हिंदी साहित्य के इतिहास में कविता की जो धारा आदिकाल से आज तक बहती चली आई है, उसमें एक छोटे द्वीप की तरह गिरधर कविराय की कुंडलियाँ अपना स्थान बनाए हुए हैं।
गिरधर हिंदी कविता के इतिहास में मध्यकालीन कवि के रूप में जाने जाते हैं - वह मध्यकाल जिसका पूर्व भक्तिकाल है और उत्तर रीतिकाल। वे उत्तर मध्यकाल में रीति, परंपरा या परिपाटी से बंधे कवि के रूप में नहीं, बल्कि निर्बंध कवि के रूप में अपनी विशेष पहचान रखते हैं। नीति काव्य के रचयिता गिरधर 'नीतिकवि' के रूप में रेखांकित किए जाते हैं।
उचित व्यवहार का नाम नीति है - इस व्यवहार को व्यक्त करने वाला काव्य नीतिकाव्य है। यह उचित व्यवहार की शिक्षा सरस वाणी में देने वाला काव्य है। हिंदी भाषा के उद्भव और विकास से पहले वैदिक, संस्कृत, पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषाओं में भी नीति काव्य रचा गया। वेदों में कहा गया है कि लक्ष्मी चंचल है, रथ के चक्र के समान उसकी गति है, गर्व त्याग करो और उदार बनो। उपनिषदों में कहा गया - आत्मा रथी है, शरीर रथ, बुद्धि सारथि है, इंद्रियाँ घोड़े हैं और मन को लगाम जानो। सांसारिक विषय-वासनाएँ उनके मार्ग हैं। संस्कृत काव्य में महाभारत, रामायण, कालिदास की रचनाएँ, चाणक्य के कथन, भर्तृहरि के नीति और वैराग्य शतक तथा पंचतंत्र जैसी कृतियाँ, नीति का अपार संसार हमारे सम्मुख खोलते हैं।
नीति की इस परंपरा से हिंदी कविता प्रेरित और प्रभावित हुई है। हिंदी का नीति काव्य जीवन से जुड़ा हुआ काव्य है- वह जीवन की हलचलों के बीच जीवन जीने की कला सिखाता है। संत, सूफ़ी, रामभक्त, कृष्ण भक्त सभी कवियों ने नीति के पथ को ही श्रेष्ठ पथ कहा। रहीम दोहावली नीतिकाव्य की श्रेष्ठ रचना है।
नीति के जितने कवि रीतिकाल में हुए हैं, उतने अन्य किसी काल में नहीं। नीतिकाव्य की दृष्टि से रीतिकाल स्वर्ण युग कहा जा सकता है। इस समय के प्रमुख नीति कवि हैं, वृंद, घाघ, दीनदयाल गिरी और गिरधर कविराय।
नीति कवि के रूप में गिरधर
हिंदी का सामान्य पाठक गिरधर को नीतिपरक कुंडलियाँ लिखने वाले कवि के रूप में जानता है। हिंदी नीतिकाव्य का अध्ययन करते हुए गिरधर का स्मरण आना सहज स्वाभाविक है, बल्कि कहा जा सकता है कि उनके काव्य की चर्चा किए बिना यह अध्ययन अधूरा होगा।
गिरधर का रचनाकाल संवत १८०० के आसपास माना जाता है। उनके जीवन के विषय में अधिक जानकारी नहीं मिलती। इनकी अधिकांश कुंडलियों में साईं शब्द का प्रयोग मिलता है, कुंडली हिंदी का वह लोकप्रिय छंद है, जिसके आरंभ में जो शब्द होता है, प्रायः अंत में भी वही शब्द रहता है।
गिरधर घुमंतू कवि थे, उनकी भाषा पर इस भ्रमण की छाप है। मूलतः वह ब्रजभाषा है, पर उसमें खड़ीबोली, पंजाबी, उर्दू, अवधी आदि की शब्दावली भी सहज समाहित है।
गिरधर के नीति काव्य की विशेषता
गिरधर के काव्य में मानव स्वभाव की समझ और मानव तथा समाज में पनपने वाली बुराइयों पर नज़र है। उनसे बचने और उन्हें दूर करने के उपायों का निर्देश भी हैं तो सामान्य मानवीय प्रवृत्तियों पर सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक पकड़ भी है।
