विजय तेंदुलकर का नाम आधुनिक भारतीय नाटक और रंगमंच के विकास में अग्रणी है। नाट्य- शास्त्र तो मानो उनकी रगों में दौड़ता था। भारतीय नाट्य व साहित्य जगत में उनका उच्च स्थान रहा है। वे सिनेमा और टेलीविजन की दुनिया में पटकथा लेखक के रूप में भी पहचाने जाते हैं। मराठी की पत्रकारिता से सक्रिय जीवन शुरू करने के बाद सातवें दशक के उत्तरार्ध में भारतीय रंगमंच पर एक धूमकेतु की भाँति उनका उदय हुआ।आइए नाट्यकला और रंगमंच को असीमित ऊँचाइयों तक ले जाने वाले, परंपरावादी मराठी थियेटर के पुरोधा विजय तेंदुलकर की जीवन यात्रा में कुछ कदम साथ-साथ चलें -
जीवन परिचय
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए श्री विजय धोंडोपंत तेंदुलकर ने केवल छह साल की उम्र में अपनी पहली कहानी लिखी थी। उनके पिता नौकरी के साथ ही प्रकाशन का भी छोटा-मोटा व्यवसाय करते थे, इसलिए पढ़ने-लिखने का माहौल उन्हें घर में ही मिल गया। नाटकों को देखते-देखते बड़े हुए श्री विजय तेंदुलकर ने मात्र ११ साल की उम्र में पहला नाटक लिखा, उसमें काम किया और उसे निर्देशित भी किया। अपने लेखन के शुरुआती दिनों में श्री विजय तेंदुलकर ने अख़बारों में काम किया था। भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। संघर्ष के शुरुआती दिनों में वे 'मुंबइया चाल' में रहे। चाल से बटोरे सृजन के बीज बरसों मराठी नाटकों में अंकुरित होते दिखाई दिए।
आठ दशकों के जीवन काल में इस प्रसिद्ध मराठी नाटककार, लेखक, निबंधकार, फिल्म व टीवी पठकथा लेखक, राजनैतिक पत्रकार और सामाजिक टीपकार का जीवन हर उस बात के विरुद्ध रहा, जो आम जन मानस के जीवन मूल्यों और प्रगतिशील विचारों के प्रति ईमानदार नहीं थी। नए प्रयोग, नई चुनौतियों से वे कभी नहीं घबराए, बल्कि हर बार उनके लिखे नाटकों में मौलिकता का अनोखा पुट होता था। कल्पना से परे जाकर सोचना उनका विशिष्ट अंदाज़ था। भारतीय नाट्य जगत में उनकी विलक्षण रचनाएँ सम्मानजनक स्थान पर अंकित रहेंगी।
उनके विषय में ऐसा माना गया है कि मराठी, हिंदी और अँग्रेज़ी में धाराप्रवाह बोलने वाला ये व्यक्ति जब अपने नाटकों के मंचन के समय आम आदमी का दर्द बताना शुरू करता था और इस बात का प्रयास करता था कि वह दर्द आपके स्वयं के हृदय पर हावी हो जाए और आप उस पात्र को सफलता पूर्वक मंच पर जी सकें, तो उसकी आवाज़, और कभी कभी अचानक नम हो जाती उसकी आंखें और उद्गार से भारी हो गई उसकी आवाज़ आपको झकझोर देती थी। नए प्रयोग, नई चुनौतियों से वे कभी नहीं घबराए, बल्कि हर बार उनके लिखे नाटकों में मौलिकता का अनोखा पुट होता था।
सत्तर के दशक में उनके कुछ नाटकों को विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन वास्तविकता से जुड़े इन नाटकों का मंचन आज भी होना उनकी स्वीकार्यता का प्रमाण है। उनकी लिखी पटकथा वाली कई कलात्मक फ़िल्मों ने समीक्षकों पर गहरी छाप छोड़ी। इन फ़िल्मों में 'अर्द्धसत्य', 'निशांत', 'आक्रोश' शामिल हैं। हिंसा के अलावा सेक्स, मौत और सामाजिक प्रक्रियाओं पर उन्होंने लिखा और इसके साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार, महिलाओं और गरीबी पर भी जमकर लिखा।
