Friday, December 10, 2021

चित्रा मुद्गल: एक अनूठे व्यक्तित्व का चित्रांकन

किताबों की उंगली पकड़ कर देखें निकाल ले जाएँगी वो आपको अपने घर से 

उन गली मोहल्लों में ...जिनकी टाट पड़ी देहरियों में 

कभी दाख़िल नही हुए होंगे आप 

नहीं देख पाए होंगे उनकी सूखी पड़ी सिगडियों को

तकती है जो अपने भीतर कोयले की राह !” 

(एफ.बी.वॉल से साभार)


किसी  विशिष्ट साहित्यकार के बारे में लिखना दो परिस्थितियों में आसान नहीं होता। एक, जब आप उन्हें उनकी रचनात्मकता से इतर जानते हों और दूसरा, तब जब उनका जीवन आपके मन पर ऐसी छाप छोड़ दे, कि आपके लिए उनके लेखकीय संसार और विशाल व्यक्तित्व में क्या वृहद्तर है, यह निर्णय करना मुश्किल होने लगे। चित्रा जी के बारे में लिखना मेरे लिए दूसरी श्रेणी में आता है। इतनी विविधताओं को समेटे हुए आखिर उनके किस पहलू को मैं उपयुक्त शब्दों में बिम्बित करूँ


१० दिसंबर १९४३ को चेन्नई में जन्मी चित्रा जी की प्रारंभिक पढ़ाई उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले के गाँव निहाली खेड़ा में हुई। पिता ठाकुर प्रताप सिंह  नेवी में कार्यरत थे। उनके तबादले चित्रा जी की शिक्षा को विभिन्न अनुभवों से समृद्ध करने लगे। जातिगत भेदभाव हो या लैंगिक फ़र्क, सामाजिक असमानताएँ उन्हें अपनी उम्र से बड़े प्रश्नचिन्हों में ढक चुकी थीं। हमेशा अपने तर्कों के पक्ष में खड़ी और अड़ी रहने की महँगी आदत ने उनके बचपन को निडरता से ढाला।


उन्होंने मुंबई से स्नातकोत्तर किया। ललित कलाओं से प्रेमवश उन्होंने  जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में चित्रकला की शिक्षा और गुरु डोरा स्वामी के निर्देशन में भरत नाट्यम का भी प्रशिक्षण लिया। लेकिन लेखन की गंभीरता वो विद्यार्थी जीवन में ही अपना चुकी थीं। सामाजिक एवं घरेलू परिस्थितियों से उपजा आक्रोश उनके भीतर इसकी मज़बूत नींव बना रहा था। अपने आसपास के परिवेश में मान-मर्यादा, सम्मान की बात करने वाले पुरुषों का अपने ही परिवार की महिलाओं के साथ असहनीय भेदभाव और इन बातों पर महिलाओं की भी सहज स्वीकृति दे देने वाली मानसिकता ने उन्हें बेहद आहत किया। उनके पिता का आचरण भी उनकी माता विमला देवी की तरफ़ संतोषजनक नहीं था, इसलिए वह पिता के प्रति हमेशा क्रोधित रहीं। हालाँकि उनकी मृत्यु के बाद जब चित्रा जी को उनकी लिखी हुई कविताएँ और नाटक प्राप्त हुए, तो वे उनके संवदेनशील और रचनात्मक पक्ष को एक नई दृष्टि भी सौंप गए।


