जहाँ रोज़ बन रहे हैं नये-नये मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ
धोखा दे जाते हैं पुराने निशान
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
……….……."
"कवि चाहे अरण्य, चाहे गाँव, चाहे शहर या महानगर के बारे में लिखे, लिखता तो वह मनुष्य के ही बारे में है- उसके भाव जगत, दूसरे लोगों, जीव जगत तथा ब्रह्मांड से उसके संबंधों के बारे में" - ये विचार हैं, 'अपनी केवल धार', 'नए इलाके में', 'पुतली में संसार', 'योगफल' आदि रचनाओं के प्रसिद्ध समकालीन कवि अरुण कमल जी के। इनका जन्म १५ फ़रवरी, १९५४ को बिहार के रोहतास ज़िले के नासरीगंज में हुआ था। इनका वास्तविक नाम 'अरुण कुमार' है, लेकिन लेखन के लिए अपनाया 'अरुण कमल' नाम उनकी विशेष पहचान बन गया। पहली पुस्तक 'अपनी केवल धार' से ही वे समकालीन कविता के एक महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में स्थापित हो गए।
सजग चेतना एवं संवेदनशीलता कवि को विशेष बनाती है। कवि अपने आस-पास होने वाले सुख-दुख, प्रेम-घृणा, दया-क्रोध, आशा-निराशा से भाव ग्रहण करता है, तो प्रकृति में होने वाले मनोरम एवं विकराल परिवर्तनों से भी प्रभावित होता है। समाज के उपेक्षित, श्रमिक तथा शोषित वर्ग को उनकी कविताओं में प्रमुख स्थान प्राप्त है। उनकी चर्चित रचनाओं में से एक 'धार' कविता, जो उन्होंने करीब २३-२४ की उम्र में लिखी थी, उनके कवि मन की पीड़ा को भली-भाँति प्रदर्शित करती है। 'धार' के विषय में उनका कहना है कि इसे व्यक्ति और समाज के संदर्भ में ऐसे देखा जा सकता है कि व्यक्ति सबसे अलग है, वह समाज से सब कुछ लेता है, लेकिन वह उसी समाज रूपी लोहे में कुछ नया जोड़ता है, एक नई धार पैदा करता है। इसी कविता को एक कवि के संदर्भ में दर्शाते हुए वे कहते हैं, "भाषा मेरी नहीं है, दूसरों ने गढ़ी है, सबकी है और एक कवि उसको लेता है, जो (भाषा) लोहा है और अगर वह वास्तव में कवि है, तो वह उसमें एक धार देता है…"
कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा.....
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे़ का
यह शरीर भी उनका बंधक
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार
समकालीन कविता का समय औद्योगीकरण एवं विकास के चरम का साक्षी रहा है। विकास की इस दौड़ ने पर्यावरण पर निरंतर आघात किए और प्रकृति के मूल तत्त्व- जल, थल और वायु को दूषित कर दिया। नदियों की प्राणधारा अपने जीवंत अस्तित्व के लिए मनुष्य की ओर ताक लगाए सूख रही है। इसी चिंतनीय परिवेश की व्यथा को अरुण कमल ने अपने काव्य में प्रतिबिंबित किया है। यद्यपि अरुण कमल की कविता में परिवर्तन और निरंतरता एक दूसरे के विस्तार के रूप में मौजूद हैं।
ईसा की बीसवीं शाताब्दी की अंतिम पीढ़ी के लिए
वे सारे युद्ध और तबाहियाँ
मेला उखड़ने के बाद का कचड़ा महामारियाँ
समुद्र में डूबता सबसे प्राचीन बंदरगाह
और टूट कर गिरता सर्वोच्च शिखर
सब हमारे लिए
पोलिथिन थैलियों पर जीवित गौवों का दूध हमारे लिए
शहद का छत्ता खाली
हमारे लिए वो हवा फेफड़े की अंतिम मस्तकहीन धड़
पूर्वजों के सारे रोग हमारे रक्त में
अरुण कमल की कविता सबकी ओर से बोलती है, जो जीवन के यथार्थ को ईमानदार संवेदना और तरल करुणा के साथ प्रस्तुत करती है। उनकी काव्य अभिव्यक्ति पाठक के अंतस को गहरे तक स्पर्श करती है। उनकी कविता में दार्शनिकता के साथ जीवन के मूलभूत प्रश्नों के प्रति गंभीर चिंतन का बोध होता है। उनकी कविताएँ लोकतंत्र के विकास और संघर्षशील मनुष्यों की अभिव्यक्ति हैं।
