हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक श्री निर्मल वर्मा हिंदी कहानी में आधुनिकता का बोध कराने वाले अग्रणी कहानीकार हैं। अपनी गंभीर, भावपूर्ण और अवसाद से भरी कहानियों के लिए प्रसिद्ध निर्मल वर्मा का जन्म ३ अप्रैल १९२९ को शिमला के लोअर जाखू के हरबर्ट विला में हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारत सरकार के रक्षा विभाग में कार्यरत थे। वे आठ भाई-बहनों में पाँचवें क्रम पर थे, और शिमला के एक प्रतिष्ठित स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली से इतिहास में मास्टर डिग्री प्राप्त की। इनके बचपन और युवावस्था का बहुत बड़ा वक्त दिल्ली के करोलबाग़ इलाके में स्थित इनके पुश्तैनी मकान में गुज़रा। अपने उसी घर की छोटी-सी बरसाती में प्रारंभ हुआ था इनका साहित्य रचना का व्यापक संसार, जहाँ वे घंटों साहित्य के रसास्वादन में लीन रहते।
श्री निर्मल वर्मा को साहित्य के क्षेत्र की ओर उन्मुख करने का श्रेय इनकी माताजी तथा बहन को जाता है; जिन्होंने इन्हें एक सहृदय, संवेदनशील पाठक के रूप में साहित्य-साधना के लिए प्रेरित किया था। परास्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद निर्मल वर्मा ने अध्यापन कार्य प्रारंभ किया, और साथ ही साहित्य के प्रति प्रेम के कारण उनका विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लिखना भी जारी रहा। उनकी पहली लघु कहानी १९५० के दशक के आरंभ में एक छात्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई, जिससे उन्हें कुछ पहचान मिली। इसके बाद १९५९ में शिल्प की नवीनता के लिए जानी जाने वाली सात लघु-कथाओं के संग्रह 'परिंदे' के प्रकाशन के साथ ही साहित्य की अथक यात्रा के अनूठे यायावर निर्मल वर्मा पूर्णतः साहित्य-साधना में रम गए। इन्हें वर्ष १९५९ से १९७२ तक यूरोप में प्रवास करने का अवसर मिला था और इस दौरान उन्होंने लगभग समूचे यूरोप की यात्रा करके वहाँ की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों को बड़े नज़दीक से जाना। श्री निर्मल वर्मा का सांस्कृतिक तथा वैश्विक अनुभव बहुत विस्तृत रहा। वे १९५९ से प्राग (चेकोस्लोवाकिया) के प्राच्य विद्या संस्थान में सात वर्ष तक रहे। इस दौरान उन्होंने चेक उपन्यासों तथा कहानियों का हिंदी अनुवाद किया। वे १९७२ में स्वदेश लौटे और स्वतंत्र लेखन करने लगे। उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया तथा हिंदुस्तान टाइम्स के लिए यूरोप की सांस्कृतिक व राजनीतिक समस्याओं पर अनेक लेख और रिपोर्ताज़ लिखे, जो उनके निबंध संग्रहों में संकलित हैं। उनके विदेश प्रवास ने उनके विचारों और लेखन को एक नवीनतम आधार-भूमि और परिपक्वता प्रदान की। पश्चिमी कहानी लेखन की विधा को हिंदी में लाने का श्रेय श्री अज्ञेय की भाँति श्री निर्मल वर्मा को भी दिया जाता है। आधुनिक कहानी के प्रणेता निर्मल वर्मा अपने लेखन की मौलिकता और सार्वभौमिकता के लिए अधिक जाने गए। सच कहा जाए तो श्री निर्मल वर्मा को जिन्होंने पढ़ा है, वे जानते हैं कि बिना किसी कोलाहल के शब्दों का असर क्या होता है?
