Monday, August 22, 2022

गिरिजा कुमार माथुर: जीवन के आलोक की वाणी



वर्ष २०१८-१९ नई कविता के समर्थ कवि गिरिजा कुमार माथुर का जन्मशती वर्ष था। 
१९१९ को मध्यप्रदेश के अशोक नगर में जन्मे गिरिजा कुमार माथुर कवि, नाटककार और आलोचक के रूप में जाने जाते हैं। मंजीर (१९४१), नाश और निर्माण (१९४६), धूप के धान (१९५५), शिलापंख चमकीले (१९६१), जो बंध नहीं सका (१९६८), भीतरी नदी की यात्रा (१९७५), साक्षी रहे वर्तमान(१९७९), मैं वक्‍त के हूँ सामने (रचना काल १९८०-१९८९) उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह हैं। छाया मत छूना मन (१९५३) में चयनित गीत हैं तथा जनम कैद (१९५७) एकांकी संग्रह। उनकी आलोचना पुस्तक – नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ है। उनकी महत्वपूर्ण कृति ‘मुझे और अभी कहना है’ का प्रकाशन वर्ष १९९१ है। गिरिजा कुमार माथुर को साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान तथा के. के. बिरला फाउन्डेशन द्वारा व्यास सम्मान प्रदान किया गया। 

उनकी पहली कविता ‘मैं निज सोने के पर पसार’ १९३६ में कर्मवीर में प्रकाशित हुई। पचास से भी अधिक वर्षों तक अनवरत काव्य सृजनरत गिरिजा कुमार माथुर, १९४३ में नई कविता आन्दोलन में तारसप्तक के माध्यम से सम्मिलित हुए। लेकिन इससे पूर्व ही, उनका पहला काव्य-संग्रह ‘मंजीर’ १९४१ में छप गया था। इसमें उनकी १९३४ से १९४० तक की कविताएँ संकलित हैं। अपनी कविताई के विषय में कवि कहते हैं : ‘मेरे जैसे कवि ने शुरू से ही अपनी रचना यात्रा की कठिन राह अलग से बनाना तय कर लिया था’... मुझे और अभी कहना है, (पृष्ठ ३)
गिरिजा कुमार माथुर की कविता में एक ऐसी निरंतरता है जो उन्हें नया भी बनाती है और परम्परा से भी जोड़ती है। वे स्वयं कहते हैं – ‘ काव्य साधना के इन पिछले ५० वर्षों में अपने समय के तमाम आन्दोलनों के बीच से
गुजरा हूँ।  ...प्रगतिशील धारा, प्रयोगधर्मिता और नई कविता में अपना योगदान देते हुए भी मैं जिन्दगी से जुड़ी अपनी ‘अलग’ जमीन पर खड़ा रहा.... १९३७ में मैंने तय किया कि जब तक अपनी अनुभूति और भाषा में अपनी अलग पहचान वाला रास्ता नहीं बनाऊँगा तब तक कविता नहीं लिखूँगा।’ (मुझे और अभी कहना है पृष्ठ ३५, १८)

गिरिजा कुमार माथुर का काव्य उनके द्वारा जिए गए जीवन का साक्ष्य प्रस्तुत करता है। अपने काव्य के केन्द्रीय स्वर को स्वयं कवि ने उन्मुक्तता, खुलापन, मिठास, आत्मीयता, ममता और उल्लास के रूप में अंकित किया है। इन प्रमुख विशेषताओं के साथ ही प्रेम, प्रकृति, सामाजिक चिंता, करुणा जैसे नए आयाम भी उनकी कविता में जुड़ते रहे। उनके काव्य का मूल स्वर प्रेम है...व्यापक अर्थ में प्रेम से जुड़े हैं – आत्मदान, आस्था, त्याग, निष्ठा, समर्पण, आत्मीयता जैसे भाव। प्रेम के साथ करुणा कवि व्यक्तित्व को ऐसा विस्तार देती है, जिसमें – स्त्री, प्रकृति, बच्चे, समाज, परिवार, गरीब-अभागे सहज ही शामिल हो जाते हैं। इन्हीं के बीच कवि अपने-आप को भली-भांति पहचानता है। 

सिर्फ प्यार रह जाता है गिरिजाकुमार माथुर ने ‘अपने जीवन के मधुर मोहक पक्ष’ का स्पर्श करने वाली रचनाओं में प्रेम, मानवीय संबंधों में प्रेम की ऊष्मा, उसकी उलझन, उससे मिली हताशा और अंततः एक आश्वस्ति के भाव को अनवरत रेखांकित किया है। डॉ० नगेन्द्र का कथन है - “कवि ने जीवन की मधुर भावना को बड़े ही हलके हाथों से किन्तु पूरी गहराई के साथ बिम्बित करने का सफल प्रयास किया है। संसार में रह कर जो खोया और जो पाया उसी का लेखा-जोखा पेश किया।” वे प्रेम की वास्तविकता के अंकन के साथ उसके प्रति आशा और भरोसा जगाने वाले कवि हैं –
‘रूठ गए वरदान सभी फिर भी मैं मीठे गान लिए हूँ
टूट गया मंदिर तो क्या पूजन के तो अरमान लिए हूँ
….( मंजीर पृष्ठ १६ )