जीवन की विविध परिस्थितियों को कभी रोमांचक तो कभी भावकुता के धरातल पर यथार्थ की तरह लिखने वाली चित्रा जी की स्वयं की ज़िंदगी भी किसी उपन्यास की तरह ही चलती रही। एक कट्टर ज़मींदार परिवार की यह लड़की बचपन से ही अपने तार्किक स्वभाव और बुद्धि के कारण सबकी आँखों में खटकती थी। ऐसे में उसका साठ के दशक में अंतर्जातीय प्रेमविवाह कर लेने का निर्णय एक असंभव सा साहसिक कदम ही था। १७ फरवरी १९६५ को परिवार की इच्छा के विरुद्ध  चित्रा जी ने उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद में एमनपुरा गाँव में ब्राह्मण परिवार के अवध नारायण मुद्गल जी के साथ आर्य समाज रीति से विवाह कर लिया। बहु प्रतिभावान अवध जी टाइम्स ऑफ़ इंडिया कीसारिकाके यशस्वी संपादक रहे। एक आदर्श जीवनसाथी की तरह हर कदम पर चित्रा जी के लिए स्नेहिल छाँव बने रहे अवध जी ने १५ अप्रैल २०१५ को असमय में ही इस संसार को अलविदा कह दिया। अपने सबसे अच्छे दोस्त  से बिछुड़ने की तकलीफ़ चित्रा जी के हिस्से कभी खत्म होने वाला अधूरापन बन कर ठहर गई।

 

औंधे कटोरों से 

औंधे ही रह गए 

छूँछे 

कई-कई दिन 

सेंध लगाती नहीं आस 

तुम ऐसे रूठ गए !”

(तिल भर भी जगह नहीं)


अवध जी को खोने के दर्द से जूझती चित्रा जी उनसे मिले प्रेम और सम्मान को अपनी ऊर्जा बनाकर परिवार का मज़बूत आधार बनी रहीं। उनकी दो संतान थीं, बेटी अपर्णा और बेटा  राजीव। अपर्णा का विवाह सुविख्यात  साहित्यकार मृदुला गर्ग जी के छोटे बेटे शशांक से हुआ, परंतु दुर्भाग्यवश विवाह के महीने बाद ही एक सड़क दुर्घटना में नवदंपति गुज़र गए। दोनों के परिवार अभी भी  इस हादसे से उबर नहीं पाए हैं। पुत्र राजीव और उनकी पत्नी शैली भी साहित्यिक सृजन की दुनिया से जुड़े हुए हैं। 


समाज सेवा और लेखन में सक्रिय चित्रा जी कभी औपचारिक रूप से नौकरीपेशा नहीं रहीं, लेकिन आज भी वह इतनी परिश्रमी और ऊर्जावान हैं, कि युवाओं को भी प्रेरित कर दें। उनकी पहली कहानी १९५५ में प्रकाशित हुई। एक लेखिका के तौर पर चित्रा जी का उदय १९६४ में हुआ और पाँच दशकों की जीवंत पारी के बाद अब तक लिखना  जारी है। वे यह बात बहुत संजीदगी से समझती हैं, कि  स्त्री विमर्श आधुनिक समय की एक आवश्यक माँग है। उन्होंने अपने लेखन में न केवल  इसे महत्वपूर्ण स्थान दिया, बल्कि इससे जुड़ी जटिलताओं की गाँठों को खोलने की पुरज़ोर कोशिश भी की। नारी सशक्तिकरण के घिसे-पिटे रास्तों से दूर, उन्होंने हाशिए पर खड़ी स्त्री के जटिल सवालों की पड़ताल की है। उनके लेखन में कोई उपदेश या निर्णय नहीं होता, बल्कि अपने पात्रों  के साथ एक आत्मोत्थान की यात्रा चलती है। चाहे वह सार्थक विद्रोह करतेलकड़बग्घाकी पछाँह वाली हो, ‘चेहरेकी भिखारिन या `प्रमोशन` अथवाशून्य’` की नायिकाएँ। आँवाकी नमिता अगर स्त्री सजगता का उदाहरण है, तोएक ज़मीनकी अंकिता और नीता भौतिक दुनिया के बीच रिश्तों की कटुता को सहते हुए भी आत्मसम्मान से जीती हैं। 


