Sunday, December 5, 2021

एक आध्यात्मिक क्रांतिकारी कवि महर्षि श्री अरविंद घोष

 


महर्षि श्री अरविंद घोष,  उन महापुरुषों में से हैं, जिनके लिए देशबंधु चित्तरंजन दास ने कहा था, "श्री अरविंद का स्मरण भविष्य में राष्ट्रसेवा के कवि, राष्ट्रीयता के देवदूत तथा सच्ची मानवता के प्रेमी के रूप में किया जाएगा। इनके शब्दों की ध्वनि एवं प्रतिध्वनि सिर्फ भारतवर्ष में ही नहीं, वरन सुदूर देशों तथा दिशाओं में चिरकाल तक गुंजित-प्रतिगुंजित होती रहेगी।"  नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपनी आत्मकथा में लिखते हैं, "मेरे महाविद्यालयीन वर्षों में (१९१३-१९१५) श्री अरविंद घोष बंगाल के बड़े सरल एवं सर्वाधिक लोकप्रिय नेता रहे। यद्यपि उन्होंने सन १९१० के उपरांत स्वेच्छा से सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था, तथापि जब तक वे सक्रिय रहे, उनके चुंबकीय तथा जादुई व्यक्तित्व का प्रभाव विलक्षण था।"

श्री अरविंद ने अपना संपूर्ण जीवन मानव मात्र की भलाई के लिए समर्पित कर दिया और समस्त विश्व की चेतना के स्तर का उन्नयन कर, उसे अतिमानसिक स्तर तक लाने के लिए कड़ी साधना में सफल हुए। श्री अरविंद के अनुसार, सभी अवतार तत्वों के द्वारा, विश्व की चेतना के उन्नयन हेतु, चेतना के अगले स्तरों के अवतरण का महत्तर कार्य ही संपन्न किया गया है। जब एक बार कोई अवतार तत्व चेतना का कोई स्तर अवतरित कर उसे निर्धारित कर देता है, फिर कोई भी साधक न्यूनतम अभ्यास से उसे प्राप्त कर सकता है। इतिहास में क्रमशः राम, कृष्ण एवं बुद्ध अवतारों द्वारा यही कार्य संपन्न किया गया। इस संदर्भ में उनके अनुयायी श्री अरविंद को अवतार तत्व मानते हैं।

श्री अरविंद ने अपनी पत्नी मृणालिनी देवी को अपने जीवन में निर्धारित तीन महत्वपूर्ण लक्ष्यों के बारे में लिखा था। वे यह भी मानते थे कि ये लक्ष्य उन्होंने स्वयं नहीं, बल्कि भगवान ने ही उनके लिए निर्धारित करके उन्हें स्पष्ट रूप से आदेश दिया था। ये लक्ष्य इस प्रकार थे:-

१. अपने कार्य द्वारा किये गए धनोपार्जन से मात्र अपनी निजी आवश्यकताओं तथा आजीविका हेतु, न्यूनतम राशि ले कर शेष राशि को मानवता की सेवा में व्यय करना।

२. कठिन योगाभ्यास के माध्यम से अपने संपूर्ण समर्पण एवं भगवत-सत्ता के सहयोग से पूर्ण योग की प्राप्ति एवं इस कठोर साधना के द्वारा संपूर्ण विश्व की चेतना के उन्नयन हेतु अतिमानसिक चेतना के अवतरण में सहभागी बनना।

३. अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु आध्यत्मिक मार्ग से प्रयास कर अभीष्ट को प्राप्त करना।

श्री अरविंद ने अपने जीवन काल में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के उपरांत इस भौतिक लोक से समाधि ली।

श्री अरविंद की जीवन-यात्रा की पृष्ठभूमि में उनकी साहित्यिक यात्रा :- 

श्री अरविंद के पिता, श्री कृष्णन घोष, इंग्लैंड से चिकित्साशास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर भारतवर्ष के प्रथम भारतीय सिविल सर्जन बने थे।किंतु अपने गाँव के निवासियों को अपने चिकित्साशास्त्र के ज्ञान द्वारा लाभान्वित करने का उनका स्वप्न उस समय चूर-चूर हो गया, जब रूढ़िवादी परम्पराओं और अंधविश्वास में जकड़े समाज ने प्रचलित नियमों के अनुसार उन्हें विधिवत अनुष्ठान संपन्न किए बिना स्वीकारने से मना कर दिया। श्री घोष ने अपने सिद्धांतों के बजाय अपने गाँव को छोड़ना श्रेयस्कर समझा, और उसी समय यह निश्चय भी कर लिया, कि वे किसी भी मूल्य पर अपनी संतानों को इस अज्ञानी और रूढ़िवादी समाज का हिस्सा नहीं बनने देंगे। सात वर्ष की अल्पायु में उन्होंने अपने पुत्र अरविंद को शिक्षा प्राप्त करने हेतु लंदन भेज दिया; जहाँ वे एक ईसाई परिवार के साथ जीवन की उस अवस्था में रहे, जब मनुष्य के वयस्क जीवन की नींव पड़ती है। उनके पिता चाहते थे, कि उन के जीवन में भारतीय संस्कारों का तनिक भी प्रभाव न पड़े एवं उनका व्यक्तित्व पाश्चात्य शैली में ही विकसित हो। उन्होंने अपने मननशील और कुशाग्र पुत्र के लिए यही सोचा था कि वह बड़ा होकर सरकार के किसी प्रतिष्ठित पद को सुशोभित करेगा।

