"सही गलत की कसौटी औरत होती है, मज़हब और रीति-रिवाज़ों की ज़िम्मेदारी भी औरत होती है, राजनीतिक बदलाव को दर्शाने वाली भी औरत होती है। कुल मिलाकर इस दुनिया को ज़िंदा रखनेवाली शै भी औरत होती है। तो फिर औरत को इतनी हिकारत की नज़र से क्यों देखा जाता है?" (ठीकरे की मंगनी)
नासिरा शर्मा एक ऐसी लेखिका हैं, जिन्होंने निडरतापूर्वक सामाजिक शोषण से जूझती स्त्री के लिए अपने लेखन के माध्यम से आवाज़ उठाई, बड़ी कुशलता से अनेक समस्याओं को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया और बहुत प्रखरता से ईरानी क्रांति के संदर्भ में लिखा। ऐसी प्रख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा के बारे में लिखना गागर में सागर भर देने जैसा है। फारसी की विदुषी तथा ईरानी कला संस्कृति, समाज और राजनीति की विशेषज्ञ नासिरा शर्मा का लेखन भारतीय समाज के अनेक मुद्दों पर आधारित है। उनका समग्र साहित्य विभाजन की पीड़ा, दंगे, असुरक्षा, महाजिर की विडंबना, संबंधों में आती कुटिलता, स्वार्थी राजनीतिक अस्मिता का संघर्ष, धर्म, शिक्षा, पर्यावरण के प्रति चिंता, संस्कृति, निम्न मध्यवर्गीय भारतीय परिवारों की आर्थिक तंगी, प्रवासी मानसिकता, बड़े शहरों का अकेलापन, सांप्रदायिकता और आतंकवाद से जूझती पूरी दुनिया, राजनीति समाज के अतिरिक्त स्त्री विषयक समस्याओं को बड़ी कुशलता से उकेरता है।
तीस साल पहले जो तार नासिरा शर्मा जी से बंधा वह मीलों दूर ऑस्ट्रेलिया में आज भी कायम है। आज भी जब नासिरा शर्मा जी की बात होती है तो मेरी आँखों के सामने एक गोरी-चिट्टी, सुंदर, गरिमामयी और विदुषी महिला का चेहरा घूम जाता है जो मानवीय धरातल पर जीती है, अपनी अंतरदृष्टि से दुनिया देखती है, स्थितियों का गहन अध्ययन करती है और फिर अपने अनुभवों को शब्दों का जामा पहनाकर एक ऐसी कहानी बुनती है, जो पाठकों के हृदय को छू जाती है। सालों की रिसर्च के बाद लिखे गए उपन्यास हों या ईरान की राजनीति और कला पर लेख हों, या फिर अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बुद्धिजीवियों के साक्षात्कार हों, यहाँ तक कि बच्चों के लिए साहित्य लेखन तक भी नासिरा जी की लेखनी कुशलता से चलती रही है।
नासिरा शर्मा का जन्म और पालन पोषण इलाहाबाद के एक सुशिक्षित तथा संपन्न परिवार में २२ अगस्त सन १९४८ को सिया मुस्लिम परिवार में हुआ था। नासिरा जी का बचपन बड़े ही लाड़ प्यार में बीता था। उनके पिता प्रो० ज़ामिन अली उर्दू प्रोफ़ेसर होने के साथ साथ एक अच्छे शायर भी थे। नासिरा जी को साहित्य प्रेम, पठन तथा लेखन उनसे ही विरासत में मिला। परंतु जब वे मात्र पाँच वर्ष की थीं तो उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के देहावसान के बाद उनकी माँ नाज़नीन बेगम ने ही अपने पाँचों बच्चों का लालन-पालन किया। नासिरा शर्मा की प्राथमिक शिक्षा सेंट एंथोनी कान्वेंट से हुई किंतु पिता की मृत्यु के पश्चात इनको हमीदिया गर्ल्स कॉलेज में दाखिला दिलवाया गया, जहाँ से उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद १९६७ में नासिरा जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया। सन १९७६ में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और फारसी आदि भाषाओं का अध्ययन किया। नासिरा जी फारसी में पीएचडी करना चाहती थी परंतु परिस्थितियों के फलस्वरूप ऐसा न हो सका। बाद में उन्होंने १९८० से १९८३ तक दिल्ली में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय में उर्दू और फारसी भाषा का अध्यापन कार्य किया। ईरानी समाज और राजनीति के अतिरिक्त साहित्य, कला व संस्कृति विषयों की वे विशेषज्ञ हैं। नासिरा जी अब पूर्णतया साहित्य-लेखन को समर्पित हैं।
