Monday, December 20, 2021

सतसई के सृजक – बिहारीलाल

 


अपने कथन-कौशल से जयपुर-नरेश सवाई राजा जयसिंह को कर्तव्य का बोध कराने वाले, कृष्णोपासक बिहारीलाल अपनी रचना बिहारी सतसई के लिए विख्यात हैं। बिहारी के संदर्भ में यह बात सत्य है कि किसी कवि का यश उसके द्वारा रचित ग्रंथों के परिमाण पर नहीं, गुणों पर निर्भर होता है। वह अपने एकमात्र ग्रंथ सतसई से हिंदी साहित्य में अमर हो गए। श्रृंगार रस के ग्रंथों में बिहारी सतसई के समान ख्याति किसी को नहीं मिली। इस ग्रंथ की अनेक टीकाएँ हुई और अनेक कवियों ने इसके दोहों को आधार बना कर कवित्त, छप्पय, सवैया आदि छंदों की रचना की। बिहारी सतसई आज भी रसिक जनों का काव्य-हार बनी हुई है। कल्पना की समाहार शक्ति और भाषा की समास शक्ति के कारण सतसई के दोहे गागर में सागर भरे जाने की उक्ति चरितार्थ करते हैं। उनके विषय में ठीक ही कहा गया है -


सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर।

देखन में छोटे लगैं, घाव करैं गंभीर॥ 


अपने काव्य गुणों के कारण ही बिहारी महाकाव्य की रचना न करने पर भी महाकवियों की श्रेणी में गिने जाते हैं। उनके संबंध में स्वर्गीय राधाकृष्णदास जी की यह सम्मति बड़ी सार्थक है - "यदि सूर सूर हैं, तुलसी शशि और उडगन केशवदास हैं, तो बिहारी उस पीयूष वर्षी मेघ के समान हैं, जिसके उदय होते ही सबका प्रकाश आछन्न हो जाता है।"


बिहारीलाल के पिता का नाम केशवराय था। वे जाति के माथुर चौबे (चतुर्वेदी) थे। ८ वर्ष की आयु में आप पिता के साथ ओरछा आ गए और आपका बचपन बुंदेलखंड में बीता। वहीं बिहारी ने हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि आचार्य केवशदाससे काव्य–ग्रंथों के साथ ही संस्कृत और प्राकृत आदि का अध्ययन किया। आगरा जाकर इन्होंने उर्दू – फ़ारसी का अध्ययन किया और अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना के संपर्क में आये। आपका विवाह मथुरा में हुआ और युवावस्था ससुराल में व्यतीत हुआ, जैसा कि निम्न दोहे से प्रकट है -


जन्म ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।

तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल॥


अधिक दिनों तक ससुराल में रहने के कारण इनका आदर कम हो गया। उन्हें वहाँ जब निरादर का अनुभव हुआ, तो वे ससुराल छोड़कर आगरा आ गये । आगरा से जयपुर के मिर्ज़ा राजा जयसिंह के यहाँ गए। राजा जयसिंह अपनी नव-विवाहिता के प्रेम-पाश में आबद्ध होकर राजकाज भूल गए थे। बिहारी की एक श्रृंगारिक अन्योक्ति ने राजा को सचेत कर कर्तव्य पथ पर अग्रसर कर दिया। वह दोहा है:


नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकासु इहिं काल।
अली कली ही सों बिंध्यौ, आगे कौन हवाल।।


इस दोहे ने राजा जयसिंह की आँखें खोल दी और उन्होंने बिहारी को अपने दरबार में स्थान दिया। उसके बाद यहीं रहते हुए बिहारी ने राजा जयसिंह की प्रेरणा से अनेक सुंदर दोहों की रचना की। कहा जाता कि उन्हें प्रत्येक दोहे की रचना के लिए एक अशर्फ़ी (स्वर्ण मुद्रा) प्रदान की जाती थी। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बिहारी भक्ति और वैराग्य की ओर मुड़ गए। सन् १६६३ ई. (संवत १७२०) में उनकी मृत्यु हो गई।


बिहारी की एकमात्र रचना सतसई (सप्तशती) है। यह मुक्तक काव्य है। इसमें ७१९ दोहे संकलित हैं। कतिपय दोहे संदिग्ध भी माने जाते हैं। सभी दोहे सुंदर और सराहनीय हैं, तथापि तनिक विचारपूर्वक बारीकी से देखने पर लगभग २०० दोहे अति उत्कृष्ट ठहरते हैं। 'सतसई' में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। ब्रजभाषा ही उस समय उत्तर भारत की एक सर्वमान्य तथा सम्मानित ग्राह्य काव्यभाषा के रूप में प्रतिष्ठित थी। इसका प्रचार और प्रसार इतना हो चुका था कि इसमें अनेकरूपता का आ जाना सहज संभव था। बिहारी ने इसे एकरूपता के साथ रखने का स्तुत्य सफल प्रयास किया और इसे निश्चित साहित्यिक रूप में रख दिया। इससे ब्रजभाषा मँजकर निखर उठी। 


