Tuesday, May 24, 2022

श्रीमद्भागवत के रचनाकार व्यास के अवतार : महाकवि जयदेव


 



जयदेव संस्कृत कवियों में अंतिम श्रेष्ठ, वैष्णव भक्त और संत माने जाने वाले महाकवि थे। जयदेव की ख्याति का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने संस्कृत में एक काव्य ग्रंथ 'गीतगोविन्द' लिखा और उसी की कीर्ति से वे अमर हो गए। केवल एक काव्य ग्रंथ लिखकर इतनी ख्याति पाने वाले कवि संस्कृत तो क्या अन्य भाषाओं के साहित्य के इतिहास में भी ढूँढ़ना दुर्लभ है।

भक्त-कवि जयदेव का जन्म भुवनेश्वर के पास स्थित केन्दुबिल्व नामक ग्राम में १२-वीं शताब्दी के आस पास हुआ था। बंगाल में उस समय सेन वंश के राजा लक्ष्मण सिंह का राज्य था। कवि जयदेव के पिता का नाम भोजदेव और माता का नाम वामा देवी था। इनके बाल्यकाल में ही माता-पिता की मृत्यु हो गयी थी। ये भजन गा कर अपना जीवन निर्वाह करते थे। इनके संस्कार ऐसे रहे कि कष्ट में रहकर भी अच्छा विद्याभ्यास कर लिया था।

उनके विवाह की कहानी अत्यंत रोचक है। कहा जाता है, पद्मावती नाम की नर्तकी के पिता को भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में आकर कहा कि पद्मावती का विवाह जयदेव से कर दो। उन्होंने देव कृपा समझ अपनी कन्या का विवाह जयदेव से करा दिया। पद्मावती धार्मिक विचारों की स्त्री थी, इसलिए दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा। दोनों के बीच अनन्य प्रेम था। जयदेव को काव्य रचना की प्रेरणा पद्मावती से मिली। विवाह के बाद जयदेव कृष्ण जन्म स्थल ब्रज, वृंदावन, गोकुल, मथुरा और द्वारिका देखने गए। वहाँ कृष्ण का रास विहार, वृंदावन के लता-वृक्ष, कुंज गलियाँ तथा जमुना तट देख मंत्र-मुग्ध हो गए। बाद में वृंदावन की यही झाँकी उन्होंने अपने काव्य ग्रन्थ गीतगोविन्द में उतारी।

संस्कृत कवि जयदेव की संसार से विरक्ति भी एक दुःखद कहानी है। वे राजा लक्ष्मण सेन के दरबारी कवि थे। राजा और रानी दोनों ही उनका सम्मान करते थे। एक बार जब जयदेव बाहर गए हुए थे, तब रानी ने विनोद में पद्मावती से कहा कि जयदेव तो इस संसार में नहीं रहे। यह ख़बर सुनकर पद्मावती को इतना अधिक दु:ख हुआ कि उसने अपने प्राण त्याग दिए। जयदेव को लौटने पर जब यह मालूम चला, तो वे दुःखी होकर, राज दरबार त्याग कर अपने गाँव में जा बसे और जीवन के बाकी दिन अपने इसी गाँव में अकेलेपन में बिताए। उनकी मृत्यु के बाद केन्दुबिल्व में कई शताब्दियों तक उनके जन्मदिन पर हर साल उत्सव में रात के समय जयदेव कृत गीत बड़ी श्रद्धा से गाए जाते थे ।

