"मैं हिंदू जन्मा, क्योंकि उस पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं था, पर मैं हिंदू की तरह नहीं मरूँगा।"
सन १९३५ में डॉ० भीमराव अंबेडकर ने यह घोषणा की थी। भगवान बुद्ध की जिस प्रतिमा के सामने वे रोज़ सुबह सबसे पहले झुककर वंदन करते थे, उसमें भगवान खुली आँखों से ध्यान में हैं। बाबासाहेब का विश्वास था कि बुद्ध ही थे जिन्होंने खुली आँखों के साथ सुदूर प्रदेशों तक यात्रा की थी और आम लोगों को जीवन का सही मार्ग दिखाया था। उनके अनुयायियों द्वारा की जाने वाली 'जय भीम' की उद्घोषणा और बाबा साहेब को प्रिय लगने वाला नीला रंग समानता का प्रतीक है। मराठी में बाबा, पिता को कहा जाता है। डॉ० अंबेडकर और उनके लाखों अनुयायियों के बौद्ध धर्म ग्रहण करने से भारत में धार्मिक और सामाजिक क्रांति का सूत्रपात हुआ। उनका लंबा वक्तव्य 'जाति के विनाश' पर है। २६ जनवरी १९५० को उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि "हम विरोधाभासों से भरे जीवन में प्रवेश कर रहे हैं।"
सन १९२० में मराठी समाचार पत्र 'मूकनायक' शुरू करने वाले इस महानायक ने संविधान समिति में रहते हुए पूरी कोशिश की थी कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का रंग केसरी हो। संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ० बाबासाहेब अंबेडकर ने भारतीय संविधान का पहला प्रारूप फरवरी सन १९४८ को डॉ० राजेंद्र प्रसाद को सौंपा जो २६ नवंबर १९४९ को अनुमोदित होने के बाद डॉ० अंबेडकर पूरे देश में 'आधुनिक मनु' और द्रष्टा के रूप में पहचाने जाने लगे। उनका महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संविधान और हिंदू कोड बिल बनाने में है।
"अंतर्राष्ट्रीय अंबेडकर मेमोरियल" लंदन में उनकी कई चीज़ें हैं जैसे जिस मेज़ और कुर्सी पर बैठकर उन्होंने भारत का संविधान लिखा। वे भोजन के दौरान काँटे और छुरी का उपयोग करते थे। उनकी यात्रा किट में खूबसूरत चित्र वाला लकड़ी का बक्सा था, जिस पर सुंदर काँच लगा था, ढक्कन पर सुंदर कलाकारी थी। बक्से के अंदर आईना था, लकड़ी की साबुनदानी पर भी सुनहरी चित्रकला थी। इसमें ब्रश और आईना, टूथपेस्ट और चश्मा रखने की डिब्बी थी। ब्रश का उपयोग वे अपना कोट साफ़ करने के लिए करते थे। हालाँकि जब घर पर होते थे तो सूती कमीज़ और पायजामा पहनते थे। रोज़ चमड़े के जूते पहनते थे। वे चाँदी के फ्रेम वाले चश्मे का उपयोग करते थे। डॉक्टर साहब को चीनी मिट्टी के बर्तनों का बहुत शौक था। वे ख़ास सेट का प्रयोग किसी विशेष अवसर पर करते थे, चाय का सेट चाय के लिए, कॉफ़ी का सेट कॉफ़ी के लिए और नाश्ते का सेट नाश्ते के लिए तथा दोपहर के भोजन का सेट दोपहर के भोजन के लिए उपयोग करते थे। डॉ० बाबासाहेब को बागवानी का भी शौक था। डॉक्टर साहब तंत्रिका शोथ, उच्च रक्तचाप और मधुमेह से पीड़ित थे। इन व्याधियों के लिए योगासन प्रभावी होते हैं इसलिए चाय पीने और समाचार पत्र पढ़ने के बाद वे योगासन करते थे। उन्होंने दिल्ली से वॉयलिन खरीदा था और मुंबई में साठे बंधुओं से इसे बजाना सीख रहे थे। वे वॉयलिन से विभिन्न प्रकार की कई धुन और प्राणियों की आवाज़ निकाल लेते थे। उन्होंने दिल्ली में श्री मुखर्जी जी से भी वॉयलिन बजाना सीखा।
