हिंदी साहित्य की समृद्धि में अनेक विभूतियों का अविस्मरणीय योगदान है। इन्हीं में आचार्य जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' की साहित्य रचना का वैशिष्ट्य स्वीकार किया जाता है। उन्हें विद्वत समाज में प्रतिष्ठित करने वाले उनके प्रारंभिक ग्रंथ 'छंद प्रभाकर' और 'काव्य प्रभाकर' ग्रंथ साहित्य की अमूल्य निधि हैं। आचार्य जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' छंदशास्त्र मर्मज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। हिंदी भाषा व्याकरण के पुरोधा कामताप्रसाद गुरु ने 'भानु' की सृजनशीलता के संबंध में लिखा है,
छंद पथ दर्शक भानु कवि
छंदों जलधि जिन्हें परमाणु
जिनका छंद प्रभाकर ग्रंथ
विद्युत प्रभा प्रकाशित पथ।।
जगन्नाथ प्रसाद का जन्म मध्यप्रदेश के नागपुर में श्रावण शुक्ल दशमी ८ अगस्त १८५९ को साहित्यप्रेमी परिवार में हुआ था। इनके पिता बख्शीराम उस समय के लोकप्रिय कवि थे। पिता से जगन्नाथ प्रसाद 'भानू' को कविता के संस्कार मिले, जिन्होंने उन्हें कविता के अनिवार्य तत्वों के गंभीर अध्ययन के लिए प्रेरित किया। स्वाध्याय से उन्होंने जहाँ संस्कृत, हिंदी, अँग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी एवं अन्य भाषाओं के साहित्य का गहन ज्ञान अर्जित किया, वहीं धर्म, दर्शन, वेद-वेदांगों पर आधारित साहित्य को भी आत्मसात किया। १६ वर्ष की कम उम्र में ही भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जगन्नाथ प्रसाद को मोहर्रिर पद पर नियुक्त किया। सरकारी सेवा ने जगन्नाथ प्रसाद के अध्ययन, मनन-चिंतन को प्रभावित नहीं किया और वे निरंतर अपने ज्ञान को समृद्ध करते रहे। गंभीर अध्ययन के बाद उन्होंने छंदशास्त्र पर प्रामाणिक ग्रंथ 'छंद प्रभाकर' की रचना की और इस कृति ने तत्कालीन विद्वत समाज में जगन्नाथ प्रसाद को सम्मान और प्रतिष्ठा दिलाई। यह न सिर्फ़ हिंदी में छंद शास्त्र का पहला ग्रंथ होने के कारण उल्लेखनीय है, बल्कि इसका महत्व इसलिए भी है कि इसमें मात्रा, वर्ण, प्रत्यय आदि का व्यवस्थित विश्लेषण किया गया है। बहुभाषाविद होने का लाभ लेते हुए भानु जी ने ग्रंथ में संस्कृत, मराठी तुलनात्मक उदाहरणों के साथ तुकांत काव्य के उल्लेख सहित उर्दू-फ़ारसी बहरों और अँग्रेज़ी के मीटर का हिंदी छंदों के साथ विवेचन किया है। लेखक ने 'छंद प्रभाकर' की भूमिका में इस ग्रंथ को लिखने के उद्देश्य बताते हुए लिखा है, "छंदशास्त्र का थोड़ा बहुत ज्ञान होना मनुष्य के लिए परमावश्यक है। आप लोग देखते हैं कि हमारे ऋषि, महर्षि और पूर्वजों ने स्मृति, शास्त्र पुराण आदि जितने ग्रंथों का निर्माण किया है, वे सब प्रायः छंदोबद्ध हैं। यहाँ तक कि श्रुति अर्थात वेद भी छांदस कहाते हैं। छंद का इतना गौरव और माहात्म्य आनंदप्रद होता है। इसके सिवाय उसका आशय भी गद्य की अपेक्षा थोड़े ही में आ जाता है, किसी सत्कवि का कथन है,
नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सु दुर्लभा।
कवित्व दुर्लभ तत्र शक्ति स्तत्र सु दुर्लभा।।
अर्थात इस संसार में पहले तो मनुष्य जन्म ही दुर्लभ है, फिर मनुष्य जन्म पाकर विद्या प्राप्ति उससे भी अधिक दुर्लभ है, यदि कहीं विद्या आ भी गई तो काव्य की रचना और भी दुर्लभ है, और काव्य रचने में सुशक्ति का प्राप्त होना तो अतीव दुर्लभ है। इससे यही सिद्ध हुआ कि नरदेह पाकर काव्य का ज्ञान होना श्रेयस्कर है और काव्य का ज्ञान बिना छंदशास्त्र पढ़े हो ही नहीं हो सकता। अतएव प्रत्येक मनुष्य के लिए छंदशास्त्र का ज्ञान परमावश्यक है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है,
काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम।
व्यसनेनच मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
भारतवर्ष में अनेक कवि हुए हैं, जिन्होंने हम लोगों के कल्याणार्थ एक से एक विचित्र मनोहर और रसपूर्ण काव्य ग्रंथ रूपी अमूल्य रत्न छोड़े हैं। वर्तमान समय में भी अनेक सुकवि हैं, किंतु इनकी संख्या बहुत थोड़ी है। हमें ऐसे नामधारी कवि दृष्टिगोचर होते हैं, जिनकी कविता गणागण के विचार से शून्य रहती है। इसका कारण यही है कि प्राचीन सुकविगण छंदशास्त्र तथा साहित्यशास्त्र का भलीभांति अध्ययन कर लेने के पश्चात ही काव्य रचना को हाथ लगाते थे, किंतु आजकल यह बात नहीं रही। आधिकांश जन छंदशास्त्र का भलीभांति अध्ययन किए बिना ही कविता करने लगते हैं, जिससे वे उपहास के पात्र होते हैं। इनकी असफलता का दूसरा किंतु मुख्य कारण यह भी है कि भाषा में ऐसा कोई उत्तम छांदोग्रंथ भी नहीं है, जिसके द्वारा लोग सरलतापूर्वक छंदों का ज्ञान प्राप्त कर लें .......यह देखकर ही जन साधारण के हितार्थ इस ग्रंथ की रचना की गई है।" (छंद प्रभाकर, भूमिका पृष्ठ २-३)
आचार्य जगन्नाथ प्रसाद भानु द्वारा रचित 'काव्य प्रभाकर' भी महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें भाषा काव्य के समस्त विषयों का सहज और सरल विश्लेषण समाविष्ट है, साथ ही काव्य-भेद, छंद, नाटक, रस, नायिका-भेद, अलंकार, काव्य के गुण-दोष सभी विषयों पर गहन चिंतन किया गया है। इस ग्रंथ में कोश तथा लोकोक्ति संग्रह को भी शामिल किया है, जो आधुनिक काल में लोकोक्ति संग्रह की दिशा में किया जाने वाला पहला प्रयास माना जाता है। काव्य प्रभाकर एक प्रकार से प्राचीन काव्य शास्त्र का वृहद कोश है। तुलसीदास के साहित्य ने आचार्य जगन्नाथ भानु को बहुत प्रभावित किया, तभी तो उन्होंने तुलसी साहित्य पर आधारित चार-पाँच साहित्यिक ग्रंथों की रचना की है। आचार्य जगन्नाथ भानु ने 'नव पंचामृत रामायण' में छंदशास्त्र का संपूर्ण वर्णन रामचरितमानस को आधार बनाकर किया है। उन्होंने महाकवि तुलसीदास के छंदशास्त्र ज्ञान की प्रतिष्ठा की। आचार्य भानु ने अपने अन्य ग्रंथों में भी प्रस्तुत सिद्धातों का गंभीर विश्लेषण एवं सुगम अध्ययन अन्य ग्रंथों में किया है, जिनमें छंद प्रभाकर, छंद सारावली, अलंकार प्रश्नोत्तरी, हिंदी काव्यालंकार, रस रत्नाकर, काव्य प्रबंध, नायिका भेद, संकावली उल्लेखनीय हैं। विद्वानों ने आचार्य जगन्नाथ जी की गणित तथा ज्योतिष संबंधी रचनाओं का बहुत सम्मान किया है। काल गणना पर आधारित काल विज्ञान, काल प्रबोध, की टू पर्पेचुअल केलेंडर ए० डी०, की टू पर्पेचुअल केलेंडर बी० सी०, तथा गणित संबंधी अनेक समस्याओं के समाधान के क्षेत्र में अंक बिलास, की टू परम्युटेशन ऑफ़ फीगर्स, बहुत चर्चित और महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। अतुलनीय विद्वता द्वारा प्रणीत ग्रंथों की उत्तमता और उपयोगिता के कारण जगन्नाथ प्रसाद भानु को आचार्यत्व प्राप्त हुआ। वे हिंदी के पहले विद्वान हैं, जिन्हें हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा १९४२ में महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया था।