उनके पति प्रोफ़ेसर डॉ० रामचंद्र शर्मा एक सहृदय और सच्चे इंसान थे। प्रोफ़ेसर शर्मा कॉमन वेल्थ स्कॉलरशिप से सम्मानित थे और उनकी पुस्तक 'ओशनोग्राफी' बेहद चर्चित रही। इलाहाबाद में अध्यापन करने के पश्चात वे जेएनयू के स्कूल ऑफ़ इन्टरनेशनल स्टडीज़ में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहे। नासिरा जी की बेटी अंजुम अपने पति श्री बदिउलज्जमा की शिपिंग कंपनी में डायरेक्टर हैं। उनका बेटा अनिल शर्मा, जिसे वे प्यार से अन्नी कहती हैं, दुबई में एक डाक्यूमेंट्री फिल्म प्रोड्यूसर है। नासिरा जी एक संवेदनशील लेखिका हैं। वे स्वभाव से सरल हैं, खुशमिजाज़ हैं और स्पष्टवादी हैं। स्पष्ट बात कहने की आदत उनकी रचनाओं में भी दिखाई देती है। भारतीय संस्कृति से उन्हें प्रेम है, उनका जीवन धर्मनिरपेक्षता का पर्याय है।
नासिरा जी की पहली कहानी 'राजा भैया' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी जब वे सातवीं कक्षा की छात्र थीं। सन १९७५ से नासिरा जी ने लेखन को संजीगदी से लेना शुरू किया और 'सारिका' के नवलेखन अंक में उनकी कहानी 'बुतखाना' और 'मनोरमा' पत्रिका में 'तकाजा' प्रकाशित हुई। सन १९८५ में नासिरा जी का पहला उपन्यास 'सात नदियाँ : एक समुंदर' प्रकाशित हुआ। नासिरा जी के लेखन का फलक बहुत विस्तृत है। अब तक इनके दस उपन्यास, छह कहानी संकलन, तीन लेख-संकलन और सात पुस्तकों के फ़ारसी से अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। 'सारिका', 'पुनश्च' का ईरानी क्रांति विशेषांक, 'वर्तमान साहित्य' के महिला लेखन अंक तथा 'क्षितिजपार' के नाम से राजस्थानी लेखकों की कहानियों का संपादन और बाल साहित्य लेखन के अतिरिक्त इनकी कहानियों पर अब तक 'वापसी', 'सरज़मीन' और 'शाल्मली' के नाम से तीन टीवी सीरियल बने हैं। इसके अतिरिक्त 'माँ', 'तड़प', 'आया बसंत सखि', 'काली मोहिनी', 'सेमल का दरख्त' तथा 'बावली' नामक दूरदर्शन के लिए छह फ़िल्मों का निर्माण भी हो चुका है।
नासिरा शर्मा एक ऐसी लेखिका हैं जिन्होंने कभी दबाव में नहीं लिखा, खुलकर अपनी बात कही, और अपनी पूरी जिंदगी लेखन के नाम समर्पित कर दी। इरा़क, अ़फ़गानिस्तान, सीरिया, पाकिस्तान और भारत के राजनीतिज्ञों तथा प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों के साथ नासिरा शर्मा के द्वारा किए गए साक्षात्कार बेहद चर्चित रहे हैं। इसके अलावा ईरानी युद्धबंदियों पर जर्मन और फ्रेंच दूरदर्शन के लिए बनी फिल्मों में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सृजनात्मक लेखन के साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता में भी इन्होंने बेहतरीन कार्य किया है। नासिरा शर्मा का साहित्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य को समाहित किए हुए है। आजकल भू-मण्डलीकरण ने