Tuesday, December 14, 2021

बहुआयामी साहित्यकार - उपेंद्रनाथ 'अश्क'


यदि मुंशी प्रेमचंद जी की सलाह पर वह हिंदी में लेखन की शुरुआत नहीं करते, तो 'हम' उनकी रचित कृतियों से वंचित रह जाते। मैं यहाँ ‘हम’ का प्रयोग अपने और अपने जैसे उन तमाम लोगों के लिए कर रही हूँ, जिनको उर्दू का एक शब्द भी पढ़ना नहीं आता। यहाँ बात की जा रही है, श्री उपेंद्रनाथ अश्क़ की, जिन्होंने पहले उर्दू में लिखा और फिर उसका हिंदी में अनुवाद किया। उपेंद्र जी का जन्म १४ दिसंबर १९१० को जालंधर, पंजाब में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित माधोराम था और वे रेलवे अधिकारी थे। उपेंद्र जी एक मध्यमवर्गीय, ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जालंधर से हुई। उपेंद्रनाथ अश्क़ का प्रारंभिक जीवन बहुत संघर्षपूर्ण था। किंतु सभी बाधाओं का सामना करते हुए, साहसपूर्वक अश्क अपने जीवन में आगे बढ़ते गए।

बचपन से ही अश्क कभी अध्यापक, लेखक/संपादक, वक्ता या वकील, अभिनेता अथवा डायरेक्टर बनने, तो कभी थियेटर अथवा फ़िल्म में जाने के सपने देखा करते थे। घर पर साहित्य का कोई विशेष माहौल नहीं था, तब भी उन्हें बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष रुचि थी। जालंधर, पंजाब के डी. ए. वी . कॉलेज से वर्ष १९३१ में बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद, वे अपने ही स्कूल में अध्यापक बन गये। अपने लेखन की शुरुआत उन्होंने उर्दू भाषा से की। उनकी पहली उर्दू कविता 'लोकप्रिय' लाहौर स्थित उर्दू दैनिक ‘मिलाप’ के रविवार के पूरक में प्रकाशित हुई थी। उनकी रचनाएँ आज़ादी के लिए किये गए संघर्ष और महिलाओं के प्रति समाज की रूढ़िवादी सोच को प्रदर्शित करती हैं।

सन १९३० में, कॉलेज में रहते हुए, उन्होंने ‘नौ रतन’ नामक लघुकथाओं का अपना पहला संग्रह प्रकाशित किया। इस चरण के दौरान उन्होंने तख़ल्लुस लेने की उर्दू परंपरा को ध्यान में रखते हुए 'अश्क' उपनाम अपनाया। तख़ल्लुस को बचपन के एक दोस्त के सम्मान में चुना गया था, जिसकी मृत्यु ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा था। कॉलेज के दिनों से ही लगभग तीन वर्षों तक उन्होंने लाला लाजपत राय के समाचार पत्र ‘वंदे मातरम’ के लिए एक रिपोर्टर के रूप में काम किया, और फिर १९३३ में जीविकोपार्जन के लिए दैनिक ‘वीर भारत’ और ‘ साप्ताहिक भूचाल’ के लिए एक अनुवादक और फिर सहायक संपादक के रूप में काम किया। एक अन्य साप्ताहिक ‘गुरु घण्टाल’ के लिए प्रति सप्ताह एक रुपये में एक कहानी लिखकर देने लगे। इस दौरान उन्होंने स्थानीय पत्रिकाओं में कविताएँ और लघु कथाएँ प्रकाशित करना जारी रखा।

१९३२ में शीला देवी से उनकी शादी हुई। १९३२ में मुंशी प्रेमचंद की प्रेरणा से 'अश्क' ने हिंदी में लेखन की ओर रुख किया। उन्होंने प्रत्येक कहानी को पहले उर्दू में लिखा और फिर उसका हिंदी में अनुवाद किया। १९३२ में उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ, जो उर्दू भाषा में था। १९३३ में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह ‘औरत की फ़ितरत’ की भूमिका मुंशी प्रेमचंद ने ही लिखी थी। उनके प्रथम हिंदी संग्रह ‘जुदाई की शाम का गीत’ की अधिकांश कहानियाँ उर्दू में छप चुकी थीं। जैसा कि अश्क जी ने स्वयं लिखा है, "१९३६ से पहले की ये कृतियाँ उतनी अच्छी नहीं बनी। उन सभी रचनाओं में अनुभूति का स्पर्श उन्हें कम मिला था।"