‘मधु बरसाने वाले’ कवि के जीवन में आकर विष ही छोड़ गए, प्यार के लघु सावन में जल की जगह ज्वाल ही बरसी। प्यार की निष्ठुरता को पहचानने के बावजूद जीवन में प्रेम की अर्थमयता और गहनता के प्रति कवि की निष्ठा बरकरार रही। उनकी कविता में प्रेम के मूर्त और मांसल अनुभवों की निस्संकोच उन्मुक्त अभिव्यक्ति है –
उन्होंने कई कविताओं में गहन और नितांत व्यक्तिगत को रचा है –
‘हेमंत की
वह मंद ठिठुरन
तन छुवन से
ऊष्म तुम कर दो, रसीली 
( धूप के धान पृष्ठ १०५ )

उनकी प्रेम कविताओं में कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति में कोई दुराव-छिपाव नहीं हैं। कोई पश्चात्ताप नहीं है, संकोच, पछतावा या अपराध का बोध नहीं है। बल्कि आश्वस्त, परिपक्व, मुक्त प्रेम का अंकन है। उनके प्रेम गीतों
में छायावाद का अतीन्द्रिय, सूक्ष्म रूप नहीं है – स्पष्टता है, अनुभव और संवेदना है। वे किसी अलौकिक-आध्यात्मिक प्रेम की बात नहीं करते। इन कविताओं में प्रेम के नितांत निजी, लघु प्रसंग हैं, छोटी-छोटी सारवान
स्मृतियाँ हैं। प्रेम के उहापोहमय संसार की विविध छवियाँ हैं। पारंपरिक दाम्पत्य जीवन की पवित्रता के अनगिनत बिम्ब कवि की सुरुचि सम्पन्नता को द्योतित करते हैं। कवि के लिए प्रेम वह है जिसके संस्पर्श से ‘हर मामूली शब्द मुस्कराहट बन जाता है’। उनकी कविताओं में प्रेम उथला रूप चित्रण लेकर नहीं आता बल्कि यहां सौन्दर्य की प्रभावशीलता का अंकन है। कवि प्यार में पारस्परिक समझ की गहराई को आंकता है –
तुम्हारी समझदार आँखें
छिपा लेती हैं
सीधी दृष्टि के पीछे
दूर छिपी मेरी इच्छा को
मौसम का हाल
सेहत की पूछताछ
कामकाज के मामूली प्रश्नों में
यह पूरा शरीर झनझना कर मिल जाता है
एक बेसब्र, खामोश मांग बन जाता है
... ( मुझे और अभी कहना है पृष्ठ २२७ - २२८ )

संसार में बैचैनी व्याप्त है और प्यार में उसे परास्त कर देने की शक्ति, इसलिए प्यार वक्त को भी जीत लेने का सामर्थ्य रखता है। प्रेम को मूल्यवान बनाने वाला भाव कृतज्ञता है। ‘जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्यार’ की
सहज विश्वसनीय स्वीकृति के साथ ही जीवन में किसी की देन को बेझिझक स्वीकार करना, प्रेम के माध्यम से एक दुर्लभ होते जा रहे भाव को संवारना है,
मेरे युवा आम में नया बौर आया है
खुशबू बहुत है क्‍योंकि तुमने लगाया है।
मेरा जिस्‍म फिर से नया रूप धर आया है
ताज़गी बहुत है क्‍योंकि तुमने सजाया है। 
(मुझे और अभी कहना है पृष्ठ २५०)

गिरिजा कुमार माथुर की प्रेम कविता में यद्यपि दुख का भाव भी है पर वह कवि-चेतना को निष्क्रिय नहीं बनाता। वे केवल प्रेम की बेचैनी के नहीं, प्रेम में आत्मिक आग्रह के कवि भी हैं। इस प्रेम में हार नहीं विश्वास का स्वर है, वर्तमान व्यथा के बीच भविष्य की आशा है – जो न मिला भूल उसे, कर तू भविष्य का वरण। ( धूप के धान पृष्ठ ९६)