विश्व को एक सूत्र में बांध दिया है, उसकी जटिलताओं पर भी नासिरा जी की कलम चली हैं। यही कारण है कि नासिरा शर्मा समसामयिक युग की पहचान बन सकी हैं। नासिरा शर्मा ने अपने लेखन के माध्यम से समाज के उन ज्वलंत मुद्दों पर चिंतन किया है जिससे हमारी सामाजिक संरचना, हमारी लोकतांत्रिक सत्ता और हमारी संस्कृति प्रभावित रही है। उनके साहित्यिक लेखन के विषय में अशोक तिवारी लिखते हैं, "अदब में बाईं पसली नाम से छह खंडों में तमाम देशों की रचनाएँ, अनुवाद, विश्लेषण, परिचय एवं बातचीत को खूबसूरती से संकलित किया है। नासिरा शर्मा का यह प्रयास उस ललक का नतीजा रहा है जिसके तहत वे बार-बार एफ्रो-एशियाई तमाम देशों में जाकर अनुभव इकट्ठा करती हैं। और इसी के फलस्वरूप उनकी अनगिनत कहानियाँ क़लमबद्ध होती हैं जो सार्वजनिक तौर पर इंसानी मूल्यों की हिफ़ाजत में साहित्यिक परचम लहराती हैं।"
नासिरा जी किसी भी धर्म या मजहब की इबादत में विश्वास करने से अधिक मानवीयता में विश्वास करती हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कान्वेंट में की इसलिए उनकी रुचि गिरजाघर में भी हुई। मोहल्ले के मंदिरों और मस्जिदों की सुंदर नक्काशी उन्हें सदा आकर्षित करती रही। अपने एक साक्षात्कार में नासिरा जी ने धर्म के प्रश्न पर कहा था, "लेखक का कोई धर्म नहीं होता। लेखक यह सोचकर नहीं लिखता कि वह कहां का रहने वाला है या उसका धर्म क्या है? ऐसा सोचने की बजाय एक लेखक उत्पीड़न को बाहर लाने की कोशिश करता है।"
अपने दो अंतिम उपन्यासों 'ज़ीरो रोड'(२००८) व 'पारिजात'(२०११) में उन्होंने मनुष्य की संवेदनशून्य मानसिकता और मनुष्य के बदलते हुए संबंधों की कहानी लिखी है। नासिरा शर्मा ने किसी एक धर्म को विशेष महत्त्व न देकर सभी धर्मों को समान माना है। उनका यह विचार पारिजात उपन्यास में बखूबी अभिव्यक्त हुआ है, "धर्म केवल योजनाबद्ध तरीके से जीवन जीने का एक रास्ता है। आज धर्म को समझना बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि उसका गलत प्रयोग इंसानों की जिंदगी को बेहद दुश्वार बना रहा है।"
'ज़ीरो रोड' की कहानी इलाहाबाद से शुरू होती है और फिर दुबई तक जाती है, जिसमें न केवल निम्न मध्यवर्गीय भारतीय परिवारों की आर्थिक समस्याओं का उल्लेख किया गया है बल्कि प्रवासी मानसिकता, बड़े शहरों का अकेलापन, साम्प्रदायिकता और आतंकवाद से जूझती पूरी दुनिया को एकसूत्र में गूंथकर उपन्यास के माध्यम से पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। किताब के विभिन्न पात्रों के वार्तालाप के द्वारा विश्व में हो रही हिंसा को व्यक्त किया गया है, जैसे - गोधरा कांड, निठारी कांड में बच्चों पर हुए अमानवीय अत्याचार, रामजन्मभूमि-बाबरी - मस्जिद विवाद में हिंदू - मुस्लिम मतभेद, मुंबई में बम-विस्फोट, अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला, अमेरिका का कुवैत पर आक्रमण, ईरान-इराक युद्ध आदि। आज बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार, दुल्हन को जलाना, भूख से दम तोड़ते लोग, आत्महत्या करते किसान' आदि समस्याएँ भी चिंता का विषय हैं। मानवीय रिश्तों की जटिलताएँ उनके लेखन में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। अंत में उनके ही शब्दों