अपने पिता-माता, सूबेदार रामजी सकपाल और भीमाबाई की वे १४वीं संतान थे। सूबेदार रामजी सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद कुछ समय दापोली में रहे और फिर सपरिवार सातारा चले गए। सातारा हाई स्कूल (अब प्रताप सिंह हाई स्कूल) में ७ नवंबर १९०० को भीमराव अँग्रेज़ी की पहली कक्षा में भर्ती हुए। स्कूल में तब उनके शिक्षक थे कृष्णा जी केशव अंबेडकर, जिनके नाम पर भीमराव ने अपना उपनाम सकपाल, जो उनके पिता के समय उनके मूल गाँव अंबेवाडे से अंबावाडेकर हो गया था, को बदलकर अंबेडकर कर लिया। भीमराव ने इस स्कूल से चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की। उसके बाद सूबेदार रामजी सकपाल सातारा से मुंबई चले गए ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त हो सके। नवंबर-दिसंबर १९०४ में वे दाबक चॉल (एल्फिंस्टन रोड) पर अपने परिवार के साथ रहते थे। स्कूल की इमारत भायखला में थी जो अब मध्य रेलवे के मुख्य अस्पताल का भवन है, जिसे 'डॉ० बाबासाहेब अंबेडकर स्मारक अस्पताल' का नाम दिया गया है। कालातंर में सन १९१२ में सूबेदार ने घर बदला और बीआईटी चॉल, पोईबावरी, परेल, मुंबई चले गए। उन्होंने भीमराव को एल्फिंस्टन हाई स्कूल में ३ जनवरी १९०५ को नवीं कक्षा में प्रवेश दिलवाया। भीमराव ने मैट्रिक की परीक्षा सन १९०७ में उत्तीर्ण की। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने वाले वे पहले अछूत थे। वे विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले भी पहले भारतीय थे। सन १९१३ में २२ वर्ष की आयु में बड़ौदा के सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने उन्हें न्यूयॉर्क के कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने का अवसर दिया। उन्हें तीन वर्ष के लिए ११.५० डॉलर की प्रति माह की बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति दी गई। उन्होंने वहाँ १९१३ से १९१६ तक अध्ययन किया। कला संकाय में स्नातकोत्तर उपाधि (एम० ए०) के लिए उन्होंने विवादित विषय चुना, ईस्ट इंडिया कंपनी (१५ मई १९१५) का प्रशासन और वित्त, जिसे विश्वविद्यालय ने स्वीकृत किया और उन्हें एम० ए० की उपाधि (२ जून १९१५) को प्रदान की गई। बाद में उन्होंने शोध पत्र, भारत का राष्ट्रीय लाभांश- एक ऐतिहासिक और विश्लेषणपरक अध्ययन उसी विश्वविद्यालय में पी० एच० डी० (१९१६) की उपाधि के लिए प्रस्तुत किया। १ अक्टूबर १९१८ को डॉ० अंबेडकर की नियुक्ति सिडनम कॉलेज में अर्थशास्त्र के अस्थायी प्रोफ़ेसर के रूप में हुई, जहाँ उनका वेतन प्रति माह ४५० रुपए था। उन्होंने १० नवंबर १९१८ को कॉलेज में पदभार ग्रहण किया। इसके बाद सन १९२८ में डॉ० बाबासाहेब सरकारी विधि महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए और बाद में १ जून १९३५ को वे प्राचार्य बने। बॉम्बे विधानसभा परिषद में उन्होंने सन १९२६ से १९३५ तक सेवाएँ दीं। इस अवधि में उन्होंने किसानों, श्रमिकों और दलित वर्ग की सहायता के लिए कई विधेयक रखे।
अप्रैल १९०६ में, जब भीमराव लगभग १५ वर्ष के थे और पाँचवी कक्षा में पढ़ते थे तब नौ साल की रमाबाई से उनका विवाह हुआ। डॉ० अंबेडकर ने अपनी प्रिय पत्नी रमाबाई के सन १९३५ में निधन पर खुद को बहुत असहाय महसूस किया था। डॉ० अंबेडकर की पूरी बीमारी में डॉ० शारदा कबीर (डॉ० सविता-माई) ने उनकी सेवा-सुश्रुषा की और सालों बाद डॉ० अंबेडकर ने उनसे १५ अप्रैल १९४८ को विवाह किया। नई दिल्ली स्थित सरकारी बंगले १, हरदिंग एवेन्यू में उन्होंने रजिस्टर्ड विवाह किया। उन्होंने शानदार तरीके से समारोह करने से इंकार कर दिया और विवाह केवल १५-२० करीबी रिश्तेदारों और मित्रों की उपस्थिति में हुआ।