गिरधर के नीति कथनों में सज्जन की चर्चा, दुर्जन की निंदा और धैर्यवान, नेक, गुणग्राही, परदुखकातर, संवेदनशील ज्ञानियों का उल्लेख है जो मायाजाल में नहीं फंसते। गिरधर कहते हैं कि संसार में धन के अभिमानी, रूप के अभिमानी, गुण के अभिमानियों की कमी नहीं है। वे कृतघ्न, स्वार्थी और निरे संसारी की भर्त्सना करते हैं। अपनी कुंडलियों में गिरधर ने बताया है कि वीरता सदैव सम्मानित होती है और कायरता अपमानित। नश्वर संसार की नश्वर वस्तुओं पर अभिमान करना व्यर्थ है, "दौलत पाय न कीजिए सपने में अभिमान"। इसलिए गिरधर धन की चंचलता और उसके सदुपयोग का परामर्श देते हैं।
गिरधर ने जिन मानवीय संबंधों पर टिप्पणी की हैं - उनमें पिता-पुत्र, पति-पत्नी, भाई-भाई गुरु-शिष्य, मित्र और मित्र शामिल हैं। मित्र से बिछोह कठिन है, निस्वार्थ मित्र मिलना भी कठिन ही है। कवि सेवक से व्यवहार, अतिथि सत्कार, पारिवारिक शिष्टाचार के प्रसंग भी उठाता है। घर के अति निकट से वैर न ठानने की सलाह देता है।
"साईं वैर न कीजिए गुरु पंडित कवि यार!"
गिरधर समाज का वह रूप दिखाते हैं जो आज भी विद्यमान है, जैसे पिता-पुत्र के तनावपूर्ण संबंध, पारिवारिक विघटन। गिरधर ने वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यवहारिक, राजनीतिक जैसे नीति के सभी पक्षों को छुआ है।
समाज में दो वर्ग हमेशा से रहे हैं - उच्च और निम्न। गिरधर उनकी चर्चा भी करते हैं। एक समाज वह है जो कवि के सामने था, वे उसकी कमियाँ बताते हैं। दूसरा वह समाज है, जो उनकी कल्पना में था, जो आदर्श कवि इस संसार में लाना चाहता है, वे उसे रेखांकित करते हैं।
उनकी भाषा अपनी सरलता के कारण याद हो जाने वाली भाषा है। उसमें अलंकार-चमत्कार बहुत नहीं है, किंतु प्रभावित करने की क्षमता अवश्य है,
बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय
काम बिगारे आपनो जग में होत हंसाय!
और
बीती ताहि बिसारि दे आगे की सुधि लेय
जो बनी आवे सहज में ताही में चित्त देय!
गिरधर विशिष्ट इसलिए हैं क्योंकि उनकी दृष्टि आदर्श के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। जब वे कहते हैं,
साईं अपने चित्त की भूल न कहिए कोय
तब लगि घट में राखिये जब लगि कारज होय
तो जीवन के उस सहज व्यवहारिक सत्य को कह रहे होते हैं कि मन की व्यथा का मन में रहना ही ठीक, संसार उसे सुनकर केवल हँसी ही तो उड़ाएगा!
गिरधर की रचनाएँ बहुत अधिक नहीं हैं, उनका काव्य संस्कृत नीतिकाव्य के समान सरस और बहुत प्रभावशाली भी नहीं है। किंतु फिर भी यदि वे रीतिकाल के सर्वाधिक प्रसिद्ध और लोकप्रिय नीति कवि के रूप में जाने जाते हैं, तो इसलिए कि उनकी कुंडलियों में युगीन समाज, धर्म और जीवन में विद्यमान अनाचार, स्वार्थ, अनैतिकता, परंपरा उल्लंघन, कर्तव्यहीनता आदि पर तीखा व्यंग्य निहित है। वे सूत्र रूप में नीति कथन करते हैं - फिर उदाहरण द्वारा उसकी पुष्टि करते हैं और सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, बलशाली अर्जुन और भीम के उदाहरणों द्वारा गिरधर विषम परिस्थति में जीवन की दशा को साकार करने की बात कहते हैं,
साईं अवसर के परे को न सहे दु:ख-द्वन्द्व...
