गगन में थाल रवि चंद दीपक
बने तारिका मंडल जनक मोती।।
धूप मलयान लो पवन चँवरो करे
सगल बनराइ फूलंत जोती ।।१।।
कैसी आरती होय भव खंडना तेरी आरती ।।
अनहता शबद वाजंत भेरी ।।१।।
( राग धनाश्री, गुरु नानक , पृष्ठ १३ , श्री गुरु ग्रंथ साहब )
आकाश के थाल में सूर्य और चंद्र के दीपक सजे हुए हैं, तारों के मंडल के मोती रखे हैं, मलय पर्वत से आने वाली हवा (चंदन-वन से सुगंधित ) धूप-गंध है, पवन चँवर करता है, सारी वनस्पति पुष्प अर्पण करती है। हे जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले, तेरी कैसी सुंदर आरती हो रही है! सब जीवों के भीतर का अनहद नाद इस आरती के लिए नगाड़ों की ध्वनि बन गया है।
कैसा सुंदर काव्य! जैसे स्वर्ग लोक में गढ़ा गया हो। जब बलराज साहनी शांति निकेतन में अध्यापक थे, तब उन्होंने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर से कहा, कि उन्होंने राष्ट्र-गान तो लिखा है, उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय गान भी लिखना चाहिए, जिसे सारा विश्व गा सके। रवींद्रनाथ ने कहा, कि वह तो गुरु नानक देव जी शताब्दियों पहले ही लिख चुके हैं। यह आरती विश्व के लिए ही नहीं, समूचे ब्रह्मांड के लिए है। ऐसे अद्भुत रचनाकार थे, गुरु नानक! यह आरती रवींद्रनाथ के पिता देवेंद्रनाथ ठाकुर को बहुत प्रिय थी और वह इसका बांग्ला अनुवाद गाया करते थे। भक्ति रस और दार्शनिक विचार को संगीतमयी काव्य में गढ़ने की अद्भुत प्रतिभा थी, गुरु नानक में।
आपने अपने शिष्यों को प्रभु की परिभाषा का मूल मंत्र दिया और पहली बात कही -
੧ਓ सतनाम करता पुरख निर्भउ निर्वैर अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद ।।
(गुरु नानक, पृष्ठ १, श्री गुरु ग्रंथ साहब)
१ॐ अर्थात हम सबका ईश्वर एक है, चाहे हम उसे किसी नाम से पुकारें। उसका नाम सत्य है। वह कर्ता है। निर्भय है, निर्वैर है। काल से परे है, अकाल है। स्वयंभू है, योनियों में नहीं आता। गुरु के प्रसाद से उसका ज्ञान मिलता है। अतः उस शाश्वत सत्य को जप।
गुरु नानक की आध्यात्मिक यात्रा और उनकी शिक्षा द्वैत से अद्वैत हो जाने की है। वह हमें बताते हैं, कि निराकार ब्रह्म सृष्टि के कण कण में उपस्थित है, हमारे भीतर है। उसे ढूँढने वन में या पर्वतों पर जाने की आवश्यकता नहीं है।
आपने कहा -
किरत करो - मेहनत और ईमानदारी से जीवन यापन के साधन जुटाओ।
वंड छको - अपनी कमाई को जरूरतमंदों के साथ बाँट कर खाओ।
नाम जपो - निरंतर प्रभु का नाम जपते रहो ।
जब मानव द्वैत से प्रारंभ कर स्वयं को छोटा और प्रभु को महान मान कर गुणगान करता रहता है, तो वह उस महानता से एक होता जाता है और अपनी भक्ति की पराकाष्ठा पर अद्वैत को प्राप्त कर लेता है। भक्त और भगवान एक हो जाते हैं, कोई अंतर ही नहीं रहता। गुरु नानक का यह कहना, कि हमें प्रभु के आदेश में सदा खुश रहना चाहिए, हमें स्थित- प्रज्ञ बनाता है। उन्होंने अपने सिक्खों को बहुत सरल गृहस्थ जीवनचर्या अपनाते हुए ब्रह्म की सहज-सरल प्राप्ति का मार्ग दिखाया।
