हाथों में कोई कागज़ नहीं और न ही कोई किताब, लेकिन जब वह कोसली में काव्य पाठ करते हैं, तो गैरभाषी भी उनके सम्मोहन में बंधे रह जाते हैं। विलक्षण मेधा और अद्भुत स्मृति से भरे उड़ीसा के प्रसिद्ध कवि हलधर नाग का परिचय संघर्षों से जूझते उस सुखद ठहराव का नायाब उदाहरण है, जो न सिर्फ़ साहित्यिक बल्कि जीवन से जुड़े हर चरित्र को प्रेरणा देता है। वर्ष २०१६ में पद्मश्री जैसा प्रतिष्ठित सम्मान लेने पहुँचे इस साधारण व्यक्ति को देखकर सभी लोग एक बारगी हैरान हो गए कि घुँघराले काले बाल, नंगे पैर, सफेद धोती में लिपटा सादगी और सरलता से भरा यह व्यक्तित्व आखिर है कौन? लेकिन यहाँ तक पहुँचने की तमाम कहानियों के बीच उनकी प्रतिभा और सम्मान का विस्तार सहजता से पढ़ा जा सकता था। उड़ीसा के संबलपुर से लगभग ७६ किमी दूर बरगढ़ ज़िले के घेंस गाँव में ३१ मार्च १९५० को हलधर का जन्म हुआ। घेंस गाँव का अपना एक अविस्मरणीय इतिहास था। इस गाँव के ज़मींदार माधो सिंह और उनके चारों बेटों ने वीर सुरेंद्र साय के सशक्त स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेते हुए शहादत दी थी। इसी गाँव में सामाजिक कार्यक्रमों में कौवर में पानी देने वाले एक साधारण परिवार में जन्में हलधर, पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। वक्त के साथ-साथ आर्थिक अभाव से बुरी तरह जूझता उनका परिवार बुरी तरह से छिन्न-भिन्न हो चुका था। जब वह दस वर्ष के थे, तभी सिर से पिता का साया छिन गया। दुर्भाग्यवश कुछ ही समय बाद उनकी माँ भी चल बसीं। हलधर अनाथ हो गए।
हर ओर से निराश हलधर को पेट पालने के लिए कुछ समय तक एक परिचित की मिठाई की दुकान पर बर्तन तक धोने पड़े। उनकी स्थिति को देखते हुए गाँव के सरपंच ने उन्हें एक स्कूल में रसोइये का काम दिला दिया। हलधर कई वर्षों तक यह काम करते रहे। हालांकि इस दौरान हलधर को अपनी पढ़ाई छूटने का दर्द हमेशा सालता रहा। गाँव में स्कूलों की संख्या बढ़ रही थी। हलधर ने बैंक से एक हजार रुपये का कर्ज़ लेकर एक स्टेशनरी की दुकान खोल ली। शिक्षा के इस सान्निध्य ने उन्हें एक नई ऊर्जा दे दी।
यह वो दौर था, जब घेंस का इलाका लगभग अकाल ग्रस्त था, पर संबलपुरी लोक संस्कृति-परंपरा दालखाई, संपदा आदि से समृद्ध था। हलधर खुद दंड नृत्य (जो कि एक आध्यात्मिक अनुष्ठान है) में सक्रिय रूप से शामिल रहते थे। अपने दल में प्रस्तुत होने वाले गीत ज्यादातर उन्हीं के द्वारा रचे और गाए गए थे। गाँव में होने वाली रामलीला के अवसर पर उनका लंकेश्वरी रूप देखते ही बनता है। एक लोक कलाकार के रूप में लगातार लोकप्रिय हो रहे हलधर नाग स्कूल में काम करते करते बातों में छंद जोड़कर, गाकर विद्यार्थियों और शिक्षकों को सुनाने का अवसर नहीं छोड़ते थे। शशि भूषण मिश्र, डॉ० लक्ष्मी नारयण पाणिग्रही, डॉ० सुभाष मेहेर, अशोक पूजाहारी आदि जैसे सम्मानित लोगों ने उनके ज्ञान और संबलपुरी कोश को समृद्ध करने में विशेष योगदान दिया। हलधर को लेखन विरासत में नहीं मिला था। वह आसपास के वातावरण, संस्कृति, परंपरा के साथ बचपन से अनुभूत और पुराणों से सुनी कथाओं और चरित्रों के प्रभाव को ही अपनी रचनाओं में उतारते थे।