डॉ० अंबेडकर ने २०-२१ मार्च १९२० में महाराष्ट्र के कोल्हापुर राज के मानगाँव (कागल) में शाहु महाराज की छत्रछाया में दक्षिण महाराष्ट्र के अछूतों की सभा की अध्यक्षता की। इस सभा को अंबेडकरीय आंदोलन की शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। सभा को संबोधित करते हुए महाराज ने घोषित किया, "अंबेडकर के रूप में आपको तारणहार मिल गया है।" डॉ० अंबेडकर ने महाड के 'चवदार तले' (मीठे तालाब) के किनारे २० मार्च १९२७ को सत्याग्रह शुरू किया ताकि अस्पृश्यों को पीने का पानी मिल सके। उन्होंने ९ मार्च १९२४ को दामोदर हॉल, परेल में सभा बुलाई ताकि सरकार के सामने अस्पृश्यों को होने वाली सामाजिक और राजनीतिक दिक्कतों को रखने से पहले केंद्रीय समिति का गठन किया जा सके। इस समिति के परिणाम स्वरूप २ जुलाई १९२४ को बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन हुआ। डॉ० अंबेडकर कार्यकारी समिति के अध्यक्ष थे। सभा के उद्देश्य थे पिछड़े तबके में शिक्षा का प्रसार करने के लिए छात्रावास, वाचनालय, सामाजिक केंद्र और अध्ययन मंडल आदि खोलना और उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उद्योग-धंधे और कृषि विद्यालय प्रारंभ करना। बहिष्कृत हितकारिणी सभा ने २५ दिसंबर १९२७ को सत्याग्रह के पर्चे बाँटते हुए महाड़ सत्याग्रह का आयोजन किया। तब हिंदू धर्म ग्रंथ मनुस्मृति का सबके सामने दहन किया गया। समानता के लिए संगठन के रूप में समाज समता संघ की स्थापना ४ सितंबर १९२७ को हुई।
उन्होंने नासिक के कालाराम मंदिर में ३ मार्च १९३० को सत्याग्रह किया। अस्पृश्यों को हिंदू मंदिर में जाने के अधिकार की स्वीकृति दिलाने के लिए उन्हें लगभग पाँच सालों तक लंबा संघर्ष करना पड़ा। डॉ० अंबेडकर ने अस्पृश्यों के मंदिर प्रवेश के अपने संकल्प को लेकर एक पत्र प्रकाशित किया, जो केंद्रीय विधान परिषद में सन १९३३ को प्रस्तुत किया गया। उसकी एक प्रति महात्मा गाँधी को भी प्रेषित की। उसके साथ एक पत्र भी था। डॉ० अंबेडकर ने विस्तार से बताया कि उनकी रुचि भगवान में नहीं बल्कि अस्पृश्यों के मानव अधिकारों की अनुमति दिलाने में थी।
३ फरवरी १९२८ को साइमन आयोग भारत आया, उसका बड़े पैमाने पर विरोध हुआ पर डॉ० बाबासाहेब ने सहयोग प्रदान किया और माँगों के संबंध के दो स्मरण पत्र २३ अक्तूबर १९२८ को देते हुए दलित वर्ग के मुद्दों और उनके उत्थान की बात आयोग के सामने रखी। पहली माँग अल्पसंख्यक समूह के रूप में स्वतंत्र देखा जाए और दूसरा, उन्हें ज़्यादा राजनीतिक अधिकार दिए जाएँ। दलित वर्ग और पददलित लोगों के मुद्दों के बारे में जागृति फैलाने की दिशा में डॉ० बाबासाहेब का यह पहला कदम था। नवंबर १९३० में भारत के आला नेताओं ने लंदन में पहले गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लिया, जहाँ दलितों और अस्पृश्यों के मुद्दे पर डॉ० अंबेडकर ने बेहद प्रभावी और अविस्मरणीय वक्तव्य दिया। उन्होंने माँग की कि पिछड़े तबकों का अलग चुनाव क्षेत्र हो। पिछड़े तबकों के लिए स्वतंत्र मतदाता के विरोध में २० सितंबर १९३२ को गाँधीजी ने आमरण अनशन की घोषणा की। डॉ० अंबेडकर अपने मुद्दे पर दृढ़ थे। गाँधीजी ने अपना अनशन २७ सितंबर को तोड़ा। गाँधीजी और डॉ० बाबासाहेब के बीच हुए पत्र-व्यवहार इस बात की पुष्टि करते हैं कि दोनों के बीच मतभेद थे लेकिन बाबासाहेब ने इसे गाँठ की तरह नहीं रखा, यह बात गाँधीजी की मृत्यु के बाद उनके प्रति श्रद्धांजलि देते समय आड़े नहीं आई थी।