जब कभी देश के बारे में सोचता हूँ
अपने घर के बारे में सोचने लगता हूँ
जैसे मेरा घर है तो यहाँ जो भी है सबको
एक सा भोजन चाहिए और पानी और बिस्तर
अरुण कमल की कविता, मुक्ति के स्वप्न के महत्त्व को बख़ूबी समझती है। वे असमानता, शोषण, अन्याय एवं उपेक्षा से उत्पन्न बारीक मानवीय चीख को अपने सृजन में समुचित स्थान देते हैं। उनकी कविता धर्म, जाति और भाषा के नाम पर बँटे समाज में फँसे आम आदमी के जीवन को खुली आँखों से देखते हुए उसके भले की आकांक्षा रखती है। अरुण कमल जनसाधारण के दुखों, अभावों और निराशाओं को जीते हैं। उनकी कविता में उपस्थित यह भावनात्मक जुड़ाव पाठक को भी सहज ही उस संवेदना से जोड़ लेता है।
सबसे ज़रूरी सवाल यही है मेरे लिए कि
क्या हमारे बच्चों को भरपेट दूध मिल रहा है
क्या हर बीमार को वही इलाज जो देश के प्रधान को
सबसे ज़रूरी सवाल यही है मेरे लिए कि इतने लोग
भादों की रात में क्यों भीग रहे हैं
वे कहते हैं, "कविता, जिसकी हत्या हो रही है, उसकी पुकार है और जब तक कविता उस व्याधि को श्राप देती है तब तक कविता होती रहेगी। जैसे ही वह इससे डिगेगी, कविता संभव नहीं है। कविता को हमेशा जो सबसे कमज़ोर है, उसका पक्ष लेना चाहिए और हत्यारों का विरोध करना चाहिए।"
अरुण कमल की कविता, समाज में उपस्थित किसी भी प्रकार के अन्याय को उजागर करने का प्रयास करती है। अपने एक साक्षात्कार में वे कहते हैं कि "जिस देश में महाभारत लिखा गया, वहाँ उसके बाद रक्तपात होना ही नहीं चाहिए। अन्याय का देश में प्रबल विरोध होना चाहिए। अन्याय के विरोध का दूसरा नाम ही महाभारत है।"
अपनी कविता को अरुण कमल 'दीन की विनयपत्रिका' कहते हैं, तो यह उनकी विनम्रता है और वे इंगित करते हैं कि कविता के लिए पांडित्य से अधिक संवेदना की ज़रूरत है। इसलिए उनकी कविता में संवेदना, सतह की सरलता, भावों में अथाह गहराई है, न कि शिल्प के चमत्कार के लिए अति सजगता। भाषा में देशज शब्दों का माधुर्य उनकी कविता को लोकबद्धता प्रदान करता है। जैसे सूर्य की रश्मियाँ अनेक दिशाओं में जाती हैं, वैसे ही अरुण कमल की कविता हर दिशा में भिन्न रंगों के साथ फैलती है। उनकी कविता चिरंतन प्रश्नों पर कवि की सूक्ष्म दृष्टि और गंभीर चिंतन की ओर संकेत करती है।
कभी-कभी मैं उस वज्र की तरह लगना चाहता हूँ
जानना चाहता हूँ क्या कुछ चल रहा है उस मयूर
उस कुक्कुट की देह में इस ब्रह्म मुहूर्त में-
कभी-कभी मैं ताड़ का वो पेड़ होना चाहता हूँ
कभी कभी यह भी इच्छा होती है कि
सारे पशु पक्षियों वनस्पति में भटकता फिरूँ
अरूण कमल जी की कविता में पाठक को जीवन दर्शन और यथार्थ का सहज अनुभव मिलता है। अपनी प्रसिद्ध कविता 'नए इलाके में' में उन्होंने परिवर्तनशील आधुनिक समाज का वर्णन किया है। नए घरों के निर्माण, कटते वृक्षों और सुनसान रास्तों की जगह पनपती बस्तियों के कारण तेज़ी से बदलती दुनिया की कहानी कहती कविता, जिसका प्रमुख नायक है - अपने घर तथा उस तक पहुँचाने वाली डगर को खोजता, समय की तीव्र गति को महसूस करता एवं इस आशा के साथ अनजान रास्तों पर भटकता मानव, कि शायद कोई अपना स्वयं ही पहचानकर उसे पुकार ले।
यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसन्त का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे बैशाख का गया भादों को लौटा हूँ
अब यही उपाय कि हर दरवाज़ा खटखटाओ
और पूछो
क्या यही है वो घर?