श्री अरविंद ने बचपन में ही ईसाई धर्मग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। उनके कवि सुलभ ह्रदय पर शेक्सपियर, कीट्स और शेली जैसे शीर्ष कवियों ने मानो अधिकार कर लिया था। वे बचपन में ही ग्रीक तथा लेटिन भाषा में निपुण हो गए थे। शीघ्र ही उन्होंने फ्रेंच, जर्मन तथा इटैलियन भाषाएँ भी निपुणता से सीख लीं। अंग्रेज़ी तो बचपन से उनके संवाद की भाषा थी ही। भाषा ज्ञान का लाभ ये हुआ कि वे गोएते एवं दाँते के साहित्य का अध्ययन मूल भाषा में कर सके। कालांतर में जब उनके पिता का अपने अनुभवों के कारण, ब्रिटिश सरकार और उनके कार्य करने के तरीके से मोहभंग हुआ, तब उन्होंने ही श्री अरविंद को भारतवर्ष की तत्कालीन स्थिति और परिवेश से परिचित कराया। वे नियमित रूप से अपने पुत्र को "द बंगाली" नामक बांग्ला समाचार-पत्र की कतरनें भेजने लगे, जिनमें अंग्रेज़ों के कुशासन के समाचार होते थे। वे इन समाचारों को रेखांकित भी कर दिया करते थे, जिन्हें पढ़कर ही संभवतः श्री अरविंद के ह्रदय में मातृभूमि के प्रति प्रेम व करुणा का संचार हुआ। किंतु, भारतवर्ष के वास्तविक संस्कारों और मूल्यों से उनका संपूर्ण परिचय कराया, महान लेखक श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यासों ने। भारतवर्ष लौटने के पश्चात् उन्होंने इन उपन्यासों का अध्ययन किया। भारत आगमन के एक वर्ष पश्चात् ही बंकिमचंद्र पर लिखे एक लेख में वे कहते हैं, "एक सामाजिक परिवर्तक की दृष्टि, जिस पर कलकत्ता विश्वविद्यालय का चश्मा चढ़ा होता है, भारतीय जीवनशैली में कुछ भी उल्लेखनीय नहीं देख पाती, सिवाय उसके घटियापन के। किंतु बंकिमचंद्र की दृष्टि उससे कहीं अधिक पैनी व गहरी है; वह वास्तव में एक कवि की दृष्टि है, जो कि भारतीय जीवनशैली का सर्वश्रेष्ठ, सुन्दरतम तथा मधुरतम रूप देखने में सक्षम है, और यही रूप उनकी रचनाओं के पृष्ठों में ज्वलंत रूप से विद्यमान है और जिसे उनकी कलम के जादू ने, जो कि एक कलाकार और कवि की लेखनी है, दिव्य बना दिया है।

संभवतः श्री अरविंद के पूर्व जन्मों के संचित संस्कारों के कारण, उन्हें भारतीय संस्कृति और सभ्यता से परिचित होने में ही नहीं वरन उसे पूर्ण रूप से आत्मसात करने में अधिक समय न लगा।  