उनमें अद्भुत प्रतिभा थी, कि वह गहन ज्ञान को, आध्यात्मिक जगत की विषम व्याख्या को बड़ी सरलता से अभिव्यक्त कर देते थे। इसी कारण उन्होंने शताब्दियों से उलझे हुए द्वैत-अद्वैत, प्रवृत्ति-निवृत्ति, जाति-संप्रदाय, वर्ण-भेद जैसे विवादों के बड़े सरल समाधान प्रस्तुत कर दिए। सुमेरु पर्वत पर सिद्ध योगियों से चर्चा करते हुए आपने कहा -
जैसे जल में कमल निरालम मुर्गाई नै साणे।। सुरत सबद भव सागर तरिए नानक नाम वखाणे।।
( राग रामकली, सिद्ध गोष्ठ , गुरु नानक , पृष्ठ ९३८ , श्री गुरु ग्रंथ साहब )
जैसे कमल का पुष्प जल में रहकर भी जल से निर्लिप्त रहता है, बतख़ जल में तैर कर निकल जाती है, पर उसके पंख सुरक्षित रहते हैं, वैसे ही श्रद्धालु गृहस्थ इस संसार में रहकर भी निर्लिप्त रहता है और शब्द गुरु पर ध्यान लगाकर भव सागर पार कर जाता है। अर्थात् कर्तव्य निर्वाह करता है, हँसता-खेलता है, मगर माया के मोह में नहीं फँसता, हर समय ध्यान प्रभु में रखता है।
उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति का एक और उदाहरण देखिए। सभी आध्यात्मिक विद्वान और आइंस्टाइन जैसे भौतिक वैज्ञानिक यह मानते हैं, कि मनुष्य के लिए सबसे बड़े बंधन हैं - समय और स्थान ( टाइम एंड स्पेस)। स्थान भी समय का ही आयाम है। जो समय के, काल के बंधन से मुक्त हो गया, वह पूर्णतः मुक्त हो गया। गुरु नानक ने यह बंधन सरलता से काट कर हम सबको यह स्वतंत्रता दे दी, कि हम स्वयं चुनाव कर सकते हैं, कि हम किस युग में जिएँ।
आपने कहा -
नानक मेरु शरीर का इक रथ इक रथवाह।।
जुग-जुग फेर वटाइये ज्ञानी बुझे ताहि।।
सतजुग रथ संतोख का धरम अगै रथवाह।।
त्रेते रथ जतै का जोर अगै रथवाह।
द्वापर रथ तपै का सत अगै रथवाह।।
कलजुग रथ अगन का कूड़ अगै रथवाह।।
( राग आसा , गुरु नानक , पृष्ठ ४७०, श्री गुरु ग्रंथ साहब )
सर्वश्रेष्ठ मानव शरीर एक रथ के समान है और आत्मा इसका सारथि है। ज्ञानी जन जानते हैं, कि युग परिवर्तन के साथ रथ और सारथि भी बदलते रहते हैं। यदि रथ संतोष का है और धर्म उसका सारथि है, तो यह सतयुग है। जत (संयम) का रथ और शक्ति का सारथि त्रेता युग का प्रतीक हैं। द्वापर का रथ तप का है और सारथि सत्य का। और कलियुग का रथ तृष्णा रूपी अग्नि का है और झूठ उसका सारथि है। गुरु नानक के अनुसार हमारे पैदा होने का समय तय नहीं करता, कि हम किस युग में जी रहे हैं। यह हमारा चुनाव है, कि हम अपने लिए पूर्ण स्वाधीनता से क्या समय चुनते हैं। मैं यदि संतोष के रथ पर सवार हूँ और धर्म मेरा सारथि है तो मैं सतयुग में जी रहा हूँ। लेकिन अगर तृष्णा के रथ पर सवार हो झूठ को सारथि बना लूँगा तो कलियुग में जीना होगा। हो गया ना मानव काल के बंधन से मुक्त!