डॉ० अंबेडकर द्वारा २४ नवंबर १९३० को शुरू किए गए 'जनता' समाचार पत्र की पिछड़े तबके के आंदोलन में विशेष भूमिका रही। उन्होंने ४ फरवरी १९५६ को 'जनता' को नया नाम 'प्रबुद्ध भारत' दिया। डॉ० अंबेडकर द्वारा लंदन से १९३० से १९३३ के बीच लिखे लंबे पत्र जनता में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने अपने धर्म परिवर्तन की घोषणा येओला सभा में १९३५ को की। इस निर्णय पर पूरे भारत से तीव्र प्रतिक्रियाएँ आईं। महात्मा गाँधी ने निवेदन किया कि वे अपने निर्णय पर फिर से विचार करें पर डॉ० अंबेडकर अटल थे। उन्होंने आज़ाद श्रमिक दल की स्थापना १५ अगस्त १९३६ को की। दल के घोषणा-पत्र में कृषि काश्तकारों, किसानों और कर्मचारियों के कष्टों को दूर करने का वादा किया गया था। नागपुर में ८ जुलाई १९४२ को भारतीय दलित वर्ग का सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन में डॉ० बाबासाहेब ने महिलाओं से आग्रह किया कि वे पुरुष साथीदार के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें, न कि उन्हें खुद पर शासन करने दें और न ही उनकी दासी बन जाएँ।
वायसराय लॉर्ड वेवल के मंत्रिमंडल में २ जुलाई १९४२ को डॉ० बाबासाहेब अंबेडकर की नियुक्ति श्रम मंत्री के पद पर हुई। उन्होंने २७ जुलाई १९४२ को श्रम मंत्रालय का पदभार संभाला। चार साल के कार्यकाल में उन्होंने खदानों, बंदरगाहों और रेलवे में काम करने वाले मज़दूरों के कल्याण की दिशा में कई सुधार किए। केंद्र सरकार में पिछड़े तबके के लिए ५ से ६ प्रतिशत तक आरक्षण दिलवाया। श्रम प्रशासन का गठन किया। उन्होंने दामोदर घाटी योजना को आकार दिया और इसे पूरा करवाया। श्रमिकों के हित में उनका महान योगदान उन्हें आश्रय, शिक्षा, सामाजिक, सांस्कृतिक और चिकित्सीय सुविधाएँ, सालाना श्रम के बदले अर्जित अवकाश और दैनिक आठ घंटे काम दिलाने में रहा। उन्होंने न्यूनतम वेतन विधेयक का मुद्दा रखा जिसकी सराहना और प्रशंसा उनके विरोधियों ने भी की।
वे आदर्श शिक्षण संस्था की स्थापना करना चाहते थे, जहाँ दलित, पिछड़े तबके के और आर्थिक रूप से कमज़ोर छात्रों को उच्च शिक्षा का अवसर मिल सके। इस हेतु ७ जुलाई १९४५ को पीपुल्स ऐजुकेशन सोसायटी की स्थापना की। सरकार से प्राप्त ३ लाख के अनुदान और अन्य लोगों से मिले ३ लाख के दान से तत्काल कार्य प्रारंभ किया। कॉलेज का नाम गौतम बुद्ध के नाम पर 'सिद्धार्थ' रखा गया, जो २० जून १९४६ को ११६३ छात्रों के साथ प्रारंभ हुआ, जिसमें ६० छात्र पिछड़े तबके के थे। डॉ० बाबासाहेब ने औरंगाबाद में मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की ताकि लड़के-लड़कियाँ खुले वातावरण में अध्ययन कर सकें। अथक प्रयासों के बाद वे हैदराबाद राज्य से कॉलेज के लिए १६५ एकड़ की ज़मीन प्राप्त करने में सफल हो सके। संस्थान द्वारा एकत्रित एक करोड़ रुपए के ट्रस्ट ने उन्हें बिना ब्याज का १२ लाख रुपए का ऋण दिलाया। कॉलेज की इमारत की वास्तु संरचना प्राचीन बौद्ध शैली की है जिसके लिए डॉ० अंबेडकर को विशेष प्रशंसा मिली। इस आयोजन में हैदराबाद के निज़ाम उपस्थित हुए थे, जिसमें महाराष्ट्र से भी तकरीबन एक लाख लोग आए थे। राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद ने १ सितंबर १९५० को कॉलेज के नींव के पत्थर रखने के समारोह में उपस्थिति दर्ज कराकर उसे अविस्मरणीय बना दिया।
कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा ५ जून १९५२ को डॉ० अंबेडकर को कानून में डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करने का समारोह उसी विश्वविद्यालय में न्यूयॉर्क में हुआ। डिग्री लैटिन और अंग्रेज़ी, दो भाषाओं में है। विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष गेरीसन क्रिक ने उपस्थित अतिथियों के समक्ष डिग्री पर छपे मसौदे को पढ़ा, "भारत के संविधान के निर्माता, मंत्रिमंडल के मुख्य सदस्य, भारत के अग्रणी नागरिक और महान सामाजिक सुधारक।"
सन १९५३ में डॉ० बाबासाहेब अंबेडकर को दिल का दौरा पड़ा और तब से उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया। लकड़ी के जिस पलंग का प्रयोग बरसों तक किया उसी पलंग पर नींद में डॉ० बाबासाहेब अंबेडकर ने ६ दिसंबर १९५६ को मकान नं० २६, अलीपुर रोड, दिल्ली में अंतिम साँस ली।
डॉ० भीमराव अंबेडकर : जीवन परिचय |
जन्म | १४ अप्रैल १८९१ |
जन्मस्थान | मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में |
निधन | ६ दिसंबर १९५६ को २६, अलीपुर रोड, दिल्ली |
माता | भीमाबाई |
पिता | रामजी सकपाल (मूल उपनाम) |
पत्नी | रमाबाई अंबेडकर तथा डॉ० शारदा कबीर (डॉ० सविता) |
संतान | यशवंतराव, रमेश, गंगाधर, राजरत्न और पुत्री इन्दु |
शिक्षा |
पहली कक्षा - राजवाड़ा चौक, सातारा, गवर्नमेंट हाईस्कूल, ७ नवंबर १९०० ३ जनवरी १९०५ को नवीं कक्षा में प्रवेश, एल्फिंस्टन हाई स्कूल, मुंबई १९०७ में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कला स्नातक (बी० ए०), एलफिंस्टन कॉलेज, १९१३ डॉक्टरेट की उपाधि, ८ जून १९२७ साहित्य में डॉक्टरेट की सम्मानजनक कौसा डिग्री, कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क, १९५२ कानून में डॉक्टरेट की डिग्री, कोलंबिया विश्वविद्यालय, ५ जून १९५२
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भाषा ज्ञान |
मराठी, अँग्रेज़ी, हिंदी, पाली, संस्कृत, गुजराती, जर्मन, फ़ारसी, फ्रैंच, कन्नड़, बंगाली |
रचनाएँ |
अर्थशास्त्र | ऐडमिनिस्ट्रेशन एंड फायनान्स ऑफ़ दी ईस्ट इंडिया कंपनी द इवैल्युएशन ऑफ़ प्रॉविन्शियल फायनान्स इन ब्रिटिश इंडिया द प्रॉब्लम ऑफ़ द रुपी : इट्स ओरिजिन ऐंड इट्स सोल्यूशन
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दलित पत्रिकाएँ | मूकनायक बहिष्कृत भारत समता प्रबुद्ध भारत जनता
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पुस्तकें | एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट द बुद्ध एंड हिज़ धम्म कास्ट इन इंडिया हू वेअर द शूद्राज़? रिडल्स इन हिंदुइज़्म
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अन्य रचनाएँ | ३२ किताबें और मोनोग्राफ़ (२२ पूर्ण तथा १० अधूरी किताबें) १० ज्ञापन, साक्ष्य और वक्तव्य १० अनुसंधान दस्तावेज़ लेखों और पुस्तकों की समीक्षा १० प्रस्तावना और भविष्यवाणियाँ
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अंतिम रचना | |
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सम्मान व पुरस्कार |
भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, "भारत रत्न" (मरणोपरांत) १४ अप्रैल १९९० को राष्ट्रपति महामहिम श्री आर० वेंकटरमण द्वारा डॉ० अंबेडकर ने स्वयं १६-४-१९५० को रानी झांसी रोड (नई दिल्ली) के भूखंड पर अंबेडकर भवन की नींव का पत्थर रखा डॉ० अंबेडकर ने १९५० में विधि मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की