गीतगोविन्द - श्रीमद्भागवत के बाद राधा-कृष्ण लीला की अद्भुत साहित्यिक रचना जयदेव के काव्य ग्रंथ गीतगोविन्द को माना गया है। इसी दिव्य रस के स्वरूप राधाकृष्ण की रमण लीला का स्तवन कर जयदेव आत्म शांति की सिद्धि को उपलब्ध हुए। जब जयदेव जगन्नाथ जी के दर्शन करने पुरी जा रहे थे, तब उन्हें अपने अनूठे ग्रंथ गीतगोविंद की रचना की प्रेरणा मिली। इसके जैसा प्रेम-काव्य भारत की और किसी भाषा में नहीं है। कृष्ण और राधा के जिस प्रेम का चित्रण जयदेव ने इस ग्रन्थ में किया है, वह सांसारिक नहीं, उदात्त आध्यात्मिक प्रेम है। जयदेव के गीतगोविंद से बाद के कवि भी प्रभावित हुए, जिनमें विद्यापति और चंडीदास प्रमुख हैं।आगे चलकर विद्यापति को 'अभिनव जयदेव’ की उपाधि भी दी गयी। जयदेव के गीतगोविन्द के पद वैसे तो सारे भारत में प्रसिद्ध हुए, लेकिन दक्षिण भारत में वे विशेषरूप से लोकप्रिय हुए हैं।

गीतगोविन्द की साहित्यिक विशेषताएँ - गीतगोविन्द की रचना विशेष तौर पर भगवान जगन्नाथ के रात्रि पूजन के दौरान किए जाने वाले नृत्य प्रस्तुति के लिए की गई थी, इसलिए इसकी रचना इस दक्षता के साथ की गई कि इसे नृत्य कलाकारों के पैरों की ताल के साथ गाया जा सके। काव्य के अन्त में कवि ने कहा है कि इस काव्य की रचना भगवान विष्णु की भक्ति के एक माध्यम के रूप में की गई है और इसे कृष्ण में लीन कवि जयदेव पंडित द्वारा श्रृंगार रस के आवरण में लपेट दिया गया है। यह काव्य इतना लोकप्रिय हुआ कि एक शताब्दी से भी कम समय में ही सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसे नृत्य, संगीत, चित्रकला की विधाओं में ढालने के साथ-साथ मंदिरों की पूजन प्रक्रिया में भी इसका व्यवहार किया जाने लगा।

इस गीतिकाव्य का भारतीय भाषाओं के अलावा बहुत-सी विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका है। इनमें लैटिन, अँग्रेज़ी, जर्मन और रूसी प्रमुख हैं। गीतगोविन्द में श्रीकृष्ण की गोपियों के साथ रासलीला, राधा-विषाद वर्णन, कृष्ण के लिए व्याकुलता, कृष्ण की राधा के लिए उत्कंठा, राधा की सखी द्वारा राधा के विरह संताप का वर्णन है।

राजा लक्ष्मण सेन के एक शिलालेख पर १११६ की तिथि लिखी हुई है, जिससे यह अंदाज़ लगाया जाता है कि जयदेव ने इसी समय में गीतगोविन्द की रचना की होगी। यह गीतिकाव्य साहित्य जगत की एक अनोखी कृति है। इसकी मनोरम रचना शैली एवं भाव प्रवाहिता पाठकों को प्रभावित करती है। अतः डॉ ए. बी. कीथ ने अपनी पुस्तक 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' में इसे 'अप्रतिम काव्य' माना है ।

सन् १७८४ में विलियम जोन्स द्वारा लिखित 'ऑन द म्यूजिकल मोड्स ऑफ द हिन्दूज़ ' पुस्तक में गीतगोविन्द को ‘पास्टोरल ड्रामा’ अर्थात् ‘गोपनाट्य’ माना गया है । सन् १८३७ में फ्रेंच विद्वान् एडविन आरनोल्ड तार्सन ने इसे 'लिरिकल ड्रामा’ कहा है । वान श्रोडर ने 'यात्रा प्रबन्ध' तथा पिशाल लेवी ए. ने 'मेलो ड्रामा' कहा है।एन्साइक्लोपिडिया ब्रिटानिका में गीतगोविन्द को 'धर्मनाटक' कहा गया है। जर्मन कवि गेटे ने अभिज्ञानशाकुन्तलम् और मेघदूतम् के समान ही गीतगोविन्द की प्रशंसा की है ।

यह २४ प्रबन्ध (१२ सर्ग ) तथा ७२ श्लोकों से समाद्रित है, किन्तु नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित 'हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थ गीतगोविन्द का १३-वाँ सर्ग भी उपलब्ध है। गीतगोविन्द वैष्णव सम्प्रदाय में अत्यधिक आदृत है। अतः १३वीं शताब्दी के मध्य से ही श्री जगन्नाथ मन्दिर में इसे नित्य सेवा के रूप में अंगीकार किया जाता रहा है ।