लेखन में बंधन तो उन्होंने कभी माना ही नहीं। उनकी निर्भीक लेखनी से 'मित्राची गोश्ता' (एक मित्र की कहानी) जैसे नाटक (भारत की स्वतंत्रता के पहले के प्रसंग की दो सहेलियों की प्रेम कथा के) भी निकले, और 'आक्रोश' जैसी फ़िल्म (भ्रष्ट न्याय व्यवस्था के कारण भरभरा कर ढहती हुई एक परिवार की समय कथा) भी, न्याय व्यवस्था पर सीधे प्रहार करता नाटक "कोर्ट चालू आहे" भी, और औरत व मर्द के बीच सहवास से लेकर हिंसा तक के उपयोग-दुरुपयोग का नाटक भी। उन्होंने राजनीति और राजनीतिज्ञों को भी नहीं बख़्शा चाहे वो अठारहवीं सदी के पेशवाओं का नारी-लोभ और उसके कारण हुआ अत्याचार दिखाते हुए (उस समयावधि पर लिखित उनका नाटक "घासीराम कोतवाल") तत्कालीन शिव सेना के कार्य कलापों पर किया गया तीखा व्यंग्य हो। निर्भीक इतने कि उसी समयावधि में जब शिव सेना की सहमति के बिना कुछ भी करने से महाराष्ट्र के लोग हिचकते थे, उन्होंने 'घासीराम कोतवाल' का लगभग ३०० बार मंचन किया।
अक्सर कहा जाता है कि दर्द बढ़ता है तो सुनाई देता है, तथा जब और बढ़ जाता है तो फिर दिखाई देने लगता है। विजय तेंदुलकर के विचारों में इतना दर्द और उससे उभरी उद्विग्नता और क्रोध कहाँ से और कैसे आया, और फिर उस उद्विग्नता और क्रोध को प्रकट करने के लिए लेखनी के द्वारा काग़ज़ में एक अलग ही ढंग (आधुनिक साहित्य की व्यंग्य की विधा) से उतार देने की क्षमता इस लेखक में कैसे आई, आइए देखते हैं,
१९६१ में उनका लिखा नाटक 'गिद्ध' खासा विवादास्पद रहा। 'ढाई पन्ने', 'शांतता', 'कोर्ट चालू आहे', 'घासीराम कोतवाल' और 'सखाराम बाइंडर' श्री विजय तेंदुलकर के लिखे बहुचर्चित नाटक हैं, जिन्होंने मराठी थियेटर को नवीन ऊँचाइयाँ दीं और कहीं न कहीं हिंदी थिएटर के ऊपर लाकर खड़ा कर दिया। यही कारण है कि उनके लिखे लगभग इन सभी नाटकों का हिंदी रूपांतरण अथवा अनुवाद हुआ। उनके सबसे चर्चित नाटक "घासीराम कोतवाल" का लगभग सात हज़ार पांच सौ बार या शायद और अधिक बार मंचन हो चुका है। इतनी बड़ी संख्या में किसी और भारतीय नाटक का अभी तक मंचन नहीं हुआ है। उनके लिखे कई नाटकों का हिंदी के अतिरिक्त दूसरी भाषाओं में भी ख़ूब अनुवाद और मंचन हुआ है।
श्री विजय तेंदुलकर के पुत्र राजा और पत्नी निर्मला का २००१ में देहांत हो गया था और ९० के दशक में उनके लिखे विख्यात टीवी धारावाहिक 'स्वयंसिद्ध' में शीर्षक भूमिका निभाने वाली उनकी पुत्री प्रिया तेंदुलकर का २००२ में स्वर्गवास हो गया था। १९ मई २००८ में पुणे में अंतिम साँस लेते समय श्री विजय तेंदुलकर के साथ उनकी पुत्रियाँ सुषमा और तनुजा भी थीं।