चित्रा जी के नारी पात्र देह से परे मन की स्वतंत्रता की परिभाषा बखूबी पढ़ना जानते हैं, लेकिन उनकी रचनाओं का केंद्र सिर्फ स्त्रीवाद नहीं है; बल्कि सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक पहलू भी उनके सृजन के विशेष आयाम रहे हैं। नशा, यौन उत्पीड़न, पारिवारिक विघटन, स्त्री-पुरुष संबंधों के गणित जैसे मानवीय पक्षों को वह पूरी जीवंतता के साथ उकेरती हैं। यहाँ तक कि कई उपेक्षित किंतु अपेक्षित मुद्दों पर उनकी कलम मुखर  हुई है। व्यास सम्मान से सम्मानितआँवाकी कहानी सिर्फ नमिता की नहीं, श्रमिक राजनीति के उतार-चढ़ाव का यथार्थ है। २०१८ में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत उपन्यासपोस्ट बॉक्स नंबर २०३ नाला सोपाराउनकी रचनात्मकता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह उपन्यास पत्र-शैली में लिखा गया है। एक बेटा अपनी माँ को पत्र में अपने जीवन के गहन भावनात्मक द्वंद्व और गहन दंश की गाथा लिखता है। ट्रांसजेंडर्स के प्रति अपने मन में छुपे तमाम अनदेखे मानकों पर नजर पड़ते ही हमारी सोच सिहर जाती है। 


सोचने पर मजबूर कर देनी वाली उनकी अनेकों हृदयस्पर्शी रचनाएँ दृष्टि वालों को भी संसार को देखने का अलग नज़रिया देती हैं। इनके पात्र क्षण मात्र में पढ़ने वालों से सीधा संबंध स्थापित कर लेते हैं।जगदम्बा बाबूगाँव रहे हैंउनकी ऐसी कहानी है, जिसने बरेली (उत्तर प्रदेश) के एक नेत्रहीन शोधार्थी राधेश्याम के हताशा भरे दिनों को एक सार्थक दिशा सौंप दी। उनके बहुचर्चित उपन्यासगिलिगडू’, ’नालासोपारा’, ‘एक जमीन अपनीआदि कई देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित हुए हैं। लेखन और समाज के प्रति किए गए उनके अनेक कार्य, वर्षों संभाले गए कई महत्वपूर्ण पद, अनगिनत सम्मान उनके कद को अद्भुत ऊँचाई देते हैं। इतनी विविधताओं भरे जीवन में सभी जगह संतलुन आसान नहीं है, परंतु उनका मानना है, कि जिस तरह स्त्री रिश्तों के सभी रूपों को एक साथ बखूबी निभाती है, ठीक उसी तरह समाजसेवी और साहित्यकार भी समाज के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करते  हुए अपनी प्रतिबद्धताएँ  निभाते हैं।


याद्दाश्त की धनी चित्रा जी से बात करते समय लाख प्रयत्नों के बाद भी समय सीमित जान पड़ता है। जीवन और रिश्तों से जुड़े लोगों की बातें, कार्यक्षेत्र के खट्टे-मीठे अनुभव, उनसे जुड़ी छोटी से छोटी घटनाओं को भी वो बेहद ताज़गी से दोहराती हैं। उनसे बात करना किसी कहानी का ऐसा हिस्सा है, जिसको पढ़ते रहने की इच्छा कभी ख़त्म नहीं होती। ऐसे में जब वह अवध जी से जुड़ी यादें और उनसे विवाह की बातें बाँटती हैं, तो छोटे- बड़े संस्मरणों को छूती प्रेम की स्निग्धता उनके चहेरे पर आज भी दमक उठती है।गिलिगडू’` उपन्यास में वृद्ध जीवन के संवेदित प्रश्नों को उठानेवाली चित्रा जी परिवार को पहली प्राथमिकता देती हैं। सरल व्यक्तित्व की छाप लिए उनकी प्रतिछाया विशेषतौर पर उनकी बहू और प्रसिद्ध गीतकार शब्द जी की बेटी शैली में दिखती है। बड़ी सी बिंदी में सजी, सदैव लाड़-दुलार करती, वह चित्रा जी की परछाई सी लगती हैं। चित्रा जी के बहुमुखी व्यक्तित्व को शब्दों में संयोजित करना एक छोर को पकड़ो तो दूसरा छूटने जैसा है। उनके घर पर स्नेहसिक्त खातिरदारी मन को तो भिगोती ही है, पर खोईंचे में मिला उनका आशीर्वाद मैं हर बार कीमती यादों की पोटली में कस कर बाँध लेती हूँ।