भारत में प्रारंभिक वर्षों में श्री अरविंद ने बड़ौदा महाराज के प्रशासकीय कर्मचारी के रूप में कार्य किया। अपने बड़ौदा प्रवास के दौरान सन १८९३ से १९०६ तक उन्होंने निरंतर साहित्य सृजन किया। इस दौरान उनके कई लेख "इंदुप्रकाश" पत्रिका में "न्यू लैंप फॉर ओल्ड" शीर्षक से प्रकाशित हुए। १९०६ में यह नौकरी छोड़ कर, उन्होंने कलकत्ता में दैनिक समाचार पत्र "बन्दे मातरम्" का सफल संपादन किया। सन १९०८-०९ के दौरान जब उन्हें स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित गतिविधियों में संलग्न होने के संदेह में ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार किया और उन्हें एक वर्ष के लिए अलीपुर जेल में रहना पड़ा, तब उन्होंने वहीं हिन्दू ग्रंथों, उपनिषदों एवं गीता का सूक्ष्म अध्ययन किया। इसी अवधि में उन्हें गीता सिद्ध हुई, भगवत दर्शन की अनुभूति प्राप्त हुई और भविष्य के कार्यों तथा कर्तव्यों के संबंध में भगवान के स्पष्ट आदेश प्राप्त हुए, जो बाद में उनके आध्यात्मिक कार्य और आंदोलन का आधार बनें। जेल से निकलने के बाद, वे उन्हीं आदेशों का पालन करते हुए पहले चंद्रनगर और अंततः पुदुच्चेरी चले गए। पुदुच्चेरी में सन १९१४ में एक दार्शनिक मासिक पत्रिका "आर्य" का प्रकाशन किया, जिसमें उनके लेखों की एक शृंखला प्रकाशित हुई, जिसने उनके कई महान ग्रंथों को जन्म दिया। उनमें "द सिंथेसिस ऑफ़ योगा", "एसेज ऑन गीता", "उपनिषद", "द फाउंडेशन ऑफ़ इंडियन कल्चर", "द सीक्रेट ऑफ वेदा", "द ह्यूमन साईकल", "द आयडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी", "द फ्यूचर पोएट्री" तथा "ह्यांम्स टू मिस्टिक फायर" इत्यादि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्य समाचारपत्रों का भी प्रकाशन व संपादन किया, जिनमें कर्मयोगी, धर्म तथा युगांतर सम्मिलित हैं।

परंतु, निःसंदेह श्री अरविंद की सर्वश्रेष्ठ कृति उनके महाकाव्य "सावित्री" को कहा जाना उचित होगा। इस महान आध्यात्मिक रचना का प्रारंभ १९१६ में होकर श्री अरविंद के समाधि लेने तक अनवरत रूप से जारी रहा था। "श्री अरविंद अपने विषय में कहते हैं, "काव्य, यहाँ तक कि शायद सभी प्रकार की पूर्ण अभिव्यक्ति, अंतःप्रेरणा से ही प्राप्त होती है, अध्ययन से नहीं, अध्ययन से मात्र इतनी सहायता मिलती है, कि यंत्र को भाषा पर अच्छा अधिकार प्राप्त हो जाता है, या वह साहित्यिक शैली में अपनी बात कहने की कला सीख लेता है।" "सावित्री" श्री अरविंद की अंतःप्रेरणा की पूर्ण अभिव्यक्ति ही है। श्री अरविंद के सूक्ष्म जगत तथा रहस्यात्मक सत्यों की विशाल अनुभूतियाँ इस महाकाव्य की चौबीस हज़ार पंक्तियों में मांत्रिक भाषा में निबद्ध है। ‘‘सावित्री’’ में श्री अरविंद के संपूर्ण जीवन की साधना, उनकी दृष्टि तथा स्वप्न का सार है :-

"प्रकृति रहेगी बनी व्यंजना गुह्य ईश की,

परमात्मा नायक होगा मानव गति-विधि का,

पार्थिव जीवन दिव्य सुजीवन बन जाएगा।"


जीवन परिचय

जन्म 

१५ अगस्त सन १८७२, कलकत्ता  

समाधि

५ दिसंबर १९५०, पुदुच्चेरी

पिता 

डॉ. कृष्णन घोष

माता 

श्रीमती स्वर्णलता देवी

पत्नी

श्रीमती मृणालिनी देवी

शिक्षा / कार्य

कर्मभूमि

बड़ौदा/कलकत्ता/पुदुच्चेरी

शालेय शिक्षा

सेन्ट पाल स्कूल , लंदन , इंग्लैंड

स्नातकशिक्षा

किंग्स कॉलेज, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड

१८९३ - १९०६

मंत्रालय  महाराजा बड़ौदा  (राजस्व विभाग)

प्रोफ़ेसर (अँग्रेज़ी एवं फ्रेंच भाषा) बड़ौदा कॉलेज

१९०६ - १९०९

तक संपादक दैनिक समाचार पत्र "बन्दे मातरम्"

साहित्यिक रचनाएँ

महाकाव्य

सावित्री

संस्कृत कृतियाँ

सप्त चतुष्टय, भवानी भारती

बांग्ला लेख

कारा काहिनी, धर्म (साप्ताहिक पत्र)

अंग्रेज़ी साहित्य  

द सिंथेसिस ऑफ़ योगा, एसेज ऑन गीता, उपनिषद, द फाउंडेशन ऑफ़ इंडियन कल्चर, द सीक्रेट ऑफ वेदा, द ह्यूमन साईकल, द आयडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी, द फ्यूचर पोएट्री, ह्यांम्स टू मिस्टिक फायर

 

