Tuesday, December 21, 2021

यू.आर. अनंतमूर्ति: प्रबुद्ध व्यक्तित्व के प्रखर साहित्यकार


क्षेत्रीय भाषा साहित्य जब क्षेत्र की सीमा पारकर दुनिया में  सर्वत्र पढ़ा जाने लगे, तब ऐसे साहित्यकार को वैश्विक मानना अतिशयोक्ति नहीं होगा। ऐसे ही विश्वविख्यात साहित्यकार हैं, उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति, जिन्होंने अंग्रेज़ी भाषा को साधने के बाद भी अपनी मातृभाषा कन्नड़ में ही लिखने की ठानी और अपनी सशक्त लेखनी को दुनिया की हर प्रमुख भाषा में अनूदित होने के लिए प्रेरित किया। अनंतमूर्ति को पढ़कर उनकी उन्मुक्त सोच और विकसित समझ के प्रति सहज ही आकर्षण हो जाता है। आइए, डॉ. अनंतमूर्ति और उनके साहित्य को कुछ और गहराई से जानने का प्रयास करते हैं।

जीवन यात्रा

कर्नाटक के शिमोगा ज़िले के मलिगे गाँव में जन्मे (२१ दिसंबर १९३२) यू. आर. अनंतमूर्ति की प्रारंभिक शिक्षा दुर्वासापुरा के पारंपरिक संस्कृत विद्यालय में हुई। इसके बाद की शिक्षा क्रमशः तीर्थहल्ली व मैसूर में हुई। मैसूर विश्वविद्यालय से मास्टर ऑफ़ आर्ट्स करने के बाद कुछ समय तक वहीं अंग्रेज़ी विभाग में अध्यापन (१९६३) का कार्य किया। इसी बीच उनकी मुलाकात (१९५४) एक क्रियश्चन लड़की इस्तर से हुई और जल्द ही यह दोस्ती शादी (१९५६) में बदल गयी। १९५० के दशक में अंतर्जातीय विवाह समाज को सहज स्वीकार्य नहीं था, किंतु आलोचनाओं की परवाह किए बिना वे अपने ध्येय प्राप्ति में जुटे रहे। उनकी दो संतानें हुईं- सुश्री अनुराधा और श्री शरत।

अनंतमूर्ति में आगे पढ़ने की इच्छा इतनी प्रबल थी, कि कठिन परिश्रम कर उन्होंने राष्ट्रमंडल छात्रवृत्ति हासिल की और बर्मिंघम विश्वविद्यालय, इंग्लैण्ड से डॉक्टरेट (१९६६) की उपाधि ली। अकादमिक रुझान के फलस्वरूप वापस आकर उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में पुनः अध्यापन कार्य  (१९७०) आरंभ किया और इस बार बतौर प्रोफेसर व प्रशिक्षक के रूप में अंग्रेज़ी विभाग में अपनी सेवाएँ दी। यहीं से प्रारंभ हुआ उनका अत्यंत समृद्धशाली वृत्तिक सफ़र जिसपर चलते हुए उन्होंने सफलता के नए आयाम गढ़े और देश-विदेश में ख्याति प्राप्त की।

