Saturday, December 25, 2021

संवेदनशील कवि और राजनेता: भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी


हिंदी साहित्य की थाती अनमोल रत्नों से भरी पड़ी है और उन अनमोल रत्नों के मध्य में कोहिनूर हीरे से दमकने वाले बेहतरीन कवि और उच्च स्तर के राजनेता, ‘भारत रत्न’ से सम्मानित आदरणीय अटल बिहारी बाजपेयी जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है। उन्हें लोग राजनेता से अधिक एक साहित्यकार के रूप में जानते हैं। 

ऐसा माना जाता रहा है कि सत्ता चलाना और कविता ये दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं, क्योंकि सत्ता चलाने के लिए मोह और शक्ति के भावों को प्राथमिकता देनी होती है, जबकि कवि मन सरल और निर्मल होता है; कविता रचते समय संवेदनाएँ प्रबल होती हैं। ऐसे में कविता और सत्ता का एक दूसरे के साथ-साथ चलना क्या संभव है? यदि भारतीय सत्ता के इतिहास को ध्यानपूर्वक देखा जाए, तो कई राजनेता ऐसे हैं, जो सत्ता और कविता को साथ लेकर चले। अटल बिहारी उनमें से एक हैं, जो सबके प्रति आत्मीय आचार-व्यवहार रखते थे और अपनी आकर्षक मुस्कान और शब्दों की कुशल बुनाई के लिए जाने जाते थे। उन्हें एक भावप्रवण कवि हृदय होने के साथ सत्ता के भावविहीन क्षेत्र में भी अग्रणी राजनेता के तौर पर स्वीकार किया गया। 


‘पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी जीवन एक अनन्त कहानी

पर तन की अपनी सीमाएँ यद्यपि सौ शरदों की वाणी

इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें।

जन्म-मरण अविरत फेरा जीवन बंजारों का डेरा

आज यहाँ, कल कहाँ कूच है कौन जानता किधर सवेरा

अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें।

अपने ही मन से कुछ बोलें।’


भविष्य की चिंताओं से घिरे मन को जब विपरीत परिस्थितियाँ तोड़ती हैं और मानव शरीर की नश्वरता समझ में आने लगती है; तब अटल जी की लिखी ये पंक्तियाँ ‘अपने ही मन से कुछ बोलें’ समझा जाती हैं कि मानव जीवन अनमोल है तथा मानव को अपनी असीमित क्षमताओं को जानकर बस उसका अनुभव करने की आवश्यकता है। 

वाजपेयी जी के सरल हृदय और आत्मीयता से मेरा परिचय बाल्यकाल में हुआ। मेरा गृहनगर अतरौली क्षेत्र है, जो कि उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री माननीय कल्याण सिंह जी का गृहनगर भी है। ज़ाहिर है, वहाँ राजनैतिक हस्तियों का आना-जाना होता रहता है| मेरे पिताजी एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक थे और मैं उनकी लाडली हर स्थान पर उनके साथ जाने के लिए तैयार रहती थी। एक दिन पिताजी मुझे गोदी में उठाकर जल्दी-जल्दी मढ़ौली गाँव ले गए, लोगों का हुजूम जमा था और मैं भी जानने की कोशिश कर रही थी कि आख़िर हम देखने किसे आए हैं? मैं पापा के पीछे से झाँक रही थी| अचानक एक विराट व्यक्ति सफ़ेद कुर्ते और धोती में दिखाई दिए और मैंने देखा उनके आते ही कमरे में एकदम शांति छा गई। वह विराट व्यक्ति कोई और नहीं हम सब के प्रिय और अपने ‘कवि मन’ से आम जनता के दिलों पर राज करने वाले अटल बिहारी बाजपेयी जी थे। पिताजी ने धीरे से कहा, ‘बाबूजी, बिटिया को आशीर्वाद दीजिए।’ उन्होंने बड़े प्रेमभाव से मुझे आगे बुलाकर सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और मिठाई खिलाते हुए कहा, ‘लाली को खूब पढ़ाना।’ उनका वह स्नेह भरे हाथ का स्पर्श आज तक मैं महसूस करती हूँ, क्योंकि वह एक राजनेता का हस्त नहीं था, बल्कि एक कोमल हृदय कवि का स्नेह भरा हाथ था। 