सतसई को तीन मुख्य भागों में विभक्त किया जा सकता है- नीति विषयक, भक्ति और अध्यात्म भावपरक, तथा श्रृंगारपरक। इनमें से श्रृंगारात्मक भाग अधिक है। सतसई में कला-चमत्कार चातुर्य के साथ सर्वत्र प्राप्त होता है। बिहारी के काव्य में भाषा की समास शक्ति प्रतिबिंबित होती है। आपने कम शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करने के लिए भाषा की समास शक्ति का प्रयोग किया। आप बड़े-बड़े प्रसंगों को भी दोहे की दो पंक्तियों में समाविष्ट कर देते थे। यथा-


कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैननु ही सब बात।।

 

इसके साथ ही कल्पना की समाहार शक्ति बिहारी की काव्य प्रतिभा का मूल कारण है। दूर की सूझ को कल्पना के बल पर अपने दोहों में साकार करने की यह शक्ति विरले कवियों में दिखाई पड़ती है। इसी से उनके काव्य में सरसता, मधुरता एवं चमत्कार है। युवावस्था और नदी में समानता खोजकर उन्होंने उसे एक ही दोहे में समाविष्ट कर दिया-


इक भीजैं चहलैं परैं बूड़ैं वहैं हजार।
किते न औगुन जग करै नै वै चढ़ती बार॥


बिहारी ने अपने युग के अनुरूप ही कविता में चमत्कार प्रदर्शन की प्रवृत्ति का परिचय भी दिया है। श्लेष, यमक का चमत्कार उनके अनेक दोहों में देखा जा सकता है। यथा निम्न दोहे में कनक शब्द का दो बार प्रयोग अलग-अलग अर्थों में करते हुए यमक का विधान किया गया है-


कनक कनक तै सौ गुनी मादकता अधिकाय।।
या खाए बौराय नर वा पाए बौराय।।


बिहारी को अनेक विषयों की अच्छी जानकारी थी। उनके दोहे इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि विषयों का प्रयोग उनके दोहों में पाया जा सकता है। उदाहरण के लिए ज्योतिष ज्ञान की जानकारी निम्न सोरठे से सिद्ध होती है।


मंगल बिन्दु सुरंग, मुख ससि केसर आड़ गुरु।
इक नारी लहि संगु, रसमय किय लोचन जगत।।


बिहारी सतसई मूलतः श्रृंगार रस से ओत-प्रोत काव्य ग्रंथ है। श्रृंगार के दोनों ही पक्ष संयोग और वियोग इसमें समाविष्ट हैं। उन्होंने नायिका के अंग-प्रत्यंग के सौंदर्य का सरस चित्रण तो किया ही है, साथ-ही-साथ नायक-नायिका की प्रेम क्रीड़ाओं, हाव-भाव का भी विशद चित्रण किया है। राधा-कृष्ण की यह क्रीड़ा कितनी आकर्षक है-


बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौह करै भौंहनु हँसे देन कहै नटि जाइ।


बिहारी ने प्रकृति का आलंबन रूप में चित्रण करके अनेक मार्मिक दोहे लिखे हैं, जिनसे प्रकृति का साकार चित्र उपस्थित हो जाता है। गर्मी की ऋतु का यह वर्णन देखिए-


कहलाने एकत बसत अहि, मयूर, मृग बाघ
जगत तपोवन सो कियो दीरघ दाघ निदाघ।।


बिहारी ने जीवन के सरस प्रसंगों का अनायास ही अत्यंत सुंदर वर्णन कर दिया है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति आनंदित हो सकता है। इस तरह हम देखते हैं, बिहारी सतसई भाव पक्ष एवं कला पक्ष दोनों ही दृष्टि से हिंदी साहित्य का बेजोड़ ग्रंथ है। अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण बिहारी अत्यंत लोकप्रिय कवि हैं। सतसई के देखने से स्पष्ट होता है कि बिहारी के लिए काव्य में रस और अलंकार चातुर्य चमत्कार तथा कथन कौशल दोनों ही अनिवार्य है। रस को उत्कर्ष देते हुए भी अलंकार कौशल का अपकर्ष नहीं होने दिया गया। इस प्रकार कहना चाहिए कि बिहारी रससिद्ध ही नहीं; रसालंकारसिद्ध कवि थे।


