हिंदी साहित्य के विकास में विविध विधाओं का विशेष योगदान है, इनमें निबंध विधा भी समृद्ध है। द्विवेदी युग के प्रमुख निबंधकार सरदार पूर्णसिंह हिंदी साहित्य के प्रमुख निबंधकारों में अग्रगण्य हैं। एक उत्कृष्ट साहित्यकार के साथ ही वे एक महान शिक्षक, दार्शनिक, शिक्षाविद्, वैज्ञानिक व देशभक्त नागरिक भी थे।
सरदार पूर्णसिंह उच्च शिक्षा के लिए जापान में तीन वर्ष रहे। वहाँ पर उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के प्रति सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत-जापान क्लब की स्थापना की तथा थंडरिंग डान (Thundering Dawn) नामक पत्र का संपादन किया। इसी दौरान उनकी भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई, जो विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने हेतु जापान गए हुए थे। स्वामी जी एक महान शिक्षक, वेदांती तथा प्रज्ञावान संत थे। सरदार पूर्णसिंह उनके सान्निध्य में आए तथा उनसे प्रभावित होकर संन्यास धर्म की दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गए। सरदार पूर्णसिंह का जीवन आध्यात्म और विज्ञान का समन्वय था।
१९०१ को स्वामी रामतीर्थ के देहावसान के उपरांत सरदार पूर्णसिंह देहरादून आ गए और उन्होंने इंपीरियल फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट में शिक्षक की नौकरी कर ली। यहीं से उनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया। स्वतंत्र और स्वछंद प्रवृत्ति के होने के कारण वे अधिक दिनों तक नौकरी नहीं कर सके तथा त्यागपत्र देकर ग्वालियर चले आए। यहीं रहकर उन्होंने स्वामी रामतीर्थ तथा सिख-गुरुओं की जीवनियाँ लिखीं।
बहुभाषाविद अध्यापक पूर्ण सिंह को हिंदी, पंजाबी, उर्दू व संस्कृत का अच्छा ज्ञान था। वे हिंदी व पंजाबी भाषी पाठकों में समान रूप से लोकप्रिय हुए। हिंदी में मात्र सात निबंध लिखकर ही सरदार पूर्ण सिंह हिंदी के प्रथम पंक्ति के निबंधकार हैं। उन्हें भावनात्मक निबंधों का जन्मदाता कहा जाता है। 'मज़दूरी और प्रेम' उनका कालजयी निबंध सिद्ध हुआ। सरदारजी की सोच क्रांतिकारी थी। वे सामाजिक परिवर्तन के हिमायती थे, तभी तो अपने विचारों को कुछ इस तरह लिखते हैं,
"जब तक जीवन के अरण्य में पादरी, मौलवी, पंडित और साधु-संन्यासी हल, कुदाल और खुरपा लेकर मज़दूरी न करेंगे, तब तक उनका मन और उनकी बुद्धि अनंत काल बीत जाने तक मलीन मानसिक जुआ खेलती रहेगी। उनका चिंतन बासी, उनकी पुस्तकें बासी, उनका विश्वास बासी और उनका खुदा भी बासी हो गया है।"
'आचरण की सभ्यता' उनका भावना प्रधान तथा आदर्श मूलक निबंध है, जिसमें उन्होंने सदाचार के महत्त्व का प्रतिपादन किया है। उन्होंने आचारवान मनुष्य को अवतार व पैगंबर के समान ही प्रभावशाली बतलाया है। एक अंश द्रष्टव्य है, "पश्चिमी ज्ञान से मनुष्य मात्र को लाभ हुआ है। ज्ञान का वह सेहरा बाहरी सभ्यता की अंतर्वर्ती आध्यात्मिक सभ्यता का वह मुकुट, जो आज मनुष्य जाति ने पहन रखा है, यूरोप को कदापि प्राप्त ना होता, यदि धन और तेज को एकत्र करने के लिए यूरोप निवासी इतने कमीने न बनते। ..................... एक तरफ़ जहाँ यूरोप के जीवन का एक अंश अभ्यस्त प्रतीत होता है, कमीना और कायरता से भरा मालूम होता है, वहीं दूसरी ओर यूरोप के जीवन का वह भाग जहाँ विद्या और ज्ञान का सूर्य चमक रहा है, इतना महान है कि थोड़े ही समय में पहले अंश को मनुष्य अवश्य ही भूल जाएँगे .............आचरण की सभ्यता का यह देश ही निराला है। उसमें न शारीरिक झगड़े हैं न मानसिक न आध्यात्मिक ............. जब पैगंबर मुहम्मद ने ब्राह्मणों को चीरा और उसके मौन आचरण को नंगा किया तब सारे मुसलमानों को आश्चर्य हुआ कि काफ़िर में मोमिन किस प्रकार गुप्त था। जब शिव ने अपने हाथ से ईसा के शब्दों को परे फेंक कर उसकी आत्मा के नंगे दर्शन कराए तो हिंदू चकित हो गए कि वह नग्न करने अथवा नग्न होने वाला उसका कौन सा शिव था।"