जाय बिकाने डोम घर वै राजा हरिचंद।
वै राजा हरिचंद करे मरघट रखवारी
धरें तपस्वी वेश, फिरे अर्जुन बलधारी
कहा गिरधर कविराय तपै वह भीम रसोई
कौ न करे घटि काम, परे अवसर के साईं!
लोक का अनुभव और कवि का अनुभव - दोनों मिलकर श्रोता के मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। कभी कभी गिरधर सीधे उपदेश कथनों द्वारा भी सामान्य जन को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध प्रभावशाली ढंग से कराते हैं। विभिन्न समस्याओं का समाधान सुझाकर दिशा-निर्देश देते हैं, धैर्य धारण करने का आग्रह करते हैं। कहीं-कहीं उनके कथनों में वैराग्य का स्पर्श भी दिखाई देता है, जीवन मूल्यों के ह्रास के प्रति झुंझलाहट भी दिखाई देती है।
साईं या संसार में मतलब को व्यवहार
जब लग पैसा गाँठ में तब लग ताको यार
तब लग ताको यार संग ही संग डोले
पैसा रहा न पास यार मुख से नहीं बोले
कुंडली के अंत में गिरधर कहते हैं - बेगरज़ यानी निस्वार्थ प्रीत करने वाला यार कोई विरला ही होता है! इनके काव्य में सटीक धारदार कथन मिलते हैं। गिरधर की बिंब योजना साधारण है, उसमें कल्पना की भव्यता भी नहीं है, पर वाणी में बेहद नुकीलापन है। हिंदी भाषी जनसाधारण के बीच कवि की उक्तियाँ बहुत लोकप्रिय हैं। वे उस मानवीय संवेदना के कवि हैं, जो बड़ा अर्थ रखने वाली छोटी छोटी बातें लिखते हैं,
"चिंता ज्वाल सरीर की" अर्थात चिंता देह को जलाकर ख़ाक कर देगी, चिंता में न घुलो।
इसी तरह
"राजा के दरबार में जैसे समया पाय
साईं वहाँ न बैठिए जहाँ कोई देय उठाय!"
कह कर वे आगाह करते हैं कि अपने पद के अनुरूप ही स्थान ग्रहण करो अन्यथा अपमानित होना पड़ेगा।
गिरधर की दुनिया केवल उपदेश उदाहरण तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव जीवन के सुख-दुःख, राग-विराग, आशा-निराशा से जुड़ी है। गिरधर जनजीवन में पगे कवि हैं। उन्हें अपने आस-पास के साथ गहरा लगाव है, उसे कविता में पिरोते हुए वे कहते हैं, कद्र गुणों की ही होती है। कौआ और कोयल दोनों ही काले हैं, पर एक में वाणी की मधुरता का गुण है तो सबको प्यारी है, दूसरे का स्वर कर्कश है तो वह अप्रिय हो जाता है,
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय
जैसे कागा, कोकिला सबद सुने सब कोय
सबद सुने सब कोय कोकिला सबै सुहावन
दौऊ को एक रंग काग सब गने अपावन
कह गिरधर कविराय सुनो हो ठाकुर मनके
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर ग्राहक गुन के!