श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी और कृष्णा वाजपेयी के घर में २५ दिसंबर १९२४ को पुत्र ‘अटल’ का आगमन हुआ। पिता, पंडित कृष्णबिहारी वाजपेयी, मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक होने के साथ ही ब्रज भाषा और हिंदी के कवि भी थे। तो बस इस वंशानुगत परिपाटी से अटल जी में भी बाल्यकाल से काव्य के बीज अंकुरित होने लगे। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कवि हृदय के बारे में बताते हुए कहा भी था कि ‘कविता मुझे घुट्टी में मिली है।’ वाजपेयी जी ने दसवीं कक्षा में अपनी पहली कविता ‘ताजमहल’ लिखी। १२वीं कक्षा में लिखी उनकी कविता ‘हिंदू, तन-मन, हिंदू जीवन, रग-रग हिंदू मेरा परिचय’, बहुत प्रसिद्ध हुई थी। ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की शिक्षा लेने के बाद अटल जी ने कानपुर के डी ए वी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अपनी वकालत की पढ़ाई को बीच में छोड़ कर वह संपादन और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में तल्लीन हो गए। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे। अटल जी आजीवन अविवाहित रहे। उन्होंने बी.एन. कौल की बेटी नमिता को गोद लिया और उनका अंतिम संस्कार भी नमिता भट्टाचार्य ने ही किया। उनका समाधि स्थल राजघाट के पास शांतिवन में स्थित स्मृतिस्थल में बनाया गया। 

अटलजी के कुशल संपादन में 'राष्ट्रधर्म' ने अपनी अलग पहचान बनाई। इसके साथ उन्होंने ‘पाँचजन्य’ और ‘दैनिक स्वदेश’ का भी संपादन भार संभाला। दिल्ली आने के बाद उन्होंने 'वीर अर्जुन' के संपादक की भूमिका को बखूबी निभाया। उनके लिखे संपादकीय विचारोत्तेजक होने के कारण जन-जन की पहली पसंद बने। डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा पण्डित दीनदयाल उपाध्याय की छत्रछाया में धीरे-धीरे उनका राजनीति में प्रवेश होता गया।

अटल जी ने पूरा जीवन राजनीति में अनेक पदों पर रहते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए बिताया। वह भारतीय जनसंघ की स्थापना करने से लेकर ४७ वर्षों तक संसद के सदस्य रहे। भारतीय जनता पार्टी के प्रथम राष्ट्रीय अध्‍यक्ष भी बने। तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। प्रधान मंत्री के रूप में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश घोषित कर विश्व के मानचित्र पर भारत को एक सुदृढ़ वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करना, एक सौ वर्ष से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाना, पाकिस्तान से संबंध में सुधार की पहल, संरचनात्मक ढाँचे के लिये कार्यदल, सॉफ़्टवेयर विकास के लिये सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, विद्युतीकरण में गति लाने के लिये केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि का गठन, राष्ट्रीय राजमार्गों एवं हवाई अड्डों का विकास; नई टेलीकॉम नीति तथा कोकण रेलवे की शुरुआत करके बुनियादी संरचनात्मक ढाँचे को मजबूत करने वाले कदम, राष्ट्रीय सुरक्षा समिति, आर्थिक सलाह समिति, व्यापार एवं उद्योग समिति गठित करना आदि हैं।


जब हम अटल जी की कविता पढ़ते हैं, तो सत्ता एवं शक्ति के बीच रह कर भी अपने कवि मन को बचाए रखने का द्वन्द्व उनकी कविताओं में स्पष्ट दिखता है। एक कविहृदय और राजनीति के बीच में कवि का अकेलापन उनकी कविताओं में कई बार स्पष्ट देखा जा सकता है।


‘जो जितना ऊँचा, उतना एकाकी होता है,

हर भार को स्वयं ढोता है, 

चेहरे पर मुस्कानें चिपका,

मन ही मन रोता है।’ 


संवेदना कविता का प्राण तत्व होती है। साकरात्मक राजनीति भी संवेदना के तारों से कहीं न कहीं जुड़ी होती है। सत्ता की दिखावटी दुनिया में उनकी कविता मानवीयता का पक्ष रखती है। आम जनता के सुख-दुख, पीड़ा एवं संवाद की चाह अटल जी की कविता में मुखर है। राजनीति के मंच पर वे जिस निर्भीकता और सकारात्मकता के लिए जाने जाते थे, उन्हीं विशेषताओं को उनका ओजस्वी कविहृदय व्यक्त करता था। उनके शब्दों में, "मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है।’ राजनैतिक व्यस्तता के कारण कविता न लिख पाने का दर्द उनकी बातों में आ ही जाता था। एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, ‘राजनीति के रेगिस्तान में ये कविता की धारा सूख गई।’ लेकिन उनके भाषणों में कविता अपनी झलक दिखला ही जाती थी। राजनीति के उतार चढ़ाव के साथ उनकी मनोदशा की झलक भी समय-समय पर नज़र आती है, जब वह हताश होते हैं, तब उनकी लेखनी से दर्द झलकता है :