बिहारी ने नीति विषयक दोहों में भी सरसता का सराहनीय प्रयास किया है। बिहारी में दैन्य भाव का प्राधान्य नहीं, वे प्रभु की प्रार्थना करते हैं, किंतु अति हीन होकर नहीं; प्रभु की इच्छा को ही मुख्य मानकर विनय करते हैं। विद्वानों के अनुसार बिहारी ने अपने पूर्ववर्ती सिद्ध कविवरों की मुक्तक रचनाओं, जैसे आर्यासप्तशती, गाथासप्तशती, अमरुकशतक आदि से मूलभाव लिए- कहीं उन भावों को काट छाँटकर सुंदर रूप दिया है, कहीं कुछ उन्नत किया है और कहीं ज्यों-का-त्यों ही रखा है। 


सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं० पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी के काव्य की सराहना करते हुए लिखा है– बिहारी के दोहों का अर्थ गंगा की विशाल जलधारा के समान है, जो शिव की जटाओं में तो समा गयी थी, परंतु उसके बाहर निकलते ही वह इतनी असीम और विस्तृत हो गई कि लंबी–चौड़ी धरती में भी सीमित न रह सकी। बिहारी के दोहे रस के सागर हैं, कल्पना के इंद्रधनुष है, भाषा के मेघ हैं।


 बिहारीलालजीवन परिचय

जन्म

१५९५  बसुवा, गोविंदपुर, ग्वालियर

कर्मभूमि

जयपुर, राजस्थान

पिता

केशवराय

माता

कोई साक्ष्य नहीं

शिक्षा

स्वामी बल्लभाचार्य

साहित्यिक रचनाएँ

काव्य संग्रह

बिहारी सतसई

पुरस्कार व सम्मान

जयपुर-नरेश सवाई राजा जयसिंह के सम्मानित व दरबारी कवि 

मृत्यु

सन् १६६३ ई० (संवत् १७२०) वृंदावन



लेखक परिचय

भावना सक्सैना दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी व हिंदी में स्नातकोत्तर हैं; हैं कि वे स्वर्ण पदक प्राप्त हैं। २८ वर्ष से अधिक का शिक्षण, अनुवाद और लेखन का अनुभव है। चार पुस्तकें प्रकाशित हैं। कहानी संग्रह नीली तितली व एक हाइकु संग्रह काँच-सा मन है। नवंबर २००८ से जून २०१२ तक भारत के राजदूतावास, पारामारिबो, सूरीनाम में अताशे पद पर रहकर हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। संप्रति भारत सरकार के राजभाषा विभाग में कार्यरत हैं।

ईमेल – bhawnasaxena@hotmail.com 


8 comments:

  1. सुंदर,रोचक एवं जानकारीपूर्ण आलेख, भावना जी । बधाई।

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  2. सतस‌ई के जनक बिहारीलाल जी की इतनी उत्तम जानकारी उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार व शुभकामनाएँ भावना जी।

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  3. श्रृंगार रस के दोहे की बात हो तो बिहारी सतसई जी की याद जरूर आती हैं। उनके द्वारा सभी दोहे अत्यंत सुंदर और उत्कृष्ट रचे गए हैं। भावना जी ने बड़ी बखूबी से उनके जीवन और लेखन से जुडे अनुभवों का साक्षात्कार कराया हैं। भावना सक्सैना जी को अधिकाधिक शुभकामनाएं।💐💐🙏 *हिंदी से प्यार हैं* के परिवार का आभार जो इतने बड़े बड़े साहित्यकार और गुणी लोगों के साक्षात्कार करा रहें हैं।👌💐👍

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  4. बहुत सुंदर आलेख प्रस्तुत किया है भावना जी ने
    👌👌

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  5. बहुत ही जानकारी भरा सुंदर आलेख. बहुत-बहुत शुभकामनायें. .

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  6. महाकवि बिहारी के साहित्य एवं जीवन पर बहुत अच्छा लेख लिखा भावना जी। इस रोचक लेख के लिए बहुत बहुत बधाई भावना जी।

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  7. बिहारीलाल जी के जीवन तथा साहित्य के सम्बन्ध में इतना सुन्दर आलेख पढ़कर अच्छा लगा | हार्दिक आभार भावना जी !
    -आशा बर्मन,हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा

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