Thursday, December 9, 2021

ख़बरों को कविता में बुनते पत्रकार: रघुवीर सहाय


निर्धन जनता का शोषण है, कहकर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है, कहकर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी, कहकर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी, कहकर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे, मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पाकर, फिर से आप हँसे

ऐसी अनेक पंक्तियों से आम आदमी की पीड़ा बताने वाले और अनछुए विषयों व गम्भीर मुद्दों को उठाने वाले बहुआयामी कवि रघुवीर सहाय बीसवीं सदी के उन पत्रकारों में से हैं जो ख़बरों को कविता के रूप में पिरोते जाते हैं और आम आदमी की व्यथा को बड़े ही सरल सहज शब्दों में लोगों के दिल-ओ-दिमाग तक पहुँचा जाते हैं


फिर जाड़ा आया, फिर गर्मी आई
फिर आदमियों के पाले से, लू से
मरने की खबर आई
न जाड़ा ज़्यादा था, न लू ज़्यादा
तब कैसे मरे आदमी? 

रोज़मर्रा की ऐसी अनेक खबरों को कविता के रूप में ढाल कर आम आदमी को उससे आसानी से जोड़ते जाने का अनोखा हुनर था रघुवीर सहाय के पास| ख़बरों को कविताओं के माध्यम से उजागर करते हुए अपने पाठकों को जीवन संघर्ष के लिए तत्पर रखना कोई साधारण कार्य नहीं है| संभवतः इसीलिए उनकी कविताओं को ख़बरों का सौन्दर्यशास्त्र कहा जाता है| वह सभ्य समाज के लिए समानता, न्याय, आज़ादी और लोकतंत्र की कीमत समझते थे और इसका आभाव देखते ही जन-जागृति के उद्देश्य से अपनी कलम की आवाज़ बुलंद करते थे|

पृष्ठभूमि: 

रघुवीर सहाय बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के एक महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उनका जन्म ९ दिसंबर, १९२९ को लखनऊ में हुआ था| उनके पिता श्री हरदेव सहाय साहित्य के अध्यापक थे| पिता की छत्र-छाया में साहित्य प्रेम जगना स्वाभाविक था| रघुवीर सहाय ने लखनऊ विश्वविद्यालय से १९४८ में अंग्रेज़ी साहित्य, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र विषयों में स्नातक तथा १९५१ में अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर किया| १७ वर्ष की आयु मेंअंत का प्रारंभ' कविता लिख कर उन्होंने साहित्य जगत् में पदार्पण किया और जीवन के अंतिम वर्षों तक लेखन में सक्रिय रहे। पत्रकार दयानंद पांडेयजी ने हिन्दी के प्रति उनका समर्पण देखते हुए लिखा, ‘‘वह अंग्रेज़ी में एम.ए. थे, लेकिन रोटी हिंदी की खाते थे।’’

लेखनकार्य:

लेखक के साथ-साथ वे हिंदी के प्रखर प्रवक्ता भी थे तथा आजीवन हिंदी के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे। उन्होंने रेडियो के माध्यम से बच्चों के लिए कहानियों तथा कविताओं का प्रसारण किया। पत्रकारिता से लगाव के कारण वे प्रारंभ से ही समाचार पत्र और आकाशवाणी से जुड़ गए थे| १९४९-१९५० तक दैनिक 'नवजीवन' में उप-संपादक के रूप में अपनी सेवाएँ दीं| १३ मई १९५० को 'अमृत' पत्रिका में प्रथम बार उनका लिखा संपादकीय प्रकाशित हुआ। १९५१ में अज्ञेय ने उनकी कविताएँ दूसरा सप्तक' में प्रकाशित कीं। तदुपरान्त अज्ञेय का साथ उन्हें हमेशा मिलता रहा| मई १९५१ में अज्ञेय ने रघुवीर सहाय कोप्रतीक' का सहायक संपादक बनाया और इस प्रकार उनका दिल्ली आगमन हुआ

आकाशवाणी के समाचार विभाग में भी उन्होंने चार वर्षों तक उप-संपादक के पद पर कार्य किया| 'युगचेतना' पत्रिका में उनकी कविता 'हमारी हिंदी' छपने के बाद बहुत हंगामा बरपा | 'हमारी हिंदी' कविता के विरुद्ध लेख भी छपे| विरोधियों ने यह प्रश्न भी पूछा कि यदि हिंदी दुहाजू की बीवी है तो यह दुहाजू कौन है?  


हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीबी है
बहुत बोलने वाली, बहुत खानेवाली, बहुत सोनेवाली,
गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ...