रोज़गारनामा: कई वर्षों तक मैसूर विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी पढ़ाने के बाद वे महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय, कोट्टायम (केरल) में चार वर्षों तक (१९८७-१९९१) कुलपति की भूमिका में रहे। वर्ष १९९२ में नैशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के अध्यक्ष बने और अगले ही वर्ष १९९३ में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। साथ-साथ कई भारतीय तथा विदेशी विश्वविद्यालयों, जैसे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू), शिवाजी विश्वविद्यालय, आयोवा विश्वविद्यालय, टफ्ट्स विश्वविद्यालय व तुबिंगन विश्वविद्यालय, में विज़िटिंग प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएँ दी। इस दौरान उन्होंने कई विदेश यात्राएँ की, जिससे उनकी उदारवादी सोच और समाजवादी विचारधारा को संबल मिलता रहा। इतना ही नहीं, वे लगातार दो बार फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया, पुणे के अध्यक्ष रहे; कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रथम चांसलर नियुक्त हुए; और २०१२ के आस-पास मणिपाल सेंटर फॉर फिलॉसफ़ी एंड ह्यूमैनिटीज़, मणिपाल विश्वविद्यालय में अतिथि प्रोफे़सर के रूप में पढ़ाते थे। शिक्षण के साथ-साथ कई सेमिनारों, व्याख्यानों एवं आयोजनों में एक लेखक और मुख्य वक्ता के रूप में देश-विदेश की यात्रा करते हुए लोगों की सराहना और प्रशंसा के पात्र बनते रहे। वे भारतीय लेखकों की समिति के सदस्य थे और इस भूमिका में रहते हुए १९९० में सोवियत संघ, हंगरी, फ़्रांस और पश्चिमी जर्मनी आदि देशों का दौरा किया। इससे पहले १९८९ में सोवियत समाचार पत्र के बोर्ड सदस्य के रूप में मास्को, रूस के दौरे का अवसर भी उन्हें मिला था। १९९३ में चीन की यात्रा करने वाले लेखकों की समिति का नेतृत्व भी अनंतमूर्ति ने बड़ी सहजता से किया था। यह बहुत कम लोग जानते हैं, कि यू. आर. अनंतमूर्ति ने मैसूर रेडियो के लिए कई ख्यातिलब्ध व्यक्तित्वों का साक्षात्कार भी किया है, जिनमें के. शिवराम कारंथ, गोपालकृष्ण अडिगा, आर. के. नारायण, आर. के. लक्ष्मण, तथा के. एम. करियप्पा सरीखे नाम शामिल हैं। व्यावसायिक रूप से सफल रह चुके डॉ अनंतमूर्ति का साहित्यिक सफ़र भी विलक्षण है।

साहित्यिक योगदान

एक शिक्षाविद् के रूप में अपनी पहचान पुख़्ता करने वाले डॉ यू. आर. अनंतमूर्ति का साहित्यिक योगदान भी प्रशंसनीय है। जीवन भर अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले अनंतमूर्ति ने लेखन के लिए अपनी मातृभाषा कन्नड़ को सर्वोपरि रखा, यह बात अनुकरणीय है। उसपर कन्नड़ में इतना समृद्ध साहित्य गढ़ा, कि जिसका अनुवाद कई भारतीय (हिंदी, बांग्ला, मराठी, मलयालम, गुजराती) तथा यूरोपीय भाषाओं (अंग्रेज़ी, रुसी, फ्रेंच, हंगेरियन) में हुआ। उनकी अनेक रचनाओं पर फ़िल्में बनीं; नाट्य प्रस्तुतियाँ खेली गई।

