हमारे गौरवशाली इतिहास के एक महत्वपूर्ण प्रतीक चिह्न हैं, महामुनि पाणिनि। जिनके द्वारा संस्कृत व्याकरण को व्यवस्थित करने के आशय से लिखा गया ग्रंथ 'अष्टाध्यायी' लगभग २७०० वर्षों के उपरांत भी इतना संपूर्ण और समृद्ध है कि इसका द्वितीय संस्करण बनाए जाने की कभी आवश्यकता महसूस नहीं हुई। इसके ४००० सूत्रों में समस्त संस्कृत व्याकरण लिख दी गई है और बड़े लंबे समय तक संस्कृत के विद्यार्थी इन सूत्रों को कंठस्थ कर संस्कृत के विद्वान बनते रहे हैं। 'अष्टाध्यायी' एक व्याकरण शास्त्र से कहीं आगे तत्कालीन समाज की जीवनशैली, आर्थिक एवं राजनैतिक स्थितियाँ, भौगोलिक विस्तार इत्यादि का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज भी है, जिसमें लोगों के दार्शनिक चिंतन, रहन-सहन, खान-पान, एवं आचार-व्यवहार तक का ब्यौरा उपलब्ध है जिसकी सहायता से हम अपनी मजबूत जड़ों को पहचान सकते हैं।
जॉर्ज घेवरगीस जोसेफ़ अपनी किताब 'द क्रेस्ट ऑफ़ पीकॉक' (गणित के गैर योरोपीय मूल) में पाणिनी के विषय में लिखते हैं, "पाणिनि द्वारा संस्कृत भाषा की व्याकरण का परिपूर्ण रूप से व्यवस्थापन किए जाने के फलस्वरूप इसमें वैज्ञानिक उपयोग किए जाने की अपार संभावनाओं का विस्तार हो गया, मात्र ४००० सूत्रों के आधार पर उन्होंने लगभग पूरी संस्कृत भाषा का समूचा ढाँचा तैयार कर दिया था, जिसके मूलभूत आकार में आने वाले २५०० वर्षों में मुश्किल से ही कोई परिवर्तन हुआ। संस्कृत भाषा के भाषाई सुविधा बढ़ाने के पाणिनि के प्रयासों के अपरोक्ष परिणाम शीघ्र ही वैज्ञानिक तथा गणितीय साहित्य के चरित्रों के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे।"
जॉर्ज कॉर्डोना अपनी पुस्तक, 'पाणिनि-अ सर्वे ऑफ़ रिसर्च' में लिखते हैं, "पाणिनि की व्याकरण को कई पहलुओं से परखा गया। इन सारे विभिन्न मूल्यांकनों के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उनके द्वारा लिखी गई व्याकरण की गुणवत्ता सिद्ध करती है कि यह मानवीय बुद्धिमत्ता का एक महान ग्रंथ है।"
जीवन परिचय
गांधार के उस भाग में, जो आजकल पाक़िस्तान में स्थित है, काबुल नदी और सिंधु नदी के संगम के समीप एक छोटा सा गाँव है जिसका नाम है शलातुर। वर्तमान में इसे लहुर के नाम से जाना जाता है। इसी ग्राम में जन्म हुआ था, इस विद्वान महामुनि पाणिनि का। शलातुर ग्राम में जन्म होने के कारण इन्हें शालातुरीय नाम से भी जाना जाता है। पाणिनि ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि शब्द विद्या के अनेकों आचार्यों में अपने-अपने सिद्धांतों के कारण बड़ा मतभेद है और विद्यार्थी प्रायः इनमें उलझ कर दिग्भ्रमित होते रहते हैं, ऐसे में उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि इसका उपाय यही है कि संस्कृत के व्याकरण को व्यवस्थित किया जाए। कार्य अत्यंत दुरूह था किंतु पाणिनि ने इसके लिए निम्नानुसार त्रिस्तरीय मार्ग मानचित्र तैयार किया।
१. तत्समय प्रचलित सभी व्याकरणों का गहन अध्ययन एवं साथ ही वेद, उपनिषद, ब्राह्मण इत्यादि ग्रंथों का भी सूक्ष्मता से अध्ययन, तत्पश्चात उसमें से शब्द सामग्री संकलन।
२. व्याकरण की उपलब्ध सामग्री का गहन व सूक्ष्म अध्ययन तथा संकलन।
३. लोक भ्रमण कर जन जीवन का परिचय प्राप्त करना व लोक प्रचलित शब्दों इत्यादि का संकलन।
इस प्रारंभिक कार्य के पश्चात पाणिनि के पास अगाध शब्द भंडार और व्याकरण के नियम विनियमों का संकलन हो गया। अब कार्य था उन्हें वर्गीकृत करना एवं व्याकरण के विभिन्न मतों का सूक्ष्मता से परीक्षण तथा पुनर्संयोजन।