कहनेवाले चाहे कुछ कहें
हमारी हिंदी सुहागिन है, सती है, खुश है
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे
और तो सब ठीक है पर पहले खसम उससे बचे
तब तो वह अपनी साध पूरी करे।

१९६१ में वे पुनः आकाशवाणी से जुड़े| इसके पश्चात् वे तत्कालीन साप्ताहिक पत्रिका 'दिनमान' में प्रधान संपादक के पद पर रहे| फिर कुछ समय तक स्वतंत्र लेखन किया। १९८४ में उनकी काव्य-संग्रह "लोग भूल गए हैं" के लिए उन्हें 'साहित्यक अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

वह भली-भांति समझते थे कि राजनीति में अवसरवादियों का जमावड़ा है इसीलिए इन विसंगतियों पर कलम चलाने से कभी नहीं चूकते थे| उनकी कवितारूपी ख़बरों में बुराइयों के खिलाफ़ आवाज उठाते हुए उनकी कलम का आक्रोश अभी भी महसूस किया जा सकता है|

"गया वाजपेयी जी से पूछ आया देश का हाल,
पर उढ़ा नहीं सका एक नंगी औरत को
कम्बल रेलगाड़ी में बीस अजनबियों के सामने।"

शायद इसीलिए उन्हें पॉलिटिकल कवि के नाम से पुकारा गया| वे एक कवि-पत्रकार थे जो बड़ी बेबाकी से किसी भी बड़ी हस्ती का नाम लेने में हिचकते नहीं थे|

उनको हिंदी साहित्य जगत् के उन कवियों में से गिना जाता है जो अपनी भाषा और शिल्प के मामले में नागार्जुन की याद दिलाते हैं और राजनीति पर कटाक्ष करने में धूमिल को स्मरण करवा जाते हैंवे अपनी कृतियों में पत्रकारिता के तेवर और अखबारी तजुर्बा को साथ-साथ लेकर चलते थे। शोषण, भ्रष्टाचारराजनीतिक स्वार्थ, नैतिकता में आती गिरावट सरीखे छोटे-बड़े सभी मुद्दों पर वे अपनी पैनी नज़र रखते थे और उन सभी मुद्दों पर कलम चलाते थे जिन पर अमूमन बहुत कम लिखा गया है| समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण वे बड़ी सरलता से करते थे| स्त्री विमर्श पर उनके प्रश्न अन्दर तक झकझोरने वाले होते थे, “क्या यही स्वतंत्रता है? क्या यही स्वप्न देखकर हमने आज़ादी पाई थी?” उनकी इन पंक्तियों से एक पढ़ी-लिखी स्त्री की पीड़ा को स्वर मिल रहा है:


पढ़िए गीता, बनिए सीता, 

फिर इन सबमें लगा पलीता, 

किसी मूर्ख की हो परिणीता,

 निज घर-बार बसाइए। 

होय कँटीली, आँखें गीली, 

लकड़ी सीली, तबियत ढीली,

 घर की सबसे बड़ी पतीली, 

भरकर भात पसाइए।

रघुवीर सहाय साहित्य जगत् में प्रगतिशील काव्यधारा 'नई कविता' के प्रतिनिधि कवि हैं| उनकी संवेदना हमेशा एक कवि की रही और चेतना एक पत्रकार की| अपनी लेखनी से एक तरफ वे स्वतंत्र भारत का दर्शन कराते हैं और दूसरी तरफ देश की तमाम गतिविधियों पर अपनी पैनी लेखनी से जनता को सजग भी कराते जाते हैं; मानो अपने बेबाक अंदाज में कह रहे हों, “सब कुछ स्वीकार मत करो! अन्याय के विरुद्ध, भ्रष्टाचार के विरुद्ध, अपनी आँखें खोलो और खुलकर बोलो!” ख़बरों के धागों से पिरोई उनकी कविताएँ अनोखे भाषा शिल्प के कारण साहित्य में अलग पहचान रखती हैं| उनकी इन नायाब कविताओं को ३० दिसंबर १९९० को नई दिल्ली में पूर्ण विराम लग गया| मगर एक कवि अपनी कविताओं के ज़रिए अमरता को पाता है| रघुवीर सहाय भी पत्रकारिता जगत् का एक बुलन्द सितारा बनकर अमर हो गए हैं|

 

रघुवीर सहाय: जीवन परिचय

जन्म

९ दिसंबर १९२९ लखनऊ, उत्तर प्रदेश, भारत

निधन

३० दिसंबर १९९० नई दिल्ली 

पिता 

 हरदेव सहाय 

माता 

 तारामणि देवी

पत्नी 

 विमलेश्वरी सहाय 

शिक्षा एवं शोध

उच्च शिक्षा

 अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए.(लखनऊ विश्वविद्यालय)

पत्रकारिता और संपादन   

दिनमान (१९६७-१९८२) समाचार संपादक, प्रधान संपादक; प्रतीक' में सहायक संपादक; दैनिक नवजीवन में उपसंपादक और सांस्कृतिक संवाददाता; दिल्ली आकाशवाणी; नवभारत टाइम्स; कल्पना 

काव्य संग्रह

     

लोग भूल गये हैं, सीढ़ि‍यों पर धूप में, आत्‍महत्‍या के विरूद्ध, कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, एक समय था, हँसो हँसो जल्दी हँसो

