"गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर,
मेंहदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका-बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है।"
- दिनकर
कई बार, साहित्यकार तिथिवार के मुश्किल क्षणों में सोचा है कि क्या है जो इस कठिन स्वयंसेवी परियोजना का वाहक है - शायद जुनून या शायद प्यार या दोनों ही! विगत शनिवार, ७ मई २०२२ को उसी प्रेम और जुनून से साक्षात्कार हुए, दिल्ली के हरियाणा भवन में आयोजित 'मंथन' कार्यशाला में! 'साहित्यकार तिथिवार' के संपादक, लेखक और पाठकों के बीच हिंदी के अलग-अलग मोर्चों पर कार्य कर रहे स्वयं सेवी सिंगापुर, दिल्ली, मुरादाबाद, उदयपुर, लखनऊ और बुलंदशहर जैसे दूर दराज़ के शहरों से इस कार्यशाला में अपना बहुमूल्य योगदान देने पहुँचे। आत्मीयता और आत्मविश्वास का जो रंग वहाँ दिखा, उसने इस मुहिम में दूर तक चलते जाने का साहस भर दिया। नारायण कुमार जी के शब्दों में एक पग प्रगति में और एक पग परंपरा में रख इस परियोजना के आगे के कदम कहाँ कब और कैसे पड़ेंगे, उस पर चर्चा हुई। चूँकि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्मदिन था सो लेखिका-गायिका अजंता शर्मा के "क्लांति ओमार खमा करो प्रोभू" प्रार्थना के मधुर गायन से सत्र की प्राण प्रतिष्ठा रखी। उसके बाद सबने अपना परिचय दिया और हिंदी से जुड़ाव के बारे में बताया। जब हम सृष्टि भार्गव तक पहुँचे और उन्होंने कहा कि मैं आजीवन हिंदी के लिए काम करना चाहती हूँ, तो पूरा कक्ष तालियों से गूँज उठा! सृष्टि ने कहा, "मैंने यह महसूस किया है कि अगर साहित्यिक मंचों और गोष्ठियों से बाहर निकलकर देखें तो आज का युवा हिंदी पठन-पाठन को बीते ज़माने की बात समझता है। ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम भाषा और साहित्य को एक दायित्वपूर्ण और समर्पित दृष्टि से उनके सामने रखें।"
यह दृष्टिकोण ले कर हम आगे बढ़े और मुरादाबाद से आई स्नेहिल अर्चना उपाध्याय जी की युवाओं वाली हिंदी की बात सुनी। कार्यशाला के अंत में अर्चना जी ने बड़ी ही आत्मीयता से सभी प्रतिभागियों को हस्तशिल्पियों द्वारा निर्मित "हिंदी से प्यार है" का सुंदर बुकमार्क स्मृति चिन्ह के रूप में भेंट किया, जिसने सभी को अभिभूत कर दिया। तिथिवार की साहित्येतर परियोजना का कला संकाय भी संभालने का दायित्व उन्होंने सहर्ष लिया। विजय कुमार मल्होत्रा जी एक वटवृक्ष की तरह इस कार्यशाला से जुड़े रहे। साहित्येतर हिंदी पर क्या और कैसे काम हो इस पर उन्होंने बहुमूल्य विचार प्रकट किए। विजय जी का रहना और इतना समय देना कार्यशाला का सौभाग्य रहा क्योंकि वे पूरे सत्र के दौरान विमर्श को एक सार्थक दिशा देते रहे।
हिंदी अध्यापिका और रेडियो प्रस्तोता विनीता काम्बीरी ने दृढ़ता से हिंदी का परचम थामे रखने पर गर्व करते हुए सुझाया कि साक्षात्कार तिथिवार की भी असीम संभावनाएँ हैं और इसकी बागडोर अपने हाथ लेना स्वीकार किया। प्रमाण पत्र वितरण के प्रस्तुतिकरण को उन्होंने अपने त्वरित आशुभाषण से ऐसे संभाला मानों हफ़्तों से तैयारी कर रही हों। हिंदी लेखन के नए सितारे, उदयपुर से पधारे प्रताप नारायण सिंह ने पुस्तक प्रकाशन के विभिन्न आयामों पर विस्तृत जानकारियाँ दीं। उन्होंने कुछ प्रकाशकों से संपर्क का ज़िम्मा भी लिया। हिंदी में उनकी पैठ और निष्ठा ने माहौल में प्रताप भर दिया।
