Tuesday, May 17, 2022

बाल साहित्य के जुगनू "बाल स्वरुप राही"

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चंदा मामा, कहो तुम्हारी शान पुरानी कहाँ गई,
कात रही थी बैठी चरखा, बुढ़िया नानी कहाँ गई?
सूरज से रौशनी चुराकर चाहे जितनी भी लाओ,
हमें तुम्हारी चाल पता है, अब मत हमको बहकाओ
है उधार की चमक-दमक, यह नकली शान निराली है,
समझ गए हम चंदा मामा, रूप तुम्हारा जाली है।
चंदा मामा के इस गीत को लोगों ने इतना प्यार दिया कि इसे बाल कविता में युगांतकारी मोड़ के रूप में याद किया जाने लगा। पुराने को नए आकार में ढाल दे, हँसी-हँसी में बच्चों को कुछ ऐसा सीखा दे जो बालमन पर अमिट छाप छोड़ दे, बच्चों के मन को सहेज भी ले और बड़ी सहजता से सही दिशा की ओर अग्रसर भी कर दे, ऐसी बाल कविताओं से बच्चों के मन को मोहने वाले राही जी का जन्म १६ मई १९३६ को नई दिल्ली के तिमारपुर गाँव में हुआ, इनका पूरा नाम बालस्वरुप राही है, फिलहाल वे दिल्ली के मॉडल टाउन में रहते हुए रचना संसार में कार्यरत हैं। उनके पिता का नाम श्री देवीदयाल भटनागर है। उनकी पत्नी का नाम श्रीमती पुष्पा राही है। वे भी उच्च कोटि की लेखिका हैं। राही जी दिल्ली के विश्वविद्यालय में बतौर प्रमुख शिक्षक रहे हैं। 
राही जी की रचनाओं में एक विशेष प्रकार की रूमानियत, दर्दमंदी और बेबाकी देखने को मिलती है और हिंदी व उर्दू से गहरा और अटूट संबंध भी। वे बच्चों के मन के धरातल में प्रवेश कर उनकी भावनाओं को समझते हैं। यही कारण है कि उनकी कविताओं में संदेश होने के बावजूद रोचकता की कमी नहीं होती। बच्चे इन गीतों को गा-गाकर बड़े हुए हैं और किशोरावस्था में प्रवेश करके भी उन्हें गाने से नहीं हिचकते।  
राही जी हिंदी जगत के प्रख्यात गीतकार, गज़लकार, शायर, बाल साहित्य व आधुनिक गीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं। बचपन में भाइयों को अंत्याक्षरी खेलते देख वे बाल कविताओं की तुकबंदी करने लगे। पत्रकारिता में आए तो जब कभी बाल कविता के लिए कोई लेखक नहीं मिलता था, पल भर में वे कविता तैयार कर देते थे। 'जगुनू भैया कहाँ चले', कविता पर मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग ने पूरी किताब तैयार की है। उनका कहना है कि विदेशी बाल कविताओं के नाम पर ट्विंकल-ट्विंकल सरीखी इक्की-दुक्की कविताएँ ही हैं, यह केवल एक मिथक है कि हिंदी भाषा का बाल साहित्य उतना समृद्ध नहीं है। 
कवि-गोष्ठियों, कवि-सम्मेलनों आदि में राही जी की सक्रिय भागीदारी रही। रेडियो, टी०वी० में अनेक कार्यक्रम दिए, दूरदर्शन द्वारा कवि पर वृत्तचित्र प्रसारण हुआ, आकाशवाणी के सर्वभाषा कवि-सम्मेलन में हिंदी का प्रचार और एकल काव्य पाठ भी किया। गीत-संगीत व नाटक विभाग के अनेक ध्वनि-प्रकाश कार्यक्रमों के लिए आलेख तथा गीत लिखे। धारावाहिकों की पटकथा भी लिखी। साथ ही संसदीय कार्य मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे।