संदर्भ :-

१. श्री अरविंद : एक संक्षिप्त परिचय , प्रकाशक श्री औरोबिंदो सोसायटी , पुदुच्चेरी।  

२. मैं अरविंद बोल रहा हूँ - सं. श्री गिरिराज शरण , प्रकाशक प्रतिभा प्रतिष्ठान , नई दिल्ली।

३. श्री अरविंद के पत्र (पत्नी के नाम )।

४. श्री औरोबिंदो सोसायटी , पुदुच्चेरी , प्रकाशन की मासिक पत्रिकाएँ एवं अन्य प्रकाशन।

५. श्री अरविंद चित्र सौजन्य (रुडोल्फ) १९२२।

लेखक परिचय

अमित खरे, संयुक्त संचालक, मध्य प्रदेश विद्युत् नियामक आयोग, भोपाल (म. प्र.) [शिक्षा - विद्युत् अभियांत्रिकी में स्नातकोत्तर उपाधि]  

प्रकाशन - विभिन्न ई-पत्रिकाओं एवं समाचारपत्रों में रचनाएँ प्रकाशित। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगताओं में विजेता। विगत दो वर्षों से 'कविता की पाठशाला' व्हाट्सएप्प समूह की सक्रिय सदस्यता।

मोबाईल - +91 9406902151, ई-मेल - amit190767@yahoo.co.in      

 

13 comments:

  1. महर्षि अरविंद के जीवन और लेखन को समझना आसान नहीं है ।अमित जी , आपने एक जटिल और चुनौतीपूर्ण विषय को बहुत सहज - सरल प्रवाह में प्रस्तुत किया है । सीमित शब्दों में भी आपने उनके जीवन की सुंदर रूप- रेखा खींची है । आपको बधाई।

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  2. महान योगी महर्षि अरविंद ने दर्शन एवं साहित्य सृजन से जीवन सिद्धांत, संस्कृति और सभ्यता को एक नई दृष्टि से देखा, समझा और समझाया। उनके जीवन और साहित्य सृजन को सरलता एवं सहजता से लिखना, समझाना सचमुच एक कठिन कार्य है जो अमित जी ने बखूबी किया। अमित जी को हार्दिक बधाई।

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  3. महर्षि अरविन्द जी के जीवन और कृतित्व पर अत्युत्तम लेख। अमित जी, आप इस अद्भुत लेखन के लिए बधाई के पात्र हैं। साथ ही सरल और स्पष्ट शब्दों में महर्षि अरविन्द के सृजन और जीवन से जुड़े प्रत्यक्ष और परोक्ष पहलुओं से परिचय करने के लिए आपका आभार।

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  4. महर्षि अरविंद जी के जीवन के हर पहलू को प्रकाशित करता एवं साहित्य जगत से लेकर आध्यात्मिक जगत की ओर ले जाने वाला अद्भुत लेख । धन्यवाद अमित जी ।

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  5. आदरणीय अमित जी, आपने महर्षि अरविंद जी के जीवन के हर पहलू से परिचय बड़े ही सरल और स्पष्ट शब्दों में कराया, आपको हार्दिक बधाई

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  6. महर्षि अरविन्द के जीवन परिचय , व्यक्तित्व और साहित्यिक यात्रा को सरल , सहज शब्द और शैली में उल्लेखित करता हुआ एक समृद्ध लेख। अमित जी को इस सारगर्भित और उत्कृष्ट लेख के सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ।

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  7. Beautiful description of one of the greatest personalities of those times! I grew up in Mother’s International School in Delhi and remember celebrations of ‘ Samadhi Day’ so very nostalgic personally as well!
    I particularly appreciate the reference to his progressive thoughts that question age old nonsensical traditions...Kudos !

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  8. सारगर्भित लेख। श्री अरविंद के विषय मे आज की पीढ़ी के लोग बहुत कम जानते हैं, ये लेख उन्हें श्री अरविंद के विषय मे और अधिक जानने को प्रेरित करेगा।

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  9. आप सभी की प्रतिक्रियाओं से मन आह्लादित है, बहुत बहुत आभार । 🙏🙏

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  10. भगवान श्री अरविंद के बारे में बहुत कुछ बताता एक सारगर्भित लेख। साधुवाद।

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  11. सारगर्भित लेख। महर्षि के सम्पूर्ण जीवन और उसमें आये महत्तवपूर्ण परिवर्तनों को दर्शाता उपयोगी लेख। श्री अरविन्द को आगे पढ़ने के लिए यह एक अच्छा प्रारम्भिक बिन्दु है।

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  12. महर्षि अरविंद के संपूर्ण जीवन पर प्रकाश डालता अत्याधिक सार्थक एवं सारगर्भित आलेख हेतु लेखक को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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