गाँव की 'अभिमन्यु साहित्य संसद' द्वारा आयोजित वार्षिकोत्सव में हलधर का पहला कविता पाठ लोगों के मन को छू गया था। १९९० में संबलपुर की 'आर्ट एंड आर्टिस्ट' संस्था के मुख पत्र में उनकी पहली कविता ढोडो बरगछ (the old banyan tree) प्रकाशित हुई। इसमें बूढ़े बरगद के प्रति गाँव की पीढ़ियों के लगाव को दर्शाया गया था।
अजा पंकजा टिपन अजा जे चिन्हार जनर जने
चढूथिले गछे झुलुथिले दुलि गढा बाएसिया दिने।
(अर्थात दादा परदादा और उनके दादा ,दोस्त ज्ञात जन पेड़ पर झूला करते थे, जब युवा थे )
इस कविता ने अचानक ही हलधर के व्यक्तित्व को सामाजिक आकार दे दिया। प्राकृतिक छवियों के सौंदर्य, पौराणिक कथाओं और जीवन के हर कोण से संबंधित काव्य-महायात्रा का यह शुरुआती दौर था। इन कविताओं ने हलधर को एक आदिवासी दुकानदार के खांचे से निकाल दिया। अपनी कविताओं को भाव के साथ जीने वाले हलधर अब कोसली भाषा के वह कवि बन गए, जिन्हें न सिर्फ़ आसपास के गाँवों में सम्माननीय तरीके से आमंत्रित किया जाने लगा, बल्कि उनकी प्रसिद्धि "लोक कवि रत्न" के नाम से होने लगी।
हिंदी के अग्रणी आलोचक डॉ० रामचंद्र शुक्ल का कहना है कि "लोक की परिधि के बाहर साहित्य का कोई अस्तित्व नहीं होता और काव्य तो मनुष्य की सर्वोत्तम कलात्मक अभिव्यक्ति है। अपने अस्तित्व, संप्रेषण, आकर्षण, प्रभाव और ग्राह्यता के लिए लोक पर आश्रित है, लोक कृतज्ञ है।"
उनकी ये पंक्तियाँ हलधर के लोक कवि होने को भी दर्शाती हैं।
अछूत शबरी का खाना खाकर हुए अछूत राम
नाम पड़ा उस दिन पतित पावन राम
(अछूत, हलधर नाग का काव्य संसार, पृ १३०)
इसी तरह लालटेन कविता में कवि हिंसा का विरोध मुखर है,
ऊपर लगा निर्मल कांच जल रही
भीतर हिंसा की लौ ईंधन है धन,
इसलिए भभकती ज्यादा लौ
जब तेज हो जाती है आग
टूट जाता है कांच
भीतर हिंसा की आग
दुर्योधन का सत्यानाश।
अविश्वसनीय ही लगता है, अपने अतिथियों के लिए मुर्गा पकाकर खिलाने के लिए मसाला पीसते, हलवाई की दुकान पर पकौड़ी खरीद कर मुर्रा या बासी पखाल के साथ खाते, त्योहारों में सहभागिता करते या साल में एक बार रथयात्रा के समय अपनी संतुष्टि के लिए रागचना बनाकर बेचते मिल जाने वाला मात्र तीसरी कक्षा पास, यह कवि २२ महाकाव्यों और अनगिनत कविताओं का रचयिता है। हलधर को कतिपय विश्वविद्यालयों ने मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी प्रदान की है। वर्ष १९१४ में उड़ीसा साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९१७ में लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार। संबलपुरी भाषा में अनेक साहित्यकार उनकी काव्य शैली का अनुकरण कर रहे हैं, जिसके फलस्वरूप उस काव्य को 'हलधर धारा' कहा गया है।