बालस्वरूप राही का कहना है कि भले ही उन्होंने कविताएँ बच्चों के प्रेम में, उनकी प्रेरणा से लिखी और किसी सम्मान की चाह नहीं, लेकिन सम्मान मिलता है तो अच्छा लगता है। किसी भी क्षेत्र में योगदान के लिए सम्मान दिया जाता है और योगदान देने वालों को उसकी इच्छा ज़रूर होती है।
साहित्यिक सफर
हिंदी में एम०ए० कर पत्रकारिता से जुड़े और साप्ताहिक हिंदुस्तान (१९६०-१९७८) के सह संपादक बने। अँग्रेज़ी में "प्रोब इंडिया" के परिकल्पनाकार और पहले संपादक बने। बहु चर्चित "सरिता" में कुछ वक्त कार्य किया।  
साहित्यिक पत्रकारिता और संपादन के क्षेत्र में अपनी ख़ास पहचान बनाते हुए उन्होंने कविता को जनोन्मुख बनाया। राही जी हिंदी के चर्चित गीतकार हैं। इनकी काव्य चेतना इतनी व्यापक है, जिसमें व्यक्ति और राष्ट्र दोनों समाहित है। 
देश की दुर्दशा निहारोगे 
डूबते को कभी उबारोगे 
कुछ करोगे कि बस सदा रोकर 
दीन हो देव को पुकारोगे 
'काला अक्षर, भैंस बराबर' पुस्तक है, जिसमें कि उन्होंने लोकोक्तियों और मुहावरों को कहानियों के माध्यम से समझाया है। वे कहते हैं कि उन्होंने कविता कभी यश पाने के लिए नहीं लिखी, बल्कि बच्चों से लगाव की वजह से लिखी है।
'ढीठ कंप्युटर की हरकत देखिए, छीन ली बच्चों के हाथों से किताब..।' बच्चों का किताबों की ओर रुझान कम होते देख अपनी व्यथा इन किताबों के माध्यम से राही जी ने व्यक्त की है, उन्होंने कहा कि "बच्चे कंप्यूटर और फेसबुक पर समय देते हैं। उन्हें फिर से साहित्य से जुड़ने की जरूरत है। लेखक बहुत हैं, बस ज़रूरत है तो बाल साहित्य के लेखन में रोचकता और सहजता लाने की, साथ ही कंप्यूटर से इतर एक रास्ता निकालने की।"  फिर भी वे मानते हैं कि इंटरनेट के बहुत फायदे हैं। कवि और उनकी रचनाऍं दूर तक पहुँच रही हैं। 
दिविक रमेश उनके साथ के दिनों की मीठी स्मृतियाँ व्यक्त करते हुए उनके बारे में लिखते हैं, "उन्होंने शिशु गीत भी लिखे हैं और ऐसी कविताएँ भी, जिन्हें किशोर अपनी कह सकते हैं। पूरी मस्ती के लेखक हैं बालस्वरूप राही जी, राही के यहाँ परी, पेड़, चिड़िया, जानवर, कीट, चाँद, सूरज, बादल, आकाश, गंगा आदि भी हैं तो बच्चों की शरारतें, उनका नटखटपन और उनकी हरकतें भी हैं। उनके यहाँ नानी, माँ, पिता आदि संबंधों की खुशबू भी है तो इंडिया गेट, कुतुबमीनार आदि इमारतों एवं लाल बहादुर शास्त्री, न्यूटन आदि महापुरुषों की भव्यता भी। उनके यहाँ होली-दिवाली भी है, तो गुब्बारे और जोकर भी। उनके यहाँ जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता है, तो जानकारी भी। उनके यहाँ रचनात्मकता भी है तो संवाद शैली भी। कहीं-कहीं तो उनकी शब्द-सजगता चौंकाने की हद तक आनंद देती है, तो कहीं ध्वन्यात्मक प्रयोगों की रुनझुन महसूस करते ही बनती है।" 
तो आइए उनकी कुछ बाल कविताओं का लुत्फ़ उठाते हैं,
पापा जी की कार बड़ी है
नन्हीं-मुन्नी मेरी कार।
टाँय टाँय फिस उनकी गाड़ी,
मेरी कार धमाकेदार।
उनकी कार धुआँ फैलाती
एक रोज़ होगा चालान,
मेरी कार साफ-सुथरी है
सब करते इसका गुणगान।

