Saturday, May 14, 2022

डॉ० रघुवीर : अभिनव पाणिनि, जिन्हें देश ने भुला दिया

 

अक्सर देश-हित और देश-भावना से ओतप्रोत जिन विद्वानों ने राष्ट्रभाषा और राष्ट्र चेतना को केंद्र में रखकर कार्य किया, लोगों ने उन्हें भुला दिया। सीमित स्मृतियों वाली इस दुनिया में भुला दिए गए एक ऐसे ही महत्त्वपूर्ण विशेषज्ञ हैं - डॉ० रघुवीर। अँग्रेज़ी, जर्मन, फ़्रांसीसी, डच, रूसी, अरबी और फ़ारसी भाषाओं के साथ-साथ भारत की नौ-दस भाषाओं के ज्ञाता, भारतीय संविधान के प्रथम हिंदी अनुवादक, शिक्षा का माध्यम हिंदी करने पर बार-बार बल देने वाले संस्कृत के विद्वान आचार्य रघुवीर का योगदान अविस्मरणीय है। हिंदी और संस्कृत भाषा के विकास के लिए देश-विदेश में किए गए कार्यों के कारण ही उन्हें 'अभिनव पाणिनि' की संज्ञा दी गई।


शोध कार्य और योगदान


रामधारी सिंह दिनकर जी ने हिंदी के तीन बड़े विद्वानों की चर्चा की, जिनके जाने की क्षतिपूर्ति कभी नहीं हो सकती- आचार्य रामचंद्र शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन और डॉ० रघुवीर। राहुल जी ने मध्य एशिया को केंद्र में रखकर ग्रंथों की खोज की और मध्य एशिया को ही अपने कार्यक्षेत्र के रूप में चुना। डॉ० रघुवीर उन सभी देशों में गए, जहाँ भारतीय संस्कृति किसी न किसी रूप में पहुँची थी। उनका मानना था कि "मैं भारत से चलता हूँ, भारत से होते हुए फिर भारत आ जाता हूँ।" थाईलैंड, बर्मा, इंडोनेशिया, बाली, लाओस, वियतनाम, चीन, जापान, मंगोलिया सभी जगह जाकर उन्होंने भारतीयता की पहचान स्थापित करने का काम किया। वे इन देशों में भारतीय भाषाओं से अनूदित साहित्य को एकत्र करके शत-पिटक के रूप में प्रकाशित करना चाहते थे, जिसे उन्होंने काफी हद तक पूरा भी किया।


डॉ० रघुवीर ने हिंदी-संस्कृत के विकास के लिए अप्रतिम कार्य किए, पर संस्कृत शब्दावली से प्रेरित होने के कारण उनका मज़ाक बनाने के लिए कंठ लँगोट, लौहपथ गामिनी, अग्निरथ-गमन-आगमन-सूचक-लौह-पट्टिका जैसे शब्दों को गढ़ा गया। उन्हें शुद्धतावादी कहकर उनका मज़ाक उड़ाया गया, जबकि इन शब्दों का उनके कोश में कोई अस्तित्व नहीं है। प्रो० दिलीप सिंह सवाल उठाते हैं कि "संस्कृत शब्दावली के पारिभाषिक शब्दावली में ढलने को जटिलता क्यों मान लिया गया?" एक तरफ़ हम भारतीय भाषाओं में संस्कृत भाषा के शब्दों की प्रचुरता को मानते हैं, वहीं इन शब्दों को पारिभाषिक बनाने पर आचार्य रघुवीर को शुद्धतावादी, अतिवादी कहकर अलग-थलग कर दिया गया। ऐसे समाज को क्या कहा जाए!