१९३४ में आर्थिक समस्याओं ने उन्हें अपने जीवन की प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने का अवसर दिया और उन्होंने एक सुरक्षित कैरियर को अपना पहला लक्ष्य बनाया। इसके लिए उन्होंने कानून की डिग्री लेने और मजिस्ट्रेट बनने का संकल्प लिया। लेकिन उनकी डिग्री पूरी होते ही, उनकी पत्नी शीला देवी की तपेदिक से मृत्यु हो गयी। गहरे दुख की स्थिति में, अश्क ने कानूनी पेशे में प्रवेश करने की अपनी योजना को छोड़ दिया और एक पूर्णकालिक स्वतंत्र लेखक बनने का संकल्प लिया। इस मौके पर उन्होंने दुख और गरीबी के बारे में वास्तविक रूप से लिखने का भी संकल्प लिया। १९३६ में उन्होंने लघु कहानी "साची" प्रकाशित की, जिसे हिंदी-उर्दू कथा साहित्य में प्रगतिशील यथार्थवाद में एक मील का पत्थर माना जाता है। १९३६ के बाद अश्क जी की कृतियों पर सुख-दु:खमय जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों का प्रभाव देखने को मिलता है। ‘उर्दू काव्य की एक नई धारा’ (आलोचना ग्रंथ), ‘जय पराजय’ (ऐतिहासिक नाटक), ‘पापी’, ‘वेश्या’, ‘अधिकार का रक्षक’, ‘लक्ष्मी का स्वागत’, ‘जोंक’, ‘पहेली’ और ‘आपस का समझौता’ (एकांकी), ‘स्वर्ग की झलक’ (सामाजिक नाटक), कहानी संग्रह ‘पिंजरा' की कहानियाँ', ‘छींटें’ की कुछ कहानियाँ और ‘प्रात प्रदीप’ (कविता संग्रह) की सभी कविताएँ उनकी पत्नी की मृत्यु (१९३६) के दो-ढाई साल के ही अल्प समय में लिखी गई हैं। १९३६ के बाद अश्क जी के जीवन का अति उर्वर युग प्रारंभ हुआ। उनका पहला कविता संग्रह 'प्रातः प्रदीप' १९३८ में प्रकाशित हुआ। 

१९४१ में अश्क जी की दूसरी शादी ‘कौशल्या’ से हुई। इसी वर्ष, अमृतसर के पास प्रीत नगर कम्यून में दो साल रहने के बाद, जहाँ उन्होंने हिंदी-उर्दू पत्रिका प्रीत लारी का संपादन किया, उन्हें एक नाटककार और हिंदी सलाहकार के रूप में ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में काम पर रखा गया।

१९४१ से १९४५ तक निरंतर लेखन और नौकरी चलती रही। १९४५ के दिसंबर में मुंबई के फ़िल्म जगत के निमंत्रण को स्वीकार कर अश्क जी फ़िल्मों में लेखन का कार्य करने लगे। अश्क ने शशिधर मुखर्जी और निर्देशक नितिन बोस के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने संवाद, कहानियाँ और गीत लिखे और दो फिल्मों में अभिनय भी किया। ये फिल्में थी -नितिन बोस द्वारा निर्देशित ‘मज़दूर’ और अशोक कुमार द्वारा निर्देशित ‘आठ दिन’। बॉम्बे में रहते हुए अश्क इप्टा से जुड़ गए और यहीं उन्होंने अपना सबसे प्रसिद्ध नाटक, ‘तूफान से पहले’ लिखा, जिसे बलराज साहनी द्वारा मंच के लिए निर्मित किया गया था। सांप्रदायिकता की आलोचना करने वाले इस नाटक को बाद में ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। १९४६ में, अश्क तपेदिक रोग से ग्रसित हो गए| १९४७ की शुरुआत में उन्हें पंचगनी में बेल एयर सेनेटोरियम ले जाया गया। अश्क दो साल तक सेनेटोरियम में रहे और उस दौरान उन्होंने अपनी प्रसिद्ध कविता "बरगद की बेल" की रचना की।