१९८८ में इंग्लैंड के प्रकाशक रीडर्स इंटरनेशनल द्वारा उनकी कहानियों का संग्रह 'द वर्ल्ड एल्सव्हेयर' प्रकाशित किया गया। इसी समय बीबीसी द्वारा उन पर डाक्यूमेंट्री (फ़िल्म) प्रसारित हुई थी। उनकी कहानी 'माया दर्पण' पर फ़िल्म भी बनी, जिसे १९७३ में सर्वश्रेष्ठ हिंदी फ़िल्म का पुरस्कार प्राप्त हुआ। श्री निर्मल वर्मा के चर्चित उपन्यासों में 'रात का रिपोर्टर', 'एक चिथड़ा सुख', 'लाल टीन की छत' और 'वे दिन' शामिल हैं। कई कहानी संग्रहों में उनकी रचनात्मक अभिव्यक्ति स्वर-सिद्ध हुई है। कहानियों की प्रचलित शैली में श्री वर्मा ने काफी परिवर्तन किया है। रचनाओं में आधुनिकता का बोध लाने वाले निर्मल वर्मा की कहानियाँ स्मृतियों के संसार से निकली हैं, जो पाठकों को अतीत की रोमांचक यात्रा पर ले जाती हैं। उनका मानना रहा है,"साहित्य दरअसल चेतना को जगाने के बजाए हमें उन मूल्यों के प्रति सचेत करता है, जिन्होंने सत्ता और साहित्य के बीच एक संतुलन बनाकर रखा है।"
उनकी स्पष्टवादिता और बेबाकी तीक्ष्ण घाव नहीं करती, बल्कि आदर्श और यथार्थ के बीच संतुलन बनाए रखने की तटस्थता उनके लेखन का पर्याय रही है। वे कहते हैं, "हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को काफी महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है, लेकिन यदि हममें अपने जीवन की सच्चाई को बोलने का विवेक न हो, तो उस आज़ादी के कोई मायने नहीं है; इसलिए एक लेखक के तौर पर हमें हमेशा उस फ़र्क को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए।"
उनकी यह प्रखर सोच अभिव्यक्ति के स्वातंत्र्य को एक मज़बूत आधार भूमि देती है, जिसमें बुद्धि के साथ विवेक की भी महत्वपूर्ण भूमिका लक्षित है। उनकी रचनाओं में आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़ी घटनाओं का सहज और स्वाभाविक चित्रण व्याप्त है। व्यक्ति के अधूरेपन की गाथा अपनी पूर्ण संवेदनशीलता और सघनता के साथ श्री निर्मल वर्मा के साहित्य की उपलब्धि है। वरिष्ठ कवि श्री अशोक वाजपेयी ने निर्मल वर्मा के लिए कहा था, "निर्मल हम जैसे ही मट-मैले, अधूरे और नश्वर थे। वे मानवीय संबंधों, प्रकृति, नियति, नश्वरता के अंधेरे-उजालों के गाथाकार थे। उन्हें पढ़ते हुए अमीर खाँ की गायकी की याद आती है, जो धीरज की गायकी थी। अगर रेणु का गद्य ध्वनिमय है, तो निर्मल का गद्य चित्रमय है।" निर्मल वर्मा के लेखन की इतनी गहराई में मीमांसा और भला कैसे हो सकती है?
