Tuesday, April 19, 2022

उत्तराखंड की वन वीथियों से

 

किसी समय नैनीताल के पहाड़ की ऊँचाई से नीचे बसा एक छोटा-सा गाँव था, कालाढूंगी। यहाँ खेती की ज़मीन थी, वह अब भी है, घने जंगल थे, उनमें वन्यजीव थे, कालाढूंगी के आसपास अब भी कम या ज्यादा यही दृश्य है, आपको देखते ही हिरन सड़क के किनारे से झट झाड़ी में दुबक जाएँ। ऐसा हो सकता है। 

कालाढूंगी गाँव अब ज़रूर सँवर गया है। यहाँ आम के बगीचों में कोयल की कूक है, लीची के बागों में रंग और खुशबू है, कटहल से लदे पेड़ों के आसपास गूल (छोटी नहर) में बहता पानी है। इसी कालाढूंगी में जिम कॉर्बेट की स्मृतियाँ भी रहती हैं, दरअसल कालाढूंगी का अच्छा-सा नाम कॉर्बेट नगरी भी है। यहाँ रहते थे जिम कॉर्बेट, जो प्रसिद्ध शिकारी भी थे और वन्य जीवन के संरक्षक भी।

शिकारी और संरक्षक, एकसाथ? कैसे?

ऐसे कि दरअसल जिम कॉर्बेट ने उन आदमखोर बाघ और तेंदुओं का शिकार किया, जो मनुष्य को जीने नहीं देते थे और उन निरीह जंतुओं के संरक्षण की पहल की, जो शौक और स्वाद के चलते मारे जाते थे।

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की सफ़ारी के वैभव-गौरव में सब भूल जाते हैं कि इसी रास्ते के आस-पास ही जिम कॉर्बेट फ़ॉल है और कालाढूंगी में छोटी हल्द्वानी नाम का वह गाँव भी जिसमें जिम कॉर्बेट, भोले ग्रामीणों के साथी बन कर रहे और यहीं है सर्दी के मौसम का जिम कॉर्बेट का निवास, उनका बंगला जो अब उनकी स्मृति में संग्रहालय बन गया है। 

आज का विख्यात जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क पहले हैली पार्क कहलाता था, सर मैल्कम हैली तत्कालीन संयुक्त प्रांत के गवर्नर थे। १९५४-५५ में एक बार फिर यह सुरक्षित क्षेत्र रामगंगा नेशनल पार्क कहलाया, १९५७ में इस अभयारण्य को यह नया नाम जिम कॉर्बेट के प्रति सम्मान के कारण उनकी स्मृति में दिया गया। १९३० से ही जिम कॉर्बेट इस परिवेश से जुड़े थे, उस समय तक वे एक विख्यात लेखक और पर्यावरणविद के रूप में पहचान बना चुके थे।

'Man eaters of kumaon' किताब के जिस लेखक को हम जिम कॉर्बेट के नाम से जानते हैं, उनका पूरा नाम जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट था। आज भी गढ़वाल और कुमाऊँ मंडल में वे एक प्रसिद्ध शिकारी के रूप में जाने जाते हैं। आयरिश ब्रिटिश मूल के जिम कॉर्बेट का जन्म ब्रिटिश भारत के युनाइटेड प्रोविंस नैनीताल, अब उत्तराखंड में २५ जुलाई १८७५ में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा नैनीताल में शुरू हुई, जहाँ उनके पिता पोस्टमास्टर के पद पर तैनात थे। वे एक बड़े परिवार की आठवीं संतान के रूप में जन्में। उनके पिता क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट और माँ मेरी जेन १८६२ में नैनीताल रहने आ गए। १८७८ में उनके पिता सेवानिवृत्त हुए, किंतु १८८१ में दिल का दौरा पड़ने से उनका आकस्मिक निधन हो गया। जिम उस समय केवल छह वर्ष के थे। उनके बड़े भाई ने पिता के स्थान पर नौकरी शुरू की। किंतु अब इस बड़े परिवार का जीवन उतना सरल नहीं रह गया था। यद्यपि उनकी माँ पारिवारिक जिम्मेदारियों को काफी सक्रिय रह कर निभाती थीं, तथापि जिम ने कम उम्र में पढ़ाई छोड़ कर पंजाब, बिहार जैसे स्थानों पर आजीविका के लिए रेलवे में नौकरी की। 

उनका पैतृक घर नैनीताल में था किंतु सर्दियाँ कालाढूंगी में बीतती। बचपन में कालाढूंगी के जंगलों-वन-वीथियों में घूमते हुए जिम कॉर्बेट के मन में प्रकृति प्रेम, वनस्पतियों और जीव-जंतु-पंछियों से प्यार की भावना पनपी और निरंतर गहरी होती चली गई। आगे चल कर मानव अधिकारों के प्रति उनकी जागरूकता, वनों के संरक्षण में अभिरुचि इसी पृष्ठभूमि की देन कही जा सकती है। कॉर्बेट न केवल बंदूक चलाना जानते थे, हाथ से किए जाने वाले कुछ और कामों में भी वे अत्यंत कुशल थे, जैसे लकड़ी पर रंदा चलाना यानी बढ़ई के काम को वे बखूबी अंजाम देते। कालांतर में उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में कर्नल का पद मिला।