पाणिनि के समय शिक्षा का व्यापक विस्तार था। संस्कृत भाषा मूल रूप से दो चरणों में विभक्त थी। पहली वैदिक भाषा जिस में वेद, उपनिषद इत्यादि लिखे गए थे, यह भाषा का परिष्कृत रूप था तथा दूसरी लौकिक भाषा जो कि सामान्यतः बोल-चाल व संप्रेषण की भाषा थी। पाणिनि इन दोनों ही भाषाओँ में सिद्धहस्त थे और उन्होंने अपने व्याकरण में दोनों का ही उपयोग किया किंतु लौकिक भाषा को वैदिक भाषा पर प्रधानता दी। उन्होंने ग्रंथ रचना के साथ-साथ संभवतः तक्षशिला विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य भी किया, उनके विषय के नाम को कोत्स कहा जाता है।
लगभग ४६० ईसा पूर्व इस महान वैयाकरण ने देह त्याग दी।
साहित्यिक साधना
इस बात में कोई संदेह नहीं कि पाणिनि का साहित्य के क्षेत्र में प्रमुख तथा सबसे महत्वपूर्ण योगदान संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी की रचना है, किंतु उनका साहित्य सृजन मात्र व्याकरण को व्यवस्थित करने के मिशन रुपी कार्य तक ही सीमित नहीं था। जैसा कि प्रसिद्ध विद्वान डॉ० औफ्रेक्ट तथा डॉ० पिशेल कहते हैं कि पाणिनि मात्र एक सफ़ल वैय्याकरण ही नहीं बल्कि एक उत्कृष्ट कवि भी थे। यह सत्य है कि पाणिनि द्वारा मात्र कभी-कभी और छोटे-छोटे पद्यों की रचनाएँ नहीं की गईं, किंतु साहित्य के प्रथम महाकाव्य का रचियता उन्हें माना जाता है। पाणिनि द्वारा रचित इस महाकाव्य का नाम 'जाम्बवतीजय' है, एक और रचना 'पाताल विजय' भी है, किंतु दुर्भाग्य से ये रचनाएँ वर्तमान में अप्राप्त हैं। इसीलिए कुछ लोग इन दोनों रचनाओं को भिन्न-भिन्न न मानते हुए एक ही मानते हैं। ऐतिहासिक साहित्यकारों जैसे राजशेखर, रामयुक्त व नामिसाधु द्वारा रचित सूक्तियों और टीकाओं में इन रचनाओं का उल्लेख मिलता है। उदाहरणार्थ राजशेखर, जह्लण की सूक्तिमुक्तावली में लिखते हैं,
नमः पाणिनये तस्मै यस्मादाविर भूदिह।
आदौ व्याकरणं काव्यमनु जाम्बवतीजयं।
पाणिनि की अन्य साहित्यिक रचनाओं को लेकर भले ही पुरातत्ववेत्ताओं और साहित्यकारों में मतभेद हो, किंतु उनके द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण के महाग्रंथ अष्टाध्यायी, जिसे 'पाणिनीय अष्टक' के नाम से भी जाना जाता है, की प्रसिद्धि निर्विवाद है। पाणिनि द्वारा रचित इस व्याकरण को विश्व का प्रथम औपचारिक तंत्र कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। पाणिनि द्वारा इस व्याकरण की रचना में सहायक प्रतीकों की सहायता ली और व्याकरण की तमाम व्युत्पत्तियों के भली प्रकार से नियंत्रण के प्रयोजन से, वाक्य रचना के नियमानुसार, उचित श्रेणियों के विभाजन के लिए, नए शब्दांशों का प्रयोग किया।
अष्टाध्यायी की बात करें तो इसके आठ अध्यायों तथा ४००० सूत्रों में संस्कृत का संपूर्ण व्याकरण अपने समग्र रूप में समाहित है। इसमें शब्दों को अनेक सूचियों में वर्गीकृत किया गया है जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं,
धातु पाठ - इस सूची में १९४३ धातुएँ हैं। इनमें पाणिनि से पूर्व साहित्य में प्रचलित धातुएँ तथा पाणिनि द्वारा लोक अध्ययन के माध्यम से एकत्र की गई धातुओं को संग्रहीत किया गया था। यद्यपि यह सूची अष्टाध्यायी का भाग नहीं थी लेकिन उसकी पूरक कही जा सकती है।
आचार्य सूची - इस सूची में वेदों के समस्त आचार्यों को सम्मिलित किया गया था। प्रत्येक आचार्य के नाम से प्रसिद्ध उनका चरण, उस चरण में पढ़ने वाले छात्र तथा उन छंद व शाखाओं का विस्तृत विवरण इस सूची में उपलब्ध है।
गोत्र सूची - पाणिनि ने मूल सात गोत्रों के अतिरिक्त वैदिक तथा लौकिक दोनों भाषाओं के परिवारों के नामों की समग्र सूची बनाई। एक गोत्र में विभिन्न पीढ़ियों का जातिनाम किस प्रकार रखा जाता था इसका संपूर्ण विवरण इस सूची में उपलब्ध है।
भौगोलिक सूची - इस सूची में बड़े ग्रामों के नाम एवं उनके भूगोल संबंधी गणों को सूचीबद्ध किया गया है। ग्रामों के नाम से विभिन्न जातियों के नाम भी उत्पादित होते हैं। वर्तमान निवास एवं पूर्वजों के स्थान के नाम को मिला कर बने उपनाम को व्यक्ति के नाम से जोड़ कर उसका संपूर्ण नाम बनता है और अंततः ये नाम भी भाषा के अंग बनते हैं। पाणिनि ने विभिन्न कबीलों और जनपदों को भी अपनी सूची में शामिल किया।