'पुतली में संसार' नामक अपनी कविता के बारे में उनका कहना है कि वह महाभारत के दो प्रसंगों को जोड़कर बनी है। इसमें एक तो है अर्जुन की परीक्षा का प्रसंग, जिसमें चिड़िया की पुतली पर निशाना साधना है और दूसरा- द्रौपदी के स्वयंवर का, जिसमें नीचे रखे तेल के कुंड में देखते हुए ऊपर टँगी मछली की आँख बेधना है। इसमें कवि कहता है कि हम केवल पुतली न देखें, बल्कि जीवन के लिए उसमें समस्त संसार को देखें।
और मैं देखता हूँ तो मुझे केवल पुतली नहीं
पूरी आँख दिख रही है गुरुदेव......
मुझे तो देखना था बस आँख का गोला
और मैं इतना अधिक सब कुछ क्यों देख रहा हूँ, देव!
अरुण कमल जी एक सजग आलोचक के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। आलोचना पर इनकी दो पुस्तकें - 'कविता और समय' तथा 'गोलमेज' प्रकाशित हो चुकी हैं। आलोचना के संदर्भ में वे कहते हैं, "आलोचना पर लिखा जाए और कुछ भी आलोचना न की जाए तो शोभा नहीं देता। आलोचना तो पवित्र है, जिसके बिना कोई भी साहित्य भोज न आरंभ हो सकता है, न पूर्ण, न पवित्र।" अरुण जी कहना है कि पिछले दो-तीन दशकों से हिंदी में आलोचनात्मक प्रवृत्ति कम हो गई है, जो एक चिंता का विषय है। साथ ही समकालीन कविता में बड़ी संख्या में स्त्रियों के लेखन तथा दलितों की प्रतिभागिता के प्रति इन्होंने प्रसन्नता जताई है।
अरुण कमल जी ने समय-समय पर आलोचनात्मक निबंध भी लिखे हैं। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'आलोचना' के सहस्राब्दी अंक २१ (अप्रैल-जून, २००५) से ५१ (अक्टूबर-दिसंबर २०१३) के संपादन का दायित्व भी सँभाला। उन्होंने कुछ समय 'नवभारत टाइम्स' (पटना) के लिए 'जन-गण-मन' स्तंभ में सामयिक टिप्पणियाँ भी लिखीं तथा इंटरनेट पत्रिका 'लिटरेट वर्ल्ड' के लिए भी स्तंभ-लेखन किया।
मौलिक लेखन के अतिरिक्त अरुण कमल ने अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने किपलिंग की 'जंगल बुक' तथा वियतनामी कवि 'तो हू' की कविताओं-टिप्पणियों की एक अनुवाद पुस्तिका प्रकाशित की तथा 'मायकोव्स्की की आत्मकथा' का अनुवाद भी किया। इसके अतिरिक्त अरुण कमल जी द्वारा किए गए देश-विदेश के अनेक साहित्यकारों की कविताओं तथा लेखों के हिंदी अनुवाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। अरुण कमल 'प्रभात खबर' (राँची) में हर पखवाड़े 'अनुस्वार' नामक एक अनुवाद-स्तंभ लिखते रहे हैं।
अरुण कमल, साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद एवं सलाहकार समिति तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की कार्यसमिति के सदस्य भी रहे। अरुण कमल ने रूस, चीन तथा इंग्लैंड की साहित्यिक यात्राएँ कीं तथा अफ्रोएशियाई युवा लेखक सम्मेलन, ब्राजाविले, कांगो में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अरुण कमल जी के शब्दों में- "सबसे प्रिय कवि वह होता है, जिसकी ओर पाठक बार-बार लौटता है , वह पाठक के लिए घर की तरह होता है।" एक शक्तिशाली लेखनी के स्वामी तथा सहज-सरल भाषा में मनुष्य जीवन के कठिन-से-कठिन प्रश्नों को अपनी कविताओं के माध्यम से उठाने वाले महान कवि श्री अरुण कमल जी को हमारा नमन एवं शुभकामनाएँ।