इलाके के निरीह ग्रामीण जब अपनी जान की गुहार लगाते, भले शिकारी कॉर्बेट अकेले पैदल आदमखोर बाघों के शिकार को निकल पड़ते। साथ रहता उनका प्यारा कुत्ता रॉबिन - १९२६ में उन्होंने अपने कुछ प्रसिद्ध शिकार किए। लेकिन वे बाघों की घटती आबादी को लेकर भी चिंतित रहते थे। जिम एक अच्छे छायाकार थे, प्राकृतिक दृश्यों के सुंदर फोटो लेने में माहिर! 

लेखक के रूप में उनकी ख्याति का आधार उनकी कई पुस्तकें हैं, जिनमें प्रमुख हैं - माई इंडिया, मैंन ईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग, जंगल लोर, टेम्पल टाइगर!

परिवार के बिखराव और कई मृत्युओं के बाद कॉर्बेट अपनी बहन मैगी कॉर्बेट के साथ गर्नी हाउस, नैनीताल में रहते थे। इस घर को बेचकर १९४७ में दोनों भाई बहन केन्या चले गए। आजीवन अविवाहित जिम कॉर्बेट का, केन्या में ही अस्सी वर्ष की अवस्था में, १९ अप्रैल १९५५ में निधन हुआ। उस समय वे अपनी छठी किताब 'ट्री टॉप्स' पूरी कर चुके थे, जब ह्रदय गति रुक जाने से कॉर्बेट का निधन हुआ। वे केन्या में ही दफ़नाए गए। जिम कॉर्बेट फाउंडेशन ने, केन्या में बरसों से उपेक्षित कॉर्बेट और उनकी बहन की कब्रों को १९९४ और उसके बाद ठीक किया। 

भारत में कॉर्बेट का निवास एक संग्रहालय बनाया जा चुका है, जो जिम कॉर्बेट संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। संग्रहालय के पास ही छोटी हल्द्वानी नाम का वह गाँव है जहाँ के भोले ग्रामीणों के बीच जिम कॉर्बेट ने बहुत समय बिताया। वास्तव में उन्होंने इस गाँव को अपना ही लिया था। यहीं मोती हाउस नाम का वह बँगला है जिसे कॉर्बेट ने अपने मित्र मोती सिंह के लिए बनवाया। मोती हाउस मित्रों से मिलने का स्थान था और कॉर्बेट वॉल सात से भी अधिक किलोमीटर लंबी वह दीवार जिसे १९२५ में जंगली जानवरों से फसल को बचाने के लिए गाँव के चारों ओर बनाया गया था। 

जिम कॉर्बेट ने भारत से प्रस्थान के बाद केन्या में अनवरत लेखन किया और वन्य जीवन से संबद्ध अपनी चिंताओं को शब्द दिए। १९३५ में प्रकाशित 'जंगल स्टोरीज़' किताब में गाँव और वन जीवन पर आधारित लेखन है। 
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित 'मैन ईटर्स ऑफ़ कुमाऊँ' पुस्तक देश और विदेश में बहुत लोकप्रिय हुई। विश्व की अनेक भाषाओं में पुस्तक का अनुवाद हुआ। १९८६ में बीबीसी ने इसका नाट्य-रूप 'मैन ईटर्स ऑफ़ इंडि्या' शीर्षक से प्रस्तुत किया। इस पुस्तक में लेखक बाघ-चीतों के आदमखोर बनने के कारणों पर भी विचार करते हैं।

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से ही 'द मैन ईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग' कृति का प्रकाशन हुआ, जिसमें जिम कॉर्बेट अपने कई शिकारों की चर्चा करते हैं। रुद्रप्रयाग के तीर्थ पथ, जंगल के खतरों के साथ जंगली सूअर से भिडंत, चीड़ के पेड़ से शिकार पर निगाह, बाघ-चीतों की आपसी लड़ाई के किस्से इस किताब में रोचकता के साथ दर्ज हुए हैं। 
'माई इंडिया' पुस्तक के लेखक जिम कॉर्बेट भारत में अपने अनुभवों और भारतीय जनजीवन से हेल-मेल की स्मृतियाँ संजोते हैं। 