‘बेनकाब चेहरे हैं, दाग़ बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ 

गीत नहीं गाता हूँ’


लेकिन समय के साथ पुनः वह पूरा साहस समेटते हुए फिर उठते हैं और लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्ष करने और जीवन की मुश्किलों से लड़ने का हौसला देते हैं। हर दौर में उनकी कविता प्रासंगिक रहती हैं।

‘गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर

झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूँ

गीत नया गाता हूँ

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ

गीत नया गाता हूँ’


राजनीति में अजातशत्रु कहलाने वाले अटल जी ओजस्वी कवि होने के साथ ही एक प्रखर वक्ता थे और सबको मंत्रमुग्ध करने की शक्ति रखते थे। हिंदी के प्रति प्रेम उनके भाषणों में प्रत्यक्ष रहता था, जब संयुक्त राष्ट्र के मंच पर उन्होंने हिंदी में अपना भाषण दिया, तो पूरे देश में स्वाभिमान की गौरवान्वित करने वाली अनुभूति, प्रत्येक भारतीय नागरिक ने अनुभव की। जब वह तेवर के साथ अपनी चिरपरिचित मुद्रा में कविता पढ़ते थे, तो श्रोता अपने स्थान से उठ नहीं पाते थे। भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी अपनी सौम्यता, शालीनता और काजल की कोठरी में रहकर भी बेदाग रहने के लिए हमेशा सम्मानीय रहेंगे। अटल जी के जाने के बाद भी उनकी कविताएँ और उनके चुटीले व्यंग्य सदैव हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि रहेंगे।

‘देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।’

मौत से ठन गई।’


अटल बिहारी बाजपेयी: जीवन परिचय

जन्म

२५ दिसंबर,१९२४ ग्वालियर, मध्य प्रदेश

मृत्यु 

१६ अगस्त २०१८ नई दिल्ली

पिता

पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी

माता

कृष्णा वाजपेयी

शिक्षा एवं शोध

स्नातक

विक्टोरिया कॉलेज, ग्वालियर 

स्नातकोत्तर 

डी०ए०वी० कालेज, कानपुर 

साहित्यिक रचनाएँ

कैदी कविराय की कुंडलियाँ, मृत्यु या हत्या, अमर बलिदान, डाइमेंशन ऑफ फॉरेन पॉलिसीज़, लोकसभा में अटल जी, अमर आग है, मेरी इक्यावन कविताएँ, कुछ लेख, कुछ भाषण, राजनीति की रपटीली राहें, बिन्दु-बिन्दु विचार, सेक्युलरवाद, मेरी संसदीय यात्रा, सुवासित पुष्प, संकल्प काल, विचार बिंदु, शक्ति से शांति, न दैन्यं न पलायनम्, अटल जी की अमेरिका यात्रा, नई चुनौती: नया अवसर

पुरस्कार व सम्मान

  • पद्म विभूषण सम्मान (१९९२)

  • कानपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि(१९९३)

  • लोकमान्य तिलक अवार्ड(१९९४)

  • पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार(१९९४) 

  • सर्वश्रेष्ठ सांसद सम्मान(१९९४)

  • देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’(२०१५) 

  • बांग्लादेश द्वारा ‘लिबरेशन वार अवार्ड’(२०१५)


संदर्भ:


लेखक परिचय:

शालिनी वर्मा

पिछले २० वर्षों से खाड़ी के एक देश दोहा, क़तर में हिंदी भाषा एवं साहित्य की सेवा में कार्यरत हैं। स्त्री विमर्श पर कई प्रसिद्ध वेबसाइट और पत्रिकाओं में निरंतर अपनी लेखनी के माध्यम से सक्रिय रहती हैं।

संपर्क: +97477104556; shln.verma2@gmail.com


14 comments:

  1. अटल जी के क्या कहने ! कवि तो सबका होता है । अटल जी सबके थे । कवि यदि राजनेता भी बने तो वह सबका होता है , जन मानस की बात करता है ।न अपनों को छोड़ता है , न ग़ैरों को । देखिए उनकी रचनात्मक बानगी जो देश की राजनीति पर कैसा सुंदर बयान है :
    “कौरव कौन
    कौन पांडव,
    टेढ़ा सवाल है|
    दोनों ओर शकुनि
    का फैला
    कूटजाल है|
    धर्मराज ने छोड़ी नहीं
    जुए की लत है|
    हर पंचायत में
    पांचाली
    अपमानित है|
    बिना कृष्ण के
    आज
    महाभारत होना है,
    कोई राजा बने,
    रंक को तो रोना है| “