शृंगार रस वर्णन में जयदेव कालिदास की परम्परा में आते हैं। जयदेव ने स्वयं १२ वें सर्ग में लिखा है-

“यद्गान्धर्वकलासु कौशलमनुध्यानं च यद्वैष्णवं यच्छृंगारविवेक तत्त्वरचना काव्येषु लीलायितम्। तत्सर्वं जयदेव पण्डितकवेः कृष्णैकतानात्मनः सानन्दाः परिशोधयन्तु सुधियः श्रीगीतगोविन्दतः ॥१० ॥”

गीतगोविन्द के अर्थ माधुर्य के लिए इस पद्य का अवलोकन पर्याप्त होगा -

दृशौ तव मदालसे वदनमिन्दुसंदीपकं गतिर्जमनोरमा विजितरम्भमूरूद्वयम् । रतिस्तव कलावती रूचिर - चित्रलेखे ध्रुवा वहो विबुधयौवतं वहसि तन्वि ! पृथ्वीगता ।।

संस्कृत के इस गीतिकाव्य का भाव-सौष्ठव भी बड़ा चित्ताकर्षक है। विरहिणी राधिका के वर्णन मे कवि की यह उक्ति कितनी अनूठी है-

वहति च वलित विलोचनजलभरमाननकमलमुदारम्।विधुमिव विकटविधुन्तुददन्तदलन गलितामृतधारम् ।।

महाप्रभु चैतन्यदेव गीतगोविन्द की माधुरी के परम उपासक थे। उनके शिष्य प्रतापरूद्रदेव ने उड़ीसा के अनेक मन्दिरों में इसके नियमित गायन के लिए भूमिदान की व्यवस्था की थी।

केवल भारतीय भाषाओँ में इसके २०० से अधिक अनुवाद हुए हैं। हिन्दी के भीष्म पितामह भारतेंदु ने १८७७ – १८७८ के बीच ‘गीत- गोविन्दानंद’ शीर्षक से इसका अनुवाद किया था। शब्द और स्वर की इस महाकृति को इस लिए भी जाना जाता है कि इसमें पहली बार राधा अपने पूरे व्यक्तित्व के साथ उपस्थित होती है।

इसका पहला अँग्रेज़ी अनुवाद वर्ष १७९२ में सर विलियम जोन्स द्वारा प्रकाशित किया गया था। जयदेव पर अब तक लगभग १२ स्मारक डाक टिकट जारी हो चुके हैं। गीतगोविन्द और संगीत कला -जयदेव वर्तमान भारत के गीतकार थे। इन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम के साथ-साथ कर्नाटक संगीत को भी प्रभावित किया। जयदेव को व्यापक रूप से ओडिसी संगीत के शुरूआती संगीतकारों में से एक माना जाता है। ऐसा शिलालेखों में दर्ज किया गया था।

जयदेव का हिंदू धर्म की प्रथाओं पर गहरा प्रभाव पड़ा है। बांसुरी बजाने वाले कृष्ण की क्लासिक त्रिभंगी मुद्रा ने उनके कारण लोकप्रियता हासिल की। गीतगोविन्द में दशावतार वर्णन में बुद्ध को विष्णु का अवतार बताया। जयदेव की रचना को सिख समुदाय के प्रमुख धर्मग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में शामिल किया गया है । गीतगोविन्द और ललित कला - १६ वीं शताब्दी के अंत तक एक चित्रकार के विषय के रूप में जयदेव उभरे थे। सबसे पहले बनाई गई ‘गीता गोविंदा’ पेंटिंग मेवाड़ की १५९० और १८०० ईस्वी के बीच की है। जयदेव द्वारा रचित पारंपरिक लोकप्रिय विषयों में से एक है - उड़ीसा की पट्टचित्र शैली।