चित्रा मुद्गल: जीवन परिचय

जन्म 

१० दिसंबर १९४३ ,चेन्नई , भारत

विशिष्ट कार्य 

जागरण संस्था में सचिव, मुंबई  मज़दूर यूनियन, कामगार आघाही की कार्यकर्ता, स्वाधार की कार्यकर्ता, माधुरी पत्रिका की कथा लेखिका, हिंदी सलाहकार समिति, प्रसार भारती, विश्व हिंदी सम्मेलन, इंडियन पैनोरामा की सदस्या, और फिल्म सेंसर बोर्ड और आकाशवाणी में ज्यूरी सदस्य

भाषा 

हिंदी

शिक्षा एवं शोध

स्नातकोत्तर 

स्नातकोत्तर पढ़ाई पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुंबई 

साहित्यिक रचनाएँ

उपन्यास 

एक जमीन अपनी, आँवा, गिलिगडू, छिन्नमस्ता मैं नहीं, नकटौरा, पोस्ट बॉक्स नंबर २०३ नाला सोपारा (साहित्य अकादमी)

कहानी संग्रह 

भूख, ज़हर ठहरा हुआ, लाक्षागहृ, अपनी वापसी, इस हमाम में, मेरी प्रिय कहानियाँ, जिनावर, जगदंबा बाबू गाँव आ रहे हैं, मामला आगे बढ़ेगा अभी, केंचुल, आदि-अनादि

बाल साहित्य 

जीवक, माधवी कन्नगी, मणि मेखला, जंगल, सबक, नीति कथाएँ

आत्मकथात्मक  संस्मरण

तिल भर जगह नहीं

नाट्य रूपांतरण 

बूढ़ी काकी, पंच-परमेश्वर, सद्गति तथा अन्य नाटक

लघुकथा संकलन 

बयान

संपादन 

दूसरी औरत की कहानियाँ, असफल दांपत्य की कहानियाँ, टूटते परिवारों की कहानियाँ 

रिपोर्ताज़

तहखानों में बंद, अक्स

पुरस्कार और सम्मान

साहित्य अकादमी सम्मान २०१८ (पोस्ट बॉक्स नंबर २०३ नाला सोपारा), व्यास सम्मान (उपन्यास आवाँ के लिए), इंदु शर्मा कथा सम्म्मान, साहित्य भूषण, वीर सिंह देव सम्मान, उदयराज सिंह स्मृति पुरस्कार आदि।



 लेखक परिचय


अर्चना उपाध्याय
डिज़ाइनर, डीसी (हैंडीक्राफ्ट), मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल्स
डायरेक्टर, अतंरा सत्व फाउंडशेन
 यूट्यूबर 'अतंरा द बुकशेल्फ '


16 comments:

  1. जिसने बचपन से निर्भीकतापूर्वक अपनी बात कही हो, उसकी कलम जब रवां होती है तो हर हाशिए को मुख्य पृष्ठ पर लाती चली जाती है! हमारे समय की सुप्रसिद्ध लेखिका, ‘नाला सोपारा’ के लिए साहित्य अकादमी से पुरस्कृत चित्रा मुद्गल जी का उनके जन्मदिन, १० दिसंबर, पर हम सादर अभिनंदन करते हैं!
    वे दीर्घायु हों, उनकी कलम यूँ ही सशक्त और ऊर्जावान रहे!
    आपने उनका स्नेहिल चित्रांकन किया है अर्चना जी!