डॉ. अनंतमूर्ति का साहित्यिक सफ़र १९६५ में प्रकाशित कथा-संग्रह “इंडेनढ़िगु मुघियाडा कथे” से आरंभ हुआ और आजीवन चलता रहा। अपने जीवनकाल में उन्होंने छह उपन्यास, छह कविता-संग्रह, ग्यारह कथा-संग्रह,  एक नाटक व दर्जनों लेख तथा समालोचनाएँ लिखी। उनकी आत्मकथा ‘सुरागी के नाम से प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त इग्नू के 'भारतीय साहित्य टैगोर पीठ' के मानद अध्यक्ष के पद पर रहते हुए उन्होंने पीठ की गतिविधियों में भाषा, साहित्य और संस्कृति अध्ययन पर एक द्विभाषी पत्रिका का संपादन भी किया है। उनके रचना संसार को देखते हुए उन्हें कन्नड़ साहित्य के नए आंदोलन ‘नव्या का प्रणेता कहा जाता है। उनके लेखन-कार्य को दो पक्षों में बाँटा जा सकता है: पहला, अतिवादी पक्ष जिसमें उनके दो उपन्यास – संस्कार (१९६५), भारतीपुर (१९७३); दो कथा-संग्रह – प्रश्न (१९६२), मौनी (१९७२); तथा साहित्यिक और सांस्कृतिक आलोचना की दो पुस्तकें ‘प्रज्ञे मत्तु परिसर (१९७४) और ‘सन्निवेश (१९७४) आती हैं। इन कृतियों में उनका लेखन समाजवादी विचारधारा से प्रभावित प्रतीत होता है, जिसमें जाति और लिंग के आधार पर होने वाले विभाजन की बेख़ौफ़ आलोचना मुखर है।दूसरा, स्व-चिंतन या आत्मान्वेषण पक्ष है, जो उनके तीसरे उपन्यास -अवस्थ (१९७८)- से आरंभ होकर ‘सूर्यना कुदुरे (१९८९) नामक कहानी तक देखने को मिलता है। इन कृतियों में आधुनिकता को मात्र प्रदर्शन मानने के प्रति उनकी असहमति पूरे वैचारिक साहस के साथ दृष्टिगोचर है।

डॉ. अनंतमूर्ति की लेखनी यथार्थ की अभिव्यक्ति है। वे सही अर्थों में एक आधुनिक लेखक थे। अपनी सैद्धांतिक हिचकिचाहट और वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर जीवन और दर्शन संबंधी अपने विचार उन्होंने बड़ी निर्भीकता और साहस के साथ प्रस्तुत किए हैं। उन्हीं के शब्दों में उनकी इन पक्तियों से उनके विचारों की स्पष्टता का पता चलता है।

 ‘नेशन स्टेट जैसी कल्पना ही हमारे लिए नई थी। यूरोप के जैसी यदि हम एक नेशन स्टेट बनाना चाहेंगे, तो देश की सारी जनता का एक ही भाषा-भाषी, एक ही धर्म का और एक ही जनजाति का होना आवश्यक है। किंतु भारत की स्थिति ऐसी नहीं है। विविधता ही भारत की विशेषता है। अनेक भाषाएँ, अनेक धर्म, अनेक जन-जातियाँ, अनेक प्रकार का खान-पान इन सबको मिलाकर भारत बना है।

-  उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति

पुरस्कार एवं सम्मान

अपने जीवनकाल में एक आधुनिक साहित्यकार, तर्कसंगत आलोचक और प्रखर शिक्षाविद् के रूप में डॉ. अनंतमूर्ति बेहद लोकप्रिय स्थापित हुए। कन्नड़ साहित्य जगत् में उनके अमूल्य योगदान को भरपूर सराहना मिली है। अनेक पुरस्कारों समेत उन्हें साहित्य के सर्वोच्च सम्मान “ज्ञानपीठ पुरस्कार” (१९९४) तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण (१९९८) सम्मान से पुरस्कृत किया गया।

राजनैतिक रुझान: साहित्य व शिक्षा जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके डॉ. अनंतमूर्ति को राजनीति रास नहीं आई। भारतीय जनता पार्टी से अपने वैचारिक मतभेद को खुलकर प्रकट करते हुए २००४ के लोकसभा चुनावों से उन्होंने राजनीति में कदम रखना चाहा, किंतु यहाँ वे असफल रहे। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा ने उन्हें अपनी पार्टी जनता दल (सेक्युलर) से लड़ने को आमंत्रित किया था, किंतु पार्टी का भाजपा से सत्ता साझा करने का करार उन्हें नामंज़ूर था, जिसकी उन्होंने खुलकर भर्त्सना की थी। पुनः २००६ में उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव में भी अपनी किस्मत आज़माई, किंतु यहाँ भी उन्हें सफलता नहीं मिली। हालाँकि कर्नाटक राज्य उनके महत्वपूर्ण योगदान को सदैव याद रखेगा। यह उनके प्रयासों का ही फल था, कि कर्नाटक के गठन के स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर राज्य के दस शहरों के औपनिवेशिक नामों को उनके वास्तविक देशी नामों से बदला गया, जिसमें बैंगलोर से बेंगलूरू भी शामिल है। 