गुरु नानक के जन्म के समय समाज की दुर्दशा थी। लोदी वंश के शासन का अंतिम चरण था और शासक प्रजा पर अत्याचार करते थे। बाबर का आक्रमण आपके जीवन काल में हुआ और आपने अत्याचार की खुली भर्त्सना की। धर्म के नाम पर अंधविश्वास और लूट का बोलबाला था। पाखंडी पंडित, झाड़-फूँक वाले जोगी और रिश्वत लेकर अन्याय करने वाले क़ाज़ी भोले-भाले ग्रामीणों को दिन रात लूट रहे थे। गुरु नानक ने इस अधर्म और लूट का पर्दाफ़ाश किया। आपने पाखंडी कर्मकांड से परे सीधे प्रभु से जुड़ने का मार्ग दिखाया। सारी मानव जाति को एक ही वर्ण घोषित कर चारों वर्णों को एक कर दिया। स्त्री को पुरुष के समकक्ष स्थान दिया और कहा -
सो क्यों मंदा आखिए जित जंमहि राजान (उसे क्यों नीचा कहें, जिसने राजाओं को जन्म दिया है)।
आपने कहा, कि अपवित्र या सूतक को सही तरीक़े से समझना चाहिए -
मन का सूतक लोभ है जिह्वा सूतक कूड़।। अक्खी सूतक देखना पर-त्रिय पर-धन रूप।।
कन्नी सूतक कन पै लाइतबारी खाहि।। नानक हंसा आदमी बद्धे जमपुर जाहि।।
मन का सूतक लोभ है और जिह्वा का सूतक झूठ है। पर-स्त्री, पर-धन पर दृष्टि रखना आँखों का सूतक है। पर-निंदा सुनना कानों का सूतक है। ऐसे ही सूतक के कारण हंस जैसा उज्ज्वल चरित्र भी यमपुरी में होने का अनुभव करता है।
आपने खुली घोषणा कर दी - ना कोई हिंदू , ना मुसलमान। यह एक आध्यात्मिक और सामाजिक क्रांति का सूत्रपात था। उनकी मानवीयता, सत्यप्रियता, विनम्रता और निर्भीकता आकर्षक थी। लोगों ने उनकी तार्किक और वैज्ञानिक व्याख्या को स्वीकार किया और उनके साथ हो लिए। उनके निष्कपट व्यवहार और सरल वार्तालाप का परिणाम यह हुआ, कि वह सदैव निर्विवाद रहे। उन्होंने दूर-दराज यात्राएँ की। अपने युग के संतों, योगियों, सिद्धों, मौलवियों, पीरों-फ़क़ीरों से धर्म चर्चा की, लेकिन यह सदा सौहार्द्रपूर्ण विचार-विमर्श बना रहा। वह कभी वाद-विवाद में नहीं उलझे और किसी को शास्त्रार्थ कर पराजित करने का प्रयास नहीं किया, जैसी उनके पूर्ववर्ती विद्वानों की परंपरा थी।
शिष्य उनकी संगीतबद्ध रचनाएँ गाते और सहज-सरल गृहस्थ जीवन में स्वयं को प्रभु के निकट होने का, मुक्त होने का अनुभव कराते। घर-घर को धर्मशाला (बाद में गुरुद्वारा) और सेवा का केंद्र माना जाने लगा।
मृत्यु से पूर्व आपने अपने प्रिय शिष्य लहना को गुरु घोषित किया और उन्हें अंगद (स्वयं का अंग) नाम से सुशोभित किया।
संदर्भ :
१. श्री गुरु ग्रंथ साहब २. विकिपीडिया
लेखक परिचय:
हरप्रीत सिंह पुरी
गुरु नानक के दर का एक चाकर।
'पर-स्त्री, पर-धन पर दृष्टि रखना आंखों का सूतक है।' कितनी गहराई है, इस प्रथम में।
ReplyDeleteवहीं लेखक परिचय में 'गुरु नानक के दर का एक चाकर' लिखना, यह दर्शाता है कि पुरी भाई पर नानक जी की असीम कृपा है। महाशिवरात्रि के दिन की शुरुआत नानक जी के जीवन चरित्र पर लिखित हरिप्रीति जी के आलेख से !
ॐ शिव शम्भू! !! !!!