कविता का संसार कवि का अन्तरंग संसार होता है, लेकिन यह रचना संसार बहिरंग जीवन की क्रिया-प्रतिक्रिया से ही बनता है। गिरिजा कुमार माथुर जैसे कवि के जीवन में प्यार का वह छोटा-सा पल क्यों मूल्यवान है, जिसने
कवि मन को भीतर-बाहर सबसे जोड़ दिया है? इसलिए कि कवि अपने आह्लाद का इकलौता भोक्ता नहीं है –
उसकी स्मृति में माँ है, जिसके प्रति प्रेमपूर्ण मन कृतज्ञता का अनुभव करता है। उसके ध्यान में बच्चा है जिसकी वजह से ‘समय की कड़वाहट कुछ कम होती है’, जो ‘शायद एक नई दुनिया रचना चाहता’ है, जिसके होने भर से ‘भाषा में कोई एक नया अर्थ’ आता है। ( मुझे और अभी कहना है पृष्ठ २७८-२८०)

जीवन की गतिमानता के बीच ‘कौन थकान हरे जीवन की’ जैसा प्रश्न उमड़कर एक वैयक्तिक करुणा की सृष्टि करता है। जिस मनुष्य और प्रकृति से कवि प्रेम करता है, उसकी पीड़ा पर करुणार्द्र होता है। कमनीयता उनके प्रेम की अंतर्वस्तु रही है, तो करुणा उसी उदात्त प्रेम का विस्तार। कवि की करुणा वहाँ बहती है जहाँ जिन्दगी का एक भी साधन नहीं "उम्र तपती धूप है, सावन नहीं" आम आदमी की जिन्दगी में दुख है, संघर्ष और अभाव है, यह दुख और अकेलापन कवि को अकेला और उदास कर जाता है। किन्तु अपने सघन एकांत के बावजूद गिरिजा कुमार माथुर जुड़ाव के कवि हैं। 

कवि के शब्दों में –
"मेरे सारे अभावों की पूर्ति कविता ने की है। ...मैंने अपनी कविता में जिन्दगी के कठिन और जटिल, कटु और तिक्त, सूक्ष्म और प्रत्यक्ष, मोहक और मधुर अनुभवों के भरपूर आस्वाद को नि:संकोच वाणी दी। कविता की सार्थकता मैं इसी में मानता हूँ कि कवि अपनी अनुभव की समस्त उजास निरंतर बांटता चला जाए।" (मुझे और अभी कहना है: पृष्ठ ३९,४०)

मूल गीत से भी अधिक प्रसिद्ध उनका भावान्तर गीत ‘हम होंगे कामयाब’ आज देशव्यापी समूहगान बन चुका है।
(सन्दर्भ: ‘गिरिजा कुमार माथुर रचना संचयन’ के फ्लैप से) गिरिजा कुमार माथुर की काव्य संवेदना गीतात्मक है। लय ने उनकी कविता को गति दी है। उनकी कविताओं में एक नया भाषिक विधान है। जीवंत बिम्ब हैं, नए उपमेय और उपमान हैं। भाषा, छंद , बिम्ब, प्रतीक, शब्द विन्यास में प्रयोगात्मकता लक्षित होती है। यह नई सृष्टि है जहाँ मुक्त छंद में लय है, काव्य अभिव्यक्ति में आधुनिकता है, भाषा संकेतमयी है। उसमें भावपूर्ण विशेषण हैं जिनसे काव्यार्थ व्यंजक हो उठता है। 

रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा हैं : ‘भाषिक संभावनाओं की खोज कवि की मुख्य चिंता है. ..शब्दों की समाहिति में मानस द्वार इतना उन्मुक्त कि तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी शब्द सहज प्रविष्ट हो जाते हैं। ..उनकी कविता पढ़ते
हुए पाठक की चेतना अपरिचय की आकस्मिकता से विस्मित नहीं होती बल्कि परिचय की आत्मीयता से संपन्न होती है... कविता अनुभव से एकाकार हो जाती है। ...उन्होंने शब्दों के प्रचलित अर्थ को नया संस्कार दिया। 

गिरिजा कुमार माथुर की भाषा कहीं-कहीं अनायास ही मुहावरेदार हो जाती है। अर्थ विशिष्ट शब्दों से नि:सृत न होकर भंगिमा से व्यक्त होता है। (हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास) गिरिजा कुमार माथुर की कविताएँ पढ़ने के बाद स्मृति में रह जाती हैं। जनसाधारण के जीवन, दुख-कष्ट-निराशा का अंकन और जीवन के अन्धकार पक्ष की उपेक्षा न करते हुए भी उनका मूल मनोभाव जीवन की सहज उज्ज्वल छवि से सम्पृक्त है। 
अंततः कविता उनके लिए जीवन के आलोक की वाणी है। 