उड़ीसा में कई भाषाएँ बोली जाती हैं, पश्चिम उड़ीसा में कोसली या संबलपुरी। इसकी शब्दावली ध्वनि रूप और व्याकरण की दृष्टि से पूर्वी ओड़िया या मानक ओड़िया से कुछ भिन्न है। इसमें लोक साहित्य कूट कूट कर भरा है। कई साहित्यकार प्राचीन काल से लिख रहे हैं यथा चेतन दस, बलजी मैहर, लक्षण पाती, कपिल महापात्र, सत्यनारायण बेहिदिर, पंडित प्रयाग दत्त जोशी, खगेश्वर सेट्टी, इंद्रमणि साहु, नीलमाधव पाणिग्रही, प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी, प्रेम राम दुबे, हेमचंद्र आचार्य, मंगल चरण विश्वाल, विनोद पसायद, होलबिंद बिसी, निमाई चरण पणिग्रही, चिन्मय कुमार पुजारी, हरेकृष्ण मैहर आदि प्रमुख साहित्यकार हैं। पद्मश्री हलधर नाग ने संबलपुरी भाषा को विश्व में एक अलग पहचान दिलाकर न सिर्फ़ उड़ीसा का बल्कि पूरे भारत का गौरव बढ़ाया है।
संदर्भ
हलधर नाग का काव्य-संसार, अनुवादक दिनेश कुमार माली, पांडुलिपि प्रकाशक, दिल्ली-११००५१।
रामायण - प्रसंगों पर हलधर नाग के काव्य एवं युगीन विमर्श, अनुसर्जन दिनेश कुमार माली।
हलधर नाग से जुड़े कई अनछुए पहलुओं को जानने में सहयोग के लिए प्रसिद्ध अनुवादक एवं लेखक दिनेश कुमार माली जी का विशेष आभार।
भारत माता की माटी के लाल पर कमाल का लेख।अभिनंदन।कृपया पुरस्कार वर्ष १९१४ और १९१७ को दुरुस्त कर लें।सादर,
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका ,मई पुनः एडिट का प्रयास करती हूँ |
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति mam जी उत्कृष्ट समीक्षा के लिए सादर अभिवादन और ढेर सारी शुभकामनाएं 🙏🙏🙏💐💐💐
ReplyDeleteबहुत आभार
Delete🚩🚩🚩🚩♥️♥️♥️
ReplyDeleteआभार
Deleteअर्चना जी, भारत की मिटटी और उसको पूर्णतः समर्पित उसके विलक्षण पुत्र हलधर नाग पर आपका आलेख अत्यंत रोचक और जानकारी पूर्ण है। इस के लिए आपका बहुत आभार और बधाइयाँ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद प्रगति जी |
DeleteYour article on Haldhar Nag is really wonderful
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका नंदिनी जी |
Deleteअर्चना जी, उड़िया कवि हलधर नाग जी पर बहुत बढ़िया आलेख लिखा है आपने। उनके व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को बख़ूबी समेटा है। आपको धन्यवाद और बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका सरोज जी |
DeleteArchana ji, I am from Bargarh and my mother tongue is Sambalpuri (Koshli). I have gone through most of the poems of Haldhar Naag. Thanks for such a nice, comprehensive at the same time rich write-up. Posting the link to Global Western Odisha Society and also make sure that your efforts reaches the Poet.