उन्होंने साधारण जन की भाषा को अपनाया, उनकी भंगिमा, उनका तेवर जन-जीवन से ही शक्ति पाता है। ग्रामीण जीवन में लाठी का क्या स्थान है, गिरधर बताते हैं -
लाठी में गुण बहुत हैं, सदा राखिए संग
गहरे नदनाले जहां, तहां बचावे अंग
तहां बचावे अंग, झपट कुत्ता कू मारै
दुश्मन दावागीर होए तिन्हूं को झारै
कह गिरधर कविराय सुनो ओ मेरे पाठी
सब हथियारन छांड़, हाथ में लीजै लाठी
साहित्य में गिरधर के महत्व को आंकते हुए विद्वान आलोचक डॉ० बच्चन सिंह कहते हैं, "उनकी कुंडलियों को देखने पर पता लगता है कि वे एक ओर सिद्धांत कथन कर रहे थे और दूसरी ओर लोक व्यवहार की बातें। लोक व्यवहार संबंधी कुंडलियाँ बहुत लोकप्रिय बन गई - इतनी लोकप्रिय कि आज भी गाँव-गाँव में सुनी जाती हैं।"
गिरधर में संतों की सी दृष्टि भी है और शुद्ध सांसारिकता भी। उनके आदर्श देश-काल सीमाबद्ध नहीं हैं। वे तत्कालीन धार्मिक आडंबरों और झगड़ों की खबर रखते हैं और अपना मत साफ़ कहते हैं। इसलिए गिरधर का काव्य उनके निर्भीक व्यक्तित्व का परिचय देता है।
वे कबीर की तरह प्रौढ़ नहीं किंतु उनमें जीवन के अनुभव हैं, कोरा शास्त्र ज्ञान नहीं। गिरधर का नीति काव्य आज भी प्रासंगिक है।
संदर्भ
- हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास, डॉ० बच्चन सिंह
- हिंदी साहित्य - उद्भव और विकास, हजारी प्रसाद द्विवेदी
- हिंदी रीति काव्य, डॉ० जगदीश गुप्त
लेखक परिचय
पूर्व विजिटिंग प्रोफ़ेसर, ऐलते विश्वविद्यालय बुदापैश्त हंगरी
पूर्व प्रोफ़ेसर, हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़ सिओल दक्षिण कोरिया
राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों में आलेख प्रस्तुति और उनका प्रकाशन।
नमस्ते विजया मैम। आप द्वारा प्रस्तुत इस अति महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से मध्यकालीन कवि गिरधर के जीवन और रचना संसार को जानने का अवसर मिला। आपको बहुत बहुत बधाई और आभार।
ReplyDeleteडॉ विजया मैडम नमस्ते। आपको एक और उम्दा लेख के लिये बधाई। आपने रीतिकालीन प्रमुख कवि गिरधर जी पर बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख लिखा है। किसी कक्षा में उनकी लिखी कुंडलियाँ पढ़ी थी। आज आपके लेख के माध्यम से उनके रचना संसार को पुनः जानने का अवसर मिला। आपको इस महत्वपूर्ण लेख के लिये साधुवाद।
ReplyDeleteरीतिकालीन साहित्य के प्रमुख कवि गिरधर कविराय पर शोधपरक आलेख पढ़कर अत्यंत प्रसन्नता हुई। विजया मैम को सादर प्रणाम एवं कोटिशः बधाई।
ReplyDeleteविजया जी, आपकी लेखनी ने आज फिर एक अच्छा आलेख प्रस्तुत किया, जिसने नीतिकवि गिरधर से ज्ञानवर्धक और विस्तृत परिचय कराया; बचपन में पढ़ी चंद कुंडलियों के अलावा उनके बारे में कुछ अधिक ज्ञात नहीं था। आपके आलेख से बहुत सारी बातें पता चलीं। आपको पुनः बधाई और आभार।
ReplyDeleteरीतिकाल के महान कवि गिरधर कविराय का परिचय और नीति काव्य रचना पढ़कर आनंद हुआ। संत वाणी में लोक परंपरा, भक्ति, भाषा विविधता और समृद्ध जीवन परिचय मिलता है। धन्यवाद 🙏💐
ReplyDelete[8:30 am, 23/04/2022] Harpreet Singh Puri: सुप्रभात, विजया जी। आपने गिरधर कविराय पर सुंदर आलेख दिया है। उनकी कुंडलियाँ बहुत काम शब्दों में श्रेष्ठ जीवन जीने का मार्ग दिखाती हैं। आपको इस सुंदर आलेख पर श्रम के लिए धन्यवाद। शुभकामनाएँ। 💐
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