यूरोप की मशीनी सभ्यता की जो प्रतिक्रिया हमें टॉलस्टाय, रस्किन तथा बाद में महात्मा गाँधी से प्राप्त होती है, वही अनुगूँज पूर्ण सिंह के निबंधों में दिखाई देती है। पूँजीवाद के प्रारंभिक चरण में ही श्रम और श्रमिक को जो महत्त्व सरदार जी ने अपने लेखन में दिया, उसे बाद में राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में स्वीकार किया गया था। यह देखकर भी आश्चर्य होता है कि गाँधीजी से पहले ही उन्होंने चरखा और हाथ से बनी वस्तुओं को मशीनी उत्पादों की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया था। अध्यापक पूर्ण सिंह भौतिक जीवन की समृद्धि के स्थान पर मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन को संपन्न व सशक्त बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने विभिन्न संप्रदायों के बाहरी स्वरूप को हटाकर उसके अंदर एक आत्मा का स्पंदन तथा एक मानव धर्म का स्वरूप देखा और उसे अपने पाठकों को दिखाने की चेष्टा की। उन्होंने अपने इस कार्य में तार्किकता या बौद्धिकता की सहायता न लेकर मनुष्य के भाव-जगत को स्पर्श करने का प्रयास किया है। इसी कारण उनके निबंधों में विचार का सूत्र इतना क्षीण है कि कहीं-कहीं तो वह टूट जाता है और वे अपनी भावनात्मकता में पाठकों को भगा ले जाते हैं। आचरण की सभ्यता, मज़दूरी और प्रेम और सच्ची वीरता जैसे उनके निबंध वस्तुतः निर्बंध निबंध के अंतर्गत रखे जाने चाहिए।
पूर्ण सिंह की भाषा खड़ी बोली है, जिसमें उर्दू एवं संस्कृत के तत्सम शब्दों का समावेश है। बहुभाषाविद होने के कारण उनके लेखन पर उर्दू और अँग्रेज़ी का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। उनकी भाषा सरल, भावानुकूल तथा साहित्यिक है, जिसमें मुहावरों और कहावतों का आकर्षक प्रयोग दिखाई देता है। उनके लेखन में कहीं कहीं तो व्यंग्य के भी दर्शन होते हैं, जो गंभीर विषय को भी बोझिल नहीं होने देते।
सरदार जी की शैली में वक्तृत्व कला का ओज और प्रवाह है तथा उसमें चित्रात्मकता के भी दर्शन होते हैं, जिसे पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कोई चित्रकार शब्दों से चित्र की सृष्टि कर रहा हो। वे पाठकों के समक्ष एक परिपूर्ण चित्र प्रस्तुत कर देते हैं। उनकी शैली में विचार व भावना का अद्भुत समन्वय परिलक्षित होता है। उनके निबंधों में भावना का वह आवेग तथा कल्पना की उड़ान मिलती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने पूर्णसिंह की शैली के संबंध में लिखा है, "उनकी लाक्षणिकता हिंदी गद्य साहित्य में एक नई चीज़ थी। भाषा और भाव की एक नई विभूति उन्होंने सामने रखी है। उनके विचारों में मार्क्स और गाँधी की विचारधाराओं का अद्भुत समावेश दिखाई देता है। उन्होंने अपने निबंधों के माध्यम से भारतीय सभ्यता और संस्कृति का संरक्षण किया है।"
अध्यापक पूर्ण सिंह हिंदी निबंध साहित्य में कालजयी हैं। वे अपने दार्शनिक व्यक्तित्व तथा विलक्षण कृतित्व के लिए सदैव स्मरणीय रहेंगे। डॉ० राजेश्वर प्रसाद चतुर्वेदी के शब्दों में, "हिंदी साहित्य के निबंधकारों में अध्यापक पूर्णसिंह अन्यतम हैं, उनका न तो प्रतिरूप हुआ और न ही कोई उत्तराधिकारी। समग्रता में तो वे आज भी अजेय हैं।"