रतिमञ्जरी - यह कवि जयदेव की ६० श्लोकों में निबद्ध एक लघुकाय रचना है। ज्ञानदर्शन की दृष्टि से कवि ने इसमें कामशास्त्र के अत्यावश्यक तत्त्वों का उत्तम विवेचन करने की चेष्टा की है ।

*सिक या पुरवासियों के मनहरण जो हैं कहाते।*
*उन सदाशिव देव की कर वन्दना जो हैं सुहाते ।।*
*लिख रहे जयदेव कवि हैं आज यह सुन्दर कहानी।*
*नाम है रतिमञ्जरी सुख से समझ सकते सुवानी।*

लेखक नाभादास ने ब्रजभाषा में जयदेव की प्रशंसा करते हुए लिखा है- कवि जयदेव कवियों में सम्राट हैं। जबकि अन्य कवि छोटे राज्यों के शासकों के समान हैं। तीनों लोकों में उनके 'गीतगोविन्द' की आभा फैल रही है। यह रचना काम-विज्ञान,काव्य, नवरस तथा प्रेम की आनंदमयी कला का भंडार है। जो उनके अष्टपदों का अध्ययन करता है, उसकी बुद्धि की वृद्धि होती है, राधा के प्रेमी कृष्ण उन्हें सुनकर प्रसन्न होते हैं और अवश्य ही उस स्थान पर आते हैं, जहाँ ये गीत गाए जाते हैं।


                                  जयदेव : जीवन परिचय

जन्म

१२-वीं सदी, केन्दुबिल्व, भुवनेश्वर, भारत 

माता

वामा देवी

पिता 

भोजदेव

पत्नी 

पद्मावती 

व्यवसाय 

कवि 

भाषा 

संस्कृत 

रचनाएँ 

गीतगोविन्द, रति मंजरी 

प्रसिद्धि

  • लक्ष्मण सेन के दरबारी कवि

  • विशेष - संत महीपति ने भक्ति विजय में व्यास का अवतार कहा

संदर्भ

  • bharatdiscovery.org
  • hi.krishnakosh.org
  • जयदेव- यूनियन पीडिया
  • जयदेव 'गीतगोविन्द' और 'रति मंजरी'- study search point
  • जयदेव इतिहास - hmoob.in
  • भारतकोश

लेखक परिचय

मीनाक्षी कुमावत मीरा

एम०ए०, बी०एड०, नेट ( हिंदी साहित्य)
राजकीय विद्यालय में अध्यापन कार्य
कृतियाँ - गुरु आराधना वली ( भजन संग्रह), विश्व हाइकु कोश,आग़ाज़ ग़ज़ल संग्रह के साथ १५ अन्य सांझा संकलन
KKP कविता की पाठशाला में, साहित्यकार तिथिवार समूह और अन्य साहित्यिक समूह में लेखन कार्य में साझेदारी

16 comments:

  1. मीनाक्षी जी, आपने महाकवि जयदेव पर एक अच्छा और शोधपरक लेख प्रस्तुत किया है। आपने उनके काव्य-ग्रन्थ गीतगोविन्द की विभिन्न पहलुओं से व्याख्या देकर उसकी एक समग्र छवि प्रस्तुत की है। इस सुन्दर आलेख के लिए आपको आभार और बधाई।

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    1. बहुत बहुत आभार मेम, मुझे अब लगा कि मैंने जयदेव विषय का सही चुनाव किया। आपका उत्साह वर्धन मेरे लिए प्रेरणादायी। नमस्कार

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  2. एक काव्यग्रंथ - गीतगोविंद और उसके इतने सारे रूप।
    बहुत ही अद्भुत और अतिरोमांचित जानकारी आपके आलेख से मिली है। कवियों के सम्राट महाकवि जयदेव जी संस्कृत कवियों में अंतिम कवि थे जिनकी इतिहास के पृष्ठों में पारस समान समायोजित करने वाली कृति है। आदरणीया मीनाक्षी जी आपने महाकवि जयदेव जी की साहित्यिक रचना की वृस्तित और अतिउत्कृष्ट जानकारी दे कर लेख के साथ पूरा पूरा न्याय किया है। इस खूबसूरत और आत्म व्याख्यात्मक लेखन के लिए आपका आभार और अनंत शुभकामनाएं।