आचार्य जगन्नाथ प्रसाद भानु सहृदयी व्यक्तित्व के धनी थे और सामाजिक, सांस्कृतिक भावनाओं से संपृक्त थे। हमेशा समाज के लोगों की सहायता और प्रोत्साहन में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करते रहते थे। निमाड़ क्षेत्र में नौकरी के दौरान वे राजस्व अधिकारी के रूप में पदस्थ रहे और सरकार की नीतियों के विरुद्ध जाकर उन्होंने लगान की दरों में कटौती कर स्थानीय जनता का साथ दिया। उनके इस व्यवहार ने लोगों का दिल जीता था। जनता की सेवा से उन्हें जो आत्मिक संतोष मिला, उसे याद करते हुए वे लिखते हैं, "इस छल कपट से भरे संसार में मुझे ग्रामीण जनता से जो प्रेम और प्रतिष्ठा मिली, वह देव-दुर्लभ है।" निमाड़ क्षेत्र में एक गीत प्रचलित है, जो भानु जी की सदाशयता को प्रस्तुत करता है,
चालो री साहेल्यां म्हारा जगन्नाथ जी आया री।
जगन्नाथ जी आया वो तो कोई पदारथ लाया री।
आगूं तो हम सौ-सौ देत, अब नौ दसक सुनाया री।
बाकी रुपया सबै छुड़ाया, हरखीना घर आया री॥
माखनलाल चतुर्वेदी जब प्राथमिक शाला में शिक्षक थे और साहित्य क्षेत्र में बढ़ने का प्रयास कर रहे थे, उस समय उन्हें जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' से शक्तिमयी प्रेरणा और प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। 'भानु' जी सदैव युवाओं के मार्गदर्शन के लिए तत्पर रहते थे, अनेक साहित्यकारों ने अपने जीवन में जगन्नाथ प्रसाद की भूमिका को स्वीकार किया है। सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त होकर सक्रिय सार्वजनिक जीवन बिताते हुए भानुजी ने १९१३ में बिलासपुर में जगन्नाथ प्रेस नामक छापाखाना आरंभ कर इस अंचल के एक बड़े अभाव की पूर्ति की। भानु जी की मित्र मंडली और परिचय का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था। वे तत्कालीन सभी प्रमुख साहित्य मनीषियों और महापुरुषों के सतत संपर्क में रहते और सम्मान पाते थे। श्रीकृष्ण कन्या शाला के अध्यक्ष, बिलासपुर डिस्पेंसरी के सदस्य, सहकारी बैंक के संस्थापक, महाकौशल हिस्टोरिकल सोसाइटी कौंसिल के अध्यक्ष, मध्यप्रांतीय लिटरेरी एकेडमी जैसी विभिन्न संस्थाओं से संबद्ध रहकर छत्तीसगढ़ में साहित्यिक और बौद्धिक वातावरण के निर्माण में उन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया।
आचार्य जगन्नाथ प्रसाद भानु के साहित्यिक अवदान पर रमेश अनुपम ने शोधकार्य किया और इस दौरान उन्होंने भानु जी उर्दू की कविताओं का उर्दू के प्रोफ़ेसर डॉ० मोहम्मद खालिक अली इकबाल से हिंदी तर्जुमा करवाया था और उसे जल भीतर इक बृच्छा उपजै में प्रकाशित करवाया था। उसी तर्जुमे से एक ग़ज़ल प्रस्तुत है,
न मिलने के बहाने बहुत हैं
जो मिलने पे आओ ठिकाने बहुत हैं।
बहार आई फूलों से शाखें लदी हैं बहुत
बुलबुले-आशियानें बहुत हैं।
वह तीर व कमां घर से लेकर तो निकलें
बहुत सर व कफ़ हैं निशाने बहुत हैं।
वह सुनकर मेरा किस्सा-ए-दिल यह बोले
उठा ज़िंदगी से न तू हाथ ए दिल
अभी ज़ुल्म उनके उठाने बहुत हैं।
छंदशास्त्र मर्मज्ञ, कवि, काव्यशास्त्रीय आचार्य और समाज के प्रति समर्पित ऐसे मनीषी को हिंदी जगत का सादर नमन।
आचार्य जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' : जीवन परिचय |
