन कर उनके अंदर के आक्रोश, रोष और विरोध की अच्छी तस्वीर पेश की है। साथ ही आपने इंसान में इंसान को जीवित रखने की उनकी ललक को भी प्रदर्शित किया है। सौम्य मुस्कान के पीछे छिपे ‘पाश’ के दर्द, संवेदनाओं की झलक के साथ हर अत्याचार और विद्रूपता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले उस ज़िंदादिल कवि की अनुपम छवि मिलती है। आपको इस आलेख के लिए तहे दिल से शुक्रिया और बधाई।

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  3. शानदार आलेख क्रांतिकारी कवि पाश पर। कितनी कम उम्र में कितना काम किया है उन्होंने। किरण जी ने उनके हर पहलू को विस्तारपूर्ण सुंदर ढंग से पाठकों तक पहुँचाया है। इसके लिए इन्हें बधाई!

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  4. किरण जी नमस्ते। आपका आज का यह लेख बहुत ही रोचक एवं ऊर्जा प्रदान करने वाला है। अवतार सिंह संधू ‘पाश’ भारतीय कविता के लिए एक ज़रूरी नाम हैं। उनके योगदान का भारतीय साहित्य और समाज के लोकतंत्र में विशेष महत्व है। पाश एक प्रतीक हैं उनके क़िस्से पीढ़ी-दर-पीढ़ी दिमाग़ों में बसे हुए हैं। उनकी रचनाशीलता में कलाबोध एवं सरलता का बेजोड़ संयोजन मिलता है। आपने इस लेख में पाश जी के जीवन एवं साहित्य से बखूबी समेट कर पटल पर रखा। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिये बहुत बहुत बधाई।

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  5. इंकलाबी कवि और धारदार भाषावाले माननीय अवतार सिंह 'पाश' जी का आदरणीया किरण जी के द्वारा लिखा गया आलेख पढ़कर ऊर्जावान और सार्थक महसूस कर रहा हूं। क्रान्ति और प्रेम को एक साथ रचितकर पाठकों को देशप्रेम के लिए जागृत करने वाले 'पाश' एकमात्र कवि है। उनकी कविताएं पंजाबी में होती पर हिंदी साहित्य के महानुभावों ने भी उनकी कविता का लोहा माना है। समतावादी दुनिया की चाह रखनेवाले 'पाश'जी अपने देश की मिट्टी की गंध को प्रेमिका के देह-गंध से जोड़ते थे। शायद आदरणीया अमृता प्रीतम जी के बाद 'पाश' ही है जो पंजाबी कवि होने के पश्चात हिंदी साहित्य जगत में इतने प्रसिद्ध है।
    डॉ किरण जी, यह लेख अवतरित करते हुए आपकी कलम और सीमित शब्दों के बीच की उलझन साफ समझ मे आ रही है। बहुत ही सुंदर पद्धति से यह लेख समक्रमिक किया है। आपका आलेख पढ़ कर मेरी भी इच्छा हो रही है कि असीमित शब्दरचना का एक आलेख तैयार कर अपने साहित्य कोष में जोड़ लूं। इस लहुउर्जित आलेख के लिए आपका अधिकाधिक आभार और धन्यवाद।

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  6. किरण जी, महान क्रांतिकारी कवि पाश पर इतना मार्मिक और हृदयस्पर्शी आलेख लिखने के लिए हार्दिक बधाई। आपका शोध और आलेख में कविताओं का चुनाव लाजवाब है।

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  7. किरण जी नमस्ते। प्रतिरोध की आवाज़ कहे जाने वाले, और व्यवस्था से मुठभेड़ करने वाले इंकलाबी कवि अवतार सिंह 'पाश' के जीवन, काव्य सृजन और उनकी विचारधारा को इस लेख में आपने बहुत ही सिलसिलेवार और समग्र रूप में प्रस्तुत किया है। पाश की रचनात्मकता और साहित्यिक योगदान पर की गई आपकी पड़ताल और प्रयुक्त कवितांश उन्हें और भी करीब से जानने का अवसर देती है। अद्भुत प्रवाह और शब्द संयोजन। इस सुंदर लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई

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  8. सबसे खतरनाक है सपनों का मर जाना...पाश को युवावस्था में पहली बार पढ़ा था और दीवानगी की हद तक पढ़ लिया था...रट लिया था जैसे...कोई इतना अद्भुत कैसे लिख सकता है...दोस्त को लिखी उनकी कविता...उनकी कितनी ही कविताएँ...किरण जी आपने कितनी शिद्दत से अपनी लेखनी में उतारा है और प्रगति जी ने संपादन की कसावट से उसे और पैना किया...साधुवाद

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2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...