ReplyDeleteSantosh Mishra
Moscow
आभार आपका संतोष जी , आपने इस आलेख को पसंद किया और मेरी त्रुटियों को नजरअंदाज किया होगा | हलधर जी की कविताएं जब मैंने सुनी तो भाषा पूरी तरह न समझते हुए भी उनकी मिठास और अपनापन मेरे भीतर घुल गया ,विशेषकर हलधर को चिट्ठी वाली ,अद्भुत छू गई| हलधर जी के व्यक्तित्व को तो जाना ही ,प्रसिद्ध अनुवादक दिनेश माली जी के माधयम से उड़िया साहित्य को जाने का जो अनुभव हुआ उसका तो आनंद ही अलग है | पुनः आभार आपका |
Deleteअर्चना जी, आपने हलधर नाग जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। इस लेख के माध्यम से मुझे हलधर नाग जी के जीवन एवं साहित्य के बारे में जानने का अवसर मिला। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिये बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका दीपक जी |
Deleteबहुत सुंदर अर्चना जी।
ReplyDeleteआपके आलेख के द्वारा आज साहित्य के पन्नो से लुप्त एक सशक्त रचनाकार श्री हलधर नाग जी का साक्षात्कार हुआ। यह आलेख नाग जी के व्यक्तित्व को सामाजिक आकार देता हुआ पूरी कहानी की तरह गढ़ा गया है। पढ़ते पढ़ते चलचित्र के समान आंखों से सामने प्रभास हो रहा था। अति खोज संदर्भित यह लेख नाग जी की कविताओं और लोकसंस्कृति को उजागर कर रहा है। अद्भुत जानकारी आपने इस लेख के माध्यम से परोसी है। सुंदर आलेख के लिए आपका आभार और अनन्त शुभकामनाएं।
बहुत -बहुत आभार आपका सूर्यकांत जी ,इस लेख के माध्यम से मैंने भी बहुत कुछ सीखा |
Deleteअर्चना जी आपको एक और बेहतरीन लेख के लिए बहुत बहुत बधाई। इस लेख के माध्यम से उड़िया कवि हलधर नाग जी के रचना संसार और उनके जीवन के महत्वपूर्ण और अनछुए पहलुओं को जानने का अवसर मिला। बहुत आभार।
ReplyDeleteदिल से आभार आभा जी | सचमुच हलधर जी का व्यक्तित्व अनोखा है |
Deleteज्ञान वर्धक आलेख। इस आलेख से पूर्व हलधर जी से कोई परिचय ही नहीं था. आपका बहुत आभार इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद राकेश जी, मैंने खुद उन्हें लिखते समय ही विस्तार से जाना |
Deleteहलधर नाग जी ने सिद्ध कर दिया कि सृजन करने वाले कवि के लिए कोई सीमा नहीं है , कोई रुकावट नहीं है। एक बार सृजन का झरना फूट निकले तो बहते बहते महानद बन जाता है । हलधर जी के श्रमसाध्य जीवन एवं सृजन यात्रा को प्रणाम।
ReplyDeleteअर्चना जी, आपने इस आलेख पर कमाल की मेहनत की है एवं बेहतरीन तथ्यों का संकलन किया है। आपको धन्यवाद । इस संग्रहणीय लेख के लिए हार्दिक बधाई । 💐💐
बिलकुल सच कहा आपने हरप्रीत जी ,मैं तो इस झरने में भीग कर भी पूरी तरह उन्हें नहीं जान पाई ,और इच्छा बढ़ गई ,और आलेख के बाद भी मैंने उन्हें खूब पढ़ा | आपकी टिपण्णी ऊर्जा बढ़ाती है \ हार्दिक धन्यवाद |
Deleteअर्चना मैं इतनी खुश हूँ कि हमने हलधर जी पर लेख का निर्णय लिया और तुमने तुरंत हामी भरी! बहुत शानदार व्यक्तित्व और कृतित्व उनका! गहरा, सधा हुआ आलेख! जियो ❤️!
ReplyDeleteशार्दुला जी आपको बहुत प्यार ,ये खुशियां और तारीफ आपके साथ की वजह से हैं |
Deleteकाव्य जगत के ऐसे सितारों को ढूँढ कर उन्हें पाठकों तक पहुँचाने के लिए अर्चना जी का आभार | हमने हालदार जी के विषय में सुना था, तस्वीरें भी देखी थी| आज उनके सृजन से परिचित होकर सुखद अनुभव हुआ | आभार अर्चना जी|
ReplyDeleteदिल से आपका आभार साक्षी जी , लिखना सार्थक कर दिया आपकी टिपण्णी ने |
Deleteहार्दिक धन्यवाद आपका |
ReplyDeleteअप्रतिम,अद्वितीय—चुन -चुन कर ऐसे साहित्यकारों को आज हिंदी प्रेमियों और आने वाली पीढ़ी के लिए संचित कर हिंदी जगत की बहुत बड़ी सेवा की है आपने…एक हिंदी प्रेमी की ओर से नमन🙏🏻🙏🏻
ReplyDelete