व्यवसाय सूची - इसमें विभिन्न पेशे, उससे संबंधित शब्द, उन शब्दों की व्युत्पत्ति तथा विभिन्न प्रत्ययों के साथ उन शब्दों की संधि इत्यादि का विस्तृत विवरण अष्टाध्यायी के चौथे एवं पाँचवे अध्याय में उपलब्ध है।
आर्थिक विषयों की सूची - विभिन्न प्रचलित सिक्कों के नाम और व्यापार के विभिन्न तरीकों को इस सूची में रखा गया।
महर्षि पतंजलि पाणिनि के संबंध में कहते हैं कि उन्होंने एक बार जो सूत्र लिख दिया फिर उसे कभी भी काटा नहीं। व्याकरण में उनका प्रत्येक अक्षर प्रमाण माना जाता है, वैदिक शब्द हों या लौकिक शब्द जिस ओर आचार्य की दृष्टि गई, उसे ही रस से सींच दिया।
संस्कृत भाषा अमर है और इसीलिए महामुनि पाणिनि भी। हम इस बात पर निःसंदेह रूप से गर्व कर सकते हैं कि हमने भी उसी पावन भूमि पर जन्म लिया है जहाँ पाणिनि जैसे महापुरुष पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपने एक संक्षिप्त जीवन काल में वह कार्य कर दिया जो सहस्रों वर्षों तक मानव जाति के काम आ सके।
पाणिनि : जीवन परिचय |
जीवन काल | ५२० - ४६० ईसा पूर्व (संभावित) |
जन्मस्थान | शलातुर (वर्तमान लहुर) (गंधार प्रदेश, वर्तमान पकिस्तान) |
पिता | पणिन |
माता | दीक्षा |
गुरु | उपवर्ष |
कृतियाँ और रचनाएँ |
अष्टाध्यायी (सूत्रपाठ)(८ अध्याय एवं ४००० सूत्र) धातुपाठ (१० गण तथा २००० धातुएँ) गणपाठ (सूत्रपठित गणों का पाठ) उणादिसूत्र (कुछ इतिहासविद इसे पाणिनिरचित मानते हैं) जांबवती विजय / पाताल विजय
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*शब्दः लोके प्रकाशते- जिनका नाम सर्वत्र प्रकाशित है।
संदर्भ
- G Cardona, Panini : a survey of research (Paris, 1976).
- G G Joseph, The crest of the peacock (London, 1991)
- विकिपिडिया
अमित खरे
पद - संयुक्त संचालक, विभाग - मध्य प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग , भोपाल (म० प्र०)
शिक्षा - विद्युत् अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर उपाधि।
प्रकाशन - विभिन्न ई-पत्रिकाओं एवं समाचारपत्रों में रचनाएँ प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगताओं में विजेता। विगत दो वर्षों से 'कविता की पाठशाला' व्हाट्सएप्प समूह की सक्रिय सदस्यता।
मोबाईल - 9406902151, ई-मेल - amit190767 @yahoo.co in
बहुत बढ़िया आलेख!इतनी जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteपाणिनि पर उम्दा आलेख के लिए आदरणीय अमित जी को साधुवाद!
ReplyDeleteअमित जी, निश्चित रूप से पाणिनि द्वारा किए गए कामों की पुष्टि के लिए किन्हीं तथ्यों की आवश्यकता नहीं है; उनके बारे में 'काम बोलता है' वाक्यांश पूर्णतः खरा है। आज उन्हीं के किए गए कामों के फलस्वरूप तथाकथित 'आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस' के क्षेत्र में भी आगे बढ़ा जा सक रहा है। आपने महामुनि पाणिनि के जीवन और कृतित्व को इस लेख के ज़रिये हम लोगों के बीच लेकर बड़ा काम किया है; निश्चित ही यह मुश्किल रहा होगा। आपको इस आलेख के लिए तहे दिल से आभार और बधाई।
ReplyDeleteइस लेख की सबसे बड़ी और सार्थक उपलब्धि यही है कि सीमित शब्दों में महामुनि पाणिनि के कृतित्व और उनके जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों से हमारा परिचिय करा दिया गया है। जिसके लिए अमित जी को साधुवाद।
ReplyDeleteअमित जी नमस्कार। आपको महामुनि पाणिनी पर लिखे समृद्ध लेख के लिये बहुत बहुत बधाई। इस लेख के माध्यम से पाणिनी के सृजन के बारे में बहुत सारी जानकारी मिली। आपका यह लेख पाणिनी को और अधिक और विस्तृत रूप में पढ़ने के लिये उत्सुकता पैदा करता है। आपको इस शोधपरक लेख के लिये बधाई।
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