अरुण कमल : जीवन परिचय |
जन्म | १५ फ़रवरी १९५४, नासरीगंज, ज़िला रोहतास, बिहार |
व्यवसाय | लेखन, आलोचक, अनुवादक, अध्यापन |
भाषा | हिंदी, अँग्रेज़ी |
कर्मभूमि | पटना, भारत |
साहित्यिक रचनाएँ |
कविता संग्रह | अपनी केवल धार (१९८०) सबूत (१९८९) नए इलाके में (१९९६) पुतली में संसार (२००४) मैं वो शंख महाशंख (२०१३) योगफल (२०१९)
|
आलोचना | कविता और समय (२००२) गोलमेज़ (२००९)
|
साक्षात्कार | |
पुरस्कार व सम्मान |
भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (१९८०) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (१९८९) श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९०) रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९६) शमशेर सम्मान (१९९७) साहित्य अकादमी पुरस्कार -'नए इलाके में' के लिए (१९९८)
|
संदर्भ
विकिपीडिया
'योगफल' वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
लिटरेचर इन इंडिया : परिचय हिंदी साहित्य
अरुण कमल : कविता कोश
अरुण कमल का जीवन परिचय : हिंदवी
समकालीन कविता : iasbook.com
https://sahityakunj.net/entries/view/arun-kamal-ki-aalochana-drishthi
राजपाल एंड संस- मेरे लेखक मेरे सवाल
लेखक परिचय
डॉ० विश्व दीपक बमोला 'दीपक'
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा वैज्ञानिक के रूप में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संसथान (एम्स), नई दिल्ली, भारत में कार्यरत।
विज्ञान एवं साहित्य में रुचि एवं लेखन।
बहुत ही अच्छा आलेख जानकारियों से भरा
ReplyDeleteदीपक जी, अरुण कमल जी की कविताओं के सार, उनके कार्यक्षेत्र और उन्हें जानने का अच्छा स्रोत है आपका आलेख। मनुष्य और मानवता को सर्वोपरि रखने वाले, संवेदना को पांडित्य पर वरीयता देने वाले, सरल शब्दों में गूढ़ बात कहने वाले अरुण कमल जी के प्रति आपने खासी रूचि पैदा कर दी है। आपको इस लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई और आभार।
ReplyDeleteआधुनिक हिंदी कविता के संवेदनशील कवि आदरणीय अरुण कमल जी प्रगतिशील और यथार्थवादी रचनाकार है। उनके साहित्य परिवेश में सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताओं से ग्रस्त जान सामान्य की पीड़ा को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता है। उन्होंने कवि जीवन को नयी ताजगी के साथ कुछ अछूते प्रसंगो से उदघाटित किया है। आदरणीय दीपक जी का आलेख भी अरुण कमलजी के व्यक्तित्व और साहित्यिक कृतित्व को नई ऊर्जा तथा नयी गतिविधियों के साथ प्रस्तुत कर रहा है। आपका आलेख अरुण जी के रचनाओं का यथार्थ रंग और उनके वैयक्तिकता को जोडने का भरसक प्रयास कर रहा है। अरुणजी का साहित्यिक सत्य से परिचित कराता समूचा आलेख बड़ी खूबसूरती के साथ सहज और सरल शब्दों में रचा गया है। आलेख प्रस्तुति के लिए आपका आभार और अनगिनत शुभकामनाएं आपके लेखनश्रम को।
ReplyDelete'उस हर बात में राजनीति हैं ...जहाँ दो में से एक को चुनना पड़े!'