    ऐसा स्पष्टवादी एक संवेदनशील कवि ही हो सकता है ।
    शालिनी जी , आपने उनके जीवन और साहित्य- रचना पर सुंदर प्रस्तुति की है । आपको बधाई । 💐

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    1. सिंह जी किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार

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  2. निजी अनुभवों से उपजी आत्मीयता का रस लिए श्री बाजपेयी जी के विराट व्यक्तित्व का सजीव चित्रण। आपका आलेख कवि बाजपेयी से परिचय कराता है जो कि एक राजनेता की स्थापित छवि के भीतर से निकल कर आता है और उस छवि के चारों ओर एक आभा की तरह फैल जाता है, जो उस छवि को एक दैवीय रूप प्रदान करता है। सुन्दर आलेख के लिए बहुत बहुत बधाई।

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    1. किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार

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  3. अटल जी के विराट व्यक्तित्व और उनके कवि मन की संवेदनाओं से परिचय करता अत्युत्तम लेख। शालिनी जी ने आशीर्वाद भरे हाथों से मिली प्रेरणा की स्याही से क़लम चलाई है और लेख को आत्मीयता के रंग से रंग दिया है। अटल जी जैसे कवि ह्रदय राजनेता तो विरले होते हैं और अपनी कृतियों की अमिट छाप हृदयों पर छोड़ जाते हैं। शालिनी जी को इस लेखन के लिए बहुत-बहुत बधाई और तहे दिल से शुक्रिया।

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    1. प्रगति जी इतने ध्यान से पढ़ने के लिए हृदय से आभार

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  4. वाजपेयी जी पर इतना सुंदर और सारगर्भित लेख लिखने के लिए आप बधाई की पात्र हैं शालिनी जी।

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    1. विनीता जी किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार

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  5. अटल जी के बारे में जितना देख , सुन और पढ़ कर जाना था , उससे कहीं अधिक आज इस लेख को पढ़कर जान पायी हूँ।एक राजनेता से अलग उनकी साहित्यिक छवि से हमेशा प्रभावित रहीं हूँ। और शालीन जी के इस बेहतरीन और सारगर्भित लेख ने इस छवि के प्रभाव को और भी पुख़्ता कर दिया। "जो जितना ऊँचा , उतना एकाकी होता है"। कितनी गहरी बात। शालिनी जी को बहुत बहुत बधाई

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    1. आभा जी किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार

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  6. शालिनी जी ने भारत रत्न अटल जी पर बहुत सारगर्भित एवं रोचक लेख लिखा है। शालिनी जी को बहुत बहुत बधाई।

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    1. दीपक जी किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार

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  7. *मेरे प्रभु मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना*
    *गैरो को गले न लगा सकूँ इतनी रुबाई कभी मत देना*
    अपनी मातृभूमि और राष्ट्रप्रेम से हमेशा जुड़े हुए भारतरत्न, भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पर लिखना ही बड़े सौभाग्य की बात हैं। 2004 कि राजनीतिक हार के पश्चात तनावपूर्ण स्थिति में मुख पर मुस्कुराहट रखनेवाले और परेशानियों, समस्याओं को शस्त्र बनाकर समाधान खोजनेवाले वह एकमेव नेता थे। आदरणीय शालिनी जी ने बडी उत्सुकता पूर्वक उनकी ज्यादा से ज्यादा साहित्यिक छवि से हमें जोड़ने का प्रयास किया हैं। रोचक और सारगर्भित लेख के लिए शालिनी जी को बधाई। 💐अनंत में विलीन हुए आदरणीय स्व अटल जी अपने देशप्रेम, कर्त्तव्यनिष्ठा तथा कविताओं के माध्यम से हमेशा हमारे साथ रहेंगे। शालिनी जी का यह लेख उनके लिए *हिंदी से प्यार हैं* परिवार की तरफ से एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि हैं।💐💐🙏🙏

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    1. किसी भी लेखक को पाठकों की टिप्पणी से ऊर्जा मिलती है और आपकी इन पंक्तियों से मेरी क़लम को इस पथ पर बढ़ने की शक्ति मिली है आभार सूर्या जी

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