१९४७-१९४८ में अश्क जी निरंतर अस्वस्थ रहे। किन्तु, यह उनके साहित्यिक सृजन की उर्वरता का स्वर्णिम समय था। १९४८ से १९५३ तक अश्क दंपति का जीवन संघर्षमय रहा। तपेदिक के चंगुल से बचकर वे मुंबई से इलाहाबाद आए, जहाँ उन्होंने ‘नीलाभ प्रकाशन गृह’ की व्यवस्था की। नीलाभ के माध्यम से उनके समग्र साहित्यिक व्यक्तित्व को रचना और प्रकाशन दोनों दृष्टि से सहज पथ मिला। अश्क जी ने अपनी कहानी, उपन्यास, निबंध, लेख, संस्मरण, आलोचना, नाटक, एकांकी, कविता आदि के क्षेत्रों में कार्य किया। अश्क जी के साहित्य में उर्दू के शब्दों का प्रयोग बड़ी सुंदरता से दिखता है, जिस कारण उनकी भाषा में सरलता और सहज प्रवाहमयता है। उनका साहित्य नारी को रूढ़ियों से बाहर निकालकर, वह मूक आकाश प्रदान करता है, जहाँ वह उपभोग की वस्तु न होकर समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है। अश्क ने नाटक-साहित्य को रोमांस के कटघरे से बाहर निकालकर उसे वास्तविक धरातल प्रदान किया। पुराने संस्कारों तथा नई जीवन-शैली के बीच लटक रहे मध्यमवर्गीय लोगों के मानसिक द्वंद्व का वर्णन इनके नाटकों में सहज ही देखने को मिलता है। उनके द्वारा लिखा गया साहित्य मनोरंजन का साहित्य नहीं, बल्कि समकालीन विचारधारा प्रस्तुत करने वाला साहित्य है, जो अपनी सामाजिक सरोकारिता के कारण बरसों -बरस पढ़ा और सराहा जाएगा।

उपेंद्रनाथ अश्क: जीवन परिचय

जन्म

१४ दिसंबर १९१० जालंधर, पंजाब, भारत  

मृत्यु 

१९ जनवरी १९९६, इलाहाबाद, भारत

व्यवसाय 

अध्यापक, लेखक, कवि , नाटककार 

भाषा 

हिंदी, उर्दू 

शिक्षा

१९३१ बी  जालंधर से, १९३४ (एल एल बी)

प्रमुख रचनाएँ 

उपन्यास

गिरती दीवारें,  शहर में घूमता आईना, गर्म राख, सितारों के खेल

कहानी 

सत्तर श्रेष्ठ कहानियाँ, जुदाई की शाम के गीत, काले साहब,पिंजरा

नाटक

लौटता हुआ दिन, बड़े खिलाड़ी, जय-पराजय, स्वर्ग की झलक, भँवर, अंजो दीदी

एकांकी संग्रह

अन्धी गली, मुखड़ा बदल गयाचरवाहे

काव्य

एक दिन आकाश ने कहा,प्रातःप्रदीप, दीप जलेगा,बरगद की बेटी,उर्म्मियाँ

संस्मरण 

मण्टो मेरा दुश्मन,फिल्मी जीवन की झलकियाँ

आलोचना

अन्वेषण की सहयात्रा, हिंदी कहानी: एक अंतरंग परिचय

अनुवाद 

-’रंग साज’ (१९५८)- रूसी  कहानीकारऐंतन चेखवके लघु उपन्यास का अनुवाद,  -‘ये आदमी ये चूहे’ (१९५०)- स्टीन बैंक के प्रसिद्ध उपन्यासआव माइस एण्ड मैनका अनुवाद।   

-‘हिज एक्सेलेन्सी’ (१९५९)- अमर कथाकार दॉस्त्यॉवस्की के लघु उपन्यासडर्टी स्टोरीका हिन्दी अनुवाद।