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  3. बहुत शुक्रिया सर आपने बारीकी से आलेख पढ़ा और संबलन दिया।सुंदर समीक्षा

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  4. मीनाक्षी जी, महाकवि जयदेव जी आपने बहुत शोधपरक लेख प्रस्तुत किया है। महाग्रंथ गीतगोविन्द की साहित्यिक विशेषताओं को आपने इस आलेख में समग्रता के साथ, सन्दर्भ-दर-सन्दर्भ उल्लेखित किया है, जिसने हम पाठक को जयदेव जी के रचना संसार को जानने का अवसर दिया। इस सारगर्भित और
    माधुर्य से परिपूर्ण, समृद्ध लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।

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    1. प्रणाम दीदी, आपका मार्गदर्शन और स्नेह मेरी ऊर्जा है। मुझे खुशी कि आप जैसे मित्रों के साथ मैं सीख रही हूँ। आपके आशीर्वचन से मन खुश हो गया। आभार हृदय से।

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  5. मीनाक्षी जी, मध्यकालीन भक्ति कवि जयदेव जी के व्यक्तित्व और उनकी काव्य-यात्रा का क्या समृद्ध खाका खींचा है आपने! लेख पर आईं टिप्पणियों ने लेख को और समृद्ध एवं रोचक बना दिया। आपको इस महत्त्वपूर्ण आलेख के लिए हार्दिक बधाई और भावी लेखन के लिए शुभकामनाएँ।

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    1. नमस्कार मेम,आपके संपादन की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही।आपके सहयोग और सुंदर समीक्षा के लिए हार्दिक आभार।

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  6. मीनाक्षी जी नमस्ते। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिए बहुत बहुत बधाई। आपके लेख के माध्यम से महाकवि जयदेव के जीवन एवं साहित्य को जानने का अवसर मिला। आपने बहुत व्यवस्थित ढँग से सीमित शब्दों में यह शोधपरक लेख लिखा। बधाई।

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    1. नमस्कार सर..बहुत आभार सर आपकी समीक्षा के लिए।

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  7. हार्दिक बधाई, मीनाक्षी जी, गीत गोविंद के रचनाकार महाकवि जयदेव के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त हुई। संस्कृत पद्यों का हिंदी अर्थ भी दिया होता तो आनंद मिलता।

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  8. नमस्कार, जी सर आलेख शब्द सीमा पार कर रहा था इसलिए मुझे संक्षिप्त करना पड़ा। इसके लिए क्षमा। बहुत आभार

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  9. प्रिय मीनाक्षी आपका आलेख पढ़ा।
    संस्कृत के महाकवि और काव्यग्रंथ ‘गीत गोविन्द’ के रचयिता ,
    जयदेव पर आपने गहन शोध कर यह आलेख प्रस्तुत किया है।

    इस आलेख में उनका जीवन परिचय, गीत गोविन्द की साहित्यिक विशेषता और रति मंज़िरी, पर आपने विस्तृत जानकारी प्रदान की।
    बेहद रोचक, ज्ञानवर्धक और तथ्यों से पूर्ण सामग्री एकत्रित कर पाठकों को कृष्ण भक्त जयदेव से परिचय करवाने हेतु आभार, अभिनंदन और साधुवाद!🌹🌹💐💐

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    1. बहुत आभार दीदी, आपका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मेरा उत्साह बढ़ाता है आभार स्नेह पूर्ण टिप्पणी के लिए। नमस्कार

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  10. आपने कमाल की रिसर्च की है ।प्रस्तुत लेख ना सिर्फ एक महाकवि के बारे में बताता है बल्कि और भी बहुत सारी जानकारियां इसमें है जो बहुत काम की हैं।आपके लेख की प्रशंसा करने में मेरे शब्द छोटे पड़ेंगे लेकिन फिर भी यही कहूंगा कि यह 'गागर में सागर ' की तरह है। आपका बहुत बहुत अभिनन्दन एवम् इतने अच्छे लेख को लिखने के लिए बधाई।💐💐💐💐💐💐💐

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