प्रसिद्ध कविताएँ

कमरा, याचना, राष्ट्रगीत, दुनिया, पढ़िए गीता, नशे में दया, बसंत, भला, प्रतीक्षा, खिंचा चला जाता है, दर्द, पुरानी तस्वीर, औरत की ज़िन्दगी, हमारी हिंदी, दृश्य-1, चाँद की आदतें, अगर कहीं मैं तोता होता, बौर, पहले बदलो, लोकतन्त्र का संकट, समझौता,मौक़ा, अरे, अब ऐसी कविता लिखो, पराजय के बाद, स्वाधीन व्यक्ति, आनेवाला खतरा, प्रभाती, बिखरना, आनेवाला कल, दे दिया जाता हूँ, आओ, जल भरे बर्तन में, यही मैं हूँ, पानी, पानी के संस्मरण, जब मैं तुम्हें, इतने शब्द कहाँ हैं, मत पूछना, हम दोनों, बसन्त आया, आज फिर शुरू हुआ, संशय, अख़बारवाला, तोड़ो, अधिनायक,सेब बेचना

पुरस्कार

साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९८२

 सन्दर्भ सूची:

  • हँसो- हँसो जल्दी हँसो, रघुवीर सहाय, प्र. स. १९८५, (पृष्ठ १६)  
  • प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ ५ ) रचनाकार : रघुवीर सहाय प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • पुस्तक : रघुवीर सहाय संचयिता (पृष्ठ १९३) संपादक: कृष्ण कुमार, रचनाकार: रघुवीर सहाय प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • रघुवीर सहाय रचनावली १ स. सुरश शर्मा राजकमल प्रकाशन  (पृष्ठ ११३)  
  • सीढ़ियों पर धूप में, रघुवीर सहाय,पृ, सं-१४९
  • 'दूसरा सप्तक' (अज्ञेय)
  • नारीवादी विमर्श, राकेश कुमार
  • चित्र सौजन्य: https://www.wikiwand.com

 

लेखक परिचय:

शालिनी वर्मा पिछले २० वर्षों से खाड़ी के एक देश दोहा, क़तर में हिंदी भाषा एवं साहित्य की सेवा में कार्यरत हैं| स्त्री विमर्श पर कई प्रसिद्ध वेबसाइट पर निरंतर अपनी लेखनी चलाती हैं| ई पत्रिका नवचेतना की संपादक हैं और वर्तमान में दिल्ली पब्लिक स्कूल, दोहा में हिंदी शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं|

मोबाईल: 97477104556; ईमेल: shln.verma2@gmail.com

 

13 comments:

  1. रघुवीर सहाय जी की विशिष्ट शैली और व्यक्तित्व से परिचय करता बेहद रोचक और संतुलित आलेख। बहुत बहुत बधाई।

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  2. ख़बरों को कविता में बुनते रघुवीर सहाय जी पर क्या खूब लेखनी चलाई है आपने शालिनी जी... पत्रकारिता जगत के बुलंद कवि का सुंदर वर्णन

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    1. रश्मि जी आपका हृदय से आभार

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  3. बहुत अच्छे । रघुवीर सहाय जी के अनछुए पहलुओं पर रोशनी डालता सुंदर लेख।

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    1. अनूप जी इस समूह से जोड़ने के लिए बहुत धन्यवाद

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  4. खबरों के धागों में कविता पिरोती और कविताओं में खबरें कहती महान शख़्सियत को अनुपम शब्दांजलि है यह लेख। शालिनी जी को बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया।

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    1. प्रगति जी आपकी टिप्पणी मुझे हमेशा ऊर्जा देती हैं

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  5. ख़बरों से कविता निकालने वाले जनकवि रघुवीर सहाय के जीवन एवं साहित्य की महत्वपूर्ण बातों को समेटे हुए यह लेख बहुत अच्छा है। शालिनी जो को बहुत बहुत बधाई।

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  6. शालिनी आप जिस तत्परता से हमें किसी भी तंग मोड़ से निकाल कर जल्दी से मौलिक लेख लिख कर देती हैं, हम उसके हृदय से आभारी हैं! शुक्रिया!
    ————
    रघुवीर सहाय की तीखी कलम से उनको स्वयं भी कई आघात पहुँचे होंगे, ऐसे समझौता नापसंद लेखक ही कलम का सच्चा धर्म निभाते हैं, घाटे कुबूल करते हैं कि रोशनाई रोशन रहे!

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  7. प्रवाह बढ़िया है लेख का शालिनी

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  8. रघुवीर सहाय के जीवन वृतांत और साहित्य को समेटता सारगर्भित आलेख साधुवाद

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  9. ख़बरों से ज़्यादा ख़बरों पर बनी कविताएँ , अपने मर्म से दिल को छूती हैं । रघुवीर सहाय जी की कविताएँ पढ़ते हुए ,ये एहसास सदा ही और पुख़्ता हुआ है। रघुवीर सहाय जी के जीवन वृतांत और साहित्यिक यात्रा पर बहुत सुंदर और समृद्ध लेख हम तक पहुँचाने के लिए शालिनी जी का आभार। उन्हें अनेकानेक बधाई और शुभकामनाएँ भी।

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