मंगोलिया यात्रा के दौरान उन्हें भारतीय संस्कृति पर अनेक पांडुलिपियाँ मिलीं, जिन्हें वे भारत लाए। ये उनके सरस्वती विहार संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। मंगोल भाषा में अनूदित कालिदास की कृति मेघदूत, पाणिनि का व्याकरण, दंडी का काव्यादर्श वे भारत लाए। उन्होंने मंगोल-संस्कृत कोश बनाकर भाषा की बाध्यता को दूर किया, जिससे भारतीय संस्कृति से जुड़े इस ख़ज़ाने को पहचाना जा सके।


तीन अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य 


डॉ० रघुवीर के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में से कुछ कार्य विशेष रूप से ऐसे हैं, जिनकी चर्चा अवश्य होनी चाहिए - लाहौर में संस्कृत के प्राध्यापक होने पर उन्होंने वैदिक साहित्य का संपादन किया। वहीं रहते हुए उन्होंने महाभारत के कुछ पर्वों का संपादन भी किया। लाहौर में ही उन्होंने भारत विद्या का अंतर्राष्ट्रीय संस्थान बनाया। यही बाद में नागपुर और फिर दिल्ली में सरस्वती विहार के नाम से स्थापित हुआ। सन १९५६ में दिल्ली में राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद ने इसका शिलान्यास किया। दूसरा काम यह कि देश को आज़ादी मिलने तक वे २० लाख शब्दों का निर्माण करना चाहते थे। उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग ५ लाख शब्दों का निर्माण भी किया, जिसके लिए उन्हें "अभिनव पाणिनी" कहा गया। तीसरा यह कि उन्होंने वर्ष १९४५ में हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हिंदी भाषा की वैज्ञानिक शब्दावली पर दो सप्ताह का कार्यक्रम आयोजित किया। बॉन, बर्लिन, मार्बुर्ग आदि नगरों में स्थित पुस्तकालयों में जाकर मंगोल और तिब्बती पांडूलिपियों के विशाल संग्रहों की छायाप्रति एकत्र की और भारत आकर इस ग्रंथमाला पर कार्य प्रारंभ किया।


वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दों का निर्माण 


आचार्य रघुवीर ने भारत के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दों के निर्माण क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान दिया। उनका हिंदी और संस्कृत की शक्ति पर अटूट विश्वास था। उनके प्रमुख सिद्धांत थे -

  • विदेशी वैज्ञानिक शब्दों का बारीक अर्थ समझना और उस बारीक अर्थ का बोध हिंदी वैज्ञानिक शब्दों से प्राप्त करना। 

  • भारत की समृद्ध भाषा संस्कृत के सहारे हिंदी की वैज्ञानिक शब्दावली का निर्माण किया जाना। 

  • संस्कृत में बीस उपसर्ग हैं और अस्सी प्रत्यय। किसी शब्द में एक उपसर्ग और एक प्रत्यय लगा दिया जाए तो एक हजार छः सौ नए शब्द बन सकते हैं। संस्कृत में ८०० धातु हैं। एक संस्कृत धातु से १७०० शब्द आसानी से बन सकते हैं।

उन्होंने उदाहरण देकर यह सिखाया भी, जैसे - 'परि' का प्रयोग 'peri' के लिए और 'लघु' के अर्थ में 'नि' उपसर्ग का प्रयोग किया जाता है। इस तरह nucleus के लिए नयष्टि और nucleolus के लिए निनयष्टि का प्रयोग किया जाएगा। इसी तरह धातु में 'आतु' का प्रयोग किया जाता है- रसायनशास्त्र में chromium के लिए वर्ण+आतु, uranium के लिए किरण+आतु, calcium के लिए चूर्ण+आतु का प्रयोग किया जा सकता है। इसी तरह 'गम्' धातु से बनने वाले शब्दों को देखिए- प्रगति, अवगति, उपगति, सुगति, संगति, निगति, निर्गति, विगति, दुर्गति, अवगति, अभिगति, गति, गंतव्य, जंगम, गम्यमान, गत्वर, गमनिका जैसे कम से कम १८० शब्द बनाए जा सकते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण उनके कोश में देखे जा सकते हैं। 


देखने और सुनने में ये शब्द पहली बार में कठिन भले ही लगें, पर मेरा दृढ़ विश्वास है कि शब्द कठिन-सरल नहीं होते, बल्कि परिचित-अपरिचित होते हैं। 'विश्वविद्यालय' जैसा शब्द दिल्ली में मेट्रो शुरू होने से पहले अपरिचित था, परंतु दिल्ली विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन का नाम 'विश्वविद्यालय' होने के बाद यह सहज और परिचित शब्दों की श्रेणी में आ गया। डॉ० रघुवीर संस्कृत शब्दों के इस्तेमाल से बनी शब्दावली का इतना प्रचार-प्रसार करना चाहते थे कि यह स्वाभाविक जीवन का अंग बन जाए, पर भाषाओं के प्रति उदारता दिखाने वाले देश ने उनकी पारिभाषिक शब्दावली को नकारने के साथ-साथ, दूसरी तरफ, शब्दों की कमी का ढोंग इतना दिखाया कि उसे ही सत्य मान लिया गया। 