भोजनोपरांत कार्यक्रम के दूसरे सत्र में जाने-माने लेखक और हिंदी आंदोलनकर्मी प्रेमपाल शर्मा के अनुभव, आँकड़े, और धाराप्रवाह विचारों ने विमर्श को एक नया परिप्रेक्ष्य दिया और रोज़गार के लिए हिंदी की स्थिति पर प्रकाश डाला। उन्होंने वे प्रश्न किए जो एक अनुभवी कार्यशील व्यक्ति ही कर सकता है - "एक ही तारीख़ में दो-तीन साहित्यकारों का दिन है तो किस आधार पर निर्णय लेते हैं आप लोग?" उनके विचारों की गहनता और विषय पर पूर्ण निष्ठा सभी के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हुई।
रेल विभाग से वरुण जी ने विभिन्न पहलुओं पर निर्भीक विचार रखे, दिशा के अवरोधों से परिचय कराया और कई महत्वपूर्ण प्रश्न किए। उनके ही विभाग से एक ऐसे कर्मठ कार्यकर्ता से परिचय हुआ जो हिंदी में टंकण करते-करते अनुवाद तक की यात्रा कर रहे हैं। साहित्यकार निर्देश निधि ने अपनी चिर-परिचित सौम्यता के साथ हिंदी के लिए खड़े रहने और पर्यावरण का साहित्येतर काम सँभालने का दायित्व लिया। लखनऊ से आई हमारी प्रिय लेखिका आभा खरे जी ने लेखन का संकल्प लिया। दीपा लाभ ,जो इस पूरी कार्यशाला की पृष्ठभूमि पर पूरे मनोयोग से काम करती रहीं, उन्होंने आगामी तिथिवार परियोजनाओं, साहित्यकार तिथिवार की किताब के स्वरूप और बाल-सुलभ हिंदी के निर्माण पर महत्वपूर्ण निर्णय लिए। अपने दो बेटों के साथ वे बेंगलुरु से इस कार्यशाला के लिए उपस्थित हुईं थीं। कार्यशाला का संपूर्ण दायित्व अपने ऊपर उठाते हुए उन्होंने भोजन एवं सभागार के उत्तम प्रबंध किए। दीपा साहित्यकर तिथिवार की दूसरी स्तंभ हैं, जिनकी ऊर्जा से सभी प्रभावित थे।
हमारी नियमित पाठक जयंती कुमारी ने हिंदी और मैथिली भाषा को सर्वसुलभ और सर्वप्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। साहित्यकार तिथिवार के अनेक साकारात्मक पहलुओं से परिचय कराते हुए उन्होंने कहा कि "अब दिन की शुरुआत फेसबुक या अन्य मोबाइल ऐप की बजाय तिथिवार से होती है।" ब्लॉग के अधिकतर पृष्ठों पर उनकी पहली टिप्पणी इसका प्रमाण है। कार्यक्रम में उपस्थित आदेश पोद्दार जी ने हमारे प्रयासों की सराहना करते हुए निज हिंदी प्रेम के बारे में बताया। स्टेला क्रूज़ और तनवीर आलम गुरुवर जगदीश व्योम के प्रतिनिधि बनकर हमसे जुड़े। उन्होंने हिंदी शिक्षण में नए प्रयोगों से सभा को अवगत कराया। दोनों ने मृदु मुस्कान की ओट में छिपी अपनी दृढ़ता का परिचय दिया। कोलकाता से आईं हमारी प्रबुद्ध पाठक अचला झा ने हिंदी पठन और शुरुआती लेखन पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के अंत में नारायण कुमार जी जैसे हिंदी के भीष्म पितामह के कर कमलों द्वारा प्रमाण पत्रों का वितरण किया गया। उनकी बातों से सभागार मुदित हो उठा। उनका प्रेम, हिंदी सरोकार, विनोद प्रियता ने कार्यक्रम में जैसे चंदन का टीका लगा दिया। साथ ही "हिंदी से प्यार है" के संस्थापक अनूप भार्गव के भागीरथ प्रयत्नों की सराहना की और तिथिवार परियोजना को निष्ठावान बने रहने का आशीष दिया। जहाँ हम यह सोच रहे थे कि कैसे लोग दिन भर की इस कार्यशाला में रुके रहेंगे, वहाँ शाम सात बजे हमने सभागार के द्वार बंद किए और नई संभावनाओं के द्वार खोले। "हिंदी केवल भाषा-साहित्य नहीं, बल्कि माध्यम बनकर जन-जन को सुलभ हो" इस प्रण के साथ साहित्यकार तिथिवार एक नए पथ पर अग्रसर है। मैं शार्दुला नोगजा, जो सिंगापुर से इस परियोजना का नेतृत्व कर रही हूँ, "हिंदी से प्यार है" की कोर टीम का प्रतिनिधित्व भी कर रही थी। खुश हूँ कि इतने सीनों में आग पल रही है, इतने हाथों में कलम है, काम करके दिखा देने का जज़्बा है! माँ सरस्वती सहाय हों!