'जंगल लोर' पुस्तक कॉर्बेट की आत्मकथा कही जाती है। 'द टेम्पल टाईगर एंड मोर मैन ईटर्स ऑफ़ कुमाऊँ' पुनः शिकारी जीवन के किस्से लेकर आने वाली किताब है तो 'ट्री टॉप्स' एक छोटी उपन्यासिका। 'जिम कॉर्बेट का भारत' नामक किताब में चयन किए गए आलेख हैं, चयनकर्ता हैं हॉकिन्स। 'मेरा कुमाऊँ' कृति में जिम कॉर्बेट के असंकलित लेखन को समेटा गया है। 

जिम कॉर्बेट के जीवन पर महत्वपूर्ण लेखन हुआ है। इन किताबों में उल्लेखनीय हैं - द अनपब्लिशड कॉर्बेट, रुद्रप्रयाग लेटर्स : कॉर्बेट ऑन मैन ईटिंग लेपर्ड ऑफ़ रुद्रप्रयाग, द मेकिंग ऑफ़ कॉर्बेट्स माई इंडिया, कॉर्बेट एंड द कैमरा, एन इंगलिश मेन इन इंडिया, द यूनिवर्सल अपील ऑफ़ जिम कॉर्बेट।

अपने जीवन काल में और उसके बाद भी कॉर्बेट को कई पुरस्कार प्रदान किए गए। 

जिम कॉर्बेट आजीवन प्राकृतिक संपदा और वन संरक्षण पर सोचते, लिखते, बोलते रहे। उत्तराखंड में स्थित एक छोटे गाँव और उसके आसपास रहने वाले गरीबों के साथ कॉर्बेट ने गहरा नाता जोड़ा। जब उनके हाथ में था, तब उन्होंने रेलवे ठेकेदार के रूप में काम करते हुए अनेक भारतीयों को काम पर लगाया। अपनी पुस्तक 'माई इंडिया' के समर्पण में वे लिखते हैं - "मेरे दोस्त, भारत के ये गरीब लोग जो वास्तव में गरीब हैं, जिनके बीच मैं रहा और जिन्हें मैं प्यार करता हूँ, मैं विनम्रता से पुस्तक भारत के अपने गरीब दोस्तों को समर्पित करता हूँ।" 

प्रकृति और वन्यजीव प्रेमी, एक मानव प्रेमी जिम कॉर्बेट, भारत की अमिट स्मृतियों में रहते हैं और हमेशा रहेंगे।

जिम कॉर्बेट : जीवन परिचय

पूरा नाम

एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट

जन्म

२५ जुलाई १८७५, नैनीताल अब उत्तराखंड, ब्रिटिश भारत में युनाइटेड प्रोविंस

निधन

१८ अप्रैल १९५५, केन्या

पिता

क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट

माता

मेरी जेन

पुस्तकें

  • मैन ईटर्स ऑफ कुमाऊं

  • जंगल लोर

  • जंगल स्टोरीज

  • मैन ईटिंग लैपर्ड ऑफ रुद्रप्रयाग

  • माई इंडिया

संदर्भ

  • माई इंडिया  ....जिम कॉर्बेट
  • जिम कॉर्बेट ऑफ कुमाऊं....
  • डी सी काला रविदयाल पब्लिशर
  • विकिपीडिया
  • फील्ड विज़िट जिम कॉर्बेट संग्रहालय कालाढूंगी

लेखक परिचय

डॉ० विजया सती

पूर्व एसोसिएट प्रोफ़ेसर हिंदू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्व विजिटिंग प्रोफ़ेसर ऐलते विश्वविद्यालय बुदापैश्त हंगरी
पूर्व प्रोफ़ेसर हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़ सिओल दक्षिण कोरिया
प्रकाशनादि - राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों में आलेख प्रस्तुति और उनका प्रकाशन

संप्रति - स्वांतः सुखाय, लिखना-पढ़ना

ई-मेल- vijayasatijuly१@gmail.com

5 comments:

  1. विजया जी, नैनीताल, कालाढ़ूँगी, कुमायूँ की वादियों में रहने-विचरने और पूर्णतः इन जगहों और वहाँ के निवासियों को ख़ुद को समर्पित कर देने वाले जिम कोर्बेट के बारे में आपका लेख बहुत अच्छा है। उनके बारे में बहुत सारी नयी जानकारी मिली। आपको इस लेख के लिए आभार और बधाई।

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  2. डॉ. विजया मैडम नमस्ते। आपने जिम कॉर्बेट जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। इस लेख के माध्यम से कॉर्बेट जी के बारे में व उनके प्रकृति प्रेम के बारे में बहुत सी नई बातें पता चली। आपको इस शोधपरख एवं जानकारी से भरे लेख के लिये बधाई एवं साधुवाद।

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  3. जानकारी से भरे लेख के लिए धन्यवाद।

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  4. इस सुन्दर, ज्ञानवर्धक आलेख के लिए आपको बधाई विजय जी|

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  5. आप सब के बहुमूल्य शब्दों के प्रति कृतज्ञता !

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