गाँधीजी के बंदर तीन,
सीख हमें देते अनमोल।
बुरा दिखे तो दो मत ध्यान,
बुरी बात पर दो मत कान,
कभी न बोलो कड़वे बोल।
याद रखोगे यदि यह बात,
कभी नहीं खाओगे मात,
कभी न होगे डाँवाडोल।
गाँधीजी के बंदर तीन,
सीख हमें देते अनमोल।
राही जी की कविताएँ एक अच्छे दोस्त की तरह बच्चों का हाथ पकड़कर एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जिसमें बड़ों की डाँट-डपट और "यह करो, वह न करो" से मुक्त एक ऐसा मनोरम संसार है, जिसमें प्रकृति के एक से एक सुंदर नज़ारे हैं और आनंद के झरने बहते हैं, पर इसके साथ ही राही जी अपनी कविताओं में अनायास ही एक ऐसा प्रीतिकर संदेश भी गूँथ देते हैं, जो बच्चों के दिल में उतर जाता है और उन्हें सुंदर भावनाओं और संकल्पों वाला एक बेहतर इंसान बनाता है।
नई पीढ़ी के बच्चों को अभिव्यक्ति की आज़ादी चाहिए, इस सत्य का अनुभव राही जी की कविता 'मेंहदी' में बखूबी मिलता है,
सादिक जी पहुँचे भोपाल
लाए मेंहदी किया कमाल।
पापा ने रंग डाले बाल,
मेंहदी निकली बेहद लाल
बुरा हुआ पापा का हाल,
महंगा पड़ा मुफ्त का माल।
अगर ज़रा बैठे हों दूर
पापा लगते हैं लंगूर।
राही जी की जिस कविता को पढ़ो उसी में ख़ास संदेश और रोचकता होती है। जितने भी उदाहरण दूँ, कम होगा।
भुवनेश्वर के जयदेव भवन में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में बालस्वरूप राही को उनके कविता संग्रह 'संपूर्ण बाल कविताएँ' के लिए उन्हें वर्ष २०२० के 'साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार' प्रदान किया गया।२४ भारतीय भाषाओं के बाल रचनाकारों को यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
'भारतीय कविताएँ १९८३' पुस्तक में भारतीय साहित्य में से कालजयी रचनाओं का चयन कर हिंदी के माध्यम से प्रबुद्ध पाठक समुदाय तक पहुँचाया गया, जिससे एक भाषा का सर्वोत्कृष्ट साहित्य दूसरी भाषा तक पहुँचा, परस्पर प्रतिक्रिया व तादात्म्य स्थापित हुआ। प्रस्तुत है इस पुस्तक से राही जी के कुछ शब्द .... 
"साहित्य राष्ट्रीय चेतना का सर्व प्रमुख संवाहक है। यदि किसी देश की सांस्कृतिक धड़कनों को समझना हो तो उनकी नब्ज -साहित्य पर हाथ रखना आवश्यक होता है, अन्य राष्ट्रों को ही नहीं, अपने राष्ट्र को भी हम प्रमुखतः अपने साहित्य के माध्यम से ही सही-सही पहचानते हैं। राष्ट्र की आत्मा साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्त होती है और साहित्य भाषा के माध्यम से मुखरित होता है। किंतु हमारे लिए कठिनाई यह है कि भारतीय साहित्य एक दो भाषाओं के माध्यम से मुखरित होता नहीं, अतः भाषा जो पथ है, सेतु है, वही व्यवधान बन जाती है।"
इन्हीं कड़ियों में और भी पुस्तकें जुड़ी, जिनमें देश भर से विभिन्न भाषाओं की रचनाओं का चयन कर पाठकों तक पहुँचाईं गईं।
राही जी की पहली प्रकाशित कविता एक बाल कविता ही है जिसके लिए उन्हें पारिश्रमिक भी मिला, जिसे पाकर राही जी की खुशी का कोई पारावर ना रहा। उनके शब्दों में, "मुझे अब तक याद है कि पत्रिका से जब आठ रुपए का मनीऑर्डर आया उसे पाकर मैं निहाल हो गया, अब हजारों भी मिल जाए तो वो खुशी नहीं मिल सकती।"राही जी ने अपना मशहूर मुक्तक "मगर ज़िंदा रहने के लिए कुछ गलतफहमियाँ भी ज़रूरी है" सुनाया तो  हज़ारों लोगों के कंठ से एक साथ वाह-वाह की ध्वनि गूँज उठीं। 
राही जी से यह पूछे जाने पर कि जीवन के इस मोड़ पर भी आप बाल कविता कैसे लिख लेते हैं, उन्होंने कहा कि "जब मैं बड़ों के लिए लिख रहा होता हूँ तब मैं राही होता हूँ और जब बच्चों के लिए लिख रहा होता हूँ तब मैं बाल स्वरूप होता हूँ, मेरा नाम ही बालस्वरूप राही है।"
भावों के उद्वेलन जब मन में नहीं समा पाते हैं तो शब्दों में ढल कर कविता बन जाते हैं। राही जी बार- बार अपनी कविता में लघुता के गौरव का बखान करते हैं। लघुता यानि किसी का छोटा या मामूली होना, पर छोटा होने से कोई तुच्छ नहीं हो जाता, इसी को केंद्र में रखकर लिखी कविता 'राम और हनुमान' है, जिसमें हनुमान जी सेवक होते हुए भी कितने महत्वपूर्ण हैं, दर्शाया है। 
अब चलते हैं राही जी की गज़लों की ओर..... 
राही जी की गज़लें हिंदी साहित्य में एक खुशगवार इज़ाफे की हैसियत रखती हैं। सीधे-सादे अंदाज़ में कविताएँ कहने वाले राही जी की गज़लों में व्यंग्यात्मक शैली देखने को मिलती है। इनकी गज़लें इनकी अपनी भाषा, शैली और सोच की मज़हर है। 
मुझ पर गर्वित अहम भाव का शासन नहीं चलेगा
किंतु स्वयं झुककर तुम मुझे झुका लो, जितना मन हो
ऊँचे से ऊँचे पर्वत से ऊँचा मेरा माथा
पर घाटी के नम्र भाव को मैं निज शीश झुकाता
मैं कठोर हूँ पर ऐसा जैसा होता है हीरा
एक पांखुरी से गुलाब की मैं घायल हो जाता
शेर वही है शेर जो राही लिक्खे ख़ून या आँसू से
बाक़ी तो बस अल्लम गल्लम कहे मगर बेकार कहे
चलो राही पुराने दोस्तों के पास हो आएँ
तस्सली दिल की कुछ तो हो बड़ी आफ़त के दिन आए
हिंदी बाल कविता के इतिहास के सर्वोच्च नायकों में राही जी का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। नए लेखकों और बालपाठकों का राही जी एक प्रशस्त ज्योति पुंज की भाँति निरंतर पथ प्रदर्शन कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे।