बहुत आभार , अरविंद जी।सदैव की भाँति आज भी गुरु का चाकर यही अरदास करता है : नानक नाम चढ़दी कला। तेरे भाणे सरवत दा भला।
Deleteप्रभु के नाम की चढ़ती लहर में प्रभु कृपा से सभी का कल्याण हो।
हरप्रीत जी सादर नमस्कार। आपने इस लेख के माध्यम से श्री गुरुनानक देव जी का आशीर्वाद हम सब तक पहुँचाया है। इसके लिए आपका आभार। श्री गुरुनानक देव जी का हर शब्द, हर रचना अमृत है। इस श्रद्धामय लेख के लिए आपको बधाई एवं साधुवाद।
Deleteहरप्रीत जी, क्या विलक्षण लोग थे, मानवता की साक्षात मूर्ति! कितने सरल शब्दों में जीवन का सार समझा गए, उथल-पुथल के समय भी संयम के पुजारी बने रहे। आपने अपने संक्षिप्त लेख में अपने भक्ति-भाव की स्याही से गुरु नानक के मुख्य सूत्रों को बहुत सुंदर तरीक़े से प्रस्तुत किया है। आपको इस अद्भुत लेखन के लिए हार्दिक बधाई और आभार।
ReplyDeleteवाह वाह वाह
ReplyDeleteधर्मगुरु गुरु नानकदेव जी के दर का एक चाकर संबोधित कर बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुत किया है आपने आदरणीय हरप्रीत जी। इस आलेख में *मन का सूतक लोभ और जिव्हा का सूतक झूठ* कितना अप्रतिम उदाहरण दकर आध्यात्मिक संस्कृति एवं सभ्यता की आदर्शमय और जीवंत प्रतिमा प्रतिष्टित की है जो विश्वभर में अलौकिक, असाधारण तथा अद्भुत है। आपका लेख गुरुजी के पढ़ाए गए पाठ और धर्मग्रंथ की नैतिकता का बखूबी बखान कर रहा है। आपके आलेख के द्वारा विलक्षण और संभ्रम परिस्थितियों में भी अपने आप को शान्तिप्रद मार्ग से दूसरों के जीवन में सुख शांति देने का अलौकिक उपदेश अनुभवित हो रहा है। अतिसुन्दर शब्द रचना रहित संक्षिप्त अर्थज्ञान के इस आलेख के लिए आभार और खूब बधाई स्वीकार करें।
हम सबका ईश्वर एक है, मानवता ही सच्चा धर्म है, सही मायनों में बुरा या अपवित्र क्या है....जैसे सूत्र वाक्यों से जीवन को सार्थक करने का गुण सिखाने वाले आराध्य गुरु नानक देव जी की अमृत वाणी को हम तक पहुँचाने के लिए हरप्रीत जी का बहुत बहुत आभार। इस संक्षिप्त और उत्कृष्ट लेख के लिए आपको बधाई। आपके अपने परिचय ने बहुत प्रभावित किया।
ReplyDeleteआज ऐसा लग रहा है जैसे कोई लेख नहींं अपितु गुरुनानक साहब ग्रंथ से ही परिचित होने का एक छोटा सा और सुनहरा अवसर प्राप्त हो गया हो। आरंभ ही जिस लेख का गुरुनानक साहब द्वारा रचित आरती से हुआ,उस विलक्षण व अलौकिक ईश्वरीय लेख की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। इस ज्ञानवर्धक अमृत वाणी को हम सब तक पहुँचाने हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय। साथ ही आपका अद्भुत परिचय कि 'नानक का एक चाकर' हूँ सच में आपको व गुरु के प्रति आपकी आस्था को सादर नमन।
ReplyDeleteआदरणीय हरप्रीत सर ,साहित्यकार तिथिवार के अंतर्गत आज का आलेख पढ़ते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी आध्यात्मिक साधना में बैठा हूँ l आलेख की एक और बड़ी खूबी रही कि आपने कम और बेहद सधे हुए शब्दों में गुरुनानक देव जी का जीवन परिचय धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक प्रयासों,काव्य सृजन,उपदेश इत्यादि समस्त महान कार्यों को काग़ज़ पर उतार दिया l
ReplyDeleteमहान संत ,समाज सुधारक एवं युगदृष्टा गुरुनानक देव जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के महत्वपूर्ण और शोधपूर्ण बिंदुओं पर आपने जो प्रकाश डाला वो मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी बहुत ज्ञानवर्धक है l
आपको इस प्रभावी आलेख हेतु बहुत बहुत बधाई
हरप्रीत जी, जीवन खुशहाली से जीने का मंत्र बताने वाले गुरु नानक पर आपने बहुत बढ़िया आलेख लिखा है। अंतर्राष्ट्रीय आरती से लेकर, उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति, हम किस युग में जी रहें हैं - सब कुछ पठनीय और लुभावना है। बहते हुए झरने जैसे प्रवाहमय आलेख के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। आलेख के साथ-साथ परिचय भी बहुत पसंद आया।
ReplyDeleteप्रकाश पर्व पर अनंत शुभ कामनाएं। अद्भुत लेखन गुरु नानक देव पर। दुबारा पढ़ने पर भी इसकी नवीनता ज्यों की त्यों। हमारे संतों की महिमा का बखान सुन के रोमांचित हो जाते है, जिनका न आदि न अंत।इन्हें शब्दों में कैसे बांधे। नमन ऐसे पूर्ण पुरुष को🙏🏻🙏🏻और इस आलेखन के लिए पूरी सर को बधाई🙏🏻
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