यह मेरा सौभाग्य ही है कि उनसे मेरी मुलाकात हुई थी, जब मैं किशोर था और वे उदयपुर आए थे। अंत में इतना ही कहूँगा कि सन २००८ में उनके देहावसान के बारे में सुनकर मुझे लगा कि ये मेरा कुछ थोड़ा सा व्यक्तिगत नुकसान हुआ है। यद्यपि मैं नाट्यशास्त्र, नृत्य नाटिका और लेखन से एक सीमा के बाद लगभग कट सा गया, परंतु इन कला विधाओं के मेरे आरंभिक गुरुजनों (श्री भगवती जी, सरदार श्री अर्जुन सिंह, मो० ग़ुलाम रसूल जी, श्री जे०सी०डब्ल्यू० रस्ट, श्री राजमणि, श्री माथुर और कुछ दिनों के लिए संपर्क में आए, उनमें से एक श्री विजय तेंदुलकर भी थे।
उन्हें प्रणाम है।
संदर्भ
- श्री विजय तेंदुलकर से चार पांच दिन की संक्षिप्त बातचीत लोक कला मंडल में उनके नाटक के मंचन के समय
- उन्हीं के मित्र श्री गिरीश कर्नाड से डेढ़ घंटे की संक्षिप्त बातचीत गुजरात में
- इंडिया टुडे जुलाई २०१८ का एक समाचार पत्र - "विजय तेंदुलकर, भारत के नाटकों के दार्शनिक" लेख (अंग्रेजी में)
- विजय तेंदुलकर की लीगेसी - इंडिया टुडे भी २००८
- विजय तेंदुलकर से साक्षात्कार का रिपोर्ताज़ - इंडियन एक्सप्रेस अक्तूबर १९९९
- "नाटककार विजय तेंदुलकर नहीं रहे" - एन डी टी वी पर भी २००८ में यादगार प्रोग्राम
लेखक परिचय
अशोक शुक्ल
६३ वर्ष, पहली कविता और कहानी १२ वर्ष में, पहली बार नाटक में अभिनय १३ वर्ष में, संस्कृत साहित ११ भाषाएँ बोलना समझना (कुछ में लिखना-पढ़ना), अभियांत्रिकी एवं प्रबंधन में उच्चतम स्तर पर शिक्षा, और कई देशों में उच्च प्रबंधन पदों पर कार्य करने के पश्चात पिछले १८ वर्षों से भारत लौट कर विनिर्माण क्षेत्र में व्यापार के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंधन पर किताब, २१ पैटेंट भारत (एवं अमरीका) में, कई राष्ट्रीय महत्व की संस्थाओं में सलाहकार, भारतीय प्रबंधन संस्थानों सहित कई उच्च शिक्षा संस्थानों में विजिटिंग फैकल्टी, समाज सेवा में प्रायः कुछ थोड़ा- सा धन और कभी- कभी थोड़ा समय देने के बाद हिंदी लेखन एवं कविता एवं चार घंटे सोने के लिए भी थोड़ा सा समय निकाल लेते हैं।
अशोक जी नमस्कार। आपके इस लेख के माध्यम से विजय तेंदुलकर जी के बारे में जानने का अवसर मिला। लेख बहुत अच्छा एवं पढ़ने में रोचक है। आपको इस शोधपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteनमस्ते अशोक जी! आपने सीमित शब्दों में विजय जी के लीक से हट कर बहादुरी भरे लेखन और नाट्य कर्म को समेटा है! कुछ पंक्तियाँ जैसे दर्द बढ़ के सुनाई और दिखाई देने वाली बात बेहतरीन है। साधुवाद! लिखते रहें।
ReplyDeleteअशोक जी नमस्ते! आपका विजय तेंदुलकर जी पर आलेख बहुत अच्छा लगा। आज जब यह आलेख पटल पर देखा तो लगा जैसे कोईअपना पटल पर आया है। बात दरअसल यह है कि मैंने उनकी दरियादिली के बहुत से क़िस्से अपने रूसी दोस्तों से सुने हैं और इसलिए लगता है कि उन्हें जानती हूँ। वे जब अपने शिखर पर थे तो और यहाँ से छात्र मराठी का व्यावहारिक प्रयोग सीखने बम्बई जाते थे तो वे उनकी हर तरह से मदद करते थे। उनके नाटक 'घासीराम कोतवाल' की मंडली ने रूस में महीनों रहकर अलग-अलग शहरों में मंचन किया है, यह तथ्य उनके और उनके कामों की यहाँ प्रसिद्धि का साक्ष्य है। विजय तेंदुलकर जी को नमन। आपको इस आलेख के लिए बधाई और आभार।
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