ReplyDeleteसमकालीन कवियों में एक अलग पहचान रखने वाले संवेदनशील कवि अरुण कमल जी को, दीपक जी के इस लेख के माध्यम से और करीब से जानने का हमें अवसर मिला है। प्रस्तुत लेख में दीपक जी ने जो कवितांश कोट किये हैं, वह सभी इस बात की पुख्ता कर रहें कि अरुण कमल जी की कविताएँ मौजूदा समय से मुठभेड़ करती हैं, व्यवस्था से सवाल करती हैं और विसंगतियों की पड़ताल करती हैं। एक समृद्ध और समग्र लेख के लिए दीपक जी को बहुत बहुत बधाई।
सुंदर आलेख
ReplyDelete👌👌🙏🙏
दीपक जी, आपके अरुण कमल जी पर आलेख से बहुत सारी नई जानकारी मिली है। कितनी अच्छी बात कही है अरुण कमल जी ने - “सबसे प्रिय कवि वह होता है जिसकी ओर पाठक बार-बार लौटता है, वह पाठक के लिए घर की तरह होता है”। दीपक जी, आपको बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDeleteदीपक जी सच कहूँ तो यह लेख पढ़ने का समय बहुत ही खींच कर निकाला क्योंकि यह आपका लेख है। आप हमारे सभी लेख पढ़ते हैं, नियमित पहले दिन से समूह और ब्लॉग पर टिप्पणी देते हैं, और हमारे त्वरित संपादक भी हैं! शुक्रिया इन सब बातों के लिए!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख है।और चूँकि आप विज्ञान से हैं तो आपने जिस पर्यावरण कविता का चयन किया है उसके पोर-पोर से विज्ञान टपक रहा है! जो यह जानता है कि मधुमक्खी के extinction के चार बरस के अंदर-अंदर मनुष्य extinct हो जाएगा, जिसने Venice देखा, समझा है, एवरेस्ट के ग्लेशियर समझे हैं उसके लिए उस छोटे कवितांश में ही इतना माल-मत्ता है कि वह वहीं उलझा रहे!
अरुण जी के कृतित्व से मेरा परिचय उनकी मशहूर कविता ‘खुशबू रचते हैं हाथ’ से हुआ था।
मुझे उनकी कविताओं में सदा विज्ञान, पर्यावरण और सामाजिक जीवन एक दूसरे से गले मिलता दिखाई दिया! आपने उनकी लेखकीय दृष्टि को बहुत ख़ूबसूरती से उकेरा है! शुक्रिया 🙏🏻
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसमकालीन कविता को नव तेज व ऊष्मा से भरने वाले अपने समाज व जन से जुड़े कवि को कुछ और समझने का अवसर दिया आपके आलेख ने। आभार व बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको दीपक जी।
ReplyDeleteदीपक जी, कल व्यस्त होने के कारण आपका लेख नहीं पढ़ा था। आज सुबह पढ़ा । बहुत सुंदर लिखा है आपने । अरुण कमल जी के काव्य को आपने बहुत गहराई से समझा भी है और सुंदर भाषा में विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है। हमें यह बढ़िया , जानकारीपूर्ण आलेख देने के लिये आपको धन्यवाद। बधाई। 💐💐
ReplyDeleteअपने प्रिय कवि पर यह प्रिय जानकारी !
ReplyDeleteआभार दीपक जी.
बहुत ही रुचिकर जानकारी पूर्ण आलेख
कवि को अधिकाधिक जानना संभव हुआ
कृतज्ञता !
यह अरुण कमल जी की टिप्पणी रूस से इंद्रजीत सिंह जी की मार्फत:
ReplyDeleteअरुण कमल जी का संदेश डॉक्टर दीपक जी नमस्कार l आपका लेख मैंने आदरणीय अरुण कमल जी को भेजा था उनका जवाब आपके लिए --"डॉ दीपक का लेख पढ़कर मैं अपनी ही नज़रों में ऊँचा उठ गया ।दीपक जी की सेन्सिबिलिटि और भाषा कम लोगों के पास है,आलोचकों के पास भी नहीं।उन्होंने इतनी मेहनत और अध्ययन से यह सुंदर लेख तैयार किया है।वे केवल शरीर के नहीं,आत्मा के भी डॉक्टर हैं।दिल्ली जाने पर उनसे मुलाक़ात करूँगा।मैं उनकी भी कविताएँ पढ़ना चाहूँगा ।
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो मेरे बारे में इतनी मोहब्बत से सोचा और यह लेख मुझे भेजा। शुभकामना "