अपनी बेबाक टिप्पणियों और वक्तव्यों के कारण डॉ. अनंतमूर्ति कई बार विवादों के घेरे में भी आए। किंतु उनका साहित्यिक योगदान इतना प्रबल था, कि वैचारिक मतभेदों के बावजूद उनकी रचनाओं को आलोचकों की सराहना मिलती रही। अपने मुखर व्यक्तित्व के कारण उन्हें कई कटु प्रतिक्रियाओं का सामना भी करना पड़ा, किंतु उनकी साहित्यिक और शैक्षणिक उपलब्धियों ने उन्हें आलोचकों के समक्ष भी लोकप्रिय बनाए रखा। यही कारण था, कि २२ अगस्त २०१४ को उनके निधन के समाचार से समूचा देश शोकाकुल था। ८२ वर्ष की जीवनगाथा को पूर्ण विराम लगने के कई वर्षों बाद भी डॉ. अनंतमूर्ति अपनी रचनाओं के साथ अजर-अमर रहेंगे।


यू. आर. अनंतमूर्ति: जीवन परिचय

पूरा नाम

उडुपी राजगोपालाचार्य अनंतमूर्ति

जन्म

२१ दिसंबर, १९३२

जन्मभूमि

मलिगे, तीर्थहल्ली तालुका, शिमोगा, कर्नाटक

मृत्यु

२२ अगस्त २०१४, बेंगलुरु

पत्नी

इस्तर अनंतमूर्ति

शिक्षा एवं शोध

एम. . 

मास्टर ऑफ़ आर्ट्स, मैसूर विश्वविद्यालय

पीएच.डी.

१९३० में राजनीति और साहित्य, बर्मिंघम विश्वविद्यालय

व्यवसाय

अंग्रेज़ी प्रोफे़सर, कुलपति, अध्यक्ष, साहित्य अकादमी तथा नैशनल बुक ट्रस्ट

साहित्यिक रचनाएँ

कहानी संग्रह               

इंडेनढ़िगु मुघियाडा कथे, प्रश्ने, मौनी, आकाशा मत्तु बेकु, सुर्यना कुदुरे, पच्चे रिसॉर्ट एप्पात्तारा दशाकडा कथे, एरडु दशाकडा कटेगलु, ऐदु दशाकडा  कटेगलु, आयदा कथेगलु, समस्त कथेगलु

उपन्यास

संस्कार, भारतीपुरा, अवस्थे, दिव्य, प्रीती मृत्यु भय

कविता संग्रह

१५ पद्यगलु, मिथुन, अज्जना हेगला सुक्कुगलु, इलियावरेगिना कवितेगलु, अभाव, समस्त काव्य

आधारित फ़िल्में

संस्कार (१९७०), घटश्राद्ध (१९७८), बारा (१९८२), सूखा (हिंदी) (१९८३), अवस्थे (१९८७), दीक्षा (हिंदी) (१९९२), मौनी (२००३), प्रकृति (२०१३)

पुरस्कार सम्मान

राज्योत्सव पुरस्कार (१९८४), ज्ञानपीठ पुरस्कार (१९९४), पद्म भूषण (१९९८), साहित्य अकादमी फ़ेलोशिप (२००४), नादोजा पुरस्कार, कन्नड़ विश्वविद्यालय (२००८), बशीर पुरस्कारम (२०१२), मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार (२०१३) के लिए नामित