इस स्नेहिल मिलन का सार प्रस्तुत करते हुए अर्चना उपाध्याय कहती हैं, "शनिवार का दिन व्यक्तिवार जैसा था जो मात्र एक दिन में सिमट कर सभी का परिचय दे गया। आप सभी से मिलना बहुत सुखद था। हर किसी का सुंदर व्यक्तित्व एक शैलखंड की तरह अपनी गहराई में कितना ज्यादा विराट है। निःसंदेह हम सभी का साथ एक सार्थक स्वरूप में दिखेगा।"
एक प्यारे दिन और साथ के लिए आप सभी का धन्यवाद।
जिस विशेष दिन की गिरफ्त से अभी तक मुक्त नही हो पाई उस दिन की आत्मीयता फिर पल-पल जीवंत हो गई। बहुत अपनेपन से लिखा है सृष्टि...
ReplyDeleteदरसअल वो सिर्फ एक दिन नही था,साहित्यकार-तिथिवार का पहला मील का पत्थर था जिसमें अनगिनत किलोमीटर जुड़ने हैं...और विश्व समेटना है।
आप सभी से मिलना सिर्फ सुखद नही ,नई परिकल्पनाओं की ऊर्जा से भर जाना था मेरे लिए।
हर परिचय अपने परिचय से बहुत ज्यादा विस्तृत था ।
और हमारी मैजिकल ट्रिप्लेट ने तो आसमान को जमीन पर सहेज लिया था।
जगदीश सर की अनुपस्थिति बहुत खली।
सभी स्नेहिल आत्मीयों को अर्चना का प्यार सहित धन्यवाद।
साहित्य-पथ के साथियो, इस मंथन के सफल सम्पन्न होने की हम सबको बधाई। मैं तो इस रिपोर्ट की प्रतीक्षा में थी। हिंदी के समुद्र में अपनी चंद बूँदें डालने की अभिलाषा लिए जुड़े सभी हिंदी प्रेमियों के प्रयास रंग तो अवश्य लाएँगे और तब सभी आशंकाएँ स्वयं समाप्त हो जाती हैं, जब युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व हमें सृष्टि भार्गव के रूप में प्राप्त हो, जगदीश व्योम जी अपनी सटीक टिप्पणियों से मार्गदर्शन कर रहे हों, साहित्यकार-तिथिवार और हिंदी से प्यार है के प्रबंधक हिंदी-प्रेम की ज्वाला जलाए रखने के लिए दिन-रात एक कर रहे हों।
ReplyDeleteहम सबको भूरि-भूरि शुभकामनाएँ भी।
मेरे लिए तो बस ज्ञान औऱ प्यार समेटने का दिन था
ReplyDeleteसभी को नमस्ते एवं हार्दिक बधाई। यह अद्भुत मंच निरंतर अपने कार्य विस्तार के नए अध्याय जोड़कर स्वंय को समृद्ध बना रहा है। इस मंच के निर्माताओं, व्यवस्थापकों, मार्गदर्शकों एवं सदस्यों की मेहनत प्रसंशनीय है और उन सभी को साधुवाद।
ReplyDeleteअभिनंदनीय सत प्रयत्न।भविष्य में नई ऊंचाइयां छूने की शुभाशंसा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सफलआयोजन के लिए के लिए हार्दिक बधाई। मैं वहाँ नही थी लेकिन जयंती दी ने फोन पे मुझे कार्यक्रम के बारे में बताया बहुत खुशी हुई। कि वहाँ कोई भी कोना रिक्त नही रखा वहाँ सब लोग नही होते हुए भी शामिल थे। बहुत खुशी हुई कि वहाँ हमें भी याद किया। बहुत आभार शार्दुला दी और पूरी टीम को जो इतना समर्पण दे रहे।
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