जन्म | ८ अगस्त १८५९, नागपुर |
निधन | २५ अक्टूबर १९४५, बिलासपुर |
पिता | बख्शीराम |
शिक्षा | स्वाध्याय से |
भाषाज्ञान | संस्कृत, हिंदी, मराठी, उर्दू, फ़ारसी, प्राकृत, उड़िया,अँग्रेज़ी |
कार्यक्षेत्र | ब्रिटिश सरकार की सेवा, १९१२ में सीनियर असिस्टेंट सेटलमेंट ऑफिसर पद से सेवानिवृत्त |
साहित्याध्ययन | हिंदी, अँग्रेज़ी, धर्म, दर्शन, गणित, ज्योतिष आदि शास्त्रों का गंभीर अध्ययन |
साहित्यिक रचनाएँ |
छंदप्रभाकर (१८९४) नवपंचामृत रामायण (१८९७) काव्यप्रभाकर(१९०९) छंद सारावली (१९१७) अलंकार प्रश्नोत्तरी (१९१८) हिंदी काव्यालंकार (१९१८) काव्य प्रबंध (१९१८) काव्य कुसुमांजलि (१९२०) नायिका भेद शंकावली (१९२५) रस रत्नकार (१९२७) श्री तुलसी तत्त्व प्रकाश (१९३१) रामायण वर्णावली (१९३६) अलंकार दर्पण (१९३६) श्री तुलसी भव प्रकाशन (१९३७) काल विज्ञान काल प्रबोध की टू परपेचुअल केलेण्डर, ए।डी। एंड बी।सी। की टू परम्युटेशन ऑफ फीगर्स कांबिनेशन एंड परम्यूटेशन आफ फिगर्स तुम्ही तो हो (काव्य संग्रह) जयहार चालीसी (काव्य संग्रह) गुलज़ारे फैज़ (काव्य संग्रह) गुलज़ारे सुखन (काव्य संग्रह) खुसरा चिरई के बिहाव
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पत्रिकाओं का संपादन | - काव्य कला निधि (मिर्ज़ापुर से )
- काव्य सुधा निधि (जबलपुर से )
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सम्मान / पदवी |
महामहोपाध्याय साहित्य-वाचस्पति
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संदर्भ
लेखक परिचय
डॉ० दीपक पाण्डेय
वर्तमान में शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के केंद्रीय हिंदी निदेशालय में सहायक निदेशक पद पर कार्यरत हैं। २०१५ से २०१९ तक त्रिनिडाड एवं टोबैगो में राजनयिक के पद पर पदस्थ रहे। प्रवासी साहित्य में आपकी विशेष रुचि है। आपके लेख/समीक्षा प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। साथ ही आपकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
मोबाइल +91 8929408999 ईमेल - dkp410@gmail.com
भानु जी द्वारा रचित छंद प्रभाकर निसंदेह छंदों की विधा की सबसे प्रामाणिक पयस्तक है। मैंने प्रमुख 6 पुस्तकों का अवलोकन किया पिंगल शास्त्र भी पढ़ा पर मैं ही नहीं छंद लिखने वाले सभी इसे ही सहायता के लिए देखते हसीन। छंदों की विधा में भानु जी का काम अद्भुत है। पर मेरी सलाह है इसे रिफरेन्स पुस्तक के अनुसार ही प्रयोग करें।
ReplyDeleteयह साहित्य का ऐसा स्थापत्य है जो साहित्य पटल पर आना ज़रूरी था.दीपक पाण्डेय जी ने इसकी गूढ़ता को पारदर्शी बनाया. आभार और आत्मीय बधाई पाण्डेय जी.💐💐
ReplyDeleteछंद पर लिखीं भानु जी की पुस्तकें हिंदी और भारतीय भाषाओं के लिए एक छंद ज्ञान का दर्पण है। उनके बारे में दी गईं जानकारियाँ अप्रतिम हैं
ReplyDeleteअप्रतिम जानकारी डा पांडेय जी। बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteडॉ. दीपक पांडेय जी नमस्ते। आपने आचार्य जगन्नाथ प्रसाद जी पर बहुत अच्छा लेख लिखा है। उनका छंदशास्त्र किया गया कार्य अतुलनीय एवं वन्दनीय है। आपके लेख के माध्यम से उनके विशाल सृजन को जानने का अवसर मिला। आपको इस जानकारी भरे लेख के लिए हार्दिक बधाई।
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