बाल स्वरुप "राही" : जीवन परिचय

जन्म 

१६ मई १९३६, तिमारपुर, नई दिल्ली  

पिता 

श्री देवी दयाल भटनागर 

पत्नी

श्रीमती पुष्पा राही

शिक्षा

एम०ए०

संपादन कार्य

भारतीय कविताएँ - १९८३, १९८४, १९८५, १९८६ 

भारतीय कहानियाँ - १९८३, १९८४, १९८५, १९८६

साहित्यिक रचनाएँ

गीत-संग्रह

  • मेरा रूप तुम्हारा दर्पण

  • जो नितांत मेरी है

बाल-गीत संग्रह

  • दादी अम्माँ मुझे बताओ

  • जब हम होंगे बड़े

  • बंद कटोरी मीठा जल

  • हम सबसे आगे निकलेंगे

  • गाल बने गुब्बारे

  • सूरज का रथ

ग़ज़लें

  • राही को समझाए कौन

'चित्रलेखा' के आधार पर ऑपेरा

  • राग-विराग

सम्मान व पुरस्कार

  • प्रकाशबीर शास्त्री पुरस्कार

  • एन०सी०ई०आर०टी० का राष्ट्रीय पुरस्कार

  • हिंदी अकादमी द्वारा साहित्यकार सम्मान

  • अक्षरम् सम्मान

  • उदूभव सम्मान

  • जै जैवंती सम्मान

  • परंपरा पुरस्कार

  • दिल्ली प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन समान

  • हिंदू कॉलेज द्वारा अति विशिष्ट छात्र-सम्मान

  • साहित्य अकादमी बाल साहित्य सम्मान (२०२०)

संदर्भ

लेखक परिचय


संतोष भाऊवाला

इनकी कविता-कहानियाँ कई पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं, जिनमें से कई पुरस्कृत भी हैं। वे कविता, कहानी, गज़ल, दोहे लिखती हैं। रामकाव्य पियूष, कृष्णकाव्य पियूष,अपनी-अपनी छतरी आदि अनेक साँझा संकलन प्रकाशित है।

ईमेल -  santosh.bhauwala@gmail.com ,  व्हाट्सप्प - ९८८६५१४५२६ 

4 comments:

  1. संतोष जी नमस्ते। बाल स्वरूप रही जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा आपने। रही जी बहुत अच्छे साहित्यकार थे। उनके कुछ उद्बोधन सुनने का अवसर मिला था। आपने उनकी जीवन एवं साहित्यिक यात्रा को बखूबी प्रस्तुत किया। आपको इस रोचक लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  2. दीपक जी, आपको लेख रोचक लगा, मेरा लिखना सफल हो गया| आपका हार्दिक धन्यवाद

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  3. संतोष जी आप द्वारा रचित यह एक और बेहद सुरुचिपूर्ण और जानकारी से भरा आलेख है। बाल स्वरुप राही जी के रचना संसार को पढ़ कर आनंद आया। आपने बहुत समग्रता के साथ राही जी की जीवन यात्रा और साहित्यिक योगदान को समेटा है। बहुत बधाई आपको।🙏🏻💐

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  4. संतोष जी, बाल स्वरूप बन बाल कविताएँ लिखने वाले और राही बन कर बड़ों के लिए सृजन करने वाले बालस्वरूप राही जी का परिचय आपने अत्यंत रोचक और जानकारीपूर्ण तरीके से किया है। आलेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा आपको इस आलेख के लिए बधाई और बहुत-बहुत आभार।

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