संपादन

प्रतिनिधि एकांकी’ १९५०, ‘रंग एकांकी’ १९५६, ‘संकेत’ १९५३

पुरस्कार व सम्मान

सम्मान

सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार १९७२  

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, १९६५

लेखक परिचय

संगीता मनराल विज़ : निवास स्थान - वसुंधरा ग़ाज़ियाबाद ,प्राइवेट कंपनी - हार्पर कॉलिंज़ के स्कूल बुक्स डिपार्टमेंट में कार्यरत, ई-मैगज़ीन कृत्या, अनुभूति, हिंदी कोश में कविताएँ प्रकाशित, नवभारत टाइम्ज़ - दिल्ली के अख़बार में कुछ साक्षात्कार और लेख प्रकाशित। हिंदी युग्म पब्लिकेशन से कविताओं की किताब जुगलबंदी प्रकाशित हुई है। दिल की बात - हिंदी अपनी दिल की ज़बान और आत्मा है।

8 comments:

  1. सुंदर आलेख संगीता जी,उन्हें पढ़ा तो कई बार है पर इतना विस्तार से आज जाना,धन्यवाद इसे साझा करने के लिए।

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  2. बहुआयामी लेखन के धनी उपेन्द्रनाथ अश्क ने साहित्य की हर विधा में श्रेष्ठ सृजन किया। उनके साहित्य सृजन को बहुत ही सुंदर रूप में संगीता जी ने इस लेख में पिरोया है। इस रोचक लेख के लिए संगीता जी को हार्दिक बधाई।

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  3. उपेन्द्रनाथ अश्क जी की बहुआयामी साहित्यिक यात्रा और उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं से रूबरू कराता बहुत सुन्दर लेख। इस परियोजना के चलते हम कितनी ऐसी विभूतियों को क़रीब से जान पा रहे हैं जिनके बारे में मात्र सुना था, या सुना तक न था। संगीता जी इस जानकारी पूर्ण लेख के लिए आपको बधाई और शुक्रिया।

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  4. अश्क जी के जीवन पर एक सुन्दर लेख पढ़कर अच्छा लगा | संगीता जी उनके विविधतापूर्ण जीवन के सम्बन्ध में रोचक वर्णन करने के लिए धन्यवाद |
    आशा बर्मन, हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा

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  5. संगीता,
    देर से पढ़ा लेकिन अश्क़ जी पर तुम्हारा लिखा आलेख बहुत ही अच्छा लगा। उन के व्यक्तित्व और कृतित्व दोनो को बहुत ख़ूबसूरती से और रोचक शैली में समेटा है तुमने। बहुत बहुत बधाई।

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  6. अश्क को इससे पहले कभी जानने का अवसर नहीं मिला था| पहली बार उनके विषय में पढ़ा और इतना रोचक वर्णन पढ़कर मन आनंदित हो गया| इस परियोजना से जुड़कर अब फ़हरिस्त में इतने नाम जुड़ गए हैं कि जिनको पढ़ते-पढ़ते एक उम्र कम पड़ जाए| संगीता, उपेन्द्रनाथ से परिचय करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद|

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  7. उपेन्द्र नाथ जी के बहुआयामी व्यक्तित्व से परिचय कराने के लिए बहुत धन्यवाद , संगीता जी। बैंगन का पौधा कहानी पढ़ी। बहुत आकर्षक लेखन है।

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  8. पिताजी का सुंदर व्यक्तित्व और कृतित्व बहुत सुंदरता से रखने के लिए हृदय से साधुवाद...
    कुछेक तथ्य जोड़े जा सकते हैं, जैसे उनका 'पृथ्वी थियेटर' के साथ आपसी सम्बन्ध, तालमेल और आत्मीयताएँ.. या कालांतर में पिताजी की साहित्यिक यात्रा को बढ़ाने वाले उनके और माता जी (श्रीमती कौशल्या अश्क) के एकमात्र पुत्र नीलाभ अश्क के साहित्यिक योगदान इत्यादि बिंदु..
    पुनः साधुवाद
    श्रीमती भूमिका द्विवेदी अश्क..
    9910172903

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