संक्षिप्त परिचय तालिका 

नाम 

गिरिजा कुमार माथुर 

जन्म

२२ अगस्त १९१९ को मध्यप्रदेश के अशोक नगर

निधन

१० जनवरी १९९४ दिल्ली

माँ  

लक्ष्मी देवी 

पिता   

श्री देवी चरण माथुर अध्यापक कवि 

आरंभिक शिक्षा 

घर पर, स्थानीय कॉलेज से इंटर

उच्च शिक्षा

१९३६ में स्नातक – ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से

१९४१ लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर अंग्रेज़ी, एल एल बी 

विवाह

१९४०, दूसरा सप्तक की कवयित्री शकुन्त माथुर से 

आजीविका 

  • १९४३ से – ऑल इंडिया रेडियो में महत्वपूर्ण पदों पर 

  • संपादक – गगनांचल 

  • १९७८ में दूरदर्शन के उप-महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त।

रचनाएँ

काव्य 

  • आरंभिक काव्य रचना ब्रजभाषा में कवित्त सवैया 

  • मंजीर (१९४१)

  • तारसप्तक १९४३ 

  • नाश और निर्माण (१९४६) 

  • धूप के धान (१९५५) 

  • शिलापंख चमकीले (१९६१ ) 

  • जो बंध नहीं सका (१९६८) 

  • भीतरी नदी की यात्रा (१९७५) 

  • साक्षी रहे वर्तमान  (१९७९) 

  • मैं वक्‍त के हूँ सामने (१९९०) 

  • मुझे और अभी कहना है (१९९१)  

  • छाया मत छूना मन (१९५३ ) चयनित गीत 

नाटक 

  • कल्पान्तर १९८३ और पृथ्वी कल्प (१९९४ ) 

एकांकी संग्रह 

  • जनम कैद (१९५७) 

आलोचना 

  •  नई कविता सीमाएँ और संभावनाएँ १९६६  

पुरस्कार

  • १९९१ साहित्य अकादमी पुरस्कार – मैं वक्त के हूँ सामने कविता संग्रह 

  • १९९३ में इसी काव्य संग्रह के लिए के. के. बिरला फाउण्डेशन द्वारा व्यास सम्मान 

  • शलाका सम्मान 


सन्दर्भ

  • गिरिजा कुमार माथुर रचना संचयन: सम्पादक डॉक्टर पवन माथुर साहित्य अकादमी २०१९ 
  • काल पर छूटी निशानी :  संपादक पवन माथुर २०२१ 


लेखक परिचय
डॉ० विजया सती

पूर्व एसोसिएट प्रोफ़ेसर हिंदू कॉलेज दिल्ली विश्वविद्यालय
पूर्व विजिटिंग प्रोफ़ेसर ऐलते विश्वविद्यालय बुदापैश्त हंगरी
पूर्व प्रोफ़ेसर हान्कुक यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरन स्टडीज़ सिओल दक्षिण कोरिया

प्रकाशनादि- राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठियों में आलेख प्रस्तुति और उनका प्रकाशन

सम्प्रति - स्वांतः सुखाय, लिखना-पढ़ना।

ई-मेल- vijayasatijuly१@gmail.com

5 comments:

  1. विजया मैम, बहुत सारगर्भित लेख। गिरिजा कुमार माथुर पर आप द्वारा रचित इस लेख के माध्यम से उनके जीवन यात्रा और साहित्यिक योगदान की विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई। इस जानकारीपूर्ण और समृद्ध लेख के लिये आपको बधाई और आभार।

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  2. विजया मैडम नमस्ते। आपने गिरिजा कुमार माथुर जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। लेख में उनके साहित्य एवं जीवन यात्रा का विस्तृत परिचय मिलता है। लेख में सम्मिलित कथन एवं कवितांश लेख को रोचक बना रहे हैं। आपको इस शोधपरक लेख के लिए हार्दिक बधाई।

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  3. विजया जी, आपका यह आलेख सरल शब्दों में गिरिजा कुमार माथुर जी की कविता तथा कृतित्व की गहराइयों तक ले जाता है। उनकी रचनाओं में पाई जाने वाली स्पष्टता, संवेदना, प्रेम की गहन अनुभूति, तथा प्रेम के विभिन्न भावों का सुन्दर परिचय आलेख में दिए गए उद्धरणों से मिलता है। आपको इस आलेख के लिए आभार और बधाई

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  4. अच्छा आलेख है विजया जी। आपने गिरिजा कुमार माथुर जी की काव्य-यात्रा का वर्णन भी किया है और आपका सूक्ष्म अध्ययन भी साफ़ नज़र आता है। आपको अनवरत लेखन के लिए शुभकामनाएँ। 💐💐

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  5. आप सभी का आभार
    आज अस्पताल से घर वापसी
    सब कुशल
    जल्द आपके बीच लेखन के साथ

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