से, जिनमें समस्त मानवता के लिए चिंता छिपी हुई है, आलेख को समाप्त करती हूँ, "यह समय, जिसमें हम जी रहे हैं, वास्तव में सनसनी और सदमों से भरा हुआ है। घटनाएँ हर दिन नये ढंग से इन्सान के विश्वास को तोड़ने का षड्यंत्र रचती हैं, लाख अवसाद से भागने, बचने की कोशिश करो मगर वह आपका पीछा लगातार करता रहता है। एक भय की संरचना लगातार आपकी कोशिकाएँ रचती रहती हैं जो आपको निरंतर निर्बल बनाती हैं, लाख आप आत्मा को मजबूत रखने की कोशिश करें मगर शरीर इन सदमों से कमज़ोर पड़ता है।"सन्दर्भ
हिंदी समय
साहित्य सृजन
वाणी प्रकाशन
विकीपीडिया हिंदी
नवभारत टाइम्स
हिंदी गद्य कोश
साहित्य सृजन
https://dyuthi.cusat.ac.in/xmlui/bitstream/handle/purl/4846/Dyuthi-T1943.pdf?sequence=1 कोचीन विश्वविद्यालय में रंजिनी कृष्णन द्वारा डी फिल के लिए नासिरा शर्मा पर शोध पत्र
https://www.aiirjournal.com गुरुकुल कांगड़ी विश्विद्यालय हरिद्वार की शोधार्थी कु. रूबी जमाल के नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में योगदान पर आधारित शोध पत्र
https://ndtv.in/literature/an-interview-with-nasira-sharma-1650834
https://www.scotbuzz.org/2020/11/nasira-sharma-ka-jeevan-parichay.html
http://ir.unishivaji.ac.in:8080/jspui/bitstream/123456789/2607/5/05_Chapter%201.pdf
लेखक परिचय
ईमेल - Rekha_rajvanshi@yahoo.com.au
Very good👍
ReplyDeleteThanks
DeleteRekha
हार्दिक बधाई,रेखा जी, नासीरा शर्मा जी के व्यक्तित्व और साहित्यिक परिचय प्राप्त हुआ।💐
ReplyDeleteधन्यवाद विजय जी - रेखा
Deleteशिवानन्द सिंह 'सहयोगी', मेरठ।
ReplyDeleteनासिरा शर्मा जी के बारे में दी गईं जानकारियाँ प्रेरणादायक हैं। सुंदर आलेख।
आपका आभार 🙏
Delete- रेखा
नासिरा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक सार्थक आलेख। उनका लेखन न सिर्फ़ महिला जीवन के अनेक समस्याओं को उभारता है बल्कि समाज की राजनीतिक, सामाजिक और भावनात्मक समस्याओं को भी आईना दिखता है।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteरेखा
रेखा जी नमस्ते। आपने नासिरा शर्मा जी पर अच्छा लेख लिखा है। आपके लेख से नासिरा जी के सृजन की विस्तृत जानकारी मिली। आपको इस रोचक लेख के लिए बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete- रेखा
Balanced Writing
ReplyDeleteThanks
DeleteRekha
आपका यह लेख बहुत ही प्रेरणादायक है इनकी भाषा बहुत ही समृद्ध है। इनके भाव और भाषा में मणिकांचन संयोग है, इनकी भाषा इनके भावों को संवहन करने में पूर्णतः सक्षम है।आपका यह लेख पाठक और श्रोता पर ठीक उसी प्रकार से प्रभाव डालती है जिस प्रकार से लेखिका ने रचना के समय अनुभूति किया ।यह मेरे सौभाग्य का विषय है कि जिन्हें लोग कृतियों में पढ़ते हैं मुझे उसने साक्षात् मिलने का अवसर प्राप्त हुआ ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Delete- रेखा
रेखा जी, आपका आलेख नासिरा शर्मा जी पर एक कहानी की तरह पढ़ा गयानासिरा जी के लेखन और उनकी सोच को सलाम। आपको इस सुन्दर आलेख के लिए बधाई और आभार।
ReplyDeleteनासिरा जी का व्यक्तित्व ही बहु आयामी है प्रगति। टिप्पणी के लिए आभार।
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