श्री निर्मल वर्मा को अक्सर लोग 'नई कहानी आंदोलन का महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर' कहते हैं, मगर यह कहना सिर्फ़ कोई परिभाषा या उपमा देना भर नहीं है, बल्कि उनके लेखन की जड़ों में बसी उनके अंतर की वह बेचैनी और कसमसाहट है, जो मानव की अनकही व्यथा को बड़ी सहज और कसी हुई भाषा में मुखर कर देती है। 'धुंध से उठती धुन' संग्रह में संकलित अपने एक यात्रा वृत्तांत 'जहाँ कोई वापसी नहीं' में उन्होंने लिखा है, "ये लोग आधुनिक भारत के नए शरणार्थी हैं, जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपने घर-ज़मीन से उखाड़ कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।" आधुनिकीकरण के शिकार मनुष्यों के हृदय में उपजी इस पीड़ा के चितेरे श्री वर्मा जन-जन का नायक बनकर सहज ही उभरते हैं, जो स्वयं ही लिखते भी हैं, "अतीत का समूचा मिथक संसार पोथियों में नहीं, इन रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता था।"
श्री निर्मल वर्मा के विचार बेहद स्पष्ट और बेलौस रहे हैं। उन्होंने एक साक्षात्कार में बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखी, "आज प्रेमचंद का जीवन कहाँ है? बिलकुल बदल चुका है। न वह किसान है, न महंगाई है, न वह दयनीयता है, और न ही आर्थिक संकट का हाहाकार है; लेकिन प्रेमचंद की कहानियाँ आज भी इसलिए प्रासंगिक बनती हैं, क्योंकि उन्होंने भावी परिस्थितियों को एक संदर्भ के रूप में लिया था। भारतीय किसान आज भी वो किसान है, जिसकी प्रकृति से गहरी अंतरंगता बनी हुई है। यह फ्रांस, अमरीका, रूस जैसा किसान नहीं है, जिसको ज़मीन के मज़दूर की तरह वर्णित कर दिया गया है; जो काम तो करता है ज़मीन पर, मगर बन गया है मज़दूर। मगर भारतीय किसान आज भी प्रकृति के साथ रहकर वही गाथाएँ, मिथक, स्मृतियाँ सँजोता है, जो प्रकृति और समाज को सुंदर बनाती हैं। प्रेमचंद से लेकर रेणु तक हमने जिस तरह से किसान संस्कृति को बचाकर रखा है, वह सचमुच प्रशंसनीय है।"
श्री निर्मल वर्मा को भारतीय संस्कृति और विरासत से काफ़ी लगाव था, यही वजह है कि उनके रहन-सहन और सृजनशीलता में भारतीयता और स्वदेशी की झलक मिलती है।
श्री निर्मल वर्मा ने यूँ तो कहानी, उपन्यास, डायरी-लेखन और संस्मरण जैसी सभी साहित्यिक विधाओं में रचनाएँ कीं, लेकिन उनके बेहतरीन संस्मरणों ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान दी। बँधी-बँधाई परिपाटी से हटकर भाषा को नए संस्कार देने के लिए भी श्री निर्मल वर्मा की पहचान सर्वव्यापक है। श्री निर्मल वर्मा के साहित्य की एक बात सबसे अलग है। अगर इनके साहित्य की बुनावट पर बड़े ध्यान से दृष्टिपात करें, तो एक अलग ही संसार, एक अलग तरह का तारतम्य, एक अलग किस्म का जुड़ाव दिखाई पड़ता है। बहुत गहराई है उसमें, और एक अलग ही सुगबुगाहट भी। यह उनका भाषिक चमत्कार नहीं तो और क्या है? जिसके कारण पाठक उनके रचना-संसार को मानो अंगीकार कर लेता है। उनका रचना क्षेत्र मात्र उनके क़लम से निकले शब्द भर बन कर नहीं रह जाता, बल्कि पाठक उनके भावों को अनुभव करने लगता है; और ऐसा इसलिए कि कथाकार रूप में निर्मल वर्मा सिर्फ़ लिखते ही नहीं, अपने पात्रों को, उन घटनाओं को मानो स्वयं जीते से दिखाई पड़ते हैं। वे अपनी कहानियों के रचयिता नहीं, बल्कि सहभागी नजर आते हैं। 'मायादर्पण' में तरन की पीड़ा, बाबू का अकेलापन और बुआ की ममता के पीछे लगता है, जैसे लेखक खुद ही ऐसे जीवन का साक्षी रहा हो। इसी तरह 'परिंदे' में लतिका का पहाड़ी प्रदेश में बर्फ़ की प्रतीक्षा में डेरा डालते परिंदों को देख कर सोचना कि परिंदे तो फिर भी उड़ जाएँगे, पर वे कहाँ जाएँगे? उसकी स्वयं की और अन्य चरित्रों की गंतव्यहीन प्रतीक्षा को इंगित करता है।
साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें १९८५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९९९ में ज्ञानपीठ पुरस्कार और २००२ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं २००५ में उन्हें भारत सरकार द्वारा नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।
फेफड़े की बीमारी से जूझने के बाद ७६ वर्ष की अवस्था में २५ अक्टूबर २००५ को दिल्ली में उनका निधन हो गया और एक दैदीप्यमान सितारा सदा के लिए विलुप्त हो गया।
संदर्भ
- निर्मल वर्मा - भारतकोश, ज्ञान का हिंदी महासागर
- विकिपीडिया
- Iloveindia.com
- निर्मल वर्मा की लोकप्रिय कहानियाँ
- Nirmal Verma -- Hindi Writer - Library of Congress
- किताबों की बातें : साहित्य का 'निर्मल' संसार
- यूट्यूब पर उपलब्ध निर्मल वर्मा के साक्षात्कार
लेखक परिचय
विनीता काम्बीरी
सम्प्रति - प्रवक्ता (हिंदी), शिक्षा निदेशालय, दिल्ली प्रशासन
हिंदी प्रस्तोता - आकाशवाणी दिल्ली का एफ० एम० रेनबो चैनल
प्राप्त सम्मान (हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण व कर्मठता पर)-
सहस्राब्दी हिंदी शिक्षक सम्मान- यूएन
नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड - पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार
राज्य शिक्षक सम्मान - शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार
रुचि - मिनिएचर-पेंटिंग, कहानियाँ और कविताएँ लिखना
ई-मेल : vinitakambiri@gmail.com
हिंदी प्रस्तोता - आकाशवाणी दिल्ली का एफ० एम० रेनबो चैनल
प्राप्त सम्मान (हिंदी शिक्षण के प्रति समर्पण व कर्मठता पर)-
सहस्राब्दी हिंदी शिक्षक सम्मान- यूएन
नेशनल वुमन एक्सीलेंस अवार्ड - पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय, भारत सरकार
राज्य शिक्षक सम्मान - शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार
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ई-मेल : vinitakambiri@gmail.com
हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कथाकार आदरणीय निर्मल वर्मा जी एक समकालीन अभिव्यक्ति और शब्दशिल्प की दृष्टि से बेजोड़ साहित्यकार थे। अपनी रचनाओं से संवेदनात्मक बुनावट में आधुनिक बोध का संशोधन करने वाले वह साठ सत्तर के दशक के दौरान अग्रणी स्थान के लेखक रहे। किसी भी संस्मरण के यथार्थ को भेदकर उस पात्र के भीतर तक पहुंचने की क्षमता रखते थे। प्रत्यक्ष अनुभवों के आधार पर भारतीय तथा पश्चिमी संस्कृतियों के अंतर्द्वंद्व की व्यापकता को अपने कलम से उकेरना उन्हें खूब आता था। आदरणीया विनीता जी आपके आलेख द्वारा महान कथाकार माननीय निर्मल वर्मा जी के जीवनी का दृष्टांत देकर कहानी आंदोलन जगत में खूबसूरत ब्यौरा प्रस्तुत किया है। लेखन के संदर्भ को एकत्रित करके बहुत ही आयामी पध्दति से इस लेख को साहित्यिक परिदृश्य के समान पाठकों के समक्ष रखने हेतु आपका धन्यवाद और आभार। अग्रिम आलेखों के योगदान के लिए आपको अनंत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteविनीता जी, कहानी को नए मानी, आयाम और ज़मीन देने वाले निर्मल वर्मा जी पर आपका आलेख बहुत अच्छा लगा। कहानी की प्रकृति के प्रति उनके दृष्टिकोण का उद्धरण अनुपम है। आपको इस जानकारीपूर्ण लेख के लिए बधाई और आभार।
ReplyDeleteविनीता जी नमस्ते। आपको निर्मल वर्मा जी पर लिखे इस उत्तम लेख के लिये हार्दिक बधाई। आपका हर लेख जानकारी भरा एवं रोचक रहता है। आपके आज के लेख से एक बार पुनः निर्मल वर्मा जी के साहित्यिक योगदान को जानने व समझने का अवसर मिला। आपका यह लेख भी एक कहानी के तरह पाठक को अपने से जोड़े रखता है। पुनः बधाई।
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