डॉ० रघुवीर और डॉ० लोकेशचंद्र ने 'ए कॉम्प्रिहेन्सिव इंग्लिश-हिंदी डिक्शनरी ऑफ़ गवर्नमेंटल एंड एजुकेशनल वर्ड्स एंड फ़्रेज़ेज़' नामक शब्दकोश प्रकाशित किया, जिसमें कई अन्य विषयों के साथ-साथ रसायन शास्त्र से संबंधित शब्दावली, उसके निर्माण के नियम तथा उसके लिए अपेक्षित संस्कृत धातुओं, प्रत्ययों, उपसर्गों का विवेचन भी किया गया है। शब्दकोश की प्रस्तावना में जाने-माने भारतीय वैज्ञानिक, सर शांति स्वरुप भटनागर कहते हैं, "इस कोश से जुड़कर, भले ही वह भूमिका लिखने तक ही सीमित क्यों न हो, मैं धन्य हो गया हूँ। ज्ञान के विस्तार में रुकावट उपयुक्त पारिभाषिक शब्दावली के अभाव में होती है। इस अभाव की पूर्ति डॉ० रघुवीर ने की है।"


राजनीतिज्ञ के रूप में

एक राजनीतिज्ञ के रूप में भी आचार्य रघुवीर अत्यंत सजग और स्पष्टवादी व्यक्ति थे। पंडित नेहरू उनकी हिंदी-प्रेम की नीति से असंतुष्ट थे। हिंदी के विकास और प्रयोग के विषय में इन दोनों के बीच मतभिन्नता के कई उदाहरण मिलते हैं। चीन को लेकर भी उन्होंने पंडित नेहरू को सावधान किया, पर उनकी बात नहीं सुनी गई। इस बात से असंतुष्ट होकर वे बाद में जनसंघ में चले गए। अपने मित्र डॉ० राममनोहर लोहिया के चुनाव प्रचार के लिए जाते हुए सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। भाषा के विकास के लिए उन्होंने कोश से लेकर शोध कार्य भी किए परंतु भाषा प्रेम का दावा करने वाले देश के लोगों ने उन्हें याद भी नहीं किया। इंडोनेशिया के प्रथम राष्ट्रपति सुकर्ण जी ने डॉ० रघुवीर को उनके योगदान के लिए अनेक बार सराहा, पर हम पीछे रह गए। 


डॉ० रघुवीर : जीवन परिचय

जन्म 

३० दिसंबर १९०२, रावलपिंडी 

निधन

१४ मई १९६३ 

माता

जयवंती जी 

पिता

मुंशीराम जी (अँग्रेज़ी के प्राध्यापक)

पत्नी

लज्जावती जी

संतान 

पुत्र - श्री लोकेशचन्द्र जी, प्रसिद्ध भाषाविद और भारतीय विद्या के विद्वान 

पुत्रियाँ - सुशीला, सुदर्शना, सुषमा, प्रभा 

भाषा ज्ञान 

२० से अधिक भाषाओं का ज्ञान, संस्कृत में विशेष रुचि, भारतीय इतिहास और लिपि विज्ञान के गहन अध्येता 

शिक्षा

  • 'स्कूल ऑफ़ ओरियंटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़' (लंदन यूनिवर्सिटी से संबद्ध) से प्रो० आर० एल० टर्नर के नेतृत्व में पीएचडी

  • हॉलैंड के प्रसिद्ध प्राच्यविद प्रो० विलेम कालंड के नेतृत्व में यूत्रेख्त यूनिवर्सिटी से 'डॉक्टर्स ऑफ़ लैटर्स' की उपाधि प्राप्त

शोधकार्य के लिए छात्रवृत्ति

मैक्लॉएड कश्मीर संस्कृत स्कॉलरशिप

शोध पत्रिका 

'द जर्नल ऑफ़ वैदिक स्टडीज़' का संपादन (लाहौर) 