संदर्भ
हिंदी साहित्य का इतिहास, पृष्ठ-२८६, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, प्रकाशक - नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी।
हिंदी साहित्य कोष-भाग-२ पृष्ठ ३४१, धीरेंद्र वर्मा, बृजेश्वर वर्मा, रामस्वरूप चतुर्वेदी, रघुवंश(संयोजक), प्रकाशक-ज्ञान मंडल लिमिटेड, वाराणसी।
हिंदी साहित्य का अद्यतन इतिहास-पृष्ठ २६०, डॉ० मोहन अवस्थी, प्रकाशक - सरस्वती प्रेस इलाहाबाद।
लेखक परिचय
जवाहर सिंह गंगवार
पेशे से एडवोकेट हैं और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि रखते हैं। साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था, प्रबोधिका के सचिव हैं।
रचनाएँ - व्यष्टि से समष्टि तक, शिलालेख, समरथ को नहि दोष, कालजयी नारियाँ तथा भारत के पराभव के कारण आदि पुस्तकों के रचियता।
सम्मान -अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित,
सचिव - साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'प्रबोधिका'
मोबाइल - 9452008002, 9686642220
ई-मेल - jawaharsingh8512@gmail.com
जवाहर सिंह गंगवार
पेशे से एडवोकेट हैं और साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में रुचि रखते हैं। साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था, प्रबोधिका के सचिव हैं।
रचनाएँ - व्यष्टि से समष्टि तक, शिलालेख, समरथ को नहि दोष, कालजयी नारियाँ तथा भारत के पराभव के कारण आदि पुस्तकों के रचियता।
सम्मान -अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित,
सचिव - साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'प्रबोधिका'
मोबाइल - 9452008002, 9686642220
ई-मेल - jawaharsingh8512@gmail.com
पूर्ण सिंह जी के लेखन में आडंबर को उतार फेंक कर जीवन के यथार्थ की ठोस सच्चाई को अपने हाथों में महसूस करने की उत्कट चाह दिखाई देती है। जीवन में नहीं उतारे जाने वाले पांडित्य या ज्ञान को वह खोखला , बेजान कह कर नकार देते हैं। यह उनके लेखन का बड़ा प्रभावढाली पक्ष है ।जवाहर जी,एक निबंधकार पर ऐसा रोचक एवं प्रवाहमय विवरण पढ़ कर प्रसन्नता हुई। उनके जीवन और कृतित्व पर आपने सुंदर ढंग से प्रकाश डाला है।बधाई।💐💐
ReplyDeleteपंजाब में प्रोफ़ेसर पूरन सिंह के नाम से ही पुकारे जाते हैं और उनका काव्य लोकप्रिय है। मैं उनके काव्यात्मक पक्ष की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत करूँगा।
Deleteजवाहर जी, निबंधकार पूर्ण सिंह जी पर आपका आलेख पढ़कर उन्हें और उनके सृजन को क़रीब से जानने का मौक़ा मिला। आप ने जिन उद्धरणों को प्रस्तुत किया है उससे उनकी स्पष्ट और उदार सोच की पहचान मिलती है। आपका बहुत बहुत आभार, बधाई एवं शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआदरणीय जवाहर सिंह गंगवार जी, आपने हिंदी साहित्य के प्रमुख निबंधकार सरदार पूर्णसिंह जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। इस लेख के माध्यम से सरदार पूर्णसिंह जी के साहित्य एवं सृजन को जानने का अच्छा अवसर मिला। आपको इस शोधपूर्ण लेख के लिये बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteजवाहर सिंह जी, बहुत भावपूर्ण लेख लिखा है आपने अध्यापक पूर्ण सिंह जी पर।
ReplyDeleteमेरे पापा पंजाबी साहित्य के प्रेमी थे और माँ हिंदी साहित्य की ज्ञाता। बचपन में पापा से कई बार अध्यापक पूर्ण सिंह का नाम व उनके quote सुने, पर उनके केवल नाम से परिचित थी। जाना उन्हें आज आपका आलेख पढ़कर है।
बहुत आभार, इस लेख के लिए।