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    1. हार्दिक धन्यवाद शार्दुला जी,चित्रा जी जितना अद्भुत व्यक्तित्व हैं उन्हें शबफों में पिरोना असंभव लगता है , आपके साथ और सहयोग से ये आसान हुआ,आभार

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  2. अर्चना चित्रा जी के इस लेख के लिए आपको साधुवाद

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    1. हार्दिक आभार आपका

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  3. लेखिका के जीवन और कृतित्व को आपने यूँ चित्राया कि एक नाता सा महसूस होने लगा। साधुवाद

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    1. वाह कितनी प्यारी बात कही आपने शुक्रिया ऋचा जी

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  4. अर्चना जी , यह आलेख अब तक के पढ़े लेखों से एकदम भिन्न है । शायद इसलिए कि आपने चित्रा जी को इतने निकट से देखा है । आपने उनकी कहानी कही है । और बड़ी ख़ूबसूरती से कही है । रोचक और जीवंत । जैसे कोई पड़ोस में ही रहने वाली मौसी या बुआ की कहानी सुना रहा हो । और कहानी कहते कहते उनके रचे साहित्य के बारे में कितनी अधिक जानकारी दे दी ! चित्रा जी की कहानियों को पढ़ने में मेरी रुचि तो बहुत जाग गई है | विशेष रूप से नारी स्वातन्त्र्य को लेकर उनका किया गया कार्य प्रभावित करने वाला है । आपको हमें इस सुंदर यात्रा में ले चलने के लिए धन्यवाद । 💐

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    1. हार्दिक आभार हरप्रीत जी, आपकी टिप्पणी बहुत महत्वपूर्ण है मेरे लिए, आप उन्हें जरूर पढ़ें,उनका लेखन समाजिक मानसिकताओं को जीवंतता से उतार देता है।

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  5. चित्रा मुद्गल जी के जीवन संघर्ष से लेकर साहित्य के शीर्ष तक पहुँचने की यात्रा को इस लेख में सुंदर कहानी की तरह अर्चना जी ने प्रस्तुत किया है। इस प्रसंशनीय लेख के लिए अर्चना जी को बहुत बहुत बधाई।

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    1. बहुत बहुत आभार दीपक जी, अपने व्यसत समय में भी हम सभी की निरंतर ऊर्जा बढ़ाने के लिए आपको भी धन्यवाद।

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  6. अर्चना जी, क्या ख़ूब लिखा है आपने! चित्रा जी से आपकी आत्मीयता के चलते बहुत सुन्दर कहानी बन पड़ा है यह आलेख। चित्रा जी के बेबाक मिज़ाज और समाज की विषमताओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता को एकदम साफ झलकाता है आपका लेख। परिवार के प्रत्येक सदस्य के प्रति चित्र जी के भावों से भी आपने परिचय कराया, कुल मिलाकर एक बेहतरीन आलेख पेश किया। आपको इस नेक काम के लिए बधाई और शुक्रिया।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रगति जी इस प्रेरक और प्यारी टिप्पणी के लिए😍

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  7. नारी सशक्तिकरण के घिसे-पीटे रास्तों से दूर, उन्होंने हाशिए पर खड़ी स्त्री के जटिल सवालों पड़ताल की है।

    शानदार लगा मैम पढ़कर और

    आपके शब्दों की मधुरता

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    1. धन्यवाद नीलेश , तुमने लेख पढ़ने के लिए समय दिया, हिंदी से प्यार है का साहित्यकारों को समर्पित ये ब्लॉग हमेशा तुम्हारी जानकारियों को नया विस्तार देगा।

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  8. अर्चना जी, आपका आलेख एक बार में ही पढ़ गया... भाषा का प्रवाह ऐसा मानों कुछ पल को भी ठहरे तो संवेदनाओं के किसी और ही दुनियां में जा टिकेंगे। एक शानदार और भावपूर्ण आलेख के लिए आपका आभार,,,,

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  9. हार्दिक आभार भूपेश जी ,आपके साथ के बिना संवेदनाओं की ये दुनिया अधूरी रहती।

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