कर्नाटक राज्य फ़िल्म पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ कहानी (संस्कार) १९७०-७१, सर्वश्रेष्ठ कहानी (घटश्राद्ध) १९७७-७८, सर्वश्रेष्ठ संवाद (अवस्थे) १९८७-८८ (कृष्ण मसादी के साथ साझा), सर्वश्रेष्ठ कहानी (मौनी) २००२-०३

 


























संदर्भ

लेखक परिचय

दीपा लाभ

हिंदुस्तानहरिभूमिआज तक और प्रज्ञा चैनल से होते हुए नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फैशन टेक्नोलॉजी (वस्त्र मंत्रालय, भारत सरकार) के विभिन्न केंद्रों में प्रशिक्षण देने के बाद इन्होंने अध्यापन को अपना लक्ष्य बनाया। इसी क्रम मेंहिंदी व अंग्रेज़ी भाषा के क्रियात्मक प्रयोगों से संप्रेषण सुदृढ़ करने के विभिन्न प्रयासों पर शोध करते हुए कुछ कोर्स तैयार किए, जिन्हें वे सफलतापूर्वक चला रही हैं। इन दिनों 'हिंदी से प्यार है' समूह में उनकी सक्रिय भागीदारी है। साहित्यकार तिथिवार की प्रबंधक-संपादक हैं।

ईमेल : depalabh@gmail.com ; व्हाट्सएप : +91 8095809095

7 comments:

  1. इस लेख के माध्यम से दीपा जी ने प्रबुद्ध साहित्यकार डॉ. अनन्तमूर्ति जी के जीवन एवं साहित्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई। दीपा जी को इस उत्तम लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  2. श्री अनंतमूर्ति के जीवन और कृतित्व के बारे में बहुत जानकारी मिली । आपने बहुत सुंदर लेख लिखा है दीपा जी ; यह लेखकों के लिए एक अच्छा नमूना है । साहित्यकार का जीवन, कृतित्व , उपलब्धियाँ बड़ी सुरूचि से प्रस्तुत किये गए हैं । आपके शोध एवं लेखन पर की गई मेहनत के लिए धन्यवाद एवं बधाई । 💐💐

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  3. शिक्षाविद श्री अनंतमूर्ति जी के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा। ऐसे कई साहित्यकार हैं जिन्हें हम सिर्फ नाम से जानते हैं परंतु दीपा जी के अथक प्रयासों,शोध और लेखन के जरिये आज यह संभव हो पाया कि प्रख्यात साहित्यकार डॉ अनंतमूर्ति जी का रोजगारनामा, साहित्य के प्रति योगदान, निजी जीवन व्यापन एवं सम्मान आदि के बारे में विस्तृत वृतान्त पढ़ने मिला। बहुत बहुत आभार दीप जी और आपको हार्दिक शुभकामनाएं।💐💐👍👏👏👏

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  4. दीपा जी, कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध लेखक डॉ अनंतमूर्ति जी के व्यक्तित्व और कृतत्व को धाराप्रवाह, रोचक, प्रेरक और सुन्दर आलेख में समेटने के लिए आपको बधाई।

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  5. दीपा जी की समृद्ध लेखनी ने हमें श्री अनंतमूर्ति के जीवन और कृतित्व के बारे में बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई है। दीपा जी ने सिलसिलेवार ढंग से साहित्यकार के जीवन, कृतित्व , उपलब्धियों पर बड़ा सुरूचिपूर्ण और शोधपरक लेख प्रस्तुत किया है। दीपा जी का धन्यवाद एवं उन्हें बहुत बधाई । 💐💐

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  6. दीपा जी ने शानदार ढंग से बेहद सुंदर आलेख लिखा है। 👌👌

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  7. एक संपूर्ण आलेख - अनंतमूर्ति जी के जीवन, साहित्य और राजनैतिक उद्यमों का विस्तृत लेखा जोखा । आपके लेख ने साहित्यकार को पढ़ने के लिए प्रेरित किया है। साधुवाद , दीपा जी 🙏

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