संपादन 

  • कृष्णयजुर्वेदीय कपिष्ठलकठसंहिता (१९३२)

  • वाराहगृह्यसूत्र (१९३२)

  • अथर्ववेद (१९३६)

  • सामवेदीया जैमिनीयसंहिता (१९३८)

  • शतपथब्राह्मण (१९३९)

  • जैमिनीयब्राह्मणम् (१९५०)

  • वाल्मीकीयरामायण (कश्मीर, मालाबार और नेपाल से प्राप्त विभिन्न लिपियों की प्रतियों के आधार पर शुद्ध संस्करण १९३८) 

  • महाभारत के विराट पर्व का संपादन (१९३६)

कोश 

  • हिंदी, तमिल, बँगला और कन्नड़ लिपियों में तकनीकी शब्दकोश प्रकाशित (१९४३-४६), लाहौर

  • 'इंडियन साइंटिफ़िक नोमिक्लेचर ऑफ़ बर्ड्स ऑफ़ इंडिया, बर्मा एंड सीलोन' (आंग्ल-भारतीय पक्षी  नामावली) ग्रंथ प्रकाशित (१९४९) 

  • 'ए कॉम्प्रिहेन्सिव इंग्लिश-हिंदी  डिक्शनरी ऑफ़ गवर्नमेंटल एंड एजुकेशनल वर्ड्स एंड फ़्रेज़ेज़'(१९५५)

  • 'एलिमेंट्री-इंगलिश-इंडियन डिक्शनरी ऑफ़ साइंटिफ़िक टर्म्स : स्पेशियली प्रिपेयर्ड फॉर यूज़ ऑफ़ मैट्रिकुलेशन स्टूडेंट्स ऑफ़ आवर यूनिवर्सिटीज़'(१९५५) 

  • 'हिंदी -इंग्लिश डिक्शनरी ऑफ़ टैक्निकल टर्म्स'(१९५६) 

  • अर्थशास्त्र शब्दकोश

  • हिंदी कथा कोश


संदर्भ

लेखक परिचय


प्रो० हर्षबाला शर्मा 

कहानीकार, अनुवादक और आलोचक
संप्रति - इंद्रप्रस्थ कॉलेज, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यरत 

10 comments:

  1. डॉ रघुवीर के कार्य की उचित जानकारी दी गई है। हिंदी के विकास में उनका कार्य हमेशा याद रखा जाएगा। भाषा के शोध के बहाने रघुवीर जी ने विश्व में भारतीय संस्कृति को जोड़ने का कार्य किया है। हार्दिक बधाई,हर्षबाला जी 💐

    ReplyDelete
  2. इतना खोजपूर्ण जानकारी से भरा आलेख पढ़ सके, आभार हर्ष !
    बहुत प्रभावशाली लिखा तुमने
    हार्दिक बधाई और शुभकामना

    ReplyDelete
    Replies
    1. आप हमेशा पढ़ती है और उत्साह बढ़ाती हैं। आभार विजया मैम

      Delete
  3. हर्ष बाला जी, बहुत सार्थक, सुंदर और ज्ञानवर्धक कहानी के रूप में आपने हिन्दी-सेवक डॉ रघुवीर के रचना संसार से परिचय करवाया। इनके कार्यो की व्यापकता से चकित हूँ मैं। हम सबकी प्रेरणा और गौरव हैं रघुवीर जी। उम्दा आलेख के लिए आपको बधाई और धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सरोज जी, मुझे लगता है कि आचार्य रघुवीर जी के कार्यों पर विस्तार से बात की जानी चाहिए। उन्होंने सचमुच हिंदी सेवा की है पर समाज उनके योगदान को भूल गया। यहाँ विस्तार से बात नहीं कर सकती थी, शब्द सीमा के कारण पर उनके सम्बन्ध में बहुत पढा। सचमुच महाज्ञानी और साँस्कृतिक चेतना से भरा व्यक्तित्व था आचार्य जी का। आपको लेख पसन्द आया, अत्यंत आभार