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संदर्भ
- "अंतर्राष्ट्रीय अंबेडकर मेमोरियल" लंदन का लोकार्पण भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा १४ नवंबर २०१५ को हुआ है। वहाँ रखी तमाम वस्तुओं के कैप्शन का हिंदी अनुवाद सी-डैक पुणे के लिए स्वयं लेखिका द्वारा किया गया।
- विकिपीडिया
लेखक परिचय
स्वरांगी साने
पूर्व वरिष्ठ उप संपादक, लोकमत समाचार, पुणे
जन्म ग्वालियर में, शिक्षा इंदौर में और कार्यक्षेत्र पुणे
कार्यक्षेत्र : कविता, कथा, अनुवाद, संचालन, स्तंभ लेखन, पत्रकारिता, अभिनय, नृत्य, साहित्य-संस्कृति-कला समीक्षा, आकाशवाणी और दूरदर्शन पर वार्ता और काव्यपाठ
यू-ट्यूब पर swaraangi sane नाम से चैनल - #AMelodiousLyricalJourney
अम्बेडकर बाबू पर विस्तृत लेख पढ़कर काफ़ी नई जानकारी प्राप्त हुई और उनको अधिक बेहतर जानने का मौक़ा मिला। अपने लक्ष्यों पर वे अर्जुन जैसी दृष्टि रखते थे और उनकी प्राप्ति के लिए किसी भी संघर्ष और समझौते के लिए तैयार थे। ऐसे महानायकों के फलस्वरूप ही हमारे देश को विकास की उचित दिशा प्राप्त हुई। स्वरांगी के हर लेख की तरह यह भी उम्दा है। यह जानकर भी बहुत ख़ुशी हुई कि सी-डैक पुणे के सौजन्य में उसने अंतर्राष्ट्रीय अम्बेडकर मेमोरियल की तमाम चीज़ों के लिए हिंदी-कैप्शन भी लिखे हैं। इन सभी उत्तम कार्यों के लिए लेखिका को बहुत-बहुत बधाई और आभार।
ReplyDeleteवाह वाह बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख रचा है आदरणीया स्वरांगी जी। भारत के संविधान शिल्प विधाता, भारतरत्न डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर जी के बारे में अतिमहत्वपूर्ण और अपरिचित जानकारी पढ़ने मिली। उनके सकपाल से अंबेडकर नाम तक का परिचय भी आपके लेख द्वारा हुआ। उनकी छोटी छोटी कृतियों को भी आपने अतिवृस्तत पद्धति से हमारे समक्ष प्रस्तुत किया और उसका पाठन करने में भी प्रसन्नता महसूस हो रही थी। बड़े ही अधीक्षण से लिखा गया यह लेख मुझे बहुत ही पसंद आया। आपकी लेखनी को अभिवंदन और खूब खूब आभार।
ReplyDeleteभारत रत्न डॉ बाबासाहेब आंबेडकर जी के जीवन कार्य पर बहुत बढ़िया लेख, हार्दिक बधाई, स्वरांगी जी, हिंदू धर्म की जाती व्यवस्था से तंग आकर उन्होंने विश्व शांति का संदेश देनेवाले समतामूलक बौद्ध धर्म को अपनाया। भारत का संविधान और सामाजिक आंदोलन के कारण वे हमेशा चर्चित और वंदनीय रहे। दुर्भाग्य है कि अबतक जाती भेद का अंत नहीं हुआ है। जो संघर्ष बाबासाहेब ने किया था वह अब भी अधूरा है।
ReplyDeleteस्वरांगी जी नमस्ते। आपको डॉ अम्बेडकर पर लिखे इस लेख हेतु बधाई। आपने लेख की सीमित सीमा में बाबा साहब के योगदान को बखूबी प्रस्तुत किया। आपका हर लेख बहुत ही सन्तुलित एवं रोचक रहता है। आपको इस सुंदर लेखन के लिये पुनः बधाई।
ReplyDeleteविस्तृत और जनकारीपरक आलेख। सुंदर लेखनी लिए बधाई ।
ReplyDeleteस्वरांगी जी, बाबा साहेब अंबेडकर के जीवन वृतांत व उनके द्वारा किये गए सामाजिक आंदोलन और महत्वपूर्ण योगदानों को समग्रता के साथ इस लेख में समेटा है। पढ़कर आनंद आया तथा बाबा साहेब के बारे में विस्तार से जानने का अवसर मिला। इस सुरुचिपूर्ण लेख के लिए आपको बहुत बहुत बधाई।
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