      Delete
  4. प्रो. हर्षबाला जी नमस्ते। आपके लेख के माध्यम से डॉ. रघुवीर जी के हिंदी भाषा के उन्नयन हेतु किये गए महत्वपूर्ण योगदान को जानने का अवसर मिला। आपने बहुत अच्छे से उनके व्यक्तित्व एवं रचना संसार पर प्रकाश डाला। आपको इस शोधपूर्ण लेख के लिए हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  5. हर्षबाला जी, आपने एक ऐसे व्यक्तित्व और उसके कामों को हमारे सामने लाया है, जिसकी दृष्टि और कहे अनुसार हम अगर चंद क़दम ही चल लें तो हिंदी के विकास और समृद्धिकरण की दिशा में बड़ा काम हो जाए। डॉ रघुवीर जी की कर्मशीलता और मेहनत नमन। आपको इस आलेख के लिए बधाई और आभार।

    ReplyDelete
  6. हर्षबाला जी ने अत्यंत श्रमपूर्वक यह लेख लिखा है. बधाई.

    ReplyDelete
  7. हर्षबाला जी, नमन
    आचार्य रघुबीर और उनके अप्रतिम योगदान को उजागर क्र आपने बड़ा उपकार किया है, हम हिंदीप्रेमियों पर | साधुवाद| एक बार उनके योगदान के पुनर्पाठ की आवश्यकता है भारत को | .

    ReplyDelete

आलेख पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक करें।

कलेंडर जनवरी

Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat
            1वह आदमी उतर गया हृदय में मनुष्य की तरह - विनोद कुमार शुक्ल
2अंतः जगत के शब्द-शिल्पी : जैनेंद्र कुमार 3हिंदी साहित्य के सूर्य - सूरदास 4“कल जिस राह चलेगा जग मैं उसका पहला प्रात हूँ” - गोपालदास नीरज 5काशीनाथ सिंह : काशी का अस्सी या अस्सी का काशी 6पौराणिकता के आधुनिक चितेरे : नरेंद्र कोहली 7समाज की विडंबनाओं का साहित्यकार : उदय प्रकाश 8भारतीय कथा साहित्य का जगमगाता नक्षत्र : आशापूर्णा देवी
9ऐतिहासिक कथाओं के चितेरे लेखक - श्री वृंदावनलाल वर्मा 10आलोचना के लोचन – मधुरेश 11आधुनिक खड़ीबोली के प्रथम कवि और प्रवर्तक : पं० श्रीधर पाठक 12यथार्थवाद के अविस्मरणीय हस्ताक्षर : दूधनाथ सिंह 13बहुत नाम हैं, एक शमशेर भी है 14एक लहर, एक चट्टान, एक आंदोलन : महाश्वेता देवी 15सामाजिक सरोकारों का शायर - कैफ़ी आज़मी
16अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है - अशोक वाजपेयी 17लेखन सम्राट : रांगेय राघव 18हिंदी बालसाहित्य के लोकप्रिय कवि निरंकार देव सेवक 19कोश कला के आचार्य - रामचंद्र वर्मा 20अल्फ़ाज़ के तानों-बानों से ख़्वाब बुनने वाला फ़नकार: जावेद अख़्तर 21हिंदी साहित्य के पितामह - आचार्य शिवपूजन सहाय 22आदि गुरु शंकराचार्य - केरल की कलाड़ी से केदार तक
23हिंदी साहित्य के गौरव स्तंभ : पं० लोचन प्रसाद पांडेय 24हिंदी के देवव्रत - आचार्य चंद्रबलि पांडेय 25काल चिंतन के चिंतक - राजेंद्र अवस्थी 26डाकू से कविवर बनने की अद्भुत गाथा : आदिकवि वाल्मीकि 27कमलेश्वर : हिंदी  साहित्य के दमकते सितारे  28डॉ० विद्यानिवास मिश्र-एक साहित्यिक युग पुरुष 29ममता कालिया : एक साँस में लिखने की आदत!
30साहित्य के अमर दीपस्तंभ : श्री जयशंकर प्रसाद 31ग्रामीण संस्कृति के चितेरे अद्भुत कहानीकार : मिथिलेश्वर          

आचार्य नरेंद्रदेव : भारत में समाजवाद के पितामह

"समाजवाद का सवाल केवल रोटी का सवाल नहीं है। समाजवाद मानव स्वतंत्रता की कुंजी है। समाजवाद ही एक सुखी समाज में संपूर्ण स्वतंत्र मनुष्यत्व...